विदेशी मुद्रा बाजार वह बाजार है जिसमे विदेशी मुद्राओं को खरीदा व बेचा जाता है। सन 1971 तक IMF के एक सदस्य होने के नाते भारत में ‘निशिचित विनिमय दर प्रणाली' का पालन होता था । ब्रेटन वुड्स प्रणाली के 1971 में ध्वस्त होने के बाद रुपए का मूल्य चार साल तक पौंड के द्वारा निर्धारित होता रहा परन्तु बाद में यह व्यवस्था भी ख़त्म हो गयी I वर्तमान में भारत में प्रबंधित विनिमय दर प्रणाली चलन में है। Show वर्तमान में भारत, बाजार और अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार विनिमय दर का निर्धारण करता है। मुद्रा की मांग व आपूर्ति बाजार आधारित विनिमय दर का निर्धारण करती है। विनिमय दर एक मुद्रा के संबंध में दूसरी मुद्रा का मूल्य है। विदेशी मुद्रा को खरीदने वाले व बेचने वाले लोगों में शेयर दलाल, छात्र, वाणिज्यिक बैंक, केंद्रीय बैंक, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, विदेशी मुद्रा दलाल आदि होते हैं। विदेशी मुद्रा विनिमय के प्रमुख कार्यों में निम्न कार्य शामिल हैं:
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:- आजादी के बाद से भारत में एक निश्चित विनिमय दर व्यवस्था लागू थी जिसे बाद में पाउंड स्टर्लिंग से लिंक किया गया। साल 1993 से भारत में बाजार आधारित विनिमय दर व्यवस्था चलने लगी। विदेशी मुद्रा प्रबंधन के विकास के नीचे चर्चा की है: बराबर मूल्य प्रणाली (Par Value System- 1947-1971): स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत ने आईएमएफ की ‘बराबर मूल्य प्रणाली’ का अनुसरण किया। जिसमें रुपये का बाहरी मूल्य, सोने के 4.15 ग्रेन पर तय किया गया। निश्चित विनिमय व्यवस्था (Pegged Regime-1971-1992): भारत ने अपनी मुद्रा को अगस्त 1971 से दिसंबर 1991 के बीच अमेरिकी डॉलर के साथ विनिमित किया और दिसंबर 1971 से सितंबर 1975 तक ब्रिटेन के पाउंड स्टर्लिंग के साथ विनिमित किया I उदारीकृत विनिमय दर प्रबंधन प्रणाली: (LiberalisedExchange Rate Management System):- आर्थिक सुधार की प्रक्रिया के तहत 1992-93 के बजट में वित्त मंत्री ने व्यापार खाते पर रुपए की आंशिक परिवर्तनीयता घोषित की और मार्च 1912 से भारतीय रुपया आंशिक रूप से परिवर्तनीय हो गया I इसी दिन से उदारीकृत विनिमय दर प्रबंधन प्रणाली लागू की गयी I इस प्रणाली के अंतर्गत एक दोहरी विनिमय दर तय की गई थी, जिसके तहत विदेशी मुद्रा की विनिमय दर का 40 प्रतिशत आधिकारिक व शेष 60 फीसदी बाजार द्वारा निर्धारित दर से परिवर्तित किया गया। भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के प्रकार:
विनिमय दर प्रबंधन के प्रकार A नियत विनिमय दर B लचीली विनिमय दर नियत विनिमय दर (Fixed Exchange Rate):- घरेलू और विदेशी मुद्राओं के बीच विनिमय दर एक देश की मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा तय किया जाता है। इसके तहत विनिमय दर में एक सीमा से अधिक उतार चढ़ाव की अनुमति नहीं होती है, इसे स्थिर विनिमय दर कहा जाता है। आईएमएफ प्रणाली के तहत इसके सदस्य राष्ट्र के मौद्रिक प्राधिकरण अपनी मुद्रा का निश्चित मूल्य तय करता है जो एक आरक्षित मुद्रा सामान्यतः अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष होता है। इसे 'आंकी' विनिमय दर या पार वैल्यू कहा जाता है। हालांकि,सामान्य परिस्थितियों में इसमें उच्च्वाचन की ऊपरी और निचली सीमा 1 प्रतिशत तक होती है। नियत विनिमय दर प्रणाली अपनाने का मूल उद्देश्य विदेशी व्यापार और पूंजी आंदोलनों में स्थिरता सुनिश्चित करना है। नियत विनिमय दर प्रणाली के तहत सरकार पर विनिमय दर की स्थिरता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हो जाती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार विदेशी मुद्रा को खरीदती व बेचती है।