दधीचि ने क्या त्याग किया था? - dadheechi ne kya tyaag kiya tha?

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प्राचीन काल में एक परम तपस्वी हुए, जिनका नाम महर्षि दधीचि था। उनके पिता एक महान ऋषि अथर्वा जी थे और माता का नाम शांति था। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिव की भक्ति में व्यतीत किया था। 

वे एक ख्यातिप्राप्त महर्षि थे तथा वेद-शास्त्रों के ज्ञाता, परोपकारी और बहुत दयालु थे। उनके जीवन में अहंकार के लिए कोई जगह नहीं थी। वे सदा दूसरों का हित करने के लिए तत्पर रहते थे। जहां वे रहते थे, उस वन के पशु-पक्षी तक उनके व्यवहार से संतुष्ट थे। वे इतने परोपकारी थे कि उन्होंने असुरों का संहार के लिए अपनी अस्थियां तक दान में दे दी थी। 

आइए पढ़ें परोपकारी महर्षि दधीचि की लोक कल्याण के लिए किए गए परोपकार की कथा- 

एक बार लोकहित के लिए कठोर तपस्या कर रहे महर्षि दधीचि के तप के तेज से तीनों लोक आलोकित हो उठे, लेकिन इन्द्र के चेहरे का तेज जाता रहा, क्योंकि उसे लगा कि महर्षि उससे इंद्रासन छीनना चाहते हैं। इसलिए उसने तपस्या भंग करने के लिए कामदेव और एक अप्सरा को भेजा, लेकिन वे विफल रहे। 

तब इन्द्र उनकी हत्या के इरादे से सेना सहित वहां पहुंचा। लेकिन उसके अस्त्र-शस्त्र महर्षि की तप के अभेद्य कवच को भेद न सके और वे शांत भाव से समाधिस्थ बैठे रहे। हारकर इन्द्र लौट गया। इस घटना के बहुत समय बाद वृत्रासुर ने देवलोक पर कब्जा कर लिया। 

पराजित इन्द्र और देवता मारे-मारे फिरने लगे। तब प्रजापिता ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि वृत्रासुर का अंत महर्षि दधीचि की आस्थियों से बने अस्त्र से ही संभव है। इसलिए उनके पास जाकर उनकी अस्थियां मांगो। इससे इन्द्र पसोपेश में पड़ गया।

वह सोचने लगा कि जिनकी हत्या का प्रयास कर चुका था, वह उसकी सहायता क्यों करेंगे। लेकिन कोई उपाय न होने पर वह महर्षि के पास पहुंचा और झिझकते हुए बोला- महात्मन्‌, तीनों लोकों के मंगल हेतु हमें आपकी आस्थियां चाहिए। 

महर्षि विनम्रता से बोले- देवेंद्र, लोकहित के लिए मैं तुम्हें अपना शरीर देता हूं। इन्द्र आश्चर्य से उनकी ओर देख ही रहे थे कि महर्षि ने योग विद्या से अपना शरीर त्याग दिया। बाद में उनकी अस्थियों से बने वज्र से इन्द्र ने वृत्रासुर को मारकर तीनों लोकों को सुखी किया।

लोकहित के लिए महर्षि दधीचि ने तो अपनी अस्थियां तक दान कर दी थीं, क्योंकि वे जानते थे कि शरीर नश्वर है और एक दिन इसे मिट्टी में मिल जाना है।

महर्षि दधीचि एक ऐसे ऋषि थे, जिन्होनें लोककल्याण हेतु अपने देह का त्याग किया, इन्हें तपस्या एवं पवित्रता की प्रतिमूर्ति माना जाता है। यास्क के मतानुसार इनकी माता का नाम ‘चित्ति तथा पिता का नाम अथर्वा’ था। इनकी पत्नी का नाम ‘गभस्तिनी’ था।

महर्षि दधीचि ऋषि की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब वृतासुर नामक राक्षस ने स्वर्ग पर अपना अधिकार कर सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया स्वर्ग के सभी देवता परेशान होकर ब्रह्या, विष्णु एवं महेश के पास पहुँचे, तथा अपनी समस्या का निवारण पूछा, ब्रह्या जी ने बताया कि वृतासुर का वध किसी भी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र ने नही किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए एक उपाय है, कि वे पृथ्वीलोक जाए और महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियों को दान में मांगे यदि वे अपनी अस्थियों को दान में दे देते है, तो उनकी अस्थियों से एक ब्रज का निर्माण करना होगा जिससे वृतासुर का वध किया जा सकता है।

दधीचि ने क्या त्याग किया था? - dadheechi ne kya tyaag kiya tha?


 

इस प्रकार स्वर्ग के सभी देवता पृथ्वीलोक में महर्षि दधीचि के आश्रम में पहुँचे और महर्षि को उनकी अस्थियों को दान करने के लिए कहा। महर्षि दधीचि सदैव लोककल्याण चाहते थे, वे अपनी अस्थियों को दान करने के लिए तैयार हो गये। इस प्रकार महर्षि दधीचि की हड्डी से एक ब्रज का निर्माण किया गया। तथा वृतासुर नामक राक्षस का वध कर सभी देवता स्वर्ग में वापस आ गये।

