उच्च प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन प्रणाली - uchch praathamik star par moolyaankan pranaalee

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सर्व शिक्षा अभियान- परिचय
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शैक्षिक परिवेश
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सर्व शिक्षा अभियान की गाइड लाइंस
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मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिनांक 26/10/2012
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योजनाएं / गतिविधियां
 

मीना मंच
इ जी एस/ ए एस
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय
शिक्षा मित्र योजना
गुणवत्ता संवर्द्धन
समेकित शिक्षा
बी आर सी/एन पी आर सी

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जनपदवार प्रगति
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चित्र वीथिका
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प्रशिक्षण मॉड्यूल
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आवासीय ब्रिज कोर्स / गैर आवासीय ब्रिज कोर्स - निर्देश
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वार्षिक कार्य योजना एवं बजट (2013-14)
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जनपद प्रगति पत्र
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योजना एवं बजट
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अवमुक्त एवं व्यय
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कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय
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यू-डायस 5% सैम्पल चेकिंग रिपोर्ट
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सहायक वित्त एवम लेखाधिकारी के पद पर प्रतिनियुक्ति के आधार पर कार्यभार ग्रहण करने की अंतिम तिथि 19 अगस्त , 2022 से बढाकर 30 सितम्बर, 2022 कर दी गई है I
 
 
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गुणवत्ता संवर्द्धन

शिक्षा की गुणवत्ता का संवर्द्धन
  • हमारा विश्वास है कि प्रत्येक बालक-बालिका महत्त्वपूर्ण है एवं उनका शैक्षणिक विकास, उनकी अभिरूचि एवं क्षमता योग्यता के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।
  • प्राथमिक स्तर के शुरूआती दौर में ही विषयवस्तु को विशेष महत्त्व दिया जाना चाहिए ताकि पाठ्यक्रम हस्तान्तरण में (अर्थात शिक्षण एवं पठन-पाठन) निर्देशात्मक अनुदेशात्मक शैली का स्थान सृजनात्मक शैली ले सके जहां बच्चे स्वयं नये ज्ञान का सृजन कर सकें।
  • भाषा शिक्षण में परस्पर संवाद को विशेष महत्त्व प्रदान करना चाहिए ताकि शिक्षण के प्रारम्भिक सोपान से ही पढने व लिखने का कौशल विकसित हो सके।
  • गतिविधि व प्रोजेक्ट के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा से बच्चों में गणित के प्रति भय समाप्त करने की आवश्यकता है। प्राथमिक स्तर पर गणित कार्नर जरूर स्थापित करना चाहिए जिसे चरणबद्ध तरीके से स्थापित किया जाना चाहिए।
  • विज्ञान शिक्षण को गतिविधियों के माध्यम से अभिरूचि पूर्ण बनाया जाना चाहिए। उच्च प्राथमिक स्तर पर इसे सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक तंत्र की स्थापना करनी चाहिए।
  • सामाजिक विज्ञान का शिक्षण रटने-रटाने के स्थान पर अन्वेषण एवं गतिविधियों के माध्यम से रूचिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए।
  • कक्षा १-८ तक आवश्यक शिक्षण के रूप में शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा पर अधिक जोर दिया जायेगा।
  • कला शिक्षा एवं कार्य अनुभव का पाठ्यक्रम व विषयवस्तु विकसित की जायेगी। इसका मूल्यांकन बच्चों के प्रगति विवरण में भी अंकित होगा।
     
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    प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के क्रियान्वयन के लिए पूर्ण गुणवत्तापरक शैली की परिकल्पना को स्पष्ट रूप से समझना अत्यावश्यक होगा। इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा उच्चतम निकाय के रूप में गठित राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने विद्यालयीय शिक्षा के विविध क्षेत्रों में सृजनात्मकता, नवीन प्रयोग एवं उत्पादकता के संवर्द्धन हेतु विशेष ध्यान दिया है। इस संदर्भ में आयोग ने गुणवत्ता की चुनौती पर विशेष चिन्ता भी व्यक्त की है। आयोग ने विद्यालयीय शिक्षा की गुणवत्ता को उत्कृष्ट बनाने हेतु निम्नांकित महत्त्वपूर्ण घटकों की रूपरेखा तैयार की है।
        
