UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Challenges of Nation Building (राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ) Show
UP Board Class 12 Civics Chapter 1 Text Book QuestionsUP Board Class 12 Civics Chapter 1 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. उत्तर प्रश्न 3. प्रश्न 4. 2. इन्द्रप्रीत की राय के सम्बन्ध में विचार—यह बात ठीक है कि कुछ रियासतों (हैदराबाद और जूनागढ़) को भारत में मिलाने के लिए बल प्रयोग किया गया, परन्तु तत्कालीन परिस्थितियों में इन रियासतों पर बल प्रयोग करना आवश्यक था, क्योंकि इन रियासतों ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया था तथा इनकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार की थी कि इससे भारत की एकता एवं अखण्डता को हमेशा खतरा बना रहता था। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि जो बल प्रयोग किया गया, वह इन रियासतों की जनता के विरुद्ध नहीं, बल्कि शासन (शासन वर्ग) के विरुद्ध किया गया क्योंकि इन दोनों राज्यों की 80 से 90 प्रतिशत जनसंख्या भारत में विलय चाह रही थी। उन्होंने आन्दोलन शुरू कर रखा था और जब से ये रियासतें भारत में शामिल हो गईं, तब से इन रियासतों के लोगों को भी सभी लोकतान्त्रिक अधिकार दे दिए गए। प्रश्न 5. गांधी जी ने देश की जनता को चुनौती देते हुए कहा है कि देश में स्वतन्त्रता के बाद लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था कायम होगी, राजनीतिक दलों में सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष होगा। ऐसी स्थिति में नागरिकों को अधिक विनम्र और धैर्यवान बनना होगा, उन्हें धैर्य से काम लेना होगा तथा चुनावों में निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देशहित को प्राथमिकता देनी होगी। जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिया गया बयान हमें विकास के उस एजेण्डे की तरफ संकेत कर रहा है कि भारत आजादी की जिन्दगी जिएगा। यहाँ राजनीतिक स्वतन्त्रता, समानता और किसी हद तक न्याय की स्थापना हुई है लेकिन हमारे कदम पुराने ढर्रे से प्रगति की ओर बहुत धीमी गति से बढ़ रहे हैं। नि:सन्देह 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को उपनिवेशवाद का खात्मा हो गया। हिन्दुस्तान जी उठा, यह एक स्वतन्त्र हिन्दुस्तान था लेकिन आजादी मनाने का यह उत्सव क्षणिक था क्योंकि आगें बहुत समस्याएँ थीं जिनमें उनको समाप्त कर नई सम्भावनाओं के द्वार खोलना है, जिससे गरीब-से-गरीब भारतीय यह महसूस कर सके कि आजाद हिन्दुस्तान भी उसका मुल्क है। इस प्रकार नेहरू के बयान में भविष्य के राष्ट्र की कल्पना की गई है जिसमें उन्होंने एक ऐसे राष्ट्र को कल्पना की है जो आत्मनिर्भर एवं स्वाभिमानी बनेगा। उपर्युक्त दोनों कथनों में महात्मा गांधी का कथन इस दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह भविष्य में लोकतान्त्रिक शासन के समक्ष आने वाली समस्याओं के प्रति नागरिकों को आगाह करता है कि सत्ता प्राप्ति के मोह, विभिन्न प्रकार के लोभ-लालच, भ्रष्टाचार, धर्म, जाति, वंश, लिंग के आधार पर जनता में फूट डाल सकते हैं तथा हिंसा हो सकती है। ऐसी परिस्थितियों में जनता को विनम्र और धैर्यवान रहते हुए देशहित में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करना चाहिए। प्रश्न 6. यह बात कम महत्त्व की नहीं है कि भारतीय स्वभाव से धर्मनिरपेक्ष हैं और हम प्रत्येक धर्म का अपने दिल से आदर करते हैं। भारतवासियों की भाषाई तथा धार्मिक पहचान चाहे कुछ भी हो, वे कभी भी भाषायी तथा सांस्कृतिक एकरूपता