सूखी डाली एकांकी का केन्द्रीय भाव क्या है स्पष्ट? - sookhee daalee ekaankee ka kendreey bhaav kya hai spasht?

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MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 6 सूखी डाली (उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’)

सूखी डाली पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

सूखी डाली लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अक्षय वट की डाली सूख जाने से एकांकीकार का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
अक्षय वट की डाली सूख जाने से एकांकीकार का आशय है-परिवार के अभिभावक का प्रभुत्व समाप्त हो जाना। ऐसा होने से परिवार का टूटना तय हो जाना होता है।

प्रश्न 2.
किस कारण से दादा जी पेड़ से किसी डाली का अलग हो जाना पसंद नहीं करते?
उत्तर-
चूंकि दादा जी परिवार के अभिभावक हैं। वे परिवार को एक विशाल और सुखद पेड़ के रूप में देखते हैं। वे परिवार के एक-एक सदस्य को पेड़ की एक-एक डाली के रूप में देखते-समझते हैं। इस प्रकार एक अभिभावक की इस सोच के कारण दादा जी पेड़ से किसी डाली का अलग हो जाना पसंद नहीं करते।

प्रश्न 3.
संयुक्त परिवार का प्रतीक प्रस्तुत एकांकी में किसे बताया गया है और क्यों?
उत्तर-
संयुक्त परिवार का प्रतीक एकांकी में विशाल वटवृक्ष को बताया गया है। यह इसलिए कि जिस प्रकार वटवृक्ष की छाया स्थायी, शीतल और सुखद होती है, उसी प्रकार संयुक्त परिवार के मुखिया का संरक्षण सुख और शान्ति बनाए रखता है।

सूखी डाली दीर्घ-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘सूखी-डाली’ एकांकी का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पारिवारिक पृष्ठभूमि पर लिखे गए इस एकांकी में एकांकीकार ने पारिवारिक अंतर्द्वन्द्व को प्रभावी अभिव्यक्ति दी है। इस एकांकी में वटवृक्ष को परिवार के अभिभावक का प्रतीक बनाकर प्रस्तुत किया गया है। एकांकी में इस तथ्य को बड़े प्रभावी ढंग से निरूपित किया गया है कि जिस प्रकार वटवृक्ष की छाया स्थाई, शीतल और सुखद होती है, उसी प्रकार संयुक्त परिवार में परिवार के मुखिया का संरक्षण सुख और शांति बनाए रखता है।

प्रश्न 2.
‘यदि दादा मूलराज न होते तो परिवार टूट जाता’ इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? पर्याप्त कारण बताते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘यदि दादा मूलराज न होते तो परिवार टूट जाता’ इस कथन से हम पूरी तरह सहमत हैं। वह इसलिए कि दादा मूलराज संयुक्त परिवार के अभिभावक हैं। वे अपने संयुक्त परिवार को उसी प्रकार सुख और शांति प्रदान कर रहे हैं, जिस प्रकार विशाल वटवृक्ष अपने आश्रितों को आनंद और सुख प्रदान करता है। इसलिए यदि दादा मूलराज न होते तो परिवार टूट जाता।

प्रश्न 3.
“कुटुम्ब एक महान् वृक्ष है। छोटी-बड़ी सभी डालियाँ उसकी छाया को बढ़ाती हैं।” इस कथन की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
“कुटुम्ब एक महान वृक्ष है। छोटी-बड़ी सभी डालियाँ उसकी छाया को बढ़ाती हैं।”
उपर्युक्त कथन की सत्यता है। कुटुम्ब का अर्थ संयुक्त परिवार से है तो वह सचमुच में एक महान वटवृक्ष के समान है। उसके हरेक सदस्य एक महान् वटवृक्ष की डालियों के समान हैं जिनसे सुख और शांति का वातावरण बना रहता है। अगर ये न होते तो कुटुम्ब बिखर जाता और कहीं का न रह जाता। चारों ओर अंशांति और दुख की लपटें उठने लगतीं। इस आधार पर यह कहना बिल्कुल ही सत्य है कि कुटुम्ब एक महान वृक्ष है। छोटी-बड़ी सभी डालियाँ उसकी छाया बढ़ाती हैं।

