द्वितीय परमाणु परीक्षण 1998 के समय भारत के प्रधानमंत्री कौन थे? - dviteey paramaanu pareekshan 1998 ke samay bhaarat ke pradhaanamantree kaun the?

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दो साल बाद फिर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री के दफ्तर में लौटे और इसके दो महीने बाद ही जबरदस्त थमाका हुआ. धमाका ऐसा कि पूरी दुनिया की आंखें फटी रह गईं.

“ये बदला हुआ भारत है, जो दुनिया से आंख मिलाकर और हाथ मिलाकर चलना चाहता है. यह किसी प्रतिबंध से झुकेगा नहीं और शांति व सुरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा.”

परमाणु परीक्षण के बाद उठे सवालों का संसद में जवाब देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना इरादा साफ कर दिया था. 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों की वर्षगांठ तथा अंतरिक्ष में भारत की ऊंची उड़ान का प्रतीक है.

अरमानों पर पहले फिर चुका था पानी

साल 1995 में भारत की परमाणु बम के परीक्षण करने की कोशिश नाकाम हो चुकी थी. अमेरिकी सैटेलाइट और खुफिया एजेंसी ने भारत के किए धरे पर पूरी तरह से पानी फेर दिया था. इसके बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर परमाणु परीक्षण की ओर बढ़े अपने कदम वापस खींच लिए थे. उस वक्त देश की सत्ता में बदलाव का दौर था.

वाजपेयी का ‘बोल्ड’ फैसला

साल 1996 में देश की गद्दी पर पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लेकिन बहुमत के अभाव में उनकी सरकार सिर्फ 13 दिन ही चल सकी. कहा जाता है कि अपने पहले सिर्फ 13 दिन के कार्यकाल में वाजपेयी ने बतौर प्रधानमंत्री सिर्फ इकलौता फैसला परमाणु कार्यक्रम को फिर से शुरू करने का लिया था.

अब्दुल कलाम थे मिशन के प्रमुख

दो साल बाद फिर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री के दफ्तर में लौटे और इसके दो महीने बाद ही जबरदस्त थमाका हुआ. धमाका ऐसा कि पूरी दुनिया की आंखें फटी रह गईं. दोबारा प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने डीआरडीओ प्रमुख डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और परमाणु ऊर्जा के प्रमुख राजगोपाल चिदंबरम को परमाणु परीक्षण की मंजूरी दे दी. इस परीक्षण का नेतृत्व एयरोस्पेस इंजीनियर और दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था.

जब रोकना पड़ा परिक्षण

जनक राज राय ने अपनी किताब ‘पोखरण 2- द एक्प्लजन दैट रॉक्ड द वर्ल्ड’में परीक्षण वाले दिन के आखिरी घंटो का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा ” 11 मई के दिन सुबह बंकर में सेटअप किए पैनल्स में से एक स्विच को दबाते ही कंप्यूटर पर काउंट डाउन टाइमर चमकने लगा. उस वक्त सुबह के करीब 9 बजे थे. इन्ही पैनल्स में से निकलकर एक इलेक्ट्रिकल करंट को ट्रिगर डिवायसेस तक पहुंचना था और परमाणु बम की एक सीरज के विस्फोटों से पूरी दुनिया के सामने भारत को तकातवर शक्ति के रूप में पहचान मिलने वाली थी.

…और मुस्कुरा उठे बुद्ध

परीक्षण से करीब एक घंटे पहले उस रेंज का मौसम विभाग का एक अधिकारी, जिसका नाम अदि मर्जबान था, बंकर में दाखिल हुआ और वो वहां बैठे दो जर्नल्स को सैल्यूट किए बिना ही पास रखी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गया. उसने बताया कि अचानक से इस समय हवा की रफ्तार तेज हो गई है. जब तक हवा नहीं रुके तब तक हमें परीक्षण रोकना होगा.

परीक्षण को कुछ देर के लिए रोका गया और सभी की नजरों उड़ रहीं रेतों पर जम गईं. हवा थमी और करीब 3:45 बजे ट्रिगर दबा और फिर हुआ जबरदस्त विस्फोट. ऐसा ताकतवर विस्फोट कि पोखरण की रेतली जमीन कांप उठी, रेत के बवंडर ने सबकुछ ओझल कर दिया और 11 मई 1998 को बुद्ध एक बार फिर से मुस्कुरा उठे.

विस्फोटों की थी श्रृंखला

1995 में अमेरिकी सेटेलाइटों की वजह से नाकाम हो चुका भारत, पोखरण 2 अभियान के समय अमेरिकी सेटेलाइट को चकमा देते हुए गुप्त तैयारी के बाद अंजाम तक पहुंचाने में सफल हुआ था. 11 मई 1998 को, राजस्थान में भारतीय सेना के पोखरण परीक्षण रेंज में पांच परमाणु परीक्षणों में से पहले, ऑपरेशन शक्ति मिसाइल को सफलतापूर्वक फायर किया गया था. पोखरण परमाणु परीक्षण भारतीय सेना के पोखरण टेस्ट रेंज में भारत द्वारा किए गए पांच परमाणु बम परीक्षण विस्फोटों की एक श्रृंखला थी.

पोखरण में तब तीन बमों का सफल परीक्षण किया गया था. इसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को एक परमाणु देश घोषित किया तथा इसके साथ ही भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘परमाणु क्लब’ में शामिल होने वाला छठा देश बना था.

1972 से शुरू हुई थी भारत की परमाणु यात्रा

भारत ने अपनी पहली परमाणु यात्रा 7 सितंबर, 1972 को शुरू की थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिकों को एक स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए परमाणु उपकरण के निर्माण के लिए अधिकृत किया था. राजस्थान के पोखरण में भारत का पहला परमाणु परीक्षण शांतिपूर्ण तरीके से 18 मई 1974 को आयोजित हुआ था.

