भाषा – जीवन से जुड़ीहम सभी भाषा को शब्दों, वाक्यों और ध्वनियों के व्यवस्थित रूप में पहचान इतने आदि हो गये हैं कि अपने आस- पास बिखरी भाषाओँ के विविध रूपों को पहचनाने और सराहने की ओर जरा – सा भी ध्यान नहीं दे पाते। क्या स्कूल की घंटी या चाट वाले का तवा हमें पुकारता नहीं हैं? किसी अजनबी की आहट से हमारी गली का कुत्ता भौंक कर हमें आगाह नहीं करता? फिर किसी परिचित को देखकर हमारे चेहरे की मुस्कान बहुत कुछ कह कर नहीं जाती? अँधेरे में सोते हुए पांच साल के बच्चे का अपने पास लेते संबंधी को छूकर महसूस करना क्या सुनने की कोशिश नहीं? Show
इन सब उदाहरणों के जरिए हम केवल भाषा के विविध रूपों की ओर इशारा करना चाहते हैं। भाषा अपनी बात कहने और दूसरों की बात समझने के माध्यमों (के समूह) का नाम है और यह जरूरी नहीं की भाषा शाब्दिक ही हो या उसमें ध्वनियाँ ही हों। सभी प्राणियों में अपनी आवश्यकतानुसार एक दुसरे से संप्रेषण करने की जन्मजात योग्यता होती है। मानव उन सबसे इसलिए अलग है, क्योंकि वह भाषा का इस्तेमाल केवल संप्रेषण के लिए ही नहीं बल्कि तर्क, कल्पना, विचार और सृजन के लिए भी करता है। मानव का भाषायी विकास उसके जन्म से ही प्रारंभ हो जाता है और जिन्दगी भर जारी रहता है। इस विकास में उसके विकास में आस – पास के लोग, स्थितियां, परिवेश आदि तो महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उसका स्वयं का योगदान भी कुछ कम नहीं होता इसलिए एक ही माँ की दो संतानों की भाषा इतनी अलग हो पाती है। यह इसलिए कि प्रत्येक मस्तिष्क अपने आस – पास की भाषा को ज्यों का त्यों ग्रहण नहीं कर लेता बल्कि उसे परिवर्धित करके उसमें अपने व्यक्तित्व के रंग भर लेता है। इस प्रकार किसी भी भषा में सामूहिकता के साथ – साथ एक प्रकार के वैयक्तिक विशिष्टता सदैव मौजूद रहती है। विद्यालय के कार्य इन दोनों विशेषताओं के भरपूर विकास के लिए रोचक और सृजनात्मक वातावरण उपलब्ध करवाना है ताकि स्कूल में पढ़ने वले बच्चे किसी फैक्ट्री से निकलने वाले रोबोट न बन जाएँ बल्कि उनमें अपनी व्यक्तिगत विशेषताएं बरक़रार रहें। बच्चे का स्कूल में दाखिला लेना एक बड़ी घटना मानी जाती है – बच्चे के अभिभावकों के लिए भी, बच्चे के लिए भी और शिक्षकों के लिए भी। पर तीनों के लिए कारण अलग – अलग होते हैं। बच्चे के लिए यह घटना इसलिए बड़ी हो सकती है क्योंकि यहाँ उसे नये दोस्त, नए झूले नया मैदान, नये कपड़े और नई चीजें (जिनमें किताबें, कॉपी आदि शामिल हैं) मिलेंगी। अभिभावकों के लिए यह इसलिए बड़ी घटना बन जाती है, क्योंकि संभवत: पहले बार उनकी सन्तान इतने समय तक नियमित रूप से बिना उनके सहारे के रहेगी। शिक्षकों के लिए यह इसलिए बड़ी घटना बन जाती है, क्योंकि उनके सामने एक ऐसा उत्तरदायित्व प्रस्तुत हो जाता है जिसे पढ़ाने – लिखाने की उनसे अपेक्षा की जाती है। यह उत्तरदायित्व और घटना इतनी महत्वपूर्ण बन जाती है कि शिक्षक यह मानने लग जाते हैं कि स्कूल के दरवाजे में घुसने से पहले बच्चे का जीवन सीखने से रहित था या जो कुछ उसने स्कूल की चारदीवारी के बाहर सीखा, उसका स्कूल की पढ़ाई – लिखाई में कुछ खास फायदा नहीं हैं। सब कुछ नये सिरे से शुरू करना पड़ेगा। वास्तविकता कुछ और है। स्कूल की चारदीवारी में दाखिल होने से पहले के पांच सालों में बच्चा अपने परिवेश और घर की भाषाएँ बखूबी आत्मसात कर चुका होता है\ वह अपनी जरूरतों (मुझे भूख लगी है) इच्छाओं (मेरा मन आइसक्रीम खाने का है), कल्पनाओं (कल मैंने शेर देखा था, सच्ची), और राय (ये अच्छा गाना नहीं है) जाहिर करने के लिए हैरान कर देने वाली हद तक भाषा का परिपक्व प्रयोग करता है। चुनौती देने (तूम मेरे जितना दौड़कर दिखाओ), तर्क करने (आप भैया को ज्यादा प्यार करते हो), उदहारण देने (वर्फ कांटे की तरह चुभ रही है), निष्कर्ष निकालने (अंधेरा हो गया, रात हो गई) आदि के लिए भी भाषा का ठीक उसी तरह उपयोग करते हैं जिस तरह बड़े करते हैं, बस दोनों के शब्द नये होते हैं, ठीक उसी तरह बड़ों के लिए भी बच्चों के संसार के काई शब्द नए होते हैं। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि बच्चों के पास स्कूल आने से पहले ही अच्छा - खासा भाषायी खजाना मौजूद होता है जिसे बच्चा अपनी समझ और अनुभवों के आधार पर सृजित करता है। अब चुनौती इस बात की है कि स्कूल में कैसे इस खजाने को पहचाना, निखारा और संवारा जाए। इन काम में आपकी सहायता करेगा सतत और समग्र आकलन। भाषा की कक्षा और आकलनभाषा की कक्षा में आकलन के उद्देश्य हैं – भाषा की समझ, इसे विभिन्न संदर्भों में उपयोग करने की क्षमता और सौंदर्यपरक पहलू परख सकने की क्षमता का मापन। आकलन सीखने – सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। इसलिए यह आकलन करने से पहले कि बच्चे ने किसी कौशल को प्राप्त किया है या नहीं यह जरूर सोच लें कि अपने उस कौशल को प्राप्त करने के लिए बच्चे को बार – बार अलग तरह के अवसर दिया है या नहीं। यहाँ पर पहली से पांचवीं तक की कक्षाओं के लिए आकलन के कुछ मूलभूत बिन्दु (संकेतक) आपकी सुविधा के लिए दिया जा रहे हैं जिनमें बच्चे की जरूरत के अनुसार बदलाव किया जा सकता है। आकलन के बिन्दु (संकेतक)
सीखना-सिखाना और आकलन उदाहरण – 1 आम की टोकरी (कविता) यह कविता पहली कक्षा की पाठ्यपुस्तक रिमझिम – 1 से ली गई है। इस कविता में एक लड़की आम बेचने का अभिनय कर रही है। आम की टोकरी छह साल की छोकरी, भरकर लाई टोकरी। टोकरी में आम हैं, नहीं बताती दाम है। दिखा – दिखाकर टोकरी, हमें बुलाती छोकरी। हमको देती आम है, नहीं बताती नाम है। नाम नहीं अब पूछना, हमें आम है चूसना। सीखने –सिखाने के बिन्दु। इस कविता के माध्यम से बच्चों में निम्न कौशलों का विकास करना है –
सीखने – सिखाने की प्रक्रिया – बातचीत शिक्षिका ने रोज की तरह कक्षा में जाने के बाद बच्चों से बातचीत शुरू कर दी। बातों ही बातों में उन्होंने पूछा- आज सुबह नाश्ते में क्या खाकर आए हो? बच्चों ने तरह – तरह की चीजों बतानी शुरू की। बच्चे बताते जाते और शिक्षिका ब्लैक बोर्ड पर लिखती जाती। उन्होंने काई चीजों लिखी – रोटी, परांठा, दलिया, ब्रेड, केला, बिस्किट, सेब। राजू बोला – मैंने कुछ नहीं खाया। शिक्षिका ने पूछा – क्यों? वह बोला – माँ को तेज बुखार था। तभी गोकुल ने अपने बस्ते से केला निकाला – लो इसे खा लो। शिक्षिका ने बच्चों को ब्लैकबोर्ड पर लिखी चीजें दिखाते हुए पूछा – अब बताओ, इनमेंसे तुम्हरी वाली चीजें कहाँ लिखी है। बच्चों ने अंदाजे से बताना शुरू किया। फिर शिक्षिका ने सभी चीजों के नाम पढ़ने के बाद पूछा – इनमें से फल कौन – कौन से हैं? मिली ने कहा – केला और सेब। शिक्षिका ने केला और सेव के नीचे लाइन खिंचा कर पुछा – और कौन – कौन से फल तुमने खाए हैं? बच्चों ने फलों के नाम बताने शुरू किए – आम, पपीता, तरबूज, संतरा, खरबूजा। उमेश बोला – मुझे आम बहुत अच्छा लगता है। मीठा – मीठा। सुहास बोला – मुझे तो कच्चा आम बहुत अच्छा लगता है। शिक्षिका बोली – किस – किसको आम अच्छा लगता है। कक्षा के कई बच्चों ने हाथ उठा लिए। शिक्षिका ने पूछा – आम को तूम अपने घर की बोली में क्या कहते हो? बच्चों ने बड़े उत्साह से बताना शुरू किया। बच्चे बताते जाते टीचर ब्लैकबोर्ड पर लिखती जाती। तब शिक्षिका बोली – मुझे भी आम बहुत अच्छा लगता है। आज हम आम के बारे में एक कविता पढेंगे – आम की टोकरी। इस प्रकार शिक्षिका ने बच्चों से बातचीत करते हुए कक्षा का वातावरण सहज बनाया। उन्होंने बच्चों को अनुमान लगाकर पढ़ने का अवसर दिया। उनकी पसंद के फलों के सीखने – सिखाने के दौरान आकलन बातचीत के दौरान शिक्षिका बच्चों का अवलोकन भी करती गई। उन्होंने देखा कि – 1. गीता, उमेश, सुहास और मिली उत्साह से बातचीत में भाग लेते हैं। 2. गोकूल बहुत संवेदनशील है। उसने अपने बस्ते से केला निकालकर राजू को दिया। 3. गीता, उमेश, सुहास, मिली, गोकुल, जया ब्लैकबोर्ड पर लिखी अपनी बताई खाने की चीजों को सही बता पाए। कक्षा में लगभग सभी बच्चे अनुमान लगाकर पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। 4. अपनी पसंद/नपसंद की चीजों बताने में सभी बच्चों ने बढ़ – चढ़कर भाग़ लिया। मीनल पहले चुपचाप बैठी थी। पर जब घर की बोली में आम बताने को कहा तथा तब सबसे पहले वही बोली। अपने घर की बोली में आम शब्द बताने में सभी बच्चों ने उत्साह दिखाया। *राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा – 2005 में भाषा शिक्षण के दौरान बहुभाषितकता को एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करने की सिफारिश की गई है। बारे में बातचीत की। उन्हें अपनी घर की बोली में बातचीत करने का अवसर दिया ताकि कक्षा का हर बच्चा बिना झिझक के सीखने की प्रक्रिया में भाग ले सके। कविता सुनना – सुनाना शिक्षिका ने उचित सुर, ताल और लय के साथ कविता सुनाई। सुनाते समय उन्होंने देखा कि कविता सुनने में बच्चे आनंद ले रहे थे। शिक्षिका भी कविता का भरपूर आनंद ले रही थी। इसके बाद शिक्षिका ने बच्चों से कहा – मैं कविता की एक - एक पंक्ति पढूँगी, तुम मेरे बाद दोहराना। बच्चे ने वैसा ही किया। फिर शिक्षिका ने कहा – मैं एक पंक्ति पढूँगी, तूम अगली पंक्ति। कविता की पंक्तियाँ पढ़ने के कार्य सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों तरह से कराया गया। सीखने – सिखाने के दौरान आकलन शिक्षिका ने देखा कि – 1. वैशाली को छोड़कर सभी बच्चों ने कविता का भरपूर आनंद लिया। उन्होंने वैशाली से बात की तो मालूम हुआ कि वैशाली से बात की तो मालूम हुआ कि वैशाली के पेट में दर्द हो रहा है। 2. तीन – चार बार कविता दोहराने से लगभग सभी बच्चों को कविता याद हो गयी थी। जब बच्चों से पढ़ने को कहा गया तो उन्होंने पढ़ने की कोशिश की। 3. जया, गोपी और मोना, व्यक्तिगत रूप से कविता नहीं पढ़ सके। जिन बच्चों को कविता याद नहीं हुई और जो बच्चे व्यक्तिगत रूप से कविता नहीं पढ़ सके, शिक्षिका ने उन बच्चों को डांटा – फटकारा नहीं, उन्होंने ऐसे बच्चों को उन बच्चों के साथ जोड़े में रखकर कविता दोहराने तथा पढ़ने का अवसर दिया, जिन बच्चों को कविता याद हो गई थी तथा व्यक्तिगत रूप से पढ़ सके थे। कविता पर बातचीत कविता सुनाने – दोहराने के आड़ शिक्षिका ने कविता पर बातचीत की ताकि बच्चों को कविता समझने में मदद मिले। बातचीत के दौरान बिन्दु रहे –
शिक्षिका ने ब्लैकबोर्ड पर तालिका बनाई
इसके बाद बच्चों से पूछा – अब बताओ, कौन से फल काटकर खाए जा सकते हैं, कौन – से चूसकर और कौन से छीलकर? बच्चे जवाब देते जाते, शिक्षिका फल का नाम लिखती जाती और तालिका में बच्चों को बुलाकर सही लगवाती। बच्चों ने इस गतिविधि में भी उत्साह से भाग लिया। वे अपनी बारी आने पर ब्लैक बोर्ड के पास आते और उनसे पहले यदि किसी बच्चे ने गलत कॉलम में सही का निशान लगाया है तो पहले उसे ठीक करते फिर आगे बढ़ते। कक्षा में एक बच्ची देख नहीं सकती थी, शिक्षिका ने उसे बोलकर गतिविधि में भाग लेने का अवसर दिया। सीखने सिखाने के दौरान आकलन शिक्षिका ने देखा कि – 1. गोकुल ने कहा – यदि मुझे टोकरी भर आम मिल जाएँ तो मैं सारे बच्चों को बाँट दूंगा। 2. प्रश्नों के उत्तर अनूठी कल्पना से भरे थे। सोनू बोला – आम फलों का रजा है तो अंगूर सैनिक हैं, क्योंकि वे संख्या में अधिक होते हैं। 3. जया बोली – आम बहुत मीठा होता है। इसकी खुशबू भी अच्छी होती है, इसीलिए फलों का राजा है और कच्चा आम राजकुमार है। 4. शांभवी ने कन्नड़ में कहा – ननगे बालेह्न्नू तूम्बा इष्टा मुझे केला बहुत अच्छा लगता है) अब उसकी झिझक धीरे – धीरे खुल रही है। 5. गोकुल ने केले के आगे तीनों ही कॉलम में सही निशान लगाया था। जया ने पहले केले के आगे चूसकर कॉलम के अंतर्गत लगाए सही के निशान को मिटाया। फिर उसे आम को आगे तीनों ही कॉलम में सही का निशा लगाया। इसी तरह से गौरी ने भी सौरभ द्वारा अमरुद के आगे छीलकर कॉलम में लगाए सही के निशान को मिटाकर ठीक किया। शिक्षिका ने गौर किया कि बच्चे आपस में एक - दुसरे के सुझावों को बड़ी सहजता के साथ ले रहे थे। अभिनय की बारी शिक्षिका ने कहा – यह लड़की आम बेचने का खेल/अभिनय कर रही है। चलो, हम भी कुछ इसी तरह के खेल/अभिनय करते हैं। एक बच्चे ने ठेले में केला बेचने का अभिनय किया, अन्य बच्चों ने केले के दाम केले खरीदने का अभिनय किया आओ लिखें और गिनें
सीखने – सिखाने के दौरान आकलन शिक्षिका ने देखा कि – 1. गोपाल ने ठेलेवाला बनकर केले बेचे। 2. सूरज, अरूण, आयशा, रीना ने केले के दाम पूछे। 3. रीमा चुपचाप बैठी थी। गोपाल उसके पास गया – केले लेना है। रीमा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा – हैं। रीमा की झिझक कुछ टूटी। 4. शांभवी ने पूछा – एक केला कितने की है? तो सूरज ने तुरंत ठीक किया – शांभवी केला कितने की नहीं, कितने का है ऐसे पूछो।