रूपी एक नीरस तथा कठोर व्यवस्था को उन पर थोपने के लिए प्रयत्न नहीं करते। हमारे लोग इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि जब तक हमारी विविधता सुरक्षित है, हमारी एकता भी सुरक्षित है। हजारों वर्ष पूर्व हमारे प्राचीन ऋषियों ने यह उद्घोषित किया था कि समस्त विश्व एक कुटुम्ब है।” नेहरू जी की उपर्युक्त पंक्तियों में निम्नांकित तर्क हमारे समक्ष प्रस्तुत किए गए हैं- (1) नेहरू जी ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है तथा प्राचीन काल से ही यहाँ समय-समय पर विभिन्न सांस्कृतिक विशेषताओं वाले समूह व जनसमूह विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आते रहे हैं। नेहरू जी के शब्दों में, “भारत मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि भारत के मस्तिष्क की विश्व में बहुत मान्यता है जिसके कारण भारत विदेशी प्रभावों को आमन्त्रित करता है और इन प्रभावों की अच्छाइयों को एक सुसंगत तथा मिश्रित बपौती में संश्लेषित कर लेता है। भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश में, विभिन्नता में एकता जैसे सिद्धान्त को नहीं उत्पन्न किया गया है क्योंकि यहाँ यह हजारों वर्षों से एक सभ्य सिद्धान्त बन गया है तथा यही भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है। इस विभिन्नता के प्रति न डगमगाने वाले समर्पण को निकाल देने से भारत की आत्मा ही लुप्त हो जाएगी। स्वतन्त्रता संग्राम ने इसी सभ्यता के सिद्धान्त को एक राष्ट्र की व्यावहारिक राजनीति में निर्मित करने के लिए उपयोग किया।” पं० नेहरू द्वारा प्रस्तुत यह तर्क भावनात्मक और नैतिक तो ही है साथ ही इनका आधार भी युक्तिसंगत व देश की गरिमा व अस्मिता के अनुकूल है जो राष्ट्रीय एकता व अखण्डता की दृष्टि से समीचीन प्रतीत होते हैं। (2) नेहरू जी ने देश की स्वतन्त्रता से पहले तथा संविधान निर्माण की प्रक्रिया के दौरान भी इस बात पर विशेष बल दिया था कि भारत की एकता व अखण्डता तभी अक्षुण्ण रह सकती है जबकि अल्पसंख्यकों को समान अधिकार, धार्मिक तथा सांस्कृतिक स्वतन्त्रता एवं धर्मनिरपेक्ष राज्य का वातावरण तथा विश्वास प्राप्त होता रहे। उनका तर्क था कि हम भारत में अनेक कारणों से राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सफल हुए हैं, इसी कारण भारत धर्मनिरपेक्ष व अल्पसंख्यक, भाषाई और धार्मिक समुदायों की पहचान को बचाने में सफल रहा। भारत विश्व को एक परिवार समझकर “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना में विश्वास करने वाला राष्ट्र रहा है। चूँकि भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाना था अत: पं० नेहरू का यह कथन पूर्ण युक्तिपरक है कि अपने देश में रहने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिमों के साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा। पाकिस्तान चाहे जितना भी उकसाए अथवा वहाँ के गैर-मुस्लिमों को अपमान व भय का सामना करना पड़े परन्तु हमें अपने अल्पसंख्यक भाइयों के साथ सभ्यता व शालीनता का व्यवहार करना है तथा उन्हें समस्त नागरिक अधिकार दिए जाने हैं तभी भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहलाएगा। भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए रखने के लिए 15 अक्टूबर, 1947 को नेहरू जी ने देश के विभिन्न प्रान्तों के मुख्यमन्त्रियों को जो पत्र लिखा था उसमें उन्होंने यह तर्क दिया था कि मुस्लिमों की संख्या इतनी अधिक है कि चाहें तो भी वे दूसरे देशों में नहीं जा सकते। इस प्रकार नेहरू जी द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क भावनात्मक और नैतिक होते हुए भी युक्तिपरक हैं। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए प्रस्तुत किए गए नेहरू जी के तर्क केवल भावनात्मक व नैतिक़ ही नहीं बल्कि युक्तिपरक भी हैं। प्रश्न 7:
