यूट्रीकुलस में तीन अर्धवृत्ताकार नलिकाएँ पाई जाती हैं। सैकुलस का पिछला भाग कुण्डलित होकर एक नलिकाकार संरचना बनाता है, जिसे कॉक्लिया (Cochilea) कहते हैं।कॉक्लिया नलिका के बाहर की गुहा को स्केला वेस्टीबुलाई (Scala vestibuli) कहते हैं। Show सबसे नीचे की गुहा को स्केला टिम्पैनी (Scala tympani) और इन दोनों के मध्य की गुहा को स्केलामीडिया कहते हैं। यूट्रीकुलस, सैकुलस एवं अर्द्ध वृत्ताकार नलिका में एण्डोलिम्फ पाया जाता है। कॉक्लियर नलिका में एक संवेदी उभार पाया जाता है, जिसे कॉरटाई का अंग (Organ of Corti) कहते हैं। इसमें उपस्थित संवेदी रोम (Sensory hairs) श्रवण संवेदना उत्पन्न करते हैं। प्रश्न 2.
उत्तर: (i) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System, CNS): (ii) परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System, PNS): (2) स्थिर विभव और सक्रिय विभव में अन्तर – (i) स्थिर विभव (Resting Potential): (ii) सक्रिय विभव (Active Potential): (3) कोराइड और रेटिना (Choroid and Retina): (ii) नेत्र (Eye): 2. रक्तक पटल (Choroid): 3. दृष्टि पटल (Retina): चूँकि कॉचाभ द्रव – कॉर्निया रेटिना संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है, जिससे अन्ध बिन्दु पुतली आइरिस इस प्रकार प्रतिबिम्ब बनने पर यह उद्दीप्त हो जाती है और इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहँचा नेत्र लेंस देती है, जिससे मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब के माध्यम से सामने वाली वस्तु को देखता है। दृष्टि पटल दो स्तरों की बनी होती है – (i) रंगा स्तर: (ii) संवेदी स्तर-यह संवेदी कोशिकाओं की बनी भीतरी स्तर होती है, जो तीन उप-स्तरों की बनी होती है
प्रश्न 3.
अथवा तंत्रिकीय आवेग क्या है ? इनका संचरण किस प्रकार होता है ? तंत्रिका तन्तु संवेदी (Resting region) अंगों को तंत्रिका तंत्र से जोड़ते हैं और इन आवेगों को विद्युत्-रासायनिक प्रेरणा या तरंगों (Electro chemical impulse or waves) के रूप में तंत्रिका तंत्र को पहुँचा देते हैं। युग्मानुबन्ध (Synapsis) पर आवेगों का संचरण कुछ रासायनिक क्रियाओं और पदार्थों द्वारा नियन्त्रित होता है। तंत्रिकीय आवेगों का संचरण: तंत्रिका कोशिकाओं के चारों तरफ अन्तराली द्रव (Interstitial fluid) नामक द्रव भरा होता है, जिसमें सोडियम (Na’) तथा पोटैशियम (K’) आयन घुले रहते हैं। सामान्य या विश्रामावस्था में तंत्रिका कोशिका का ऐक्सॉन पोटैशियम आयन के लिए Na’ आयन की अपेक्षा 30 गुना अधिक पारगम्य होता है, जिसके परिणामस्वरूप Na’ झिल्ली के बाहर अधिक और अंदर कम सान्द्रता में पाया जाता है। बाह्य सतह पर सोडियम आयन की उपस्थिति के कारण यह धनात्मक आवेश युक्त होती है, जबकि आन्तरिक सतह कार्बनिक मूलकों के कारण ऋणात्मक होती है। इस अवस्था में झिल्ली – (i) ध्रुवीय अवस्था (Polarized) में कही जाती है और इस समय इसका सुप्त विभव 70 mg होता है। जब तक तंत्रिका तन्तु विश्रामावस्था में रहता है दो आयनों की संख्या सन्तुलित रहती है, लेकिन जैसे V ही कोई उद्दीपन आवेग के रूप में ग्रहण किया जाता है, वैसे ही उद्दीपन के स्थान का आयनिक सन्तुलन बिगड़ जाता है, इस अवस्था को स्थानीय उत्तेजनशील अवस्था (Local excitatory