विलेयता को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए - vileyata ko prabhaavit karane vaale kaarakon ko samajhaie

ठोस की विलेयता को प्रमाणित करने वाले कारक एक निश्चित ताप पर ठोसों की अधिकतम मात्रा जो द्रव में होती है, उसे ठोसों की द्रवों में विलेयता कहते हैं। ठोसों की विलेयता को निम्न कारक प्रभावित करते हैं-

1. विलेय तथा विलायक की प्रकृति- प्रत्येक ठोस पदार्थ सभी प्रकार के द्रवों में नहीं घुलता है। प्रत्येक ठोस कुछ विशेष प्रकार के द्रत्रों में ही घुलता है, अतः विलेय तथा विलेयक की प्रकृति पर भी विलेयता निर्भर करती है।

जैसे- NaCl तथा KCI आदि जल में आसानी से घुल जाते हैं लेकिन ये सभी पदार्थ वंजीन में नहीं घुलते हैं, अर्थात् विलेय तथा विलायक की प्रकृति भी विलेयता को प्रभावित करती हैं।

2. ताप का प्रभाव- जब ताप को बढ़ाया जाता है तो यह पाया गया कि अधिकतर टांसों की विलेयता, द्रवों में अधिक हो जाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि टोसों की विलेयता ताप पर निर्भर करती है।

3. दाव का प्रभाव - चूँकि ठोस और द्रवों दोनों में ही असंपीडयता गुण पाया जाता है। इसलिए दाव का टीसी की द्रवों में विलेयता का कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ता है।

जैसा कि हमने परिभाषा में पढ़ा कि एक निश्चित ताप पर ठोस की अधिकतम मात्रा जो द्रव में घुली होती है उसे ठोसों की द्रवों में विलेयता कहते है।

लेकिन ठोस की विलेयता को ताप , दाब आदि परिवर्तित करके प्रभावित किया जा सकता है अर्थात इनका मान परिवर्तित करके विलेयता का मान परिवर्तित हो जाता है।

ठोसों की विलेयता को निम्न कारक प्रभावित करते है –

1. विलेय तथा विलायक की प्रकृति :  जैसा कि हम जानते है कि प्रत्येक ठोस पदार्थ सभी प्रकार के द्रवों में नहीं घुलता है।

प्रत्येक ठोस कुछ विशेष प्रकार के द्रवों में ही घुलता है अत: विलेय तथा विलायक की प्रकृति पर भी विलेयता निर्भर करती है।

जैसे : NaCl तथा KCl आदि जल में आसानी से घुल जाते है लेकिन ये सभी पदार्थ बेंजीन में नहीं घुलते है , अर्थात विले य तथा विलायक की प्रकृति भी विलेयता को प्रभावित करती है।

याद रखे कि ध्रुवीय पदार्थ , ध्रुवीय विलायक में आसानी से घुल जाते है इसी प्रकार अध्रुवीय पदार्थ , अध्रुवीय विलायकों में आसानी से घुल जाते है।

उदाहरण : NaCl , KCl आदि ध्रुवीय पदार्थ होते है इसलिए ये ध्रुवीय विलायक जल में आसानी से घुल जाते है।

2.ताप का प्रभाव : जब ताप को बढाया जाता है तो यह पाया गया कि अधिकतर ठोसों की विलेयता , द्रवों में अधिक हो जाती है इसलिए हम कह सकते है कि ठोसों की विलेयता ताप पर भी निर्भर करती है या ताप द्वारा भी प्रभावित रहती है। लेकिन कुछ पदार्थ ऐसे भी पाए जाते है जो ताप बढ़ने पर द्रव में कम घुलते है।

लाशातेलिया के नियम के अनुसार जब किसी विलेय को किसी विलायक में घोला जाता है और यदि ऊष्मा का अवशोषण होता है तो ऐसे पदार्थों के लिए ताप को बढ़ाने पर विलेयता बढती है।

इसी प्रकार जब विलेय को किसी विलायक में घोलने पर ऊष्मा मुक्त होती है तो ऐसे पदार्थों के लिए जब ताप को बढाया जाता है तो विलेयता कम हो जाती है।

3. दाब का प्रभाव : चूँकि ठोस और द्रव दोनों में ही असंपीड्यता का गुण पाया जाता है इसलिए दाब का ठोसों की द्रवों में विलेयता का कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ता है।

Solubility & factors of solid in liquid ठोस की द्रव में विलेयता तथा प्रभावित करने वाले कारक –

ठोस की द्रव में विलेयता : निश्चित ताप पर 100 ग्राम विलायक में किसी ठोस की खुली हुई वह अधिकतम मात्रा जिसे संतृप्त विलयन बनाया जा सके , वह ठोस की द्रव में विलेयता कहलाती है।