प्रश्न 8. राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशें-
इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाए गए। भारतीय संविधान में वर्णित मूल वर्गीकरण की चार श्रेणियों को समाप्त कर दो प्रकार की इकाइयाँ (स्वायत्त राज्य व केन्द्रशासित प्रदेश) रखी गई। प्रश्न 9. 1. मातृभूमि के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम-मातृभूमि से प्रेम प्रत्येक राष्ट्र का स्वाभाविक लक्षण एवं विशेषता माना जाता है। एक ही स्थान या प्रदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति मातृभूमि से प्यार करते हैं और इस प्यार के कारण वे आपस में एक भावना के अन्दर बँध जाते हैं। भारत से लाखों की संख्या में लोग विदेश में जाकर बस गए हैं लेकिन मातृभूमि से प्रेम के कारण वे सदा अपने आपको भारतीय राष्ट्रीयता का अंग मानते हैं। 2. भौगोलिक एकता-भौगोलिक एकता भी राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करती है। जब मनुष्य कुछ समय के लिए एक निश्चित प्रदेश में रह जाता है तो उसे उस प्रदेश से प्रेम हो जाता है और यदि उसका जन्म भी उसी प्रदेश में हुआ हो तो प्यार की भावना और तीव्र हो जाती है। 3. सांस्कृतिक एकरूपता-भारतीय संस्कृति इस देश को एक राष्ट्र बनाती है। यह विभिन्नता में एकता लिए हुए है। इस संस्कृति की अपनी पहचान है। लोगों के अपने संस्कार हैं, छोटे-बड़ों का आदर करते हैं। वैवाहिक बन्धन, जाति प्रथाएँ, साम्प्रदायिक सद्भाव, सहनशीलता, त्याग, पारस्परिक प्रेम, ग्रामीण जीवन का आकर्षक वातावरण इस राष्ट्र की एकता को बनाने में अधिक सहायक रहा है। 4. सामान्य इतिहास-भारत का एक अपना राजनीतिक-आर्थिक इतिहास है। इस इतिहास का अध्ययन सभी करते हैं और इसकी गलतियों से छुटकारा पाने का प्रयास समय-समय पर सत्ताधारियों, सुधारकों, धर्म प्रवर्तकों, भक्त और सूफी सन्तों ने किया है। 5. सामान्य हित-भारत राष्ट्र के लिए सामान्य हित महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यदि लोगों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक हित समान हों तो उनमें एकता की उत्पत्ति होना स्वाभाविक है। 18वीं शताब्दी में अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए अमेरिका के विभिन्न राज्य आपस में संगठित हो गए और उन्होंने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। 6. संचार के साधनों की विभिन्न भूमिका-भारत एक राष्ट्र है। इसकी भावना को सुदृढ़ करने के लिए जनसंचार माध्यम, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिण्ट मीडिया आदि भी भारत को एक राष्ट्र बनाने में योगदान दे रहे हैं। 7. जन इच्छा-भारत का एक राष्ट्र के रूप में एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व लोगों में राष्ट्रवादी बनने की इच्छा भी है। मैजिनी ने लोक इच्छा को राष्ट्र का आधार बताया है। प्रश्न 10. राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई-समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपने आपमें बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य की जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बँटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे। – रामचन्द्र गुहा (क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक
उदाहरण दीजिए।
(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं?