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प्रश्न 4.
समय की माँग के अनुसार पारिवारिक मान्यताओं को दादा जी किस प्रकार स्वीकृति देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
समय की माँग के अनुसार परिवर्तित पारिवारिक मान्यताओं को दादा जी विशाल वटवृक्ष के रूप में स्वीकृति देते हैं। इस स्वीकृति के द्वारा वे परिवर्तित पारिवारिक मान्यताओं को महत्त्व देते हैं और इस पर दृढ़ भी रहते हैं। इसलिए वे दृढ़तापूर्वक समझाते हुए इंदु से कहते भी हैं।

“बेटा यह कुटुम्ब एक महान् वृक्ष है। हम सब इसकी डालियाँ हैं। डालियों ही में पेड़ है और डालियाँ छोटी हों चाहे बड़ी, सब उसकी छाया को बढ़ाती हैं। मैं नहीं चाहता, कोई डाली इससे टूटकर पृथक् हो जाए। तुम सदैव मेरा कहा मानते रहे हो। बस यही बात मैं कहना चाहता हूँ… यदि मैंने सुन लिया-किसी ने छोटी बहू का निरादर किया है, उसकी हँसी उड़ायी है या उसका समय नष्ट किया है तो इस घर में मेरा नाता सदा के लिए टूट जाएगा… अब तुम सब जा सकते हो।”

सूखी डाली भाषा अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों की संधि कीजिएस्व+इच्छा, जगत्+ईश, ज्ञान+अर्जन, सुर+इंद्र, परम+आत्मा।
उत्तर-

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से देशज और आगत शब्द छाँटिएमोढ़े, गँवार, औसुर, कुटुम्ब, गुसलखाना, गोदाम, खलल, मारोमार, झाड़न।
उत्तर-
देशज शब्द-गँवार, औसुर, कुटुम्ब, गुसलखाना, झाड़न। आगत शब्द-मोढ़े, गुसलखाना, खलल, मारोमार।।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित मुहावरों/लोकोक्तियों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
दो घड़ी न टिकना, जली-कटी बातें करना, गजभर की जबान होना, लोटपोट होना, अपना-सा मुँह लेकर रह जाना।
उत्तर-

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प्रश्न 5.
उचित विराम चिहों का प्रयोग कीजिए।
ईश्वर की अपार कृपा से हमारे घर सुशिक्षित सुसंस्कृत बहू आई है तो क्या हम अपनी मूर्खता से उसे परेशान कर देंगे तुम जाओ बेटा किसी प्रकार की चिंता को मन में स्थान न दो।
उत्तर-
“ईश्वर की अपार कृपा से हमारे घर सुशिक्षित बहू आई है, तो क्या हम अपनी मूर्खता से उसे परेशान कर देंगे? तुम जाओ बेटा! किसी प्रकार की चिंता को मन में स्थान न दो।”

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए।
(क) बड़ी भाभी बुद्धिमान है।
(ख) मेरी केवल मात्र आकांक्षा है कि सब डालियाँ साथ-साथ बढ़ें।
(ग) इस बात की तनिक थोड़ी भी चिंता न करो।।
उत्तर-

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सूखी डाली योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
“संयुक्त परिवार में ही सुख-शांति संभव है” विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित कीजिए।

प्रश्न 2.
रामायण काल और वर्तमान भारत के पारिवारिक संबंधों के स्वरूप में क्या अंतर दिखाई देता है।

प्रश्न 3.
यदि आपको ‘एकल परिवार’ में रहना पड़ा तो वृद्ध माता-पिता की सेवा के लिए क्या उपाय करेंगे।
उत्तर-
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