इसका नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ रखा गया था, लेकिन उस वक्त भारत को अमेरिका जैसे औद्योगिक देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा. उन्होंने भारत पर आरोप लगाया कि ऐसे परीक्षणों से परमाणु प्रसार हो सकता है और दुनिया में अशांति फैल सकती है.

ताकत सम्मान लाती है: कलाम

1998 के तुरंत बाद नहीं, लेकिन निश्चित रूप से कुछ वर्षों बाद विश्वपटल पर भारत की छवि मजबूत हुई है. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे कि ताकत सम्मान लाती है. ये 1998 के परमाणु परीक्षण का ही परिणाम है कि आज भारत आईटीईआर में भागीदार है, बड़ी संख्या में अंतर्राष्ट्रीय मेगा-विज्ञान परियोजनाओं जैसे लीगो और थर्टी मीटर टेलीस्कोप का हिस्सा हैं. प्रौद्योगिकी में हम दुनिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं.

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11 मई 1998 की वो तारीख जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई. आज ही के रोज राजस्थान के पोखरण में तीन बमों का सफल परीक्षण किया गया था. जिसके बाद भारत न्यूक्लियर स्टेट बन गया. ये परीक्षण देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में हुआ था.

ये देश का दूसरा परमाणु परीक्षण था. इससे पहले राजस्थान के जैसलमेर से करीब 140 किमी दूर लोहारकी गांव के पास मलका गांव में 18 मई 1974 को भारत ने गांव के एक सूखे कुएं में पहला परमाणु परीक्षण किया था. ये परमाणु परीक्षण इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुआ था. इसके बाद 11 मई 1998 का दिन भारत के लिए यादगार बन गया. इसी मौके पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1998 पोखरण परीक्षण को याद करते हुए ट्वीट किया है.

The tests in Pokhran in 1998 also showed the difference a strong political leadership can make.

Here is what I had said about Pokhran, India’s scientists and Atal Ji’s remarkable leadership during one of the #MannKiBaat programmes. pic.twitter.com/UuJR1tLtrL

— Narendra Modi (@narendramodi) May 11, 2020

आसान नहीं था परमाणु बम का परीक्षण

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए परमाणु बम परीक्षण करना आसान नहीं था. परमाणु परीक्षण के फैसले को लेकर देश में भी विपक्षी दलों ने उनपर निशाना साधा था. अटल बिहारी वाजपेयी जब पोखरण परीक्षण पर संसद में जवाब देने उतरे तो उन्होंने जहां विपक्ष को निरुत्तर कर दिया वहीं दुनिया को ये साफ संदेश दिया कि "ये भारत बदला हुआ भारत है, दुनिया से आंख मिलाकर और हाथ मिलाकर चलना चाहता है. किसी प्रतिबंध से झुकेगा नहीं और शांति और सुरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा."

परमाणु परीक्षण के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कही थी ये बात

सदन में विपक्षी दलों की ओर से परमाणु परीक्षण को लेकर कई सवाल उठाए गए थे, इस पर अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, "ये आश्चर्य की बात है कि परमाणु परिक्षण की आलोचना की गई, पूछा गया देश के सामने कौन सा खतरा था. 1974 में मैं सदन था जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व में परमाणु परीक्षण किया गया था.हम प्रतिपक्ष में थे, लेकिन फिर भी हमने स्वागत किया था, क्योंकि देश की रक्षा के लिए परमाणु परिक्षण किया गया था. क्या मुझे कोई बताएगा, उस समय कौन से खतरा था? क्या आत्मरक्षा की तैयारी तभी होगी जब खतरा होगा? अगर तैयारी पहले से हो तो ये अच्छी बात हैं, जो खतरा भविष्य में आने वाला होगा वह भी दूर हो जाएगा.

अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, परमाणु बम परीक्षण हमारे कार्यक्रम काल में लिखा हुआ था, जिसके बाद हमने परमाणु बम परीक्षण करने का फैसला किया गया था. ऐसे में जो लोग सवाल उठा रहे हैं वह जान लें, ये कोई छिपी हुई बात नहीं थी, कोई रहस्य नहीं था."

क्या था मिशन का नाम

पोखरण परमाणु परीक्षण के मिशन का नाम 'ऑपरेशन शक्ति' था. इस मिशन में अहम भूमिका निभाने वालों में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम थे, वह उस समय रक्षा मंत्रालय में सलाहकार वैज्ञानिक के पद पर थे.

दूसरा परमाणु परीक्षण के समय भारत का प्रधानमंत्री कौन था?

साल 1974 में 18 मई को परमाणु परीक्षण और 11-13 मई को 1998 में किया गया परमाणु परीक्षण. पहले वाले में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. दूसरे वाले में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे.

भारत के द्वितीय परमाणु परीक्षण योजना के प्रमुख वैज्ञानिक कौन थे?

इस ऑपरेशन को पूरा किया गया था तत्कालीन प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के प्रमुख डॉ. ए.पी. जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में, जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने।

भारत के पहले परमाणु परीक्षण के समय देश के प्रधानमंत्री कौन थे?

18 मई 1974 को पोखरण में ही उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर पहला परमाणु परीक्षण हुआ था. इसे 'बुद्ध स्माइलिंग' नाम दिया गया था.

पोखरण 2 परीक्षण कब किया गया?

11 मई 1998 में भारत ने पोखरण में ऑपरेशन शक्ति के तहत सफल परमाणु परीक्षण किया था.