प्रमुख नागरिक एवं जनजातीय आंदोलन- Show
सन्यासी विद्रोह(1760- 1800 ई०) फकीर
विद्रोह(1776- 1777 ई०) पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०) फराजी आंदोलन(1820- 1858 ई०) वहाबी आंदोलन(1820 - 1870 ई०) कूका आंदोलन(1840 - 1870 ई०) भील विद्रोह- गड़करी विद्रोह(1844 ई०) रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०) किट्टूर चेन्नम्मा विद्रोह(1824- 29 ई०) जस्टिस आंदोलन(1916-17 ई०) आत्मसम्मान आंदोलन(1920 ई०) बेलुटम्पी विद्रोह(1808- 09 ई०) रम्पा विद्रोह(1879 ई०) खोंड विद्रोह(1837- 56 ई०) पाइक
विद्रोह(1817 ई०) संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०) मुंडा विद्रोह(1890- 1900 ई०) नोट:- खुंटीकुटी प्रथा में सामूहिक भू स्वामित्व पर आधारित कृषि व्यवस्था पर बल दिया जाता था परंतु अंग्रेजों इस व्यवस्था को समाप्त कर निजी भू स्वामित्व की व्यवस्था लागू की थी। खासी विद्रोह(1828- 33 ई०) कूकी
विद्रोह(1826 - 44 ई०) हो विद्रोह(1820,1831-37 ई०) कोल विद्रोह(1829- 39 ई०) पहाड़ियाँ विद्रोह(1778 ई०) सन्यासी विद्रोह के नेतृत्वकर्ता कौन थे?इन विद्रोह के प्रमुख नेताओं में केना सरकार, दिर्जिनारायण, मंजर शाह,देवी चौधरानी, मूसा शाह, भवानी पाठक उल्लेखनीय है। 1880 ईस्वी तक बंगाल और बिहार में अंग्रेजो के साथ संन्यासी और फकीरों का विद्रोह होता रहा।
सन्यासी ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?सन्यासी विद्रोह का प्रमुख कारण हिन्दु, नागा और गिरी के सशस्त्र सन्यासियों का तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध लगाना था। इस सन्यासी आंदोलन में किसानों, शिल्पकारों ने भी बढ़-चढ़कर सन्यासियों का साथ दिया। इन सन्यासियों में अधिकतर आदि शंकराचार्य के अनुयायी थे।
सन्यासी विद्रोह कब चालू हुआ?1776 – 1777संन्यासी विद्रोह / अवधिnull
सन्यासी विद्रोह क्यों हुआ था?सन्यासी विद्रोह का मुख्य कारण तीर्थ यात्रा पर प्रतिबन्ध लगाना तथा कठोरता से भू-राजस्व वसूलना था। प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल में अंग्रेजी राज्य की स्थापित हो गया। अतः अंग्रेजों ने अपनी नई आर्थिक नीतियां स्थापित की। जिसके कारण भारतीय जमींदार, कृषक व शिल्पकार नष्ट होने लगे।
|