सूखी डाली परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

सूखी डाली अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“यदि कोई शिकायत भी हो, तो उसे वहीं मिटा देना चाहिए।” दादा जी ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर-
“यदि कोई शिकायत भी हो, तो उसे वहीं मिटा देना चाहिए।” दादा जी ने ऐसा इसलिए कहा कि हल्की-सी खरोंच भी यदि उस पर तत्काल दवाई न लगा दी जाए, बढ़कर एक बड़ा घाव बन जाती है और वही घाव नासूर हो जाता है। फिर लाख मरहम लगाओ, ठीक नहीं होता।

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प्रश्न 2.
“महानता किसी से मनवाई नहीं जा सकती।” अपने इस कथन की पुष्टि में दादा जी ने क्या कहा?
उत्तर-
“महानता किसी से मनवाई नहीं जा सकती।” अपने इस कथन की पुष्टि में दादा जी ने कहा- “महानता किसी से मनवाई नहीं जा सकती, अपने व्यवहार से अनुभव कराई जा सकती है। वृक्ष आकाश को छूने पर भी अपने महानता का सिक्का हमारे दिलों पर उस समय तक नहीं बैठा सकता, जब तक वृक्ष अपनी शाखाओं में वह ऐसे पत्ते नहीं लाता, जिनकी शीतल-सुखद छाया मन के सारे ताप को हर ले और जिसके फूलों का भीनी-भीनी सुगंध-हमारे प्राणों में पलक भर दे।

प्रश्न 3.
बेला का मन घर में क्यों नहीं लगता था? दादा जी के पूछने पर परेश ने क्या कहा?
उत्तर-
बेला का मन घर में नहीं लगता था। दादा जी के पूछने पर परेश ने कहा-उसे कोई भी पसंद नहीं करता। सब उसकी निंदा करते हैं। अभी मेरे पास पास माँ, बड़ी ताई, मँझली ताई, बड़ी भाभी, मँझली भाभी, इंदु, रजवा-सब आई थी। सब उसकी शिकायत करती थीं-तानें देती थीं कि तू उसके हाथ बिक गया है, तू उसे कुछ नहीं समझाता और इधर वह उन सबसे दुखी है, कहती है-सब मेरा अपमान करती हैं, सब मेरी हँसी उड़ाती हैं। मेरा समय नष्ट करती हैं। मैं ऐसा महसूस करती हूँ, जैसे मैं परायों में आ गई हूँ। अपना एक भी मुझे दिखाई नहीं देता।

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों में से चुनकर लिखिए।
1. सूखी डाली ………………………… है। (नाटक, एकांकी)
2. अभिवावक ………………………… के समान है। (वटवृक्ष, अक्षयवट)
3. बड़ा घाव ………………………… बन जाता है। (लाइलाज, नासूर)
4. शीतल-सुखद छाया हमारे मन के सारे ………………………… को हर लेती है। (पाप, ताप)
5. डालियाँ के टूटने पर वृक्ष ………………………… रह जाता है। (नंगा, लूंठ)
उत्तर-
1. एकांकी,
2. वटवृक्ष,
3. नासूर,
4. ताप,
5. ह्ठ

प्रश्न 3.
दिए गए कथनों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए

1. उपेंद्रनाथ अश्क का जन्म हुआ था
1. 1810 में,
2. 1910 में,
3. 1903 में
4. 1903
उत्तर-
(2) 1910 में,

2. परिवार के अभिवावक का प्रतीक है
1. दादा,
2. परेश,
3. वटवृक्ष,
4. विशाल वृक्ष
उत्तर-
(3) वटवृक्ष

3. दादा जी की आयु है
1. 60 वर्ष,
2. 65 वर्ष,
3. 70 वर्ष,
4. 72 वर्ष।
उत्तर-
(4) 72 वर्ष,

4. अपनी अलग गृहस्थी बसाना चाहती है-
1. बेला,
2. बड़ी भाभी,
3. इंदु,
4. पारो।
उत्तर-
(1) बेला,

5. कोई बड़ा होता है
1. दर्जे से,
2. उम्र से,
3. योग्यता से,
4. स्थान से।
उत्तर-
(3) योग्यता से।