(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों? UP Board Class 12 Civics Chapter 1 InText QuestionsUP Board Class 12 Civics Chapter 1 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. नोट-यह नक्शा किसी पैमाने के हिसाब से बनाया गया भारत का मानचित्र नहीं है। इसमें दिखाई गई भारत की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा को प्रामाणिक सीमा रेखा न माना जाए। (1) स्वतन्त्र राज्य बनने से पहले निम्नलिखित राज्य किन मूल राज्यों के अंग थे? (क) गुजरात, (ख) हरियाणा, (ग) मेघालय, (घ) छत्तीसगढ़। (2) देश के विभाजन से प्रभावित दो राज्यों के नाम बताएँ। (3) दो ऐसे राज्यों के नाम बताएँ जो पहले संघ-शासित राज्य थे। उत्तर: (1) (क) गुजरात मूलत: मुम्बई राज्य (महाराष्ट्र) का अंग था। (ख) हरियाणा मूलत: पंजाब का अंग था। (ग) मेघालय मूलतः असोम का अंग था। (घ) छत्तीसगढ़ मूलत: मध्य प्रदेश का अंग था। (2)
(3) राज्य बनने से पूर्व गोवा तथा अरुणाचल प्रदेश संघ शासित प्रदेश थे। प्रश्न 6. UP Board Class 12 Civics Chapter 1 Other Important QuestionsUP Board Class 12 Civics Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. 1. मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना-भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी अधिक थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में था। ऐसा कोई तरीका न था कि इन दोनों इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाए। अत: फैसला यह हुआ कि पाकिस्तान के दो इलाके शामिल होंगे-
2. प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना—मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी हो, ऐसा भी नहीं था। विशेषकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त जिसके नेता खान अब्दुल गफ्फार खाँ थे, जो द्विराष्ट्र सिद्धान्त के खिलाफ थे। अन्ततः उनकी आवाज की अनदेखी कर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त को पाकिस्तान में मिलाया गया। 3. पंजाब और बंगाल के बँटवारे की समस्या-तीसरी कठिनाई यह थी कि ‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। ऐसे में फैसला हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले अथवा तहसील को आधार माना जाएगा। 14-15 अगस्त मध्यरात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था। इन दोनों प्रान्तों का धार्मिक आधार पर बँटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी थी। 4. अल्पसंख्यकों की समस्या-सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक थे। ये लोग इस तरह से सांसत में थे जैसे ही यह बात साफ हुई कि देश का बँटवारा होने वाला है, वैसे ही दोनों तरफ से अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यकों के पास एकमात्र रास्ता यही बचा था कि वे अपने-अपने घरों को छोड़ दे। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी भरा था। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए और अकसर अस्थायी तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। हर हाल में अल्पसंख्यकों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा। इस प्रक्रिया में उन्हें हर तकलीफ-कत्ल, स्त्रियों से जबरन शादी, उन्हें अगवा करना, बच्चों का माँ-बाप से बिछड़ जाना, अपनी सम्पत्ति को छोड़ना आदि झेलनी पड़ी। इस तरह विभाजन में सिर्फ सम्पदा, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ, बल्कि इसमें दोनों समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार भी हुए। प्रश्न 2. 1. अंग्रेजी सरकार की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति–ब्रिटिश शासकों ने हिन्दू-मुसलमानों में निरन्तर फूट डालने हेतु ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाया। वे निरन्तर हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों में कटुता लाने तथा उन्हें परस्पर विरोधी बनाने का प्रयास करते रहे। