वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी
Varanasi
काशी / बनारस
महानगर व तीर्थस्थल

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

Show

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

बायें से दक्षिणावर्त: अहिल्या घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर, नया काशी विश्वनाथ मंदिर, गंगा नदी, वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का प्रवेशद्वार, बीच में बनारसी साड़ी (ऊपर), काशी करवट-सिंधिया घाट, (नीचे)

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी

उत्तर प्रदेश में स्थिति

निर्देशांक: 25°19′08″N 83°00′43″E / 25.319°N 83.012°Eनिर्देशांक: 25°19′08″N 83°00′43″E / 25.319°N 83.012°E
देश
वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?
 
भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलावाराणसी ज़िला
शासन
 • प्रणालीनगर निगम
 • सभावाराणसी नगर निगम
क्षेत्रफल
 • महानगर व तीर्थस्थल82 किमी2 (32 वर्गमील)
 • महानगर163.8 किमी2 (63.2 वर्गमील)
ऊँचाई80.71 मी (264.80 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • महानगर व तीर्थस्थल12,12,610
 • महानगर14,32,280
वासीनामबनारसी
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी, भोजपुरी
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड221 001 से 221 0xx
दूरभाष कोड0542
वाहन पंजीकरणUP-65
लिंगानुपात0.926 ♂/♀
साक्षरता दर80.31%
एच डी आई0.645
वेबसाइटvaranasi.nic.in

वाराणसी (Varanasi), जिसे काशी (Kashi) और बनारस (Benaras) भी कहा जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन नगर है। हिन्दू धर्म में यह एक अतयन्त महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, और बौद्ध व जैन धर्मों का भी एक तीर्थ है। हिन्दू मान्यता में इसे "अविमुक्त क्षेत्र" कहा जाता है।[1][2]

वाराणसी संसार के प्राचीन बसे शहरों में से एक है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं।[3] वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था।

वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।"[4][5]

नाम का अर्थ

वाराणसी नाम[6] का उद्गम संभवतः यहां की दो स्थानीय नदियों वरुणा नदी एवं असि नदी के नाम से मिलकर बना है। ये नदियाँ गंगा नदी में क्रमशः उत्तर एवं दक्षिण से आकर मिलती हैं।[7] नाम का एक अन्य विचार वरुणा नदी के नाम से ही आता है जिसे संभवतः प्राचीन काल में वरणासि ही कहा जाता होगा और इसी से शहर को नाम मिला।[8] इसके समर्थन में शायद कुछ आरम्भिक पाठ उपलब्ध हों, किन्तु इस दूसरे विचार को इतिहासवेत्ता सही नहीं मानते हैं। लंबे काल से वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र, आनंद-कानन, महाश्मशान, सुरंधन, ब्रह्मावर्त, सुदर्शन, रम्य, एवं काशी नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है।[9] ऋग्वेद में शहर को काशी या कासी नाम से बुलाया गया है। इसे प्रकाशित शब्द से लिया गया है, जिसका अभिप्राय शहर के ऐतिहासिक स्तर से है, क्योंकि ये शहर सदा से ज्ञान, शिक्षा एवं संस्कृति का केन्द्र रहा है। काशी शब्द सबसे पहले अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से आया है और इसके बाद शतपथ में भी उल्लेख है। लेकिन यह संभव है कि नगर का नाम जनपद में पुराना हो। स्कंद पुराण के काशी खण्ड में नगर की महिमा १५,००० श्लोकों में कही गयी है। एक श्लोक में भगवान शिव कहते हैं:

तीनों लोकों से समाहित एक शहर है, जिसमें स्थित मेरा निवास प्रासाद है काशी[10]

वाराणसी का एक अन्य सन्दर्भ ऋषि वेद व्यास ने एक अन्य गद्य में दिया है:

गंगा तरंग रमणीय जातकलापनाम, गौरी निरन्तर विभूषित वामभागम.
नारायणप्रियम अनंग मदापहारम, वाराणसीपुर पतिम भज विश्वनाथम

अथर्ववेद[11] में वरणावती नदी का नाम आया है जो बहुत संभव है कि आधुनिक वरुणा नदी के लिये ही प्रयोग किया गया हो। अस्सी नदी को पुराणों में असिसंभेद तीर्थ कहा है। स्कंद पुराण के काशी खंड में कहा गया है कि संसार के सभी तीर्थ मिल कर असिसंभेद के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होते हैं।[12][13] अग्निपुराण में असि नदी को व्युत्पन्न कर नासी भी कहा गया है। वरणासि का पदच्छेद करें तो नासी नाम की नदी निकाली गयी है, जो कालांतर में असी नाम में बदल गई। महाभारत में वरुणा या आधुनिक बरना नदी का प्राचीन नाम वरणासि होने की पुष्टि होती है।[14] अतः वाराणासी शब्द के दो नदियों के नाम से बनने की बात बाद में बनायी गई है। पद्म पुराण के काशी महात्म्य, खंड-३ में भी श्लोक है:

वाराणसीति विख्यातां तन्मान निगदामि व: दक्षिणोत्तरयोर्नघोर्वरणासिश्च पूर्वत।

जाऋवी पश्चिमेऽत्रापि पाशपाणिर्गणेश्वर:।।[15]

अर्थात दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी है, पूर्व में जाह्नवी और पश्चिम में पाशपाणिगणेश।

मत्स्य पुराण में शिव वाराणसी का वर्णन करते हुए कहते हैं -

वाराणस्यां नदी पु सिद्धगन्धर्वसेविता।

प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन् क्षेत्रे मम प्रिये॥

अर्थात्- हे प्रिये, सिद्ध गंधर्वों से सेवित वाराणसी में जहां पुण्य नदी त्रिपथगा गंगा आता है वह क्षेत्र मुझे प्रिय है।

यहां अस्सी का कहीं उल्लेख नहीं है। वाराणसी क्षेत्र का विस्तार बताते हुए मत्स्य पुराण में एक और जगह कहा गया है-

वरणा च नदी यावद्यावच्छुष्कनदी तथा।
भीष्मयंडीकमारम्भ पर्वतेश्वरमन्ति के॥[16]

उपरोक्त उद्धरणों से यही ज्ञात होता है कि वास्तव में नगर का नामकरण वरणासी पर बसने से हुआ। अस्सी और वरुणा के बीच में वाराणसी के बसने की कल्पना उस समय से उदय हुई जब नगर की धार्मिक महिमा बढ़ी और उसके साथ-साथ नगर के दक्षिण में आबादी बढ़ने से दक्षिण का भाग भी उसकी सीमा में आ गया। वैसे वरणा शब्द एक वृक्ष का भी नाम होता है। प्राचीनकाल में वृक्षों के नाम पर भी नगरों के नाम पड़ते थे जैसे कोशंब से कौशांबी, रोहीत से रोहीतक इत्यादि। अतः यह संभव है कि वाराणसी और वरणावती दोनों का ही नाम इस वृक्ष विशेष को लेकर ही पड़ा हो।

वाराणसी नाम के उपरोक्त कारण से यह अनुमान कदापि नहीं लगाना चाहिये कि इस नगर के से उक्त विवेचन से यह न समझ लेना चाहिए कि काशी राज्य के इस राजधानी शहर का केवल एक ही नाम था। अकेले बौद्ध साहित्य में ही इसके अनेक नाम मिलते हैं। उदय जातक में सुर्रूंधन (अर्थात सुरक्षित), सुतसोम जातक में सुदर्शन (अर्थात दर्शनीय), सोमदंड जातक में ब्रह्मवर्द्धन, खंडहाल जातक में पुष्पवती, युवंजय जातक में रम्म नगर (यानि सुन्दर नगर)[17], शंख जातक में मोलिनो (मुकुलिनी)[18] नाम आते हैं। इसे कासिनगर और कासिपुर के नाम से भी जाना जाता था[19]। सम्राट अशोक के समय में इसकी राजधानी का नाम पोतलि था[20]। यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि ये सभी नाम एक ही शहर के थे, या काशी राज्य की अलग-अलग समय पर रहीं एक से अधिक राजधानियों के नाम थे।

इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी,[4] जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कन्द पुराण, रामायण, महाभारत एवं प्राचीनतम वेद ऋग्वेद सहित कई हिन्दू ग्रन्थों में इस नगर का उल्लेख आता है। सामान्यतया वाराणसी शहर को लगभग ३००० वर्ष प्राचीन माना जाता है।[21], परन्तु हिन्दू परम्पराओं के अनुसार काशी को इससे भी अत्यंत प्राचीन माना जाता है। नगर मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दांत और शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र रहा है। गौतम बुद्ध (जन्म ५६७ ई.पू.) के काल में, वाराणसी काशी राज्य की राजधानी हुआ करता था। बनारस के दशाश्वमेध घाट के समीप बने शीतला माता मंदिर का निर्माण अर्कवंशी क्षत्रियों ने करवाया था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है और इसका विस्तार गंगा नदी के किनारे ५ कि॰मी॰ तक लिखा है।

विभूतियाँ

काशी में प्राचीन काल से समय समय पर अनेक महान विभूतियों का प्रादुर्भाव या वास होता रहा हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • महर्षि अगस्त्य
  • धन्वंतरि
  • गौतम बुद्ध
  • संत कबीर
  • बाबा किनाराम
  • लक्ष्मीबाई
  • पाणिनी
  • पार्श्वनाथ
  • पतंजलि
  • संत रैदास
  • स्वामी रामानन्दाचार्य
  • वल्लभाचार्य
  • शंकराचार्य
  • गोस्वामी तुलसीदास
  • महर्षि वेदव्यास
  • वल्लभाचार्य