    • विद्यालय की गुणवत्ता निरीक्षण हेतु राष्ट्रीय निकाय की स्थापना करना।
    • निरीक्षण की उपयोगिता सुनिश्चित करने हेतु प्रभावी निरीक्षण प्रणाली विकसित करना।
    • अध्यापकों की जवाबदेही बढ़ाना।
    • अध्यापकों की पूर्व सेवा एवं सेवाकालीन प्रशिक्षण में सुधार व इसे आधुनिक बनाते हुए समय-समय पर आवश्यकतानुसार परिवर्तित एवं परिवर्द्धित करना।
    • पाठ्यक्रम सुधार को प्राथमिकता प्रदान करना एवं शिक्षा को बच्चों के लिए उपयुक्त एवं औचित्यपूर्ण बनाना।
    • बच्चों की भाषा एवं विषय बोधगम्यता, अंकीय एवं परिमाणात्मक कौशल एवं ज्ञान सृजनात्मकता एवं उपयोग क्षमता के महत्त्व के दृष्टिगत परीक्षा प्रणाली में सुधार लाया जाना।
    इस प्रकार गुणवत्ता प्रधान शिक्षा का व्यावहारिक अर्थ है बच्चों द्वारा बौद्धिक/संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं मनौदैहिक क्षेत्र की विभिन्न दक्षताओं को अर्जित करना। मुख्य रूप से बच्चों के अधिगम संप्राप्ति के रूप में निम्नलिखित दक्षताएं हो सकती हैं :--
    • बच्चे/विद्यार्थी विश्लेषणात्मक शैली में पढ़ना व लिखना सीख जाते हैं।
    • उनमें तार्किक दक्षताएं विकसित हो जाती हैं।
    • उनमें पारस्परिक संवाद व विचारों के आदान-प्रदान की उत्कृष्ट क्षमता विकसित हो जाती है।
    • वे जीवन की यथार्थ परिस्थितियों में ज्ञान का उपयोग करना सीख जाते हैं।
    उपर्युक्त विचारों के अनुसार गुणवत्ता प्रधान शिक्षा की रूपरेखा निम्नांकित क्षेत्रों में विभाजित की जा सकती है :-    
    • भौतिक संसाधन (Plant)
    • प्रक्रिया (Process)
    • मानव संसाधन (People)
    • विषयवस्तु (Content)
    • तकनीक  (Technology)
    गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए उपर्युक्त पॉंच स्तम्भों पर आधारित समग्र एवं व्यापक गतिविधियों से युक्त एक योजना बनाने की आवश्यकता है। इससे शिक्षा अध्यापक केन्द्रित होने के स्थान पर बाल केन्द्रित एवं गतिविधि आधारित होगी जिससे बच्चों की शिक्षा खुशी-खुशी में तनाव मुक्त वातावरण में होगी।
    प्रदेश शासन द्वारा वर्ष २०१०-११ हेतु विस्तृत गुणवत्ता आधारित योजना बनायी गयी है जिससे समग्र रूप से गुणवत्ता मानकों को सशक्त बनाया जा सके यथा-अधिगम प्रक्रिया एवं अधिगम सम्प्राप्ति, न्यूनतम आवश्यक परिस्थितियां, नवीन पाठयचर्या व टी०एल०एम० के आधार पर विषयवस्तु में कमियॉं, मूल्यांकन प्रणाली, अध्यापक प्रभाविता, शैक्षिक समर्थन एवं अनुश्रवण प्रणाली, समुदाय एवं समाज की भागीदारी, ताकि बच्चों की सीख स्तर में वृद्धि दर्ज की जा सके। मुख्य जोर कक्षा-कक्ष में बदलाव लाना है जिससे बच्चों का सीखना व उसे जारी रखना सुनिश्चित किया जा सके। प्रदेश शासन विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए शिक्षा का अधिकार अधिनियम को क्रियान्वित करने हेतु संकल्पबद्ध है।

    विस्तृत गुणवत्ता प्रधान योजना २०१०-११ का प्रारूप बनाने के पूर्व विविध प्रकार के शिक्षण उपलब्धि मानको यथा-डी०आई०एस०ई० आंकडे, क्यू०एम०टी० आख्या, समाधान आख्या एवं एन०सी०ई०आर०टी० शिक्षण उपलब्धि सर्वेक्षण आख्या आदि का विशद विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण से अधिगम समस्याएं तथा खामियाँ एवं अधिगम स्तर की प्रवृत्तियां चिन्ह्ति करने में सुलभता हुयी। अधिगम संबंधी खामियों को चिन्ह्ति करने के उपरान्त हमारी कोशिश है कि विद्याथियों की उपलब्धि को प्रभावित करने वाले मुद्‌दों को प्राथमिकता के साथ समझते हुए उसका सुनियोजित तरीके से उपयुक्त रणनीतियों के तहत समाधान भी किया जा सके।
     

    1. राष्ट्रीय रिपोर्ट कक्षा-५ में अधिगम उपलब्धि- बच्चों के अधिगम संप्राप्ति को ज्ञात करने हेतु वर्ष २००७-०८ में मध्यावधि उपलब्धि सर्वेक्षण किया गया। यह सर्वेक्षण वर्ष २००२ में किये गये आधारभूत सर्वेक्षण (बेसलाइन सर्वे) के आधार पर प्राप्त उन्नति को भी दर्शाता है। इस सर्वेक्षण का उददेश्य कक्षा-५ के बच्चों के पर्यावरण अध्ययन, गणित एवं भाषा की उपलब्धि स्तर का अध्ययन एवं इसकी तुलना बेसलाइन से करना था। प्रादेशिक स्तर पर अधारभूत एवं मध्यावधि औसत उपलब्धि की तुलनात्मक तालिका निम्नवत है :-
    प्रदेश भाषा गणित पर्यावरण  अध्ययन
    BAS MAS   BAS MAS BAS MAS
    उत्तर प्रदेश 50-2 61-77 37-81 52-39 41-45 56-16
    अखिल भारतीय औसत 58-87 60-31 46-51 48-46 50-3 52-19
     