state) कहते हैं । इस अवस्था में झिल्ली में (ii) निधुवण (Depolarization) हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप उत्तेजित आवेग की एक लहर तंत्रिका तन्तु पर क्रम से फैलती जाती है, तंत्रिका तन्तु की इस अवस्था को सक्रिय अवस्था कहते हैं। तंत्रिका तन्तु की सक्रिय अवस्था में पोटैशियम आयन विसरित होकर ऐक्सॉन से बाहर तथा सोडियम आयन अंदर आ जाता है। इस विसरण में सोडियम आयनों के अंदर आने की संख्या पोटैशियम आयनों के बाहर जाने के अनुपात में ज्यादा होती है। इस घटना के कारण ऐक्सॉन की झिल्ली की सतहों पर आयनों की प्रकृति बदल जाती है। दूसरे शब्दों में, बाहरी सतह पर ऋण तथा आन्तरिक सतह पर धन आयन आ जाते हैं। ये विद्युत्-रासायनिक ऐक्सॉन के द्वारा युग्मानुबन्ध (Synapse) पर पहुँच जाते हैं और वहाँ से इसे पार कर दूसरे न्यूरॉन के डेण्ड्राइट में पहुँच जाते हैं। इसके बाद पुनर्स्थापन अवस्था (Recovery phase) आती है, जिसमें फिर से ऐक्सॉन की बाहरी सतह पर धन आयन सोडियम आयन के झिल्ली से बाहर आने के कारण स्थापित हो जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के लिए कुछ समय की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें तंत्रिका फिर से उत्तेजना को ग्रहण नहीं कर सकती, इस समय को रिफ्रैक्टरी काल (Refractory period) कहते हैं, जो 1/1000 सेकण्ड के बराबर होता है। प्रश्न 4. टीप: (2) मस्तिष्क (Brain): (A) अग्रमस्तिष्क (Fore Brain): 1. प्रमस्तिष्क (Cerebrum): 2. हाइपोथैलेमस (Hypothalamus): (B) मध्य मस्तिष्क (Mid Brain) – यह भाग सेरीब्रम को सेरीबेलम से जोड़ता है इसमें सेरीब्रल वृन्त पाया जाता है।
(3) नेत्र (Eye): 2. रक्तक पटल (Choroid): 3. दृष्टि पटल (Retina): चूँकि कॉचाभ द्रव – कॉर्निया रेटिना संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है, जिससे अन्ध बिन्दु पुतली आइरिस इस प्रकार प्रतिबिम्ब बनने पर यह उद्दीप्त हो जाती है और इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहँचा नेत्र लेंस देती है, जिससे मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब के माध्यम से सामने वाली वस्तु को देखता है। दृष्टि पटल दो स्तरों की बनी होती है – (i) रंगा स्तर: (ii) संवेदी स्तर-यह संवेदी कोशिकाओं की बनी भीतरी स्तर होती है, जो तीन उप-स्तरों की बनी होती है
(4) कर्ण (Ears):
1. बाह्य कर्ण (External ear): 2. मध्य कर्ण (Middle ear):
फेनेस्ट्रा ओवेलिस एवं टिम्पेनिक गुहा के बीच तीन प्रकार की अस्थियाँ पाई जाती हैं –
3. आन्तरिक कर्ण (Internal ear): यूट्रीकुलस में तीन अर्धवृत्ताकार नलिकाएँ पाई जाती हैं। सैकुलस का पिछला भाग कुण्डलित होकर एक नलिकाकार संरचना बनाता है, जिसे कॉक्लिया (Cochilea) कहते हैं।कॉक्लिया नलिका के बाहर की गुहा को स्केला वेस्टीबुलाई (Scala vestibuli) कहते हैं। सबसे नीचे की गुहा को स्केला टिम्पैनी (Scala tympani) और इन दोनों के मध्य की गुहा को स्केलामीडिया कहते हैं। यूट्रीकुलस, सैकुलस एवं अर्द्ध वृत्ताकार नलिका में एण्डोलिम्फ पाया जाता है। कॉक्लियर नलिका में एक संवेदी उभार पाया जाता है, जिसे कॉरटाई का अंग (Organ of Corti) कहते हैं। इसमें उपस्थित संवेदी रोम (Sensory hairs) श्रवण संवेदना उत्पन्न करते हैं। प्रश्न 5.
