शनि किस भाव में क्या फल देता है? - shani kis bhaav mein kya phal deta hai?

शनि किस भाव में क्या फल देता है? - shani kis bhaav mein kya phal deta hai?

शनि की दशाएं और प्रभाव 

मुख्य बातें

  • अलग-अलग महादशा में होते हैं शनिदेव के अलग-अलग तरह के प्रभाव

  • कभी अशुभ और कष्टदायी तो कभी शुभफल देने वाले होते हैं शनि

  • जानिए किस दशा में शनि के होने पर पड़ता है क्या असर

मुंबई: शनिदेव को ग्रहों में न्यायाधीश माना जाता है और ऐसा भी कहा जाता है कि उनकी महादशा से हर कोई दूर ही रहना चाहता है। कुंडली विज्ञान और ज्योतिष में शनि को लेकर कई सारी बातें कही जाती हैं और इन्हें  9 ग्रहों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली बताया गया है। साथ ही शनि की कई सारी दशाएं भी बताई गई हैं, जिनका अलग-अलग समय में अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं कि शनिदेव की किस दशा में होता है कैसा प्रभाव।

प्रथम भाव में शनि का प्रभाव: किसी की कुंडली में शनि के प्रथम भाव में होने पर, सामान्यत: वह व्यक्ति सुखी जीवन जीता है। अगर इस भाव में शनि अशुभ फल देते हैं तो रोग, गरीब और गलत काम करने वाला व्यक्ति हो सकता है।

द्वितीय भाव: दूसरे भाव में शनि के होने पर आदमी लालची हो सकता है और ऐसे लोग विदेश से धन लाभ कमाने जाने वाले होते हैं।

तृतीय भाव: तृतीय भाव में शनि के होने पर व्यक्ति संस्कारी, सुंदर शरीर वाला लेकिन थोड़ा आलसी होता है।

चतुर्थ भाव: जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में विराजमान हो जाते हैं, वह जीवन में अधिकतर बीमार और दुखी ही रहता है।

पंचम भाव: कुंडली में पंचम भाव का शनि हो तो व्यक्ति दुखी रहता है और दिमाग से संबंधित कामों में परेशानियों का सामना करता है।

षष्ठ भाव: जिनकी कुंडली के छठे भाव में शनि है, वह सुंदर, साहसी और खाने का शौकीन होते हैं।

सप्तम भाव: सप्तम भाव का शनि होने से व्यक्ति बीमारी से परेशान होता है और साथ ही गरीबी का सामना करता है। ऐसे लोगों के वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है।

अष्टम भाव: शनि के अष्टम भाव में होने पर व्यक्ति किसी भी काम में आसानी से सफल नहीं होता और उसे जीवन में कई बार भयंकर परेशानियों से गुजरना पड़ता है।

नवम भाव: ऐसा व्यक्ति जिसकी कुंडली में नवम भाव में शनि होते हैं, उसका धर्म-कर्म से विश्वास उठ जाता है। जीवन में पैसों की कमी बनी रहती है।

दशम भाव में शनि: शनि के दशम भाव में होने पर व्यक्ति धनी, धार्मिक होता है। ऐसे लोगों को नौकरी में कोई ऊंचा पद भी मिल जाता है।

एकादश भाव: कुंडली के ग्याहरवें भाव में शनि के होने पर व्यक्ति लंबी आयु वाला होने के साथ ही धनी, कल्पनाशील, स्वस्थ रहता है। साथ ही उसे सभी सुख मिलते हैं।

द्वादश भाव में शनि: द्वादश यानी बाहरवें भाव में शनि के होने पर व्यक्ति अक्सर अशांत मन वाला होता है और परेशान बना रहता है।

अशुभ शनि के लिए उपाय: कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति होने पर हर शनिवार तेल का दान करना चाहिए। शनिवार को पीपल की पूजा करने और सात परिक्रमा करने पर शुभ फल प्राप्त होता है।

