उनके बारे में - फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट(जनवरी 30, 1882- अप्रैल 12, 1945) अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति थे। वे द्वितीय विश्वयुद्ध और वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान बीसवीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से थे। राष्ट्रपति पद के लिए वे चार बार चुने गए और 1933 से 1945 तक इस पर बने रहे। वे
अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने दो बार से ज्यादा इस पद की शोभा बढ़ाई।
द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका का राष्ट्रपति कौन था Dvitiy Vishva Yuddha Ke Samay Amerika Ka Rashtrapti Kaun Tha विश्व इतिहास kya kise kab kaha kaun kisko kiska kaise hota kahte bolte h kyo what why which where gk hindi english Answer of this question Dvitiy Vishva Yuddha Ke Samay Amerika Ka Rashtrapti Kaun Tha - Frainklin Di. Rujavelt फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति थे। वे द्वितीय विश्वयुद्ध और वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान बीसवीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से थे। राष्ट्रपति पद के लिए वे चार बार चुने गए और 1933 से 1945 तक इस पर बने रहे। वे अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने दो बार से ज्यादा इस पद की शोभा बढ़ाई। चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। आपका प्रश्न है कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका का राष्ट्रपति कौन था तो मैं आपको बता दूंगा द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका का राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट था द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका का राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट था और 1948 में द्वितीय वर्ष में पहन सकते हैं कि उसमें पा गया और इंग्लैंड के प्रधानमंत्री उसमें Romanized Version
द्वितीय विश्वयुद्ध १९३९ से १९४५ तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग ७० देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था -
मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी
महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग १० करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में ५ से ७ करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार- जिसमें
होलोकॉस्ट भी शामिल है- तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है (जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई)। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध
था।[1] पृष्ठभूमियूरोपप्रथम विश्व युद्ध में केन्द्रीय शक्तियों - ऑस्ट्रिया-हंगरी, जर्मनी, बुल्गारिया और ओटोमन साम्राज्य सहित की हार के साथ और रूस में 1917 में बोल्शेविक द्वारा सत्ता की जब्ती (सोविएत संघ का जन्म) ने यूरोपीय राजनीतिक मानचित्र को मौलिक रूप से बदल दिया था। इस बीच, फ्रांस, बेल्जियम, इटली, ग्रीस और रोमानिया जैसे विश्व युद्ध के विजयी मित्र राष्ट्रों ने कई नये क्षेत्र प्राप्त कर लिये, और ऑस्ट्रिया-हंगरी और ओटोमन और रूसी साम्राज्यों