भाषा की पढ़ाई या भाषा का सीखना केवल भाषा की कक्षा तक सीमित नहीं रहता इसलिए भाषा के पाठ को अन्य विषयों से भी जोड़ा जा सकता है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 भी विषयों के बीच जुड़ाव पर बल देती है। सीखने - सिखाने के दौरान आकलन शिक्षिका ने देखा कि – 1. बच्चों ने शब्द छांटे – आम, दाम नाम। 2. गीता ने हमें शब्द भी छांटकर लिखा। 3. सूरज और जया ने आमों की संख्या तो सही गिनी पर नौ के स्थान पर लिखा – नो। 4. शांभवी ने सही गिनती की लेकिन उसने भी लिखते समय लिखा – नव। शिक्षिका ने बच्चों से कहा – आम तो तुम सबको अच्छा लगता है। अब इस मीठे रसीले आम का चित्र अपनी कॉपी में बनाकर उसमें रंग भरो और चित्र को कोई नाम दो। इस गतिविधि में बच्चों ने बहुत आनंद लिया। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में पहली और दूसरी कक्षा में भाषा शिक्षण के दौरान कला शिक्षण की सिफारिश की गई है। सीखने - सिखाने के दौरान आकलन शिक्षिका ने देखा कि – 1. जया ने आम में नीला, गोपाल, गीता और मीना ने पीला, गोकूल, सुहास, उमेश ने हरा रंग भरा। टीचर ने सभी बच्चों के बनाए चित्र की तारीफ़ की। रंग आम से बाहर भी फ़ैल गया तो उसे टोका नहीं। 2. बच्चों ने अपने बनाए आम के चित्र को नाम देने में से बहुत उत्साह दिखाया। उन्होंने नाम दिए – मीठा आम, मेरा आम, बड़ा सा आम, अच्छा आम, मैंगो क्या आप बता सकते/सकती हैं कि इस गतिविधि को कराने का क्या उद्देश्य रहा होगा। इसके आकलन के बिन्दु क्या होंगे? शिक्षिका ने बच्चों द्वारा बनाए चित्रों तथा चित्रों को दिए गये नामों को पोर्टफोलियो पोर्टफोलियों के बारे में आकलन से जुड़े कुछ मुद्दे के बिन्दु – 8 में विस्तार से बताया गया है। कविता बनाओ शिक्षिका ने बच्चों से कहा – अब हम लोग मिलकर कविता बनाते हैं। तूम अपने आप भी कविता लिख सकते हो और किसी के साथ मिलकर भी। कुछ बच्चों ने मिलकर कविता बनाने की इच्छा जाहिर की। शिक्षिका ने बच्चों के समूह बनाए। उन्होंने कविता बनाने में बच्चों की मदद की। बच्चों ने कविताएँ कुछ इस तरह बनाई –
पक्का आम कच्चा आम, देने नहीं पड़ेंगे दाम। सबसे बढ़िया फल है आम, कौन ने जाने इसका नाम।
खा लो काटो छीलो, या दूध का मिल्क शेक पी लो।
सोनू बोली – आम, आम, आम। फिर वह बोली – अबे आगे नहीं आता।
सीखने – सिखाने के दौरान आकलनशिक्षिका ने देखा कि – 1. जया ने सबसे पहले कविता बनाई। 2. गोपाल और मीना ने मिलकर कविता बनाई। 3. सूरज ने कविता की एक पंक्ति बोली रीना ने कविता को आगे बढ़ाया। 4. सुहास की बनाई कविता में तीन ने एक और पंक्ति जोड़ दी। 5. सोनू ने कविता बनाने की कोशिश की पर एक ही पंक्ति बना सकी। टीचर ने बच्चों द्वारा लिखी कविताओं को उनके पोर्टफोलियों में रखा। उन्होंने यह भी नोट किया कि मिलकर कविता बनाते समय कौन – कौन से बच्चे बढ़ – चढ़ कर भाग ले रहे थे, आपस में एक – दुसरे के विचारों को सून रहे थे, कविता सुनाने, में किसने उत्साह दिखाया। मालूम करो इसके बाद शिक्षिका ने बच्चों से बातचीत की – क्या तुम किसी ऐसे बच्चे/बच्ची को जानते हो जो कोई सामान बेचता है। मालूम करो कि वह स्कूल जाती/जाता है या नहीं। यदि नहीं तो मालूम करो की वह स्कूल क्यों नहीं जाता/जाती। संभावित उत्तर – अभी बहुत छोटा है, स्कूल बहुत दूर है, घर में छोटे भाई/बहन को देखती है आदि। यहाँ दी गई गतिविधियां संकेत मात्र हैं। इसी प्रकार की अन्य गतिविधियां करवाई जा सकती हैं। अपने देखा कि कविता पढ़ाने के दौरान शिक्षिका की प्रकार आकलन करने के साथ – साथ उन्हें सीखने में सहयोग भी देती गई। इसके बाद उन्होंने यह जानने के लिए कि बच्चों ने कहाँ तक सीखा कुछ गतिविधियों (आकलन, बातचीत, मिलती – जुलती ध्वनि वाले शब्द ढूंढना, कविता आगे बढ़ाना) का आयोजन व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों प्रकार से किया। सवाल तथा गतिविधियां –
आपने देखा कि इस कविता को पढ़ाते समय शिक्षका विभिन्न भाषायी कौशलों के विकास के साथ आकलन भी करती चली गई। उन्होंने बच्चों से बातचीत करते समय उन्हें घर की बोली में बोलने का मौका देकर वातावरण को सहज बनाया। उनकी बताई चीजों को ब्लैकबोर्ड में लिखकर उन्हें अनुमान लगाकर पढ़ने का अवसर दिया। उन्होंने बच्चों के जीवन से जुड़े, अनुमान लगाने, तर्क करने, घर की बोली में बात करने, चित्रों पर आधारित, सृजनात्मकता का अवसर देने वाले, कक्षा की दुनिया को बाहर की दुनिया से जोड़ने वाले भाषा का अवलोकन, विषयों से जुड़ाव के अवसर देने वाले अभ्यास करवाए। कविता पर बातचीत के दौरान सवाल भी इस तरह से पूछे, जिनके उत्तर बच्चों ने अपनी कल्पना, अनुमान तथा तर्क के आधार पर दियेगो ब्लाकबोर्ड पर बनाई तालिका से बच्चों में वर्गीकरण के कौशल का विकास तथा आकलन किया। तालिका में जया द्वारा गोकुल के लगाए गये गलत निशान को ठीक करने से साथी द्वारा साथी का आकलन भी हुआ। आओ गिनें और लिखें गतिविधि द्वारा भाषा को गणित के साथ जोड़ते हुए लिखने में कौशल का आकलन किया मेरा आम और कविता बनाओ गतिविधियों द्वारा बच्चों में सर्जनात्मक कौशल के विकास के साथ उनकी सृजनात्मक अभिव्यक्ति और बोलने के कौशल का आकलन किया। उन्होंने बच्चों से लिखी कविताओं तथा चित्रों को उनके पोर्टफोलियो में रखा। इस प्रकार सीखने – सिखाने के दौरान ही शिक्षिका ने सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना, वर्गीकरण, तर्क, अनुमान, अवलोकन,सृजनात्मक अभिव्यक्ति, संवेदनशीलता, समूह में कार्य करने की भावना, नेतृत्व की क्षमता आदि सभी पहलुओं का आकलन करते हुए उनके विकास के लिए भरपूर अवसर दिए। आम से मिलती – जुलती ध्वनि वाले शब्द बताओ।
सीखे हुए का आकलन शिक्षिका ने गतिविधियों के दौरान अवलोकन करते हुए बच्चों के बारे में विशेष बातों को रजिस्टर में दर्ज किया। दो बच्चों के बारे में दर्ज टिप्पणियाँ इस प्रकार हैं – 1. जया आत्मविश्वास के साथ बोलती है। शब्दों के बीच के अंतर को समझती है। समूह कार्य में दायित्व लेती है। शब्दों को अपने – आप पढ़ लेती है। मिलती जुलती ध्वनि वाले शब्द बताने में उत्साह दिखाती है। लिखने में और प्रयास की आवश्यकता है। 2. सोनू बोलने में झिझकती है। अनुमान लगाकर पढ़ने का प्रयास करती है। मिलती – जुलती ध्वनि वाले शब्द बना लेती है। समूह में कार्य में संकोच करती है। अपने आप कविता बना लेती है। सीखने – सिखाने की प्रक्रिया के दौरान बच्चों ने क्या सीखा इसकी जानकारी टीचर विभिन्न तरीकों से ले सकती है। जैसे – अवलोकन, मौखिक तथा लिखित कार्य, पोर्टफोलियो में रखे गये बच्चों के कार्यों के नमूने आदि। उदाहरण – 2 किरमिच की गेंद (कहानी) किरमिच की गेंद कक्षा 4 की पाठ्य – पुस्तक रिमझिम भाग – 4 का तीसरा पाठ है। इस कहानी में दिनेश नाम के लड़के को एक गेंद पड़ी मिलती है। वह गेंद के मालिक की तलाश करता है। बहुत से बच्चे उसे अपनी गेंद कहते हैं पर इस बात को साबित नहीं कर पाते। आखिर में वे बहस करने के बजाय गेंद से मिलकर खेलने लगते हैं। सीखने – सिखाने के बिन्दु
गेंद बनाओ इस क्रियाकलाप के लिए रबर बैंड, रद्दी कागज, लिखने के लिए चार्ट या साधारण कागज आदि की जरूरत होती है। शिक्षक ने इस बारे में बच्चों को एक दिन पहले ही बता दिया। वह पर्याप्त मात्रा में सामग्री कक्षा में लेकर गये ताकि यदि कोई बच्चा सामग्री न ला सके तो भी वह क्रियाकलाप में शामिल हो सके। बच्चों से खेल और खिलौनों –
इसके बाद बच्चों को कागज की गेंद दिखाकर कहा – आज हम कागज से गेंद बनाएंगे। बच्चों को कागज से गेंद बनाकर दिखाई। रद्दी कागज को सिकोड़कर गोल आकृति देने के बाद, उस पर समान रूप से रबरबैंड लपेटने से गेंद बन गई। उसे धीमे से उछालकर या जमीन पर टप्पा मारकर दिखाया। एक - दो बच्चों को भी यह कार्य करने का अवसर दिया। इसके बाए बच्चों के जोड़े या समूह बनाकर गेंद बनाने के लिए कहा। यह देखा कि प्रत्येक समूह के पास गेंद बनाने की पर्याप्त सामग्री हो। बच्चों द्वारा गेंद बनाते समय उनके पास जाकर बातचीत की। उनकी सराहना की और जरूरत पड़ने पर मदद भी की। (इस गतिविधि को आगे बढ़ाते हुए बच्चों से कागज की गेंद में रंग भरने के लिए कहा जा सकता है। पुराने कपड़े से भी गेंद बनवाई जा सकती है) जब सभी बच्चों/समूहों ने गेंद बना ली तो उन्हें मेज पर सजाकर प्रदर्शनी लगवाई।
सीखने- सिखाने के दौरान आकलनशिक्षक ने देखा कि – 1. मीना अख़बार नहीं लाई। उसने घर में पुछा पर उसे मना कर दिया गया। मीना कहीं से प्रयास करके अखबार का लिफाफा लाई। 2. सन्नी ने अपनी गेंद के बारे में खुशी से बताया। उसने बताया कि गेंद की कीमत दस रूपया है। उसने पहली बार कीमत शब्द का प्रयोग किया। 3. कामना ने मनोज से रबरबैंड मांगे। मनोज ने दे दिया। कामना ने थैंक्यू कहा। 4. विपिन ने बताया, मेरी गेंद भी लाल रंग की थी। यह खो गई थी। विपिन को अपने खिलौनों के बारे में बताना अच्छा लगता है। 5. रजनी कुछ बताते हुए झिझकती थी। आज वह दूसरों की बात ध्यान से सून रही थी। एक दो जगह उसने अपनी बात जोड़ी। मैं भी उसने कहा। 6. रमेश सबको अच्छे तरीके से गेंद बनाना बता रहा था। उसने पूरा तरीका ध्यान से देखा – सुना। धीमी गेंद प्रतियोगिता कक्षा में बस्तों/डेस्कों को हटाकर सबसे धीमी गेंद प्रतियोगता के बारे में बताया। बच्चों से कहा कि वे गेंद को दिवार पर बहुत धीमी गति से फेकें। इस प्रतियोगिता में जिस बच्चों की गेंद सबसे बाद में दिवार से टकराएगी, वह जीता हुआ माना जाएगा। जिस बच्चे की गेंद बीच रास्ते में रूक जाएगी, उसे प्रतियोगिता से बाहर माना जाएगा। (यह गतिविधि कक्षा से बाहर मैदान में भी कारवाई जा सकती है। खेल के बाद बच्चों से कहा – आज हम जो कहानी पढेंगे, उसमें भी एक गेंद है। पर वह गेंद कागज की नहीं बल्कि किरमिच की है। किरमिच की गेंद के बारे में पुछा – किस – किस ने किरमिच की गेंद देखी? किस खेल के लिए किरमिच की गेंद इस्तेमाल करते हैं? बच्चों को किरमिच की गेंद दिखाई ताकि जिन बच्चों ने वह नहीं देखी थी या देखी तो थी पर उसका नाम नहीं पता, वे भी पहचान जाएँ कि किरमिच की गेंद कैसी होती है। नोट – कक्षा में यदि कोई बच्चा ऐसा हो जो देख नहीं सकता तो उसके हाथ में गेंद दी जा सकती है ताकि वह स्पर्श द्वारा महसूस कर सके कि किरमिच की गेंद खुरदरी होती है। सीखने – सिखाने के दौरान आकलन शिक्षक ने देखा कि - 1. दीपक और सविता डेस्कों को हटाने का काम कर रहे थी। उन्होंनें प्रतियोगिता के नियमों को अच्छी तरह समझकर दुसरे बच्चों को भी बताये। 2. ममता ने बताया – किरमिच की गेंद पर खुरदरी लाइनें होती हैं। चंचल ने बताया – दो लाइनें होती हैं। 3. रमेश ने बताया – किताब में किरमिच की गेंद का चित्र नहीं है। रबड़ वाली गेंद का है। रमेश चीजों को गौर से देखता है। 4. आबीदा की गेंद बीच में रूक गई। वह पूरे समय अपनी गेंद को प्रोत्साहित कर रही थी। चल – चल, रूक मत, थोडा आगे जा। 5. अमित की गेंद जीत गई। वह खुश था पर उसने कहा – मेरी गेंद सबसे फिसड्डी है। उसे कल एक बच्चे न फिसड्डी कहा था। वह उसी को सुनाकर कह रहा था, क्योंकि कल का फिसड्डी आज जीत रहा था। सुनो कहानी बच्चों को कहानी पढ़कर सुनाई। (कहानी सुनाने के लिए आप टेपरिकार्डर/मुखौटों आदि का प्रयोग भी कर सकते हैं। कहानी सुनाते समय अपनी आवाज इतनी ऊँची रखें कि सबसे पीछे बैठे बच्चों तक आवाज पहुंचे। अच्छा यह रहेगा कि बच्चों के समाने खड़े होकर सुनाएं। यदि बचे डेस्क पर बैठे हैं तो उनके साथ बैठा जा सकता है पर ध्यान रखें कि प्रत्येक बच्चा आपको देख सके। बोलने की गति मध्यम रखें। बहुत जल्दी – जल्दी या धीरे – धीरे न बोलें। कहानी/प्रसंग के अनुसार आवाज में उतार – चढ़ाव का ध्यान रखें। बीच - बीच में ऐसे प्रश्न ने पूंछे जिनके उत्तर में बच्चों को अपनी बात दोहरानी हो। अनावश्यक प्रश्न कहानी का आनन्द कम करते हैं हाँ, आगे क्या हुआ होता? फिर इस तरह के प्रश्न पूछे जा सकते हैं) शिक्षक ने प्रयास किया कि पूरी कहानी शुरू से अंत तक एक ही पीरियड में बच्चे सुन सकें, क्योंकि कहानी बीच में छूट जाने से कहानी का आनन्द कम हो जाता है। (यदि कहानी को बीच में छोड़ना ही पड़ जाये तो इसे मोड़ पर कहानी छोड़ें ताकि बच्चों की आगे जानने की उत्सुकता बनी रहे।) सीखने – सिखाने के दौरान आकलन शिक्षक ने देखा कि – 1. सीमा ने सबसे पहले कहानी वाला पृष्ठ खोल लिया। उसे कहानी अच्छी लगी। उसके चेहरे पर मुस्कान थी। 2. रीमा को कहानी की पृष्ठ संख्या याद थी। उसने कक्षा में घोषणा की - पेज नंबर ग्यारह खोलो। 3. सोहेल ने कहानी पहले से पढ़ लिए थी। उसे कहानी पढ़ना अच्छा लगता है। 4. कंचन ने मेरा वाक्य पूरा किया। मैंने कहा – गड्ढे के ऊपर ही एक बिलकूल नई चमचमाती किरमिच की ... मेरा वाक्य पूरा करते हुए वह बोली – गेंद पड़ी थी। 5. सब बच्चे कहानी गौर से सुन रहे थे। आदित्य ने पास बैठे बच्चे के कान में कहा – कल मैं भी किरमिच की गेंद खरीदूंगा। बातचीत कहानी सुनाने के बाद बच्चों से पूछा – अपको इस कहानी में कौन – कौन सी बातें अच्छी लगी? क्या कोई बात ऐसी भी थी जो अच्छी नहीं लगी? बातचीत इन बिन्दुओं पर आधारित थी –