उत्तर: तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय के घटक (Components of Nervous Control and Coordination)-तंत्रिकीय नियंत्रण और समन्वय का कार्य मुख्यत: मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु के द्वारा किया जाता है। तंत्रिका तंत्र के शेष भाग इस कार्य में सहायता करते हैं। तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय में निम्नलिखित रचनाएँ या घटक भाग लेते हैं – (1) संवेदांग (Sense organs): (2) संचार तंत्र (Transmitting system): (3) कार्यान्वयक अंग (Effectors): (2) अग्रमस्तिष्क: (A) अग्रमस्तिष्क (Fore Brain): 1. प्रमस्तिष्क (Cerebrum): 2. हाइपोथैलेमस (Hypothalamus): (3) मध्यमस्तिष्क: यह भाग सेरीब्रम को सेरीबेलम से जोड़ता है इसमें सेरीब्रल वृन्त पाया जाता है। (4) पश्चमस्तिष्क:
(5) रेटिना – उपर्युक्त (NCERT) प्रश्न क्र. 1(ii) का उत्तर देखिये। नेत्र (Eye): 2. रक्तक पटल (Choroid): 3. दृष्टि पटल (Retina): चूँकि कॉचाभ द्रव – कॉर्निया रेटिना संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है, जिससे अन्ध बिन्दु पुतली आइरिस इस प्रकार प्रतिबिम्ब बनने पर यह उद्दीप्त हो जाती है और इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहँचा नेत्र लेंस देती है, जिससे मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब के माध्यम से सामने वाली वस्तु को देखता है। दृष्टि पटल दो स्तरों की बनी होती है – (i) रंगा स्तर: (ii) संवेदी स्तर-यह संवेदी कोशिकाओं की बनी भीतरी स्तर होती है, जो तीन उप-स्तरों की बनी होती है
(6) कर्ण अस्थिकाएँ: कर्ण (Ears):
1. बाह्य कर्ण (External ear): 2. मध्य कर्ण (Middle ear):
फेनेस्ट्रा ओवेलिस एवं टिम्पेनिक गुहा के बीच तीन प्रकार की अस्थियाँ पाई जाती हैं –
3. आन्तरिक कर्ण (Internal ear): यूट्रीकुलस में तीन अर्धवृत्ताकार नलिकाएँ पाई जाती हैं। सैकुलस का पिछला भाग कुण्डलित होकर एक नलिकाकार संरचना बनाता है, जिसे कॉक्लिया (Cochilea) कहते हैं।कॉक्लिया नलिका के बाहर की गुहा को स्केला वेस्टीबुलाई (Scala vestibuli) कहते हैं। सबसे नीचे की गुहा को स्केला टिम्पैनी (Scala tympani) और इन दोनों के मध्य की गुहा को स्केलामीडिया कहते हैं। यूट्रीकुलस, सैकुलस एवं अर्द्ध वृत्ताकार नलिका में एण्डोलिम्फ पाया जाता है। कॉक्लियर नलिका में एक संवेदी उभार पाया जाता है, जिसे कॉरटाई का अंग (Organ of Corti) कहते हैं। इसमें उपस्थित संवेदी रोम (Sensory hairs) श्रवण संवेदना उत्पन्न करते हैं। (7) कॉक्लिया: सिनेप्स: प्रश्न 6.
उत्तर: (1) सिनैप्टिक संचरण की क्रियाविधि: युग्मानुबन्ध बनाने वाले तंत्रिका तन्तु आपस में चिपके न होकर थोड़ा दूर – दूर स्थित होते हैं और इनके सिरे पर युग्मानुबन्ध घुण्डियाँ (Synaptic knobs) पायी जाती हैं, जिनके नीचे विशेष प्रकार की युग्मानुबन्ध थैलियाँ (Synaptic vesicles) स्थित होती हैं, जिसमें ऐसीटाइलकोलीन (Acetylcholines) नामक रासायनिक पदार्थ भरा रहता है, जो कि रासायनिक संचारी (Chemical transmitter) के समान आवेग को युग्मानुबन्ध पर पहुँचा देता है, इसीलिए इसे तंत्रिका संचारी (Neurohumor) भी कहते हैं। जिस समय प्रेरणा ऐक्सॉन से होकर युग्मानुबन्ध घुण्डियों में पहुँचती हैं, Ca+ ऊतक द्रव्य से घुण्डियों में पहुँचते हैं, जिसके प्रभाव से ऐसीटाइलकोलीन मुक्त होकर पश्च युग्मानुबन्ध न्यूरॉन की कला की पारगम्यता को प्रभावित कर देता है। फलत: फिर से विद्युत् – तरंगें पैदा हो जाती हैं, इसमें मात्र कुछ मिली सेकण्ड का समय लगता है। जल्द ए-3 – ही ऐसीटाइलकोलीनेस्टेरेज (AcetyIcholinesterase) प्रकीण्व ऊतक में बनता है, जो ऐसीटाइलकोलीन को चित्र-युग्मानुबन्ध में आवेग के संचरण की कार्यिकी (चित्रात्मक) कोलीन और ऐसीटेट में विघटित कर देता है, इसी कारण प्रेरणा का संचारण केवल एक दिशा में होकर रह जाता