के पतन से कई नए राष्ट्र-राज्य बन कर बाहर आये। भविष्य के विश्व युद्ध को रोकने के लिए, 1919 पेरिस शांति सम्मेलन के दौरान राष्ट्र संघ का निर्माण हुआ। संगठन का प्राथमिक लक्ष्य सामूहिक सुरक्षा के माध्यम से सशस्त्र संघर्ष को रोकने, सैन्य और नौसैनिक निरस्त्रीकरण, और शांतिपूर्ण वार्ता और मध्यस्थता के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय विवादों को निपटना था। पहले विश्व युद्ध के बाद एक शांतिवादी भावना के बावजूद[3], कई यूरोपीय देशो में जातीयता और क्रांतिवादी राष्ट्रवाद पैदा हुआ। इन भावनाओं को विशेष रूप से जर्मनी में ज्यादा प्रभाव पड़ा क्योंकि वर्साय की संधि के कारण इसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्र और औपनिवेशिक खोना और वित्तीय नुकसान झेलना पड़ा था। संधि के तहत, जर्मनी को अपने घरेलु क्षेत्र का 13 प्रतिशत सहित कब्ज़े की हुई बहुत सारी ज़मीन छोडनी पड़ी। वही उसे किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करने की शर्त माननी पड़ी, अपनी सेना को सीमित करना पड़ा और उसको पहले विश्व युद्ध में हुए नुकसान की भरपाई के रूप में दूसरे देशों को भुगतान करना पड़ा।[4] 1918-1919 की जर्मन क्रांति में जर्मन साम्राज्य का पतन हो गया, और एक लोकतांत्रिक सरकार, जिसे बाद में वाइमर गणराज्य नाम दिया गया, बनाया गया। इस बीच की अवधि में नए गणराज्य के समर्थकों और दक्षिण और वामपंथियों के बीच संघर्ष होता रहा। इटली को, समझौते के तहत युद्ध के बाद कुछ क्षेत्रीय लाभ प्राप्त तो हुआ, लेकिन इतालवी राष्ट्रवादियों को लगता था कि ब्रिटेन और फ्रांस ने शांति समझौते में किये गए वादों को पूरा नहीं किया, जिसके कारण उनमे रोष था। 1922 से 1925 तक बेनिटो मुसोलिनी की अगुवाई वाली फासिस्ट आंदोलन ने इस बात का फायदा उठाया और एक राष्ट्रवादी भावना के साथ इटली की सत्ता में कब्जा जमा लिया। इसके बाद वहाँ अधिनायकवादी, और वर्ग सहयोगात्मक कार्यावली अपनाई गई जिससे वहाँ की प्रतिनिधि लोकतंत्र खत्म हो गई। इसके साथ ही समाजवादियों, वामपंथियों और उदारवादी ताकतों के दमन, और इटली को एक विश्व शक्ति बनाने के उद्देश्य से एक आक्रामक विस्तारवादी विदेशी नीति का पालन के साथ, एक "नए रोमन साम्राज्य"[5] के निर्माण का वादा किया गया। एडोल्फ़ हिटलर एक जर्मन राष्ट्रीय समाजवादी राजनीतिक रैली में, वेमर, अक्टूबर 1930 एडोल्फ़ हिटलर, 1923 में जर्मन सरकार को उखाड़ने के असफल प्रयास के बाद, अंततः 1933 में जर्मनी का कुलाधिपति बन गया। उसने लोकतंत्र को खत्म कर, और वहाँ एक कट्टरपंथी, नस्लीय प्रेरित आंदोलन का समर्थन किया, और तुंरत ही उसने जर्मनी को वापस एक शक्तिशाली सैन्य ताकत के रूप में प्रर्दशित करना शुरू कर दिया।[6] यह वह समय था जब राजनीतिक वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया कि एक दूसरा महान युद्ध हो सकता है।[7] इस बीच, फ्रांस, अपने गठबंधन को सुरक्षित करने के लिए, इथियोपिया में इटली के औपनिवेशिक कब्जे पर कोई प्रतिक्रिया नही की। जर्मनी ने इस आक्रमण को वैध माना जिसके कारण इटली ने जर्मनी को आस्ट्रिया पर कब्जा करने के मंशा को हरी झंडी दे दी। उसी साल स्पेन में ग्रह युद्ध चालू हुआ तो जर्मनी और इटली ने वहां की राष्ट्रवादी ताकत का समर्थन किया जो सोविएत संघ की सहायता वाली स्पेनिश गणराज्य के खिलाफ थी। नए हथियारों के परिक्षण के बीच में राष्ट्रवादी ताकतों ने 1939 में युद्ध जीत लिया। स्थिति 1935 की शुरुआत में बढ़ गई जब सार बेसिन के क्षेत्र को जर्मनी ने कानूनी रूप से अपने में पुन: मिला लिया, इसके साथ ही हिटलर ने वर्साइल की संधि को अस्वीकार कर, अपने पुनः हथियारबंद होने के कार्यक्रम को चालू कर दिया, और देश में अनिवार्य सैनिक सेवा आरम्भ कर दी।