सामुदायिक विकास के प्रमुख सिद्धांत क्या है? - saamudaayik vikaas ke pramukh siddhaant kya hai?

सामुदायिक विकास के प्रमुख सिद्धांत क्या है? - saamudaayik vikaas ke pramukh siddhaant kya hai?

सामुदायिक संगठन कार्य के सिद्धांत

Community Organization Theory.

सामुदायिक संगठन कार्य समाज कार्य की प्राथमिकत सिद्धतियों में एक है। समाज कार्य की समानता के साथ-साथ, समाज कार्य के समान इसके भी कुछ सिद्धांत है जिनका पालन सामाजिक कार्यकर्ता के लिए आवष्यक है। इन सिद्धांतो के प्रयोग के बिना सामुदायिक संगठन कार्य के लक्ष्य की प्राप्ति असंभव है। इस लिए इन सिद्धांतो का ज्ञान सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता के लिए आवष्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य है। ये सिद्धांत सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को लक्ष्य प्राप्ति के लिए सुलभ एवं आसान तरीके बताते है तथा अनुभवषील एवं सिद्ध ज्ञान से कार्यकर्ता का मार्गदर्षन करते है।

सामुदायिक संगठन कार्य के कुछ प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैः-

1.    स्वीकृति का सिद्धांत

              सामुदायिक संगठन कार्य का यह प्रथम एवं महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसका ज्ञान कार्यकर्ता के लिए अत्यन्त आवष्यक है। कार्यकर्ता को चाहिए 

(1) वह समुदाय को उसी रुप में स्वीकार करे जिस रुप में समुदाय दिखाई देता है। 

(2) अपने को  समुदाय से स्वीकार से स्वीकार कराये अर्थात् कार्यकर्ता को अपने कार्य के प्राथमिक चरण में सामुदायिक सदस्यों द्वारा बतायी गई समस्या को ही नहीं बल्कि समुदाय की रुढ़ियों, परम्पराओं, सभ्यता-संस्कृति एवं सामुदायिक मूल्यांे को गहराई से समझना चाहिए और सराहना चाहिए।

2.    अनुभूत आवष्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के ज्ञान का सिद्धांत  - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय मंे सदस्यों के साथ एक मार्गदर्षक के रुप में कार्य करता है। इसलिए समुदाय को स्वीकार करने एवं अपने को समुदाय द्वारा स्वीकृति करने के पष्चात् उसे समुदाय की उन तमाम आवष्यकताओं का पता लगाना चाहिए जो समुदाय के सदस्यांे की नजर में महत्वपूर्ण हों।

3.    व्यक्तिकरण का सिद्धांत - एक बड़े सामुदायिक भू-भाग में विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक स्तर के लोग निवास करते है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषेषताओं के कारण इनकी समस्यायें भिन्न-भिन्न होती है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ताओं को समस्यागत विषेषताओं की भिन्नता को स्वीकार करते हुए उनमें व्याप्त विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करना चाहिए तथा सभी की समस्याओं को समझने की कोषिष करनी चाहिए।

4.    आत्म संकल्प का सिद्धांत - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों के साथ कार्य कर उनकी योग्यता एवं ज्ञान का विकास उन्हे आत्म निर्भर बनाने में करता है। उसे सामुदायिक संगठन कार्य के प्रत्येक चरण में सदस्यों की शक्तियों एवं योग्यताओं का विकास आवष्यक दिषा में करते रहना चाहिए।

              कार्यकर्ता को आवष्यकतानुसार आवष्यक ज्ञान से उनका ज्ञानवर्धन तो अवष्य करना चाहिए लेकिन उन्हे निर्णय लेने की पूर्ण स्वतन्त्रता देनी चाहिए। इससे वे अपने को जिम्मेदार महसूस करेंगे और अपने द्वारा लिये गये निर्णय के कार्यान्वयन एवं उद्देष्य की प्राप्ति के लिये प्रयत्नषील रहेंगे।

5.    सीमाओं के बीच स्वतंत्रता का सिद्धांत

              सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय में लिये जा रहे प्रत्येक निर्णय में सदस्यों की इस प्रकार सहायता करनी चाहिए जिससे वे ऐसे निर्णय ले सके जिसमें समुदाय के अधिकाधिक जरुरतमन्द लोगों का कल्याण हो सके। यदि कार्यकर्ता को लगे कि सामुदायिक सदस्य ऐसा निर्णय लेने जा रहे है जिससे समुदाय के किसी विषेष पक्ष या वर्ग के लोगो को ही लाभ होगा तो उस समय कार्यकर्ता को सामुदायिक शक्तियों को हाथ में रखने वाले प्रमुख सदस्यों के सहयोग एवं अपने चातुर्य से इसे रोकना चाहिए।

6.    नियन्त्रित संवेगात्मक सम्बन्ध का सिद्धांत

              सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सदस्यों की समस्याओं को सूक्ष्मता से ग्रहण करना चाहिए और अपने व्यावसायिक ज्ञान के आधार पर उनका प्रत्युत्तर देना चाहिए। समुदाय की समस्याओं, परिस्थितियों की सत्यता महसूस करते हुए उसे अपने प्रभावपूर्ण एवं कुषल ज्ञान से प्रभावपूर्ण एवं आवष्यक निर्णय लेना चाहिए।