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार, “पाकिस्तान के निर्माता कवि इकबाल तथा मि० जिन्ना नहीं? बल्कि लॉर्ड मिण्टो थे।” कांग्रेस के नेतृत्व में हुए स्वाधीनता आन्दोलन में अधिकांश हिन्दुओं ने भाग लिया था इसलिए ब्रिटिश शासन ने हिन्दुओं और कांग्रेस से अपना बदला लेने के लिए मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन दिया। 2. लीग के प्रति कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति–कांग्रेस ने लीग के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई। सन् 1916 में लखनऊ पैक्ट में साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को स्वीकार किया गया। सिन्ध को बम्बई से पृथक् किया गया, सी० आर० फार्मले में पाकिस्तान की माँग को कछ सीमा तक स्वीकार किया गया। 3. हिन्दू-मुसलमानों में परस्पर अविश्वास की भावना-हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही जातियों के लोग परस्पर अविश्वास की भावना रखते थे। सल्तनत काल व मुगलकाल में अनेक मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए। इसलिए इन दोनों जातियों में परस्पर द्वेष की भावना थी। इसके अलावा हिन्दुओं का मुस्लिमों के प्रति सामाजिक बहिष्कार सम्बन्धी व्यवहार भी अच्छा नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ कि मुसलमानों को ईसाइयों का व्यवहार हिन्दुओं की तुलना में अधिक अच्छा लगा और वे ईसाइयों के निकट होते चले गए। 4. जिन्ना की हठधर्मिता—जिन्ना द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के समर्थक थे। सन् 1940 के बाद संवैधानिक गतिरोध को दूर करने हेतु अनेक योजनाएँ प्रस्तुत की गईं परन्तु जिन्ना की पाकिस्तान निर्माण सम्बन्धी हठधर्मिता . के कारण कोई भी योजना स्वीकार नहीं की जा सकी और अन्ततः भारत और पाकिस्तान का विभाजन होकर रहा। 5. साम्प्रदायिक दंगे-जब मुस्लिम लीग को संवैधानिक साधनों से सफलता प्राप्त नहीं हुई तो उसने मुस्लिमों को साम्प्रदायिक उपद्रव करने हेतु बढ़ावा दिया तथा लीग की सीधी कार्रवाई की योजना में नोआखली और त्रिपुरा में मुसलमानों द्वारा अनेक दंगे करवाए गए। मौलाना अबुल कलाम आजाद के अनुसार, “16 अगस्त का दिन भारत के इतिहास में काला दिन है क्योंकि इस दिन सामूहिक हिंसा ने कलकत्ता जैसी महानगरी को हत्या, रक्तपात और बलात्कारों की बाढ़ में डुबो दिया।” 6. सत्ता के प्रति आकर्षण-भारत-विभाजन का एक कारण कांग्रेस और लीग के अनेक नेताओं का सत्ता के प्रति आकर्षण भी था। स्वतन्त्रता संघर्ष के लिए नेताओं ने अत्यन्त कष्ट सहे थे तथा उनमें और अधिक संघर्ष करने की शक्ति नहीं रह गयी थी। यदि वे माउण्टबेटन योजना को स्वीकार नहीं करते तो न जाने कितने वर्षों के संघर्ष के बाद उन्हें सत्ता का सुख भोगने का अवसर प्राप्त होता। माइकेल ब्रेचर के शब्दों में, “कांग्रेसी नेताओं . के सम्मुख सत्ता के प्रति आकर्षण भी था….. और विजय की घड़ी में वे इससे अलग होने के इच्छुक नहीं थे।” 7. सत्ता हस्तान्तरण के सम्बन्ध में ब्रिटिश दृष्टिकोण-भारत-विभाजन के सम्बन्ध में ब्रिटिश दृष्टिकोण यह था कि इससे भारत एक निर्बल देश हो जाएगा तथा भारत व पाकिस्तान हमेशा एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते रहेंगे। इस प्रकार ब्रिटेन की यह इच्छा आज भी काफी सीमा तक पूर्ण होती दिखाई दे रही है। इस तरह उपर्युक्त परिस्थितियों के कारण भारत का विभाजन हो गया। महात्मा गांधी के अनुसार, “32 वर्षों के सत्याग्रह का यह एक लज्जाजनक परिणाम था।” प्रश्न 3. विभाजन के कारण–
भारत-विभाजन के परिणाम भारत और पाकिस्तान विभाजन के निम्नलिखित परिणाम सामने आए- 1. आबादी का स्थानान्तरण-भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद आबादी का स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदीपूर्ण था। मानव-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानान्तरणों में से यह एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त बेरहमी से मारा। जिन इलाकों में अधिकतर हिन्दू अथवा सिक्ख आबादी थी, उन इलाकों में मुसलमानों ने जाना छोड़ दिया। ठीक इसी प्रकार मुस्लिम-बहुल आबादी वाले इलाकों से हिन्दू और सिक्ख भी नहीं गुजरते थे। 