[8] जर्मनी को सीमित करने के लिए, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और इटली ने अप्रैल 1935 में स्ट्रेसा फ्रंट का गठन किया; हालांकि, उसी साल जून में, यूनाइटेड किंगडम ने जर्मनी के साथ एक स्वतंत्र नौसैनिक समझौता किया, जिसमे उस पर लगाए पूर्व प्रतिबंधों को ख़त्म कर दिया। पूर्वी यूरोप के विशाल क्षेत्रों पर कब्जा करने के जर्मनी के लक्ष्यों को भांप सोवियत संघ ने फ्रांस के साथ एक आपसी सहयोग संधि की। हालांकि प्रभावी होने से पहले, फ्रांस-सोवियत समझौते को राष्ट्र संघ की नौकरशाही से गुजरना आवश्यक था, जिससे इसकी उपयोगिता ख़त्म हो जाती।[9] संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और एशिया में हो रहे घटनाओं से अपने दूर करने हेतु, उसी साल अगस्त में एक तटस्थता अधिनियम पारित किया।[10] १९३६ में जब हिटलर ने रयानलैंड को दोबारा अपनी सेना का गढ़ बनाने की कोशिश की तो उस पर ज्यादा आपत्तियां नही उठाई गई।[11] अक्टूबर 1936 में, जर्मनी और इटली ने रोम-बर्लिन धुरी का गठन किया। एक महीने बाद, जर्मनी और जापान ने साम्यवाद विरोधी करार पर हस्ताक्षर किए, जो चीन और सोविएत संघ के खिलाफ मिलकर काम करने के लिये था। जिसमे इटली अगले वर्ष में शामिल हो गया। एशियाचीन में कुओमिन्तांग (केएमटी) पार्टी ने क्षेत्रीय जमींदारों के खिलाफ एकीकरण अभियान शुरू किया और 1920 के दशक के मध्य तक एक एकीकृत चीन का गठन किया, लेकिन जल्द यह इसके पूर्व चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सहयोगियों और नए क्षेत्रीय सरदारों बीच गृह युद्ध में उलझ गया। 1931 में, जापान अपनी सैन्यवादी साम्राज्य को तेजी से बढ़ा रहा था, वहाँ की सरकार पूरे एशिया में अधिकार जमाने के सपने देखने लगी, और इसकी शुरुआत मुक्देन की घटना से हुई। जिसमे जापान ने मंचूरिया पर आक्रमण कर वहाँ मांचुकुओ की कठपुतली सरकार स्थापित कर दी। जापान का विरोध करने के लिए अक्षम, चीन ने राष्ट्र संघ से मदद के लिए अपील की। मांचुरिया में घुसपैठ के लिए निंदा किए जाने के बाद जापान ने राष्ट्र संघ से अपना नाम वापस ले लिया। दोनों देशों ने फिर से शंघाई, रेहे और हेबै में कई लड़ाई लड़ी, जब तक की 1933 में एक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए। उसके बाद, चीनी स्वयंसेवी दल ने मांचुरिया, चहर और सुयुआन में जापानी आक्रमण का प्रतिरोध जारी रखा। 1936 की शीआन घटना के बाद, कुओमींटांग पार्टी और कम्युनिस्ट बलों ने युद्धविराम पर सहमति जता कर जापान के विरोध के लिए एक संयुक्त मोर्चा का निर्माण किया। युद्ध पूर्व की घटनाएंइथियोपिया पर इतालवी आक्रमण (1935)युद्ध को जाते इतालवी सैनिक, 1935 दूसरा इतालवी-एबिसिनियन युद्ध एक संक्षिप्त औपनिवेशिक युद्ध था जो अक्टूबर 1935 में शुरू हुआ और मई 1936 में समाप्त हुआ। यह युद्ध इथियोपिया साम्राज्य (जिसे एबिसिनिया भी कहा जाता था) पर इतालवी राज्य के आक्रमण से शुरू हुआ, जो इतालवी सोमालीलैंड और इरिट्रिया की ओर से किया गया था।