स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं इसके विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए? - svatantrata se aap kya samajhate hain isake vibhinn roopon ka varnan keejie?

प्रश्न; स्वतंत्रता की परिभाषा दीजिए। इसके विविध रूपों का वर्णन कीजिए। 

अथवा" स्वतंत्रता की परिभाषा दीजिए तथा स्वतंत्रता एवं समानता में संबंध बताइयें। 

अथवा" स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? स्वतंत्रता एवं समानता में संबंध की विवेचना कीजिए। 

अथवा" स्वतंत्रता एवं समानता एक-दूसरे के पूरक हैं। विश्लेषण कीजिए। 

उत्तर--

अठारहवीं शताब्दी में जब फ्रांस में राजतंत्रशाही के अत्याचार बहुत बढ़ गये थे, तब वहाँ राजनीतिक विचारकों ने इन अत्याचारों के विरूद्ध स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व का नारा दिया था और 1789 की क्रांति का मुख्य आधार तीन शब्दों का यह नारा ही बना। जिसकी अनुगूँजा बाद में यूरोप तथा संपूर्ण विश्व में होने लगी। स्वतंत्रता व्यक्ति का लक्ष्य बन गया और इसकी प्राप्ति के लिए वह साम्राज्यवाद के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ। पालकीवाला के शब्दों में," मनुष्य सदा ही स्वतंत्रता की बलिवेदी पर सर्वाधिक बलिदान देते रहे हैं। वे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा आत्मा और धर्म की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण देते रहे हैं।"

स्वतंत्रता का अर्थ (swatantrata kya hai)

swatantrata meaning in hindi;स्वतंत्रता शब्द का अंग्रेजी पर्याय  " लिबर्टी " लेटिन भाषा का " लिबर " शब्द से बना है जिसका अर्थ मुक्त या स्वतंत्र या बन्धनों का अभाव होता है।  

स्वतंत्रता का सही अर्थ प्रो. लाॅस्की के अनुसार, " उस वातावरण की स्थापना से है जिसमे मनुष्यों को अपने पूर्ण विकास के लिए अवसर प्राप्त होते है।

राजनीतिशास्त्र की शायद ही कोई ऐसी समस्या हो जिसके संबंध में विद्वानों में इतना मतभेद पाया जाता हो जितना स्वतंत्रता के संबंध में देखने को मिलता हैं। प्रत्येक युग में विचारक स्वतंत्रता की समस्या पर विचार करते रहे हैं और अलग-अलग अर्थ लगाते आये हैं।  

स्वतंत्रता के दो अर्थ लागाये जाते हैं--

1. स्वतंत्रता की नकारात्मक धारणा 

'स्वतंत्रता', जिसे अंग्रेजी में 'लिबर्टी' कहते हैं, लैटिन भाषा में 'लाइबर' शब्द से बना हैं, जिसका अर्थ उस भाषा में 'बन्धनों का अभाव' होता है। इस धारणा के अंतर्गत स्वतंत्रता का अर्थ हैं-- 'प्रतिबन्धों का न होना' यानि की व्यक्ति के कार्यों पर किसी भी प्रकार का बंधन न हो। मनुष्य जो चाहे कर सके। सामाजिक समझौता सिद्धांत के समर्थक हाॅब्स और रूसों के मतानुसार प्राकृतिक अवस्था में इस प्रकार की स्वतंत्रता थी। मनुष्य पर किसी प्रकार रोक-टोक नहीं थी। रूसो की अमर कृति "सामाजिक समझौता" का पहला वाक्य ही सही हैं-- 'मनुष्य स्वतंत्र जन्मा हैं', हाॅब्स के अनुसार," स्वतंत्रता का अभिप्राय विरोध और नियंत्रण का सर्वथा अभाव हैं। किन्तु स्वतंत्रता का अर्थ भ्रमात्मक हैं। इस प्रकार की स्वतंत्रता राॅबिन्सन क्रूसों जैसे व्यक्ति को ही मिल सकती है जो एक निर्जन स्थान पर अपने साथी फ्राइड के साथ एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा था। सभ्य समाज में ऐसी स्वतंत्रता संभव नही हैं। 

