ध्वनि प्रदूषण से कौन सा रोग होता है? - dhvani pradooshan se kaun sa rog hota hai?

निम्न में से कौनसा ध्वनि प्रदूषण का दुष्प्रभाव नहीं है?

  1. जानवरों की मृत्यु
  2. कर्णक्ष्वेद
  3. उच्च - रक्तचाप
  4. ओजोन का क्रमिक ह्रास

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Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : ओजोन का क्रमिक ह्रास

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10 Questions 10 Marks 7 Mins

ओजोन का क्रमिक ह्रास वातावरण में CFC (क्लोरो फ्लोरो कार्बन) के निस्तार के कारण है जिसके फलस्वरूप समताप - मण्डल में ओजोन का ह्रास हो रहा है| समताप - मंडल में ओजोन पृथ्वी पर रहने वाले लोगों की हानिकारक विकिरणों से रक्षा करती है| अन्य विकल्प जैसे जानवरों की मृत्यु, कर्णक्ष्वेद एवं उच्च - रक्तचाप, ध्वनि प्रदूषण के कारण होते हैं|

Latest RRB Group D Updates

Last updated on Nov 2, 2022

The RRB Group D Results are expected to be out soon! The Railway Recruitment Board released the RRB Group D Answer Key on 14th October 2022. The candidates will be able to raise objections from 15th to 19th October 2022. The exam was conducted from 17th August to 11th October 2022. The RRB (Railway Recruitment Board) is conducting the RRB Group D exam to recruit various posts of Track Maintainer, Helper/Assistant in various technical departments like Electrical, Mechanical, S&T, etc. The selection process for these posts includes 4 phases- Computer Based Test Physical Efficiency Test, Document Verification, and Medical Test. 

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हेलो फ्रेंड रोशनी है धोनी प्रदूषण से आप क्या समझते हैं इसके दुष्परिणामों का उल्लेख करें तो सबसे पहले हम देखेंगे ध्वनि प्रदूषण क्या है ध्वनि प्रदूषण ठीक है यानी कि हमारा नॉइस पोलूशन नॉइस जिसे हम कहते हैं शोर ठीक है जब मनुष्य 30 से 40 डेसिबल की ध्वनि से ज्यादा तीव्रता की ध्वनि सुनता है 30 से 40 डेसिबल यानी की डीपी ठीक है इससे ज्यादा तीव्रता की बनी जब उत्पन्न होती है तो वह आता है चोर के अंतर्गत यानी कि नॉइस और इसी शहर की वजह से जो प्रदूषण होता है जो कि कानों को बिल्कुल अप्रिय रहता है उसे ही ध्वनि प्रदूषण कहते हैं यानी की एक सीमा से ऊपर ध्वनि का उत्पन्न होना या ध्वनि को उत्पन्न करना ध्वनि प्रदूषण के अंतर्गत आता है ठीक है यह तब देखने को मिलता है जब शादियों में डीजे बजाया जाए

डीजे बजाने पर टिके या फिर किसी कारखाने में जो मशीन है वो खराब हो चुकी है या कारखाने के जो यंत्र हैं उनमें अत्यधिक आवाज आती है तो वहां आसपास रहने वाले लोगों को जो है इससे परेशानी होती है ठीक है इसके अलावा बेवजह बेवजह ध्वनि उत्पन्न करने से ठीक है तू कुछ कारण होते प्रदूषण के या फिर जहां पर ट्रैफिक लगता है ट्रैफिक जहां पर जाम हो जाता है वहां पर भी वाहनों के हॉर्न का जो है ध्वनि कई सारी उत्पन्न होती है अब हमें बताने हैं इसके दुष्प्रभाव तो आइए वह भी जान लेते हैं तो दोस्तों दुष्प्रभाव होते हैं सबसे पहले तो लोगों की सामान शक्ति जो मनुष्य या जियो की श्रवण शक्ति होती है वह धीरे-धीरे कम होती जाती है क्या