[12] युद्ध के परिणामस्वरूप इथियोपिया पर इतालवी सैन्य कब्जा हो गया और यह इटली के अफ्रीकी औपनिवेशिक राज्य के रूप में शामिल हो गया। इसके अलावा, शांति के लिए बनी राष्ट्र संघ की कमजोरी खुल कर सामने आ गई। इटली और इथियोपिया दोनों सदस्य थे, लेकिन जब इटली ने लीग के अनुच्छेद १० का उल्लंघन किया फिर भी संघ ने कुछ नहीं किया। जर्मनी ही एकमात्र प्रमुख यूरोपीय राष्ट्र था जिसने इस आक्रमण का समर्थन किया था। ताकि वह जर्मनी के ऑस्ट्रिया पर कब्जे के मंसूबे का समर्थन करदे। स्पेनी गृहयुद्ध (1936-39)स्पेनी गृहयुद्ध के दौरान, गुएर्निका मे हुई बमबारी, 1937 जब स्पेन में गृहयुद्ध शुरू हुआ, हिटलर और मुसोलिनी ने जनरल फ्रांसिस्को फ्रेंको के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी विद्रोहियों को सैन्य समर्थन दिया, वही सोवियत संघ ने मौजूदा सरकार, स्पेनिश गणराज्य का समर्थन किया। 30,000 से अधिक विदेशी स्वयंसेवकों, जिन्हे अंतर्राष्ट्रीय ब्रिगेड नाम दिया गया, ने भी राष्ट्रवादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जर्मनी और सोवियत संघ दोनों ने इस छद्म युद्ध का इस्तेमाल अपने सबसे उन्नत हथियारों और रणनीतिओं के मुकाबले में परीक्षण करने का अवसर के रूप में किया। 1939 में राष्ट्रवादियों ने गृहयुद्ध जीत लिया; फ्रैंको, जो अब तानाशाह था, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दोनों पक्षों के साथ सौदेबाजी करने लगा, लेकिन अंत तक निष्कर्ष नहीं निकला। उसने स्वयंसेवकों को जर्मन सेना के तहत पूर्वी मोर्चे पर लड़ने के लिए भेजा था, लेकिन स्पेन तटस्थ रहा और दोनों पक्षों को अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी। चीन पर जापानी आक्रमण (1937)जुलाई 1937 में, मार्को-पोलो ब्रिज हादसे का बहाना लेकर जापान ने चीन पर हमला कर दिया और चीनी साम्राज्य की राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया,[13] सोवियत संघ ने चीन को यूद्ध सामग्री की सहायता हेतु, उसके साथ एक अनाक्रमण समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे जर्मनी के साथ चीन के पूर्व सहयोग प्रभावी रूप से समाप्त हो गया। जनरल इश्यिमो च्यांग काई शेक ने शंघाई की रक्षा के लिए अपनी पूरी सेना तैनात की, लेकिन लड़ाई के तीन महीने बाद ही शंघाई हार गए। जापानी सेना लगातार चीनी सैनिको को पीछे धकेलते रहे, और दिसंबर 1937 में राजधानी नानकिंग पर भी कब्जा कर लिया। नानचिंग पर जापानी कब्जे के बाद, लाखों की संख्या में चीनी नागरिकों और निहत्थे सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया।[14][15] मार्च 1938 में, राष्ट्रवादी चीनी बलों ने तैएरज़ुआंग में अपनी पहली बड़ी जीत हासिल की, लेकिन फिर ज़ुझाउ शहर को मई में जापानी द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया।[16] जून 1938 में, चीनी सेना ने पीली नदी में बाढ़ लाकर, बढ़ते जापानियों को रोक दिया; इस पैंतरेबाज़ी से चीनियों को वूहान में अपनी सुरक्षा तैयार करने के लिए समय निकल गया, हालांकि शहर को अक्टूबर तक जापानियों ने कब्जा लिया।[17] जापानी सैन्य जीत ने चीनी प्रतिरोध को उतना ढ़हाने में क़ामयाब नहीं रहे जितना की जापान उम्मीद करता था; बजाय इसके चीनी सरकार चोंग्किंग में स्थानांतरित हो गई और युद्ध जारी रखा।