Maulik kartavya मूल या मौलिक कर्तव्य : प्रिय पाठकों! आज हम लेख के माध्यम से भारतीय संविधान के ' भाग IV क ' ' अनुच्छेद 51 क ' शामिल मूल कर्तव्य की चर्चा करेंगे। इसलिए के द्वारा हम जानेंगे आखिर मूल या मौलिक कर्तव्य की जरूरत क्यों पड़ी? | भारतीय नागरिकों के लिए मूल या मौलिक कर्तव्य कितने है ? | मौलिक कर्तव्य की परिभाषा एवं विशेषताएं |
साथ ही साथ आप इस लेख का मूल अथवा मौलिक का PDF भी डाउनलोड कर सकेंगे | यदि मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मूल या मौलिक कर्तव्य ना जुड़े हो तो मौलिक अधिकार का कोई महत्व नहीं रह जाता यदि एक नागरिक के रूप में कर्तव्यों का निर्वाह नहीं कर सकते तो अन्य लोग
अपने अधिकारों का आनंद नहीं ले सकते । इतना ही नहीं बल्कि राज्य भी हमारी रक्षा करने के लिए और हमारी आवश्यकता हो जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, मकान, पानी इत्यादि को पूरा करने के लिए अपने दायित्वों का ठीक ढंग से पालन नहीं कर सकेगा। इसीलिए भारतीय चिंतकों ने यह महसूस किया कि भारत के संविधान में मूल या मौलिक कर्तव्य को शामिल किया जाना चाहिए।
मूल या मौलिक कर्तव्यों कितने हैं? maulik kartavya kitne hainभारतीय नागरिकों के लिए 11 मूल अथवा मौलिक कर्तव्य की सूची इस प्रकार हैं :-
मूल या मौलिक कर्तव्य की विशेषताएंmaulik kartavya ki visheshtaen
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इस लेख को दोस्तों में शेयर करें 11 वां मौलिक कर्तव्य कौन सा है?11वां मौलिक कर्तव्य छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे या वार्ड को शिक्षा के अवसर प्रदान करना। यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था।
मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या कितनी है?मूल रूप से संख्या में दस, मूल कर्तव्यों की संख्या 2002 में 86वें संशोधन द्वारा ग्यारह तक बढ़ाई गई थी, जिसमें प्रत्येक माता-पिता या अभिभावक को यह सुनिश्चित करने का कर्तव्य सौंपा गया कि उनके छः से चौदह वर्ष तक के बच्चे या वार्ड को शिक्षा का अवसर प्रदान कर दिया गया है।
11 मूल कर्तव्य कब जोड़ा गया?Notes: संविधान में 11 वां मौलिक कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन 2002 के द्वारा जोड़ा गया।
मौलिक कर्तव्य कितने प्रकार के होते हैं?लेकिन बाद में भारतीय संविधान के 86 वें संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा मूल या मौलिक कर्तव्य में यह जोड़ा गया कि 6 से 14 वर्ष के बालकों के माता-पिता और संरक्षकों का यह कर्तव्य होगा कि वह उन्हें शिक्षा का अवसर प्रदान करें इस तरह से भारतीय संविधान में मूल कर्तव्य की संख्या अब 11 हो गया है।
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