    2.शिक्षणार्थी उपलब्धि - गुणवत्ता अनुश्रवण प्रारूप-॥।

    शिक्षा की गुणात्मकता में वृद्धि एवं मूल्यांकन हेतु एन०सी०ई०आर०टी० द्वारा क्यू०एम०टी० विकसित किया गया है। राज्य स्तरीय एवं डायट/बी०आर०सी० एवं एन०पी०आर०सी० स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों में बी०आर०सी०/एन०पी०आर०सी० समन्वयकों के साथ उपरोक्त सभी प्रारूपों (फार्मेट) पर चर्चा की जा चुकी है। डी०एल०एफ०-प्रारूप ॥। के अनुसार शिक्षणार्थियों की उपलब्धि की सामान्य प्रवृत्ति निम्नवत है :-

    ग्रेड विधार्थियों की प्रतिशत सीमा
    ग्रेड-ए- 80% से अधिक अंक प्राप्त करने वाले बच्चे 13- 17%
    ग्रेड-बी - 65-79 से कम अंक प्राप्त करने वाले बच्चे 30-35%
    ग्रेड-सी- 50-64% से कम अंक प्राप्त करने वाले बच्चे 30-32%
    ग्रेड-डी 35-49% से कम अंक प्राप्त करने वाले बच्चे 15-20 %
    ग्रेड-इ 34% से कम अंक प्राप्त करने वाले बच्चे 5-8%
     
    परिणाम

    उपरोक्त आंकडों से स्पष्ट है कि गत वर्षों में एस०एस०ए० के प्रयासों के फलस्वरूप बच्चों के अधिगम में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। कक्षा-५ में भाषा, गणित एवं पर्यावरण अध्ययन में आधारभूत मूल्यांकन, सर्वेक्षण एवं मिडलाइन मूल्यांकन सर्वेक्षण की तुलना से स्पष्ट है कि देश के अन्य प्रदेशों के समान उत्तर प्रदेश ने गुणात्मक प्रगति की है तथा मिडलाइन मूल्यांकन सर्वेक्षण में प्रदेश को छठा स्थान प्राप्त हुआ है। कक्षा-८ में भाषा, गणित, विज्ञान व सामाजिक विज्ञान में उत्तर प्रदेश ने बेसलाइन से मिडलाइन मूल्यांकन सर्वेक्षण तक ८-१२  प्रतिशत प्रगति दर्ज की है किन्तु कक्षा-३ में गणित और भाषा में बेसलाइन से मिडलाइन मूल्यांकन सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय औसत से निम्न स्तर पर है। इससे स्पष्ट है कि विद्यालय के प्रारम्भिक वर्षों में प्रयास बढ़ाने की आवश्यकता है। गुणवत्ता निरीक्षण विधियों के विश्लेषण ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि विद्यार्थियों हेतु अभ्यास पुस्तिका, अभ्यास शीट, गतिविधियां, टी०एल०एम० एवं अन्य प्रकार की मुद्रित एवं विविध सामग्रियों के अधिकाधिक इस्तेमाल किये जाने की आवश्यकता है।

    हालांकि एन०सी०ई०आर०टी० के सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश ने उल्लेखनीय प्रगति की है। किन्तु अभी भी अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक लंबा सफर तय करना है। विद्यार्थी उपलब्धि, विद्यालय, अध्यापक प्रभाविता, कक्षा-कक्ष प्रक्रिया एवं अन्य विविध इनपुट की स्थितिपरक विश्लेषण से उभरकर आये  मुख्य मुददे/खामियां इस प्रकार से हैं :-     
    • अनियमित अध्यापक एवं छात्र उपस्थिति
    • शिक्षण विधियॉं, शिक्षकों की आवश्यकताओं को पहचानना व योजनाबद्ध शिक्षण प्रशिक्षण पर अपेक्षित ध्यान देने का अभाव।
    • विद्यार्थियों का मूल्यांकन व विभिन्न पदाधिकारियों के कार्य निष्पादन/मूल्यांकन हेतु उपयुक्त प्रणाली का अभाव।
    • सामूहिक व सहभागिता से सीखना, करके सीखना के अवसरों एवं बाल सुलभ वातावरण का अभाव।
    • विद्यालय में सामुदायिक प्रतिभागिता एवं इसे अपना मानने की भावना का अभाव।
    • विद्यालयों में उपयुक्त अधिगम सामग्री के प्रबंध एवं कक्षा-कक्ष प्रक्रिया को सक्रिय अधिगम की ओर ले जाने की आवश्यकता।
    • कार्यस्थल/विद्यालय पर शैक्षिक समर्थन व अनुश्रवण प्रणाली का कमजोर होना।
     
    उच्च प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन प्रणाली - uchch praathamik star par moolyaankan pranaalee
     