यह बातचीत समूह में भी करवाई जा सकती है। प्रत्येक समूह एक बच्चे को यह जिम्मेदारी देखा कि वह सभी बच्चों की बातों को संक्षेप में या बिन्दुओं के रूप में दर्ज करता रहे। यह कार्य समय – समय पर अलग – अलग बच्चों को दिया जा सकता है ताकि सभी की भागीदारिता बनी रहे। सीखने – सिखाने के दौरान आकलन शिक्षक ने देखा कि – 1. अंजली ने बताया – मुझे इस कहानी में ये बात अच्छी लगी कि सब बच्चे लड़ाई छोड़कर खेलने लगे। उसे पहली बार कक्षा में पूरा वाक्य बोला। 2. दिनेश ने कहा – मुझे गेंद का खो जाना अच्छा नहीं लगा। पूरे समय उसके चेहरे पर मुस्कान थी, क्योंकि कहानी में भी मुख्य पात्र का नाम दिनेश था। 3. मोहसिन कम बोलता है पर जब कोई दूसरा बोल रहा हो, गौर से सुनता है और बोलने की और गरदन घुमा कर देखता भी है। 4. वकील ने गेंद के मालिक को पहचानने के चार तरीके सुझाए। उसकी कल्पनाशीलता गजब की है। सवाल जवाब शिक्षक ने बच्चों को समूहों में बांटा। प्रत्येक समूह को कहानी का एक अंश अपनी पसंद से चुनने और उसके आधार पर एक सवाल सोचने के लिए कहा। (अच्छा रहेगा कि समूह अपने सवाल लिख लें बाद में असुविधा न हो।) समूह के सभी सदस्यों ने अपने समूह में कौन क्या कार्य करेगा, इसका फैसला स्वयं किया। बच्चों ने अपना अंश पढ़कर बाकी समूहों को सुनाया। अंश सुनाने के बाद उन्होंने अपने समूह द्वारा लिखा गया प्रश्न सुनाया। बाकि समूहों को उसका उत्तर बताना था। सबसे पहले सही उत्तर बताने वाले समूह को दस अंक मिले। सबसे अधिक अंक प्राप्त करने वाला समूह विजेता माना गया। (इस कार्य को अलग तरह से भी करवाया जा सकता है। सभी समूह बारी – बारी से अपना अंश और प्रश्न सुनायेंगे, बाकी समूह अपनी - अपनी कॉपी में प्रश्न और उनके उत्तर लिखते रहेंगे।) इस दौरान शिक्षक ने प्रत्येक समूह के पास जाकर उनके कार्य और चर्चा में भाग लिया और जरूरत पड़ने पर उन्हें सुझाव भी दिए। सीखने – सिखाने के दौरान आकलन शिक्षक ने देखा कि – 1. अजय बहुत अच्छे तरीके से पढ़कर सुनाता है। सही जगह रूकता है और आवाज में उतार – चढ़ाव लाता है। 2. नीलम की लिखाई बहुत सुन्दर है। वह ध्यान से लिखती और गलतियाँ न के बराबर करती है। 3. गुरमित जवाब देने लगा था, पर रूक गया। जवाब देने से पहले उसने अपने समूह में चर्चा की। 4. रमा ने सबकी बात ध्यान से सूनी. फिर अपनी तरफ से वाक्य ठीक करके लिख दिया। उसने लिखा – क्लब के सदस्यों को अलग – अलग बल्ले रखने के बजाए बल्ला एक और गेंद अनेक रखनी चाहिए थी। उसकी यह वाक्य सचमुच अद्भूत है। नोट: इस प्रकार किरमिच की गेंद कहानी को पढ़ाने के लिए शिक्षक ने बच्चों की रूचियों के अनुकूल अनेक गतिविधियों का आयोजन किया। इस कहानी को पढ़ाने के लिए इन गतिविधियों के अतिरिक्त ऐसी ही दूसरी गतिविधियां कक्षा में तथा कक्षा के बाहर करवाई जा सकती हैं। अपने देखा कि इस कहानी को शिक्षक ने किस तरीके से बच्चों के सामने खोला। उन्होंने बच्चों की रूचियों को ध्यान में रखते हुए कई गतिविधियों जैसे – गेंद बनाना, खेल प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया। प्रत्येक पल वे ध्यान से बच्चों का अवलोकन कर रहे थे और उनके जवाबों, कार्यों और भावों से पता कर रहे थे कि उसे किस बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है? उदाहरण के लिए, गेंद बनाने की गतिविधि द्वारा बच्चों की रुचि और श्रवण कौशल के बारे में उन्हें कई बातें पता चलीं। सवाल – जवाब गतिविधि द्वारा बच्चों के लेखन कोशल का आकलन किया। इस प्रकार उन्होंने न केवल कहानी को रोचक रूप से पढ़ाया बल्कि कक्षा के अनेक बच्चों के भाषायी कौशलों के बारे में बहुत – सी बातें भी पता कर लीं। आकलन से जुड़े कुछ मुद्दे
कक्षा में सीखने – सिखाने के दौरान इस बात का प्रयास करें कि बच्चों को लगे कि उनकी बात का कक्षा में सम्मान किया जाता है। इसके लिए आप उनकी बातों को धैर्य और ध्यान से सुनें, उनकी तारीफ़ करने और गतिविधियों में भाग लेने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें।
शिक्षिका/शिक्षक द्वारा अपने प्रयास का स्व- आकलन बच्चे के सीखने के स्तर और उपलब्धियों को परखने के साथ यह जानना भी आवश्यक है कि शिक्षिका/शिक्षक द्वारा कक्षा में अपनाए गये तरीके बच्चों की समझ बढ़ाने में कितने सहायक सिद्ध हुए हैं। इसलिए शिक्षक द्वारा अपने सिखाने के तरीकों का स्व – आकलन भी जरूरी है ताकि वह अपने सिखाने के तरीकों में बदलाव लाकर उनकी मदद कर सके। शिक्षिका/शिक्षक द्वारा अपने सिखाने के तरीके के स्व – आकलन हेतु कुछ बिन्दु –
आकलन – कहीं ऐसा तो नहीं टीचर ने दूसरी कक्षा के बच्चों को कविता पढ़ाई – बहुत हुआ। कविता बहुत ही सुंदर ढंग से पढ़ाई गई थी। बच्चों ने भी कविता का भरपूर आनंद उठाया। कविता पढ़ाने के बाद उन्होंने बच्चों से अभ्यास तथा गतिविधियां करवानी शुरू की। उन्होंने पूछा – बरसात होने पर आस - पास कैसा दिखाई देता है? कक्षा के सभी बच्चों ने जवाब देने शुरू किए – सड़कें गीली हो जाती हैं, पेड़ – पौधे भीग जाते हैं, गड्ढों में पानी भर जाता है, लोग बारिश से बचने के लिए जगह ढूँढते हैं, बरसात से बचने के लिए कोई छाता लगाता है तो कोई रेनकोट पहनता है, आदि। टीचर द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देने में सभी बच्चे उत्साह से भाग ले रहे थे। टीचर बच्चों के जवाबों पर अपनी टिप्पणी रजिस्टर में लिखती जा रही थी। कक्षा में ही एक बच्चा चुपचाप उदास - सा बैठा था। वह इस सवाल का जवाब कैसे देता कि बरसात होने पर आस – पास कैसे दिखाई देता है? वह बच्चा देख जो नहीं सकता था। इस बच्चे की शारीरिक सीमाओं को भी ध्यान में रखते हुए यदि टीचर ने कुछ इस तरह सवाल पूछा होता – बरसात होने पर आसपास से कैसी आवाजें आती हैं या कैसी महक आती है, तो कक्षा के अन्य बच्चों की तरह यह बच्चा भी बढ़ – चढ़कर भाग लेता। इसी तरह से कक्षा में कोई ऐसी बच्ची है जो बोल नहीं सकती तो उसे हाव – भाव, संकेत, इशारे तथा चित्रों के माध्यम से अपनी बात कहने का अवसर दिया जाए। रिकॉर्डिंग और रिपोर्टिंगरिकॉर्डिंग आकलन के संदर्भ में एक शिक्षक के लिए यह जानना – समझना जरूरी होता है कि उसकी कक्षा के बच्चे किस प्रकार सीखते हैं और सीखने की प्रक्रिया में उन्हें किससे तथा किस प्रकार की मदद की जरूरत है। शिक्षक कक्षा में पढ़ाते समय बच्चों के बारे में जो भी अवलोकन करते हैं उससे बच्चों के सीखने के बारे में एक अंदाजा तो हो ही जाता है। बच्ची सीखने की प्रगति की रिकॉर्डिंग जरूरी है। रिकॉर्डिंग के कई तरीके हैं, जैसे – चैक लिस्ट, अवलोकन, वीडियो रिकॉर्डिंग, पोर्टफोलियो, फोटोग्राफ्स आदि। ये सभी तरीकों को सीखने के बारे में कई तरह की जानकारी देते हैं। रिकॉर्डिंग भी योजनाबद्ध तरीके से की जाए। प्रत्येक बच्चे का प्रतिदिन रिकॉर्ड करना जरूरी नहीं है। यदि आप अवलोकन कर रहे है तो एक दिन में केवल चार – पांच बच्चों के बारे में ही रिकार्ड दर्ज करें। यह भी ध्यान रखना है कि देखी गई हर बात/गतिविधि की रिकॉर्डिंग करना जरूरी नहीं है, उसी बात की रिकॉर्डिंग की जाए तो बच्चे के प्रदर्शन के बारे में कुछ खास बात दर्शाती है। रिकॉर्ड की गई बातों का महत्व न केवल शिक्षक के लिए है बल्कि अभिभावकों प्रशासकों और साथ शिक्षकों के लिए भी है। रिपोर्टिंग सीखने – सिखाने की प्रक्रिया के दौरान की गई रिकॉर्डिंग को रिपोर्ट करना जरूरी नहीं है। यह रिकॉर्डिंग शिक्षक को बच्चे को सीखने की प्रक्रिया में मदद करने के लिए है। बच्चे के बारे में प्राप्त जानकारी से शिक्षक बच्चे की सीखने की गति के अनुसार उसे आगे सिखाने की योजना बना सकते हैं अभिभावक बच्चे की प्रगति जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। ऐसे में आपको अभिभावकों को लिखित में जानकारी देनी होती है कि उनके बच्चे/बच्ची की प्रगति की कैसी स्थिति है? इसके लिए अच्छा यह रहेगा कि आप पांच – छ: पाठ पढ़ाने के बाद कक्षा में किए गये अवलोकन, पोर्टफोलियो, बच्चों द्वारा किये गये कार्य अदि के आधार पर रिपोर्ट बनाएं। यदि विद्यालय में रिपोर्ट कार्ड देने की परंपरा है, तो उसे इस तरह तैयार किया जाए कि उसमें गुणात्मक टिप्पणियों के लिए पर्याप्त स्थान हो। यदि विद्यायल में यह कार्य शासकीय स्तर पर होता है तो उच्च शिक्षा अधिकारीयों को इस बारे में प्रशिक्षित किये जाने की आवश्यकता है कि रिपोर्टिंग का लिखित रूप किस प्रकार का हो? सुझाव के रूप में पहली कक्षा के एक बच्चे के विभिन्न भाषायी कौशलों का आकलन (पहले दूसरे और तीसरे चार माह, में) का ब्यौरा आगे दिया जा रहा है। इसके आधार पर अभिभावकों को बच्चे की प्रगति के बारे में जानकारी तथा सुझाव दिए जा सकते हैं। इसे हर तीन अथवा चार माह के बाद किया जा सकता है। कक्षा – 1
टिप्पणी – कविताएँ/कहानियां सुनना – सुनाना चेतना को बहुत अच्छा लगता है। अब वह अपनी कक्षा के लगभग सभी बच्चों के नाम पढ़ लेती है। मात्रा वाले परिचित शब्दों को भी पढ़ने की कोशिश करती है और पढ़ने में रुचि दिखाती है। अपना नाम लिख लेती है। लेकिन वाक्यों को लिखने में उसे मदद की जरूरत होती है। चित्रों को बहुत बारीकि से देखती है। चित्रों का वर्णन बहुत अच्छा कर लेती है। अपने मन से कहानियां गढ़ भी लेती है। उसकी कल्पना बढ़ी अनूठी होती है।
टिप्पणी - चेतना कहानी/कविताएँ बहुत प्रभावशाली ढंग से सुनाती है। उसके पठन कौशल में बहुत अधिक सुधार हुआ है। चित्रों का वर्णन तो बहुत अच्छी तरह करती ही है, चित्रों के बारे में अतिरिक्त बातें भी अपने साथियों को बताती है। अपना नाम लिखना उसे बहुत अच्छा लगता है। छोटे – छोटे वाक्य भी लिखने का प्रयास करती है। लेकिन अभी और भी मेहनत की जरूरत है। उसमें सृजनात्मक प्रतिभा है। वह छोटी – छोटी कहानियां लिख भी लेती है और बहुत से सुनाती भी है। कहानी के साथ में वह कहानी से संबंधित चित्र भी बहुत सुंदर बनाती है। प्रत्येक बच्चे के सीखने का इस प्रकार का ब्यौरा रखने से सत्र के अंत में उनके रिपोर्ट कार्ड बनाने में मदद मिलेगी। बच्चे की एक साथ सभी विजयों की रिपोर्टिंग कैसे की जाए? इस बारे में आगे भाग III में जानकारी दी गई है। गणित में सतत एवं समग्र मूल्यांकनगणित हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग है इसलिए इसे सीखना महत्वपूर्ण भी है और प्रासंगिक भी है कक्षा में गणित सीखने – सिखाने की प्रक्रिया प्रारंभ करने से पहले बच्चों के लिए ऐसा वातावरण करने की आवश्यकता है जहाँ वे गणित को रूचिपूर्ण ढंग से सीख सकें और उसकी सराहना कर सकें। गणित विषय सीखना या इसके प्रति समझ विकसित करना न केवल समस्या समाधान करने की योग्यता बढ़ाता है बल्कि तर्कपूर्ण ढंग से सोचने व स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करने में सहायता करता है। ये कौशल या योग्यताएं वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में सहायक होते है और दिन प्रतिदिन की समस्याओं को हल करने में मदद करते है। अत: पाठ्यक्रम में गणित अधिगम एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जब शिक्षण अधिगम प्रक्रिया चल रही हो, तब अध्यापक के लिए आवश्यक हो जाता है कि बच्चों के अधिगम की प्रगति का आकलन व निरिक्षण करें। वे यह कार्य बच्चों के विभिन्न अधिगम स्तरों, और बच्चे एवं कक्षा के लिए क्रियाकलापों की उपयुक्त यह पता लगाकर करें कि बच्चे ने क्या सीखा है और कैसे। शिक्षण – अधिगम के दौरान सतत आकलन शिक्षक /शिक्षिका को पृष्ठ पोषण उपलब्ध कराता है तथा उनके पढ़ाने के तरीकों को बेहतर बनाने का अवसर प्रदान करता है। प्रत्येक इकाई को पूरा करने के बाद वे बच्चों के अधिगम का मूल्यांकन उस इकाई से संबंधित अधिगम – संकेतकों को ध्यान में रखकर करेगें। एक निश्चित अवधि (मासिक, त्रैमासिक) के बाद इस प्रकार से प्राप्त आंकड़े बच्चे के अधिगम के बारे मे व्यापक जानकारी उपलब्ध कराएंगे। प्रत्येक बच्चे की प्रगति का लेखा – जोखा रखा जाता है। इस प्रक्रिया का संचयी अभिलेख बच्चे की प्रगति व्यापक दृश्य प्रस्तुत करता है। विभिन्न प्रकार की शिक्षण – अधिगम विधियाँ अपनाकर शिक्षक/शिक्षिका बच्चे के व्यवहार के दुसरे पहलुओं (जैसे – दूसरों का ध्यान रखना, समूह में मिलकर काम करना आदि) का भी आकलन कर सकता है विद्यार्थियों द्वारा की गई इस प्रगति के बारे में उनके प्रगति के रिकॉर्ड के साथ उनके अभिभावकों बताया जा सकता है। ये आंकड़े बच्चे की प्रगति के बारे में समग्र ढंग से एक व्यापक जानकारी उपलब्ध कराएंगे। क्या हम जानते हैं? यह महत्वपूर्ण है कि गणित की कक्षा में क्रियाकलापों का आयोजन मूर्त वस्तुओं का उपयोग करके किया जाए। यह प्राथमिक कक्षाओं में गणित सिखने की ओर प्रथम चरण का निर्माण करना है। इसके लिए गणितीय खेल, पहेलियाँ और कहानियां जिसमें संख्याओं का समावेश हो बहुत उपयोगी होते हैं। इनके द्वारा बच्चे दैनिक जीवन के क्रियाकलापों में तार्किकता तथा गणितीय सोच के मध्य संबंध बनाने में योग्यता प्राप्त कर सकते हैं। प्राथमिक स्तर पर गणित के अधिगम ऐसा होना चाहिए जो बच्चों को कक्षा के बाहर उनके अनुभव से जोड़कर तथा रोचक अभ्यासों के माध्यम से सीखने को बढ़ावा दे। गणितीय अवधारणाओं का विकास करने के लिए बच्चों की स्थानीय रूचियों और उत्साह का उपयोग करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। यह बच्चों के उत्तर देने के विशिष्ठ तरीकों तथा उसके पीछे उनके तर्कशक्ति को अभिव्यक्त करने पर बल देता है। उदहारण के लिए बच्ची/बच्चा एक पैटर्न को किसी विशेष ढंग से ही क्यों बनाना चाहती/चाहता है? यह इस बात पर विशेष बल देता है कि बच्ची/बच्चा बता सके कि किसी अभ्यास की किसी खास तरीके से करने के क्या कारण थे। यहाँ पर उदहारण के रूप में कुछ सामग्री दी गई हैं जिसमें शिक्षक कक्षा में विद्यार्थियों के प्रगति का अवलोकन तथा आकलन करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग कर रहे हैं। यह सामग्री आपको कक्षा की स्थिति की समझ उपलब्ध कराएगी कि कैसे आकलन, बच्चे के सीखने और संपूर्ण विकास में उपयोगी है। उदाहरण – 1 विषय वस्तु – आंकड़ों का प्रबंधन कक्षा – IV/V प्रकरण - किसकी नाक सबसे अधिक लंबी है? आवश्यक सामग्री - वर्गाकार कागज, चार्ट पेपर, गोंद, कैंची निर्धारित समय - लगातार दो कालांश या लगभग 80 मिनट उद्देश्य/ अपेक्षित अधिगम परिणाम 1. आंकड़े को एकत्रित करना और उनको दंड आरेख के रूप में प्रदर्शित करना। 