प्राचीन काशी

अतिप्राचीन

गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। हजारों वर्ष पूर्व कुछ नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। कुछ समय उपरांत पश्चिम से आये ऊँचे कद के गोरे लोगों ने उनकी नगरी छीन ली। ये बड़े लड़ाकू थे, उनके घर-द्वार न थे, न ही अचल संपत्ति थी। वे अपने को आर्य यानि श्रेष्ठ व महान कहते थे। आर्यों की अपनी जातियाँ थीं, अपने कुल घराने थे। उनका एक राजघराना तब काशी में भी आ जमा। काशी के पास ही अयोध्या में भी तभी उनका राजकुल बसा। उसे राजा इक्ष्वाकु का कुल कहते थे, यानि सूर्यवंश।[22] काशी में चन्द्र वंश की स्थापना हुई। सैकड़ों वर्ष काशी नगर पर भरत राजकुल के चन्द्रवंशी राजा राज करते रहे। काशी तब आर्यों के पूर्वी नगरों में से थी, पूर्व में उनके राज की सीमा। उससे परे पूर्व का देश अपवित्र माना जाता था।

महाभारत काल

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

महाभारत काल में काशी भारत के समृद्ध जनपदों में से एक था। महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार एक स्वयंवर में पाण्डवों और कौरवों के पितामह भीष्म ने काशी नरेश की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण किया था। इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और हस्तिनापुर की शत्रुता हो गई। कर्ण ने भी दुर्योधन के लिये काशी राजकुमारी का बलपूर्वक अपहरण किया था, जिस कारण काशी नरेश महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की तरफ से लड़े थे। कालांतर में गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को डुबा दिया, तब पाण्डवों के वंशज वर्तमान इलाहाबाद जिले में यमुना किनारे कौशाम्बी में नई राजधानी बनाकर बस गए। उनका राज्य वत्स कहलाया और काशी पर वत्स का अधिकार हो गया।

उत्तर वैदिक काल

इसके बाद ब्रह्मदत्त नाम के राजकुल का काशी पर अधिकार हुआ। उस कुल में बड़े पंडित शासक हुए और में ज्ञान और पंडिताई ब्राह्मणों से क्षत्रियों के पास पहुंच गई थी। इनके समकालीन पंजाब में कैकेय राजकुल में राजा अश्वपति था। तभी गंगा-यमुना के दोआब में राज करने वाले पांचालों में राजा प्रवहण जैबलि ने भी अपने ज्ञान का डंका बजाया था। इसी काल में जनकपुर, मिथिला में विदेहों के शासक जनक हुए, जिनके दरबार में याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी महर्षि और गार्गी जैसी पंडिता नारियां शास्त्रार्थ करती थीं। इनके समकालीन काशी राज्य का राजा अजातशत्रु हुआ।[22] ये आत्मा और परमात्मा के ज्ञान में अनुपम था। ब्रह्म और जीवन के सम्बन्ध पर, जन्म और मृत्यु पर, लोक-परलोक पर तब देश में विचार हो रहे थे। इन विचारों को उपनिषद् कहते हैं। इसी से यह काल भी उपनिषद-काल कहलाता है।

महाजनपद युग

युग बदलने के साथ ही वैशाली और मिथिला के लिच्छवियों में साधु वर्धमान महावीर हुए, कपिलवस्तु के शाक्यों में गौतम बुद्ध हुए। उन्हीं दिनों काशी का राजा अश्वसेन हुआ। इनके यहां पार्श्वनाथ हुए जो जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर हुए। उन दिनों भारत में चार राज्य प्रबल थे जो एक-दूसरे को जीतने के लिए, आपस में बराबर लड़ते रहते थे। ये राह्य थे मगध, कोसल, वत्स और उज्जयिनी। कभी काशी वत्सों के हाथ में जाती, कभी मगध के और कभी कोसल के। पार्श्वनाथ के बाद और बुद्ध से कुछ पहले, कोसल-श्रावस्ती के राजा कंस ने काशी को जीतकर अपने राज में मिला लिया। उसी कुल के राजा महाकोशल ने तब अपनी बेटी कोसल देवी का मगध के राजा बिम्बसार से विवाह कर दहेज के रूप में काशी की वार्षिक आमदनी एक लाख मुद्रा प्रतिवर्ष देना आरंभ किया और इस प्रकार काशी मगध के नियंत्रण में पहुंच गई।[22] राज के लोभ से मगध के राजा बिम्बसार के बेटे अजातशत्रु ने पिता को मारकर गद्दी छीन ली। तब विधवा बहन कोसलदेवी के दुःख से दुःखी उसके भाई कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी की आमदनी अजातशत्रु को देना बन्द कर दिया जिसका परिणाम मगध और कोसल समर हुई। इसमें कभी काशी कोसल के, कभी मगध के हाथ लगी। अन्ततः अजातशत्रु की जीत हुई और काशी उसके बढ़ते हुए साम्राज्य में समा गई। बाद में मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र चली गई और फिर कभी काशी पर उसका आक्रमण नहीं हो पाया।

काशी नरेश और रामनगर

वाराणसी १८वीं शताब्दी में स्वतंत्र काशी राज्य बन गया था और बाद के ब्रिटिश शासन के अधीन, ये प्रमुख व्यापारिक और धार्मिक केन्द्र रहा। १९१० में ब्रिटिश प्रशासन ने वाराणसी को एक नया भारतीय राज्य बनाया और रामनगर को इसका मुख्यालय बनाया, किंतु इसका अधिकार क्षेत्र कुछ नहीं था। काशी नरेश अभी भी रामनगर किले में रहते हैं। ये किला वाराणसी नगर के पूर्व में गंगा के तट पर बना हुआ है।[23] रामनगर किले का निर्माण काशी नरेश राजा बलवंत सिंह ने उत्तम चुनार बलुआ पत्थर ने १८वीं शताब्दी में करवाया था।[3] किला मुगल स्थापत्य शैली में नक्काशीदार छज्जों, खुले प्रांगण और सुरम्य गुम्बददार मंडपों से सुसज्जित बना है।[3] काशी नरेश का एक अन्य महल चैत सिंह महल है। ये शिवाला घाट के निकट महाराजा चैत सिंह ने बनवाया था।[24]

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

काशी नरेश राजा छेत सिंह (१७७०–१७८१)

रामनगर किला और इसका संग्रहालय अब बनारस के राजाओं की ऐतिहासिक धरोहर रूप में संरक्षित हैं और १८वीं शताब्दी से काशी नरेश का आधिकारिक आवास रहे हैं।[3] आज भी काशी नरेश नगर के लोगों में सम्मानित हैं।[3] ये नगर के धार्मिक अध्यक्ष माने जाते हैं और यहां के लोग इन्हें भगवान शिव का अवतार मानते हैं।[3] नरेश नगर के प्रमुख सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी बड़ी धार्मिक गतिविधियों के अभिन्न अंग रहे हैं।[3]

काशी तीर्थ का इतिहास

वाराणसी शहर का बड़ा अंश अतिप्राचीनकाल से काशी कहा जाता है। इसे हिन्दू मान्यता में सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, किन्तु तीर्थ के रूप में वाराणसी का सबसे पुराना उल्लेख महाभारत मे मिलता है।[क][ख][25][26] महाभारत-पूर्व के किसी साहित्य में किसी भी तीर्थ आदि के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। आज के तीर्थस्थल तब अधिकतर वन प्रदेश में थे और मनुष्यों से रहित थे। कहीं-कहीं आदिवासियों का वास रहा होगा। कालांतर में तीर्थों के बारे में कही गयी कथाएं अस्तित्त्व में आयीं और तीर्थ बढ़ते गये, जिनके आसपास नगर और शहर भी बसे। भारतभूमि में आर्यों के प्रसार के द्वारा तीर्थों के अस्तित्व तथा माहात्मय का पता चला। महाभारत में उल्लेख है पृथ्वी के कुछ स्थान पुण्यप्रद तथा पवित्र होते है। इनमें से कोई तो स्थान की विचित्रता के कारण कोई जन्म के प्रभाव और कोई ॠषि-मुनियों के सम्पर्क से पवित्र हो गया है।[ग][27] यजुर्वेदीय जाबाल उपनिषद में काशी के विषय में महत्वपूर्ण वर्णन आता है, परन्तु इस उपनिषद् को आधुनिक विद्वान उतना प्राचीन नहीं मानते हैं।[घ][28]

जाबाल-उपनिषद् खण्ड-२ में महर्षि अत्रि ने महर्षि याज्ञवल्क्य से अव्यक्त और अनन्त परमात्मा को जानने का तरीका पूछा। तब याज्ञवल्क्य ने कहा कि उस अव्यक्त और अनन्त आत्मा की उपासना अविमुक्त क्षेत्र में हो सकती है, क्योंकि वह वहीं प्रतिष्ठित है। और अत्रि के अविमुक्त की स्थिति पूछने पर। याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि वह वरणा तथा नाशी नदियों के मध्य में है। वह वरणा क्या है और वह नाशी क्या है, यह पूछने पर उत्तर मिला कि इन्द्रिय-कृत सभी दोषों का निवारण करने वाली वरणा है और इन्द्रिय-कृत सभी पापों का नाश करने वाली नाशी है। वह अविमुक्त क्षेत्र देवताओं का देव स्थान और सभी प्राणियों का ब्रह्म सदन है। वहाँ ही प्राणियों के प्राण-प्रयाण के समय में भगवान रुद्र तारक मन्त्र का उपदेश देते है जिसके प्रभाव से वह अमृती होकर मोक्ष प्राप्त करता है। अत एव अविमुक्त में सदैव निवास करना चाहिए। उसको कभी न छोड़े, ऐसा याज्ञवल्क्य ने कहा है।