2. घर-परिवार छोड़ने के लिए विवश होना-विभाजन के फलस्वरूप लोग अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए तथा अक्सर अस्थायी तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा। वहाँ की स्थानीय सरकार व पुलिस इन लोगों से बेरुखी का बर्ताव कर रही थी। लोगों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा और ऐसा उन्हें हर हाल में करना था, यहाँ तक कि लोगों ने पैदल चलकर यह दूरी तय की। 3. महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार-विभाजन के फलस्वरूप सीमा के दोनों तरफ हजारों की संख्या में औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबरदस्ती शादी करनी पड़ी तथा अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई परिवारों में तो खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला। बहुत-से बच्चे अपने माता-पिता से बिछुड़ गए। 4. हिंसक अलगाववाद-विभाजन में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ बल्कि इस विभाजन में दो समुदाय जो अब तक पड़ोसियों की तरह रहते थे उनमें हिंसक अलगाववाद व्याप्त हो गया। सभी के लिए मारकाट अत्यन्त नृशंस थी तथा बँटवारे का मतलब था ‘दिल के दो टुकड़े हो जाना। 5. भौतिक सम्पत्ति का बँटवारा-विभाजन के कारण 80 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा तथा वित्तीय सम्पदा के साथ-साथ टेबिल, कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्ययन्त्रों तक का बँटवारा हुआ था। सरकारी और रेलवे कर्मचारियों का भी बँटवारा हुआ। इस प्रकार साथ-साथ रहते आए दो समुदायों के बीच यह एक हिंसक और भयावह विभाजन था। 6. अल्पसंख्यकों की समस्या विभाजन के समय सीमा के दोनों तरफ ‘अल्पसंख्यक’ थे। जिस जमीन पर वे और उनके पुरखे सदियों तक रहते आए थे उसी जमीन पर वे ‘विदेशी’ बन गए थे। जैसे ही देश का बँटवारा होने वाला था वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। इस कठिनाई से उबरने के लिए किसी के पास कोई योजना भी नहीं थी। हिंसा नियन्त्रण से बाहर हो गयी। दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों ने अपने-अपने घरों को छोड़ दिया। कई बार तो उन्हें ऐसा चन्द घण्टों के अन्दर करना पड़ा। इस तरह भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त दर्दनाक व त्रासदी से भरा था। सआदत हसन मंटो के अनुसार, “दंगाइयों ने चलती ट्रेन को रोक लिया। गैर मजहब के लोगों को खींच-खींचकर निकाला और तलवार तथा गोली से मौत के घाट उतार दिया। बाकी यात्रियों को हलवा, फल और दूध दिया गया।” प्रश्न 4. (i) ब्रिटिश भारत, ब्रिटिश भारत का शासन तत्कालीन भारत सरकार के अधीन था, जबकि देसी राज्यों का शासन देसी राजाओं के हाथों में था। राजाओं ने ब्रिटिश राज की सर्वोच्च सत्ता स्वीकार कर रखी थी और इसमें वे अपने राज्य के घरेलू मामलों का शासन चलाते थे। अंग्रेजी प्रभुत्व में आने वाले भारतीय साम्राज्य के एक-तिहाई हिस्से में रजवाड़े कायम थे। प्रत्येक चार भारतीयों में से एक किसी-न-किसी रजवाड़े की प्रजा थी। देसी राज्यों या रजवाड़ों के विलय की समस्या-स्वतन्त्रता के तुरन्त पहले ब्रिटिश-शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश-अधीनता से स्वतन्त्र हो जाएँगे। रजवाड़ों की कुल संख्या लगभग 565 थी। ब्रिटिश शासन का यह दृष्टिकोण था कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखें। यह फैसला रजवाड़ों की प्रजा को नहीं करना था बल्कि यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया था। यह एक गम्भीर समस्या थी और इससे अखण्ड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मँडरा रहा था। अनेक राजाओं ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा भी कर दी थी। रजवाड़ों के शासकों के रवैये से यह बात साफ हो गई कि स्वतन्त्रता के बाद भारत कई छोटे-छोटे देशों की शक्ल में बँट जाने वाला है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का लक्ष्य एकता और आत्मनिर्णय के साथ-साथ लोकतन्त्र का रास्ता अपनाना था जबकि रजवाड़ों में शासन अलोकतान्त्रिक रीति से चलाया जाता था और शासक अपनी प्रजा को लोकतान्त्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे। राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का