लेखिका परिचय लेखिका बेबी हालदार का जन्म जम्मू कश्मीर के किसी स्थान पर हुआ, जहाँ सेना की नौकरी में उनके पिता तैनात थे। इनका जन्म संभवतया 1974 ई. में हुआ। परिवार की आर्थिक दशा कमजोर होने के कारण तेरह वर्ष की आयु में इनका विवाह दुगुनी उम्र के व्यक्ति से कर दिया गया। इस कारण उन्हें सातवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 12-13 वर्षों के बाद पति की ज्यादतियों से परेशान होकर वे तीन बच्चों सहित पति
का घर छोड़कर दुर्गापुर से फरीदाबाद आ गई। कुछ समय बाद वे गुड़गाँव चली आई और घरेलू नौकरानी के रूप में काम कर रही हैं। इनकी एकमात्र रचना है-आलो-आँधारि। यह मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखी गई तथा बाद में इसका हिंदी अनुवाद किया गया। पाठ का साराशी आलो-आँधारि-लेखिका की आत्मकथा है-यह उन करोड़ों झुग्गियों की कहानी है जिसमें झाँकना भी भद्रता के तकाजे से बाहर है। यह साहित्य के उन पहरुओं के लिए चुनौती है जो साहित्य को साँचे में देखने के आदी हैं, जो
समाज के कोने-अँतरे में पनपते साहित्य को हाशिए पर रखते हैं और भाषा एवं साहित्य को भी एक खास वर्ग की जागीर मानते हैं। यह एक ऐसी आपबीती है जो मूलत: बांग्ला में लिखी गई, लेकिन पहली ऐसी रचना जो छपकर बाज़ार में आने से पहले ही अनूदित रूप में हिंदी में आई। अनुवादक प्रबोध कुमार ने एक जबान को दूसरी जबान दी. पर रूह को छुआ नहीं। एक बोली की भावना दूसरी बोली में बोली, रोई, मुसकराई। लेखिका अपने पति से अलग किराए के मकान में अपने तीन छोटे बच्चों के साथ रहती थी। उसे हर समय काम की तलाश रहती थी। वह सभी को
अपने (लेखिका) लिए काम ढूँढ़ने के लिए कहती थी। शाम को जब वह घर वापिस आती तो पड़ोस की औरतें काम के बारे में पूछतीं। काम न मिलने पर वे उसे सांत्वना देती थीं। लेखिका की पहचान सुनील नामक युवक से थी। एक दिन उसने किसी मकान मालिक से लेखिका को मिलवाया। मकान मालिक ने आठ सौ रुपये महीने पर उसे रख लिया और घर की सफाई व खाना बनाने का काम दिया। उसने पहले काम कर रही महिला को हटा दिया। उस महिला ने लेखिका से भला-बुरा कहा। लेखिका उस घर में रोज सवेरे आती तथा दोपहर तक सारा काम खत्म करके चली जाती। घर जाकर बच्चों को
नहलाती व खिलाती। उसे बच्चों के भविष्य की चिंता थी। जिस मकान में वह रहती थी, उसका किराया अधिक था। उसने कम सुविधाओं वाला नया मकान ले लिया। यहाँ के लोग उसके अकेले रहने पर तरह-तरह की बातें बनाते थे। घर का खर्च चलाने के लिए वह और काम चाहती थी। वह मकान मालिक से काम की नयी जगह ढूँढ़ने को कहती है। उसे बच्चों की पढ़ाई, घर के किराए व लोगों की बातों की भी चिंता थी। मालिक सज्जन थे। एक दिन उन्होंने लेखिका से पूछा कि वह घर जाकर क्या-क्या करती है। लेखिका की बात सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने स्वयं को
‘तातुश’ कहकर पुकारने को कहा। वे उसे बेबी कहते थे तथा अपनी बेटी की तरहमानते थे। उनका सारा परिवार लेखिका का ख्याल रखता था। वह पुस्तकों की अलमारियों की सफाई करते समय पुस्तकों को उत्सुकता से देखने लगती। यह देखकर तातुश ने उसे एक किताब पढ़ने के लिए दी। तातुश ने उससे लेखकों के बारे में पूछा तो उसने कई बांग्ला लेखकों के नाम बता दिए। एक दिन तातुश ने उसे कॉपी व पेन दिया और कहा कि समय निकालकर वह कुछ जरूर लिखे। काम की अधिकता के कारण लिखना बहुत मुश्किल था, परंतु तातुश के प्रोत्साहन से वह