    रणनीति
    • अध्यापकों एवं बालकों की उपस्थिति बढ़ाना।
    • कक्षा प्रक्रिया में सुधार व उपयुक्त अधिगम कार्यों में बच्चों की व्यस्तता सुनिश्चित करना।
    • विविध विधियों द्वारा कक्षा-१ से कक्षा-८ तक सतत एवं समग्र मूल्यांकन सुनिश्चित करना।
    • विविध स्तरों पर अध्यापकों, एन०पी०आर०सी०/बी०आर०सी० समन्वयकों, डायट व डी०पी०ओ० के अधिकारियों एवं अन्य कार्यकर्ताओं के कार्यों के निष्पादन के मानकों का पुनरीक्षण एवं क्रियान्वयन।
    • मुख्य प्रतिभागियों की क्षमता संवर्द्धन कर उन्हें परिवर्तन हेतु साझा विजन के लिए प्रेरित करना।
    • विद्यालय विकास योजनाओं एवं शैक्षिक प्रकरणों में सक्रिय सामुदायिक सहयोग को अभिवृद्ध करते हुए अपनत्व की भावना विकसित करना।
    • श्रव्य/दृश्य सामग्रियों, दूरभाष पारस्परिक वार्ता, रेडियो प्रसारण एवं वीडियो वार्ता के माध्यम से अभिमुखीकरण, पुनरावलोकन एवं प्रशिक्षण हेतु अधिगम वृद्धि एवं क्षमता निर्माण के लिए तकनीकी का प्रयोग
    • पाठयचर्या, पाठयपुस्तक, शिक्षाशास्त्र, शिक्षक प्रशिक्षण एवं मूल्यांकन प्रणाली का सामंजस्य राष्ट्रीय पाठयचर्या का प्रारूप-२००५ एवं शिक्षा का अधिकार अधिनियम-२००९ के साथ सुनिश्चित करना।
    • शिक्षा के क्षेत्र में अनुश्रवण व प्रभावी परिवर्तन के आकलन हेतु डायट, बी०आर०सी० एवं अन्य क्षेत्र के पदाधिकारियों की क्षमता संवर्द्धन।
    • प्राथमिक स्तर पर विद्यालय, पुस्तकालय, प्रयोगशाला व पाठन योजना को एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर विज्ञान/गणित हेतु हस्तचालित गतिविधियों को सुदृढ करना।
    • एस०आर०जी०, डी०आर०जी० एवं बी०आर०जी० को समृद्ध करते हुए प्रशिक्षणों की गुणवत्ता में सुधार करना एवं सुनियोजित प्रशिक्षकों एवं शिक्षकों का क्षमता संवर्द्धन करना।  
    • उच्च प्राथमिक स्तर पर विज्ञान और गणित में टी०एल०एम० मॉडयूल, प्राथमिक स्तर पर टी०एल०एम० उपयोग पर माडयूल, प्रारम्भिक प्राथमिक स्तर पर पठन शिक्षा शास्त्र पर माडयूल एवं दैनिक परिस्थितियों पर आधारित विज्ञान और गणित के मॉडयूल को वितरित किया जायेगा एवं शिक्षकों को इसी के अनुसार कक्षा परिवेश को परिवर्तित करने हेतु अभिप्रेरित किया जायेगा ताकि शिक्षणार्थी अपने अनुभव के आधार पर ज्ञान सृजित कर सकें।
    • सम्पूर्ण एवं स्थायी रूप में गुणवत्ता को एल0र्इ0पी0 के अन्तर्गत स्थापित करने हेतु गुणवत्ता कार्यक्रम चलाना उददेश्य है। प्रारम्भिक स्तर पर पाठन एवं अंकीय कौशल को विकसित किया जाना एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित विज्ञान अध्ययन को गतिविधि आधारित बनाना।
    दिसम्बर, 2010 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा ''न्यायसंगत, गुणवत्तायुक्त शिक्षा''-श्रृंखला-।।पर आयोजित की गयी क्षेत्रीय कार्यशाला के बाद प्रदेश शासन द्वारा विस्तृत गुणवत्ता आधारित योजना बनायी गयी है जिससे गुणवत्ता मानक यथा अधिगम प्रक्रिया  एवं अधिगम संप्राप्ति, न्यूनतम कौशल ग्रहण योग्य परिसिथति, नयी पाठयचर्या व टी0एल0एम0, मूल्यांकन प्रणाली, अध्यापक प्रभाविता, शैक्षिक अनुसमर्थन एवं अनुश्रवण प्रणाली के आधार पर विषयवस्तु में खामियां व समुदाय एवं समाज की पूर्ण भागीदारी को मजबूत किया जायेगा जिससे बच्चों की अधिगम  प्रक्रिया में सुधार देखा जा सके।  

    उपर्युक्त परिस्थितियों में गुणवत्ता संबंधी सभी प्रयास जिसमें विद्यालय अनुदान, अध्यापक अनुदान, अध्यापक प्रशिक्षण, नि:शुल्क पाठयपुस्तक, उपचारात्मक शिक्षण, बी0आर0सी0 सी0आर0सी0 अनुदान ,आर0र्इ0एम0एस0 एवं एल0र्इ0पी0 शामिल हैं, को गुणवत्ता संवर्धन योजना के निम्न प्रारूप में समेकित किया गया है जो बच्चों की भागीदारी एवं अधिगम स्तर में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।