2. स्वतंत्रता की सकारात्मक धारणा 

स्वतंत्रता के नकारात्मक दृष्टिकोण में विश्वास करने वाले मानते है कि स्वतंत्रता का अर्थ है सभी प्रकार के नियंत्रणों का अभाव, परन्तु यह अर्थ संतोषजनक नहीं हैं, क्योंकि इस अर्थ में स्वतंत्रता केवल प्राकृतिक अवस्था तथा अराजकता में रहने वालों को ही अनुभव हो सकती हैं। समाज में रहने वाले व्यक्तियों को इस अर्थ में स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती। सही रूप में स्वतंत्रता का अर्थ है मनुष्य को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए पर्याप्त सुअवसर या परिस्थितियाँ प्रदान करना। ये अवसर या सुविधाएं राज्य ही प्रदान कर सकता हैं, अएएव सकारात्मक स्वतंत्रता  राज्य में ही संभव हैं। ऐसी स्वतंत्रता सीमित होती हैं, न कि असीमित। ऐसी स्वतंत्रता केवल वैयक्तिक नहीं, सामाजिक हित की दृष्टि से प्रदान की जाती हैं। 

स्वतंत्रता की परिभाषा (swatantrata ki paribhasha)

मैकियावली के अनुसार " सब प्रकार के बन्धनों का अभाव नही अपितु अनुचित के स्थान पर उचित प्रतिबन्ध (बन्धन) की व्यवस्था ही स्वतंत्रता है। 

सीले के अनुसार, " स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।

जी. डी. एच. कोल के अनुसार, " बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व को प्रगट करने के अधिकार का नाम स्वतंत्रता है।

स्पेन्सर के अनुसार," प्रत्येक मनुष्य वह करने को स्वतंत्र है जो वह करना चाहे। बशर्ते वह किसी अन्य मनुष्य की समान स्वतंत्रता का हनन न करें।" 

मैकेन्जी के अनुसार," स्वतंत्रता सब प्रकार के प्रतिबन्धों का अभाव नहीं हैं, बल्कि तर्करहित प्रतिबन्धों के स्थान पर तर्कयुक्त प्रतिबन्धों की स्थापना हैं।" 

लास्की के अनुसार," आधुनिक सभ्यता में जो सामाजिक परिस्थितियाँ व्यक्ति के सुख के लिए आवश्यक हैं, उन पर प्रतिबंध का अभाव ही स्वतंत्रता हैं।" 

ग्रीन के अनुसार," स्वतंत्रता उन कार्यों को करने अथवा उन वस्तुओं का उपभोग करने की शक्ति हैं जो करने अथवा उपभोग करने योग्य हों।" 

गेटेल के अनुसार," स्वतंत्रता से अभिप्राय उस सकारात्मक शक्ति से है जिससे उन चीजों को करके आनंद प्राप्त होता हैं, जो करने योग्य हों।

स्वतंत्रता के प्रकार (swatantrata ke prakar)

स्वतंत्रता के विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार बताए हैं--

1. राजनीतिक स्वतंत्रता 

राज्य की राजनीतिक प्रक्रिया मे स्वतंत्रतापूर्वक सक्रिय भाग लेने की स्वतंत्रता राजनीतिक स्वतंत्रता कहलाती है। लास्की ने इस प्रकार की स्वतंत्रता की परिभाषा करते हुए कहा है, " राजनीतिक स्वतंत्रता का अभिप्राय राज्य के कार्यों व्यापारों मे सक्रिय भाग लेने के अधिकार से है। 

2. आर्थिक स्वतंत्रता 

प्रत्येक व्यक्ति को जीविका कमाने की समुचित सुरक्षा व सुविधा प्राप्त होना आर्थिक स्वतंत्रता है।

3. प्राकृतिक स्वतंत्रता 

प्राकृतिक स्वतंत्रता से तात्पर्य उस स्वतंत्रता से है जो व्यक्ति को प्रकृति द्वारा प्रदान की गई है। यह स्वतंत्रता राज्य की स्थापना से भी पहले प्रकृति की ओर से लोगों को प्राप्त होती है। 

4. नागरिक स्वतंत्रता 

नागरिक स्वतंत्रता वह स्वतंत्रता है जो व्यक्ति को समाज और राज्य के सदस्य के रूप मे प्राप्त होती। नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी राज्य देता है। 