2. दंड आरेख की व्याख्या करना तथा इससे प्राप्त सूचना को बताना। पूर्व ज्ञान विद्यार्थियों के पास आंकड़ों के प्रबंधन से संबंधित कुछ अनुभव हैं जैसे – आंकड़ें एकत्रित करना आंकड़ों को समझने योग्य रूप से सारणीबद्ध करना। अधिगम स्थिति का निर्माण शिक्षक महोदय ने कक्षा में प्रवेश करके पूरी कक्षा के समक्ष एक समस्या प्रस्तुत की कक्षा में किसकी नाक सबसे अधिक लंबी है? कुछ बच्चे प्रश्न के अनोखेपन पर मुस्कुराए, कुछ इधर – उधर देखने लगे, कुछ बच्चे अपनी ऊँगली के द्वारा नाक की लंबाई नापने की कोशिश कने लगे, कुछ बच्चे कानाफूसी करने लगे। एक विद्यार्थी ने कहा – राजू की नाक सबसे लंबी होगी। कक्षा में हंसी फ़ैल गई। शिक्षक/शिक्षिका ने प्रश्न को पुनः दोहराया कर कहा हम इसका पता किस तरह करेंगे? एक विद्यार्थी इसका उत्तर जानने के लिए हमें सभी की नाक नापने पड़ेगी। शिक्षक (मन ही मन सोचता है) – यह बच्चे अभिव्यक्ति में अच्छा है। शिक्षक ने विद्यार्थियों से पूछा आप नाक की लंबाई मापने का कौन सा तरीका अपनाएंगें? एक और विद्यार्थी - हाँ यह काम हम अपनी टोलियों में कर सकते हैं। कक्षा के सभीविद्यार्थी सहमत थे कि इस समस्या का समाधान सभी विद्यार्थियों की नाक की लंबाई मापकर प्राप्त किया जा सकता है।
क्रियाकलाप को पढ़ने एवं कक्षा में करवाने के दौरान पाठक को कई और आकलन बिंदु मिल सकते हैं। शिक्षक के विचार
आंकड़ों के प्रबंधन में विद्यार्थियों के आकलन के विभिन्न पहलुओं और उनके आकलन के बिन्दु से संबंधित एक सुझावात्मक खाका नीचे दिया गया है। यह खाका संकेत देता है कि विद्यार्थी विभिन्न स्तरों पर हो सकते हैं, जैसा कि दर्शाया गया है। यह शिक्षकों को आंकड़ों के प्रबंधन के बारे में विषय क्षेत्रात्मक थीमेटिक कार्यक्रम चार्ट उपलब्ध कराएगा। आलेख पृष्ठ (अधिगम का आकलन) कक्षा विषयक्षेत्र – आंकड़ों का प्रबंधन
दिए गये आकलन बिन्दुओं के लिए सीखने के चार स्तर हो सकते हैं – स्तर 1 – बच्चे को क्रियाकलाप/कार्य को पूरा करने में सहायता की आवश्यकता हैं। स्तर 2 – बच्चा समझ गया, परंतु कार्य/क्रियाकलाप को पूरा नहीं कर सका। स्तर 3 – बच्चा कार्य को अपने आप (स्वतंत्र रूप से) पूरा करता है। स्तर 4 – बच्चा अपेक्षित स्तर पर अधिक सीखता है (बच्चा अधिक कठिनाई/स्तर के कार्य/क्रियाकलापों को पूरा कर सकते हैं)। शिक्षक उपरोक्त स्तरों को प्रदर्शित करने के लिए निम्नलिखित चिन्हों का उपयोग कर सकते हैं (ये चिन्ह केवल सुझाव के लिए हैं) स्तर 1 - स्तर 2 - स्तर 3 - शिक्षक बच्चों के विभिन्न स्तरों को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न गतिविधियों की योजना बना सकते हैं। जो बच्चे स्तर 4 – के हैं उनके लिए अधिक कठिन व दिलचस्प गतिविधियों की योजना बनाने की जरूरत है। स्तर – 1 व 2 के बच्चों को स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता व आत्मविश्वास हासिल करने के लिए शिक्षक के मार्गदर्शन की जरूरत है। इसके अलावा स्तर – 4 के बच्चे स्तर – 1 के बच्चों की अवधारणा को समझ कर सीखने के उच्च स्तर तक पहुँचने में मदद कर सकते हैं। उदहारण – 2 कक्षा – 1 थीम – संख्या की समझ सामग्री खाली माचिस, कुछ बीज (जैसे चना,) प्लास्टिक के मोती (लगभग 100 नाग), माना बनाने के लिए धागा, माचिस में रखने के लिए पर्ची, डाईस जिस पर अंक बिन्दु बने हों। पूर्व अनुभव बच्चों को 1 – 20 तक की संख्या का कुछ ज्ञान है। यह गतिविधि स्कूल आंरभ होने के लगभग दो – तीन माह बाद की जाए तो अच्छा है। गतिविधि के उद्देश्य : यह जानना कि
तैयारी आज कक्षा में 1 केवल 24 विद्यार्थी आये थे। कक्षा में पहुंचते ही शिक्षक ने बच्चों के सामने एक प्रश्न रखा बताओ कक्षा में कितने छात्रा आये हैं? वे अलग – अलग एक दुसरे पर ऊँगली रखा कर गिनने लगे। इस शुरूआत के बाद शिक्षक छात्रों को चार टोलियों में बांटते हैं और हर टोली को अलग – अलग गतिविधि समझाते हैं। गतिविधि शिक्षक ने सोचा और योजना बनाई कि, 1 से 20 तक की संख्याओं की समझ के बारे में पता लगाया जाये तथा इसके लिए बच्चों से कुछ गतिविधियाँ करवाई जाएँ। यह गतिविधि बच्चे 4 - 4 की टोलियों में करेंगें व हर टोली की गतिविधि अलग होगी। शिक्षक पहली टोली को लगभग 10 – 50 माचिस, जिनमें अलग - अलग संख्या में चने व एक - एक पर्ची रखी हैं, दे देते हैं। (चने 4 से 20 के बीच की संख्या में हैं। शिक्षक - मैंने हर माचिस में चने तो रख दिए पर किसमें कितने चने के दाने रखे हैं इसकी पर्ची रखना भूल गया। क्या अप लोग इसमें मदद कर सकते हो? आप लोग इन माचिस में रखे दाने गिन कर पर्ची पर लिखो और पर्ची को माचिस में डाल दो। शिक्षक दुसरे टोली वाले बच्चों को 10 – 15 माचिस, जिनमें अलग - अलग संख्या लिखी एक पर्ची है, साथ ही एक थैली है जिसमें कुछ दाने रखें हैं, देते हैं। शिक्षक - आप लोगों को माचिस में रखी पर्ची के अनुसार चने गिनकर माचिस में रखना है। तीसरी टोली वाले बच्चों को शिक्षक 10 – 15 माला, जिनमें अलग – अलग संख्या में मोती पिरोए हैं, देते हैं। शिक्षक – माला में एक पर्ची लगी है, मोती 4 से 20 के बीच की संख्या में हैं। आप लोगों को मोती गिनकर पर्ची पर लिखना है। शिक्षक चौथी टोली को एक थैली देते हैं जिसमें माला बनाने के लिए मोती, धागा और साथ ही संख्या लिखी पर्चियां हैं। शिक्षक – आप लोग एक – एक पर्ची उठाओ और उस पर लिखी संख्या अनुसार माला में मोती पिरोओ। माला के साथ वह पर्ची भी लगानी है जससे पता लग सके कि कितने मोती अपने पिरोए हैं।
सीखने – सिखाने के समय शिक्षक द्वारा आकलन
जो बच्चे गतिविधि नहीं कर पाए। जो बच्चे गतिविधि नहीं कर पाए, उनके साथ अलग टोली बनाकर शिक्षक बिंदी वाली डाईस और कंकड़ से खेल खेलते हैं। शिक्षक बच्चों से कहते हैं कि डाईस पर जितनी संख्या आए उतने कंकड़ उठाकर अपने पास रखो। यही संख्या अपनी कॉपी में लिखो।
उदाहरण - 3 कक्षा – 4 थीम – संख्याओं का स्थानीय मान एक दिन कक्षा चौथी के शिक्षक ने अपनी साथी शिक्षक को बताया, कक्षा दुसरी के बच्चे बहुत तेज हैं। पता है, दो बार लंबी साँस लेते हैं और 100 तक की गिनती सूना देते हैं। क्या मतलब? दूसरी कक्षा के बच्चे 100 तक गिनती जानते हैं? लेकिन गिनती रट लेने का क्या मतलब। गिनती आती है, यह तब मानेंगे जब ये बच्चे गिन कर बता सकें कि कितनी चीजें हैं। कौन – सी संख्या लिखी है, पढ़कर बता दें। पहले – बाद, छोटी – बड़ी संख्या बता पाए। दी गई संख्या के इकाई में कितना है? दहाई में कितना? अदि। ठीक है न। चलो कल, पता कर लेते हैं। अगले दिन शिक्षक ने अपने साथ दो डाईस और 100 ग्राम रबर बैंड रख लिए। कक्षा में पहुंचते ही सभी बच्चों से कहा आज हम तीली – बंडल वाली गतिविधि करेंगे। आपको दस मिनट में 10 – 10 तीली के बंडल बनाने हैं सभी को 5 – 5 रबर बैंड देकर बंडल बनाने के लिए कहा। बच्चे तीली – बंडल लेकर आते तब तक शिक्षक ने एक डाईस पर लाल स्केच पेन से 1 से 6 तक अंक लिखे तथा दूसरी डाईस पर काले स्केच पेन से 1 से 6 तक अंक लिखे तथा बंडल का चित्र भी बनाया। लगभग दस मिनट में सभी बच्चे तीली और बंडल लेकर आ गये। कक्षा के बीच में चोक से एक गोला बनाया गया। उसमें सभी ने अपने – अपनी तीली बंडल रख दिए। अब पूरी कक्षा को 4 – 4 की टोली में बांटा गया। शिक्षक ने ब्लैक बोर्ड पर एक तालिका बनाई जिसे सभी बच्चों को अपनी कॉपी में बनाना था। सभी को गतिविधि के नियम बताये गये। लाल रंग वाली डाईस पर जितने अंक आये उतनी तीली उठानी है। और काले रंग से लिखी डाईस पर जितना अंक आये उतने ही बंडल उठाना है। शिक्षक – जब 10 खुली तीलियाँ इकट्ठी ही जाये, तो उन्हें जमा करके एक बंडल ले सकते हो। शिक्षक – टोली में से कोई एक सदस्य डाईस फेकेगा और दूसरा सदस्य तीली – बंडल उठाएगा। टोली के सभी सदस्यों को अपनी कॉपी में बनी तालिका में बंडल के नीचे बंडल की संख्या तथा तीली के नीचे तीलियों की संख्या लिखनी है। जब तीली के नीचे तीलियों की संख्या लिखनी है। जब तीली 10 हो जाएँ तो जोड़कर बंडल के स्थान पर 1 लिखना है। सभी टोलियों के बीच जाकर अव्लकर रहे थे कि कौन किस तरह लिख रहा है। जो बच्चे कहीं चूक जाते उन्हें शिक्षक मदद कर देते। लगभग 15 मिनट में सारे तीली – बंडल खत्म हो गये। सभी टोलियों के एक – एक सदस्य ने आकर ब्लैकबोर्ड पर लिखा कि किसने कितने तीली – बंडल जीते । शिक्षक ने प्रत्येक टोली में से एक - एक सदस्य को बोर्ड के पास बुलाया और कहा – मैं अब एक संख्या बोलूँगा, उसे तुम्हें जल्दी से लिखना है। टोली के शेष सदस्यों को उस संख्या के लिए कितने बंडल तीली लगेंगे, जल्दी से अपनी पड़ोसी टोली को देना है। गतिविधि शुरू हुई। शिक्षक ने कहा बोर्ड के पास खड़े बच्चों ने झट से 45 लिख दिया। सभी टोली के शेष सदस्यों ने एक – दूसरे को बंडल और 5 तिलियां दे दी। बोर्ड के पास खड़े बच्चे टोली में चले गये और दुसरे बच्चे आ गये। इस बार शिक्षक ने 76 कहा। बोर्ड के पास खड़े बच्चों में से दो ने 76, एक ने 66 और तीन टोली के बच्चों ने दूसरे बच्चों के लिखने के बाद 76 लिखा। कक्षा में बैठे बाकी टोली के बच्चे शोर मचाने शोर मचाने लगे। देखकर लिखा, देखकर लिखा। सभी टोली ने एक दूसरे को 7 बंडल और 6 तीलियाँ दे दीं। क्रम तब तक चलता रहा जब तक सभी बच्चों को एक – एक बार संख्या लिखने मौका न मिल गया हो। मूल्यांकन बिन्दु शिक्षक निरिक्षण करते और पड़ने पर नोट करते रहे कि –
गणित कक्षा में अभिलेखन तथा सूचित करना (रिपोर्टिंग तथा रिकॉर्डिंग) विद्यार्थियों के निष्पादन की रिपोर्टिंग तथा रिकॉर्डिंग आकलन प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक तरफ रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया, आकलन के विभिन्न उपकरणों व विधियों द्वारा बच्चों की प्रगति और विकास के प्रमाणों के अनुसार उचित अधिगम स्तरों में वर्गीकरण/संगठन करने को रिपोर्टिंग कहा जा सकता है। इसे, और आगे सीखने के लिए, बच्चों की पहचान और उनकी सहायता करने, चयन प्रमाणीकरण या अभिभावकों को रिपोर्टिंग करने के लिए किया जाता है। विद्यार्थियों के प्रगति की रिपोर्टिंग के कार्य को विद्यार्थियों के अधिगम और विकास के आकलन की प्रक्रियाओं से अलग नहीं किया जा सकता है। आकलन संकेतकों को प्रदर्शन तथा प्रासंगिक कार्यों व तकनीकों के आधार पर स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए। साथ ही आकलन प्रक्रियाओं का उचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके बाद रिपोर्टिंग व रिकॉर्डिंग का अर्थ केवल परिणामों का सार करना और समझने योग्य रूप में उन्हें प्रदर्शित करना भर रह जाता है। यह कार्य जटिल हैं, क्योंकि अधिगम व विकास के प्रमाणों को अत्यंत संक्षिप्त रिपोर्ट के रूप में प्रदर्शित करना भर रह जाता है जो कि विभिन्न भागीदारों (विद्यार्थी, अभिभावक, शिक्षक, प्रशासक आदि) के समझने योग्य हो। उपरोक्त चर्चा को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक बच्चे के विषय संबंधी अधिगम को अधिक बेहतर रूप से समझने के लिए प्रत्येक विद्यार्थी के आकलन के आंकड़ों को चरणबद्ध रूप में रिकार्ड करने की आवश्यकता है। इसकी जरूरत विशेष रूप से गणित सीखने के निम्नलिखित पांच आयामों में हैं –
1. लिखित मौखिक, क्रियाकलापों और द्त्ताकार्यों के माध्यम से संकलित सभी प्रमाणों को महत्व दिया जाना चाहिए। 2. विद्यार्थी की योग्यता के उन सकरात्मक पक्षों के बारे में रिपोर्ट करने का प्रयास करना चाहिए जिसमें वह प्रगति कर रहा है। 3. बच्चों को सिर्फ ग्रेड देना ही पर्याप्त नहीं है। क्योंकि प्राथमिक कक्षाओं के बच्चे ग्रेड के आधारभूत विचार को शायद न समझे। इसके साथ साथ बच्चे के अधिगम स्तर को भी इंगित करना चाहिए तथा चाहिए तथा बच्चे के गुणात्मक पक्षों, सबल पक्षों, अधिगम रूकावटों के बारे में टिप्पणी, बच्चे के अन्य व्यवाहरिक पक्षों को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
