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इस बार दीपावली पर दिन में पूजा के मुहूर्त नहीं है। 24 अक्टूबर को शाम 5 बजे के बाद से ही लक्ष्मी पूजा की जा सकेगी। क्योंकि कार्तिक अमावस्या इसी शाम को शुरू होगी और अगले दिन शाम 5 बजे तक रहेगी। लेकिन 25 को सूर्य ग्रहण रहेगा। इसलिए लक्ष्मी पूजा के मुहूर्त शाम और रात में ही रहेंगे। 2000 साल बाद दीपावली पर बुध, गुरु, शुक्र और शनि खुद की राशि में रहेंगे। साथ ही लक्ष्मी पूजा के समय पांच राजयोग भी रहेंगे। ये ग्रह योग सुख-समृद्धि और लाभ का संकेत दे रहे हैं। इसलिए इस बार दिवाली बहुत शुभ रहेगी। सबसे पहले जानिए लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ समय... स्कंद, पद्म और भविष्य पुराण में दीपावली को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक कथा के मुताबिक महाराज पृथु ने पृथ्वी दोहन कर देश को धन और धान्य से समृद्ध बनाया। इसलिए दीपावली मनाते हैं। श्रीमद्भागवत और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक समुद्र मंथन से कार्तिक महीने की अमावस्या पर लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। मार्कंडेय पुराण का कहना है कि जब धरती पर सिर्फ अंधेरा था तब एक तेज प्रकाश के साथ कमल पर बैठी देवी प्रकट हुईं। वो लक्ष्मी थीं। उनके प्रकाश से ही संसार बना। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा की परंपरा हैं। वहीं, श्रीराम के अयोध्या लौटने के स्वागत में दीपावली मनाने की परंपरा है। पुराणों में है सजावट और दीपक लगाने की बात स्कंद और पद्म पुराण के अनुसार इस दिन दीपदान करना चाहिए। इससे पाप खत्म हो जाते हैं। ब्रह्म पुराण कहता है कि कार्तिक अमावस्या की आधी रात में लक्ष्मी अच्छे लोगों के घर आती हैं। इसलिए घर को साफ और सजाकर दीपावली मनाने की परंपरा है। इससे लक्ष्मी खुश होती हैं और लंबे समय तक घर में रहती हैं। दिवाली पूजा ऐसे करें 1. पानी के लोटे में
गंगाजल मिलाएं। वो पानी कुशा या फूल से खुद पर छिड़कर पवित्र हो जाएं। गणेश पूजा की सरल विधि ॐ गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए गणेश जी को पानी और पंचामृत से नहलाएं। पूजन सामग्री चढ़ाएं। नैवेद्य लगाएं। धूप-दीप दिखाएं और दक्षिणा चढ़ाएं। बहीखाता और सरस्वती पूजा फूल-अक्षत लेकर सरस्वती का ध्यान कर के आह्वान करें। ऊँ सरस्वत्यै नम: बोलते हुए एक-एक कर के पूजन सामग्री देवी की मूर्ति पर चढ़ाएं। इसी मंत्र से पेन, पुस्तक और बहीखाता की पूजा करें। इसके बाद विष्णु पूजा करें। विष्णु पूजा की विधि मंत्र - ॐ विष्णवे नम: भगवान विष्णु की मूर्ति को पहले पानी फिर पंचामृत से नहलाएं। शंख में पानी और दूध भर के अभिषेक करें। फिर कलावा, चंदन, अक्षत, अबीर, गुलाल और जनेऊ सहित पूजन सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद हार-फूल और नारियल चढ़ाएं। मिठाई और मौसमी फलों का नैवेद्य लगाएं। धूप-दीप दिखाएं और दक्षिणा चढ़ाकर प्रणाम करें। दीपक पूजन मंत्र - ॐ दीपावल्यै नम: 1. एक थाली में 11, 21 या उससे ज्यादा दीपक जलाकर लक्ष्मी जी के पास रखें। भगवान तो भाव के भूखे होते हैं, इसलिए सीधी-सच्ची बात ये है कि जो भी भक्ति भाव, पूजा इत्यादि आप कहीं भी बैठ कर करते हैं वह सब भगवान को स्वीकार्य होता है