विदेशी मुद्रा जब कमजोर होती है तब तब सरकार इसे खरीद लेती है। और जब यह मजबूत होती है तब सरकार इसे बेच देती है। निजी तौर पर विदेशी मुद्रा की बिक्री व खरीद निलंबित रखी जाती है। आधिकारिक विनिमय दर में कोई परिवर्तन देश की मौद्रिक प्राधिकरण व आईएमएफ के परामर्श के किया जाता है। हालांकि अधिकांश देशों ने दोहरी प्रणाली अपना ली है। सभी सरकारी लेनदेन के लिए एक स्थिर विनिमय दर और निजी लेनदेन के लिए एक बाजार दर तय होती है। नियत विनिमय दर के पक्ष में तर्क:
B- लचीलीविनिमय दर (Flexible Exchange Rate):- जब विनिमय दर का निर्धारण, बाजार शक्तियों (मुद्रा की मांग व आपूर्ति) द्वारा तय किया जाता है, इसे लचीली विनिमय दर कहा जाता है। लचीली विनिमय दर के पक्षधर भी इसके पक्ष में समान रूप से मजबूत तर्क देते है। इस संबंध में तर्क दिया जाता है कि लचीली विनिमय दर अस्थिरता, अनिश्चितता, जोखिम और सट्टा का कारण बनती है। परन्तु इसके पक्षधर इस सभी आरोपों को खारिज करते हैं I लचीली विनिमय दर के पक्ष में तर्क:
अंत में, कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लचीली विनिमय दर का सबसे बड़ा दोष अनिश्चितता है। परन्तु उनका तर्कयह भी है कि लचीली विनिमय दर प्रणाली के तहत अनिश्चितता की संभावना है उतनी ही जितनी स्थिर विनिमय दर के तहत। विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है?जिस प्रकार से वस्तु की कीमत बाजार में माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है, उसी प्रकार विनिमय दर भी विदेशी विनिमय बाजार में माँग एवं पूर्ति के द्वारा ही निर्धारित होती है।
विनिमय दर की परिभाषा क्या है?विनिमय दर (exchange rate) दो अलग मुद्राओं की सापेक्ष कीमत होती है, अर्थात एक मुद्रा के पदों में दूसरी मुद्रा के मूल्य की माप है। किन्हीं दो मुद्राओं के मध्य विनिमय की दर उनकी पारस्परिक माँग (demand) और आपूर्ति (supply) होती है।
विदेशी विनिमय को परिभाषित करें विदेशी विनिमय दर कैसे निर्धारित किया जाता है?अर्थशास्त्र. उत्तर- विदेशी विनिमय दर- विदेशी विनिमय दर दो देशों के बीच एक देश की मुद्रा की वह मात्रा है, जिसके द्वारा दूसरे देश की मुद्रा की एक इकाई को क्रय किया जा सकता है। ... . कीमतों में परिवर्तन- दो देशों में किसी एक देश में सापेक्षिक दृष्टि से कीमत के परिवर्तन के परिणामस्वरूप विनिमय दर परिवर्तित हो जाती है।. विनिमय दर कितने प्रकार की होती है?विनिमय दर प्रणाली मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं- स्थायी विनिमय दर प्रणाली और अस्थायी विनिमय दर प्रणाली। स्थायी विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत सरकार विनिमय दर का एक स्तर विशेष दर पर निर्धारित करती है।
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