देवराज इंद्र का महर्षि दधीचि से मिलने के लिए संकोच

महर्षि दधीचि एक ऐसे व्यक्ति थे, जो ब्रह्या विद्या के ज्ञान में पूर्ण निपूण थे, एक बार देवताओं के राजा इन्द्र ब्रह्या विद्या के ज्ञान को पाने के लिए पृथ्वीलोक आये, उन्होनें महर्षि दधीचि से ब्रह्या विद्या का ज्ञान लेना चाहा लेकिन महर्षि दधीचि ने उन्हें मना कर दिया, जिससे आक्रोश में आकर देवराज इन्द्र ने महर्षि दधीचि को बोला की वे संसार में किसी को भी ब्रह्या विद्या का ज्ञान नही देगे, यदि वे किसी को यह ज्ञान देगे तो वह उनका सर धड से अलग कर देगा। महर्षि दधीचि ने देवराज इन्द्र से कहा कि यदि उन्हें कोई सुयोग्य पात्र मिल जाय जो इस ज्ञान पाने लायक हो तो वे अवश्य ही उसे ये ज्ञान प्रदान करेगें।

संवाद सहयोगी, बरवाला : अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति सदस्य एवं विधायक कुलदीप बिश्नोई ने रविवार को बरवाला में महर्षि दधिची परमार्थ ट्रस्ट के तत्वावधान में आयोजित महर्षि दधिची जयंती समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। इस दौरान उन्होंने कहा कि वैसे तो भारतीय इतिहास में कई दानी हुए। कितु मानव कल्याण के लिए अपनी अस्थियों का दान करने वाले मात्र महर्षि दधीचि ही थे। देवताओं के मुख से यह जानकर की मात्र दधीचि की अस्थियों से निर्मित वज्र से ही असुरों का संहार किया जा सकता है। महर्षि दधीचि ने अपना शरीर त्याग कर अस्थियों का दान कर दिया था। निश्चित रूप से अपने आप में यह बहुत ही महान व त्यागपूर्ण कार्य है।

कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि जिस प्रकार से विश्व में जब कहीं भी जीव एवं पर्यावरण रक्षा की बात आती है तो सबसे पहले गुरू जम्भेश्वर भगवान को याद किया जाता है। जिन्होंने 500 वर्ष पहले ही मानव समाज को पर्यावरण प्रदूषण के प्रति चेताया था और जीवों की रक्षा करना मानव समाज का परम धर्म बताया था। उसी प्रकार विश्व कल्याण के लिये आत्म-त्याग करने वालों में महर्षि दधीचि का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। उन्होंने कहा कि वह महर्षि दधिची परमार्थ ट्रस्ट को बधाई देते हैं कि इतने महान ऋषि के नाम को आगे बढ़ाकर उनके दिखाए आदर्शों का समाज में प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। जो कि बहुत ही पुण्य का कार्य है। डा. हर्षमोहन भारद्वाज ने समाजसेवा से जुड़कर को जो कार्य किए हैं वह काबिलेतारीफ है और युवाओं के लिए एक तरह से प्रेरणा है।

इस दौरान महम के विधायक बलराज कुंडू, डा. हर्षमोहन भारद्वाज, रणधीर सिंह पनिहार, पूर्व विधायक रामभगत शर्मा, नरसिंह सेलवाल, श्योहिम सिंह नैन, बलदेव खोखर, सौरभ मितल, सतीश मितल, अनिल गुराना, जयनारायण राजलीवाला, सुरेश गर्ग, सुरेश बंसल, दलबीर किरमारा, दयानंद शर्मा, सुरेश किरोड़ी, अजय जांगड़ा, नरेश जांगड़ा, रमन महता, दलबीर बयानाखेड़ा, सुनील कुंडू सहित पार्टी कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

अन्य दलों को छोड़ कांग्रेस में आस्था जताई

इस दौरान कुलदीप बिश्नोई की उपस्थिति में डा.नरेश गोरखपुरिया जेजेपी छोड़कर, रवि सरदाना भाजपा, रामचन्द्र उर्फ चिट्कू, गिरधारी हंस, सुरेन्द्र नोथा, फौजी बोडिया, प्रवीण बोरडा, जेकी नलवा, राधेश्याम हंस, हरिचंद गलगट, रोशन गलगट ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होकर कुलदीप बिश्नोई की नीतियों में आस्था जताई। कुलदीप बिश्नोई ने सभी का स्वागत करते हुए पार्टी में भरपूर मान सम्मान दिए जाने का आश्वासन दिया।

महर्षि दधीचि ने किसका त्याग किया था?

यूँ तो 'भारतीय इतिहास' में कई दानी हुए हैं, किंतु मानव कल्याण के लिए अपनी अस्थियों का दान करने वाले मात्र महर्षि दधीचि ही थे। देवताओं के मुख से यह जानकर की मात्र दधीचि की अस्थियों से निर्मित वज्र द्वारा ही असुरों का संहार किया जा सकता है, महर्षि दधीचि ने अपना शरीर त्याग कर अस्थियों का दान कर दिया।

समाज के लिए दधीचि ऋषि ने क्या त्याग किया था?

महर्षि दधीचि ने अपना शरीर त्याग कर अस्थियों का दान कर दिया था

दधीचि कौन थे Class 10?

किसी पुराण के अनुसार यह कर्दम ऋषि की कन्या 'शांति' के गर्भ से उत्पन्न अथर्वा के पुत्र थेदधीचि प्राचीन काल के परम तपस्वी और ख्यातिप्राप्त महर्षि थे। उनकी पत्नी का नाम 'गभस्तिनी' था। महर्षि दधीचि वेद शास्त्रों आदि के पूर्ण ज्ञाता और स्वभाव के बड़े ही दयालु थे

दधीचि के हड्डियों से कितने धनुष बने?

दिव्य धनुष और तरकश : दधीचि ऋषि ने देश के हित में अपनी हड्डियों का दान कर दिया था। उनकी हड्डियों से 3 धनुष बने- 1. गांडीव, 2. पिनाक और 3.