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प्रश्न 4.
सही जोड़े मिलाइए।

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उत्तर-
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्य सत्य हैं या असत्य? वाक्य के आगे लिखिए।
1. ‘सूखी डाली’ एक नाटक है।
2. दादा जी हमेशा हुक्का गुड़गुड़ाते रहते हैं।
3. दादा जी पुराने नौकरों के हक में नहीं हैं।
4. हम सब एक महान पेड़ की डालियाँ हैं।
5. बेला को लगता है कि वह जैसे अपरिचितों में आ गई है।
उत्तर-
1. असत्य,
2. सत्य,
3. असत्य,
4. सत्य,
5. सत्य।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित कथनों के लिए सही विकल्प चुनिए

1. ‘सूखी डाली’ में किस समाज का चित्रण है?
1. मध्यवर्गीय
2. निम्नवर्गीय
3. उच्च वर्गीय
4. सभी।
उत्तर-
(1) मध्यवर्गीय,

2. “उसे हमसे, हमारे पड़ोस से हमारी हर बात से घृणा है।” यह किसने कहा?
1. इंदु ने,
2. रजवा ने,
3. बड़ी बहू ने,
3. मँझली बहू ने,
5. छोटी भाभी ने।
उत्तर-
(3) बड़ी बहू ने,

3. “हमारे बुर्जुग तो जंगलों में घूमा करते थे, तो क्या हम भी उनका अनुकरण करें।” यह कथन किसका है?
1. बड़ी बहू का,
2. बड़ी भाभी का,
3. इंदु का,
4. मँझली बहू का।
उत्तर-
(4) मँझली बहू का,

4. हमारा यह परिवार बरगद के महान् पेड़ की भाँति है।” यह किसने कहा?
1. दादा जी ने,
2. परेश ने,
3. इंदु ने,
4. कर्मचंद ने।
उत्तर-
(1) दादा जी ने,

5. आजादी चाहती है। कौन?
1. मँझली भाभी,
2. बड़ी बहू,
3. छोटी भाभी,
4. बेला।
उत्तर-
(4) बेला

सूखी डाली लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बेला का मन लगाने के लिए दादा जी ने क्या कहा?
उत्तर-
बेला का मन लगाने के लिए दादा जी ने कहा-“हमें उसका मन लगाना चाहिए। वह एक बड़े घर से आई है। अपने पिता की इकलौती बेटी है। कभी नाते-रिश्तेदारों में रही नहीं। इस भीड़-भाड़ से वह घबराती होगी। इतने कोलाहल से वह ऊब जाती होगी। हम सब मिलकर इस घर में उसका मन लगाएँगे।”

प्रश्न 2.
हुक्के के लंबे कश किस बात के साक्षी हैं?
उत्तर-
हुक्के के लंबे कश इस बात के साक्षी हैं कि दादा जी हुक्का पीने के साथ-साथ सोच भी रहे हैं।

प्रश्न 3. दादा जी पुराने नौकरों के हक में क्यों हैं?
उत्तर-
दादा जी पुराने नौकरों के हक में हैं। यह इसलिए कि वे दयानतदार होते हैं और विश्वसनीय।

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प्रश्न 4.
घृणा दूर करने के लिए दादा जी ने क्या सुझाव दिए?
उत्तर-
घृणा दूर करने के लिए दादा जी ने इस प्रकार सुझाव दिए-“बड़प्पन बाहर की वस्तु नहीं-बड़प्पन तो मन का होना चाहिए। और फिर बेटा, घृणा को घृणा से नहीं मिटाया जा सकता। बहू तभी पृथक् होना चाहेगी जब उसे घृणा के बदले घृणा दी जाएगी। लेकिन यदि उसे घृणा के बदले स्नेह मिले तो उसकी सारी घृणा धुंधली पड़कर लुप्त हो जाएगी।”

सूखी डाली लेखक-परिचय

जीवन-परिचय-कथाकार और नाटककार-एकांकीकार के रूप में उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ अत्यधिक लोकचर्चित हैं। आपका जन्म 14 दिसंबर, सन् 1910 ई. में जालंधर में हुआ
था। आपने नाटक और एकांकी के अतिरिक्त गद्य की अन्य विद्याओं-संस्मरण और आलोचना के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया है।

