भाषा विज्ञान के आधार पर हिन्दी और उर्दू एक ही भाषा है। नस्तालीक़ लिपि में लिखी गई हिन्दी भाषा को उर्दू कहा जाता है । उर्दू का स्वतन्त्र व्याकरण नहीं है। उर्दू भाषा हिन्द आर्य भाषा है। उर्दू भाषा हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप मानी जाती है। उर्दू में संस्कृत के तत्सम शब्द न्यून हैं और अरबी-फ़ारसी और संस्कृत से तद्भव शब्द अधिक हैं। ये मुख्यतः दक्षिण एशिया में बोली जाती है। यह भारत की शासकीय भाषाओं में से एक है तथा पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है।[1] इस के अतिरिक्त भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर की मुख्य प्रशासनिक भाषा है। साथ ही तेलंगाना, दिल्ली, बिहार[2] और उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त शासकीय[3]भाषा है। 'उर्दू' शब्द की व्युत्पत्ति[संपादित करें]'उर्दू' शब्द मूलतः तुर्की भाषा का है तथा इसका अर्थ है- 'शाही शिविर’ या ‘ख़ेमा’(तम्बू)। तुर्कों के साथ यह शब्द भारत में आया और इसका यहाँ प्रारम्भिक अर्थ खेमा या सैन्य पड़ाव था। शाहजहाँ ने दिल्ली में लालकिला बनवाया। यह भी एक प्रकार से ‘उर्दू’ (शाही और सैन्य पड़ाव) था, किन्तु बहुत बड़ा था। अतः इसे ‘उर्दू’ न कहकर ‘उर्दू ए मुअल्ला’ कहा गया तथा यहाँ बोली जाने वाली भाषा- ‘ज़बान ए उर्दू ए मुअल्ला’ (श्रेष्ठ शाही पड़ाव की भाषा) कहलाई। भाषा विशेष के अर्थ में ‘उर्दू’ शब्द इस ‘ज़बान ए उर्दू ए मुअल्ला’ का संक्षेप है। 13वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के अंत तक आज के उर्दू भाषा को हिन्दी[4] हिन्दवी, हिंदुस्तानी[5] के नाम से जाना जाता था। मुहम्मद हुसैन आज़ाद, उर्दू की उत्पत्ति ब्रजभाषा से मानते हैं। 'आब ए हयात' में वे लिखते हैं कि 'हमारी ज़बान ब्रजभाषा से निकली है।'[6] साहित्य[संपादित करें]उर्दू में साहित्य का प्राङ्गण विशाल है। अमीर खुसरो[7] उर्दू के आद्यकाल के कवियों में एक हैं। उर्दू-साहित्य के इतिहासकार वली औरंगाबादी (रचनाकाल 1700 ई. के बाद) के द्वारा उर्दू साहित्य में क्रान्तिकारक रचनाओं का आरम्भ हुआ। शाहजहाँ ने अपनी राजधानी, आगरा के स्थान पर, दिल्ली बनाई और अपने नाम पर सन् 1648 ई. में 'शाहजहाँनाबाद' वसाया, लालकिला बनाया। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके पश्चात राजदरबारों में फ़ारसी के साथ-साथ 'ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला' में भी रचनाएँ तीव्र होने लगीं। यह प्रमाण मिलता है कि शाहजहाँ के समय में पण्डित चन्द्रभान (ब्राह्मण)ने बाज़ारों में बोली जाने वाली इस जनभाषा को आधार बनाकर रचनाएँ कीं। ये फ़ारसी लिपि जानते थे। अपनी रचनाओं को इन्होंने फ़ारसी लिपि में लिखा। धीरे-धीरे दिल्ली के शाहजहाँनाबाद की उर्दू-ए-मुअल्ला का महत्त्व बढ़ने लगा। उर्दू के कवि मीर साहब (1712-181. ई.) ने एक जगह लिखा है- दर फ़ने रेख़ता कि शेरस्त बतौर शेर फ़ारसी ब ज़बाने भाषा तथा लिपि का भेद रहा है क्योंकि राज्यसभाओं की भाषा फ़ारसी थी तथा लिपि भी फ़ारसी थी। उन्होंने अपनी रचनाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए भाषा तो जनता की अपना ली, लेकिन उन्हें फ़ारसी लिपि में लिखते रहे। व्याकरण[संपादित करें]उर्दू भाषा का व्याकरण पूर्णतः हिन्दी भाषा के व्याकरण जैसा है तथा यह अनेक भारतीय भाषाओं से मेल खाता है। लिपि[संपादित करें]उर्दू नस्तालीक़ वर्णमाला, देवनागरी और लैटिन वर्णमाला के नामों के साथ उर्दू नस्तालीक़ लिपि में लिखी जाती है, जो फ़ारसी-अरबी लिपि का एक रूप है। उर्दू दाएँ से बाएँ लिखी जाती है। उर्दू की उपभाषाएँ[संपादित करें]
आधुनिक उर्दू[संपादित करें]मातृभाषा के स्तर पर उर्दू बोलने वालों की संख्या[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
[[श्रेणी:हिन्द-आर्य भाषाwgr एँ]] hu tu उर्दू भाषा का जन्म कहाँ हुआ?उर्दू में गद्य का आरम्भ अट्ठारहवीं शताब्दी में हुआ। ग़ालिब द्वारा लिखी गई चिट्ठियों से गद्य को ऊॅचा स्थान प्राप्त हुआ। उसके बाद सर सैय्यद अहमद खाँ (नि0 1898), मुहम्मद हुसैन आज़ाद (नि0 1910), हाली (नि0 1914) और शिबली (नि0 1914) ने उर्दू गद्य को ऊॅचाइयों तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की।
उर्दू भाषा का जन्मदाता कौन है?कालान्तर में विदेशी सैनिक छावनियों में उनकी अपनी भाषा फारसी और स्थानीय भाषा खड़ी फारसी लिपि में लिखी फारसी और खड़ी बोली बोली के मेल से एक अन्य भाषा ने आकार ग्रहण करना शुरू किया। जाने वाली उस भाषा का आधार थी खड़ी बोली और शब्दावली का स्रोत Page 5 दोनों थीं।
उर्दू भाषा की उत्पत्ति कब हुई थी?उर्दू भाषा का विकास 711 में सिन्ध के मुस्लिम विजय के साथ शुरू हुआ। उर्दू दिल्ली सल्तनत(1206-1526) और मुगल साम्राज्य(1526-1858) के दौरान अधिक निर्णायक रूप से विकसित हुई, जब दिल्ली सल्तनत ने डेक्कन पठार पर दक्षिण में विस्तार किया, तो साहित्यिक भाषा दक्षिण में बोली जाने वाली भाषाओं से प्रभावित हुई।
उर्दू भाषा कितनी पुरानी है?कहते हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले तक तो उर्दू को कोई भाषा का दर्जा नहीं मिला था।
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