नोट : जब ठोस अधिकतम मात्रा से कम मात्रा में घुला हुआ हो तो इस प्रकार बने विलयन को असंतृप्त विलयन कहते है।

नोट : जब ठोस कुछ अधिकतम मात्रा में घुला हुआ हो तो इस प्रकार बने विलयन को अतिसंतृप्त विलयन कहते है।

ठोसों की द्रव में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक  : 

  1. विलेय तथा विलायक की प्रकृति :

समान समान को खोलता है , अतः आयनिक ठोस जैसे NaCl , KCl , Na2CO3 , आदि जल जैसे ध्रुवीय विलायकों में खुल जाते है , जबकि सहसंयोजक ठोस जैसे नैफ्थेलिन , एन्थ्रासीन आदि अध्रुवीय विलायको जैसे बेंजीन , CCl4

आदि में खुल जाते है।

  1. ताप : 

वे ठोस जिन्हे जल में खोलने पर ऊष्मा बाहर निकलती है , उनकी विलेयता ताप बढ़ाने से काम हो जाती है , जैसे  CaO , Na2CO3 आदि।

वे ठोस प्रदार्थ जिन्हे जल में खोलने पर ऊष्मा अवशोषित होती है उनकी विलेयता ताप बढ़ाने से अधिक हो जाती है जैसे NaCl , KCl  , NH4Cl आदि।

  1. दाब 

ठोस तथा द्रव में सम्पीडियता का गुण बहुत कम होता है , अतः ठोस की द्रव में विलेयता पर दाब का कोई प्रभाव नहीं होता।

# Solubility and affecting factors of solid in liquid in hindi ठोस की द्रव में विलेयता तथा प्रभावित करने वाले कारक

किसी रसायन या यौगिक की किसी द्रव्य में घुल जाने की क्षमता को विलेयता या घुलनशीलता (Solubility) कहते हैं। जो पदार्थ घुलता है उसे 'विलेय' कहते हैं, जिसमें घोला जाता है उसे 'विलायक' कहते हैं, विलेय को विलायक में घोलने से 'विलयन' प्राप्त होता है। विलेय पदार्थ ठोस, द्रव या गैस कुछ भी हो सकती है। इसी प्रकार विलायक भी ठोस, द्रव या गैस कुछ भी हो सकता है। किसी विलायक में विलेय की कितनी मात्रा घोली जा सकती है उसे ही विलेय की विलेयता (Solubility) कहते हैं। किसी विलेय की विलेयता मूल रूप से विलेय और विलायक के भौतिक एवं रासायनिक गुणों पर तो निर्भर करता ही है, इसके अलावा विलयन के ताप, दाब एवं पीएच (pH) पर भी निर्भर करता है।

किसी विलायक में कोई विलेय मिलाने पर एक सीमा के बाद विलयन का सान्द्रण नहीं बढ़ता बल्कि विलेय की अतिरिक्त मात्रा अवक्षेपित (precipitate) होने लगती है।

विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

गैसों की द्रवों में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक ताप का प्रभाव – साधारणतः गैस से द्रवों में विलेय होती हैं। अतः ताप बढ़ाने पर गैसों की द्रवों में विलेयता घट जाती है। दाब का प्रभाव – दाब बढ़ाने पर गैसों की द्रवों में विलेयता बढ़ती है। गैसों की द्रवों में विलेयता के प्रभाव को हेनरी नियम से स्पष्ट किया जा सकता है।

विलेयता क्या है यह किन कारकों पर निर्भर करता है?

2.3 विलेयता किसी अवयव की विलेयता एक निश्चित ताप पर विलायक की निश्चित मात्रा में घुली हुई उस पदार्थ की अधिकतम मात्रा होती है। यह विलेय एवं विलायक की प्रकृति तथा ताप एवं दाब पर निर्भर करती है।

विलेयता से आप क्या समझते हैं?

किसी रसायन या यौगिक की किसी द्रव्य में घुल जाने की क्षमता को विलेयता या घुलनशीलता (Solubility) कहते हैं। जो पदार्थ घुलता है उसे 'विलेय' कहते हैं, जिसमें घोला जाता है उसे 'विलायक' कहते हैं, विलेय को विलायक में घोलने से 'विलयन' प्राप्त होता है। विलेय पदार्थ ठोस, द्रव या गैस कुछ भी हो सकती है।

विलेयता क्या है कक्षा 9?

परिभाषा : “एक निश्चित ताप पर किसी विलायक की एक निश्चित मात्रा में घुले हुए विलेय पदार्थ की अधिकतम मात्रा को विलेय पदार्थ की विलेयता कहते है। ”