सुखवाद (Hedonism) नीतिशास्त्र के अंतर्गत नैतिक अपेक्षाओं की अभिपुष्टि करने वाला सिद्धांत है। सुखवाद के अनुसार अच्छाई वह है जो आनन्द प्रदान करती है या दुःख-पीड़ा से छुटकारा दिलाती है तथा बुराई वह है जो दुःख-पीड़ा को जन्म देती है। सैद्धांतिक तौर पर सुखवाद नीतिशास्त्र में प्रकृतिवाद का एक रूपांतर है। उसका आधार इस विचार में निहित है कि आनन्द मनुष्य का मुख्य निर्णायक गुण है, जो उसके स्वभाव में निहित है और उसके समस्त कार्यकलाप को निर्धारित करता है। सिद्धांत के रूप में सुखवाद की उत्पत्ति प्राचीन काल में ही हो गयी थी। यूनान में सुखवादी अरिस्टिप्पस के नीतिशास्त्र के अनुयायी रहे। सुखवाद एपीक्यूरस की शिक्षा में अपने चरम शिखर पर पहुँचा। सुखवाद के विचारों को मिल तथा बेंथम के उपयोगितावाद में केंद्रीय स्थान प्राप्त है।[1] Show सन्दर्भ[संपादित करें]
उपयोगितावाद
नीतिशास्त्र के अध्ययन की दृष्टि से अनेक सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है। वस्तुत: नीतिशास्त्र में अनेक सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।
क्या है उपयोगितावाद?
उपयोगितावाद के प्रकार
उपयोगितावाद के सिद्धांत का महत्त्व
आलोचना
निष्कर्षत: उपयोगितावाद का सिद्धांत जीवन को अधिकतम लोगों द्वारा यथासंभव ‘पीड़ामुक्त’ बनाने पर केंद्रित है। सामान्यत: यह एक प्रशंसा योग्य लक्ष्य की भाँति लगता है। परंतु यदि सभी इस जीवन में ‘अधिकतम सुख की प्राप्ति के लिये ही जीवित रहेंगे तो जीवन का व्यापक दृष्टिकोण संकीर्ण/धुंधला हो जाएगा। सुखवादी सिद्धांत क्या है?सुखवाद (Hedonism) नीतिशास्त्र के अंतर्गत नैतिक अपेक्षाओं की अभिपुष्टि करने वाला सिद्धांत है। सुखवाद के अनुसार अच्छाई वह है जो आनन्द प्रदान करती है या दुःख-पीड़ा से छुटकारा दिलाती है तथा बुराई वह है जो दुःख-पीड़ा को जन्म देती है। सैद्धांतिक तौर पर सुखवाद नीतिशास्त्र में प्रकृतिवाद का एक रूपांतर है।
उपयोगितावाद सिद्धांत का प्रणेता कौन है?उपयोगितावाद (Utilitarianism) एक आचार सिद्धांत है जिसकी एकांतिक मान्यता है कि आचरण (action) एकमात्र तभी नैतिक है जब वह अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख की अभिवृद्धि करता है। राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों में इसका संबंध मुख्यत: बेंथम (1748-1832) तथा जान स्टुअर्ट मिल (1806-73) से रहा है।
बेंथम का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत कौन है?उपयोगितावाद का सिद्धांत बेंथम की सबसे महत्वपूर्ण एवं अमूल्य देन है। उसके अन्य सभी राजनीतिक विचार उसके उपयोगितावाद पर ही आधारित हैं। लेकिन उसे इसका प्रवर्तक नहीं माना जा सकता। रोचक बात यह है कि बेंथम ने कहीं भी उपयोगितावाद शब्द का प्रयोग नहीं किया।
बेंथम ने सुख दुख के कितने स्रोत बताए हैं?उसकी दूसरी पुस्तक 'आचार और विधान के सिद्धांत' (Introduction to Principles of Morals and Legislation) १७८९ में निकली जिसमें उसके उपयोगितावाद का सार मर्म सन्निहित है। उसने इस बात पर बल दिया कि 'अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख' ही प्रत्येक विधान का लक्ष्य होना चाहिए।
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