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ज्योतिष में शनि को दशम और लाभ स्थान का स्वामित्व प्राप्त है। मनुष्य के जीवन में कर्म और उसके लाभ की स्थिति शनि से ही देखी जाती है। इसके अलावा ये ग्रह गूढ़ विद्या और रहस्य का भी कारक है। शनि को आठवें भाव का कारकत्व भी प्राप्त है। इसे नौ ग्रहों के मंत्रिमंडल में नौकर का दर्जा प्राप्त है। इसलिए शनि प्रधान व्यक्ति को कर्म बहुत करना पड़ता है। यह मजदूर और शोषित वर्ग का भी कारक है और न्यायपालिका पर भी इसका अधिकार है। शनि मनुष्य के कर्मों का फल उसे प्रदान करते है और जातक को न्याय देते है। यह एक पाप ग्रह है और इसकी दृष्टि जिस भी भाव पर जाती है उस भाव संबंधी फलों में कमी करती है ऐसा विद्वानों का कथन है। शनि मेष से लेकर मीन लग्न तक की कुंडली में अलग अलग भाव के स्वामी होकर विभिन्न फल प्रदान करते है। आज इस लेख में हम समझते है कि शनि का 12 लग्नों में जातक को क्या फल मिलेगा।

मेष लग्न - इस लग्न कुंडली के जातकों के लिए शनि परम राजयोग कारक होता है। शनि दशम और लाभ के स्वामी होने के कारण जातक को अथाह लाभ प्रदान करते है लेकिन इसके लिए शनि की स्थिति शुभ होनी चाहिए। इस कुंडली में अगर गुरु शनि की युति केंद्र या त्रिकोण में हो तो जातक ज्ञानी और गुणी दोनों होता है। 

वृष लग्न - इस लग्न कुंडली के जातकों के लिए शनि योगकारक होते है। भाग्येश और दशमेश होने के कारक शनि के शुभ फल जातक को प्राप्त होते है। शनि की शुभ स्थिति जातक को न्यायप्रिय, धर्मात्मा और साधु संतों का प्रिय बनाती है।

मिथुन लग्न - इस लग्न कुंडली के जातकों के लिए शनि कुछ अकारक होते है। इसका कारण उनकी मकर राशि का आठवें भाव में स्थित होना है। लेकिन कुम्भ राशि के भाग्य में होने के कारण जातक को शनि की शुभ स्थिति न सिर्फ दीर्घायु करती है बल्कि वो शोध करने वाला होता है। इस लग्न में अगर बुध और शनि की युति भाग्य या दशम स्थान में हो जाए तो जातक महान गणितज्ञ बनता है।

कर्क लग्न - इस लग्न कुंडली के जातकों के लिए शनि प्रबल अकारक हो जाता है। शनि इस कुंडली में प्रबल मारकेश का फल करता है। अगर कुंडली के आठवें भाव में शुभ ग्रह पीड़ित हो और चन्द्रमा शनि से दृष्ट हो तो जातक अल्पायु हो सकता है।

शनि कब शुभ फल देता है?

शनि अगर तुला राशि में भी बैठा हो तब भी यह शुभ योग अपना फल देता है। इसका कारण यह है कि शनि इस राशि में उच्च का होता है। माना जाता है कि जिनकी कुण्डली में यह योग मौजूद होता है वह व्यक्ति गरीब परिवार में भी जन्म लेकर भी एक दिन धनवान बन जाता है।

कुंडली में शनि का घर कौन सा होता है?

कुंडली का दशम भाव जिसे राज दरबार और पिता स्थान भी कहा जाता है, वहां पर शनि अच्छे परिणाम देता है। ऐसा व्यक्ति सरकार से भी लाभ प्राप्त करता है और जीवन का पूरा आनंद लेता है बहुत से ब्यूरोक्रेट और मंत्रियों की कुंडली में भी शनि इसी बात में बैठा होता है और ऐसे व्यक्ति कभी-कभी नामी ज्योतिष भी बन जाते हैं।

शनि क्या फल देता है?

भाग्येश और दशमेश होने के कारक शनि के शुभ फल जातक को प्राप्त होते है। शनि की शुभ स्थिति जातक को न्यायप्रिय, धर्मात्मा और साधु संतों का प्रिय बनाती है। मिथुन लग्न - इस लग्न कुंडली के जातकों के लिए शनि कुछ अकारक होते है। इसका कारण उनकी मकर राशि का आठवें भाव में स्थित होना है।

शनि का भाव क्या है?

किसी भी व्यक्ति की कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे मनुष्य के जीवन की दिशा, सुख, दुख,लाभ,हानि आदि सभी बातें निर्धारित हो जाती हैं। शनि को कर्म दण्डनायक के रूप में अधिक जाना जाता है। शनि कुंडली के त्रिक (6, 8, 12) भावों का कारक ग्रह है। शनि को सूर्य पुत्र कहा जाता है परन्तु इसे सूर्य पिता का शत्रु भी कहा जाता है।