है। ऐसीटाइलकोलीन के ही समान कुछ अन्य तंत्रिकीय संचारी पदार्थ तंत्रिका तंत्र में पाये जाते हैं जैसे-सीरोटोनिन (Serotonin), सिम्पैथिन (Sympathin), डोपामीन (Dopamine), तथा नॉरएपिनेफ्रिन (Nor-epinephrine) या नॉर-ऐडीनेलीन, ये युग्मानुबन्ध में प्रेरणाओं का संचारण करते हैं। (2) देखने की प्रक्रिया-नेत्र की कार्यविधि एवं समंजन क्षमता: नेत्र गोलक का लेन्स कैमरे के लेन्स के समान कार्य करता है जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से आकर एक्वियस ह्यूमर, तारा विट्रियस ह्यूमर से होते हुए रेटिना पर पड़ती हैं, तो सामने की वस्तु का एक उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है जिससे रेटिना की संवेदी कोशिकाएँ उद्दीप्त हो जाती हैं तथा इस उद्दीपन को दृष्टि तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा देती हैं, जो इस प्रतिबिम्ब को सीधा करके देखता है। मनुष्य तथा अन्य स्तनी आँख के लेंस को सिलियरी काय में उपस्थित पेशियों और निलम्बन तन्तुओं के द्वारा छोटा-बड़ा कर सकते हैं। लेन्स के इसी गुण के कारण स्तनी जन्तु नजदीक तथा दूर की वस्तुओं को साफसाफ आसानी से देख सकते हैं। जब स्तनियों को दूर की वस्तु को देखना होता है तब सिलियरी काय की पेशियाँ शिथिलन अवस्था में आ जाती हैं, फलतः निलम्बन तन्तु खिंच जाते हैं, फलतः लेंस भी खिंचकर चपटा हो जाता है और इसकी फोकस दूरी (Focal length) बढ़ जाती है और आँख दूर की वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। नजदीक की वस्तुओं को देखते समय सिलियरी काय की पेशियाँ संकुचित होती हैं, जिसमें निलम्बन तन्तु ढीले पड़ जाते हैं। फलतः लेंस अधिक उत्तल हो जाता है और इसकी फोकस दूरी घट जाती है जिससे इस अवस्था में भी आँख वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। जन्तुओं द्वारा आँख के लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन लाकर दूर तथा नजदीक की वस्तुओं को देखने की क्षमता को समंजन क्षमता (Accommodation power) तथा इस क्रिया को समायोजन या समंजन (Accommodation) कहते हैं। मनुष्य के आँख की समंजन क्षमता बहुत अधिक होती है। (3) श्रवण की प्रक्रिया-श्रवण या सुनना (Hearing): इसी प्रकार कुछ कम्पन फेनेस्ट्रा रोटेण्डा द्वारा स्केला टिम्पैनाई के पेरिलिम्फ में पहुँचते हैं। इन दोनों नलियों के द्रव में होने वाले कम्पनों के कारण रीजनर्स तथा बेसीलर्स झिल्लियों के साथ स्केला मीडिया का इण्डोलिम्फ भी कम्पित होने लगता है, जिसके कारण कॉरटाई अंग की संवेदी कोशिकाओं के रोम बार-बार टैक्टोरियल झिल्ली को छूने लगते हैं, जिससे ध्वनि का एक आवेग बनता है, जो कॉरटाई अंग की संवेदी तंत्रिकाओं की शाखाओं द्वारा श्रवण तंत्रिका को पहुंचा दिया जाता है, जो इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहुँचा देती है और जन्तुओं को आवाज का अनुभव होता है। प्रश्न 7.
उत्तर: विभिन्न प्रकार के शंकुओं और उनके प्रकाश वर्णकों के मेल से अलग-अलग रंगों के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है। जब इन शंकुओं को समान मात्रा में उत्तेजित किया जाता है, तो सफेद रंग के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है। (2) सन्तुलन (Balancing): (3) देखने की प्रक्रिया-नेत्र की कार्यविधि एवं समंजन क्षमता: नेत्र गोलक का लेन्स कैमरे के लेन्स के समान कार्य करता है जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से आकर एक्वियस ह्यूमर, तारा विट्रियस ह्यूमर से होते हुए रेटिना पर पड़ती हैं, तो सामने की वस्तु का एक उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है जिससे रेटिना की संवेदी कोशिकाएँ उद्दीप्त हो जाती हैं तथा इस उद्दीपन को दृष्टि तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा देती हैं, जो इस प्रतिबिम्ब को सीधा करके देखता है। मनुष्य तथा अन्य स्तनी आँख के लेंस