    भौतिक संसाधन

    • विद्यालय अनुदान का उपयोग विद्यालय को स्वच्छ, हरा भरा एवं आकर्षक बनाने में किया गया ताकि बच्चे सहज और तनावमुक्त महसूस कर सकें।
    • प्राथमिक स्तर पर अध्यापक अनुदान का प्रयोग विद्यालय के वातावरण को अकादमिक रूप से सुंदर बनाने के लिए किया गया ताकि विद्यालय परिसर एवं कक्षा-कक्ष प्रक्रिया को उल्लासपूर्ण व सुखद बनाया जा सके। इसी उद्देश्य से ''शिक्षण अधिगम संदर्शिका'' विकसित कर इसे सभी विद्यालयों में वितरित किया गया।
    • विद्यालय गतिविधियों को प्रभावी बनाने एवं कम्प्यूटर शिक्षण को सार्थक करने के उददेश्य से सभी विधालयों का विदयुतिकरण किया जा रहा है।
    • शिक्षण के प्रति बच्चों में अभिरूचि एवं नियमित रूप से विद्यालय आने हेतु बच्चों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विभिन्न खेल एवं सह-पाठ्यक्रम गतिविधियां आयोजित की गयी। विद्यालय के पश्चात भी कला शिक्षा एवं कार्य अनुभव बच्चों एवं जनसमुदाय की पहुंच में होगा जिससे विद्यालय और समुदाय की दूरियां समाप्त हो सकेंगी।
    • अधिगम अभिवृद्धि कार्यक्रम (एल0र्इ0पी0) के अन्तर्गत प्रारम्भिक प्राथमिक स्तर पर बच्चों के पढने के कौशल को विकसित करने हेतु सभी विद्यालयों को यथेष्ट रूप से पाठन व लेखन की अभ्यास सामग्री उपलब्ध करा दी गयी है। इसी प्रकार उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित कार्नर एवं विज्ञान के लिए प्रयोगो हेतु सामग्रीयुक्त विज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना की गयी है।
    प्रक्रिया
    • कक्षा 1 एवं 2 के सभी बच्चों में बुनियादी साक्षरता एवं अंकीय कौशल विकसित करने के उद्देश्य से एल0र्इ0पी0 के अन्तर्गत प्रत्येक जनपद में प्रारम्भिक पठन कौशल विकास कार्यक्रम क्रियान्वित किया गया है। अध्यापक प्रशिक्षण, अध्यापक अनुदान एवं आर0र्इ0एम0एस0 में उपलब्ध वित्तीय संसाधन एल0र्इ0पी0 से एकीकृत कर दिये गये हैं। पढने के तरीकों हेतु अध्यापक प्रशिक्षण पर होने वाला व्यय सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण मद से लिया गया है। कक्षा 1 व 2 में रीडिंग कार्नर हेतु वाल पेंटिंग व टी0एल0एम0 का व्यय शिक्षक अनुदान मद से किया गया है। पर्यावरण निर्माण, पुस्तक मेला, कहानी लेखन व कार्यक्रमों का निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण संबंधी आर0र्इ0एम0एस0 मद से वहन किया जायेगा। एल0र्इ0पी0 मद से विभिन्न पठन सामग्री, शिक्षक हस्तपुस्तिका व ट्रेनिंग गाइड उपलब्ध करायी गयी है।
    • प्रदेश शासन द्वारा प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर निरन्तर मूल्यांकन हेतु बच्चों के यूनिट टेस्ट की योजना क्रियान्वित की गयी है। राज्य सी0सी0र्इ0 को सही अर्थो में क्रियान्वित करने के लिए प्रतिबद्ध है। एन0सी0र्इ0आर0टी0 के मूल्यांकन पर नवीन स्रोत पुस्तक के प्रकाश में एक समिति द्वारा सी0सी0र्इ0 की परिकल्पना को विकसित किया जा रहा है। नवीन मूल्यांकन रणनीति के प्रयोग हेतु अध्यापक प्रशिक्षण मद में संभावित व्यय का बजट प्रस्तावित किया जा चुका है। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर बोर्ड परीक्षा समाप्त करने का शासनादेश निर्गत हो चुका है। प्रारम्भिक स्तर पर उत्तीर्ण अनुत्तीर्णपूर्व कक्षा में रोके जाने की व्यवस्था नहीं है। शीघ्र ही विद्यालयों में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया संबंधी तंत्र विकसित कर लिया जायेगा।
    • उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित कार्नर की स्थापना निम्न उद्देश्यों के लिए की गयी है :-    