रोज कुछ पृष्ठ लिखने लगी। यह शौक आदत में बदल गया। उसका अकेले रहना समाज में कुछ लोगों को सहन नहीं हो रहा था। वे उसके साथ छेड़खानी करते थे और बेमतलब परेशान करते थे। बाथरूम न होने से भी विशेष दिक्कत थी। मकान मालिक के लड़के के दुव्र्यवहार की वजह से वह नया घर तलाशने की सोचने लगी। एक दिन लेखिका काम से घर लौटी तो देखा कि मकान टूटा हुआ है तथा उसका सारा सामान खुले में बाहर पड़ा हुआ है। वह रोने लगी। इतनी जल्दी मकान ढूँढ़ने की भी दिक्कत थी। दूसरे घरों के लोग अपना सामान इकट्ठा करके नए घर की तलाश में
चले गए। वह सारी रात बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे बैठी रही। उसे दुख था कि दो भाई नजदीक रहने के बावजूद उसकी सहायता नहीं करते। तातुश को बेबी का घर टूटने का पता चला तो उन्होंने अपने घर में कमरा दे दिया। इस प्रकार वह तातुश के घर में रहने लगी। उसके बच्चों को ठीक खाना मिलने लगा। तातुश उसका बहुत ख्याल रखते। बच्चों के बीमार होने पर वे उनकी दवा का प्रबंध करते। उनके सद्व्यवहार को देखकर बेबी हैरान थी। उसका बड़ा लड़का किसी के घर में काम करता था। वह उदास रहती थी। तातुश ने उसके लड़के को खोजा तथा उसे
बेबी से मिलवाया। उस लड़के को दूसरी जगह काम दिलवाया। लेखिका सोचती कि तातुश पिछले जन्म में उसके बाबा रहे होंगे। तातुश उसे लिखने के लिए निरंतर प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने अपने कई मित्रों के पास बेबी के लेखन के कुछ अंश भेज दिए थे। उन्हें यह लेखन पसंद आया और वे भी लेखिका का उत्साह बढ़ाते रहे। तातुश के छोटे लड़के अर्जुन के दो मित्र वहाँ आकर रहने लगे, परंतु उनके अच्छे व्यवहार से लेखिका बढ़े काम को खुशी-खुशी करने लगी। तातुश ने सोचा कि सारा दिन काम करने के बाद बेबी थक जाती होगी। उसने उसे रोजाना शाम के
समय पार्क में बच्चों को घुमा लाने के लिए कहा। इससे बच्चों का दिल बहल जाएगा। अब वह पार्क में जाने लगी। पार्क में नए-नए लोगों से मुलाकात होती। उसकी पहचान बंगाली लड़की से हुई जो जल्दी ही वापिस चली गई। लोगों के दुव्र्यवहार के कारण उसने पार्क में जाना छोड़ दिया। लेखिका को किताब, अखबार पढ़ने व लेखन-कार्य में आनंद आने लगा। तातुश के जोर देने पर वह अपने जीवन की घटनाएँ लिखने लगी। तातुश के दोस्त उसका उत्साह बढ़ाते रहे। एक मित्र ने उसे आशापूर्णा देवी का उदाहरण दिया। इससे लेखिका का हौसला बढ़ा और उसने
उन्हें जेलू कहकर संबोधित किया। एक दिन लेखिका के पिता उससे मिलने पहुँचे। उसने उसकी माँ के निधन के बारे में बताया। लेखिका के भाइयों को पता था, परंतु उन्होंने उसे बताया नहीं। लेखिका काफी देर तक माँ की याद करके रोती रही। बाबा ने बच्चों से माँ का ख्याल रखने के लिए समझाया। लेखिका पत्रों के माध्यम से कोलकाता और दिल्ली के मित्रों से संपर्क रखने लगी। उसे हैरानी थी कि लोग उसके लेखन को पसंद करते हैं। शर्मिला उससे तरह-तरह की बातें करती थी। लेखिका सोचती कि अगर तातुश उससे न मिलते तो यह जीवन कहाँ मिलता।
लेखिका का जीवन तातुश के घर में आकर बदल गया। उसका बड़ा लड़का काम पर लगा था। दोनों छोटे बच्चे स्कूल में पढ़ रहे थे। वह स्वयं लेखिका बन गई थी। पहले वह सोचती थी कि अपनों से बिछुड़कर कैसे जी पाएगी, परंतु अब उसने जीना सीख लिया था। वह तातुश से शब्दों के अर्थ पूछने लगी थी। तातुश के जीवन में भी खुशी आ गई थी। अंत में वह दिन भी आ गया जब लेखिका की लेखन-कला को पत्रिका में जगह मिली। पत्रिका में उसकी रचना का शीर्षक था- ‘आलो-आँधारि” बेबी हालदार। लेखिका अत्यंत प्रसन्न थी। तातुश के प्रति उसका मन कृतज्ञता से भर