कक्षा में पर्यावरण अध्ययन का सतत एवं व्यापक मूल्यांकनयदि आप प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण अध्ययन पढ़ा रहे हैं तो आपने अनुभव किया होगा कि बच्चे इस विषय को आनंदपूर्वक सीखते हैं यदि उन्हें उनके अनुभव को बाँटने के लिए अवसर दिया जाये। यदि उनसे उनके परिचित चीजों के बारे में बताने के लिए कहा जाए तो वे पर्यवारण अध्ययन विषय की कक्षा में रुचि लेते है। आपने यह भी अनुभव किया होगा कि प्राथमिक कक्षाओं के बच्चे किसी घटना/परिस्थिति/अधिगम अनुभव का वर्णन समग्र रूप से करते हैं न कि हिस्सों में। इसलिए प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन को पाठ्यचर्या का एक समावेशी हिस्सा माना गया है। कक्षा 1 व 2 में आप इसे गणित व भाषा विषय में साथ एकीकृत करके पढ़ा रहे होंगे। कक्षा 3 – 5 में पर्यवारण अध्ययन को पाठ्यचर्या के प्रमुख पाठ्यक्रम क्षेत्र के रूप में पढ़ते होंगे। पर्यावरण अध्ययन की समावेशी प्रकृति, बच्चों की अवधारणाओं को अधिक अर्थपूर्ण ढंग से सीखने में सहायता करती है तथा पाठ्यचर्या के बोझ को कम करती है। वास्तविक सीखने वाले होने के नाते बच्चे दुनिया को विषयों/ज्ञान क्षेत्रों में बांटकर नहीं देखते हैं। उदहारण के लिए – एक बच्चा एक तितली को समग्र रूप में देखता है न कि विभिन्न ज्ञान क्षेत्रों में बाँट कर व्याख्या करता है जैसे तितली की सुंदरता (सौन्दर्य) यह किस प्रकार का प्राणी है (कीट) या इसका फूल के लिए क्या महत्व है? (पराग या इसके पंखों पर बने प्रतिमान (नमूना) या शरीर के भाग आदि। अत: इस स्तर पर शिक्षण – अधिगम की की शिक्षण विधि स्वभावत: विद्यार्थी केंद्रित तथा थीमेटिक होना चाहिए। सचेत रह कर प्रत्यक्ष सूचना, परिभाषा या विवरण देने से बचने के प्रयास करने चाहिए क्योंकि बच्चे अपने लिए ज्ञान की रचना स्वयं करते हैं। हालाँकि इसके लिए कक्षा के भीतर तथा कक्षा के बाहर विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके, कई प्रकार के अनुभव प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। जब स्कूल ज्ञान उनके दैनिक जीवन से जोड़ दिया जाता है तो वह ज्यादा अच्छे से सीखते है। हम सभी इस बात से सहमत हैं। कि जब साथ – साथ या अधिगम के दौरान आकलन किया जाता है या शिक्षण अधिगम किया जाता हैं तो बच्चों की सीखने में आ रही रूकावटों को पहचानने में सहायता मिलती है तथा अपनी शिक्षण – अधिगम को बेहतर बनाने के लिए उचित समय पर पृष्ठापोषण उपलब्ध कराने में मदद मिलती हैं। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा – 2005 पर आधारित नई पाठ्यपुस्तकों में आपने पाया होगा कि आकलन क्रियाकलापों को और प्रश्नों को पाठ के अंत में स्थान नहीं दिया गया है। यह प्रत्येक पाठ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पर्यावरण अध्ययन की कक्षा में ध्यान रखने योग्य कुछ बातें –
पर्यावरण अध्ययन कक्षाओं से हम क्या उम्मीद करते हैं? आर. टी. ई. एक्ट में निर्धारित प्रावधान के अनुसार बच्चों के सर्वांगीण विकास अर्थात शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक पक्ष पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इन सभी पक्षों/ आयामों को तभी पोषित किया जा सकता है जब बच्चे को विद्यालय के भीतर व बाहर सीखने के लिए कई प्रकार के अधिगम अवसर प्राप्त हो। इन सब आयामों का आकलन करने के लिए बच्चे के व्यक्तित्व से संबंधित समग्र चित्र निर्मित किया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि विभिन्न सूचनाएं जैसे – बच्चे की रुचि, ज्ञान, समझ, कौशल, अभिप्रेरणा, विद्यालय के भीतर व बाहर अधिगम परिस्थितियों के सन्दर्भ में एकत्रित की जाएँ। हम चाहते है कि बच्चे पर्यावरण अध्ययन को विभिन्न प्रकार के कौशल अवधारणात्मक ज्ञान, भावनाएं, अभिवृति और संवेदनशीलता का विकास करके सीखें। अध्यापकों के लिए अधिगम के विभिन्न सूचकों का निर्धारण किया गया है। ताकि अध्यापक अधिगम कार्यों के लिए इन सब पक्षों का समावेश करके पूर्ण योजना बना सकें। ये सूचकांक कक्षा 3 व कक्षा 5 के लिए तैयार किये गये हैं। एक समयावधि के भीतर कौशल, मूल्य, अभिवृति, भाव आदि का विकास अपेक्षित है। पर्यावरण अध्ययन अधिगम के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद् ने प्राथमिक स्तर पर निम्नाकिंत सूचकांक निर्धारित किये है। 1. अवलोकन व रिपोर्टिंग – वर्णन और आरेखन, चित्र अध्ययन, चित्र निर्माण, तालिका व नक्शा। 2. चर्चा – सुनना, बोलना, विचार की अभिव्यक्ति, दूसरों से सूचना प्राप्त करना। 3. अभिव्यक्ति – आरेखन, शारीरिक आवेग, सृजनात्मक लेखन, मूर्तिनिर्माण आदि। 4. व्याख्या – तर्क करना, तार्किक बनाना। 5. वर्गीकरण – श्रेणीबद्ध करना, समूह बनाना, तुलना करना, अंतर बताना। 6. प्रश्न करना – जिज्ञासु, तार्किक सोच, प्रश्न निर्माण। 7. विश्लेषण – अनुमान लगाना, परिकल्पना बनाना, निष्कर्ष निकालना। 8. प्रयोगात्मक – उन्नत रूप बनाना, प्रयोग करना व चीजें बनाना। 9. न्याय व समानता के प्रति चिंता – पिछड़े हुए या विशेष जरूरत वाले लोगों के प्रति संवेदनशीलता, पर्यवारण के प्रति जागरूकता। 10. सहयोग – जवाबदारी लेना और पहल करना, साथ मिलकर कार्य करना व साझा करना। निम्नाकिंत उदाहरणों से पर्यावरण अध्ययन कक्षा में बच्चों की आवश्यकताओं तथा संदर्भ के अनुसार सी. सी. ई. का इस्तेमाल करने की समझ विकसित की जा सकती है। इन्हें एनसीईआरटी की कक्षा 3 की पाठ्यपुस्तक के परिवार और मित्र तथा भोजन विषय – क्षेत्रों पर विकसित किया गया है। इसी प्रकार की प्रक्रिया आप कक्षा 4 व 5 में सी. सी. ई. के लिए भी उपयोग का सकते हैं। संदर्भ/ प्रवेश पर्यावरण अध्ययन क्रियान्वयन में बहूत महत्वपूर्ण स्थान रखते है। हमने पहला उदाहरण मणिपुर (उत्तर – पूर्व) के ग्रामीण क्षेत्र से लिया है। दूसरा उदहारण शहरी क्षेत्र (दिल्ली) में शिक्षण – अधिगम की प्रक्रिया को समझाता है। यद्यपि आकलन पद्धित संदर्भ के अनुसार नहीं बदलती हैं लेकिन दिए गये उदहारण पर्यवारण अध्ययन की पाठ्यसामग्री को चुनने/रूपांतरण करने, उसे विस्तार देने और ई. वी. एस के लिए अधिगम की परिस्थितियां बनाने में आपकी सहायता करेंगे क्योंकि शिक्षण – अधिगम और आकलन साथ – साथ चलते हैं। उदाहारण – 1 विषय क्षेत्र – परिवार और मित्र उप – विषय – पौधे कक्षा 3, पाठ – पौधे की कहानी बच्चों द्वारा क्या सीखे जाने की अपेक्षा है? लिकलाई एक सरकारी विद्यालय (थोबूल, मणिपुर) में प्राथमिक स्तर पर पर्यवारण अध्ययन पढ़ाती है। आज उसने अपने बच्चों को पौधों की कुछ विशेषताएं बताने की योजना बनाई है। लिक्लाई, महसूस करती है कि पाठ निम्नाकिंत अधिगम बिन्दुओं के आस – पास तैयार किया गया।
वह कुछ अधिगम परिस्थितियों की योजना बनाती है ताकि बच्चे निम्नलिखित कार्यों के लिए प्रोत्साहित हों –
अधिगम परिस्थितियों की कल्पना व रचना - इस पाठ को पढ़ाने से पहले लिकलाई ने अपने सहयोगी मेमचा से चर्चा की। उसने सलाह दी आप विभीन्न प्रकार के पौधें, पत्तियों व फूलों के चित्र एकत्रित कर कक्षा में बच्चों को दिखाएँ। लेकिन लिकलाई इससे सहमत नहीं थी। उसका मानना था कि पौधें के बारे में सीखने का सबसे अच्छा तरीका बच्चों को उनके परिवेश में उपलब्ध प्राकृतिक संसार से सीधा परिचय करवाना है। उसने बच्चों से बातचीत करके पौधें के बारे में विचार जानने की कोशिश की। लिकलाई (अध्यापिका)- आप पौधें को कहाँ देखते हैं? मिला – मैडम जी, पार्क में बगीचा में, जंगल में। थाजा – मैडम जी हमारे घर पर बहुत से पौधें लगे हुए हैं। गुना – जब मई पिछले महीने मामा के घर गया तो देखा कि सड़क के दोनों ओर से बहुत से पेड़ लगे हुए थे। लिकलाई – क्या आप कुछ पौधों के नाम बता सकते हैं? तोम्बा – वा (बांस), लपहू (केला), हीनाऊ (आम), सनारेई (गेंदा), अवथापी (पपीता), खामेन (बैंगन), मायेप्ली (चीनी गुलाब), नोबाप (नींबू वंश का पौधा) आदि। लिकलाई - क्या सभी पौधे एक जैसे दिखते हैं। मंजा – नहीं, मैडम जी। वे अलग – अलग होते हैं, कुछ लंबे. कुछ छोटे। लिकलाई – शाबाश, एक पौधें में आप कौन – कौन सी चीजें देखते हैं? पिंकी – मैडम जी हम पत्तियां और फल देखते हैं। गुना – मैडम जी, मैं चिड़ियाँ और तितली भी देखता हूँ। केकू – कुछ पौधों में फूल भी खिलते हैं। लिकलाई – अगर दुनिया में कोई पौधा न हो, तो क्या होगा? चोबी – मैडम जी, हमें फल, केले नहीं मिलेंगे। बाला – हमें सब्जी भी नहीं मिलेगी। सेम - मैडम जी कोई मधुमक्खी भी नहीं होगी। लिकलाई – आपको ऐसा क्यों लगता हैं? सेम – मेरे पिताजी मधुमक्खी पालन का कार्य करते हैं। वे कहते हैं मधुमक्खी फूलों का रस चूसती है तथा पेड़ों पर अपना छत्ता बनाती है। पिंकी – मुझे लगता है कि मेरे माता – पिता फसल नहीं उगा पाएंगे। कैकू – परंतु मैडम जी, मैंने टी. वी. पर रेगिस्तान देखा। उसमें कोई पौधा नहीं था, केवल रेत ही थी। वे कह रहे थे वहां पर बहुत गर्मी है। बच्चों के पूर्व अनुभावों को अध्यापकों को अध्यापिका/अध्यापक शिक्षण – अधिगम विधियों/उपागमों में चुनाव कर सकते है।
याद रखने योग्य बिन्दु शिक्षण अधिगम विधि का चुनाव करना अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। यह कार्य अवधारणा, संदर्भ और संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। पर्यावरण अध्ययन का एक प्रमुख उद्देश्य है अधिगम प्रक्रिया का सन्दर्भोंकरण करना। इस स्थिति में, उदाहारण उत्तर – पूर्व क्षेत्र से दिया गया है। हालाँकि, किसी शहरी परिस्थिति में बच्चों को इसमें ऐसी जगह ले जाना शायद संभव नहीं हो सकेगा। वहां इस क्रियाकलाप की योजना नजदीक के पार्क, बगीचे या विद्यालय परिसर के लिए बनाई जा सकती है। शिक्षण – अधिगम का आयोजन भ्रमण के लिए योजना लिकलाई बच्चों से कहती है कि वे सभी किसी बगीचे, पार्क, आदि की यात्रा के अपने अनुभवों को आपस में बांटे। चर्चा के कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं –
उसने बच्चों को उनके विचारों व अनुभवों को खुलकर व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि वह इन स्थानों के बारे में उनके अनुभव जान सके। फिर उसने बच्चों से कहा कि वे अगले दिन प्रकृति भ्रमण पर चलेंगे। बच्चे यह सुनकर बहुत उत्साहित हुए। लिकलाई ने इस कार्य के लिए कक्षा को पांच समूह में बांटा। प्रत्येक समूह में चाह बच्चे थे। उन्होंने कार्यक्रम की रूपरेखा बच्चों के साथ साझा की। (लिकलाई ने विद्यालय समय में ही एक दिन भ्रमण के लिए निर्धारित किया। हालाँकि समय की उपलब्धता, मौसम की स्थिति या अन्य सीमाओं को ध्यान में रखकर आप भ्रमण की गतिविधियों को 2 – 3 दिनों की अवधि में बाँट सकते हैं?। उसने सभी बच्चों से निम्नलिखित सामान लाने के लिए कहा –
कक्षा से बाहर की गतिविधियां भ्रमण के लिए प्रस्थान वह बच्चों को पैदल ले जाती है। रास्ते में वह आसपास के पौधें एवं जीव – जन्तुओं की ओर उनका ध्यान आकर्षित कराती है। लिकलाई – क्या सभी पौधों का आकार एक जैसा है? बच्चे – नहीं, मैडम कुछ बड़े तथा कुछ छोटे हैं। लिकलाई - आपको पौधों में कौन – कौन से रंग दिखाई दे रहे हैं? सेम – मैडम यह मोटा है? लिकलाई – आप ऐसा क्यों सोचते हैं? सेम – मैडम जी, मैं इसे अपनी दोनों बाँहों में भी नहीं पकड़ पा रहा हूँ। लिकलाई – क्या आप सभी इससे से सहमत हैं? बच्चे – हाँ, मैडम। चोबी – मैडम, मुझे लाल, पीले और बैगनी रंग की पत्तियां भी दिख रही है। लिकलाई – हाँ, क्या सभी पत्तियों का आकार एक सा है। सजनजोबा – मैडम, कुछ एक जैसी हैं कुछ अलग है। बच्चों ने विभिन्न प्रकार के पौधों के आकार उनके नामों और उनके भागों के बारे में चर्चा की। निर्धारित स्थान पर पहुँचने के पश्चात् उसने समूह के प्रत्येक बच्चे को कार्य दिए।
क्रियाकलाप (क्रियाकलाप – 1) 1. पौधे के तने का अवलोकन
*बच्चे अपनी क्षेत्रीय भाषा में पौधे का नाम लिख रहे थे। उन्हें ऐसा करने की छूट दी जा सकती है। शिक्षण – अधिगम के दौरान आकलन – उचित समय पर पृष्ठपोषण के लिए अध्यापक द्वारा अवलोकन*
*यह अवलोकन (उदाहरणार्थ) रिपोर्ट करने के लिए नहीं है परंतु बच्चों के अधिगम को सुधारने के लिए हैं। क्रियाकलाप पृष्ठ (क्रियाकलाप – 2) क्रियाकलाप – 2 के लिए, उसने बच्चों से कहा कि वे सारणी में सही का निशान लगाकर अपने अवलोकन को दर्ज करें। पौधे के तने की सतह
शिक्षण – अधिगम के दौरान आकलन तथा उचित समय पर पृष्ठपोषण (स्केफोल्डिंग* तथा सहपाठी अधिगम) लिकलाई ने अवलोकन किया कि तीन समूहों के बच्चे सतह शब्द के अर्थ को नहीं समझा पा रहे थे तथा अन्य बच्चे उनकी सहायता कर रहे थे, अन्य दो समूह के साथ उसने बातचीत की तथा इसका अर्थ समझाया। उसने बताया कि किसी सतह का खुरदरापन या चिकनापन उसके ऊपर उँगलियाँ या हाथ को फिराकर महसूस कर सकते हैं। बाद में बच्चों ने अपने दैनिक जीवन से खुरदरी तथा चिकनी सतह की चीजों के कई उदाहारण दिए। *(बच्चों के अधिगम को बेहतर बनाने के लिए सहायता देना) यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के द्वारा दिए गये उत्तर पर सही या गलत का लेबल नहीं लगाना चाहिए क्योंकि गलत उत्तर आपको यह समझने में सहायता करते है इस स्तर तक पहुँचने के पीछे कौन सी प्रक्रिया रही होगी। इसलिए बच्चों से पूछना चाहिए कि वे उस तथाकथित गलत उत्तर क्यों और कैसे पहुंचे। इससे बच्चों को अपने कार्यों का विश्लेषण करके बेहतर बनाने का मौका मिलता है। क्रियाकलाप पृष्ठ (क्रियाकलाप – 3) लिकलाई ने बच्चों को कहा कि अब वे यह पता लगायेंगे कि चूने पर कौन से कठोर। उसने बताया कि जब हम किसी वस्तु को हल्के – से दबाते हैं तो हमें उसके कठोर या मुलायम होने का अहसास होता है। यदि उसे हम हल्के – से दबा पाते हैं तो इसे मुलायम कहते है जैसे हमारी हथेलियों की त्वचा। लेकिन अगर हम बिलकूल दबा नहीं पाते तो उसे हम कठोर कहेंगें जैसे हमारे दांत, नाखून आदि। तने की सतह