को सिलियरी काय में उपस्थित पेशियों और निलम्बन तन्तुओं के द्वारा छोटा-बड़ा कर सकते हैं। लेन्स के इसी गुण के कारण स्तनी जन्तु नजदीक तथा दूर की वस्तुओं को साफसाफ आसानी से देख सकते हैं। जब स्तनियों को दूर की वस्तु को देखना होता है तब सिलियरी काय की पेशियाँ शिथिलन अवस्था में आ जाती हैं, फलतः निलम्बन तन्तु खिंच जाते हैं, फलतः लेंस भी खिंचकर चपटा हो जाता है और इसकी फोकस दूरी (Focal length) बढ़ जाती है और आँख दूर की वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। नजदीक की वस्तुओं को देखते समय सिलियरी काय की पेशियाँ संकुचित होती हैं, जिसमें निलम्बन तन्तु ढीले पड़ जाते हैं। फलतः लेंस अधिक उत्तल हो जाता है और इसकी फोकस दूरी घट जाती है जिससे इस अवस्था में भी आँख वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। जन्तुओं द्वारा आँख के लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन लाकर दूर तथा नजदीक की वस्तुओं को देखने की क्षमता को समंजन क्षमता (Accommodation power) तथा इस क्रिया को समायोजन या समंजन (Accommodation) कहते हैं। मनुष्य के आँख की समंजन क्षमता बहुत अधिक होती है। प्रश्न 8. (1) सक्रिय विभव उत्पन्न करने में Na+ की भूमिका का वर्णन कीजिए। बाह्य तथा आंतरिक परिवर्तनों या उद्दीपनों (Stimuli) का अनुभव संवेदी अंगों द्वारा किया जाता है। इन अंगों की कोशिकाएँ, जो कि संवेदी प्रकृति की होती है, उद्दीपनों को ग्रहण करके उत्तेजित हो जाती हैं और इस उद्दीपन को तन्त्रिका तन्तु में पहुँचा देती हैं, इसी तंत्रिका (Resting form) तन्तु के उद्दीपन को तंत्रिकीय आवेग या प्रेरणा संवेग (Impulse) कहते हैं। तंत्रिका तन्तु संवेदी (Resting region) अंगों को तंत्रिका तंत्र से जोड़ते हैं और इन आवेगों को विद्युत्-रासायनिक प्रेरणा या तरंगों (Electro chemical impulse or waves) के रूप में तंत्रिका तंत्र को पहुँचा देते हैं। युग्मानुबन्ध (Synapsis) पर आवेगों का संचरण कुछ रासायनिक क्रियाओं और पदार्थों द्वारा नियन्त्रित होता है। तंत्रिकीय आवेगों का संचरण: तंत्रिका कोशिकाओं के चारों तरफ अन्तराली द्रव (Interstitial fluid) नामक द्रव भरा होता है, जिसमें सोडियम (Na’) तथा पोटैशियम (K’) आयन घुले रहते हैं। सामान्य या विश्रामावस्था में तंत्रिका कोशिका का ऐक्सॉन पोटैशियम आयन के लिए Na’ आयन की अपेक्षा 30 गुना अधिक पारगम्य होता है, जिसके परिणामस्वरूप Na’ झिल्ली के बाहर अधिक और अंदर कम सान्द्रता में पाया जाता है। बाह्य सतह पर सोडियम आयन की उपस्थिति के कारण यह धनात्मक आवेश युक्त होती है, जबकि आन्तरिक सतह कार्बनिक मूलकों के कारण ऋणात्मक होती है। इस अवस्था में झिल्ली – (i) ध्रुवीय अवस्था (Polarized) में कही जाती है और इस समय इसका सुप्त विभव 70 mg होता है। जब तक तंत्रिका तन्तु विश्रामावस्था में रहता है दो आयनों की संख्या सन्तुलित रहती है, लेकिन जैसे V ही कोई उद्दीपन आवेग के रूप में ग्रहण किया जाता है, वैसे ही उद्दीपन के स्थान का आयनिक सन्तुलन बिगड़ जाता है, इस अवस्था को स्थानीय उत्तेजनशील अवस्था (Local excitatory state) कहते हैं । इस अवस्था में झिल्ली में (ii) निधुवण (Depolarization) हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप उत्तेजित आवेग की एक लहर तंत्रिका तन्तु पर क्रम से फैलती जाती है, तंत्रिका तन्तु की इस अवस्था को सक्रिय अवस्था कहते हैं। तंत्रिका तन्तु की सक्रिय अवस्था में पोटैशियम आयन विसरित होकर ऐक्सॉन से बाहर तथा सोडियम आयन अंदर आ जाता है। इस विसरण में सोडियम आयनों के अंदर आने की संख्या पोटैशियम आयनों के बाहर जाने के अनुपात में ज्यादा होती है। इस घटना के कारण ऐक्सॉन की झिल्ली की सतहों पर आयनों की प्रकृति बदल जाती है। दूसरे शब्दों में, बाहरी सतह पर ऋण तथा आन्तरिक सतह पर धन आयन आ जाते हैं। ये विद्युत्-रासायनिक ऐक्सॉन के द्वारा