शिन होती जाती है ठीक है इससे जो है रक्तचाप भी बढ़ता है लगातार व्यक्ति यदि ध्वनि प्रदूषण में रहता है तो उससे उसका रक्तचाप भी पड़ता है और ह्रदय संबंधी रोग भी उसे हो सकते हैं ठीक है इसके अलावा अनिद्रा की शिकायत व्यक्ति में हो जाती है किसकी अनिद्रा आशा करता हूं कुछ प्रश्न का उत्तर समझ आया होगा वीडियो को देखने के बाद

हमारे देश में विभिन्न अवसरों पर की जाने वाली आतिशबाजी भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्रोत है। विभिन्न त्योहारों, उत्सवों, मेंलों, सांस्कृतिक/वैवाहिक समारोहों में आतिशबाजी एक आम बात है। मैच या चुनाव जीतने की खुशी भी आतिशबाजी द्वारा व्यक्त की जाती है। परन्तु इन आतिशबाजियों से वायु प्रदूषण तो होता ही है साथ ही ध्वनि तरंगों की तीव्रता भी इतनी अधिक होती है, जो ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्या को जन्म देती है। ध्वनि वह तत्व है, जिसका आभास हमारी कर्णेन्द्रियों से होता है। किसी वस्तु के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है। ध्वनि की अवांछनीय तीव्रता को शोर (Noise) को कहते हैं। अग्रेजी का Noise शब्द लैटिन के Nausea शब्द से लिया गया। इस अदृश्य प्रदूषण से कई गंभीर समस्याओं ने जन्म लिया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1972 में असहनीय ध्वनि को प्रदूषण का अंग ही माना हैं। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण एवं यातायात के कारण ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में उभरा है और इसका कुप्रभाव मनुष्यों के ऊपर ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों एवं वनस्पतियों पर भी पड़ता है।

शोर एक आधुनिक समस्या नहीं है। 2500 वर्ष पूर्व पुराने यूनान की साइबर नाम की कालोनी के लोगोंं को शोर के नियंत्रण के उपायों का पता था। उन्होंने सुरक्षित निद्रा के लिए कानून बनाए, ताकि वहां के नागरिक शांतिपूर्ण निद्रा ले सकें। जूलियस सीजर ने भी ऊंची ध्वनि पर प्रतिबंध लगाया था और उन रथों के रात में चलने पर पाबंदी लगा दी थी जिनके चलने से रात में शोर होता था।

शोर/ध्वनि प्रदूषण की परिभाषा

जे. टिफिन के अनुसार “शोर एक ऐसी ध्वनि है, जो किसी व्यक्ति को अवांछनीय लगती है और उसकी कार्यक्षमता (Efficiency)को प्रभावित करती है।”

हटैल के अनुसार “शोर एक अवांछनीय ध्वनि है, जो कि थकान बढ़ाती है और कुछ औद्योगिक परिस्थितियों में बहरेपन का कारण बनती हैै।”

राॅय के अनुसार “अनिच्छापूर्ण ध्वनि, जो मानवीय सुविधा, स्वास्थ्य तथा गतिशीलता में हस्तक्षेप करती है, ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।”एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका शोर को एक “अवांछनीय ध्वनि” के रूप में परिभाषित करता है।

Environmental Health Criteria के अनुसार “शोर एक ऐसी अवांछनीय ध्वनि है, जो कि व्यक्ति/समाज के लोगों के स्वास्थ और रहन-सहन (Well Being) पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।”

ध्वनि प्रदूषण का मापन (Measurement Of Noise Pollution)

ध्वनि की तीव्रता को मापने के लिए डेसीबेल (Decibel) इकाई निर्धारित की गई है।

मनवीय कान (Ear) 30Hz से 20,000 Hz तक की ध्वनि तरंगों के लिए बहुत अधिक संवेदनशील है, लेकिन सभी ध्वनियां मनुष्य को नहीं सुनाई देती हैं। डेसी का अर्थ है 10 और वैज्ञानिक ग्राहमबेल के नाम से “बेल” शब्द लिया गया है।