      1- इस विषय का पठन-पाठन पारस्परिक आदान-प्रदान एवं सहभागिता आधारित व अभिरूचि पूर्ण एवं सुखद बनाना।
      2-कक्षा शिक्षण को यर्थाथ जीवन की परिस्थिति से जोड़ना एवं रटने की प्रणाली को हतोत्साहित करना।
      3-ठोस वस्तुओं के उपयोग व गतिविधियों द्वारा प्राप्त अनुभवों द्वारा गणित के अधिगम को मजबूती प्रदान करना।
      4-उपर्युक्त योजना वर्ष 2010-11 में सुदृढीकृत की जा चुकी है। गणित शिक्षा में करके सीखना के लिए शिक्षक प्रशिक्षण सेवारत अध्यापकों के प्रशिक्षण मद से वहन किया गया। उसी प्रकार पर्यावरण निर्माण, गणित ओलम्पियाड एवं पर्यवेक्षण व निरीक्षण संबंधी कार्यक्रम आर0र्इ0एम0एस0 मद से वहन किया गया। गणित किट (खेल सामग्री से गणित शिक्षण) एवं अनुपूरक सामग्री, अध्यापक हस्तपुस्तिका, अभ्यास पुस्तिका, प्रशिक्षण दिग्दर्शिका, अध्यापक अनुदान एवं एल0र्इ0पी0 मद में वहन किया गया।

    • विज्ञान शिक्षण हेतु अभ्यास एवं प्रयोग संबंधी अवधारणाओं को उच्च प्राथमिक स्तर पर सम्मिलित किया गया।
    • वर्तमान विज्ञान शिक्षण पद्धति को परिवर्तित करेगा जो मुख्यत: पुस्तक आधारित व रटने पर जोर देने की वजह से नीरस और अरूचिपूर्ण हो चुकी है। विज्ञान की नवीन शिक्षण पद्धति अनुभव, प्रयोग, अन्वेषण एवं कक्षा में शिक्षक-विद्यार्थी  संवाद पर आधारित है जिससे विज्ञान विषय को अभिरूचिपूर्ण एवं सरल तरीके से समझने में आसानी होगी।    
    • विज्ञान शिक्षा में गतिविधि आधारित शिक्षण हेतु अध्यापक प्रशिक्षण सेवारत अध्यापकों के प्रशिक्षण मद से वहन किया गया। पर्यावरण निर्माण, विज्ञान मेला, माडल प्रदर्शनी एवं पर्यवेक्षण व निरीक्षण संबंधी कार्यक्रम आर0र्इ0एम0एस0 मद से वहन किया गया। विज्ञान प्रयोगशाला, अध्यापक हस्तपुस्तिका  , अभ्यास पुस्तिका  व प्रशिक्षण दिग्दर्शिका अध्यापक अनुदान एवं एल0र्इ0पी0 मद से वहन किया गया।
    •  
    मानव संसाधन (People)

    सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण 

    अध्यापकों एवं बी0आर0सी0 व एन0पी0आर0सी0 समन्वयकों की क्षमता निर्माण हेतु प्रदेश, जनपद एवं ब्लाक स्तर पर कर्इ प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशाला एवं परिचर्चा आयोजित की गयी। सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत होने वाली सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण योजना में बाल केनिद्रत शिक्षण अधिगम प्रक्रिया  फील्ड की यथार्थ स्थिति, उपलब्ध संसाधन, सीमायें व बदलावों को ध्यान में रखा गया है। इसमे शिक्षण की सृजनात्मक प्रणाली को ध्यान में रखा गया है जिसमें अध्यापक सुविधाकर्ता की भूमिका में होते हैं तथा वे बच्चों को कक्षा के अन्दर व बाहर की गतिविधियों एवं जीवन के अनुभवों के आधार पर नये ज्ञान के सृजन में मदद करते हैं।
     
    उच्च प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन प्रणाली - uchch praathamik star par moolyaankan pranaalee
    बी0आर0सी0, डायट व एस0सी0र्इ0आर0टी0 के सहयोग से शैक्षिक वर्ष 2010-11 हेतु प्रशिक्षण कैलेण्डर विकसित किया गया। एस0सी0र्इ0आर0टी0 और इसकी संबद्ध संस्थाएं माडयूल संशोधन, शिक्षक प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण एवं सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण के अनुश्रवण, अनुसमर्थन एवं फालो-अप में सक्रियता  से संलग्न रहे हैं। कक्षा-कक्ष में सकारात्मक परिवर्तन लाने के उददेश्य से निम्नांकित सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण आयोजित किये गये :-
     

    प्राथमिक स्तर

    • प्राथमिक स्तर के प्रत्येक विद्यालय से 02 अध्यापकों का प्रारम्भिक पाठन कौशल के विकास का प्रशिक्षण।
    • प्राथमिक स्तर पर प्रत्येक विद्यालय  से 01 अध्यापक का अंग्रेजी शिक्षण हेतु प्रशिक्षण।

    उच्च प्राथमिक स्तर

    • गतिविधि एवं प्रयोग विधि आधारित विज्ञान शिक्षण में 01 अध्यापक का प्रशिक्षण।
    • गतिविधि एवं अभ्यास आधारित गणित शिक्षण में 01 अध्यापक का प्रशिक्षण।
    • प्रत्येक उच्च प्राथमिक विद्यालय से 01 अध्यापक का अंग्रेजी शिक्षण हेतु प्रशिक्षण।
     
