वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के सिद्धान्त Show
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के संबंध में अनेक तर्क दिये गये हैं जो निम्न लिखित है: वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का दैवी उत्पत्ति सिद्धान्त
ऋग्वेद के पुरूष सूक्त (10.90.12) में सर्वप्रथम वर्ण व्यवस्था को देवकृत बताया गया है जहां उल्लेखित है-
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का गुण सिद्धान्त
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का रंग से उत्पत्ति सिद्धान्त
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का कर्म सिद्धान्त
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का जन्म का सिद्धान्त
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सत्व गुण ज्ञान विज्ञान, वेदज्ञ, धर्मज्ञ, शुद्ध आचरण युक्त, रज गुण, शौर्य, शक्ति प्रदर्शन, रक्षा कार्य, तथा तम गुण लोभ, प्रमादयुक्त, अज्ञानयुक्त होता था। अतः जो व्यक्ति जिस गुण का होता था, उस गुण के साथ ही उसका वर्ण निर्धारित हो जाता था।
वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं समझाइए?वर्ण व्यवस्था हिन्दू धर्म में सामाजिक विभाजन का एक आधार है। हिन्दू धर्म-ग्रंथों के अनुसार समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है- क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र; जबकि और बौद्ध धर्म के ग्रन्थों के अनुसार समाज को छह वर्णों में विभाजित किया गया है।
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का आधार क्या है?प्राचीन धर्मशास्त्रों में वर्णों की उत्पत्ति ईश्वरकृत एवं दैवी मानी गई। इसे परम्परागत सिद्धान्त भी कहा गया। इस सिद्धान्त के अनुसार वर्णों की उत्पत्ति ईश्वरकृत है।। ऋग्वेद के दशम् मण्डल के पुरुषसूक्त में वर्ण सम्बन्धी वर्णों की उत्पत्ति विराट पुरुष से हुई।
वर्ण व्यवस्था क्या है वर्ण व्यवस्था के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए?धर्म-शास्त्रों में वर्ण व्यवस्था समाज को चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में विभाजित करती है। जो लोग अपने पापों के कारण इस व्यवस्था से बाहर हो जाते हैं, उन्हें अवर्ण (अछूत) के रूप में निरूपित किया जाता है और वर्ण व्यवस्था के बाहर माना जाता है।
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