कान की क्षीणतम श्रव्य ध्वनि शून्य स्तर से प्रारम्भ होती है।

नीचे दी गई तालिका में विभिन्न स्रोतों से निकलने वाली ध्वनि के स्तर को दर्शाया गया है-


स्रोत

ध्वनि स्तर (Decibel)

श्वसन

10

पत्तियों की सरसराहट

10

फुसफुसाहट

20-30

पुस्तकालय

40

शांत भोजनालय

50

सामान्य वार्तालाप

55-60

तेज वर्षा

55-60

घरेलू बहस

55-60

स्वचालित वाहन/घरेलू मशीनें

90

बस

85-90

रेलगाड़ी की सीटी

110

तेज स्टीरियो

100-115

ध्वनि विस्तारक

150

सायरन

150

व्यावसायिक वायुयान

120-140

राकेट इंजन

180-195

ध्वनि प्रदूषण के मानक (Standards Of Noise Pollution)

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार निद्रावस्था में आस-पास के वातावरण में 35 डेसीबेल से ज्यादा शोर नहींं होना चाहिए और दिन का शोर भी 45 डेसीबेल से अधिक नहींं होना चाहिए। तालिका में मानकों केा दर्शाया गया है।

ध्वनि प्रदूषण केे स्रोत


1 प्राकृतिक स्रोत

प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण होता है। परन्तु प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण अपेक्षाकृत अल्पकालीन होता है तथा हानि भी कम होती है। शोर के प्राकृतिक स्रोतों के अंतर्गत बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की कड़क, तूफानी हवाएँ आदि से मनुष्य असहज (Discomfort) महसूस करता, परन्तु बूंदों की छमछम, चिड़ियों की कलरव और नदियों/ झरनों की कलकल ध्वनि मनुष्य में आनंद का संचार भी करती है।

2 मानवीय स्रोत

बढ़ते हुए शहरीकरण, परिवहन (रेल, वायु, सड़क) खनन के कारण शोर की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है। वस्तुतः शोर और मानवीय सभ्यता सदैव साथ रहेंगे। ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख मानवीय स्रोत निम्न हैं-

1 उद्योग

लगभग सभी औद्योगिक क्षेत्र ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित हैं कल-कारखानों में चलने वाली मशीनों से उत्पन्न आवाज/गड़गड़ाहट इसका प्रमुख कारण है। ताप विद्युत गृहों में लगे ब्यायलर, टरबाइन काफी शोर उत्पन्न करते हैं। अधिकतर उद्योग शहरी क्षेत्रों में स्थापित हैं, अतः वहां ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता अधिक है।

2- परिवहन के साधन -

ध्वनि प्रदूषण का एक प्रमुख कारण परिवहन के विभिन्न साधन भी हैं। परिवहन के सभी साधन कम या अधिक मात्रा में ध्वनि उत्पन्न करते हैं। इनसे होने वाला प्रदूषण बहुत अधिक क्षेत्र में होता है।वर्ष 1950 में भारत में कुल वाहनों की संख्या 30 लाख थी जिसमें से 27 हजार दो पहिया वाहन एक लाख 59 हजार कार, जीप और टैक्सी, 82 हजार ट्रक और 34 हजार बसें थीं। देश की प्रगति के साथ 2011 तक भारत में कुल वाहनों का आंकड़ा लगभग 22 करोड़ हो गया, जिसमें से दो पहिया वाहनों की संख्या लगभग 17 करोड़ 60 लाख और चार पहिया वाहनों की संख्या 4 करोड़ 40 लाख हैं। जिसमें कार, टैक्सी, बसें और ट्रक शामिल हैं। केवल लखनऊ में एक लाख से अधिक वाहन पंजीकृत है और वाहनों में प्रतिवर्ष 5 से 10 प्रतिशत तक की वृद्धि हो रही है। उपरोक्त तथ्यों से ध्वनि प्रदूषण के साथ वायु प्रदूषण की कल्पना स्वतः की जा सकती है।