अध्यापक द्वारा अवलोकन व सही समय पर पृष्ठपोषण
क्रियाकलाप पृष्ठ (क्रियाकलाप – 4) उसने बच्चों से पूछा, तने पर बनी आकृति को कागज पर कैसे छाप सकते हैं? बिनीता ने जवाब दिया, मैं आमतौर पर सिक्के पर कागज को रखकर उसके ऊपर क्रेयान को रगड़कर छाप लेती हूँ। मुक्ता ने कहा बिलकुल इसी तरह से तने की छाप कागज पर बना सकते हैं। लिकलाई ने कहा अच्छा। चलो कोशिश करते हैं। उसने पेड़ के तने की छाप के लिए कागज दिया। अध्यापक द्वारा अवलोकन (बच्चे के अधिगम को बेहतर बनाने के लिए अवलोकन) शिक्षण – अधिगम के दौरान आकलन उचित समय पर पृष्ठपोषण
लिकलाई ने बिनीता से कहा कि वह सभी बच्चों को, पेड़ के तने की छाप लेना दिखाएँ। अगले क्रियाकलाप में, लिकलाई ने बच्चों को विभिन्न तरह के पत्तियों का अवलोकन करे को कहा। उसने समझाया कि पत्तियां कई प्रकार से भिन्न हो सकती हैं जैसे रंग, आकार, गंध, सतह , मोटापन, किनारा आदि। उसने बच्चों को सारणी में अवलोकनों को दर्ज करने को कहा। पौधों के पत्तों का अवलोकन*
* बच्चे नीचे गिरे हुए पत्तों की छाप भी बना सकते हैं। उचित समय पर पृष्ठपोषण हेतु शिक्षण –अधिगम आकलन तोम्बो ने येनडेम पत्ते के आकार को गोल बताया। लिकलाई ने उसके उत्तर को सही मान लिया क्योंकि उसने इस पत्ते के आकार को इसी ढंग से समझा था। उसने समूह को अंडाकार तथा वृत्ताकार पत्ते दिखाकर उनके आकारों के बारे में चर्चा की। बाद में बच्चे दुसरे पौधों की अंडाकार तथा वृत्ताकार पत्तियों में अंतर करने लगे थे। उसने देखा कि कुछ बच्चे पौधों के अन्य भागों के बारे में भी अवलोकन और चर्चा कर रहे थे जैसे फल, फूल आदि। ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित किया गया। उन्हें और अधिक जानकारी उपलब्ध कराई गई।
जब सभी ने अपने अवलोकन करने का कार्य पूरा कर लिया और उसे तालिका में दर्ज कर लिया तो लिकलाई ने समूह के अनुसार उन्हें एकत्रित कर लिया। उसने बच्चों के साथ एक स्थानीय खेल (अमाअनिकतिका) खेला। बच्चों के एक समूह ने एक बड़ा से वृत्त बनाया और सबसे पहले थाजा ने अमा अनिकतिका कहते हुए गिनती शुरू किया। जिस बच्चे के हिस्से अंतिम शब्द पेट आया, उसे खेल के लिए चुन लिया गया। इस पारकर से चुने गये सभी बच्चे वृत्त में खड़े हो गये। केवल किला बच गई। वह वृत्त के बाहर खड़ी हो गई। वह चिल्लाई, हरा तना। सभी बच्चे हरे रंग का तना छूने के लिए दौड़ पड़े और छूने के बाद वापस वृत्त के भीतर आने की कोशिश करने लगे। वृत्त के भीतर आने से पहले ही मिला ने सेम को पकड़ लिया। अब वह मिला के स्थान पर खड़ा हो गया। उसने सभी को फूल छूने के लिए कहा है। और खेल इसी प्रकार चलता रहता है। दोपहर का भोजन करने के पश्चात् सभी वापस विद्यालय के लिए चल पड़े। वे वांगकूट का स्थानीय गीत (मणिपुर का पफसल कटाई का त्यौहार) गाते है। कुछ बच्चे क्षेत्रीय गीत मिटीलोन, कूकीलोन गाते हैं। सभी बच्चों ने वापस विद्यालय आते समय खूब आनंद लिया। लिकलाई सभी का अवलोकन करती है तथा इन गतिविधियां में सभी की सहभागिता सुनिश्चित करती है। वह उसी दिन अपने अवलोकन को अपनी दैनिकी में लिखती है। प्रत्येक बच्चे के सबल पक्ष जिन पर उसने ध्यान दिया। कक्षा की अनुगामी गतिविधियां – भ्रमण के पश्चात् अगले दिन सभी विद्यालय पहुंचे। लिकलाई ने पिछले दिन के भ्रमण के बारे में समूहों के साथ चर्चा की। सभी बच्चों को चर्चा में भाग लेने के लिए मौका दिया गया। चर्चा के कुछ बिन्दु इस प्रकार थे – अपने किन पौधों का अवलोकन किया?
लिकलाई ने प्रत्येक बच्चे को चर्चा के भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। समूह की रिपोर्ट को साझा करना (मौखिक) – समूह 1 की रिपोर्ट
याद रखने योग्य बातें मुख्य बात यह है कि शिक्षक की योजना की तुलना में अवलोकन की शुद्धता का आकलन न किया जाए, जैसा कि अधिकतर वास्तविक कक्षा – परिस्थितियों में होता है। इस तरह की प्रतिक्रियाओं पर रोक लगाने से बच्चों का न केवल आत्म सम्मान कम होगा बल्कि उनके भविष्य के अधिगम में भी रूकावटें उत्पन्न होगी। अध्यापक की डायरी में दर्ज किए गये ब्यौरे (शिक्षण – अधिगम के दौरान)*
शिक्षिका ने पाया कि अधिकांश बच्चे कठोर/मुलायम तथा खुदरा/ चिकनी सतह की तुलना करने के लिए बच्चों के दिमाग में कुछ छवियाँ होनी जरूरी हैं। उसने कहा यदि आपको इस धातु के पेंसिल बॉक्स की सतह जैसी चीज मिलती है। तो आप उसे चिकना कह सकते है। यदि आपको उस चीज की सतह किसी अनानास या मूंगफली के छिलके जैसी लगती है तो खुरदरी सतह हैं। उसने काई वस्तुयें बच्चों को दिखाई तथा खुरदरे/चिकने सतह तथा कठोर/मुलायम सतह की पह्चान करने के लिए त्वचा की सतह तथा कठोर के लिए दांत का उदाहरण दिया। बच्चों के अधिगम की कमियों को दूर करना*
*आप इस सूची में और सामग्री भी जोड़ सकते हैं। लिकलाई ने बच्चों से कहा कि वे इस कार्यकलाप को जोड़े में करें और अपने काम का मूल्यांकन भी करें। बाद में उसने इस क्रियाकलाप के उत्तर को श्यामपट्ट पर लिखा दिया और बच्चों से कहा कि वे आकलन, द्वारा प्राप्त अपने परिणामों की तुलना श्यामपट्ट पर लिखे उत्तरों से करें। इसी प्रकार, उपयुक्त तथा जरूरतों को ध्यान में रखकर, सहपाठियों द्वारा आकलन करने के और अधिक अवसर बच्चों को उपलब्ध कराए जा सकते हैं। उसने पाया की अभी भी कुछ बच्चे खुरदरा/चिकना होने में अंतर नहीं कर पा रहे थे। फिर उसने श्यामपट्ट पर कुछ सामग्रियों की सूची बनाई और घर पर परिक्षण करके उन्हें खुरदरे/चिकने तथा कठोर/मुलायम में वर्गीकृत करने के लिए कहा। उसने बच्चों से कहा की खाली समय में उनके परिवेश में उपलब्ध पौधों के तने की बनावट का अवलोकन करें। उन्होंने इस कार्य में अपने सहपाठियों की तथा घर पर अपने बड़ों से सहायता प्राप्त लेने के लिए भी कहा। (लिकलाई ने बच्चों को अपने परिवेश के आस – पास की ऐसी वस्तुओं का अवलोकन करने को का जिनमें पौधों और फूलों के डिजाईन हो। उसने बच्चों को उनके बड़ों से यह पूछने के लिए भी कहा कि पौधें हमारे लिए किस प्रकार उपयोगी हैं। याद रखने योग्य बातें बच्चों को स्वअधिगम के प्रति आकर्षित करना आकलन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। लेकिन अध्यापक को इस बारे में धैर्य रखना चाहिए। स्वअधिगम अता स्वआकलन करने की योग्यता का विकास एक धीमी प्रक्रिया है। हालाँकि, इसके लिए सतत तथा लगनपूर्वक प्रयास करने की तथा समय – समय पर अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता स्व तथा सहपाठी अधिगम के लिए अवसर बनाना (अधिगम के रूप में आकलन) लिकलाई ने देखा बच्चे स्व – आकलन में काफी रुचि ले रहे हैं। कक्षा में चर्चा के दौरान लिकलाई ने पाया कि कुछ बच्चों ने मुलायम//कठोर और खुरदरी/चिकनी सतह वाली कई ऐसी वस्तुओं के उदाहरण दिए जिसकी चर्चा कक्षा में नहीं की गई थी, परंतु परिवेश के कई और पौधों के बारे में जानकारी एकत्रित की तथा कक्षा में उन्हें अन्य बच्चों के साथ बांटा। चर्चा के दौरान कई बच्चों ने पेड़ – पौधों के अन्य उपयोगी जैसे फर्नीचर, टोकरियाँ, कागज आदि बनाने के किया जाता है, इसके अतिरिक्त उन्होंने पौधों की औषधीय उपयोगिता के बारे में भी बताया (स्व अधिगम) उपरोक्त क्रियाकलाप 7 – 8 दिनों में पूरा किये गये। इसी प्रकार उसने पाठ के अन्य क्रियाकलापों का आयोजन किया उसने प्रत्येक समूह को पौधा लगाने, उनके नाम रखने तथा देखभाल करने को कहा। उसने बच्चों को उनके प्रिय पौधा/फूल/फल के बारे में इसे प्रस्तुत किया। पाठ 2 के सभी क्रियाकलापों को पूरा करने में 10 – 12 दिन लगे। (हालाँकि क्रियाकलापों को पूरा करने में लगने वाला समय, बच्चों की अधिगम गति तथा अन्य प्रशासनिक सीमाओं पर निर्भर करता है)।
पाठ की समाप्ति के पश्चात आकलन (मानदंड आधारित आकलन)
क) लिकलाई ने पौधें की पत्तियां, जैसे धनियाँ, गाजर तथा कुछ ऐसे पौधों जो गंध वाले होते हैं, बच्चों को दिए और एक समूह के बच्चों से कहा आंखे बंद करके पौधों को बारी – बारी से सूंघकर उनके नाम बताएं। इसके पश्चात् उन्होंने इन पौधों की तुलना करके खुरदरे व चिकने सतह के अनुसार वर्गीकरण करने के लिए लिया कहा। ख) उसने बच्चों को उनके घर के आसपास के एक पौधा को चुनकर उसका अवलोकन करने के लिए कहा। बच्चे को उस पौधें के बारे में पांच वाक्य बोलने थे। बच्चे उस पौधें के बारे में भी बोल सकते थे। ग) उसने बच्चों को सूखे पत्ते दिए। उसने उन पत्तों में से पांच विभिन्न पत्तों को छापने/बनाने के लिए कहा। उसने उस छपाई के पैटर्न के अवलोकन करने को भी कहा। उसने पुछा ऐसी कोई तीन चीजों के नाम बताइए जहाँ अपने पत्तियों से बना हुआ कोई पैटर्न देखा। बाद में उसने वह पन्ने इकट्ठे किये जिसमें बच्चों ने पत्तों के चित्र बनाये थे या पत्तों के प्रिंट लिए थे। उन्होंने उसे खुरदरा और चिकना में भी विभाजित किया था। आकलन का मूल्यांकन : रिपोर्टिंग हेतु बच्चों की प्रगति की रिकार्डिंग उसने एक बड़ी कॉपी में प्रत्येक बच्चे के नाम के आगे उसके बारे में किये गये अवलोकनों को दर्ज किया। इस कॉपी में प्रत्येक बच्चे के लिए एक अलग पेज लगा हुआ था। उदहारण के लिए, उसने दो बच्चों के अवलोकनों को निम्न प्रकार से दर्ज किया –
हालाँकि, अधिगम आकलन की आवृति/समयाविधि आपके या विद्यालय द्वारा निर्धारित की जा सकती है। इस उदाहरण में, हमने एक पाठ के पूरा होने के पश्चात् आकलन का जिक्र किया है लेकिन यह किसी भी स्थिति में अनिवार्य नहीं है। आप 2 – 3 पाठों, इकाई या विषय के पूरा होने के पश्चात् मूल्यांकन करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके अलावा, आप आवश्यकतानुसार स्वयं भी आकलन के मापदंड निर्धारित कर सकते हैं। उदहारण – 2 बच्चों से क्या सीखे जाने की अपेक्षा है? मैं, स्वाति, केंद्रीय विद्यालय, दिल्ली में पर्यावरण अध्ययन पढ़ाती हूँ। पिछले महीने मैंने कक्षा 3 के बच्चों को भोजन विषय से परिचय कराने की योजना बनाई। मैंने कक्षा 3 के एन. सी. ई. आर. टी. द्वारा निर्धरित अध्ययन पाठ्यपुस्तक के भोजन विषय क्षेत्र में निम्नांकित अधिगम बिन्दु सम्मिलित हैं –
उपरोक्त लिखित अवधारणाओं के लिए आप पाएंगे कि अधिगम परिस्थितियां बच्चों को निम्नलिखित कार्यों में सक्षम कर सकेंगी – - विभिन्न क्षेत्रों/संस्कृति के व्यक्तियों द्वारा खाए जाने वाले भोजन की सराहना करना। - यह अवलोकन करना कि एक ही खाद्य सामग्री से विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किये जा सकते हैं। - कच्चा तथा पककर खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों पर चर्चा करना और उनका वर्गीकरण करना। - अपने अवलोकनों को दर्ज करना। - बिना पकाए बनने वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों की पहचान करना। - इन क्रियाकलापों से सक्रियतापूर्वक भाग लेना, आनंद लेना, साझा करना और मिलकर कार्य करना। - भोजन पकाने, खाने और अन्य क्रियाकलापों के लिए प्रयुक्त बर्तनों का अवलोकन करना। - भोजन पकाने में प्रयोग होने वाले ईंधनों का अवलोकन करना। - घर पर भोजन तैयार करने में जेंडर की भूमिका और रूढ़ियों के बारे में संवेदनशीलता विकसित करना। - चित्र अध्ययन व नाटक के द्वारा अवलोकन व विचार करना। अधिगम परिस्थितियों की कल्पना व रचना मेरी कक्षा में विभिन्न प्रदेशों के बच्चे हैं। मैंने सीचा की उनके भोजन के बारे में चर्चा करने से सभी को भोजन की विविधता के प्रति जागरूक करने में सहायता मिलेगी। मैंने विद्यालय के बगीचे में भोजन – अवकाश के समय एक पिकनिक कार्यक्रम का आयोजन करने का निर्णय लिया। प्रियंका उस दिन भोजन नहीं लाई थी क्योंकि उसकी मन की तबियत ठीक नहीं थी। उसके पिताजी ने उसे विद्यालय की कैंटीन से कुछ खरीदकर खाने के लिए पांच रूपये दिए थे लेकिन उस दिन विद्यालय कैंटीन भी बंद थी। आशुतोष ने उसके साथ अपना लंच बांटकर खाया और पांच मिनट में सभी ने एक दुसरे के साथ अपना – अपना भोजन साझा करना शुरू कर दिया। मैंने उनसे टीफिन का ढक्कन खोले बिना सूँघकर यह अंदाजा लगाने के लिए कहा कि वे क्या लाये होंगे। बच्चे एक बड़ा सा वृत्त बनाकर बैठ गये। उन्होंने पहले भोजन का अनुमान लगाया, फिर ढक्कन खोलकर देखा तथा अनुमान गलत होने पर अपने आप को ठीक किया। सबने विभिन्न प्रकार के व्यंजन के नाम बताये और पाने प्रिय खाद्य पदार्थों के नाम भी बताए। जब नेहा ने सोईबम इरोंबा (बांस बनने वाले एक सब्जी) का नाम एक खाद्य व्यंजन के रूप में लिया तो सभी बच्चे उसके बारे में जानने के इए उत्सुक हो उठे। उसने बताया कि जब उसके पिता इम्फाल में नौकरी करते थे उब उसने इसे खूब खाया था और इसका आनंद लिया था। कुछ बच्चों ने विभिन्न स्थानों के भोजन के बारे में बताया, जहाँ वे गये थे, पढ़ा था या सूना था सभी ने इस गतिविधि में खूब आनंद लिया। शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया की शुरूआत क्रियाकलाप – 1 चावल व गेंहू से बने व्यंजन इस छोटी – सी पिकनिक के बाद हम सभी कक्षा के भीतर आये। मैंने कक्षा 3 के पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 40 दिए गये कार्यपत्र को भरने के लिए बच्चों से कहा। कुछ बच्चे चुपचाप कार्य कर रहे थे जबकि कुछ बच्चे आपस में चर्चा कर रहे थे। कुछ देर बाद मैंने श्यामपट्ट पर गेहूं लिखा तथा बच्चों से उनके कार्यपत्रों पर लिखे उत्तर को एक – एक करके बताने को कहा। श्यामपट्ट