श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ का मुख्य रूप से सामाजिक क्षेत्र में ही योगदान रहा। इसके लिए आपने अपने नाटकों में मध्यवर्गीय चेतना और मनोवृत्ति को प्रमुख स्थान दिया है। इसका मुख्य कारण है-रचनाकारं का मध्यमवर्गीय होना। आपने अपने सच्चे जीवनाधारों पर जीवंत समाज के संघर्षों और उलझनों से ग्रस्त पात्रों के माध्यम से सामाजिक समस्याओं के विभिन्न स्वरूपों को सामने लाने का सफल प्रयास किया है।

रचनाएँ-‘देवताओं की छाया में’, ‘चरवाहे’, ‘पक्का गाना’, ‘पर्दा उठाओ, पर्दा गिराओ’, ‘अंधी गली’, ‘साहब को जुकाम है, ‘सूखी डाली’, ‘अधिकार का रक्षक’, ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘पापी’, ‘जोंक’, ‘पच्चीस श्रेष्ठ एकांकी’, आदि आपके सुप्रसिद्ध एकांकी-संग्रह हैं।

भाषा-शैली-श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ की भाषा हिंदी उर्दू की शब्दावली से परिपुष्ट प्रचलित भाषा है। उसमें आवश्यकतानुसार अंग्रेजी शब्दों के भी प्रवेश हुए हैं। इस प्रकार की भाषा से तैयार हुए वाक्य गठन छोटे-छोटे तो हैं, लेकिन अर्थपूर्ण हैं। पात्रानुकूल भाषा की सफल व्यवस्था आपकी रचनाओं की एक खास विशेषता है। एक उदाहरण देखिए

“आप कभी घर के अंदर आएँ भी। आपके लिए तो जैसे घर के अंदर आना पाप करने के बराबर है। खाना इसी कमरे में खाओ, टेलीफोन सिरहाने रखकर इसी कमरे में सोओ, सारा दिन मिलने वालों का तांता लगा रहे। न हो तो कुछ लिखते रहो, लिखो न तो पढ़ते रहो, पढ़ो न तो बैठे सोचते रहो। आखिर हमें कुछ कहना हो, तो किस समय कहें?” .

आपकी शैली की विविधता सर्वत्र दिखाई देती है। इस आधार पर आपकी शैली प्रसंगानुसार अलग-अलग रूपों में प्रयुक्त हुई है। नाटकीयता और रोचकता आपकी शैलीगत प्रमुख विशेषताएँ हैं। भावात्मकता, सरसता, प्रवाहमयता, बोधगम्यता, हृदयस्पर्शिता आदि आपकी शैली की चुनी हुई विशेषताएँ हैं।

साहित्य में स्थान-श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ का साहित्यिक महत्त्व बहुत अधिक है। एकांकीकर के रूप में तो आप सिद्धहस्त रचनाकार के रूप में लोकप्रिय हैं। इसी प्रकार आप नाटककार के रूप में प्रतिष्ठित रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। आपकी अपनी एकांकियों की तरह अपने नाटकों का कवच मध्यवर्गीय समाज की कमजोरियाँ रही हैं। इसके साथ ही मध्यवर्गीय सीमाएँ और जर्जर परंपराएँ भी रहीं हैं, जिन्हें आपने एक-एक करके सामने रखा है। निःसंदेह आपका हिंदी नाटककारों और एकांकीकारों में लब्धप्रतिष्ठित स्थान है।

सूखी डाली एकांकी का सारांश
श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ लिखित एकांकी ‘सूखी डाली’ एक पारिवारिक-सामाजिक एकांकी है। इसमें पारिवारिक जीवन में स्वाभाविक रूप से उभरते हुए द्वंद्वों का प्रभावशाली चित्रण किया गया है। इस एकांकी में वटवृक्ष का चित्रण प्रतीकात्मक है। उसे अभिवावक रूप में ही चित्रित किया गया है। इसके द्वारा एकांकीकार ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि संयुक्त परिवार में अभिभावक की भूमिका सुखद, आनंददायक और प्रगति