परंतु बात किसी भी चीज़ को सबसे बेहतर तरीके से करने की है तो शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार उचित दिशा और समय पर पूजा करें तो उससे आपका मन पूजा में और भी अच्छा लगेगा। आप ज़्यादा अच्छे मन से पूजा करेंगे तो उसका सकारात्मक असर आपके ऊपर भी दिखेगा और स्वाभाविक रूप से आपकी ज़िन्दगी बेहतर होती जाएगी। तो आइये इसके बारे में अधिक विस्तार से विश्लेषण करें। पूजा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ समयहमारे देश के महान ऋषि-मुनियों ने अपने तपोबल से जो ज्ञान अर्जित किया, वो उन्होंने सर्व-साधारण और समाज के हित के लिए शास्त्रों और ग्रंथों में लिखा। हमें भी उन में बताए गए निर्देशों का पालन करना चाहिए। शास्त्रों में बहुत सुबह यानी भोर का समय प्रभु के ध्यान और पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सुबह के समय वातावरण बहुत शाँत होता है और साथ ही प्रदूषण भी नहीं होता है। अगर आप भोर में ब्रह्म मुहूर्त के समय लगभग 4:30 या 5 बजे उठ सकें तो नित्य कर्म के बाद शुद्ध होकर आप ध्यान-पूजन में शांत भाव से बैठ जायें। वैसे तो ब्रह्म मुहूर्त 4 बजे ही शुरू हो जाता है पर आजकल कि भागदौड़ भरी ज़िंदगी में ख़ास तौर पर नौकरीपेशा लोगों के लिए 4 बजे उठना मुश्किल हो सकता है। लेकिन आप देखेंगे कि थोड़े से अभ्यास के बाद इस तरह से पूजा कर के दिन की शुरुआत करने के बाद आपको पूरे दिन एक बहुत ही सुंदर एहसास होगा। उसके बाद समय रहे तो ऑफिस जाने से पहले एक बार टहलते हुए पास के मंदिर में दर्शन करने के लिए भी जा सकते हैं। पूजा करने के अन्य समयवैसे तो भोर का समय पूजा-पाठ के लिए सर्वश्रेष्ठ है परंतु शास्त्रों के अनुसार भगवान की पूजा-अर्चना दिन में एक से अधिक बार भी कर सकते हैं। अपनी व्यस्तता के बीच संभव हो तो भोर में ध्यान, पाठ और भगवान की आरती के अलावा अन्य समय में भी पूजा पाठ किया जा सकता है। पूजा-पाठ के लिए जो अन्य समय उचित हैं वो इस प्रकार से हैं। सुबह में 9 से 10 बजे तक पूजा कर सकते हैंयदि आप स्वास्थ्य या किन्ही अन्य कारणों से भोर में पूजा नहीं कर सकते तो सुबह में 9 से 10 बजे तक भी आप पूजाकर सकते हैं। ये वो समय होता है जो अधिकतर कामकाजी पुरुषों या महिलाओं के लिए उचित भी होता है। अतः आप सुबह नहा धो कर 9 से 10 बजे तक के बीच में भी पूजा कर सकते हैं। दोपहर में 3 से 4 बजे तक पूजा कर सकते हैंकई लोग ऐसे कामकाजी भी होते हैं जो सुबह 9 से 10 बजे तक, अपने काम के सिलसिले में अतिव्यस्त होते हैं तो उनके पास बिलकुल भी समय नहीं होता कि वो सुबह 9 से 10 बजे तक वाली पूजा कर सकें तो उनके लिए बेहतर होगा कि वे दोपहर में तीसरी बार पूजा करने के समय में अपने घर के मंदिर के कपाट बंद कर दें। और दोपहर में 12 से 2 बजे तक पूजा कर सकते हैं। शाम को 5 से 6 बजे तक पूजा कर सकते हैंजिन्हे अपने काम के सिलसिले में, फिर वो चाहे व्यापार हो या नौकरी, सुबह से ले कर दोपहर तक पूजा करने का बिलकुल भी समय ना मिल पता हो तो वो वो अपनी पूजा शाम को कर सकते हैं। अमूमन शाम के समय अधिकतर लोगों के पास समय होता है जिससे कि वो अपनी पूजा शाम को कर सकते हैं। शाम के समय लगभग 5 से 6 बजे के आसपास आप अपनी पूजा और आरतीकर सकते हैं। रात में 9 से 11 बजे तक पूजा कर सकते हैंइन सब के बावजूद कोई-कोई दिन इतना व्यस्त जाता है कि आप सुबह के निकले निकले सीधे रात को घर आ पाते हैं। ऐसी परिस्थिति में यदि थकान के बाद भी आपका मन पूजा करने का कर रहा है तो आप रात में भी पूजा कर सकते हैं।