3- मनोरंजन के साधन -

मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करता है। वह टी.वी., रेडियो, टेपरिकॉर्डर, म्यूजिक सिस्टम (डी.जे.) जैसे साधनों द्वारा अपना मनोरंजन करता है परन्तु इनसे उत्पन्न तीव्र ध्वनि शोर का कारण बन जाती है। विवाह सगाई इत्यादि कार्यक्रमों, धार्मिक आयोजनों, मेंलों, पार्टियों में लाऊड स्पीकर का प्रयोग और डी.जे. के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है।

4. निर्माण कार्य

विभिन्न निर्माण कार्यों में प्रयुक्त विभिन्न मशीनों और औजारों के प्रयोग के फलस्वरूप ध्वनि प्रदूषण बढ़ा है।

5. आतिशबाजी

हमारे देश में विभिन्न अवसरों पर की जाने वाली आतिशबाजी भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्रोत है। विभिन्न त्योहारों, उत्सवों, मेंलों, सांस्कृतिक/वैवाहिक समारोहों में आतिशबाजी एक आम बात है। मैच या चुनाव जीतने की खुशी भी आतिशबाजी द्वारा व्यक्त की जाती है। परन्तु इन आतिशबाजियों से वायु प्रदूषण तो होता ही है साथ ही ध्वनि तरंगों की तीव्रता भी इतनी अधिक होती है, जो ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्या को जन्म देती है।

6- अन्य कारण

विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक रैलियों श्रमिक संगठनों की रैलियों का आयोजन इत्यादि अवसरों पर एकत्रित जनसमूहों के वार्तालाप से भी ध्वनि तरंग तीव्रता अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसी प्रकार प्रशासनिक कार्यालयों, स्कूलों, कालेजों, बस स्टैण्डों, रेलवे स्टेशनों पर भी विशाल जनसंख्या के शोरगुल के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसी प्रकार अन्य छोटे-छोटे कई ऐसे कारण हैं जो ध्वनि प्रदूषण को जन्म देते हैं। जैसे कम चौड़ी सड़कें, सड़क पर सामान बेचने वालों के लिए कोई योजना न होना पीक आवर में ज्यादा ट्रैफिक।

ध्वनि प्रदूषण के कुप्रभाव

शोर से उत्पन्न प्रदूषण एक धीमी गति वाला मृत्यु दूत (Slow Agent Of Death) है। ध्वनि प्रदूषण से मनुष्यों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

1- सामान्य प्रभाव।
2- श्रवण संबंधी प्रभाव।
3- मनोवैज्ञानिक प्रभाव।
4- शारीरिक प्रभाव।

1- सामान्य प्रभाव -

ध्वनि प्रदूषण द्वारा मानव वर्ग पर पड़ने वाले प्रभावों के अंतर्गत बोलने में व्यवधान (Speech Interference) चिड़चिड़ापन, नींद में व्यवधान तथा इनके संबंधित पश्चप्रभावों (After Effects) एवं उनसे उत्पन्न समस्याओं को सम्मिलित किया जाता है।

2- श्रवण संबंधी प्रभाव (Auditory Effects)

विभिन्न प्रयोगों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ध्वनि की तीव्रता जब 90 डी.वी. से अधिक हो जाती है तो लोगोंं की श्रवण क्रियाविधि में विभिन्न मात्रा में श्रवण क्षीणता होती है। श्रवण क्षीणता (Hearing Impairment) निम्न कारकों पर आधारित होती है -शोर की अबोध ध्वनि तरंग की आवृत्ति तथा व्यक्ति विशेष की शोर की संवेदनशीलता। लखनऊ में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिए ऐसे लोगोंं पर शोध किया गया जो लगातार पांच साल से 10 घंटे से अधिक समय शोर-शराबे के बीच गुजारते हैं। देखने में आया कि 55 प्रतिशत लोगोंं की सुनने की ताकत कम हो गई है।

