धर्म से आप क्या समझते हैं धर्म के प्रमुख तत्व कौन कौन से हैं? - dharm se aap kya samajhate hain dharm ke pramukh tatv kaun kaun se hain?

धर्म, दर्शन और अध्यात्म - यह तीन शब्द हमें सुनने-पढ़ने को मिलते हैं। तीनों ही शब्दों का अर्थ अलग अलग है, लेकिन यहां बात सिर्फ धर्म की करते हैं कि आखिर धर्म की परिभाषा क्या है। क्योंकि सवाल भी यही है। हिन्दू सनातन सिद्धांत धारा में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में धर्म का प्रमुख स्थान है। धर्मयुद्ध का अर्थ किसी संप्रदाय विशेष के लिए युद्ध नहीं। सत्य और न्याय के लिए युद्ध।

धर्म को अंग्रेजी में रिलिजन (religion) और ऊर्दू में मजहब कहते हैं, लेकिन यह उसी तरह सही नहीं ‍है जिस तरह की दर्शन को फिलॉसफी (philosophy) कहा जाता है। दर्शन का अर्थ देखने से बढ़कर है। उसी तरह धर्म को समानार्थी रूप में रिलिजन या मजहब कहना हमारी मजबूरी है। मजहब का अर्थ संप्रदाय होता है।  उसी तरह रिलिजन का समानार्थी रूप विश्वास, आस्था या मत हो सकता है, लेकिन धर्म नहीं। हालांकि मत का अर्थ होता है विशिष्ट विचार। कुछ लोग इसे संप्रदाय या पंथ मानने लगे हैं, जबकि मत का अर्थ होता है आपका किसी विषय पर विचार।

यतो ऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः।

धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है, जिसमें लौकिक उन्नति (अविद्या) तथा आध्यात्मिक परमगति (विद्या) दोनों की प्राप्ति होती है।

धर्म का शाब्दिक अर्थ : धर्म एक संस्कृत शब्द है। धर्म का अर्थ बहुत व्यापक है। ध + र् + म = धर्म। ध देवनागरी वर्णमाला 19वां अक्षर और तवर्ग का चौथा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह दन्त्य, स्पर्श, घोष तथा महाप्राण ध्वनि है। संस्कृत (धातु) धा + ड विशेषण- धारण करने वाला, पकड़ने वाला होता है। जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। पृथ्वी समस्त प्राणियों को धारण किए हुए है। जैसे हम किसी नियम को, व्रत को धारण करते हैं इत्यादि। इसका मतलब धर्म का अर्थ है कि जो सबको धारण किए हुए है अर्थात धारयति- इति धर्म:!। अर्थात जो सबको संभाले हुए है। सवाल उठता है कि कौन क्या धारण किए हुए हैं? धारण करना सही भी हो सकता है और गलत भी।

धारण करने योग्य क्या है?

सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, क्षमा आदि।...बहुत से लोग कहते हैं कि धर्म के नियमों का पालन करना ही धर्म को धारण करना है जैसे ईश्वर प्राणिधान, संध्या वंदन, श्रावण माह व्रत, तीर्थ चार धाम, दान, मकर संक्रांति-कुंभ पर्व, पंच यज्ञ, सेवा कार्य, पूजा पाठ, 16 संस्कार और धर्म प्रचार आदि।... लेकिन उत्त सभी कार्य व्यर्थ है जबकि आप सत्य के मार्ग पर नहीं हो। सत्य को जाने से अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौचादि सभी स्वत: ही जाने जा सकते हैं। अत: सत्य ही धर्म है और धर्म ही सत्य है।...जो संप्रदाय, मजहब, रिलिजन और विश्वास सत्य को छोड़कर किसी अन्य रास्ते पर चल रही है वह सभी अधर्म के ही मार्ग हैं। इसीलिए हित्दुत्व में कहा गया है सत्यंम शिवम सुंदरम।

मनु ने धर्म के दस लक्षण बताए हैं:-

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥

(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किए गए अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (आंतरिक और बहारी शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश में रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन, वचन और कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना); ये दस धर्म के लक्षण हैं।)

स्वभाव और गुण?