जाबालोपिनषद के अलावा अनेक स्मृतियों जैसे लिखितस्मृति, श्रृंगीस्मृति तथा पाराशरस्मृति, ब्राह्मीसंहिता तथा सनत्कुमारसंहिता में भी काशी का माहात्म्य बताया है। प्रायः सभी पुराणों में काशी का माहात्म्य कहा गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में तो काशी क्षेत्र पर काशी-रहस्य नाम से पूरा ग्रन्थ ही है, जिसे उसका खिल भाग कहते हैं। पद्म पुराण में काशी-महात्म्य और अन्य स्थानों पर भी काशी का उल्लेख आता है। प्राचीन लिंग पुराण में सोलह अध्याय काशी की तीर्थों के संबंध में थे। वर्त्तमान लिंगपुराण में भी एक अध्याय है। स्कंद पुराण का काशीखण्ड तो काशी के तीर्थ-स्वरुप का विवेचन तथा विस्तृत वर्णन करता ही है। इस प्रकार पुराण-साहित्य में काशी के धार्मिक महात्म्य पर सामग्री है। इसके अतिरिक्त, संस्कृत-वाड्मय, दशकुमारचरित, नैषध, राजतरंगिणी और कुट्टनीपतम् में भी काशी का वर्णन आता है। १२वीं शताब्दी ईसवी तक प्राप्त होने वाले लिंग पुराण में तीसरे से अट्ठारहवें अध्याय तक काशी के देवायतनों तथा तीर्थें का विस्तृत वर्णन था। त्रिस्थलीसेतु ग्रन्थ की रचना (सन् १५८० ई.) में लिंगपुराण वैसा ही रहा था।

लैंंगोडपि तृतीयाध्यायात्षोऽशान्तं लिंंगान्युक्तवोक्तम्[29]

अर्थात लिंगपुराण में भी तीसरे से सोलहवें अध्याय तक लिंगो का वर्णन किया है। वर्तमान लिंग पुराण में केवल एक ही अध्याय काशी के विषय में है, जिसमें केवल १४४ श्लोक हैं। इस प्रकार महाभारत के अलावा यदि सभी पुराणों के उल्लेख देखें, तो काशी के तीर्थ रूप के उल्लेख की सूची बहुत लंबी बनती है। शब्दकल्पद्रुम मे २६४ तीर्थों का उल्लेख है, परन्तु महिमा के विचार से भारत के तीर्थों में चार धाम और सप्तपुरियों के नाम शीर्षस्थ माने जाते है। प्रयाग, गया और गंगासागर तक के नाम इनमें नहीं आते। अतः इसे नकारा भी जा सकता है।

क्षेत्र का विस्तार

वाराणसी क्षेत्र के विस्तार के अनेक पौराणिक उद्धरण उपलब्ध हैं।[30] कृत्यकल्पतरु में दिये तीर्थ-विवेचन व अन्य प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार[31]:

  • ब्रह्म पुराण में भगवान शिव पार्वती से कहते हैं कि- हे सुरवल्लभे, वरणा और असि इन दोनों नदियों के बीच में ही वाराणसी क्षेत्र है, उसके बाहर किसी को नहीं बसना चाहिए।
  • मत्स्य पुराण[32] में इसकी लम्बाई-चौड़ाई अधिक स्पष्ट रूप से वर्णित है। पूर्व-पश्चिम ढ़ाई (२½) योजन भीष्मचंडी से पर्वतेश्वर तक, उत्तर-दक्षिण आधा (1/2) योजन, शेष भाग वरुणा और अस्सी के बीच। उसके बीच में मध्यमेश्वर नामक स्वयंभू लिंग है। यहां से भी एक-एक कोस चारों ओर क्षेत्र का विस्तार है। यही वाराणसी की वास्तविक सीमा है। उसके बाहर विहार नहीं करना चाहिए।[31]
  • अग्नि पुराण[33] के अनुसार वरणा और असी नदियों के बीच बसी हुई वाराणसी का विस्तार पूर्व में दो योजन और दूसरी जगह आधा योजन भाग फैला था और दक्षिण में यह क्षेत्र वरणा से गंगा तक आधा योजन फैला हुआ था। मत्स्य पुराण में ही अन्यत्र नगर का विस्तार बतलाते हुए कहा गया है- पूर्व से पश्चिम तक इस क्षेत्र का विस्तार दो योजन है और दक्षिण में आधा योजन नगर भीष्मचंडी से लेकर पर्वतेश्वर तक फैला हुआ था।[31]
  • ब्रह्म पुराण के अनुसार इस क्षेत्र का प्रमाण पांच कोस का था उसमें उत्तरमुखी गंगा है[34] जिससे क्षेत्र का महात्म्य बढ़ गया। उत्तर की ओर गंगा दो योजन तक शहर के साथ-साथ बहती थी।
  • स्कंद पुराण के अनुसार उस क्षेत्र का विस्तार चारों ओर चार कोस था।
  • लिंग पुराण में इस क्षेत्र का विस्तार कृतिवास से आरंभ होकर यह क्षेत्र एक-एक कोस चारों ओर फैला हुआ है। उसके बीच में मध्यमेश्वर नामक स्वयंभू लिंग है। यहां से भी एक-एक कोस चारों ओर क्षेत्र का विस्तार है। यही वाराणसी की वास्तविक सीमा है। उसके बाहर विहार न करना चाहिए।[31]

उपरोक्त उद्धरणों से ज्ञात होता है कि प्राचीन वाराणसी का विस्तार काफी दूर तक था। वरुणा के पश्चिम में राजघाट का किला जहां प्राचीन वाराणसी के बसे होने में कोई सन्देह नहीं है, एक मील लंबा और ४०० गज चौड़ा है। गंगा नदी उसके दक्षिण-पूर्व मुख की रक्षा करती है और वरुणा नदी उत्तर और उत्तर-पूर्व मुखों की रक्षा एक छिछली खाई के रूप में करती है, पश्चिम की ओर एक खाली नाला है जिसमें से होकर किसी समय वरुणा नदी बहती थी। रक्षा के इस प्राकृतिक साधनों को देखते हुए ही शायद प्राचीन काल में वाराणसी नगर के लिए यह स्थान चुना गया। सन् १८५७ ई. के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजों ने भी नगर रक्षा के लिए वरुणा के पीछे ऊंची जमीन पर कच्ची मिट्टी की दीवारें उठाकर किलेबन्दी की थी। पुराणों में आयी वाराणसी की सीमा राजघाट की उक्त लम्बाई-चौड़ाई से कहीं अधिक है। उन वर्णनों से लगता है कि वहां केवल नगर की सीमा ही नहीं वर्णित है, बल्कि पूरे क्षेत्र को सम्मिलित कर लिया गया है।[31] वरुणा के उस पार तक प्राचीन बसावटों के अवशेष काफी दूर तक मिलते हैं। अतः संभव है कि पुराणों में मिले वर्णन वे सब भाग भी आ गये हों। इस क्षेत्र को यदि नगर में जुड़ा हुआ मानें, तो पुराणों में वर्णित नगर की लम्बाई-चौड़ाई लगभग सही ही बतायी गई है।

गौतम बुद्ध के जन्म पूर्व महाजनपद युग में वाराणसी काशी जनपद की राजधानी थी।[31] किंतु प्राचीन काशी जनपद के विस्तार के बारे में यथार्थ आदि से अनुमान लगाना कठिन है। जातकों में[35] काशी का विस्तार ३०० योजन दिया गया है। काशी जनपद के उत्तर में कोसल जनपद, पूर्व में मगध जनपद और पश्चिम में वत्स था।[36] इतिहासवेत्ता डॉ॰ ऑल्टेकर के मतानुसार काशी जनपद का विस्तार उत्तर-पश्चिम की ओर २५० मील तक था, क्योंकि इसका पूर्व का पड़ोसी जनपद मगध और उत्तर-पश्चिम का पड़ोसी जनपद उत्तर पांचाल था। जातक (१५१) के अनुसार काशी और कोसल की सीमाएं मिली हुई थी। काशी की दक्षिण सीमा का सही वर्णन उपलब्ध नहीं है, शायद इसलिये कि वह विंध्य श्रृंखला तक गई हुई थी व आगे कोई आबादी नहीं थी। जातकों के आधार पर काशी का विस्तार वर्तमान बलिया से कानपुर तक फैला रहा होगा।[37] यहां श्री राहुल सांकृत्यायन कहते हैं, कि आधुनिक बनारस कमिश्नरी ही प्राचीन काशी जनपद रहा था। संभव है कि आधुनिक गोरखपुर कमिश्नरी का भी कुछ भाग काशी जनपद में शामिल रहा हो।

दूसरी वाराणसी

पुरु कुल के राजा दिवोदास द्वारा दूसरी वाराणसी की स्थापना का उल्लेख महाभारत और अन्य ग्रन्थों में आता है। इस नगरी के बैरांट में होने की संभावना भी है। इस बारे में पंडित कुबेरनाथ सुकुल के अनुसार[38] बैराट खंडहर बाण गंगा के दक्षिण (दाएं) किनारे पर है वाम (बाएं) पर नहीं। इस प्रकार गोमती और बैरांट के बीच गंगा की धारा बाधक हो जाती है। गंगा के रास्ते बदलने, बाण गंगा में गंगा के बहने और गंगा-गोमती संगम सैदपुर के पास होने के बारे में आगे सुकुलजी ने महाभारत के हवाले से[39] बताया है कि गंगा-गोमती संगम पर मार्कण्डेय तीर्थ था, जो वर्तमान में कैथी के समीप स्थित है। अत: ये कह सकते हैं कि यदि गंगा-गोमती संगम सैदपुर के पास था तो यह महाभारत-पूर्व हो सकता है, न कि तृतीय शताब्दी ईसवी के बाद का।

मार्कण्डेयस्य राजेन्द्रतीर्थमासाद्य दुलभम्।गोमतीगंगयोश्चैव संगमें लोकविश्रुते।।महाभारत

भूगोल तथा जलवायु

भूगोल

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी का गंगा नदी और इसके तट पर बसे असंख्य मंदिरों से अटूट संबंध है।