आया। उसने तातुश के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया। शब्दार्थ पृष्ठ संख्या 21 पृष्ठ संख्या 22 पृष्ठ संख्या 23 पृष्ठ संख्या 24 पृष्ठ संख्या 25 पृष्ठ संख्या 26 पृष्ठ संख्या 27 पृष्ठ संख्या 28 पृष्ठ संख्या 29 पृष्ठ संख्या 30 पृष्ठ संख्या 31 पृष्ठ संख्या 32 पृष्ठ संख्या 33 पृष्ठ संख्या 34 पृष्ठ संख्या 36 पृष्ठ संख्या 37 पृष्ठ संख्या 38 पृष्ठ संख्या 39 पृष्ठ संख्या 40 पृष्ठ संख्या 41 पृष्ठ संख्या 42 पृष्ठ संख्या 43 पृष्ठ संख्या 44 पृष्ठ संख्या 45 पृष्ठ संख्या 47 पृष्ठ संख्या 48 पृष्ठ संख्या 49 पृष्ठ संख्या 50 पृष्ठ संख्या 51 पृष्ठ संख्या 52 पृष्ठ संख्या 53 पृष्ठ संख्या 54 पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न प्रश्न 1:
प्रश्न 2: प्रश्न 3:
अन्य समस्याएँ
प्रश्न 4: प्रश्न 5: प्रश्न 6: अन्य हल प्रश्न I. मूल्यपरक प्रश्न
उत्तर –
(ख) मैं इसी तरह रोज सबेरे आती और दोपहर तक सारा काम खत्म कर चली जाती। बीच-बीच में साहब मेरे बारे में इधर-उधर की बातें पूछ लेते। एक दिन उन्होंने मेरे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा तो मैंने कहा, ‘मैं तो पढ़ाना चाहती हूँ लेकिन वैसा सुयोग कहाँ है,
फिर भी चेष्टा तो करूंगी ही बच्चों के लिए। उन्होंने एक दिन बुलाकर फिर कहा, तुम अपने लड़के और लड़की को लेकर आना। यहाँ एक छोटा-सा स्कूल है। मैं वहाँ बोल दूँगा। तुम रोज बच्चों को वहाँ छोड़ देना और घर जाते समय अपने साथ ले जाना। मैं अब बच्चों को साथ लेकर आने लगी। उन्हें स्कूल में छोड़, घर आकर अपने काम में लग जाती। स्कूल से बच्चे जब मेरे पास आते तो साहब कुछ-न-कुछ उन्हें खाने को देते।
उत्तर –
(ग) मैं सवेरे उठकर बच्चों को खिला-पिलाकर रेडी करती और घर में ताला लगाकर उनके साथ निकल पड़ती। मैं एक ही कोठी में काम करते कैसे अपना काम चलाऊँगी और कैसे घर का किराया दूँगी, इस बात को लेकर लोग आपस में खूब बातें करते। मैं स्वयं भी चिंतित थी कि मुझे और दो-एक कोठियों में काम नहीं मिला तो इतने पैसों में गुजारा कैसे होगा। मैं रोज साहब से पूछती कि किसी ने उन्हें काम के
बारे में कुछ बताया क्या। वह मेरा प्रश्न और कोई बात कर टाल देते लेकिन उन्हें देखकर मुझे लगता जैसे वह नहीं चाहते कि मैं कहीं और भी काम करूं। शायद वह सोचते रहे हों कि मुझसे वह सब होगा नहीं और हेागा भी तो उससे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं चल पाएगी। शायद इसीलिए उन्होंने एक दिन हठात् मुझसे पूछा, बेबी, महीने में तुम्हारा कितना खर्चा हो जाता है? शरम से मैं कुछ नहीं बोली और उन्होंने भी दुबारा नहीं पूछा।
उत्तर –
(घ) देखो बेबी, तुम समझो कि मैं तुम्हारा बाप, भाई, माँ, बंधु, सब कुछ हूँ। यह कभी मत सोचना कि यहाँ तुम्हारा कोई नहीं है। तुम अपनी सारी बातें मुझे साफ-साफ बता सकती हो, मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा। थोड़ा रुककर उन्होंने फिर कहा, देखो, मेरे बच्चे मुझे तातुश कहते हैं, तुम भी मुझे वही कहकर बुला सकती हो। उस दिन से मैं उन्हें तातुश कहने लगी। मैं तातुश कहकर उन्हें बुलाती तो वह बहुत खुश होते और कहते, तुम मेरी लड़की जैसी
हो। इस घर की लड़की हो। कभी यह मत सोचना कि तुम परायी हो। वहाँ कोई भी मेरे साथ पराये जैसा व्यवहार नहीं करता। तातुश के तीन लड़के थे। उस समय तक मैंने एक ही को देखा था और वह उनका सबसे छोटा लड़का था। उसके मुँह में जैसे जबान ही नहीं थी।
उत्तर –
