मन मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि में सक्षम बनाती है।[1][2][3] सामान्य भाषा में मन शरीर का वह हिस्सा या प्रक्रिया है जो किसी ज्ञातव्य को ग्रहण करने, सोचने और समझने का कार्य करता है। यह मस्तिष्क का एक प्रकार्य है। Show
मन और इसके कार्य करने के विविध पहलुओं का मनोविज्ञान नामक ज्ञान की शाखा द्वारा अध्ययन किया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य और मनोरोग किसी व्यक्ति के मन के सही ढंग से कार्य करने का विश्लेषण करते हैं। मनोविश्लेषण नामक शाखा मन के अन्दर छुपी उन जटिलताओं का उद्घाटन करने की विधा है जो मनोरोग अथवा मानसिक स्वास्थ्य में व्यवधान का कारण बनते हैं। वहीं मनोरोग चिकित्सा मानसिक स्वास्थ्य को पुनर्स्थापित करने की विधा है। सामाजिक मनोविज्ञान किसी व्यक्ति द्वारा विभिन्न सामाजिक परिस्थितयों में उसके मानसिक व्यवहार का अध्ययन करती है। शिक्षा मनोविज्ञान उन सारे पहलुओं का अध्ययन करता है जो किसी व्यक्ति की शिक्षा में उसके मानसिक प्रकार्यों के द्वारा प्रभावित होते हैं। जिसके द्वारा सब क्रियाकलापो को क्रियानवृत किया जाता है। उसे साधारण भाषा में मन कहते है।। मन के भाग[संपादित करें]फ्रायड नामक मनोवैज्ञानिक ने बनावट के अनुसार मन को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया था :
फ्रायड ने कार्य के अनुसार भी मन को तीन मुख्य भागों में वर्गीकृत किया है।
ईगो (अहम्) का मुख्य कार्य वास्तविकता, बुद्धि, चेतना, तर्क-शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय-शक्ति, इच्छा-शक्ति, अनुकूलन, समाकलन, भेद करने की प्रवृत्ति को विकसित करना है। मन के प्रकार्य[संपादित करें]मनोरोग चिकित्सा[संपादित करें]चिकित्सा विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा जो कि मनोरोगों के उपचार, निदान एवं निवारण से संबंध रखती है।पर यह कार्य नही करती हर प्राणी पर | मनोविज्ञान[संपादित करें]विज्ञान की वह शाखा जिसमें मन की सामान्य क्रिया का अध्ययन किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों के प्रशिक्षण के लिए चिकित्सा का ज्ञान जरूरी नहीं है, इसलिए मनोवैज्ञानिक अक्सर केवल मनोरोगों की जांच-पड़ताल (न कि उपचार) में सहयोग देते हैं मनोविश्लेषण[संपादित करें]मनोरोगों की उत्पत्ति के कारणों का पता लगाने की एक विधि जो कुछ प्रकार के मनोरोगों, जैसे हिस्टीरिया आदि के उपचार में भी सहायक होती है। इसके लिए मनोरोग चिकित्सा या मनोविज्ञान की जानकारी होनी चाहिए। आध्यात्मिक[संपादित करें]मन एक भूमि मानी जाती है, जिसमें संकल्प और विकल्प निरंतर उठते रहते हैं। विवेक शक्ति का प्रयोग कर के अच्छे और बुरे का अंतर किया जाता है। विवेकमार्ग अथवा ज्ञानमार्ग में मन का निरोध किया जाता है, इसकी पराकाष्ठा शून्य में होती है। भक्तिमार्ग में मन को परिणत किया जाता है, इसकी पराकाष्ठा भगवान के दर्शन में होती है। जीवात्मा और इन्द्रियों के मध्य ज्ञान मन कहा जाता है। मन को शांत कैसे करे[संपादित करें]मन को शांत करना आसान नही, लेकिन अगर आप मन को शांत करने पर विजय पा जाते है तो आप जीवन के कठिन से कठिन चुनौतियो से आसानी से उबर सकते है। मन हमारा बहुत चंचल होता है "पीपल पात सरस मन डोला" मन हमारा पीपल के पत्ते जैसा हल्का होता है हल्का का अर्थ मन के लिये चंचलता से है, हमारा मन बहुत चंचल होता है थोडी सी विचलन से ही विचलित हो जाता है, मन को शांत कसे करे आगे पढे इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
मन शरीर में कहाँ रहता है?मन का निवास हमारे सर में होता है। जिसे मस्तिष्क कहते हैं। यह हमारी भृकुटी से चलकर सर के पीछे के उभरे हुए भाग तक फैला हुआ है। इसमें दायां और बायां दो भाग होते हैं।
मन और आत्मा में क्या अंतर है?मन चंचल है और आत्मा अमर है। मन बहुत चंचल होता है और हमे अच्छे बुरे चीज के बारे में सोचने समझने और काम करने में मदद करता है। आत्मा अमर है ऐसा सभी बोलते है और ये भी प्रत्येक जीव में रहता है। इसके बिना कोई भी जीव जीवित नहीं रह सकता है।
हमारे शरीर में मन क्या है?मन मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि में सक्षम बनाती है। सामान्य भाषा में मन शरीर का वह हिस्सा या प्रक्रिया है जो किसी ज्ञातव्य को ग्रहण करने, सोचने और समझने का कार्य करता है।
मन की उत्पत्ति कैसे हुई?मन की उत्पत्ति से क्या अभिप्राय है, क्योंकि मन आत्मा की एक कर्मइंद्रिय है आत्मा जिसके द्वारा संकल्प (विचार) करती है और आत्मा की दूसरी कर्मइंद्रिय बुद्धि जिसके द्वारा निर्णय लेने का कार्य आत्मा करती है और इस प्रकार जो कर्म आत्मा करती है वह संस्कार बनते हैं यानि कि तीसरी कर्मइंद्रिय है, आत्मा से मन का जुड़ाव ऎसे ही है ...
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