वाराणसी शहर उत्तरी भारत की मध्य गंगा घाटी में, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर गंगा नदी के बायीं ओर के वक्राकार तट पर स्थित है। यहां वाराणसी जिले का मुख्यालय भी स्थित है। वाराणसी शहरी क्षेत्र — सात शहरी उप-इकाइयों का समूह है और ये ११२.२६ वर्ग कि॰मी॰ (लगभग ४३ वर्ग मील) के क्षेत्र फैला हुआ है। शहरी क्षेत्र का विस्तार (८२°५६’ पूर्व) - (८३°०३’ पूर्व) एवं (२५°१४’ उत्तर) - (२५°२३.५’ उत्तर) के बीच है। उत्तरी भारत के गांगेय मैदान में बसे इस क्षेत्र की भूमि पुराने समय में गंगा नदी में आती रहीं बाढ़ के कारण उपत्यका रही है।

खास वाराणसी शहर गंगा और वरुणा नदियों के बीच एक ऊंचे पठार पर बसा है। नगर की औसत ऊंचाई समुद्र तट से ८०.७१ मी. है। यहां किसी सहायक नदी या नहर के अभाव में मुख्य भूमि लगातार शुष्क बनी रही है। प्राचीन काल से ही यहां की भौगोलिक स्थिति बसावट के लिये अनुकूल रही है। किन्तु नगर की मूल स्थिति का अनुमान वर्तमान से लगाना मुश्किल है, क्योंकि आज की स्थिति कुछ प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित स्थिति से भिन्न है।

नदियाँ

वाराणसी या काशी का विस्तार प्रायः गंगा नदी के दो संगमों: एक वरुणा नदी से और दूसरा असी नदी से संगम के बीच बताया जाता है। इन संगमों के बीच की दूरी लगभग २.५ मील है। इस दूरी की परिक्रमा (दोनों ओर की यात्रा) हिन्दुओं में पंचकोसी यात्रा या पंचकोसी परिक्रमा कहलाती है। इसक यात्रा का समापन साक्षी विनायक मंदिर में किया जाता है। वाराणसी क्षेत्र में अनेक छोटी बड़ी नदियां बहती हैं। इनमें सबसे प्रमुख नदी तो गंगा ही है, किंतु इसके अलावा अन्य बहुत नदियां हैं जैसे गंगा, बानगंगा, वरुणा, गोमती, करमनासा, गड़ई, चंद्रप्रभा, आदि। बनारस जिले की नदियों के विस्तार से अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि बनारस में तो प्रस्रावक नदियां है लेकिन चंदौली में नहीं है जिससे उस जिले में झीलें और दलदल हैं, अधिक बरसात होने पर गांव पानी से भर जाते हैं तथा फसल को काफी नुकसान पहुंचता है। नदियों के बहाव और जमीन की के कारण जो हानि-लाभ होता है इससे प्राचीन आर्य अनभिज्ञ नहीं थे और इसलिए सबसे पहले आबादी बनारस में हुई।[40]

जलवायु

वाराणसी में आर्द्र अर्ध-कटिबन्धीय जलवायु (कोप्पन जलवायु वर्गीकरण Cwa के अनुसार) है जिसके संग यहां ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु ऋतुओं के तापमान में बड़े अंतर हैं। ग्रीष्म काल अप्रैल के आरंभ से अक्टूबर तक लंबे होते हैं, जिस बीच में ही वर्षा ऋतु में मानसून की वर्षाएं भी होती हैं। हिमालय क्षेत्र से आने वाली शीत लहर से यहां का तापमान दिसम्बर से फरवरी के बीच शीतकाल में गिर जाता है। यहां का तापमान ३२° से. – ४६°C (९०° फै. – ११५°फै.) ग्रीष्म काल में, एवं ५°से. – १५°से. (४१°फै. – ५९°फै.) शीतकाल में रहता है। औसत वार्षिक वर्षा १११० मि.मी. (४४ इंच) तक होती है।[41] ठंड के मौसम में कुहरा सामान्य होता है और गर्मी के मौसम में लू चलना सामान्य होता है।

यहां निरन्तर बढ़ते जल प्रदूषण और निर्माण हुए बांधों के कारण स्थानीय तापमान में वृद्धि दर्ज हुई है। गंगा का जलस्तर पुराने समय से अच्छा खासा गिर गया है और इस कारण नदी के बीच कुछ छोटे द्वीप भी प्रकट हो गये हैं। इस प्राचीन शहर में पानी का जलस्तर इतना गिर गया है कि इंडिया मार्क-२ जैसे हैंडपंप भी कई बार चलाने के बाद भी पानी की एक बूंद भी नहीं निकाल पाते। वाराणसी में गंगा का जलस्तर कम होना भी एक बड़ी समस्या है। गंगा के जल में प्रदूषण होना सभी के लिए चिंता का विषय था, लेकिन अब इसका प्रवाह भी कम होता जा रहा है, जिसके कारण उत्तराखंड से लेकर बंगाल की खाड़ी तक चिंता जतायी जा रही है।[42]

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?
 वाराणसी के लिए मौसम के औसत 
वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?
महीने जनवरी फ़रवरी मार्च अप्रैल मई जून जुलाई अगस्त सितम्बर अक्टूबर नवम्बर दिसम्बर वर्ष
औसत उच्च°C (°F) 23.2
(74)
26.8
(80)
33.1
(92)
38.8
(102)
41.2
(106)
38.9
(102)
33.5
(92)
32.5
(91)
32.7
(91)
32.5
(91)
29.2
(85)
24.5
(76)
32.2
(90)
औसत निम्न °C (°F) 8.5
(47)
11.0
(52)
16.3
(61)
22.1
(72)
26.4
(80)
28.1
(83)
26.3
(79)
25.9
(79)
25.0
(77)
20.7
(69)
13.7
(57)
9.3
(49)
19.4
(67)
वर्षा mm (इंच) 19.3
(0.76)
13.5
(0.53)
10.4
(0.41)
5.4
(0.21)
9.0
(0.35)
100.0
(3.94)
320.6
(12.62)
260.4
(10.25)
231.6
(9.12)
38.3
(1.51)
12.9
(0.51)
4.0
(0.16)
1,025.4
(40.37)
स्रोत: [43] ३५ मार्च २०१०

अर्थ-व्यवस्था

वाराणसी में विभिन्न कुटीर उद्योग कार्यरत हैं, जिनमें बनारसी रेशमी साड़ी, कपड़ा उद्योग, कालीन उद्योग एवं हस्तशिल्प प्रमुख हैं। बनारसी पान विश्वप्रसिद्ध है और इसके साथ ही यहां का कलाकंद भी मशहूर है। वाराणसी में बाल-श्रमिकों का काम जोरों पर है।[44]

बनारसी रेशम विश्व भर में अपनी महीनता एवं मुलायमपन के लिये प्रसिद्ध है। बनारसी रेशमी साड़ियों पर बारीक डिज़ाइन और ज़री का काम चार चांद लगाते हैं और साड़ी की शोभा बढ़ाते हैं। इस कारण ही ये साड़ियां वर्षों से सभी पारंपरिक उत्सवों एवं विवाह आदि समारोहों में पहनी जाती रही हैं। कुछ समय पूर्व तक ज़री में शुद्ध सोने का काम हुआ करता था।

भारतीय रेल का इंजन निर्माण हेतु बनारस रेल इंजन कारखाना भी वाराणसी में स्थित है। वाराणसी और कानपुर का प्रथम भारतीय व्यापार घराना निहालचंद किशोरीलाल १८५७ में देश के चौथे ऑक्सीजन संयंत्र की स्थापना से आरम्भ हुआ था। इसका नाम इण्डियन एयर गैसेज़ लि. था। लॉर्ड मकॉले के अनुसार, वाराणसी वह नगर था, जिसमें समृद्धि, धन-संपदा, जनसंख्या, गरिमा एवं पवित्रता एशिया में सर्वोच्च शिखर पर थी। यहां के व्यापारिक महत्त्व की उपमा में उसने कहा था: " बनारस की खड्डियों से महीनतम रेशम निकलता है, जो सेंट जेम्स और वर्सेल्स के मंडपों की शोभा बढ़ाता है"।[10][45]

  • वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

  • वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

    पान की दुकान पर बिकते पान

  • वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

प्रशासन एवं राजनीति

वाराणसी के प्रशासन में कई संस्थाएं संलग्न हैं, जिनमें से प्रमुख है वाराणसी नगर निगम एवं वाराणसी विकास प्राधिकरण जो वाराणसी शहर की मास्टर योजना के लिये उत्तरदायी है। यहां की जलापूर्ति एवं मल-निकास व्यवस्था नगर निगम के अधीनस्थ जल निगम द्वारा की जाती है। यहां की विद्युत आपूर्ति उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड द्वारा की जाती है। नगर से प्रतिदिन लगभग ३५ करोड़ लीटर मल[46] एवं ४२५ टन कूड़ा निकलता है।[47] कूड़े का निष्कासन लैण्ड-फ़िल स्थलों पर किय़ा जाता है।[48] बडी मात्रा में मल निकास गंगा नदी में किया जाता है। शहर और उपनगरीय क्षेत्र में नगर निगम द्वारा बस सेवा भी संचालित की जाती है। नगर की कानून व्यवस्था उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा की वाराणसी मंडल में वाराणसी क्षेत्र के अधीन आती है। नगर में पुलिस के उच्चतम अधिकारी पुलिस अधीक्षक हैं।[49] बनारस शहर वाराणसी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र में आता है। वर्ष २०१४ में हुए आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नरेन्द्र मोदी यहां से सांसद चुने गये थे।[50] वाराणसी जिले में पाँच विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र आते हैं। ये इस प्रकार से हैं[51]:

  • ३८७-रोहनिया,
  • ३८८-वाराणसी उत्तर,
  • ३८९-वाराणसी दक्षिण,
  • ३९०-वाराणसी छावनी और
  • ३९१-सेवापुरी।