युग्मानुबन्ध (Synapse) पर पहुँच जाते हैं और वहाँ से इसे पार कर दूसरे न्यूरॉन के डेण्ड्राइट में पहुँच जाते हैं। इसके बाद पुनर्स्थापन अवस्था (Recovery phase) आती है, जिसमें फिर से ऐक्सॉन की बाहरी सतह पर धन आयन सोडियम आयन के झिल्ली से बाहर आने के कारण स्थापित हो जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के लिए कुछ समय की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें तंत्रिका फिर से उत्तेजना को ग्रहण नहीं कर सकती, इस समय को रिफ्रैक्टरी काल (Refractory period) कहते हैं, जो 1/1000 सेकण्ड के बराबर होता है। (2) सिनेप्स पर न्यूरोट्रांसमीटर मुक्त करने में Ca+ की भूमिका का वर्णन कीजिए। (1) सिनैप्टिक संचरण की क्रियाविधि: युग्मानुबन्ध बनाने वाले तंत्रिका तन्तु आपस में चिपके न होकर थोड़ा दूर – दूर स्थित होते हैं और इनके सिरे पर युग्मानुबन्ध घुण्डियाँ (Synaptic knobs) पायी जाती हैं, जिनके नीचे विशेष प्रकार की युग्मानुबन्ध थैलियाँ (Synaptic vesicles) स्थित होती हैं, जिसमें ऐसीटाइलकोलीन (Acetylcholines) नामक रासायनिक पदार्थ भरा रहता है, जो कि रासायनिक संचारी (Chemical transmitter) के समान आवेग को युग्मानुबन्ध पर पहुँचा देता है, इसीलिए इसे तंत्रिका संचारी (Neurohumor) भी कहते हैं। जिस समय प्रेरणा ऐक्सॉन से होकर युग्मानुबन्ध घुण्डियों में पहुँचती हैं, Ca+ ऊतक द्रव्य से घुण्डियों में पहुँचते हैं, जिसके प्रभाव से ऐसीटाइलकोलीन मुक्त होकर पश्च युग्मानुबन्ध न्यूरॉन की कला की पारगम्यता को प्रभावित कर देता है। फलत: फिर से विद्युत् – तरंगें पैदा हो जाती हैं, इसमें मात्र कुछ मिली सेकण्ड का समय लगता है। जल्द ए-3 – ही ऐसीटाइलकोलीनेस्टेरेज (AcetyIcholinesterase) प्रकीण्व ऊतक में बनता है, जो ऐसीटाइलकोलीन को चित्र-युग्मानुबन्ध में आवेग के संचरण की कार्यिकी (चित्रात्मक) कोलीन और ऐसीटेट में विघटित कर देता है, इसी कारण प्रेरणा का संचारण केवल एक दिशा में होकर रह जाता है। ऐसीटाइलकोलीन के ही समान कुछ अन्य तंत्रिकीय संचारी पदार्थ तंत्रिका तंत्र में पाये जाते हैं जैसे-सीरोटोनिन (Serotonin), सिम्पैथिन (Sympathin), डोपामीन (Dopamine), तथा नॉरएपिनेफ्रिन (Nor-epinephrine) या नॉर-ऐडीनेलीन, ये युग्मानुबन्ध में प्रेरणाओं का संचारण करते हैं। (3) रेटिना पर प्रकाश द्वारा आवेग उत्पन्न करने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए। सबसे पहले आँख से संबंधित पेशियाँ आँख को देखी जाने वाली वस्तु की दिशा में लाती हैं। मनुष्य की आँख का आइरिस कैमरे के डायफ्राम का कार्य करता है और तारे को छोटा – बड़ा करके प्रकाश की उचित मात्रा को ही नेत्रगोलक में जाने देता है। नेत्र गोलक का लेन्स कैमरे के लेन्स के समान कार्य करता है जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से आकर एक्वियस ह्यूमर, तारा विट्रियस ह्यूमर से होते हुए रेटिना पर पड़ती हैं, तो सामने की वस्तु का एक उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है जिससे रेटिना की संवेदी कोशिकाएँ उद्दीप्त हो जाती हैं तथा इस उद्दीपन को दृष्टि तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा देती हैं, जो इस प्रतिबिम्ब को सीधा करके देखता है। मनुष्य तथा अन्य स्तनी आँख के लेंस को सिलियरी काय में उपस्थित पेशियों और निलम्बन तन्तुओं के द्वारा छोटा-बड़ा कर सकते हैं। लेन्स के इसी गुण के कारण स्तनी जन्तु नजदीक तथा दूर की वस्तुओं को साफसाफ आसानी से देख सकते हैं। जब स्तनियों को दूर की वस्तु को देखना होता है तब सिलियरी काय की पेशियाँ शिथिलन अवस्था में आ जाती हैं, फलतः निलम्बन तन्तु खिंच जाते हैं, फलतः लेंस भी खिंचकर चपटा हो जाता है और इसकी फोकस दूरी (Focal length) बढ़ जाती है और आँख दूर की वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। नजदीक की वस्तुओं को देखते समय सिलियरी