[18][19] सोवियत-जापानी सीमा संघर्षयूरोपीय व्यवसाय और समझौतेयुद्ध की शुरुआत1937 में चीन और जापान मार्को पोलों में आपस में लड़ रहे थे। उसी के बाद जापान ने चीन पर पर पूरी तरह से धावा बोल दिया। सोविएत संघ ने चीन तो अपना पूरा समर्थन दिया। लेकिन जापान सेना ने शंघाई से चीन की सेना को हराने शुरू किया और उनकी राजधानी बेजिंग पर कब्जा कर लिया। 1938 ने चीन ने अपनी पीली नदी तो बाड़ ग्रस्त कर दिया और चीन को थोड़ा समय मिल गया सँभालने ने का लेकिन फिर भी वो जापान को रोक नही पाये। इसे बीच सोविएत संघ और जापान के बीच में छोटा युध हुआ पर वो लोग अपनी सीमा पर ज्यादा व्यस्त हो गए। यूरोप में जर्मनी और इटली और ताकतवर होते जा रहे थे और 1938 में जर्मनी ने आस्ट्रिया पर हमला बोल दिया फिर भी दुसरे यूरोपीय देशों ने इसका ज़्यादा विरोध नही किया। इस बात से उत्साहित होकर हिटलर ने सदेतेनलैंड जो की चेकोस्लोवाकिया का पश्चिमी हिस्सा है और जहाँ जर्मन भाषा बोलने वालों की ज्यादा तादात थी वहां पर हमला बोल दिया। फ्रांस और इंग्लैंड ने इस बात को हलके से लिया और जर्मनी से कहाँ की जर्मनी उनसे वादा करे की वो अब कहीं और हमला नही करेगा। लेकिन जर्मनी ने इस वादे को नही निभाया और उसने हंगरी से साथ मिलकर 1939 में पूरे चेकोस्लोवाकिया पर कब्जा कर लिया। दंजिग शहर जो की पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी से अलग करके पोलैंड को दे दिया गया था और इसका संचालन देशों का संघ (अंग्रेज़ी: league of nations) (लीग ऑफ़ नेशन्स) नामक विश्वस्तरीय संस्था कर रही थी, जो की प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्थापित हुए थी। इस देंजिंग शहर पर जब हिटलर ने कब्जा करने की सोची तो फ्रांस और जर्मनी पोलैंड को अपनी आजादी के लिए समर्थन देने को तैयार हो गए। और जब इटली ने अल्बानिया पर हमला बोला तो यही समर्थन रोमानिया और ग्रीस को भी दिया गया। सोविएत संघ ने भी फ्रांस और इंग्लैंड के साथ हाथ मिलाने की कोशिश की लेकिन पश्चिमी देशों ने उसका साथ लेने से इंकार कर दिया क्योंकि उनको सोविएत संघ की मंशा और उसकी क्षमता पर शक था। फ्रांस और इंग्लैंड की पोलैंड को सहायता के बाद इटली और जर्मनी ने भी समझौता पैक्ट ऑफ़ स्टील किया की वो पूरी तरह एक दूसरे के साथ है। सोविएत संघ यह समझ गया था की फ्रांस और इंग्लैंड को उसका साथ पसंद नही और जर्मनी अगर उस पर हमला करेगा तो भी फ्रांस और इंग्लैंड उस के साथ नही होंगे तो उसने जर्मनी के साथ मिलकर उसपर आक्रमण न करने का समझौता (नॉन-अग्रेशन पैक्ट) पर हस्ताक्षर किए और खुफिया तौर पर पोलैंड और बाकि पूर्वी यूरोप को आपस में बाटने का ही करार शामिल था। सितम्बर 1939 में सोविएत संघ ने जापान को अपनी सीमा से खदेड़ दिया और उसी समय जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोल दिया। फ्रांस, इंग्लैंड और राष्ट्रमण्डल देशों ने भी जर्मनी के खिलाफ हमला बोल दिया परन्तु यह हमला बहुत बड़े पैमाने पर नही था सिर्फ़ फ्रांस ने एक छोटा हमला सारलैण्ड पर किया जो की जर्मनी का एक राज्य था। सोविएत संघ के जापान के साथ युद्धविराम के घोषणा के बाद ख़ुद ही पोलैंड पर हमला बोल दिया। अक्टूबर 1939 तक पोलैंड जर्मनी और