7.    लचीले कार्यात्मक संगठन का सिद्धांत

              सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को चाहिए कि वह सभी सदस्यों को इकट्ठा कर एक ऐसे प्रभावपूर्ण संगठन का निर्माण कराये जिसमें समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले, विभिन्न जाति, धर्म एवं सामाजिक -आर्थिक वर्ग वाले सदस्य शामिल हों।

              हर संगठन को एक व्यवस्थित नियम में बांधने की आवष्यकता होती है संगठन के जिम्मेदार चयनित कार्यकर्ता कुछ समय तक कार्य करने के अपनी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो सकें।

8.    उद्देष्यपूर्ण सम्बन्ध का सिद्धांत

              सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय में एक व्यावसायिक कार्यकर्ता के रुप में करता है। इसलिए उसे अपने व्यावसायिक उद्देष्य के विषय में सचेत रहना चाहिए। उसे सदस्यांे में भी अपने उद्देष्य के विषय में पूर्ण चेतना पैदा करना चाहिए। उद्देष्यपूर्ण सम्बन्धों की मजबूती के लिए आवष्यक है कि वह उनके उन शक्तिषाली संगठनों, समूह एवं उपसमूह के सदस्यों से भी अपना सम्बन्ध बनाये जिनसे किसी न किसी रुप से समुदाय प्रभावित हो सके।

9.    प्रगतिशील कार्यक्रम सम्बन्धी अनुभव का सिद्धांत

              सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को कार्यक्रम के निर्धारण के समय उसके आधार बिन्दुओं को स्पष्ट करते हुए कार्यक्रम विकास की प्रक्रिया में सदस्यों की अभिरुचियों, आवष्यकताओं और योग्यताओं का पता लगाना चाहिए। सामुदायिक कार्यक्रम किसी बाहरी संस्था द्वारा निष्चित नही होना चाहिए।

10.  जन सहभागिता का सिद्धांत

सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सामुदायिक संगठन कार्य सामुदायिक सदस्यों के लिए, सदस्यों के द्वारा और सदस्यों के साथ किया जाना है। किसी भी  कार्यक्रम की सफलता के लिए सदस्यों की सहभागिता अत्यन्त आवष्यक है। इस उद्देष्य की पूर्ति के लिए कार्यकर्ता को न केवल कार्यक्रम की योजना तैयार करने और उसके कार्यान्वयन में ही सदस्यों की सहभागिता पर बल देना चाहिए।

11.  साधन संचालन का सिद्धांत

              सामुदायिक कार्यकर्ता की सफलता के लिए आवष्यक है कि समुदाय के अन्दर एवं आस-पास उपलब्ध विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी साधनों के अध्ययनोपरांत इस बात का निर्णय लें कि समुदाय की आवष्यकता की प्राथमिकता के अनुसार वर्तमान परिस्थितियों मे पहले किस साधन को, किसके द्वारा और किस प्रकार संचालित किया जाये।

12.  मूल्यांकन का सिद्धांत

              कार्यक्रम आयोजन एवं संचालन के पष्चात् कार्यकर्ता को कार्यक्रम में रही कमियों एवं त्रृटियों का मूल्यांकन करना चाहिए। मूल्यांकन न केवल पिछले कार्यक्रमों में आयी हुई त्रुटियों को जानने के लिए उपयोगी है बल्कि नए कार्यक्रमों के आयोजन एवं कार्यान्वयन के लिए भी।

सामुदायिक विकास के सिद्धांत क्या है?

सामुदायिक विकास को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा स्वयं लोगों के प्रयासों को सरकारी प्राधिकारियों के प्रयासों के साथ मिला कर समुदायों की आर्थिक, और सांस्कृतिक दशाओं को सुधारा जा सके और इन समुदायों को राष्ट्रीय जीवन में समन्वित किया जा सके जिससे कि वे राष्ट्रीय प्रगति में पूर्णयता ...

सामुदायिक संगठन के सिद्धांत और मूल्य क्या है?

सामुदायिक संगठन के सिद्धांत यह समुदाय, पड़ोस, नगर जनपद या राज्य या देश या अन्र्तराष्ट्रीय समुदाय हो सकता है। समुदाय के सभी व्यक्ति इसके स्वा-अध्याय एवं कल्याण सेवाओं में रूचि रखते हैं समुदाय के सभी कार्यो और तत्वों द्वारा संयुक्त प्रयासों में भाग लिया जाना सामुदायिक संगठन में अनिवार्य होता है।

सामुदायिक कार्य से क्या तात्पर्य है?

सामुदायिक कार्य अन्य व्यावसायिक व्यवस्थाओं के अन्तर्गत विशिष्ट रहा है जोकि आज भी जारी है जिसमें गृह निर्माण तथा आयोजन भी सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त, समुदायों के अन्तर्गत सामुदायिक कार्य का निष्पादन स्वयंसेवकों तथा अवैतनिक तथा सक्रिय कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाता रहा है, जो कि आज भी जारी है।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरुआत कब हुई?

सामुदायिक विकास कार्यक्रम ग्रामीण लोगों के समग्र विकास के उद्देश्य से शुरू किया गया एक बहु-परियोजना कार्यक्रम था। इसे 2 अक्टूबर 1952 को शुरू किया गया था। इसे भारत में पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान लागू किया गया था। सामुदायिक विकास कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा शुरू की गई सबसे बड़ी ग्रामीण पुनर्निर्माण योजना थी।