(ड) किताब पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता। कुछ दिनों बाद तातुश ने एक दिन पूछा, तुम जो किताब ले गई थीं उसे ठीक से पढ़ तो रही हो? मैंने हाँ कहा तो वह बोले, मैं तुम्हें एक चीज दे रहा हूँ, तुम उसका इस्तेमाल करना। समझना कि वह भी मेरा
ही एक काम है। मैंने पूछा, कौन-सी चीज? तातुश ने अपनी लिखने की टेबिल के ड्रार से एक पेन और कॉपी निकाली और बोले, इस कॉपी में तुम लिखना। लिखने को तुम अपनी जीवन-कहानी भी लिख सकती हो। होश सँभालने के बाद से अब तक की जितनी भी बातें तुम्हें याद आएँ सब इस कॉपी में रोज थोड़ा-थोड़ा लिखना। पेन और कॉपी हाथ में लिए मैं सोचने लगी कि इसका तो कोई ठिकाना नहीं कि जो लिखूंगी वह कितना गलत या सही होगा। तातुस ने पूछा, क्यों, क्या हुआ? क्या सोचने लगी? मैं चौंक पड़ी। फिर बोली, सोच रही थी कि लिख सकूंगी या नहीं। वह बोले,
जरूर लिख सकोगी। लिख क्यों नहीं सकोगी! जैसा बने वैसा लिखना।
उत्तर –
(च) जब मेरे स्वामी के सामने वहाँ के लोगों के मुँह बंद नहीं होते थे तो यहाँ तो बच्चों को लेकर मैं अकेली थी! यहाँ तो वैसी बातें और भी सुननी पड़तीं। मैं काम पर आती-जाती तो आस-पास के लोग एक-दूसरे को बताते कि इस लड़की का स्वामी यहाँ नहीं रहता है, यह अकेली ही भाड़े के घर में बच्चों के साथ रहती है। दूसरे लोग यह सुनकर
मुझसे छेड़खानी करना चाहते। वे मुझसे बातें करने की चेष्टा करते और पानी पीने के बहाने मेरे घर आ जाते। मैं अपने लड़के से उन्हें पानी पिलाने को कह कोई बहाना बना बाहर निकल आती। इसी तरह मैं जब बच्चों के साथ कहीं जा रही होती तो लोग जबरदस्ती न जाने कितनी तरह की बातें करते, कितनी सीटियाँ मारते, कितने ताने मारते! लेकिन मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं उनसे बचकर निकल जाती। तातुश के यहाँ जब पहुँचती और वह बताते कि उनके किसी बंधु ने उनसे फिर मेरे पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा है तो खुशी में मैं वह सब भूल जाती
जो रास्ते में मेरे साथ घटता।
उत्तर –
II. निबंधात्मक प्रश्न प्रश्न 2: प्रश्न 3: III. लघुत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: तातुश ने बेबी को क्या दिया? उस पर बेबी की क्या प्रतिक्रिया थी? प्रश्न 5: प्रश्न 6: तातुश के घर बेबी सुखी थी, फिर भी उदास हो जाती थी। क्यों? प्रश्न 7: प्रश्न 8: बेबी को अपनी माँ की मृत्यु का समाचार कैसे मिला? प्रश्न
9: प्रश्न
10: बेबी के बच्चों के लिए तातुश ने क्या किया?उत्तर: तातुश ने बेबी को उसके बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा दी। मदद करके उन्हें स्कूल में प्रवेश दिलवाया। उसे दूसरी कोठी में काम न करने की सलाह देकर उसकी और सहायता करने का आश्वासन दिया।
तातुश का व्यक्तित्व हमें क्या सिखाता है?तातुश के व्यक्तित्व से हमें दूसरों की मदद करने की प्रेरणा, शिक्षा के प्रति बच्चों को जागरूक बनाने, सहृदय बनने, दूसरों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैलाने की प्रेरणा मिलती है।
तातुश के परिवार ने बेबी की जिंदगी को संवारने में कैसे सहायता की?अपने परिवार से तातुश के घर तक के सफ़र में बेबी के सामने रिश्तों की यह सच्चाई उजागर हुई कि कोई अपना रक्त के संबंधों से नहीं मनुष्य के हृदय से होता है। बेबी के परिवार में माता-पिता तथा भाई थे। इनके होते हुए भी उसे कठिन जीवन जीना पड़ा। उसने सभी चुनौतियों का सामना अकेले ही किया।
तातुश के बच्चे तातुश को क्या कहकर बुलाते थे?बेबी हालदार के कितने बच्चे थे? . 3. बेबी हालदार को काम दिलवाने में किस युवक ने मदद की थी?
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