    उच्च प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन प्रणाली - uchch praathamik star par moolyaankan pranaalee
    उपर्युक्त प्रस्तावित कार्यक्रमों में समस्त एन0पी0आर0सी0 एवं बी0आर0सी0 को प्रशिक्षित किया गया है। प्रत्येक प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए 06 दिवसों का अनुश्रवणात्मक प्रशिक्षण एन0पी0आर0सी0 स्तर पर आयोजित किया जायेगा।
     

    पाठ्यक्रम

    एन0सी0एफ0-2005 के प्रकाश में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम संशोधित किया गया है। इस पाठ्यक्रम में यंत्रवत रट लेनी वाली रूढिगत ज्ञानार्जन प्रक्रिया  के स्थान पर विधार्थी केनिद्रत अधिगम को महत्त्व दिया गया है। इससे पाठ्यक्रम, पाठयपुस्तक विकास एवं अभ्यास पुस्तिकाओ  में गुणवत्ता संबंधी आयामों में परिवर्तन हुआ है। यह कहना अतिशयोक्ति  न होगी कि इससे गुणवत्ता प्रधान संशोधन प्रक्रिया  गहन और विस्तृत होगी। सक्रिय अधिगम हेतु कक्षा 1-5 तक भाषा और गणित की अभ्यास पुस्तिकायें उपलब्ध करायी गयीं।

    वर्ष 2010-11 में कक्षा 1 व 2 के लिए भाषा व गणित की संशोधित गतिविधियां व अभ्यास पुस्तिकायें व कक्षा 7-8 हेतु विज्ञान व गणित की गतिविधि हेतु सामग्रियां वितरित की गयीं ताकि सक्रिय अधिगम के लिए अधिक अवसर प्रदान किये जा सकें। एस0सी0र्इ0आर0टी द्वारा नवीन गतिविधि आधारित अध्यापक दिग्दर्शिकायें भी विकसित की जा रही हैं।
    कला शिक्षा व कार्यानुभव के लिए समुचित विषय सामग्री विकसित की जा रही है, जिसमें बच्चों की सहभागिता सुनिश्चित की जायेगी। मूल्यांकन प्रणाली को मजबूत बनाया जायेगा जिसका प्रभाव मूल्यांकन अभिलेखों में परिलक्षित होगा। विद्यालय बंद होने के बाद भी कक्षा शिक्षा व कार्यानुभव बच्चों व समुदाय की पहुंच में होगा।
      

    तकनीकी

    तकनीकी का उपयोग शिक्षण अधिगम  प्रक्रिया को लचीला और बाल केनिद्रत बनाना है और शिक्षण  प्रक्रिया में एक नया आयाम जोडना है। कम्प्यूटर अधिगम प्राप्ति  का एक जांचा परखा माध्यम है जो स्वयं केन्द्रित  अधिगम के लिए प्रेरित करता है। स्कूलों में कम्प्यूटर आधारित अधिगम व कम्प्यूटर को प्रभावी शिक्षण अधिगम माध्यम के रूप में बढावा देने के लिए उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कम्प्यूटर उपलब्ध कराये गये हैं। इन विद्यालयों के अध्यापकों को शिक्षण में कम्प्यूटर के प्रभावी उपयोग पर 10 दिनों का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। माइक्रोसाफ्ट इण्डिया लिमिटेड के सहयोग से 05 जनपदों-इलाहाबाद, बुलन्दशहर, गोरखपुर, झांसी एवं लखनऊ में कम्प्यूटर प्रयोगशालाएं स्थापित की जा चुकी हैं। ये प्रयोगशालायें आस-पास के जनपदों में अध्यापकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को प्रतिपूरित कर रहे हैं।