5. व्यक्तिगत स्वतंत्रता 

व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति को स्वयं के निजी कार्यों, विश्वासों और मामलों मे स्वतंत्रता। उदाहरण के लिए व्यक्ति के रहन-सहन, धर्म, विश्वास, वेशभूषा, परिवार आदि के मामलों मे राज्य या किसी अन्य व्यक्तियों द्वारा किसी प्रकार का हस्तक्षेप नही किया जाना चाहिए।

6. स्वाभाविक स्वतंत्रता 

यह स्वतंत्रता मानव स्वभाव के अनुरूप होती है। रूसो और तिलक इसी प्रकार की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। तिलक ने इसीलिए कहा है कि स्वंतंत्रता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। रूसो का कहना है कि मनुष्य प्राकृतिक युग (राज्य के जन्म के पूर्व से) इसी स्वतंत्रता का उपयोग कर रहा है। अब तो समाज के विकास से वह बन्धनों  मे जकड़ गया है। 

7. सामाजिक स्वतंत्रता 

यह स्वतंत्रता व्यक्ति को समाज मे प्राप्त होती है। वास्तव मे समाज का जन्म ही इसलिए हुआ है कि समाज मे रहने वाले सभी लोगों को यह स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहियें, जिससे वह अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। इस स्वतंत्रता के अंतर्गत जीवन और संपत्ति की सुरक्षा, आवागमन की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता इत्यादि आती है। 

8. सांस्कृतिक स्वतंत्रता

यह भी एक प्रकार की सामाजिक स्वतंत्रता है जिसमे किसी समाज मे रहने वालों को अपनी संस्कृति को बनाये रखने, उसकी रक्षा करने तथा समृद्ध करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है।

9. राष्ट्रीय स्वतंत्रता &lt;/p&gt;&lt;p&gt;राष्ट्रीय स्वतंत्रता द्वारा परतंत्र राष्ट्र अपना शासन अपने आप करने का राजनीतिक अधिकार प्राप्त करता है। साम्राज्यवाद से मुक्ति पाने के लिए राष्टों ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया है। जैसा कि भारत को 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिन से मुक्ति के बाद राष्ट्रीय स्वतंत्रता या स्वाधीनता प्राप्त हुई है।&lt;script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"&gt; <ins class="adsbygoogle" data-ad-client="ca-pub-4853160624542199" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article" data-ad-slot="3525537922" style="display:block;text-align:center"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

समानता और स्वतंत्रता में संबंध 

कभी-कभी कहा जाता है कि समानता और स्वतंत्रता परस्पर विरोधी शब्द हैं। उदाहरण के लिए लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) और डी. टोकियावेली (De Tocqueville) जैसे इतिहासकारों का यही विचार है। लॉर्ड एक्टन ने लिखा था, " समानता की उत्कंठा स्वतंत्रता की आशा पर तुषारपात है। लेकिन इस मान्यता के बिना स्वतंत्रता और समानता दोनों एक दूसरे के पूरक शब्द हैं समानता के बिना स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के बिना समानता पूरी नहीं हो सकती। यदि समाज में समानता नहीं है तो नागरिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता केवल धोखामात्र है। उदाहरण के लिए नागरिक स्वतंत्रता केवल तभी हस्तगत की जा सकती है जबकि कानून की दृष्टि में सबको समान समझा जाए। राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि राजनीतिक दृष्टि में सबको समान समझा जाए। लेकिन राजनीतिक समानता का अर्थ केवल यह नहीं हो जाता कि व्यक्तियों को मतदान का अधिकार मिल जाए। खाली मतदान के अधिकार का कोई उपयोग नहीं है। जिन लोगों का यह विश्वास है कि लोकतंत्र सार्वभौम व्यस्क मताधिकार से अधिक कुछ नहीं हैं, वे वास्तविक तथ्यों को अपनी आँखों से ओझल कर देते हैं। जहाँ प्रचंड आर्थिक असमानताएँ हो, वहाँ मतदान का अधिकार राजनीतिक स्वतंत्रता की गारंटी नहीं दे सकता। हम यह कदापि नहीं कह सकते कि कारखाने में काम करने वाले मजदूर को उतनी ही स्वतंत्रता प्राप्त है जितनी कि एक लक्षाधीश को। 