3- मनोवैज्ञानिक प्रभाव -

उच्च स्तरीय ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्यों में कई प्रकार के आचार व्यवहार संबंधी परिवर्तन हो जाते है। दीर्घ अवधि तक ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगोंं में न्यूरोटिक मेंटल डिसार्डर (Neurotic Mental Disorder) हो जाता है। माँसपेशियों में तनाव तथा खिंचाव हो जाता है। स्नायुओं में उत्तेजना हो जाती है।

4- शारीरिक प्रभाव

उच्च शोर के कारण मनुष्य विभिन्न विकृतियों एवं बीमारियों सग्रसित हो जाता है जैसे - उच्च रक्तचाप, उत्तेजना, हृदय रोग, आँख की पुतलियों में खिंचाव तथा तनाव मांसपेशियों में खिंचाव, पाचन तंत्र में अव्यवस्था, मानसिक तनाव, अल्सर जैसे पेट एवं अंतड़ियों के रोग आदि। विस्फोटों तथा सोनिक बूम के अचानक आने वाली उच्च ध्वनि के कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है लगातार शोर में जीवनयापन करने वाली महिलाओं के नवजात (ध्वनि की गति से अधिक चलने वाले जैट विमानों से उत्पन्न शोर को सोनिक बूम कहते हैं।) शिशुओं में विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं।

ध्वनि प्रदूषण का नियंत्रण - (Controling Of Sound Pollution)

ध्वनि प्रदूषण का संबंध व्यक्ति विशेष तथा मानव समुदाय दोनों से होता है। अतः इसका समाधान व्यक्तिगत, सामुदायिक तथा शासकीय (Government) स्तरों पर किया जा सकता है। पुनश्च ध्वनि प्रदूषण निवारक कार्यक्रमों में दो पक्षों (Aspects) को सम्मिलित किया जा सकता है -

1- ध्वनि तथा शोर की तीव्रता को कम करना।
2- ध्वनि एवं शोर नियंत्रण।

ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने का सर्वाधिक प्रभावी तरीका स्रोत बिन्दुओं पर ही ध्वनि को नियंत्रित करना है। कुछ उपाय निम्नवत दिए जा रहे है -

1- विभिन्न क्षेत्रों में सड़कों के किनारे हरे वृक्षों की कतार खड़ी करके ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है क्योंकि हरे पौधे ध्वनि की तीव्रता को 10 से 15 डी.वी. तक कम कर सकते हैं। महानगरीय क्षेत्रों में हरित वनस्पतियों की पट्टी विकसित की जा सकती है।

2- प्रेशर हार्न बंद किए जाएं, इंजन व मशीनों की मरम्मत लगातार हो। सही तरह से ट्रैफिक का संचालन हो एवं शहरों के नए इलाके बसाते समय सही योजना बने।

विभिन्न नगरों में दिनांक 23 मार्च 2011 को सायं 7.00 बजे ध्वनि प्रदूषण का स्तर -


क्रमांक

क्षेत्र (आवासीय)

ध्वनि प्रदूषण (मात्रा डेसीबल में)

1.

मुंबई

129

2.

दिल्ली

90.6

3.

हैदराबाद

90.3

4.

चेन्नई

86.6

5.

लखनऊ

86.1

6.

कोलकाता

80.7

7.

बंगलूरू

75.5

मानक सीमा

45-45

लखनऊ में विभिन्न क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर


क्रमांक

क्षेत्र (आवासीय)

ध्वनि प्रदूषण (मात्रा डेसीबल में)

 

दिन

रात

1.

इंदिरानगर

72.7

59.5

2.

गोमतीनगर

67.1

60.5

3.

चारबाग

79.8

69.7

4.

हुसैनगंज

69.8

61.8

5.

अमीनाबाद

71.3

63.8

6.