    शिक्षा की गुणवत्ता का संवर्द्धन

    राज्य का शैक्षिक विज़न

    • हमारा विश्वास है कि प्रत्येक बालक बालिका महत्त्वपूर्ण  है एवं उनका शैक्षणिक विकास, उनकी अभिरूचि एवं क्षमतायोग्यता के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।
    • प्राथमिक स्तर के शुरूआती दौर में ही विषयवस्तु को विशेष महत्त्व दिया जाना चाहिए ताकि पाठ्यक्रम हस्तान्तरण में (अर्थात शिक्षण एवं पठन-पाठन) निर्देशात्मकअनुदेशात्मक शैली का स्थान सृजनात्मक शैली ले सके जहां बच्चे स्वयं नये ज्ञान का सृजन कर सकें।
    • भाषा शिक्षण में परस्पर संवाद को विशेष महत्त्व प्रदान करना चाहिए ताकि शिक्षण के प्रारम्भिक सोपान से ही पढने व लिखने का कौशल विकसित हो सके।  
    • गतिविधि व प्रोजेक्ट के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा से बच्चों में गणित के प्रति भय समाप्त करने की आवश्यकता है। प्राथमिक स्तर पर गणित कार्नर जरूर स्थापित करना चाहिए जिसे चरणबद्ध तरीके से स्थापित किया जाना चाहिए।
    • विज्ञान शिक्षण को गतिविधियों के माध्यम से अभिरूचि पूर्ण बनाया जाना चाहिए। उच्च प्राथमिक स्तर पर इसे सुनिशिचत करने के लिए आवश्यक तंत्र की स्थापना करनी चाहिए।
    • सामाजिक विज्ञान का शिक्षण रटने-रटाने के स्थान पर अन्वेषण एवं गतिविधियों के माध्यम से रूचिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए।
    • कक्षा १-८ तक आवश्यक शिक्षण के रूप में शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा पर अधिक जोर दिया जायेगा।
    • कला शिक्षा एवं कार्य अनुभव का पाठ्यक्रम व विषयवस्तु विकसित की जायेगी। इसका मूल्यांकन बच्चों के प्रगति विवरण में भी अंकित होगा।
    • हमारा विश्वास है कि प्रत्येक बालक/बालिका महत्तवपूर्ण है एवं उनका शैक्षणिक विकास, उनकी अभिरूचि एवं क्षमता/योग्यता के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।
    • भाषा शिक्षण में परस्पर संवाद को विशेष महत्त्व प्रदान करना चाहिए ताकि शिक्षण के प्रारम्भिक सोपान से ही पढने व लिखने का कौशल विकसित हो सके।
         

     
     
    उच्च प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन प्रणाली - uchch praathamik star par moolyaankan pranaalee

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    एक भी बच्चा
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    घर घर
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    लड़का लड़की
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    शिक्षा से
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    विभागीय सम्पर्क

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      मिड डे मील
      प्राथमिक शिक्षा विभाग
      बेशिक शिक्षा परिषद
      एस॰ सी॰ ई॰ आर॰ टी॰
      स्कूल लोकेशन मैपिंग (जी॰ आई॰ एस॰)

     

    अन्य उपयोगी सम्पर्क

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      एम. आइ. ई. (www.pil-network.com/
    educators/expert)
      टूल्स फॉर टीचर/ स्टूडेंट (www.pil-network.com)
      यूनिसेफ (www.unicef.org)
      एन॰ यू॰ ई॰ पी॰ ए (www.nuepa.org)
      एन॰ सी॰ ई॰ आर॰ टी (ncert.nic.in)
      मा० सं० वि० मं० (mhrd.gov.in)
      एन॰ सी॰ टी॰ ई (www.scertup.org)
      डी. ई॰ ई (mhrd.gov.in)
      सर्व शिक्षा अभियान (ssa.nic.in)
      एन॰ बी॰ टी (www.nbtindia.gov.in)
      राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (nlm.nic.in)
      ए॰ एस॰ जी (agvv.up.nic.in)
      डी॰ आई॰ एस॰ ई -२००१ (www.dise.in)
      डी॰ आई॰ एस॰ ई सॉफ्टवेयर (www.dise.in/
    dise.html)
      स्कूल रिपोर्ट कार्ड (www.schoolreportcards.in/
    adsearch09.html)

     
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    उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित सीखने के क्या उद्देश्य है?

    एन. सी. एफ. – 2005 के अनुसार, उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का मुख्य उद्देश्य दैनिक जीवन की कई समस्याओं को समझने तथा उन्हें हल करने करने के लिए तरीके प्रदान करना है। अंकगणित से बीजगणित की ओर संक्रमण इसका एक उदहारण है। प्राथमिक स्तर पर प्राप्त की गई दक्षताओं तथा अवधारणाओं का दृढ़ीकरण भी इस स्तर पर होना आवश्यक है।

    मूल्यांकन प्रणाली क्या है?

    मूल्यांकन और आकलन किसी भी शिक्षण अधिगम प्रणाली का एक महत्वपूर्ण तत्व है। सन् 1990 में भारत सरकार ने एनआईओएस को पूर्व-स्नातक स्तर तक के शिक्षार्थियों की परीक्षा लेने और उत्तीर्ण शिक्षार्थियों को प्रमाणपत्र देने का अधिकार दिया है और इस प्रकार एनआईओएस राष्ट्रीय परीक्षा बोर्डों में एक बोर्ड बना।

    प्राथमिक मूल्यांकन क्या है?

    अधिगम का मूल्यांकन यह मापता है कि छात्रों ने निर्देश के अंत में क्या और कितनी अच्छी तरह सीखा है। यह सीखने को प्रमाणित करता है और छात्रों की समग्र उपलब्धि / दक्षता को मापता है। यह निर्धारित करता है कि सीखने के लक्ष्य और परिणाम प्राप्त किए गए हैं या नहीं। योगात्मक आकलन अधिगम के आकलन के उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।

    मूल्यांकन के प्रकार कौन कौन से हैं?

    मूल्यांकन के प्रकार (Types of Evaluation).
    स्थापन मूल्यांकन (Placement Evaluation),.
    निर्माणात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation),.
    निदानात्मक मूल्यांकन (Diagnostic Evaluation),.
    संकलनात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation)।.