Show दोस्तों इस पोस्ट में आपको स्वर की परिभाषा स्वर का वर्गीकरण (swar ka vargikarn) से जुड़े तथ्यों को विस्तार व विश्लेषित ढंग से समझाया गया है | स्वरों क वर्गीकरणस्वर किसे कहते है?परिभाषा: – वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण करते समय फेफड़ों से उठी हुई वायु निर्बाध गति से/ बिना रुकावट के/ बिना घर्षण के मुखविवर से बाहर निकल जाती हैं, ‘स्वर ध्वनियाँ’ कहलाती हैं। हिन्दी के स्वर और मात्राएँ
(ii) हिन्दी भाषा में अंग्रेजी भाषा का एक आगत स्वर भी है जो केवल अंग्रेजी भाषा के शब्दों में प्रयुक्त होता है-‘ ऑ ‘ (डॉक्टर, कॉलेज, हॉस्पिटल आदि)। हिन्दी भाषा में कुल 11 स्वर हैं जिनका वर्गीकरण निम्नानुसार किया गया है। स्वरों का वर्गीकरण (swar ka vargikarn)(1) उच्चारण काल के आधार परः-उच्चारण में लगने वाले समय के अनुसार स्वर तीन प्रकार के होते हैं (i) ह्रस्व स्वरःजिनके उच्चारण में कम समय लगता है। इन्हें’ मूल स्वर ‘ भी कहा जाता है। अ, इ, उ, ऋ (ii) दीर्घ स्वर :जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों की तुलना में दुगुना समय लगता होते हैं । | ये स्वरः दो
प्रकार होते हैं | आ = अ + अ ई = इ + इ ऊ = उ + उ (ख) संयुक्त स्वर– जो दो विजातीय स्वरों के योग से बने हैं। ए = अ + इ ऐ = अ + ए ओ = अ + उ औ = अ + ओ नोटः इनमें से ' ए', ' ओ' को ही शुद्ध स्वर माना जाता है, ' ऐ' तथा ' औ' को नहीं; क्योंकि इन्हें अपभ्रंश स्वरों के बाद विकसित किया गया है | जिन स्वरों की बनावट समान होती है, वे 'सजातीय स्वर' कहलाते हैं और भिन्न-भिन्न बनावट वाले 'विजातीय स्वर' कहलाते हैं। (iii) प्लुत् स्वरःजिस स्वर के उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगे, उसे ‘ प्लुत् स्वर’ कहते हैं। प्लुत् स्वर का उच्चारण दूर से किसी को बुलाने पर तथा संस्कृत भाषा के मन्त्र आदि के उच्चारण के लिए होता है इसे ‘ त्रिमात्रिक स्वर’ भी कहते हैं। यथा- ओ ३ म् (मात्रा -3)
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