पूरे गाने की धीमी धुन और इसके राग अलहैया बिलावल का श्रेय रवींद्रनाथ को ही दिया गया है। रवींद्रनाथ के भतीजे के बेटे, दीनेंद्रनाथ टैगोर, जो खुद एक महान संगीतकार थे, ने शायद धुन बनाने में मदद की होगी। गाने की एक और सुरीली धुन, जर्मनी में हैम्बर्ग रेडियो सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा ने 1942 में बजाई थी। Show
Republic Day 2019: राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के बारे में हम सभी काफी बाते जानते होंगे. लेकिन क्या कभी ये सोचा है कि आखिर राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के पीछे की कहानी क्या है. कैसे "जन-गण-मन" को राष्ट्रगान और "वन्दे मातरम्" को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया था. आज हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे. सबसे पहले हम बात करते हैं राष्ट्रगान की अगर किसी से पूछे तो का आप राष्ट्रगान के बारे में क्या जानते हैं तो वह यहीं बताएंगे कि 'जन गण मन' तब से गाते आ रहे हैं जब हम स्कूल में हुआ करते थे, या फिर इसे रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था. क्या आप इसके अलावा कुछ और बातें जानते हैं... बता दें, राष्ट्रगान साल 1905 में बंगाली में लिखा गया था. 27 दिसंबर 1911 को पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कोलकाता (तब कलकत्ता) सभा में गाया गया था. उस समय बंगाल के बाहर के लोग इसे नहीं जानते थे. संविधान सभा ने जन गण मन को भारत के राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को अपनाया. Republic Day 2019: भारत के तिरंगे की कहानी, कैसे बना हमारा राष्ट्रीय ध्वज अर्थ की वजह से बना राष्ट्रगान राष्ट्रगान अपने अर्थ की वजह से राष्ट्रगान बनाया गया था. इसके कुछ अंशों का अर्थ होता है कि भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है. हे अधिनायक (सुपर हीरो) तुम्हीं भारत के भाग्य विधाता हो. इसके साथ ही इसमें देश के अलग- अलग राज्यों का जिक्र भी किया गया था और उनकी खूबियों के बारे में बताया गया था. राष्ट्रगान को पूरा गाने में 52 सेकेंड का समय लगता है जबकि इसके संस्करण को चलाने की अवधि लगभग 20 सेकंड है. राष्ट्रगान में 5 पद हैं. रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रगान को न केवल लिखा बल्कि उन्होंने इसे गाया भी. इसे आंध्र प्रदेश के एक छोटे से जिले मदनपिल्लै में गाया गया था. राष्ट्रगीत वंदे मातरम् इस बात से काफी कम लोग ही वाकिफ होंगे कि वंदे मातरम को पहले राष्ट्रगान बनाने की बात कही जा रही थी. लेकिन फिर इसे देश राष्ट्रगीत बनाने का फैसला किया गया. क्योंकि उसकी शुरुआती चार लाइन देश को समर्पित हैं बाद की लाइने बंगाली भाषा में हैं और मां दुर्गा की स्तुति की गई है. आइए जानते हैं वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रगीत है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत क्यों बनाया गया. ये है इतिहास वंदे मातरम को साल 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में लिखा था. जिसे उन्होंने साल 1881 में अपनी नॉवल आनंदमठ में भी जगह दी. इसे पहली बार इसे राजनीतिक संदर्भ में रबींद्रनाथ टैगौर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया था. वहीं अगर बांग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाए तो इसका शीर्षक 'वदें मातरम' नहीं बल्कि 'बंदे मातरम्' होना चाहिए क्योंकि हिन्दी और संस्कृत भाषा में 'वंदे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बांग्ला में लिखा गया था और बांग्ला लिपि में 'व' अक्षर है ही नहीं इसलिए बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे 'बन्दे मातरम्' ही लिखा था. क्या है वन्दे मातरम् का मतलब संस्कृत में 'बंदे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है और 'वंदे मातरम्' कहने से 'माता की वन्दना करता हूं' ऐसा अर्थ निकलता है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् कहा गया. ऐसे हुई राष्ट्रीय गीत की रचना बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत पर ब्रिटिश शासकों का दबदबा था. ब्रिटेन का एक गीत था 'गॉड! सेव द क्वीन'. भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य कर दिया गया. बंकिमचंद्र उस समय सरकारी नौकरी करते थे. अंग्रेजों के बर्ताव से बंकिम को बहुत बुरा लगा और उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया 'वन्दे मातरम्'. खबरों को बेहतर बनाने में हमारी मदद करें।खबर में दी गई जानकारी और सूचना से आप संतुष्ट हैं? खबर की भाषा और शीर्षक से आप संतुष्ट हैं? खबर के प्रस्तुतिकरण से आप संतुष्ट हैं? खबर में और अधिक सुधार की आवश्यकता है? बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘वंदे मातरम्’ गीत भारत का राष्ट्रीय गीत है। 