रीतिकाल की दो रचनाएँ कौन कौन सी है? - reetikaal kee do rachanaen kaun kaun see hai?

रीतिकाल Likhit Do Rachnaon Ke Naam

GkExams on 24-11-2018

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हिन्दी रीतिकाल के अन्तर्गत सामान्यत: दो प्रकार की रचनाएँ मिलती हैं-

  • एक तो वे रचनाएँ, जिनमें मुख्यत: काव्यशास्त्र सिद्धान्तों को छन्दोबद्ध किया गया है। स्पष्टत: हिन्दी कवियों का यह प्रयास बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं हो सका है। सिद्धान्त प्रतिपादन की दृष्टि से इनका अधिक महत्त्व इस कारण नहीं है कि उनमें मौलिकता का अंश बहुत कम है। इस प्रकार के रीतिग्रन्थ अधिकतर संस्कृत लक्षण ग्रन्थों के अनुवाद हैं या फिर उनकी छाया पर आधारित है। काव्य-रस की दृष्टि से इनका स्तर ऊँचा नहीं है, क्योंकि इन आचार्य कवियों का मुख्य ध्येय काव्य लक्षणों को वर्णित करना था, स्वतंत्र रूप से अनुभूतिपरक काव्य-सर्जन करना नहीं। फिर भी यह अवश्य है कि इन कवियों के उदाहरणों में से कुछ अंश शुद्ध काव्य के अन्तर्गत रखे जा सकते हैं।
  • दूसरे वर्ग के अन्तर्गत वे रचनाएँ आती हैं, जो काव्य लक्षणों को प्रतिपादित करने की दृष्टि से नहीं लिखी गयीं। इस प्रकार के काव्य में भाषा, भाव तथा शैली-सभी का अत्यन्त निखरा हुआ रूप मिलता है। यह लक्षण मुक्त कविता ही वास्तव में रीतिकाल का प्राणतत्त्व है।

साहित्य का विकास

हिन्दी में रीति साहित्य के विकास के अनेक कारण हैं। एक कारण तो संस्कृत में इसकी विशाल परम्परा है। जिस समय भाषा-साहित्य का प्रारम्भ हुआ, उस समय भी संस्कृत में लक्षण या अलंकार-साहित्य की रचना चल रही थी। दूसरा कारण भाषा-कवियों को प्राप्त राज्याश्रय है। अकबर ने सबसे पहले हिन्दी कवियों को दरबार में आश्रय प्रदान किया और इस प्रकार हिन्दी काव्य को प्रोत्साहन मिला। आगे चलकर अन्य राजाओं ने भी इस प्रवृत्ति का अनुसरण किया। राजपूताना तथा मध्यभारत की रियासतों, ओरछा, नागपुर आदि में भाषा-कवियों को राज्याश्रय प्राप्त हुआ और आगे इन्हें हिन्दू और मुसलमान, दोनों के ही दरबार में प्रतिष्ठा मिली। इसके फलस्वरूप व्यापक रीति-साहित्य की रचना हुई। हिन्दी रीति-साहित्य के विकास का तीसरा कारण भी सामने आता है, जो है कवि और काव्य के स्वतंत्र रूप की प्रतिष्ठा। इस क्षेत्र में केशवदास का कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और इसी कारण उनको आगे के युग में दीर्घ काल तक इतना सम्मान प्राप्त हुआ।

रीति-काव्य के विकास में तत्कालीन राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण योग रहा है। वस्तुत: ये परिस्थितियाँ इस प्रकार के काव्य सर्जन के अनुकूल थीं। इस समय की राजनीतिक उथल-पुथल और सत्ता एवं वैभव की क्षणभंगुरता ने जीवन के दो अतिरेकपूर्ण दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता दी। एक ने जीवन के प्रति पूर्ण विरक्ति और त्याग का भाव जागरित किया, जबकि दूसरे ने पूर्ण भोग का दृष्टिकोण। ऐहिक काव्य को इस प्रकार का विलासपूर्ण चित्रण करने की प्रेरणा देने में राजनीतिक स्थिति का भी हाथ था।

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Comments Anurag on 01-10-2022

रीतिकाल की दो प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए

Kushagra Sharma on 20-12-2021

Riti kal ki 2 Rachna batao

Divya on 25-09-2021

Riti kal ki do rachana

Santosh Kumar Sahu on 24-09-2021

Ritikal ki do rachanaoo ke nam likhiye

Nitish Kumar on 12-05-2019

Reeti Kaal Ke Do Kabhi baa unKi Rachna likho

Sanjana on 22-10-2018

Ritikal ki do rachnaye



रीतिकाल के दो प्रमुख कवियों और उनकी एक एक रचना का नाम लिखिए?...


ज्ञान गंगाकविनाम सिफारिशों

रीतिकाल की दो रचनाएँ कौन कौन सी है? - reetikaal kee do rachanaen kaun kaun see hai?

Rajesh

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हरिती कांड का साहित्य अनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है रीतिकाल के दो कवि मतिराम और देव हैं मोतीराम की रचनाएं रसराज ललितपुर ग्राम पंचायत शिका देव की रचनाएं शब्द रसायन का रसायन भाभी लाश सुख सागर तरंग धन्यवाद

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रीतिकाल की दो रचनाएँ कौन कौन सी है? - reetikaal kee do rachanaen kaun kaun see hai?

2 जवाब

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रीतिकाल की दो रचनाएं कौन कौन सी है?

रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ.
चिंतामणि कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, शृंगार मंजरी, छंद विचार.
मतिराम रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी.
राजा जसवंत सिंह भाषा भूषण.
भिखारी दास काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय.
याकूब खाँ रस भूषण.
रसिक सुमति अलंकार चन्द्रोदय.
दूलह। कवि कुल कण्ठाभरण.

रीतिकाल के अन्य 2 नाम क्या क्या है?

रीतिकाल के अन्य नामः-.
मिश्रबंधु : अलंकृत काल.
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र : शृंगार काल.
आचार्य चतुरसेन शास्त्री : अलंकार काल.
रमाशंकर शुक्ल 'रसाल' : कला काल.

रीतिकाल की दो प्रवृतियां क्या है?

रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्ति रीति निरूपण या लक्षण-ग्रंथों का निर्माण है। इन कवियों ने संस्कृत के आचार्यों का अनुकरण पर लक्षण-ग्रंथों अथवा रीति ग्रंथों का निर्माण किया है। फिर भी इन्हें रीति निरूपण में विशेष सफलता नहीं मिली है। इनके ग्रंथ एक तरह से संस्कृत-ग्रंथों में दिए गए नियमों और तत्वों का हिंदी पद्य में अनुवाद हैं।

रीतिकाल के जनक कौन हैं?

वस्तुतः रीतिग्रंथों की अविरल परम्परा केशव के पचास वर्षों बाद चिंतामणि से प्रारम्भ हुई । इसी कारण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चिंतामणि को रीतिकाल का प्रवर्तक माना है तथा केशव को रीतिकाल का प्रथम कवि।