मैंने बच्चों से श्याम पट्ट पर लिखे नामों के अतिरिक्त और नाम बताने को कहा। अधिक उत्तर प्राप्त नहीं हुए।बच्चों ने केवल – चपाती, पराठा, ब्रेड के नाम लिया। इसके बाद मैंने बच्चों से पूछा कि आज उन्होंने सुबह के नाश्ते में क्या खाया। मुझे कई उत्तर जैसे दलीय, इडली, उपमा, कार्न – फ्लैक्स, सैंडविच, चॉकलेट दूध आदि। इनको मैंने श्यामपट्ट पर लिख दिया। मैंने बच्चों से कहा, इनमें से किन्हीं तीन व्यंजनों को चुनकर उनको बनाने में इस्तेमाल हुई सामग्रियों का नाम लिखिए। मैंने पाया कि अधिकांश बच्चे केवल कुछ ही व्यंजनों की थोड़ी सी सामग्रियों के नाम लिख सके। शैक्षिणक – अधिगम प्रक्रिया के दौरान मूल्यांकन (रिपोर्ट के लिए नहीं)
मैंने बच्चों से कहा कि वे अपने घर पर अवलोकन करें और बड़ों से बात करें और अपनी पसंद के किन्हीं दो व्यंजनों के बारे में पता लगायें कि उन्हें बनाने में किन चीजों का इस्तेमाल किया गया। दो दिन बाद बच्चों ने अपने अनुभवों के बारे में चर्चा की। इससे में बच्चों को कक्षा के बाहर की सीखने की विभिन्न परिस्थितियों से परिचित कराने में सक्षम हो सकूँगी जिससे सीखने की प्रक्रियाएं और समृद्ध होंगी। क्रियाकलाप – 2 बिना पकाए व्यंजन बनाना कच्चे/पकाकर/कच्चे और पकाकर भी खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों और पकाने के लिए ईंधन से परिचित करना के लिए एक अन्य क्रियाकलाप की योजना मैंने बनाई (बिना पकाए व्यंजन बनाना)। सर्वप्रथम, मैंने बच्चों से उनके द्वारा खाए गये व्यंजन के बारे में पूछा। मैंने बच्चों से पूछा कि उनके घर पर खाना किस प्रकार पकाया जाता है? सभी बच्चों ने कहा सिलिंडर और गैस स्टोव का इस्तेमाल करते हैं। मैंने उन्हें एक परिस्थिति दी, सोचो अगर गैस खत्म हो जाए और तुम्हें खाना बनाना हो तो तुम क्या करोगे? कुछ बच्चों ने शीघ्रता से कहा हम बाजार जाएंगे और खाने के लिए कुछ खरीद लेंगे। मैंने कहा ठीक है। फिर मैंने और प्रश्न किया मान लो आपके घर पर कुछ सदस्य ऐसे है जो बाजार में बना भोजन खाना पंसद नहीं करते हैं। आप क्या करोगे? क्या होगा? इस बार बच्चों ने कुछ देर सोचने के बाद निम्नांकित जवाब दिए – हीटर पर बना लेंगे स्टोव पर बना लेंगे पास के आंटी के घर जाकर बना लेंगे अब मैंने पूछा गैस पास वाली आंटी, स्टोव हीटर के अतिरिक्त कुछ और चीजों के बारे में बताइए जिनके द्वारा खाना बनाया जा सकता है। कुछ और विचार सामने आए जिसमें मैंने जोड़ा माइक्रोवेव, चूल्हा, भूंसा चूल्हा, गोबर का कंडा (कुछ बच्चों ने गाँव की दिवार पर चिपके गोबर का कंडा (कुछ बच्चों ने दिवार पर चिपके गोबर के कंडो की तरफ ध्यान दिया था जबकि दूसरों ने ध्यान नहीं दिया था। मैंने उनसे कहा अगली बार जब आप मवेशी रखने वाली जगह के पास हो तो कंडो पर जरूर ध्यान दें)। तब मैंने पूछा – बच्चों क्या आप कक्षा में कुछ व्यंजन तैयार करना चाहेंगे कुछ बच्चों ने पूछा मैडम कैसे पकाएँगे? सीमा ने कहा कुछ ऐसा पकाएँगे जिसमें गैस जरूरत न पड़े। मैंने उस जबाब पर जोर दिया, इसका मतलब हम कुछ खाद्य पदार्थ बिना पकाए भी बना सकते है। मैंने बच्चों से फिर पूछा - क्या आप कुछ ऐसे व्यंजन सोच सकते हो, जिन्हें बिना पकाए तैयार कर सकते हैं। बच्चों ने इसके जवाब में में कई नाम बता दिए – सैन्डविच, फलों की चाट, नींबू पानी, सलाद, लस्सी, शरबत, रायता, अंकुरित छोले चाट, अंकुरित मूंग चाट। मैंने अपनी कक्षा को 6 समूहों में बांटा। प्रत्येक समूह में 6 बच्चे थे। मैंने उनसे कहा कि प्रत्येक समूह एक खाद्य पदार्थ का चयन करे जिसे वे तैयार करना चाहते हैं। यह फैसला करने के लिए मैंने उन्हें पांच दिए। मैं प्रत्येक समूह के पास गई। मैंने प्रत्येक समूह का अवलोकन किया तथा देखा कि वे आपस में व्यंजनों के बारे में चर्चा कर रहे थे। इस दौरान मैंने बोर्ड पर एक तालिका बना दी। पांच मिनट गाद मैंने पूरी कक्षा से बात की। प्रत्येक समूह ने उस खाद्य पदार्थ का नाम बताया इसे वे बनाना चाहते थे।
बच्चों ने कहा – दो समूह नींबू पानी बना रहे है। मैंने कहा – हमें अब क्या करना चाहिए? उनमें से कुछ ने कहा, अलग - अलग चीजें बना लेते है। कक्षा में पार्टी करेंगे। समूह 1 ने कहा हम लस्सी बना लेते हैं। (मैंने समूह – 1 की पहल की प्रशंसा की और उनके द्वारा चयनित खाद्य पदार्थ में परिवर्तन करने के लिए मजबूर नहीं किया)। व्यंजन निर्धारित करने के बाद, मैंने प्रत्येक समूह को कहा कि उन सामग्रियों की सूची बनाए जिसका उपयोग व अपना व्यंजन बनाने में करेंगे। मैंने उन्हें सोचने व निर्णय लेने के लिए कुछ समय दिया। प्रत्येक समूह सूची बनाने के बाद मैंने प्रत्येक समूह से उन चीजों के नाम जोर से पढ़ने के लिए कहा। उन्होंने सूची पढ़ने के लिए अपने – अपने समूह से एक सदस्य को चुन लिया। मैंने श्यामपट्ट पर तालिका में लिखे व्यंजनों के नीचे वस्तुओं के नाम लिखना शुरू कर दिया। अध्यापक द्वारा अवलोकन और तुरंत पृष्ठपोषण (अधिगम के लिए) कुछ वस्तुओं के नाम गायब थे। समूह के सदस्यों द्वारा नहीं बताये गये थे। मैंने दुसरे विद्यार्थियों से चर्चा करके उनकी सहायता की ओर उनकी सूची को सुधारा। सभी समूह इन वस्तुओं को लाने के लिए सहमत हो गये तथा उसी के अनुसार अपनी – अपनी डायरी में लिख लिया। अगले दिन, कक्षा में किया गया। इस क्रियाकलाप का आयोजन और बच्चों ने समूह में कार्य करते हुए खूब आनंद लिया, और एक दुसरे के बनाये गये व्यंजनों को बांटा। मैंने बच्चों से उन बर्तनों के नाम लिखकर चित्र बनाने को कहा जिसका उपयोग उन्होंने अपने व्यंजन को तैयार करने में किया। बच्चों ने विभिन्न बर्तनों का चित्र बनाया जैसे चम्मच, कटोरा, गिलास, प्लेट आदि। मैंने प्रत्येक समूह के नीचे बच्चों के नाम लिखे तथा अपनी दैनिकी में उसी अपने अवलोकन को दर्ज किया। अध्यापक को दैनिकी (अधिगम के लिए आकलन) विशेष अवलोकन*
क्रियाकलाप 3 – रसोईघर में इस्तेमाल किये जाने वाले बर्तन रसोईघर में उपयोग में लाये जाने वाले विभिन्न बर्तनों व वस्तुओं से परिचित कराने के लिए, मैंने बच्चों को विद्यालय की कैंटीन में ले जाने की योजना बनाई। मैंने कक्षा में समूह में बांटा तथा उनको लिखने के लिए तख्ती दी। सभी बच्चे बहुत उत्साहित थे। वे कैंटीन के भीतर गये और वहाँ रखे बड़े – बड़े बर्तन देखे। मैं बच्चों को बातचीत करते, चर्चा करते और विभिन्न चीजों के बारे में कैंटीन के लोगों से पूछते सून सकती थी। प्रियांशू – मेरे मामा की शादी हूई थी तो मैंने इतने बड़े बर्तन देखे थे। निखिल – जब हमारे यहाँ कोई मेहमान आता है तब मेरी मम्मी बड़े बर्तन में खाना बनाती है। सागर – मैडम, मैंने तो पहली बार इतने बड़े बर्तन देखे हैं। (मैंने बच्चों को कैंटीन के बर्तनों को स्वतंत्रतापूर्वक देखने के लिए कुछ समय दिया।) कुछ बच्चों ने बड़ा गैस स्टोव व सिलेंडर की ओर ध्यान दिया। मारिया – मैडम, यह तो बहुत बड़ा गैस है। संजना – तीन सिलिंडर भी हैं। मैंने कहा – हाँ आपके अनुसार इसे बड़े गैस स्टोव पर क्या होता होगा? मधुर – गैस पर खाना बनाते होंगे? आयुष्मान – हमारे लिए समोसे बनाते होंगे? दस मिनट बाद, मैंने सभी समूहों से कहा, आपने रसोईघर में जिन चीजों को देखा उनका चित्र बनाकर उनके नाम अपनी भाषा में लिखें। बच्चों ने विभिन्न बर्तनों/वस्तुओं के चित्र बनाए जैसे, गैस स्टोव, तंदूर, फ्रिज, बर्तन आदि। उन्होंने कैंटीन के व्यक्तियों से प्रश्न भी पूछे। इनके बारे में बच्चों से पहले ही चर्चा की जा चुकी थी। अधिकतर प्रश्नों के सुझाव उन्हीं के द्वारा दिए गये थे, परंतु मैंने कैंटीन के व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पहलुओं की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया था। कुछ प्रश्न इस प्रकार थे – 1. कितनी बार खाना पकाया जाता है? 2. आप कौन – कौन सी चीजें पकाते हैं? 3. बाजार से सामग्री कौन लाता है? 4. एक महीने में कितने सिलिंडर का उपयोग करते हैं? 5. आप कहाँ सोते हैं? 6. इतने बड़े बर्तन आप ने कहाँ से ख़रीदे? 7. आपके लिए खाना कौन पकाता है? इसके बाद, हम कक्षा में आए और मैंने कक्षा के प्रदर्शन पर विद्यार्थियों द्वारा बनाये गये। चित्रों को लगाकर एक चर्चा का आयोजन किया। अगले दिन मैंने एनसीईआरटी की पर्यावरण अध्ययन पुस्तक के क्या पक रहा है (पृष्ठ 61 – 62) पाठ के कार्यपत्रों का उपयोग किया। बच्चों ने कागज पर बने बर्तनों पर रंग किया तथा उनको पहचाना। उन्होंने उन बर्तनों के नाम लिखे। बाद में उनके कार्यपत्र को मैंने उनके पोर्टफोलियो में लगा दिया। शिक्षण अधिगम के दौरान आकलन कुछ बच्चों ने स्कूल की कैंटीन के अवलोकन के दौरान केवल बर्तनों का चित्र बनाया\ तीन बच्चों (राजेश, नेहा और रवि) ने गैस स्टोव, तंदूर का भी चित्र बनाया। मिथलेश ने खाद्य पदार्थ को सुरक्षित रखने वाले फ्रिज का चित्र भी बनाया। मैंने पुछा – विद्यालय कैंटीन में बर्तनों का इस्तेमाल किस प्रकार किया जाता है? रौनक – खाना बनाने में। मैंने कहा – ठीक है। मधुर – हमने तो ऐसे भी बर्तन देखे थे जिसका उपयोग खाना खाने में करते हैं। मैंने श्यामपट पर एक तालिका बनाई।
बच्चों ने विभिन्न बर्तनों के नाम बताए और मैंने उन्हें तालिका में लिख दिया। साथ मिलकर हमने इनको अलग – अलग शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत कर दिया। क्रियाकलाप 4 – जेंडर संवेदनशीलता बच्चों को विभिन्न संस्कृतियों में भोजन बनाने व खाने में जेंडर भेदभाव व तरीकों में रूढ़िवादी परंपराओं के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए हमने एक नाटक करने की योजना बनाई। इसके लिए मैंने कक्षा को दो भागों में बांटा तथा दोनों को दो स्थितियां दी। एक समूह को एक घर की स्थिति दी जहाँ पत्नी और बेटियां खाना पकाने और सामान लाने का कार्य करती हैं। दुसरे समूह को एक ढाबे की स्थिति दी जिसमें सभी कार्य पुरूष करते हैं। मैंने उनके समूह को दी गई स्थिति का अवलोकन करने के लिए उन्हें एक सप्ताह का समय दिया तथा उसी के अनुसार उनके बीच भूमिकाओं का बंटवारा किया उन्होंनें नाटक के लिए संवाद भी लिखे। प्रत्येक समूह में लड़के व लड़कियां दोनों थे। उन्होंने अपने पात्र का नाम और भूमिका एक स्लिप पर लिखकर अपनी – अपनी कमीज पर लगा ली। कक्षा में सभी ने इसका आनंद उठाया। नाटक के बाद हमने कई बातों पर चर्चा की –
अधिगम का आकलन (योगात्मक आंकड़े) एक तिमाही के पश्चात् तीन महीने की शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया को पूरा करने तथा पाठ 5 के बाद मैंने निर्धारित मापदन्डों के आधार पर बच्चों के मूल्यांकन की योजना बनाई। मैंने तरीकों, जैसे लिखित परिक्षण, मौखिक गतिविधियाँ, चित्रांकन प्रयोग, सर्वेक्षण चर्चा, व्यक्तिगत तथा सामूहिक क्रियाकलापों आदि के द्वारा बच्चों का आकलन किया। मैंने प्रत्येक बच्चे की प्रगति ध्यान करने के लिए उनके पोर्टफोलियो और अपनी दैनिकी/लॉग बुक आकलन का भी उपयोग किया। विभिन्न स्रोतों के प्रमाणों का उपयोग करके एकत्रित किये गये कक्षा 3 के स्तर के मानदंडों को ध्यान में रखते हुए मैंने उनके प्रदर्शन का आकलन किया। मैंने इन आंकड़ों का नियमित रूप से आकलन किया। (अधिगम का आकलन) इनके आधार पर मैंने अपने रिकार्ड प्रारूप में बच्चों की प्रगति का 4 स्तरों पर आकलन किया। एक तिमाही के (अध्यापक का रिकार्ड) आकलन के आंकड़ों का रिकार्ड
समग्र रिपोर्ट के लिए (एक तिमाही की प्रगति के आकलन के लिए), मैंने प्रत्येक बच्चे के लिए के प्रोफाइल बनाया। मैंने उनकी प्रगति की रिपोर्ट चार स्तरीय पैमाने पर करने का निर्णय लिया तथा साथ में कुछ गुणात्मक विवरण भी दिया।