वाराणसी उन पांच शहरों में से एक है, जहां गंगा एकशन प्लान की शुरुआत हुई थी।

देखें:एक नज़र में वाराणसी Archived 2010-04-14 at the Wayback Machine

शिक्षा

वाराणसी के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सैकेंडरी एजुकेशन (आई.सी.एस.ई), केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई) या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यू.पी.बोर्ड) से सहबद्ध हैं।

उच्च शिक्षा

वाराणसी में तीन सार्वजनिक एवं एक मानित विश्वविद्यालय हैं:

  1. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जिसकी स्थापना १९१६ में पं.मदन मोहन मालवीय ने एनी बेसेंट के सहयोग से की थी। इसका १३५० एकड़ (५.५ वर्ग कि॰मी॰) में फैला परिसर काशी नरेश द्वारा दान की गई भूमि पर निर्मित है। इस विश्वविद्यालय में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी-बी.एच.यू) एवं आयुर्विज्ञान संस्थान विश्व के सर्वोच्च तीन एवं एशिया सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक हैं। यहां १२८ से अधिक स्वतंत्र शैक्षणिक विभाग हैं।[52]
  2. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय: भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस ने इस संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना १७९१ में की थी। ये वाराणसी का प्रथम महाविद्यालय था।

इस महाविद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य संस्कृत प्राध्यापक जे म्योर, आई.सी.एस थे। इनके बाद जे.आर.बैलेन्टियन, आर.टी.एच.ग्रिफ़िथ, डॉ॰जी.थेवो, डॉ॰आर्थर वेनिस, डॉ॰गंगानाथ झा और गोपीनाथ कविराज हुए। भारतीय स्वतंत्रता उपरांत इस महाविद्यालय को विश्वविद्यालय बनाकर वर्तमान नाम दिया गया।[53]

  1. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एक मानित राजपत्रित विश्वविद्यालय है। इसका नाम भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर है और यहां उनके सिद्धांतों का पालन किया जाता है।
  2. केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय सारनाथ में स्थापित एक मानित विश्वविद्यालय है। यहां परंपरागत तिब्बती पठन-पाठन को आधुनिक शिक्षा के साथ वरीयता दी जाती है।[54] उदय प्रताप कॉलिज, एक स्वायत्त महाविद्यालय है जहां आधुनिक बनारस के उपनगरीय छात्रों हेतु क्रीड़ा एवं विज्ञान का केन्द्र है। वाराणसी में बहुत से निजी एवं सार्वजनिक संस्थान है, जहां हिन्दू धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था है। प्राचीन काल से ही लोग यहां दर्शन शास्त्र, संस्कृत, खगोलशास्त्र, सामाजिक ज्ञान एवं धार्मिक शिक्षा आदि के ज्ञान के लिये आते रहे हैं। भारतीय परंपरा में प्रायः वाराणसी को सर्वविद्या की राजधानी कहा गया है।[55] नगर में एक जामिया सलाफिया भी है, जो सलाफ़ी इस्लामी शिक्षा का केन्द्र है।[56]

इन विश्वविद्यालयों के अलावा शहर में कई स्नातकोत्तर एवं स्नातक महाविद्यालय भी हैं, जैसे अग्रसेन डिगरी कॉलिज, हरिशचंद्र डिगरी कॉलिज, आर्य महिला डिगरी कॉलिज, एवं स्कूल ऑफ मैंनेजमेंट।

संस्कृति

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी में लाखों हिन्दू तीर्थयात्री प्रतिवर्ष आते हैं।

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

भित्ति चित्र, वाराणसी, १९७४

वाराणसी का पुराना शहर, गंगा तीरे का लगभग चौथाई भाग है, जो भीड़-भाड़ वाली संकरी गलियों और किनारे सटी हुई छोटी-बड़ी असंख्य दुकानों व सैंकड़ों हिन्दू मंदिरों से पटा हुआ है। ये घुमाव और मोड़ों से भरी गलियां किसी के लिये संभ्रम करने वाली हैं। ये संस्कृति से परिपूर्ण पुराना शहर विदेशी पर्यटकों के लिये वर्षों से लोकप्रिय आकर्षण बना हुआ है।[57] वाराणसी के मुख्य आवासीय क्षेत्र (विशेषकर मध्यम एवं उच्च-मध्यम वर्गीय श्रेणी के लिये) घाटों से दूर स्थित हैं। ये विस्तृत, खुले हुए और अपेक्षाकृत कम प्रदूषण वाले हैं।

रामनगर की रामलीला

यहां दशहरा का त्यौहार खूब रौनक और तमाशों से भरा होता है। इस अवसर पर रेशमी और ज़री के ब्रोकेड आदि से सुसज्जित भूषा में काशी नरेश की हाथी पर सवारी निकलती है और पीछे-पीछे लंबा जलूस होता है।[3] फिर नरेश एक माह लंबे चलने वाले रामनगर, वाराणसी की रामलीला का उद्घाटन करते हैं।[3] रामलीला में रामचरितमानस के अनुसार भगवान श्रीराम के जीवन की लीला का मंचन होता है।[3] ये मंचन काशी नरेश द्वारा प्रायोजित होता है अर पूरे ३१ दिन तक प्रत्येक शाम को रामनगर में आयोजित होता है।[3] अन्तिम दिन इसमें भगवान राम रावण का मर्दन कर युद्ध समाप्त करते हैं और अयोध्या लौटते हैं।[3] महाराजा उदित नारायण सिंह ने रामनगर में इस रामलीला का आरम्भ १९वीं शताब्दी के मध्य से किया था।[3]

बनारस घराना

बनारस घराना भारतीय तबला वादन के छः प्रसिद्ध घरानों में से एक है।[58] ये घराना २०० वर्षों से कुछ पहले ख्यातिप्राप्त पंडित राम सहाय (१७८०-१८२६) के प्रयासों से विकसित हुआ था। पंडित राम सहाय ने अपने पिता के संग पांच वर्ष की आयु से ही तबला वादन आरम्भ किया था। बनारस-बाज कहते हैं। ये बनारस घराने की विशिष्ट तबला वादन शैली है। इन्होंने तत्कालीन संयोजन प्रारूपों जैसे जैसे गट, टुकड़ा, परान, आदि से भी विभिन्न संयोजन किये, जिनमें उठान, बनारसी ठेका और फ़र्द प्रमुख हैं।

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

शाहिद परवेज़ खां, बनारस घराने के अन्य बड़े महारथी पंडित किशन महाराज के साथ एक सभा में।

आज बनारसी तबला घराना अपने शक्तिशाली रूप के लिये प्रसिद्ध है, हालांकि बनारस घराने के वादक हल्के और कोमल स्वरों के वादन में भी सक्षम हैं। घराने को पूर्वी बाज मे वर्गीकृत किया गया है, जिसमें लखनऊ, फर्रुखाबाद और बनारस घराने आते हैं। बनारस शैली तबले के अधिक अनुनादिक थापों का प्रयोग करती है, जैसे कि ना और धिन। बनारस घराने में एकल वादन बहुत इकसित हुआ है और कई वादक जैसे पंडित शारदा सहाय, पंडित किशन महाराज[59] और पंडित समता प्रसाद[60], एकल तबला वादन में महारत और प्रसिद्धि प्राप्त हैं। घराने के नये युग के तबला वादकों में पं॰ कुमार बोस, पं.समर साहा, पं.बालकृष्ण अईयर, पं.शशांक बख्शी, सन्दीप दास, पार्थसारथी मुखर्जी, सुखविंदर सिंह नामधारी, विनीत व्यास और कई अन्य हैं। बनारसी बाज में २० विभिन्न संयोजन शैलियों और अनेक प्रकार के मिश्रण प्रयुक्त होते हैं।

पवित्र नगरी

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी के एक घाट पर लोग हिन्दू रिवाज करते हुए।

वाराणसी या काशी को हिन्दू धर्म में पवित्रतम नगर बताया गया है। यहां प्रतिवर्ष १० लाख से अधिक तीर्थ यात्री आते हैं।[61] यहां का प्रमुख आकर्षण है काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से प्रमुख शिवलिंग यहां स्थापित है।[झ][62][63]

हिन्दू मान्यता अनुसार गंगा नदी सबके पाप मार्जन करती है और काशी में मृत्यु सौभाग्य से ही मिलती है और यदि मिल जाये तो आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो कर मोक्ष पाती है। इक्यावन शक्तिपीठ में से एक विशालाक्षी मंदिर यहां स्थित है, जहां भगवती सती की कान की मणिकर्णिका गिरी थी। वह स्थान मणिकर्णिका घाट के निकट स्थित है।[10] हिन्दू धर्म में शाक्त मत के लोग देवी गंगा को भी शक्ति का ही अवतार मानते हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म पर अपनी टीका यहीं आकर लिखी थी, जिसके परिणामस्वरूप हिन्दू पुनर्जागरण हुआ। काशी में वैष्णव और शैव संप्रदाय के लोग सदा ही धार्मिक सौहार्द से रहते आये हैं।

वाराणसी बौद्ध धर्म के पवित्रतम स्थलों में से एक है और गौतम बुद्ध से संबंधित चार तीर्थ स्थलों में से एक है। शेष तीन कुशीनगर, बोध गया और लुंबिनी हैं। वाराणसी के मुख्य शहर से हटकर ही सारनाथ है, जहां भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन दिया था। इसमें उन्होंने बौद्ध धर्म के मूलभूत सिद्दांतों का वर्णन किया था। अशोक-पूर्व स्तूपों में से कुछ ही शेष हैं, जिनमें से एक धामेक स्तूप यहीं अब भी खड़ा है, हालांकि अब उसके मात्र आधारशिला के अवशेष ही शेष हैं। इसके अलावा यहां चौखंडी स्तूप भी स्थित है, जहां बुद्ध अपने प्रथम शिष्यों से (लगभग ५वीं शताब्दी ई.पू या उससे भी पहले) मिले थे। वहां एक अष्टभुजी मीनार बनवायी गई थी।