'वंदे मातरम्' का स्थान राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' के बराबर है। यह गीत स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। वंदे मातरम को लेकर आज का इतिहास बेहद ही खास है, क्योंकि आज 28 दिसंबर के ही दिन कलकत्ता में साल 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में पहली बार 'वंदेमातरम्' गाया गया था। यह भारत का संविधान सम्मत राष्ट्रगीत है। इस तरह बना राष्ट्रगीतइस बहुत कम लोग जानते होंगे कि वंदे मातरम को पहले राष्ट्रगान बनाने की बात कही जा रही थी। लेकिन फिर इसे राष्ट्रगीत बनाने का फैसला लिया गया। क्योंकि उसकी शुरुआती चार लाइन देश को समर्पित हैं बाद की लाइने बंगाली भाषा में हैं और मां दुर्गा की स्तुति की गई है। जानते हैं वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रगीत है, लेकिन क्या जानते हैं कि इसे राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत क्यों बनाया गया। वंदे मातरम को साल 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में लिखा था। जिसे उन्होंने साल 1881 में अपनी नॉवल आनंदमठ में भी जगह दी। जिसके बाद धीरे-धीरे इस गीत की लोकप्रिय और भी बढ़ती गई, जिससे घबराए अंग्रेज सरकार इसे प्रतिबंधित करने की योजना भी बनाने लगी थी। इसे पहली बार इसे राजनीतिक संदर्भ में रबींद्रनाथ टैगौर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया था। यह पढ़ें...पारा शिक्षकों ने हेमंत सरकार को दी चेतावनी, मांगे नहीं पूरी होने पर होगा आंदोलन राष्टगीत से जुड़ी खास बातें...इस दौरान सन् 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इस गीत को गया। पांच साल बाद यानी सन् 1901 में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में श्री चरणदास ने यह गीत को फिर से गाया, जिसके बाद साल 1905 में बनारस अधिवेशन के दौरान इस गीत को सरलादेवी चौधरानी ने भी गया। ये था अर्थ- बंदे या वंदे जानें...वहीं अगर बांग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाए तो इसका शीर्षक 'वदें मातरम' नहीं बल्कि 'बंदे मातरम्' होना चाहिए क्योंकि हिन्दी और संस्कृत भाषा में 'वंदे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बांग्ला में लिखा गया था और बांग्ला लिपि में 'व' अक्षर है ही नहीं इसलिए बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे 'बन्दे मातरम्' ही लिखा था। संस्कृत में 'बंदे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है और 'वंदे मातरम्' कहने से 'माता की वन्दना करता हूं' ऐसा अर्थ निकलता है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् कहा गया। बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत में ब्रिटिश शासन था। ब्रिटेन का एक गीत था 'गॉड! सेव द क्वीन'। भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य कर दिया गया। बंकिमचंद्र उस समय सरकारी नौकरी करते थे। अंग्रेजों के बर्ताव से बंकिम को बहुत बुरा लगा और उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया 'वन्दे मातरम्'। यह पढ़ें...अरुणाचल मुद्दे पर जदयू ने भाजपा को घेरा: हम दोस्तों के साथ नहीं करते कोई साजिश आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत'वंदेमातरम्' बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बांग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् 1882 में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। आजादी की लड़ाई में जोश भरने का कामबता दें कि बंगाल में चले स्वाधीनता-आन्दोलन के दौरान विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए 'वंदेमातरम्' का गायन किया जाता । जब लाला लाजपत राय ने लाहौर से 'जर्नल' का प्रकाशन शुरू किया था तब उन्होंने उसका नाम भी वन्दे मातरम् ही रखा था। इसके अलावा अंग्रेजों की गोली का शिकार हुए आजादी की दीवानी मातंगिनी हाजरा की जुबान पर भी आखिरी शब्द "वन्दे मातरम्" ही था। सबसे फेमस गीतसाल 2002 में बीबीसी के एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत बना। सर्वेक्षण में उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिए दुनिया भर से लगभग 7000 गीतों को चुना गया था और करीब 155 देशों के लोगों ने इसमें मतदान किया था। इस सर्वे में वंदे मातरम् शीर्ष 10 गीतों में दूसरे स्थान पर रहा था। राष्ट्रीय गीत सर्वप्रथम कहाँ गाया गया?२७ दिसम्बर ,१९११ को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सर्व प्रथम राष्ट्रगान गाया गया । संसदीय सभा ने इसे राष्ट्रीय गान के रूप में २४ जनवरी १९५० को अपनाया गया था। राष्ट्रगान सबसे पहले कब और कहां गाया गया था? राष्ट्रगान की रचना ठाकुर रविन्द्र नाथ टैगोर ने 1911 में की थी.
भारत का राष्ट्रीय गीत कब और कहां गाया गया था?सन् १८९६ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने यह गीत गाया।
भारतीय राष्ट्रीय गीत पहली बार कब गाया गया था?यह पहली बार 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन में रहमतुल्लाह एम. सयानी की अध्यक्षता में गाया गया था। मूल वंदे मातरम में 6 छंद शामिल हैं।
भारत के राष्ट्रीय गीत के लेखक कौन हैं?- बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय बंगला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे. भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था. रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है.
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