एक अन्य विकल्प हो सकता है ऐसा भी किया जा सकता है कि सभी बच्चों को केवल विभिन्न रंगों के सितारे दिए जाये। अंतिम स्तंभ की जानकारी (यदि आपको लगता है तो) को स्वयं/स्कूल तक रखा जा सकता है और यदि आवश्यकता पड़े तो माता – पिता या अन्य संबंधित व्यक्तियों के साथ इसे साझा किया जा सकता है। रंग कोडिंग पैटर्न को आप अपनी रुचि के अनुसार चुन सकते हैं तथा 2 – 3 साल के बाद इसे बदला भी जा सकता है\ हालाँकि, अगर आपको उचित लगे, जो जिन बच्चों को मदद की ज्यादा आवश्यकता है उनके लिए लाल रंग का प्रयोग करने से बचा जा सकता है। शिक्षक प्रत्येक बच्चे की प्रगति के बारे में सूचनाएँ भर सकते हैं और शिक्षक – अभिभावक की बैठक वाले दिन अभिभावक के साथ साझा कर सकते हैं। टिप्पणी – ऊपर दिया गया प्रारूप केवल एक सुझाव है। बच्चों की प्रगति को रिपोर्ट करने के पूर्वनिर्धारित मानदंडों/प्रारूपों से बचा सकता है। एक विकेंद्रित तरीके का उपयोग किया जा सकता है जिसमें लचीलापन जरूर हो। विद्यालयों को किसी भी तरीके को चुनने की स्वतंत्रता अवश्य ही दी जानी चाहिए। कला – शिक्षा में सतत एवं समग्र मूल्यांकनकला – शिक्षा विद्यालयी शिक्षा का एक अभिन्न अंग है। प्राथमिक कक्षाओं में, कला शिक्षा को अन्य विषयों के साथ समावेशित करने की बहुत जरूरत है। कला शिक्षा में अंतर्गत किये जाने वाले क्रियाकलापों का विषय (थीम) विद्यार्थियों के आस – पास के परिवेश से लिया जाना चाहिए और इस स्तर पर विद्यार्थी की स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर बल दिया जाना चाहिए। इस साझेदारी में चुनौती पूर्ण विद्यार्थियों की उपस्थिति को नजर अंदाज नहीं करना है। इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि विद्यार्थी आपस में स्वस्थ संबंध विकसित कर सकें। ज्यादातर गतिविधियां समूहों में आयोजित की जानी चाहिए और संसाधनों का साझा उपयोग किया जाना आवश्यक है। विद्यार्थियों के परिवेश और संदर्भो को समझने की बहुत जरूरत है और विद्यालय से अपेक्षित है कि उनकी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को महत्व दें। शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर बनाए गये चित्र की बिना समझ के साथ हूबहू नकल चित्रित करने के स्थान पर विद्यार्थियों की स्वयं की अभिव्यक्ति को स्थान देना महत्वपूर्ण है। प्रत्येक विद्यार्थी, जिनमें विशेष आवश्यकता वाले बच्चे भी शामिल हैं, को स्वतंत्र रूप से कला संबंधी गतिविधि में सक्रिय रूप से भाग लेने और स्व – अभिव्यक्ति हेतु अवसर देने चाहिए। चूंकि कला – शिक्षा के अंतर्गत दृश्य – कला, मंचन कला और शिल्प भी सम्मिलित है, इसलिए इसके द्वारा अधिगम के विस्तृत क्षेत्र को छुआ जा सकता है। शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक विद्यार्थी का अपना अलग सामाजिक, संस्कृतिक व आर्थिक परिवेश है, उन सबकी अपनी – अपनी योग्यताएं हैं अत: हमें उनके परिप्रेक्ष्य में उनकी कमजोरियों और मजबूत पक्षों की पहचान करनी होंगी। यह विद्यालय का दायित्व है कि उनको परिस्थितिनुसार कला – शिक्षा हेतु समय, स्थान व संसाधन दिए जाएँ और सुनिश्चित किया जाए कि उनका सतत व व्यापक मूल्यांकन सही प्रकार से हो सके। विद्यालय को कला – शिक्षा के लिए उचित अधिगम वातावरण के विकास हेतु प्राथमिक शिक्षा के अन्य क्षेत्रों की भांति, संसाधन उपलब्ध करवाना चाहिए। इस स्तर पर अधिगम के उद्देश्य इस प्रकार हैं –
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा – 2005 और कला – शिक्षा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा – 2005 ने कला शिक्षा और इसके कार्यक्षेत्र को पुन: परिभाषित किया है – अ) कला को अन्य पाठ्यचर्यक विषयों जैसे – गणित, भाषा व विज्ञान की भांति पाठ्यचर्यक विषय के रूप में स्वीकार करना। ब) इस परंपरागत भ्रान्ति को समाप्त किया जाए कि कला केवल शैक्षिक विषयों के संज्ञानात्मक पक्षों में सुधार लाने में सहायता करती है। स) कला को ऐसी अर्थपूर्ण प्रविधि के रूप में समुन्नता करना जिसमें संज्ञानात्मक, भावात्मक व क्रियात्मक पक्ष में आपस संबंधित हों। द) कला के सीखने संबंधी उस स्वरुप की पहचान करना जो नई - नई अनुभव जनित अधिगम प्रक्रियाओं के विकास के लिए निर्बाध संभावनाएं उपलब्ध करवाता है। य) आकलन की ऐसी युक्तियों का विकास एवं निर्माण जो बच्चों को अभिव्यक्ति की बढ़त एवं विकास की प्रक्रियाओं को व्यवस्थित रूप में प्रदर्शित कर सकें। प्राथमिक कक्षाओं में कला शिक्षा को अन्य पाठ्यचर्यक विषयों के साथ जोड़ा जाता है। कला के माध्यम से शिक्षा की बात कहाँ होती है जहाँ विद्यार्थी विभिन्न दृश्य व मंचन कलाओं का प्रयोग एक उत्तम शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया व आकलन को तकनीक के रूप में सीखने के लिए प्रयुक्त करते हैं। कला का अन्य विषयों के साथ समन्वयन एक द्विमूखी प्रक्रिया है जिसमें कला का प्रकारों का ज्ञान, भाषा, सामाजिक ज्ञान. विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान और गणित में प्रोजेक्ट, क्रियाकलापों व अभ्यास कार्यों के माध्यम से दिया जाता है। विद्यालयी शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों में, कला को विशेष रूप से अन्य पाठ्यचर्यक विषयों में समावेशित किया जाना चाहिए जैसे गणित, विज्ञान व भाषा जिसके अधिगम को ज्यादा समग्र, आनंददायी व प्रभावी बनाया जा सके। कला के विविध रूपाकारों द्वारा अभिव्यक्ति और कला द्वारा सीखना विद्यार्थियों के लिए ज्ञानार्जन को आसान बना देता है। विशेषकर उन विद्यार्थियों के लिए जिन्हें अधिगम में कठिनाइयाँ आती हैं। कलात्मक गतिविधियाँ उपचारात्मक होती हैं और विद्यार्थियों (विशेष आवश्यकता वाले भी) के भावात्मक विकास में सहायक होती हैं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि विद्यार्थियों को अधिगम उनके द्वारा प्राप्त अनुभवों के प्रकारों से प्रभावित होता है। अत: विद्यालयों में ऐसा वातावरण बनाया जाना चाहिए जो विद्यार्थियों के अधिगम को सकारात्मक रूप से प्रभावित करे और नए विचारों व अनुभवों का उदय हो। इसके लिए सर्वोत्तम तकनीक यह है कि एक ऐसी समावेशित अधिगम प्रविधि का प्रयोग हो जिसमें विषयगत सीमाएं दिखाई न दें और वे एक - साथ समान्वित होकर आकार लें। समूचा ध्यान विषयगत ज्ञान जैसे विज्ञान भाषा और गणित पर केंद्रित न होकर आस पास के परिवेश से सीखने और विभिन्न संबंधित उप – विषयों को विद्यार्थियों के दैनिक व रोजमर्रा के अनुभवों से जोड़ने पर होना चाहिए। सभी मुख्य कला व शिल्प के रूपाकारों में अनेक समानताएं विविधताएँ विद्यमान हैं। नीचे कुछ मुख्य थीम दी गई हैं, मुख्यत: प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम से ली गई हैं इनके इर्द गिर्द कला संबंधी सीखने – सिखाने का ताना बुना जा सकता है।
बच्चों को सीखने के लिए जो थीम या विषयवस्तु दी जाती है, बच्चे अपने सामाजिक सांस्कृतिक अनुभवों के परिप्रेक्ष्य में उन्हीं थीमों के इर्द – गिर्द सीखने का एक वृहत्तर , संसार रच लेते हैं। उदाहरण के लिए प्राकृतिक वातावरण से संबंधित विषय – तत्व, वन्य जीव, मानव द्वारा प्रयोग किये जाने वाले औजार, यातायात के साधन, परिवार व सगे संबंधी इत्यादि को प्राथमिक स्तर पर शामिल किया जा सकता है। प्राथमिक कक्षाओं में कला – शिक्षा में सतत एवं समग्र मूल्यांकन – एक फ्रेमवर्क
शिक्षक एक शैक्षिक स्तर में कम से कम तीन बार विद्यार्थी के विभिन्न पक्षों की बढ़त को प्रधानाचार्य/प्रधानाध्यापिका, अभिभावक व विद्यार्थी को सम्प्रेषित करेगी। यह रिपोर्ट निम्नलिखित मानकों पर आधारित होगी-
शिक्षक को प्रत्येक विद्यार्थी की उन्नति को बिना किसी प्रतियोगी व तुलना की भावना के आंकना चाहिए और बच्चे की स्वतंत्र अभिव्यक्ति व सहभागिता पर अधिक ध्यान देना चाहिए। सी. सी. ई. में शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक विद्यार्थी को, विशेष आवश्यकता वाले को भी समूचे अकादमिक सत्र में क्रियाकलाप/गतिविधि में भाग लेने का समान अवसर मिलें। कक्षा 1 – 5 तक के विद्यार्थियों के गुणात्मक आकलन हेतु शिक्षक द्वारा निम्नांकित मानदंड आधारित संकेतकों को प्रयोग में लाया जा सकता है। विद्यार्थी के सीखने की सकारात्मक रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के प्रयास करने चाहिए।
ऊपर दिए गये मानदंड सूझावात्मक है, तथापि शिक्षक इसमें बहुत कुछ जोड़ सकती हैं जो गतिविधियों के अनुसार उपयुक्त हो। मानदंडों के आधार पर विद्यार्थियों का प्रत्येक गतिविधि में आकलन किया जा सकता है। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के संदर्भ में उनकी विशेष क्षमताओं व आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इन्हीं मानदंडों को आधार बनाते हुए भिन्न – भिन्न संकेतक के परिप्रेक्ष्य में आकलन किया जाये। उदाहारण – 1 दूसरी कक्षा के विद्यार्थी का यह उदाहरण ऐसे कला – अनुभव को दर्शाता है जहाँ उसे रेखांकन व रंगों द्वारा एक जल स्रोत (झील, समुद्र, तालाब, नदी, नहर, मछली घर इत्यादी जो भी विद्यार्थी ने देखा हो), एक घर और दूसरी वस्तुयें तथा आस – पास का जीवन दर्शाना है। इस विशेष अभिव्यक्ति में विद्यार्थी ने एक तालाब बनाया है, उसके पीछे के घट और विशिष्ट शहरी दृश्य जहाँ आकाश के आर – पार एक बिजली के तार पर पक्षी बैठे हैं।
प्राथमिकत स्तर पर कला – समावेशित अधिगम इस कला – कार्य को आधार बनाकर अध्यापिका विद्यार्थी से पक्षी की आवाज निकालने या स्वयं की तूकात्मक कविता बनाकर पक्षी की तरह गाने या लहरों, मछलियों की तरह नाटकीय भंगिमाएं बनवा सकती है। इस चित्र की वस्तुओं से संबंधित कोई अन्य कविता या कहानी कहलवाई जा सकती है। विद्यार्थियों को अपने विचारों को एक – दुसरे के साथ साझा करने का कहलवाई जा सकती है। विद्यार्थियों को अपने विचारों को एक दुसरे के साथ साझा करने का मौका दिया जा सकता है। उदहारण- 2 यह उदाहरण कक्षा – 5 के विद्यार्थी के कला – कार्य का है। कक्षा को पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यचर्या से संबंधित विषय पर्यवारण संरक्षण का विषय दिया गया। विद्यार्थियों को एक दो मिनट की वीडियो फिल्म दिखाई गई जिसका विषय था – क्या होगा होगा यदि हमने अपना पर्यावरण नहीं बचाया? उन्हें सोचने, और स्थिति को अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। अब उन्हें एक चौथाई शीट पर अपने अनुभव को रेखांकित करने को कहा गया। उपर्युक्त चित्र, उसी गतिविधि का चित्रांकन है। यह –
उपर्युक्त पर्यावरण संरक्षण के चित्रों पर एक नाटक तैयार करवाया जा सकता है। शिक्षक सजगता को बढ़ाने हेतु अपना सहयोग दे सकती हैं। उदाहरणत: जब जड़ें कटती हैं तो मृदा अपरदन होता है। यह सामाजिक ज्ञान व विज्ञान दोनों से जोड़ा जा सकता है। उदहारण – 3 कक्षा - 3 में एक गाना सिखाया गया। ऋतु बसंत आयो रे डाल – डाल पर कोयल कूके पीहू - पीहू पपीहा बुलाए रे। यह गाना पहले अध्यापिका द्वारा गाया गया और फिर विद्यार्थियों से पूछा गया कि उन्हें वह पसंद आया या नहीं। 70 प्रतिशत विद्यार्थियों ने इस गीत की सराहना की। उसने बहुत ही सरल भाषा में गीत की विषय वस्तु के बारे में बताया। उसने यह सब ऊँची और स्पष्ट आवाज में तथा भाव भंगिमा व चित्रों के माध्यम से बताया ताकि विद्यार्थी (विशेष आवश्यकता वाले भी) आसानी से समझ सकें। विद्यार्थियों द्वारा कुछ सुझाव भी दिए गये जैसे मेरी दादी माँ गांव में रहती है और मधुमक्खियों और फलों के गाने गाती है। जब किसान बीज होते हैं या जब बारिश होती है तो वे गाना गाक़र आनंदित होते हैं। विद्यार्थियों ने बसंत गीत को याद किया, लिखा और उसके शब्दार्थों को समझा। उन्होंने इसे आधार बनाकर नृत्य तैयार किया, अपनी ड्राइंग पुस्तिका में चित्र बनाया, अपने घर व कक्षा के आस – पास की प्रकृति का अवलोकन किया और इस प्रकार ज्ञान का विस्तार जारी रहा\ सभी विद्यार्थियों, विशेषकर विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थी, को सम्मिलित करने पर खास ध्यान दिया गया। शिक्षक ने अवलोकन किया कि (शिक्षण – अधिगम के दौरान आकलन)
यह गतिविधि पर पूरे सप्ताह तक चली और शिक्षक ने अधिगम और आकलन हेतु इस प्रक्रिया का उपयोग किया\ यह अध्यापिका ने व्यक्तिगत रिकॉर्ड के लिए थी – आशिमा – वह समूह में कार्य करने में बहुत सहज है और दिए गये कार्य को पूरा करने में पूरा ध्यान देती है। चित्र और नृत्य गतिविधियों में उसकी प्रतिभा सराहनीय है। वह अत्यंत मिलनसार है और सबसे घुलमिल कर रहती है। उसने रीता, जो कि श्रवण – बाधित है, से प्रगाढ़ दोस्ती कर ली है। बर्नाड – वह दोस्तों के साथ अकरी करना पसंद करता है। वह बहुत अच्छा गायक है और बहुत सृजनशील भी क्योंकि उसी ने कक्षा में कविता गायन की गतिविधि सुझाई थी और स्वयं की भी 2 – 3 पंक्तियाँ बनाई थी। वह अपने काम पर ध्यान देने वाला विद्यार्थी है जो पढ़ने में मन लगाता है और अच्छा ज्ञान रखता है। स्त्रोत: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद् शिक्षक एवं शिक्षार्थी के संबंध में भाषा क्या भूमिका निभाती है?भाषा के बिना हम दैनिक कार्य नहीं कर सकते हैं। इसलिए मनुष्य के जीवन के लिए इसका महत्व बढ़ जाता है। बच्चा समाज में ही भाषा सीखता है व प्रयोग करता है, जिससे उसकी भाषा विकसित होती है । भाषा से सामाजिक व्यक्तिव का विकास होता है जिससे सामाजिक दक्षता भी बच्चों के अंदर पैदा होती है ।
भाषा शिक्षण में शिक्षक की क्या भूमिका है?भाषा की कक्षा में अध्यापक की भूमिका काफ़ी महत्वपूर्ण होती है. एक भाषा की कक्षा को रोचक बनाने में उसका ख़ुद का अध्ययन और अनुभव मददगार होता है. उसे इस संबंध में जितनी जानकारी होगी. वह खुद नई चीज़ों को सीखने और संदर्भों के साथ भाषा को जोड़ते हुए बच्चों के सामने रख सकेगा, बच्चों को सीखने में उतनी सहूलियत होगी.
भाषा और शिक्षा में क्या संबंध है?प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा प्रणाली के तहत सुशिक्षित बनाने हेतु प्रयासरत रहते हैं । इसीलिए भाषा का शिक्षा से घनिष्ठ संबंध है या हम यह कह सकते हैं कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं । बच्चे भाषा के माध्यम से ही हर प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने की कोशिश करते हैं ।
शिक्षण में भाषा का क्या महत्व है?भाषा शिक्षण (Language Teaching) एक प्रक्रिया है या हम कह सकते हैं कि एक माध्यम है जिसकी सहायता से इस बात पर बल दिया जाता है कि बालक को किस प्रकार से पढ़ना-लिखना सिखाया जाए जिससे बालक भाषा का समझ के साथ प्रयोग करना सीख सके। बच्चों की भाषा को उसके समाज के व्यवस्था के अनुरूप ढालने के लिए भाषा शिक्षण जरूरी होता है।
|