वाराणसी हिन्दुओं एवं बौद्धों के अलावा जैन धर्म के अवलंबियों के लिये भी पवित तीर्थ है। इसे २३वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का जन्मस्थान माना जाता है।[64] वाराणसी पर इस्लाम संस्कृति ने भी अपना प्रभाव डाला है। हिन्दू-मुस्लिम समुदायों में तनाव की स्थिति कुछ हद तक बहुत समय से बनी हुई है।

गंगा नदी

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

गंगा वाराणसी की जीवनरेखा।

भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा करीब २,५२५ किलोमीटर की दूरी तय कर गोमुख से गंगासागर तक जाती है। इस पूरे रास्ते में गंगा उत्तर से दक्षिण की ओर यानि उत्तरवाहिनी बहती है।[61] केवल वाराणसी में ही गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है। यहां लगभग ८४ घाट हैं। ये घाट लगभग ६.५ किमी लं‍बे तट पर बने हुए हैं। इन ८४ घाटों में पांच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से 'पंचतीर्थी' कहा जाता है। ये हैं अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिक घाट। अस्सी ‍घाट सबसे दक्षिण में स्थित है जबकि आदिकेशवघाट सबसे उत्तर में स्थित हैं।[65]

घाट

वाराणसी में १०० से अधिक घाट हैं। शहर के कई घाट मराठा साम्राज्य के अधीनस्थ काल में बनवाये गए थे। वर्तमान वाराणसी के संरक्षकों में मराठा, शिंदे (सिंधिया), होल्कर, भोंसले और पेशवा परिवार रहे हैं। अधिकतर घाट स्नान-घाट हैं, कुछ घाट अन्त्येष्टि घाट हैं। कई घाट किसी कथा आदि से जुड़े हुए हैं, जैसे मणिकर्णिका घाट, जबकि कुछ घाट निजी स्वामित्व के भी हैं। पूर्व काशी नरेश का शिवाला घाट और काली घाट निजी संपदा हैं। वाराणसी में अस्सी घाट से लेकर वरुणा घाट तक सभी घाटों की दक्षिण की ओर से क्रमवार सूची[66][67] इस प्रकार से है:

  • अस्सी घाट
  • गंगामहल घाट
  • रीवां घाट
  • तुलसी घाट
  • भदैनी घाट
  • जानकी घाट
  • माता आनंदमयी घाट
  • जैन घाट
  • पंचकोट घाट
  • प्रभु घाट
  • चेतसिंह घाट
  • अखाड़ा घाट
  • निरंजनी घाट
  • निर्वाणी घाट
  • शिवाला घाट
  • गुलरिया घाट
  • दण्डी घाट
  • हनुमान घाट
  • प्राचीन हनुमान घाट
  • मैसूर घाट
  • हरिश्चंद्र घाट
  • लाली घाट
  • विजयानरम् घाट
  • केदार घाट
  • चौकी घाट
  • क्षेमेश्वर घाट
  • मानसरोवर घाट
  • नारद घाट
  • राजा घाट
  • गंगा महल घाट
  • पाण्डेय घाट
  • दिगपतिया घाट
  • चौसट्टी घाट
  • राणा महल घाट
  • दरभंगा घाट
  • मुंशी घाट
  • अहिल्याबाई घाट
  • शीतला घाट
  • प्रयाग घाट
  • दशाश्वमेघ घाट
  • राजेन्द्र प्रसाद घाट
  • मानमंदिर घाट
  • त्रिपुरा भैरवी घाट
  • मीरघाट घाट
  • ललिता घाट
  • मणिकर्णिका घाट
  • सिंधिया घाट
  • संकठा घाट
  • गंगामहल घाट
  • भोंसलो घाट
  • गणेश घाट
  • रामघाट घाट
  • जटार घाट
  • ग्वालियर घाट
  • बालाजी घाट
  • पंचगंगा घाट
  • दुर्गा घाट
  • ब्रह्मा घाट
  • बूँदी परकोटा घाट
  • शीतला घाट
  • लाल घाट
  • गाय घाट
  • बद्री नारायण घाट
  • त्रिलोचन घाट
  • नंदेश्वर घाट
  • तेलिया- नाला घाट
  • नया घाट
  • प्रह्मलाद घाट
  • रानी घाट
  • भैंसासुर घाट
  • राजघाट
  • आदिकेशव या वरुणा संगम घाट

काशी के घाट Archived 2010-01-25 at the Wayback Machine। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र। सुनील झा। अभिगमन तिथि:२९ अप्रैल २०१०[68]

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी में गंगा के तट पर कतारबद्ध घाटों का विहंगम दृश्य

प्रमुख घाट

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

वाराणसी में दशाश्वमेध घाट पर गंगाजी की आरती का दृश्य

दशाश्वमेध घाट काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट ही स्थित है और सबसे शानदार घाट है।इससे संबंधित दो पौराणिक कथाएं हैं: एक के अनुसार ब्रह्मा जी ने इसका निर्माण शिव जी के स्वागत हेतु किया था। दूसरी कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने यहां दस अश्वमेध यज्ञ किये थे। प्रत्येक संध्या पुजारियों का एक समूह यहां अग्नि-पूजा करता है जिसमें भगवान शिव, गंगा नदी, सूर्यदेव, अग्निदेव एवं संपूर्ण ब्रह्मांड को आहुतियां समर्पित की जाती हैं। यहां देवी गंगा की भी भव्य आरती की जाती है।मणिकर्णिका घाटइस घाट से जुड़ी भी दो कथाएं हैं। एक के अनुसार भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी। दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीं मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नहीं पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है?प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अपना दास बना कर उस घाट पर अन्त्येष्टि करने आने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दे दिया था। इस घाट की विशेषता ये है, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती। सिंधिया घाटसिंधिया घाट, जिसे शिन्दे घाट भी कहते हैं, मणिकर्णिका घाट के उत्तरी ओर लगा हुआ है। यह घाट काशी के बड़े तथा सुंदर घाटों में से एक है। इस घाट का निर्माण १५० वर्ष पूर्व १८३० में ग्वालियर की महारानी बैजाबाई सिंधिया ने कराया था तथा और इससे लगा हुआ शिव मंदिर आंशिक रूप से नदी के जल में डूबा हुआ है। इस घाट के ऊपर काशी के अनेकों प्रभावशाली लोगों द्वारा बनवाये गए मंदिर स्थित हैं। ये संकरी घुमावदार गलियों में सिद्ध-क्षेत्र में स्थित हैं। मान्यतानुसार अग्निदेव का जन्म यहीं हुआ था। यहां हिन्दू लोग वीर्येश्वर की अर्चना करते हैं और पुत्र कामना करते हैं। १९४९ में इसका जीर्णोद्धार हुआ। यहीं पर आत्माविरेश्वर तथा दत्तात्रेय के प्रसिद्ध मंदिर हैं। संकठा घाट पर बड़ौदा के राजा का महल है। इसका निर्माण महानाबाई ने कराया था। यहीं संकठा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। घाट के अगल- बगल के क्षेत्र को "देवलोक' कहते हैं।मान मंदिर घाटजयपुर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने ये घाट १७७० में बनवाया था। इसमें नक्काशी से अलंकृत झरोखे बने हैं। इसके साथ ही उन्होंने वाराणसी में यंत्र मंत्र वेधशाला भी बनवायी थी जो दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा के संग पांचवीं खगोलशास्त्रीय वेधशाला है। इस घाट के उत्तरी ओर एक सुंदर बारजा है, जो सोमेश्वर लिंग को अर्घ्य देने के लिये बनवाया गई थी।ललिता घाटस्वर्गीय नेपाल नरेश ने ये घाट वाराणसी में उत्तरी ओर बनवाया था। यहीं उन्होंने एक नेपाली काठमांडु शैली का पगोडा आकार गंगा-केशव मंदिर भी बनवाया था, जिसमें भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। इस मंदिर में पशुपतेश्वर महादेव की भी एक छवि लगी है।असी घाटअसी घाट असी नदी के संगम के निकट स्थित है। इस सुंदर घाट पर स्थानीय उत्सव एवं क्रीड़ाओं के आयोजन होते रहते हैं। ये घाटों की कतार में अंतिम घाट है। ये चित्रकारों और छायाचित्रकारों का भी प्रिय स्थल है। यहीं स्वामी प्रणवानंद, भारत सेवाश्रम संघ के प्रवर्तक ने सिद्धि पायी थी। उन्होंने यहीं अपने गोरखनाथ के गुरु गंभीरानंद के गुरुत्व में भगवान शिव की तपस्या की थी। अन्यआंबेर के मान सिंह ने मानसरोवर घाट का निर्माण करवाया था। दरभंगा के महाराजा ने दरभंगा घाट बनवाया था। गोस्वामी तुलसीदास ने तुलसी घाट पर ही हनुमान चालीसा[69] और रामचरितमानस की रचना की थी। बचरज घाट पर तीन जैन मंदिर बने हैं और ये जैन मतावलंबियों का प्रिय घाट रहा है। १७९५ में नागपुर के भोसला परिवार ने भोसला घाट बनवाया। घाट के ऊपर लक्ष्मी नारायण का दर्शनीय मंदिर है। राजघाट का निर्माण लगभग दो सौ वर्ष पूर्व जयपुर महाराज ने कराया।

मंदिर

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

रामनगर, वाराणसी में दुर्गा मंदिर

वाराणसी मंदिरों का नगर है। लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर तो मिल ही जायेगा। ऐसे छोटे मंदिर दैनिक स्थानीय अर्चना के लिये सहायक होते हैं। इनके साथ ही यहां ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो वाराणसी के इतिहास में समय समय पर बनवाये गये थे। इनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, ढुंढिराज गणेश, काल भैरव, दुर्गा जी का मंदिर, संकटमोचन, तुलसी मानस मंदिर, नया विश्वनाथ मंदिर, भारतमाता मंदिर, संकठा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर प्रमुख हैं।[70]

काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसे कई बार स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है,[71] अपने वर्तमान रूप में १७८० में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्करद वारा बनवाया गया था। ये मंदिर गंगा नदी के दशाश्वमेध घाट के निकट ही स्थित है। इस मंदिर की काशी में सर्वोच्च महिमा है, क्योंकि यहां विश्वेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इस ज्योतिर्लिंग का एक बार दर्शनमात्र किसी भी अन्य ज्योतिर्लिंग से कई गुणा फलदायी होता है। १७८५ में तत्कालीन गवर्नर जनरल वार्रन हास्टिंग्स के आदेश पर यहां के गवर्नर मोहम्मद इब्राहिम खां ने मंदिर के सामने ही एक नौबतखाना बनवाया था। १८३९ में पंजाब के शासक पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह इस मंदिर के दोनों शिखरों को स्वर्ण मंडित करवाने हेतु स्वर्ण दान किया था। २८ जनवरी १९८३ को मंदिर का प्रशासन उत्तर प्रदेश सरकार नेल लिया और तत्कालीन काशी नरेश डॉ॰विभूति नारायण सिंह की अध्यक्षता में एक न्यास को सौंप दिया। इस न्यास में एक कार्यपालक समिति भी थी, जिसके चेयरमैन मंडलीय आयुक्त होते हैं।[72]

इस मंदिर का ध्वंस मुस्लिम मुगल शासक औरंगज़ेब ने करवाया था और इसके अधिकांश भाग को एक मस्जिद में बदल दिया। बाद में मंदिर को एक निकटस्थ स्थान पर पुनर्निर्माण करवाया गया।

दुर्गा मंदिर, जिसे मंकी टेम्पल भी कहते हैं; १८वीं शताब्दी में किसी समय बना था। यहां बड़ी संख्या में बंदरों की उपस्थिति के कारण इसे मंकी टेम्पल कहा जाता है। मान्यता अनुसार वर्तमाण दुर्गा प्रतिमा मानव निर्मित नहीं बल्कि मंदिर में स्वतः ही प्रकट हुई थी। नवरात्रि उत्सव के समय यहां हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। इस मंदिर में अहिन्दुओं का भीतर प्रवेश वर्जित है।

इसका स्थापत्य उत्तर भारतीय हिन्दू वास्तु की नागर शैली का है। मंदिर के साथ ही एक बड़ा आयताकार जल कुण्ड भी है, जिसे दुर्गा कुण्ड कहते हैं। मंदिर का बहुमंजिला शिखर है[71] और वह गेरु से पुता हुआ है। इसका लाल रंग शक्ति का द्योतक है। कुण्ड पहले नदी से जुड़ा हुआ था, जिससे इसका जल ताजा रहता था, किन्तु बाद में इस स्रोत नहर को बंद कर दिया गया जिससे इसमें ठहरा हुआ जल रहता है और इसका स्रोत अबव र्शषआ या मंदिर की निकासी मात्र है। प्रत्येक वर्ष नाग पंचमी के अवसर पर भगवान विष्णु और शेषनाग की पूजा की जाती है। यहां संत भास्कपरानंद की समाधि भी है। मंगलवार और शनिवार को दुर्गा मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ रहती है। इसी के पास हनुमान जी का संकटमोचन मंदिर है। महत्ता की दृष्टि से इस मंदिर का स्थागन काशी विश्वभनाथ और अन्नेपूर्णा मंदिर के बाद आता है।

संकट मोचन मंदिर राम भक्त हनुमान को समर्पैत है और स्थानीय लोगों में लोकप्रिय है। यहां बहुत से धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन वार्षिक रूप से होते हैं। ७ मार्च २००६ को इस्लामी आतंकवादियों द्वारा शहर में हुए तीन विस्फोटों में से एक यहां आरती के समय हुआ था। उस समय मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ थी। साथ ही एक विवाह समारोह भी प्रगति पर था।[73]

व्यास मंदिर, रामनगर प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब वेद व्यास जी को नगर में कहीं दान-दक्षिणा नहीं मिल पायी, तो उन्होंने पूरे नगर को श्राप देने लगे।[3] उसके तुरन्त बाद ही भगवान शिव एवं माता पार्वतीएक द पति रूप में एक घर से निकले और उन्हें भरपूर दान दक्षिणा दी। इससे ऋषि महोदय अतीव प्रसन्न हुए और श्राप की बात भूल ही गये।[3] इसके बाद शिवजी ने व्यासजी को काशी नगरी में प्रवेश निषेध कर दिया।[3] इस बात के समाधान रूप में व्यासजी ने गंगा के दूसरी ओर आवास किया, जहां रामनगर में उनका मंदिर अभी भी मिलता है।[3]

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में नया विश्वनाथ मंदिर बना है, जिसका निर्माण बिरला परिवार के राजा बिरला ने करवाया था।[74] ये मंदिर सभी धर्मों और जाति के लोगों के लिये खुला है।

कला एवं साहित्य

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

बी.एच.यू में नये विश्वनाथ मंदिर का स्थापत्य

वाराणसी की संस्कृति कला एवं साहित्य से परिपूर्ण है। इस नगर में महान भारतीय लेखक एवं विचारक हुए हैं, कबीर, रविदास, तुलसीदास जिन्होंने यहां रामचरितमानस लिखी, कुल्लुका भट्ट जिन्होंने १५वीं शताब्दी में मनुस्मृति पर सर्वश्रेष्ठ ज्ञात टीका यहां लिखी[75] एवं भारतेन्दु हरिशचंद्र और आधुनिक काल के जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, मुंशी प्रेमचंद, जगन्नाथ प्रसाद रत्नाकर, देवकी नंदन खत्री, हजारी प्रसाद द्विवेदी, तेग अली, क्षेत्रेश चंद्र चट्टोपाध्याय, वागीश शास्त्री, बलदेव उपाध्याय, सुदामा पांडेय (धूमिल) एवं विद्या निवास मिश्र और अन्य बहुत।

यहां के कलाप्रेमियों और इतिहासवेत्ताओं में राय कृष्णदास, उनके पुत्र आनंद कृष्ण, संगीतज्ञ जैसे ओंकारनाथ ठाकुर[76], रवि शंकर, बिस्मिल्लाह खां, गिरिजा देवी, सिद्देश्वरी देवी, लालमणि मिश्र एवं उनके पुत्र गोपाल शंकर मिश्र, एन राजम, राजभान सिंह, अनोखेलाल,[77] समता प्रसाद[78], कांठे महाराज, एम.वी.कल्विंत, सितारा देवी, गोपी कृष्ण, कृष्ण महाराज, राजन एवं साजन मिश्र, महादेव मिश्र एवं बहुत से अन्य लोगों ने नगर को अपनी ललित कलाओं के कौशल से जीवंत बनाए रखा। नगर की प्राचीन और लोक संस्कृति की पारंपरिक शैली को संरक्षित किये ढेरों उत्सव और त्यौहार यहां मनाये जाते हैं। रात्रिकालीन, संगीत सभाएं आदि संकटमोचन मंदिर, होरी, कजरी, चैती मेला, बुढ़वा मंगल यहां के अनेक पर्वों में से कुछ हैं जो वार्षिक रूप से सभी जगहों से पर्यटक एवं शौकीनों को आकर्षित करते हैं।

महान शल्य चिकित्सक सुश्रुत, जिन्होंने शल्य-क्रिया का संस्कृत ग्रन्थ सुश्रुत संहिता लिखा था; वाराणसी में ही आवास करते थे।[79]

सरस्वती भवन

रामनगर किले में स्थित सरस्वती भवन में दुर्लभ पांडुलिपियों, विशेषकर धार्मिक ग्रन्थों का दुर्लभ संग्रह सुरक्षित है। यहां गोस्वामी तुलसीदास की एक पांडुलिपि की मूल प्रति भी रखी है।[3] यहां मुगल मिनियेचर शैली में बहुत सी पुस्तकें रखी हैं, जिनके सुंदर आवरण पृष्ठ हैं।[3]

जनसांख्यिकी

वाराणसी का धार्मिक समीकरण ██ हिंदू (70.11%)██ मुसलमान (28.82%)██ अन्य (1.09%)

वाराणसी शहरी क्षेत्र की २००१ के अनुसार जनसंख्या १३,७१,७४९ थी; और लिंग अनुपात ८७९ स्त्रियां प्रति १००० पुरुष था।[80] वाराणसी नगर निगम के अधीनस्थ क्षेत्र की जनसंख्या ११,००,७४८[81] जिसका लिंग अनुपात ८८३ स्त्रियां प्रति १००० पुरुष था।[81] शहरी क्षेत्र में साक्षरता दर ७७% और निगम क्षेत्र में ७८% थी।[81] निगम क्षेत्र के लगभग १,३८,००० लोग झुग्गी-झोंपड़ियों में रहते हैं।[82] वर्ष २००४ की अपराध दर १२८.५ प्रति १ लाख थी; जो राज्य की दर ७३.२ से अधिक है, किन्तु राष्ट्रीय अपराध दर १६८.८ से कहीं कम है।[83]

परिवहन

वाराणसी भारत के मुख्य बड़े शहरों जैसे नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, पुणे, अहमदाबाद, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन और जयपुर आदि से वायु, सड़क एवं रेल यातायात द्वारा भली-भांति जुड़ा हुआ है। ये दिल्ली से ७७६ कि.मी दूरी पर है। वाराणसी की अधिकांश शहरों से दूरी में अस्तित्त्व का प्रमुख कारण इसका इन शहरों के बीच एक यातायात केन्द्र के रूप में जुड़ा होना है। प्राचीन समय से ही शहर तक्षिला, गाज़ीपुर, पाटलिपुत्र, वैशाली, अयोध्या, गोरखपुर एवं आगरा आदि से जुड़ा रहा है।