काय की पेशियाँ संकुचित होती हैं, जिसमें निलम्बन तन्तु ढीले पड़ जाते हैं। फलतः लेंस अधिक उत्तल हो जाता है और इसकी फोकस दूरी घट जाती है जिससे इस अवस्था में भी आँख वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। जन्तुओं द्वारा आँख के लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन लाकर दूर तथा नजदीक की वस्तुओं को देखने की क्षमता को समंजन क्षमता (Accommodation power) तथा इस क्रिया को समायोजन या समंजन (Accommodation) कहते हैं। मनुष्य के आँख की समंजन क्षमता बहुत अधिक होती है। (4) श्रवण की प्रक्रिया-श्रवण या सुनना (Hearing): इसी प्रकार कुछ कम्पन फेनेस्ट्रा रोटेण्डा द्वारा स्केला टिम्पैनाई के पेरिलिम्फ में पहुँचते हैं। इन दोनों नलियों के द्रव में होने वाले कम्पनों के कारण रीजनर्स तथा बेसीलर्स झिल्लियों के साथ स्केला मीडिया का इण्डोलिम्फ भी कम्पित होने लगता है, जिसके कारण कॉरटाई अंग की संवेदी कोशिकाओं के रोम बार-बार टैक्टोरियल झिल्ली को छूने लगते हैं, जिससे ध्वनि का एक आवेग बनता है, जो कॉरटाई अंग की संवेदी तंत्रिकाओं की शाखाओं द्वारा श्रवण तंत्रिका को पहुंचा दिया जाता है, जो इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहुँचा देती है और जन्तुओं को आवाज का अनुभव होता है। प्रश्न 9.
अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष (Non-myelinated axon):
(2) दुम्राक्ष्य और तंत्रिकाक्ष में अंतर – तंत्रिकाक्ष (Axon): शलाका एवं शंकु में अंतर –
शंकु (Cone):
(4) थैलेमस और हाइपोथैलेमस में अंतर –
हाइपोथैलेमस (Hypothalamus):
(5) प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क में अंतर –
अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम (Cerebellum):
प्रश्न 10.
उत्तर:
प्रश्न 11. प्रश्न 12. संवेदी तंत्रिका(Afferent Neurons): प्रेरक तंत्रिका (Efferent Neurons): (2) आच्छादित एवं अनाच्छादित तंत्रिका तन्तु में आवेग का संचरण – अनाच्छादित तंत्रिका तन्तु में आवेग का संचरण (Impulse conduction in Non-myelinated sheath) (3) एक्विअस ह्यूमर ( नेत्रोद) एवं विट्रियस ह्यूमर (काँचाभ द्रव) में अंतर – नेत्रोद(Aqueous humor):
काँचाभ द्रव (Vitreous humor):
(4) पीत बिन्दु एवं अन्ध बिन्दु में अंतर –
अन्ध बिन्दु (Blind spot):
(5) कपालीय तंत्रिकाएँ एवं मेरु तंत्रिकाएँ में अंतर –
मेरु तंत्रिकाएँ (Spinal nerves):
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरतंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. 2. तीसरा वेण्ट्रिकिल उपस्थित होता है – 3. डायफ्राम से सम्बन्धित तन्त्रिका है – 4. सबसे बड़ी कपाल तन्त्रिका है – 5. कान का पर्दा कहा जाता है – 6. लेक्राइमल ग्रन्थियों का कार्य है – 7. यदि हृदय को जाने वाली परानुकम्पी तन्त्रिका काट दी जाये तो हृदय धड़कन 8. स्तनी मस्तिष्क का कौन-सा भाग पेशीय समन्वय को नियमित करता है – 9. पार्श्व वे वेण्ट्रिकिल्स पाये जाते हैं – 10. तन्त्रिकीय आवेग का रासायनिक संचरण एक तन्त्रिका कोशिका से दूसरी में या तन्त्रिका कोशिका से पेशी को होता है – 11. सन्तुलन बनाये रखने की संवेदना का कार्य कान का कौन-सा भाग करता है – 12. तंत्रिका आवेग किसकी गति के साथ आरंभ होता है – 13. मायलीन शीथ ढंके रहती है – 14. निम्न में से न्यूरॉन का कौन सा भाग वसीय आवरण द्वारा ढंका रहता है – प्रश्न 2.
उत्तर:
प्रश्न 3. उत्तर:
उत्तर:
प्रश्न 4.
उत्तर:
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. ऐक्सॉन्स (Axons) क्या हैं ? प्रश्न 5. (ii) विट्रियस काँचाभ (Vitreous humor): प्रश्न 6.
उत्तर:
प्रश्न 7. प्रश्न 8.
प्रश्न 9.
उत्तर:
प्रश्न 10. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. निकटदर्शिता दोष (Myopia): प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8.
प्रश्न 9.
प्रश्न 10.