समाधान-यद्यपि देसी रियासतों की भारत में विलय की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी, परन्तु पं० नेहरू, तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल ने इस समस्या को बड़े ही सुनियोजित ढंग से सुलझाया। देसी रियासतों की समस्या के हल के लिए पं० नेहरू ने 27 जून, 1947 को एक विभाग की स्थापना की, जिसे राज्य विभाग कहा जाता है। पं० नेहरू ने सरदार पटेल को इस विभाग का मन्त्री एवं वी० पी० मेनन को इसका सचिव नियुक्त किया। देसी रियासतों का विलय तीन चरणों में किया गया- (i) प्रथम चरण-एकीकरण, (i) प्रथम चरण : एकीकरण-एकीकरण में वे देसी रियासतें आती हैं, जिन्होंने सरदार पटेल के परामर्श पर स्वयं ही भारत में विलय होना स्वीकार कर लिया था। अधिकांश देसी रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसे ‘इन्स्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं। (ii) द्वितीय चरण : अधिमिलन-अधिमिलन में मणिपुर, जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों को शामिल किया गया, जबकि इन्होंने स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था, परन्तु सरदार पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल एवं सूझ-बूझ से इन रियासतों को भारत में विलय होने के लिए मजबूर कर दिया। (iii) तृतीय चरण : प्रजातन्त्रीकरण-तृतीय चरण प्रजातन्त्रीकरण से सम्बन्धित था। देसी रियासतों को प्रजातान्त्रिक ढाँचे में ढालना भारत सरकार के लिए प्रमुख समस्या थी। इस समस्या के लिए प्रान्तों में प्रजातान्त्रिक एवं प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना की गई। इन प्रान्तों में भी संसदीय शासन प्रणाली लागू की गई तथा निर्वाचित विधानसभाओं की व्यवस्था की गई। इस तरह पं० नेहरू एवं सरदार पटेल की सूझ-बूझ से देशी रियासतों की समस्या का समाधान किया गया। लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. भारत सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के लिए सहमत थे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे जिस धर्म को माने, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर ही होना चाहिए। धर्म को नागरिकता की कसौटी नहीं बनाया जाना चाहिए। उनके इस धर्मनिरपेक्ष आदर्श की अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई। इस तरह भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9.
प्रश्न 10. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न
6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. विलय नीति क्या थी किन किन रियासतों को?Solution : विलय नीति सिद्धान्त-(1) 1848 से 1856 के बीच गवर्नर-जनरल बने लार्ड डलहौजी ने एक नयी नीति अपनाई जिसे विलय नीति का नाम दिया गया। यह सिद्धान्त इस तर्क पर आधारित था कि अगर किसी शासक की मृत्यु हो जाती है और उसका कोई पुरुष वारिस नहीं है तो उसकी रियासत हड़प कर ली जाएगी यानी कम्पनी के भू-भाग का हिस्सा बन जाएगी।
विलय नीति का जनक कौन था?लॉर्ड डलहौजी ने "विलय नीति" पेश की।
लॉर्ड डलहौजी 1848 से 1856 तक भारत के गवर्नर-जनरल थे। इसके तहत, जब एक संरक्षित राज्य के शासक की प्राकृतिक उत्तराधिकारी के बिना मृत्यु हो जाती है, तो उसके राज्य पर अंग्रेजों का कब्जा हो जाता है। यह लार्ड डलहौजी द्वारा समर्थित एक विलय नीति थी।
भारत में विलय होने वाली अंतिम रियासत कौन सी थी?भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था तो काश्मीर स्वतंत्र बने रहने की। जूनागढ़, काश्मीर तथा हैदराबाद तीनों राज्यों को सेना की मदद से विलय करवाया गया किन्तु भोपाल में इसक आवश्यकता नहीं पड़ी।
भारत में कितनी रियासतों का विलय हुआ था?सन् 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तब यहाँ 562 रियासतें थीं। इनमें से अधिकांश रियासतों ने ब्रिटिश सरकार से लोकसेवा प्रदान करने एवं कर (टैक्स) वसूलने का 'ठेका' ले लिया था। कुल 565 में से केवल 21 रियासतों में ही सरकार थी और मैसूर, हैदराबाद तथा कश्मीर नाम की सिर्फ़ 3 रियासतें ही क्षेत्रफल में बड़ी थीं।
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