आलमबाग

72.5

64.3

मानक सीमा

55

45

ध्वनि प्रदूषण के मानक (Standards Of Noise Pollution)वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत 1 अप्रैल 1988 को ध्वनि प्रदूषण को वायु प्रदूषण के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। पर्यावरण (सुरक्षा) नियम 1986 के नियम 3 के तहत भारतीय मानक संस्थान (Indian Standard Institution- ISI) ने ध्वनि प्रदूषण के लिए कुछ आधारभूत मानक निर्धारित किए गए हैं। ध्वनि प्रदूषण के निम्नलिखित तालिका में दिए गए मानकों को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्वीकृत प्रदान की है।

ध्वनि प्रदूषण के मानक स्तर

स्वीकृत ध्वनि स्तर (dB(A))

क्षेत्र

दिन

रात्रि

(प्रातः से रात्रि 9 बजे तक)

(रात्रि 9 से सुबह 6 बजे तक)

औद्योगिक क्षेत्र

75

70

व्यावसायिक क्षेत्र

65

55

आवासीय क्षेत्र

55

45

शांत क्षेत्र

50

40

शांत क्षेत्र में अस्पताल, शिक्षा संस्थान, न्यायालय आदि के चारों तरफ 100 मी. तक का क्षेत्र सम्मिलित है।

ध्वनि प्रदूषण के मानक आंतरिक (Indoor) व बाह्य (Outdoor) क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होते हैं, जो निम्नलिखित तालिकाओं से स्पष्ट हैं

भारतीय मानक संस्थान द्वारा स्वीकृत ध्वनि स्तर

(A) आवासीय क्षेत्रों में स्वीकृत बाह्य ध्वनि स्तर -

क्षेत्र

ध्वनि स्तर

ग्रामीण

25-35

उपनगरीय

30-40

नगरीय (आवासीय)

35-40

नगरीय (आवासीय व व्यावसायिक)

40-45

नगरीय (सामान्य)

45-55

औद्योगिक क्षेत्र

50-60

(B> विभिन्न भवनों में स्वीकृत आंतरिक ध्वनि स्तर


भवन

ध्वनि स्तर

रेडियो तथा टेलीविजन स्टूडियो

25-35

संगीत कक्ष

30-35

ऑडिटोरियम, हॉस्टल, सम्मेलन कक्ष

35-40

कोर्ट, निजी कार्यालय तथा पुस्तकालय

40-45

सार्वजनिक कार्यालय, बैंक तथा स्टोर

45-50

रेस्टोरन्ट्स

50-55

ध्वनि प्रदूषण से कौन कौन से रोग होते हैं?

अगर आप ध्वनि प्रदूषण को नजरअंदाज कर रहे हैं तो सावधान हो जाइये इससे न केवल आप बहरे हो सकते हैं बल्कि याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद जैसी बीमारियों के अलावा नपुंसकता और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में भी आ सकते हैं

ध्वनि प्रदूषण का दुष्परिणाम क्या होता है?

<br> ध्वनि-प्रदूषण के दुष्प्रभाव : (i) वायुमण्डलीय संतुलन बिगड़ सकता है । (ii) लोगों की श्रवण शक्ति क्षीण हो सकती है । (iii) हृदय रोग तथा रक्तचाप की समस्याएँ बढ़ सकती है। (iv) अनिद्र की बीमारी हो सकती है

ध्वनि प्रदूषण से शरीर के कौन कौन से अंग प्रभावित होते हैं?

अवांछित तेज आवाज बहरेपन और कान की अन्य जटिल समस्याओं जैसे, कान के पर्दों का खराब होना, कान में दर्द, आदि का कारण बनती है।

ध्वनि प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

ध्वनि प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य को खतरा बहुत तेज ध्वनि कान के पर्दों को हानि पहुँचा सकती है। कान के अन्दर जो हेयर-सेल्स (Hearing and Hair Cells) होते हैं वो पूरी तरह खत्म हो सकते हैं और कान से सुनाई देना बन्द हो सकता है। ध्वनि से दिल की धड़कन कम हो जाती है और ब्लड प्रेशर की शिकायत हो सकती है।