कुछ लोगों के अनुसार आग का धर्म है जलना, धरती का धर्म है धारण करना और जन्म देना, हवा का धर्म है जीवन देना उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति का धर्म गुणवाचक है। अर्थात गुण ही है धर्म। इसका मतलब की बिच्छू का धर्म है काटना, शेर का धर्म है मारना। तब प्रत्येक व्यक्ति के गुण और स्वभाव को ही धर्म माना जाएगा। यदि कोई हिंसक है तो उसका धर्म है हिंसा करना। और फिर तब यह क्यों ‍नहीं मान लिया जाता है कि चोर का स्वभाव है चोरी करना? यदि बिच्छू का धर्म काटना नहीं है तो फिर बिच्छू को धर्म की शिक्षा दी जानी चाहिए और उसे भी नैतिक बनाया जाना चाहिए?

दरअसल, धर्म मूल स्वभाव की खोज है। धर्म एक रहस्य है, संवेदना है, संवाद है और आत्मा की खोज है। धर्म स्वयं की खोज का नाम है। जब भी हम धर्म कहते हैं तो यह ध्वनीत होता है कि कुछ है जिसे जानना जरूरी है। कोई शक्ति है या कोई रहस्य है। धर्म है अनंत और अज्ञात में छलांग लगाना। धर्म है जन्म, मृत्यु और जीवन को जानना।

हिन्दू संप्रदाय में धर्म को जीवन को धारण करने, समझने और परिष्कृत करने की विधि बताया गया है। धर्म को परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना ईश्वर को। दुनिया के तमाम विचारकों ने -जिन्होंने धर्म पर विचार किया है, अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं। इस नजरिए से वैदिक ऋषियों का विचार सबसे ज्यादा उपयुक्त लगता है कि सृष्टि और स्वयं के हित और विकास में किए जाने वाले सभी कर्म धर्म हैं।

धर्म से आप क्या समझते हैं ? धर्म के प्रमुख स्रोत एवं लक्षणों को बताइए।

धर्म का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Dharma) 

धर्म का अर्थ एवं परिभाषा : धर्म शब्द की उत्पत्ति "धृ" धातु से हुयी है जिसका अर्थ है - धारण करना, पालन करना, आलम्बन देना । सम्पूर्ण संसार में जीवन को धारण करने वाला तत्व जिसमें सार कुछ संयमित सुव्यवस्थित एवं सुसंचालित रहे और जिसके बिना लोक स्थिति असम्भव हो, वह धर्म कहलाता है। ऋगवेद में धर्म शब्द का प्रयोग संज्ञा अथवा विश्लेषण के रूप में हुआ है, जिसका अर्थ है प्राण तत्व का पालन-पोषण करने वाला सम्योजक एवं ऊँचा उठाने वाला उनायक है। अर्थवेद में धर्म शब्द का प्रयोग धार्मिक क्रिया संस्कार करने से अर्जित गुण के रूप में हुआ है। ब्राह्मण में धर्म का अर्थ है - धार्मिक कर्मों का सर्वाग स्वरूप।

"धर्म वह मानदण्ड है जो विश्व को धारणा करता है। इस प्रकार धर्म का अभिप्राय उस सिद्धान्त से जिसमें समस्त प्राणियों की रक्षा होती है। वे समस्त नियम, धर्म के अंग हैं जो प्रत्येक के लिए कल्याणकारी हैं। हिन्दू विचारों के अनुसार-धर्म अलौकिक शक्ति के प्रति एक विश्वास है। - डा. राधाकृष्णन प्रश्न 2- धर्म के प्रमुख स्रोत बताइए। उत्तर -

हिंदू धर्म के प्रमुख स्रोत (Main Sources of Dharma) 

हिंदू धर्म के निम्नलिखित चार प्रमुख स्रोत होते हैं - (i) वेद (ii) स्मृति (iii) धर्मात्माओं का आचरण (iv) व्यक्ति का अन्तःकरण । वेदों में हिन्दू धर्म के समस्त विश्वास एवं निश्चय सन्निहित हैं। इस सम्बन्ध में एक प्रमुख विद्वान ने लिखा है कि-

"स्मृति का शब्दार्थ उस वस्तु की ओर संकेत करता है जो वेदों के अध्ययन में निष्णात ऋषियों की स्मृति रह गयी थी। स्मृति का कोई भी नियम जिसके लिए कोई वैदिक सूत्र ढूँढा जा सके वेद की ही भाँति प्रमाणिक बन जाता है" - डॉ. राधाकृष्णन 