विधायक एक ऐसे वटवृक्ष की तरह होती है, जिसकी छाया स्थाई रूप से शीतल, शांतिमयी और मनमोहक होती है।

सूखी डाली संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. यदि कोई शिकायत थी तो उसे वहीं मिटा देना चाहिए था। हल्की-सी खरोंच भी, यदि उसे पर तत्काल दवाई न लगा दी जाए, बढ़कर एक बड़ा घाव बन जाती है और वही घाव नासूर हो जाता है, फिर लाख मरहम लगाओ, ठीक नहीं होता।

शब्दार्थ-शिकायत-दोष। नासूर-पुराना घाव।

संदर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी सामान्य’ में संकलित श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ लिखित एकांकी ‘सूखी डाली’ से है।

प्रसंग-इस गद्यांश में एकांकीकार ने एकांकी के सर्वप्रमुख पात्र दादा के कथन को प्रस्तुत किया है। दादा ने कर्मचंद को समझाते हुए कहा

व्याख्या-कि उन्हें तो अब तक किसी ने यह नहीं बतलाया कि परेश को नहीं, अपितु छोटी बहु को ही कष्ट है। फिर भी अब ध्यान देना आवश्यक है कि शिकायत चाहे किसी प्रकार की हो, उसे बढ़ने नहीं देना चाहिए। अगर इस ओर ध्यान न दिया गया तो फल दुखद ही होगा। हम सभी यह जानते हैं कि छोटी-सी और मामूली-सी खरोच का इलाज न किया जाए तो वह बढ़कर पुराने घाव का रूप ले लेती है। उस समय उसका इलाज चाहे कितना भी क्यों न किया जाए, वह जल्दी ठीक नहीं होता है।

विशेष-
1. किसी प्रकार की कमी को शुरू में दूर करने का सुझाव किया गया है।
2. वाक्य-गठन सरल है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कोई शिकायत उसी समय क्यों मिटा देनी चाहिए?
उत्तर-
कोई शिकायत उसी समय मिटा देनी चाहिए। यह इसलिए वह और बड़ा न हो जाए, जिसे दूर करना मुश्किल हो जाए।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि किसी प्रकार की शिकायत को बढ़ने नहीं देना चाहिए। उसे शुरू में दबा देना चाहिए; अन्यथा वह काबू से बाहर हो जाएगी।

सूखी डाली एकांकी का केन्द्रीय भाव क्या है स्पष्ट? - sookhee daalee ekaankee ka kendreey bhaav kya hai spasht?

2. महानता भी बेटा, किसी से मनवायी नहीं जा सकती, अपने व्यवहार से अनुभव करायी जा सकती है। वृक्ष आकाश को छूने पर भी अपनी महानता का सिक्का हमारे दिलों पर उस समय तक नहीं बैठा सकता, जब तक अपनी शाखाओं में वह ऐसे पत्ते नहीं लाता, जिनकी शीतल-सुखद छाया मन के सारे ताप को हर ले और जिसके फूलों को भीनी-भीनी सुगंध हमारे प्राणों में पुलक भर दे।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में एकांकीकार ने कर्मचंद के प्रति दादा के कथन को व्यक्त किया है। दादा ने कर्मचंद को समझाते हुए कहा

व्याख्या-बेटा! कर्मचंद! अपने बड़प्पन को किसी के ऊपर थोपा नहीं जा सकता है। इसे तो अपने सद्व्यवहार से ही दूसरों पर रखा जा सकता है। इसे हम यों समझ सकते हैं कि कोई बड़ा पेड़ आकाश को छू भले ही ले, लेकिन वह अपनी इस महानता और बड़प्पन का अहसास हमें तब तक नहीं करा सकता है, जब तक अपनी डालियों और पत्तों की शीतल, सुखद, रोचक और मोहक छाया से हमारे तन-मन के ताप को दूर न कर दे। अपनी सुगंधभरी फूलों की छुवन से हमें आनंदित न कर दे।

