In this article, we will share MP Board Class 10th Hindi Book Solutions Chapter 1 6 सूखी डाली (उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’) Pdf, These solutions are solved subject experts from latest edition books. Show
MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 6 सूखी डाली (उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’)सूखी डाली पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तरसूखी डाली लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. सूखी डाली दीर्घ-उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. “बेटा यह कुटुम्ब एक महान् वृक्ष है। हम सब इसकी डालियाँ हैं। डालियों ही में पेड़ है और डालियाँ छोटी हों चाहे बड़ी, सब उसकी छाया को बढ़ाती हैं। मैं नहीं चाहता, कोई डाली इससे टूटकर पृथक् हो जाए। तुम सदैव मेरा कहा मानते रहे हो। बस यही बात मैं कहना चाहता हूँ… यदि मैंने सुन लिया-किसी ने छोटी बहू का निरादर किया है, उसकी हँसी उड़ायी है या उसका समय नष्ट किया है तो इस घर में मेरा नाता सदा के लिए टूट जाएगा… अब तुम सब जा सकते हो।” सूखी डाली भाषा अनुशीलन प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 5. प्रश्न 5. सूखी डाली योग्यता-विस्तार प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. सूखी डाली परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तरसूखी डाली अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 1. उपेंद्रनाथ अश्क का जन्म हुआ था 2. परिवार के अभिवावक का प्रतीक है 3. दादा जी की आयु है 4. अपनी अलग गृहस्थी बसाना चाहती है- 5. कोई बड़ा होता है प्रश्न 4. उत्तर- प्रश्न 5. प्रश्न 6. 1. ‘सूखी डाली’ में किस समाज का चित्रण है? 2. “उसे हमसे, हमारे पड़ोस से हमारी हर बात से घृणा है।” यह किसने कहा? 3. “हमारे बुर्जुग तो जंगलों में घूमा करते थे, तो क्या हम भी उनका अनुकरण करें।” यह कथन किसका है? 4. हमारा यह परिवार बरगद के महान् पेड़ की भाँति है।” यह किसने कहा? 5. आजादी चाहती है। कौन? सूखी डाली लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. दादा जी पुराने नौकरों के हक में क्यों हैं? प्रश्न 4. सूखी डाली लेखक-परिचय जीवन-परिचय-कथाकार और नाटककार-एकांकीकार के रूप में उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ अत्यधिक लोकचर्चित हैं। आपका जन्म 14 दिसंबर, सन् 1910 ई. में जालंधर में हुआ श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ का मुख्य रूप से सामाजिक क्षेत्र में ही योगदान रहा। इसके लिए आपने अपने नाटकों में मध्यवर्गीय चेतना और मनोवृत्ति को प्रमुख स्थान दिया है। इसका मुख्य कारण है-रचनाकारं का मध्यमवर्गीय होना। आपने अपने सच्चे जीवनाधारों पर जीवंत समाज के संघर्षों और उलझनों से ग्रस्त पात्रों के माध्यम से सामाजिक समस्याओं के विभिन्न स्वरूपों को सामने लाने का सफल प्रयास किया है। रचनाएँ-‘देवताओं की छाया में’, ‘चरवाहे’, ‘पक्का गाना’, ‘पर्दा उठाओ, पर्दा गिराओ’, ‘अंधी गली’, ‘साहब को जुकाम है, ‘सूखी डाली’, ‘अधिकार का रक्षक’, ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘पापी’, ‘जोंक’, ‘पच्चीस श्रेष्ठ एकांकी’, आदि आपके सुप्रसिद्ध एकांकी-संग्रह हैं। भाषा-शैली-श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ की भाषा हिंदी उर्दू की शब्दावली से परिपुष्ट प्रचलित भाषा है। उसमें आवश्यकतानुसार अंग्रेजी शब्दों के भी प्रवेश हुए हैं। इस प्रकार की भाषा से तैयार हुए वाक्य गठन छोटे-छोटे तो हैं, लेकिन अर्थपूर्ण हैं। पात्रानुकूल भाषा की सफल व्यवस्था आपकी रचनाओं की एक खास विशेषता है। एक उदाहरण देखिए “आप कभी घर के अंदर आएँ भी। आपके लिए तो जैसे घर के अंदर आना पाप करने के बराबर है। खाना इसी कमरे में खाओ, टेलीफोन सिरहाने रखकर इसी कमरे में सोओ, सारा दिन मिलने वालों का तांता लगा रहे। न हो तो कुछ लिखते रहो, लिखो न तो पढ़ते रहो, पढ़ो न तो बैठे सोचते रहो। आखिर हमें कुछ कहना हो, तो किस समय कहें?” . आपकी शैली की विविधता सर्वत्र दिखाई देती है। इस आधार पर आपकी शैली प्रसंगानुसार अलग-अलग रूपों में प्रयुक्त हुई है। नाटकीयता और रोचकता आपकी शैलीगत प्रमुख विशेषताएँ हैं। भावात्मकता, सरसता, प्रवाहमयता, बोधगम्यता, हृदयस्पर्शिता आदि आपकी शैली की चुनी हुई विशेषताएँ हैं। साहित्य में स्थान-श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ का साहित्यिक महत्त्व बहुत अधिक है। एकांकीकर के रूप में तो आप सिद्धहस्त रचनाकार के रूप में लोकप्रिय हैं। इसी प्रकार आप नाटककार के रूप में प्रतिष्ठित रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। आपकी अपनी एकांकियों की तरह अपने नाटकों का कवच मध्यवर्गीय समाज की कमजोरियाँ रही हैं। इसके साथ ही मध्यवर्गीय सीमाएँ और जर्जर परंपराएँ भी रहीं हैं, जिन्हें आपने एक-एक करके सामने रखा है। निःसंदेह आपका हिंदी नाटककारों और एकांकीकारों में लब्धप्रतिष्ठित स्थान है। सूखी डाली एकांकी का सारांश विधायक एक ऐसे वटवृक्ष की तरह होती है, जिसकी छाया स्थाई रूप से शीतल, शांतिमयी और मनमोहक होती है। सूखी डाली संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या 1. यदि कोई शिकायत थी तो उसे वहीं मिटा देना चाहिए था। हल्की-सी खरोंच भी, यदि उसे पर तत्काल दवाई न लगा दी जाए, बढ़कर एक बड़ा घाव बन जाती है और वही घाव नासूर हो जाता है, फिर लाख मरहम लगाओ, ठीक नहीं होता। शब्दार्थ-शिकायत-दोष। नासूर-पुराना घाव। संदर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी सामान्य’ में संकलित श्री उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ लिखित एकांकी ‘सूखी डाली’ से है। प्रसंग-इस गद्यांश में एकांकीकार ने एकांकी के सर्वप्रमुख पात्र दादा के कथन को प्रस्तुत किया है। दादा ने कर्मचंद को समझाते हुए कहा व्याख्या-कि उन्हें तो अब तक किसी ने यह नहीं बतलाया कि परेश को नहीं, अपितु छोटी बहु को ही कष्ट है। फिर भी अब ध्यान देना आवश्यक है कि शिकायत चाहे किसी प्रकार की हो, उसे बढ़ने नहीं देना चाहिए। अगर इस ओर ध्यान न दिया गया तो फल दुखद ही होगा। हम सभी यह जानते हैं कि छोटी-सी और मामूली-सी खरोच का इलाज न किया जाए तो वह बढ़कर पुराने घाव का रूप ले लेती है। उस समय उसका इलाज चाहे कितना भी क्यों न किया जाए, वह जल्दी ठीक नहीं होता है। विशेष- अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए। 2. महानता भी बेटा, किसी से मनवायी नहीं जा सकती, अपने व्यवहार से अनुभव करायी जा सकती है। वृक्ष आकाश को छूने पर भी अपनी महानता का सिक्का हमारे दिलों पर उस समय तक नहीं बैठा सकता, जब तक अपनी शाखाओं में वह ऐसे पत्ते नहीं लाता, जिनकी शीतल-सुखद छाया मन के सारे ताप को हर ले और जिसके फूलों को भीनी-भीनी सुगंध हमारे प्राणों में पुलक भर दे। संदर्भ-पूर्ववत्। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में एकांकीकार ने कर्मचंद के प्रति दादा के कथन को व्यक्त किया है। दादा ने कर्मचंद को समझाते हुए कहा व्याख्या-बेटा! कर्मचंद! अपने बड़प्पन को किसी के ऊपर थोपा नहीं जा सकता है। इसे तो अपने सद्व्यवहार से ही दूसरों पर रखा जा सकता है। इसे हम यों समझ सकते हैं कि कोई बड़ा पेड़ आकाश को छू भले ही ले, लेकिन वह अपनी इस महानता और बड़प्पन का अहसास हमें तब तक नहीं करा सकता है, जब तक अपनी डालियों और पत्तों की शीतल, सुखद, रोचक और मोहक छाया से हमारे तन-मन के ताप को दूर न कर दे। अपनी सुगंधभरी फूलों की छुवन से हमें आनंदित न कर दे। विशेष अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. 3. अब तुम जाओ और देखो फिर मुझे शिकायत का अवसर न मिले (गला भर.आता है।) यही मेरी आकांक्षा है कि सब डालियाँ साथ-साथ बढ़ें, फले-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल वायु के परस में झूमें और सरसाएँ! पेड़ से अलग होने वाली डाली की कल्पना ही मुझे सिहरा देती है। शब्दार्थ-अवसर-मौका। शीतल-ठंडा। परस-स्पर्श। सरसाएँ-लहराएँ। संदर्भ-पूर्ववत्। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में एकांकीकार ने इन्दु प्रति दादा के कथन को व्यक्त किया है। दादा ने इंदु को समझाते हुए कहा कि व्याख्या-अब इस समय तुम यहाँ चले जाओ। इसके साथ ही अव यह भी ध्यान रखना कि मुझे अब फिर किसी प्रकार की शिकायत करने की जरूरत न पड़े। यहीं मैं चाहता हूँ। यही मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरा परिवार एक विशाल पेड़ की तरह बढ़े, फूले और फले। उसकी डाल-डाल पर घने पत्ते हों। वे सुखद और आनंददायक ‘हवा के द्वारा पूरे परिवार को स्पर्श करता रहे। इसका एक-एक सदस्य एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ा रहे। इसके विपरीत एक-एक सदस्य का अलग मत रखना और अलग रहने की बात सोचकर मैं काँप उठता हूँ। सूखी डाली एकांकी का केंद्र भाव क्या है स्पष्ट कीजिए?उत्तर- 'सूखी डाली' एकांकी संयुक्त परिवार व्यवस्था पर आधारित है। इसमें पारिवारिक स्थितियाँ प्रस्तुत हुई हैं। बरंगद का पेड़ संयुक्त परिवार का प्रतीक है। जिस प्रकार पेड़ की एक भी डाली टूटकर अलग होने पर सूख जाती है वैसे ही परिवार से अलग हुआ सदस्य दुःखी रहता है।
सूखी डाली एकांकी का उद्देश्य क्या है?एकांकी का उद्देश्य/संदेश' 'सूखी डाली' एकांकी में संयुक्त परिवार की कथावस्तु का चित्रण किया गया है। परिवार का मुखिया दादा मूलराज ने अपने परिवार को अत्यंत सूझबूझ एवं बुद्धिमानी से एक वट वृक्ष की भाँति एकता के सूत्र में बाँध रखा है।
सूखी डाली से आप क्या समझते हैं?उसका कहने का आशय है कि जिस प्रकार पेड़ की डाल पेड़ से अलग होकर सूख जाती है इसी प्रकार परिवार से अलग होकर वह भी सूखी डाली की तरह मुरझा सकती है। अत: वह सूखी डाली नहीं बनना चाहती। इस प्रकार एकांकी का शीर्षक सूखी डाली एकदम सार्थक है। दादाजी अपने परिवार की रीढ़ कहे जा सकते हैं।
सूखी डाली एकांकी के एकांकीकार कौन है?'सूखी डाली' के एकांकीकार का नाम लिखिए। उत्तर: 'सूखी डाली' के एकांकीकार हैं उपेन्द्रनाथ अश्क।
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