हिंदू धर्म के प्रमुख लक्षण (Main Features of Dharma) 

धर्म के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं - (1) धृति, (2) क्षमा, (3) अस्तेय, (4) दम, (5) इन्द्रिय निग्रह, (6) शौच 

1. धृति - धृति का तात्पर्य है धैर्य । मनुष्य प्रत्येक कार्य में सफलता चाहता हैं, क्योंकि असफल होने से वह निराश होता है और वह अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ लेता है। अतः जीवन में सफलता प्रदान करने के लिए धैर्य के साथ-साथ सुख एवं दुख पर दृढ़ रहना चाहिए।

2. क्षमा - क्षमा का तात्पर्य है किसी अन्य द्वारा की गई गलती को शान्त स्वभाव से ग्रहण करना और किसी भी प्रकार का क्रोध न करना। इस सम्बन्ध में रहीमदास जी का दोहा उल्लिखित है -

"क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात।

का रहीम हरि को घट्यो जो भृग मारी लाता' 

3. अस्तेय - अस्तेय का अर्थ है दूसरों की धन सम्पत्ति के प्रति सर्वथा निःस्पृह रहना । छल-बल, लूटपाट एवं अन्याय से दूसरों की धन सम्पत्ति पर कब्जा कर लेने की प्रवृत्ति सामाजिक व्यवस्था के लिए अत्यन्त घातक है।

4. दम - इन्द्रियों में मन सबसे अस्थिर व शक्तिशाली है, इनके स्वेच्छाचार प्रवृत्ति को सदगुणों के द्वारा अन्त करना चाहिए। अतः इस आन्तरिक इन्द्रिय को वश में करना ही दम है।

5. इन्द्रिय निग्रह - इन्द्रियाँ सहज रूप से मनुष्य को विषय के रस में डुबो देती है और मनुष्य क्षणिक सुख को वास्तविक सुख समझकर अपने उद्देश्य से भटक जाता है। इन्द्रियों के विषयाकृष्ट हो जाने पर धर्मानुष्ठान के त्याग से मनुष्य का आधा पतन हो जाता है।

6. शौच - धर्म के आचरण के लिए आन्तरिक शौच (सेवा, दया, प्रेम, करुणा एवं त्याग आदि) एवं बाह्य शौच (शरीर, घर-आँगन एवं परिधान आदि की पवित्रता आदि) शौच के अंग हैं।

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धर्म के प्रमुख तत्त्व कौन कौन से हैं?

तत्त्व (हिन्दू धर्म).
सांख्य में २५ तत्त्व माने गए हैं—पुरुष, प्रकृति, महत्तत्व (बुद्धि), अहंकार, चक्षु, कर्ण, नासिका, जिह्वा, त्वक्, वाक्, पाणि, पायु, पाद, उपस्थ, मल, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश। ... .
योग में ईश्वर को और मिलाकर कुल २६ तत्त्व माने गए हैं।.

धर्म से आप क्या समझते हैं इसके तत्वों की चर्चा करें?

धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। मध्ययुग में विकसित धर्म एवम् दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है।

धर्म से आप क्या समझते हैं प्रमुख धर्म कौन कौन से हैं?

धर्म शब्द मूलता 'धृ' धातु से उत्पन्न होता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'धारण करना' | वस्तुतः धर्म से तात्पर्य आचरण की उस संहिता से है जिसके माध्यम से मनुष्य नियमित होता हुआ विकास करता है और अंततोगत्वा मोक्ष प्राप्त करता है | हम इस पोस्ट में प्रमुख भारतीय धर्म हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी और यहूदी धर्म के ...

धर्म से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषता बताइए?

इन प्राकृतिक शक्तियों का चित्रण दिव्य होता है ही आता किस प्रकार की शक्ति अलौकिक होती है। धर्म में पवित्रता का तत्व पाया जाता है। प्रत्येक धर्म की एक सैद्धांतिक व्यवस्था होती है। प्रत्येक धर्म में धार्मिक व्यवहार करने के लिए कुछ निश्चित प्रतिमान ईश्वरी इच्छाओं को प्रकट करता है।