यूरोपियों धर्म सुधार आंदोलन के कारण सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा नैतिक रूप से अनेक परिवर्तन हुए इन्हें परिवर्तन का इस ब्लॉग में उल्लेख किया गया है। विभिन्न बिंदुओं के अंतर्गत इसका उल्लेख किया जा रहा है। Show सोलहवीं शताब्दी में हुए धर्म सुधार आन्दोलनों के कई महत्वपूर्ण परिणाम हुए — 1. ईसाई समाज की एकता सदा के लिए विखण्डित : धर्म सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप रोमन कैथोलिक समाज अनेक सम्प्रदायों- लूथरवादी, काल्वैवादी आदि में बंट गया और उन्होंने अपने पृथक् चर्च स्थापित कर लिए। 2. प्रति धर्म सुधार आन्दोलन : सुधार आन्दोलनों ने कैथोलिक चर्च को अपने दोषों को दूर करने के लिए विवश कर दिया। इसी का परिणाम था कैथोलिकों ने अपने धर्म में विद्यमान विभिन्न दोषों के निराकरण के लिए व्यापक प्रयास किए जिन्हें सम्मिलित रूप से प्रति धर्म सुधार आन्दोलन अथवा कैथोलिक धर्म सुधार आन्दोलन कहा जाता है। इतिहासकार स्वेन भी मानते हैं कि रोमन कैथोलिक चर्च में सुधार की प्रेरणा प्रोटेस्टेंट क्रान्ति के महत्वपूर्ण परिणामों में से एक थी। 3. समाज में नैतिक अनुशासन बढ़ा : परस्पर विरोधी धार्मिक गतिविधियों ने नैतिक एवं चारित्रिक उत्थान को प्रेरित किया। प्रोटेस्टेंटवादियों (विशेषतः काल्वे के अनुयायियों) ने सरल एवं सादा जीवन तथा वैयक्तिक नैतिक अनुशासन के आदर्श प्रस्तुत किए तो जेसुइट भी उनसे पीछे न रहे। 4. धार्मिक असहिष्णुता एवं रक्तपात : 16वीं शताब्दी में धर्म के नाम पर प्रोटेस्टेन्टों तथा कैथोलिकों दोनों ने ही भयावह रक्तापात किया। धार्मिक युद्ध की शुरुआत हालैण्ड में हुई किन्तु तीस वर्षीय धार्मिक युद्ध (1618-1648) में धर्मान्धता और घृणा की विनाशकारी नृशंस प्रवृत्तियाँ शिखर पर पहुँच गयीं। धर्म के इस स्वरूप ने लोगों में विरक्ति (धर्म से) की भावना पैदा की, फलतः कालान्तर में यूरोप में भौतिकवाद का खूब विकास हुआ और सहिष्णुता की भावना पनपी। 5. शिक्षा का प्रचार-प्रसार : सुधारवादियों तथा कैथोलिक धर्मानुयायियों, दोनों ने ही शिक्षा के प्रसार पर बहुत जोर दिया। इस सम्बन्ध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य जीसस समाज ने किया। 6. विवाह की अवधारणा प्रभावित : विवाह अब एक धार्मिक संस्कार की अपेक्षा संविदा मात्र रह गया। व्याभिचार और अनैतिक सम्बन्धों की स्थिति में तलाक की अनुमति मिल सकती थी। 7. राष्ट्रीय भावना का विकास : धार्मिक आन्दोलनों ने राष्ट्रीय भावना को प्रेरित किया और राष्ट्रीय चर्च की अवधारणा पर बल दिया। चर्च के नाम पर इटली को धन दिए जाने पर लूथर जैसे सुधारवादियों ने प्रतिबन्ध लगाने की माँग की।
10 लोक भाषा का विकास : धर्म सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप स्थानीय भाषाओं और साहित्य का पर्याप्त विकास हआ। लूथर ने बाइबिल का जर्मन भाषा में और काल्वै ने फ्रेंच में अनवाद किया जो अत्यधिक लोकप्रिय हुए। इस समय प्रायः सभी धर्म प्रचारकों ने स्थानीय भाषा में ही धर्मोपदेश देकर लैटिन के समान उनको (स्थानीय भाषाओं को) सम्मान एवं प्रतिष्ठा दिलायी। 11. प्रोटेस्टेन्टवादियों ने अधिकांश धार्मिक प्रतीकों (धार्मिक मूर्ति, चित्र आदि) को अस्वीकार करके उनका ध्वस्त कर दिया जिससे ललित कला को नुकसान पहुँचा। 12 धार्मिक आन्दोलनों ने व्यक्ति एवं ईश्वर के बीच मध्यस्थों को अस्वीकार करके तथा प्रत्येक व्यक्ति को बाइबिल का व्याख्याता बनाकर व्यक्तिवाद तथा विचार स्वातन्त्र्य को प्रोत्साहित किया। इस प्रकार धर्म सुधार आन्दोलन के विविध दूरगामी परिणाम हुए। इसने यूरोप में नए युग की चेतना विकास किया। सब्सक्राइब करे youtube चैनल Religious Reform Movements in hindi धर्मसुधार आंदोलन क्या है | धर्म सुधार आंदोलन से आप क्या समझते हैं इसके कारणों का उल्लेख कीजिए ? आंदोलन की पृष्ठभूमि (Background of Movement) प्रोटेस्टेंट आंदोलन (Protestant Movement) कैथोलिक धर्मसुधार (Catholic Religious Reform) प्रबोधन (Enlightenment) धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख प्रभाव क्या हुए?(1) धर्म सुधार आन्दोलन के फलस्वरूप उत्तरी यूरोप प्रोटेस्टैण्ट हो गया तथा दक्षिणी और पश्चिमी यूरोप पूर्ववत् कैथोलिक बना रहा। (2) धार्मिक क्षेत्र में कैथोलिकों और प्रोटेस्टैण्टों के मध्य भयंकर मतभेद व पारस्परिक वैमनस्य उत्पन्न हो गया। इन मतभेदों के होते हुए भी प्रोटेस्टैण्टों एवं कैथोलिकों में काफी साम्य था।
धर्म सुधार आंदोलन का यूरोप पर कैसे प्रभाव पड़ा?इस प्रकार धर्म-सुधार आंदोलन के कारण यूरोप के ईसाई संसार की एकता छिन्न-भिन्न हो गई। शासन की दृष्टि से पूर्ण रूप से स्वतंत्र संप्रदायों का उद्भव हुआ, जो एक ही ईसा और बाइबिल को मानते हुए भी अनेक मूलभूत धर्म सिद्धांतों के विषय में भिन्न भिन्न मतों का प्रतिपादन करते हैं।
सुधार आंदोलन से आप क्या समझते हैं?सुधार आन्दोलन (reform movement) एक प्रकार का सामाजिक आन्दोलन है जिसका लक्ष्य समाज के किसी क्षेत्र (aspects) को अपेक्षाकृत धीरे-धीरे परिवर्तित करके उसे बेहतर बनाना होता है। इसमें तीव्र परिवर्तन या मूलभूत परिवर्तन का लक्ष्य नहीं होता है। इसलिये यह 'क्रान्तिकारी आन्दोलन' से भिन्न है।
धर्म सुधार आंदोलन का जन्मदाता कौन था?(34) धर्म-सुधार आन्दोलन की शुरुआत 16वीं सदी में हुई. (35) धर्म-सुधार आन्दोलन का प्रवर्तक मार्टिन लूथर था. जो जर्मनी का रहनेवाला था.
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