विशेष
1. भाषा-शैली सजीव है।
2. यह गद्यांश उपदेशात्मक है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
महानता प्रभावशाली कब होती है? उत्तर-महानता सद्व्यवहार से प्रभावशाली होती है। प्रश्न 2. विशाल पेड़ की उपयोगिता कब होती है?
उत्तर-
विशाल पेड़ की उपयोगिता तब होती है, जब वह अपनी शीतल छाया से अपने आश्रित के ताप को दूर कर अपने सुगंधित फूलों से प्राणों को पुलकित कर दे।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त गद्यांश का भाव लिखिए।
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश में महानता को सद्व्यवहार के द्वारा अनुभव कराने की सीख न केवल ज्ञानवर्द्धक है, अपितु प्रेरक भी है। इसे विशाल वृक्ष की उपयोगिता के स्वरूप के माध्यम से समझाया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत गद्यांश का भाव जीवन की सार्थकता-उपयोगिता को सामने लाने का ही मुख्य रूप से है।

3. अब तुम जाओ और देखो फिर मुझे शिकायत का अवसर न मिले (गला भर.आता है।) यही मेरी आकांक्षा है कि सब डालियाँ साथ-साथ बढ़ें, फले-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल वायु के परस में झूमें और सरसाएँ! पेड़ से अलग होने वाली डाली की कल्पना ही मुझे सिहरा देती है।

शब्दार्थ-अवसर-मौका। शीतल-ठंडा। परस-स्पर्श। सरसाएँ-लहराएँ।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में एकांकीकार ने इन्दु प्रति दादा के कथन को व्यक्त किया है। दादा ने इंदु को समझाते हुए कहा कि

व्याख्या-अब इस समय तुम यहाँ चले जाओ। इसके साथ ही अव यह भी ध्यान रखना कि मुझे अब फिर किसी प्रकार की शिकायत करने की जरूरत न पड़े। यहीं मैं चाहता हूँ। यही मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरा परिवार एक विशाल पेड़ की तरह बढ़े, फूले और फले। उसकी डाल-डाल पर घने पत्ते हों। वे सुखद और आनंददायक ‘हवा के द्वारा पूरे परिवार को स्पर्श करता रहे। इसका एक-एक सदस्य एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ा रहे। इसके विपरीत एक-एक सदस्य का अलग मत रखना और अलग रहने की बात सोचकर मैं काँप उठता हूँ।

सूखी डाली एकांकी का केंद्र भाव क्या है स्पष्ट कीजिए?

उत्तर- 'सूखी डाली' एकांकी संयुक्त परिवार व्यवस्था पर आधारित है। इसमें पारिवारिक स्थितियाँ प्रस्तुत हुई हैं। बरंगद का पेड़ संयुक्त परिवार का प्रतीक है। जिस प्रकार पेड़ की एक भी डाली टूटकर अलग होने पर सूख जाती है वैसे ही परिवार से अलग हुआ सदस्य दुःखी रहता है।

सूखी डाली एकांकी का उद्देश्य क्या है?

एकांकी का उद्देश्य/संदेश' 'सूखी डाली' एकांकी में संयुक्त परिवार की कथावस्तु का चित्रण किया गया है। परिवार का मुखिया दादा मूलराज ने अपने परिवार को अत्यंत सूझबूझ एवं बुद्धिमानी से एक वट वृक्ष की भाँति एकता के सूत्र में बाँध रखा है।

सूखी डाली से आप क्या समझते हैं?

उसका कहने का आशय है कि जिस प्रकार पेड़ की डाल पेड़ से अलग होकर सूख जाती है इसी प्रकार परिवार से अलग होकर वह भी सूखी डाली की तरह मुरझा सकती है। अत: वह सूखी डाली नहीं बनना चाहती। इस प्रकार एकांकी का शीर्षक सूखी डाली एकदम सार्थक है। दादाजी अपने परिवार की रीढ़ कहे जा सकते हैं

सूखी डाली एकांकी के एकांकीकार कौन है?

'सूखी डाली' के एकांकीकार का नाम लिखिए। उत्तर: 'सूखी डाली' के एकांकीकार हैं उपेन्द्रनाथ अश्क।