सोविएत संघ के बीच विभाजित हो चुका था। इसी दौरान जापान ने चीन के एक महत्वपूर्ण शहर चंघसा पर आक्रमण कर दिया पर चीन ने उन्हें बहार खड़ेड दिया। पोलैंड पर हमले के बाद सोविएत संघ ने अपनी सेना को बाल्टिक देशों (लातविया, एस्टोनिया, लिथुँनिया) की तरफ मोड़ दी। नवम्बर 1939 में फिनलैंड पर जब सोविएत संघ ने हमला बोला तो युद्ध जो विंटर वार के नाम से जाना जाता है वो चार महीने चला और फिनलैंड को अपनी थोडी सी जमीन खोनी पड़ी और उसने सोविएत संघ के साथ मॉस्को शान्ति करार पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत उसकी आज़ादी को नही छीना जाएगा पर उस सोविएत संघ के कब्जे वाली फिनलैंड की ज़मीन को छोड़ना पड़ेगा जिसमे फिनलैंड की 12 प्रतिशत जन्शंख्या रहती थी और उसका दूसरा बड़ा शहर य्वोर्ग शामिल था। फ्रांस और इंग्लैंड ने सोविएत संघ के फिनलैंड पर हमले को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल होने का बहाना बनाया और जर्मनी के साथ मिल गए और सोविएत संघ को देशों के संघ (लीग ऑफ़ नेशन्स) से बहार करने की कोशिश की। चीन के पास कोशिश को रोकने का मौक था क्योंकि वो देशों के संघ (लीग ऑफ़ नेशन्स) का सदस्य था। लेकिन वो इस प्रस्ताव में शामिल नही हुआ क्योंकि न तो वो सोविएत संघ से और न ही पश्चिमी ताकतों से अपने आप को दूर रखना चाहता था। सोविएत संघ इस बात से नाराज़ हो गया और चीन को मिलने वाली सारी सैनिक मदद को रोक दिया। जून 1940 में सोविएत संघ ने तीनों बाल्टिक देशों पर कब्जा कर लिया। दूसरा विश्वयुद्ध और भारतदूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था। इसलिए आधिकारिक रूप से भारत ने भी नाजी जर्मनी के विरुद्ध १९३९ में युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिटिश राज (गुलाम भारत) ने २० लाख से अधिक सैनिक युद्ध के लिए भेजा जिन्होने ब्रिटिश नियंत्रण के अधीन धुरी शक्तियों के विरुद्ध युद्ध लड़ा। इसके अलावा सभी देसी रियासतों ने युद्ध के लिए बड़ी मात्रा में अंग्रेजों को धनराशि प्रदान की। इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका का राष्ट्रपति कौन था?Abhishek Mishra. रुजवेल्ट उनके बारे में - फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट(जनवरी 30, 1882- अप्रैल 12, 1945) अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति थे। वे द्वितीय विश्वयुद्ध और वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान बीसवीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से थे।
तृतीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका के राष्ट्रपति कौन थे?(७) शीतयुद्ध के तनाव को कम करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति आइजन हॉवर ने सोवियत संघ की यात्रा करने का निर्णय किया।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति कौन थे?वुडरो विल्सन (अंग्रेज़ी: Woodrow Wilson) (१८५६-१९२४) अमेरिका के २८ वें राष्ट्रपति थे।
द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र कौन कौन से थे?Solution : द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों में सम्मिलित देश ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, पोलैंड एवं इनके उपनिवेश।
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