प्रश्न 11. भीतरी स्तर Gray matter व बाहरी स्तर White matter कहलाता है। धूसर पदार्थ पृष्ठ व प्रतिपृष्ठ किनारों को क्रमश: Dorsal and ventral horns कहते हैं। यह मस्तिष्क का पिछला हिस्सा है जो पतली रस्सी के समान कशेरुक दंड के अंतिम सिरे तक फैला रहता है। कार्य:
प्रश्न 12.
उत्तर:
दूर दृष्टि (Long sight):
(ii) एण्डोलिम्फ एवं पेरिलिम्फ में अंतर – एण्डोलिम्फ (Endolymph): पेरिलिम्फ (Perilymph): तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1.
परानुकंपी तंत्रिका के कार्य:
प्रश्न 2.
उत्तर:
प्रश्न 3.
(2) मध्य मस्तिष्क –
(3) पश्च मस्तिष्क –
कार्य:
(2) डायनसेफेलॉन के कार्य –
(3) सेरिब्रल पिंडक के कार्य-ये प्रमस्तिष्क के चालक आवेगों को पादों की पेशियों तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। (4) कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमिना के कार्य-ये दृष्टि व घ्राण प्रतिवर्ती के केन्द्र हैं। (5) सेरीबेलम के कार्य-यह कंकाल पेशियों के आकुंचन एवं समन्वय का नियमन करता है।
(6) पॉन्स वैरोलाई के कार्य-शरीर के दोनों पार्यों की पेशियों की गतियों में समन्वय बनाता है। (7) मेड्यूला आब्लांगेटा के कार्य –
प्रश्न 4.
ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण मस्तिष्क एवं अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण मेरुरज्जु (Spinal Cord) के द्वारा होता है। प्रतिवर्ती क्रिया एक प्रकार की अनैच्छिक क्रिया है, जो हमारे शरीर में किसी क्रिया के विपरीत होती है। यह दो प्रकार की होती हैं – (1) अनुबंधी प्रतिवर्ती क्रिया (Conditional reflex actions): (2) आबन्धित प्रतिवर्ती क्रिया (Unconditional reflex action): प्रतिवर्ती क्रियाविधि (Mechanism of reflex action): इस प्रकार संवेदना मेरुरज्जु में पहुँचने के पश्चात् तुरन्त चालक तंत्रिकाओं द्वारा वापस कर दी जाती है, उसे प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) कहते हैं। प्रतिवर्ती क्रिया के पूर्ण पथ को प्रतिवर्ती चाप (Reflex arch) कहते हैं। प्रतिवर्ती क्रियाओं के मुख्य उदाहरण निम्नलिखित हैं –
प्रतिवर्ती क्रिया में संवेदना पृष्ठ मूल से होकर मेरुरज्जु में एवं मेरुरज्जु के अधर मूल से संवेदना प्रभावी अंगों में पहुँचती है। प्रतिवर्ती क्रिया एक महत्वपूर्ण क्रिया है, जो बाहरी आघातों एवं दुर्घटनाओं से शरीर की रक्षा करती है। शरीर के भीतर होने वाली क्रियाओं का नियंत्रण मेरुरज्जु द्वारा होता है। संवेदी तथा पेशीय तंत्रिकाओं को कौन तंत्रिका जोड़ता है?3. संयोजी तंत्रिका कोशिकाएं (Connecting neurons ) : मस्तिस्क में स्थित होती हैं जो संवेदी तथा प्रेरक तंत्रिका कोशिकाओं को जोड़ती हैं।
कौन सा न्यूरॉन संवेदी और मोटर न्यूरॉन्स को जोड़ता है?संवेदी न्यूरॉन्स रीढ़ की हड्डी में स्थित एक रिले न्यूरॉन को विद्युत संवेग भेजते हैं। रिले न्यूरॉन्स संवेदी न्यूरॉन्स को मोटर न्यूरॉन्स से जोड़ते हैं।
संवेदी तंत्रिका को क्या कहते हैं?Solution : संवेदी तंत्रिका तंत्र-वे तंत्रिका तंत्र जो शरीर के विभिन्न भागों से सूचना मस्तिष्क अथवा मेरुरज्जु तक ले जाते हैं उन्हें संवेदी तंत्रिका तंत्र कहते हैं।
संवेदी तथा प्रेरक तंत्रिका क्या है उनके कार्य लिखिए?Solution : वैसी तंत्रिका जो ग्राही अंग से आवेग ग्रहण कर उसे विद्युत संकेत में बदल देता है , संवेदी तंत्रिका कहलाता है । वैसी तंत्रिका जो मेरुरज्जु या मस्तिष्क से प्राप्त निर्देश को सम्बंधित अंगो की कोशिकाओं या ग्रंथियों तक पहुँचाता है , प्रेरक तंत्रिका कहलाती है।
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