घर लौटने के बाद रात में लगभग 9 से 11 बजे तक के आसपास आप पूजा कर लें फिर दिन की अंतिम आरती कर लें और भगवान को पूरी श्रद्धा से शयन करायें। सुबह भोर वेला में पूजा करने के अलावा शाम का समय भी बहुत ही श्रेष्ठ समय होता है ध्यान और पूजा-पाठ के लिए क्योंकि सूर्यास्त के बाद एक बार फिर वातावरण शाँत होने लगता है। अंत में आप जब सोने के लिए बिस्तर पर जायें तो दिन का समापन अच्छे विचारों और भगवान को धन्यवाद देने के साथ करें कि उन्होंने आपको और आपके परिवार को स्वस्थ, सुरक्षित और सद्बुद्धि से प्रेरित रखा। प्रार्थना जितनी सरल और सच्चे ह्रदय से होती है, उतनी ही जल्दी उसका असर होता है। हो सके तो किसी भी देवता का जिनका आप मुख्य रूप से स्मरण और पूजा करते हों, सोने से पहले अगर आप उनके नाम की एक माला जप कर के सोयेंगे तो आपका मन बिल्कुल निर्मल और शाँत हो जायेगा, साथ ही बहुत ही अच्छी नींद आएगी। पूजा-पाठ इसलिए ज़रूरी है क्योंकि जैसे हर काम को करने का एक विशेष ढंग होता है, उसी तरह भगवान की अराधना के जरिए सच्चे मन से की गयी आपकी पूजा भगवान तक ज़रूर पहुँचती है। अगर आप दिन में 5 बार पूजा करें तो बहुत अच्छा, नहीं तो अगर व्यस्त हैं तो आप ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर पूजा-पाठ करने के बाद शाम को भी एक बार अगर पूजा करें तो सुबह-शाम सच्चे मन से की गयी ये पूजा अंदर तक प्रफुल्लित और परिपूर्ण कर देगी। जीवन की असली सफलता बुरे विचारों और विकारों से अपने आपको बचा कर भगवान के पूजन-ध्यान से सच्ची प्रार्थना कर के भगवान का आशीर्वाद पाना ही है। शाम की पूजा का सही समय क्या है?शाम की पूजा का सही समय
ऐसा माना जाता है कि यह पूजा हमेशा सूर्यास्त के समय यानी सूर्यास्त के एक घंटे पहले और सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक इसका सही समय होता है। कभी भी संध्याकाल की पूजा रात्रि में नहीं करनी चाहिए। संध्या पूजा का सही समय गोधूलि बेला का ही माना जाता है।
संध्या प्रतिदिन कब करनी चाहिए?शाम 4 बजे से 6 बजे तक का समय संध्याकाल का होता है। लेकिन गर्मी के दिनों में 7 बजे तक भी शाम की बेला होती है। हर रोज सुबह उठकर स्नान करने के बाद पूजा-पाठ किया जाता है। लेकिन सुबह की पूजा जितनी जरूरी होती है उतना ही महत्व संध्याकाल या शाम के वक्त की पूजा भी होता है।
संध्या काल का समय कब से कब तक होता है?दिन का दूसरा प्रहर जब सूरज सिर पर आ जाता है तब तक रहता है जिसे मध्याह्न कहते हैं। इसके बाद अपरान्ह (दोपहर बाद) का समय शुरू होता है, जो लगभग 4 बजे तक चलता है। 4 बजे बाद दिन अस्त तक सायंकाल चलता है।
क्या रात में पूजा करनी चाहिए?आधी रात में करनी चाहिए काली पूजा
यह पूजा रात में ही होती है और सूर्योदय से पहले विसर्जन मूर्ति विसर्जित कर देने विधान है. रात्रि में चक्रपूजा, जो आवरण पूजा है, उसमें देवी के चारों ओर यन्त्र पर अवस्थित योगिनियों की पूजा अंग देवता, परिवार देवता तथा आवरण देवता के रूप में होती है.
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