लास्की का यह कहना सही है कि," राजनीतिक स्वतंत्रता तब तक सच्ची नहीं हो सकती जब तक कि उसके साथ आर्थिक समानता न मिली हो। " इतिहास के अनुशीलन से यह भली प्रकार ज्ञात हो जाता है कि राजनीतिक सत्ता पर केवल उन लोगों का ही नियंत्रण रहता है जो आर्थिक शक्ति के स्वामी होते हैं। आर्थिक शक्ति के स्वामी शिक्षा प्रणाली को अपने हित के अनुकूल ढाल लेते हैं। पारितोषिक प्रदान कर ये संपतिहीन बुद्धिजीवी को अपनी सेवा में जुटा लेने योग्य बना लेते हैं। न्यायांग प्रायः सवेतन एडवोकेटों में से चुना जाता में है, इसलिए कानूनी निर्णय भी इन्हीं के अनुभवों को परिलक्षित करते हैं। गिरजाघर भी इसी प्रकार के उपदेश देंगे जिसमें यह झलक होगी कि वे सब धनवानों की सहायता से चल रहे हैं। कहने का सार यह है कि जहाँ आर्थिक असमानताएँ होती हैं। पूँजीपति वर्ग श्रमिक वर्ग पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेता है। 

जहाँ आर्थिक असमानता होती है, वहाँ समस्त नागरिकों को कानून की समानता मुश्किल से ही मिल पाती है। कानून अकिंचन मजदूर की अपेक्षा लक्ष्मी के कृपापात्र का ही पक्ष अधिक ग्रहण करता है। इसका कारण यह है कि आज के युग में न्याय काफी महँगा है और गरीब मजदूर के पास ऐसे आर्थिक संसाधन नहीं होते कि वह ऊँचे-से-ऊँचे वकीलों की सेवा प्राप्त कर सके। गैल्सवर्दी का सिल्वर बॉक्स नामक नाटक यह स्पष्ट कर देता है कि इंग्लैंड जैसे लोकतंत्रात्मक देश में भी वस्तुतः दो प्रकार के कानून हैं, एक अमीरों के लिए और दूसरा गरीबों के लिए। इसलिए, यह स्पष्ट है कि आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सभी प्रकार की स्वतंत्रता के लिए समानता जरूरी है।

स्वतंत्रता और कानून 

कानून और स्वतंत्रता के संबंध में आदर्शवादियों का मत कानून और स्वतंत्रता के संबंध में दो परस्पर विरोधी विचार मिलते हैं। पहला विचार आदर्शवादियों का है। ये विचारक कानून और स्वतंत्रता का तभी उपभोग कर सकते हैं जब वे राज्य के आदेशों का चुपचाप पालन करते रहें। आदर्शवादियों की दृष्टि में राज्य संपूर्ण स्वतंत्रता और नैतिकता का मूल है। अतः राज्य का कोई भी आदेश नैतिकता या स्वतंत्रता के प्रतिकूल नहीं हो सकता। यदि व्यक्ति स्वतंत्रता का उपभोग करना चाहता है, तो उसके लिए यह अभीष्ट है कि वह अपनी निजता को राज्य के अंदर अधिकाधिक विलीन कर दें। कानून और स्वतंत्रता के इस संबंध पर आदर्शवादी विचारकों ने काफी लिखा है। उदाहरण के लिए अरस्तू ने कहा है, “ मनुष्य अपनी पूर्णता में प्राणधारियों में सर्वश्रेष्ठ है। परंतु जब वह कानून तथा न्याय से पृथक् हो जाता है। तब वह सबसे निकृष्ट बन जाता है। अरस्तू के इस कथन से यह स्पष्ट है कि वह केवल राज्य में ही राज्य के कानूनों के अंतर्गत ही मानवीय गुणों का पूर्ण प्रस्फुटन संभव मानता था आधुनिक काल के अनेक विचारकों ने भी इस मत को पुष्ट किया है। 

राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक संविदा सिद्धांत के प्रतिपादकों का कहना है कि राज्य की उत्पत्ति के पूर्व मनुष्य नितांत जंगलीपन की दशा में रहता था। मनुष्य का सभ्य जीवन राज्य की उत्पत्ति के पश्चात् ही संभव हुआ है। हींगल राज्य को स्वतंत्रता का मूर्त रूप मानता है। यद्यपि अंग्रेज विचारक ग्रीन आदर्शवादियों में सबसे अधिक व्यक्तिवादी है, लेकिन स्वतंत्रता के लिए राज्य को एवं उसके कानूनों को उसने भी आवश्यक ठहराया है। बोसांके का भी यही विचार है।

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