वायु

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

बाबतपुर विमानक्षेत्र (लाल बहादुर शास्त्री विमानक्षेत्र) शहर के केन्द्र से २५ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है और चेन्नई, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, खजुराहो, बैंगकॉक, बंगलुरु, कोलंबो एवं काठमांडु आदि देशीय और अंतर्राष्ट्रीय शहरों से वायु मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। अधिकांश प्रमुख देशीय विमान सेवाओं में इंडियन एयरलाइंस, किंगफिशर एयरलाइंस, एयर इंडिया, स्पाइसजेट एवं एलाइंस एयर द्वारा वायु सेवाएँ यहां से संचालित होती है।

रेल

बनारस की प्रथम रेलवे लाइन दिसम्बर, १८६२ में ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने कोलकाता से बनवायी थी।[84]उत्तर रेलवे के अधीन वाराणसी जंक्शन एवं पूर्व मध्य रेलवे के अधीन मुगलसराय जंक्शन नगर की सीमा के भीतर दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। इनके अलावा नगर में १६ अन्य छोटे-बड़े रेलवे स्टेशन हैं।

सड़क

मौर्य साम्राज्य काल में वाराणसी तक्षिला शहर से इकलौती सड़क द्वारा जुड़ा हुआ था। बाद में इस सड़क का पुनरोद्धार हुआ और शेरशाह सूरी ने १६वीं शताब्दी में इसे विस्तृत कर काबुल से रंगून तक बढ़ाया, जिसे ग्रैंड ट्रंक रोड कहा जाता है। एन.एच.-२ दिल्ली-कोलकाता राजमार्ग वाराणसी नगर से निकलता है। इसके अलावा एन.एच.-७, जो भारत का सबसे लंबा राजमार्ग है, वाराणसी को जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद, बंगलुरु, मदुरई और कन्याकुमारी से जोड़ता है।

सार्वजनिक यातायात

ऑटो रिक्शा एवं साइकिल रिक्शा वाराणसी शहर के स्थानीय प्रचलित यातायात साधन हैं। बाहरी क्षेत्रों में नगर-बस सेवा में मिनी-बसें चलती हैं। छोटी नावें और छोटे स्टीमर गंगा नदी पार करने हेतु उपलब्ध रहते हैं।

पर्यटन

संभवतः अपनी अनुपम और अद्वितीय संस्कृति के कारण वाराणसी संसार भर में पर्यटकों का आकर्षण बना हुआ है। शहर में अनेक ३, ४ और ५ सितारा होटल हैं। इसके अलावा पश्चिमी छात्रों और शोधकर्ताओं के लिये पर्याप्त और दक्ष रहन सहन व्यवस्था है। यहां के स्थानीय खानपान के अलावा लगभग सभी प्रकार की खानपान व्यवस्था शहर में उपलब्ध है। शहर के लोगों का स्व्भाव भी सत्कार से परिपूर्ण है। वाराणसी बनारसी रेशम की साड़ियों और पीतल के सामान के लिये भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा उच्च कोटि के रेशमी वस्त्र, कालीन, काष्ठ शिल्प, भित्ति सज्जा एवं प्रदीपन आदि के सामान के साथ-साथ बौद्ध एवं हिन्दू देवी-देवताओं के मुखौटे विशेशः आकर्षण रहे हैं। मुख्य खरीदारी बाजारों में चौक, गोदौलिया, विश्वनाथ गली, लहुराबीर एवं ठठेरी बाजार हैं।[10] अस्सी घाट शहर के डाउनटाउन इलाके गोदौलिया और युवा संस्कृति से ओतप्रोत बी.एच.यू के बीच एक मध्यस्थ स्थान है, जहां युवा, विदेशी और आवधिक लोग आवास करते हैं।

प्रचलित संस्कृति में

वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?

  • चलचित्र बनारस – ए मिस्टिक लव स्टोरी (२००६), वाराणसी के इतिहास और उसके भारतीय परंपराओं में स्थान पर आधारित हिन्दी चलचित्र है।
  • बिभूतिभूषण बंधोपाध्याय के बांग्ला उपन्यास अपराजितो में, बनारस के आंशिक दृश्य हैं, जिन्हें बाद में सत्यजित राय द्वारा अपनी फिल्म द अपु ट्राइलॉजी में भी दिखाया गया है। इस फिल्म के कुछ भाग बनारस में ही शूट किये गए हैं।
  • आयन मैकडोनाल्ड के उपन्यास रिवर ऑफ गॉड्स की पृष्ठभूमि के कुछ अंश बनारस के हैं।
  • सत्यजित राय की फिल जोइ बाबा फेलुनाथ लगभग सारी बनारस में शूट हुई थी।
  • १९७८ की सुपरहिट हिन्दी चलचित्र डॉन का गाना खईके पान बनारस वाला अमिताभ बच्चन के साथ बनारसी पान की प्रशंसा में गाया गया था और बहुत लोकप्रिय हुआ था।
  • पंडित विकास महाराज के संयोजन "गंगा" पर बनी डॉक्युमेंट्री फिल्म होलीवॉटर यहीं बनी थी।
  • कृष्ण दास द्वारा गाया गया गीत "काशी विश्वनाथ गंगे" सीडी ब्रॅथ ऑफ द हार्ट में निकला था[85]
  • जेयॉफ डायर की २००९ में निकली पुस्तक: जैफ इन वेनिस, डेथ इन वाराणसी आधी बनारस पर लिखी है।
  • विजय सिंह के उपन्यास जय गंगा, इन सर्च ऑफ द रिवर गॉडेस एवं क्लासिकल चलचित्र जय गंगा आंशिक रूप सए बनारस पर बनी हैं। इसमें यहां के घाटों के अच्छे दृश्य हैं।

वर्तमान काल की प्रमुख विभूतियाँ

  • मदन मोहन मालवीय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक
  • लाल बहादुर शास्त्री, भारत के पूर्व प्रधान मंत्री
  • बिस्मिल्लाह खां, शहनाईवादक, भारत रत्न
  • कृष्ण महाराज, तबला वादक, पद्म विभूषण
  • रवि शंकर, सितारवादक, भारत रत्न
  • सिद्धेश्वरी देवी, खयालगायिका
  • विकाश महाराज, सरोद के महारथी
  • नैना देवी, खयाल गायिका
  • भगवान दास, भारत रत्न
  • समता प्रसाद (गुदई महाराज) तबला वादक, पद्मश्री
  • जय शंकर प्रसाद - हिंदी साहित्यकार)
  • प्रेमचंद - हिंदी साहित्यकार
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र - हिंदी साहित्यकार

इन्हें भी देखें

  • वाराणसी ज़िला

बाहरी कड़ियाँ

  • वाराणसी जिला - आधिकारिक जालस्थल
  • वाराणसी वैभव
  • वाराणसी शहर का क्षेत्रफल कितना है? - vaaraanasee shahar ka kshetraphal kitana hai?
    विकियात्रा पर Varanasi के लिए यात्रा गाइड
  • वाराणसी के चित्र Archived 2012-08-11 at the Wayback Machine
  • उत्तर प्रदेश पर्यटन जालस्थल
  • होलीवॉटर – वाराणसी
  • सद्गुरु प्राकट्य धाम, कबीर बाग, लहरतारा, वाराणसी
  • वाराणसी मानचित्र Archived 2010-03-04 at the Wayback Machine सभी मुख्य मंदिर एवं घाट चिह्नित
  • विजय सिंह की फीचर फिल्म 'जय गंगा' से शॉट्स

सन्दर्भ

  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 23 अप्रैल 2017 at the Wayback Machine," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975
  3. ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ क ख ग घ ङ च छ ज झ मित्रा, स्वाति (२००२). गुड अर्थ वाराणसी सिटी गाइड. आयशर गुडार्थ लि. पृ॰ २१६. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187780045.
  4. ↑ अ आ लैनोय, रिचर्ड (अक्टूबर, १९९९). बनारस-सीन फ़्रॉम विदिन. वॉशींग्टन प्रेस विश्वविद्यालय. ब्लैक फ्लैप. OCLC 42919796. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 029597835X.
  5. "वाराणसी". ब्रिटैनिका विश्वकोश. अभिगमन तिथि ३ June २००८.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 जनवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जनवरी 2022.
  7. कन्निंघम, एलेक्ज़ेन्डर (२००२) [१९२४]. एंक्शियंट जियोग्राफी ऑफ इण्डिया. मुंशीराम मनोहरलाल. पपृ॰ १३१-१४०. OCLC 54827171. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8121510643.
  8. जूलियन, एम. लाइफ एण्ड पिल्ग्रिमेज ऑफ ह्वेन त्सांग. पपृ॰ ६, १३३, २, ३५४.
  9. "उत्तर प्रदेश पर्यटन - वाराणसी". पर्यटन विभाग - उत्तर प्रदेश सरकार. अभिगमन तिथि ५ जनवरी २००९.
  10. ↑ अ आ इ ई पर्यटन विभाग, भारत सरकार (मार्च, २००७). वाराणसी - एक्स्प्लोर इण्डिया मिलेनियम ईयर. प्रेस रिलीज़.
  11. अथर्व वेद (४/७/१)
  12. काशीखण्ड त्रि.से. पृ. १६१
    इस तीर्थ के संबंध में इतना ही कहा गया है।
  13. पौराणिक साहित्य में असि नदी का नाम वाराणसी की व्युत्पत्ति की सार्थकता दिखलाने को आया है। (अग्नि पु. ३५२०)।
  14. महाभारत ६/१०/३०
  15. (पद्म पुराण, वि.मि. १७५)
  16. (मत्स्य पुराण-कृ.क.त.पृ. ३९)
  17. (जातक ४/११९)
  18. (जातक ४/१५)
  19. जातक, ५/५४, ६/१६५ धम्मपद अट्ठकथा, १/६७
  20. जातक ३/३९
  21. "द रिलीजियस कैपिटल ऑफ हिन्दुइज़्म". बीबीसी. ७ मार्च २००६. अभिगमन तिथि २ अप्रैल २००७.
  22. ↑ अ आ इ उपाध्याय, भगवतशरण (२६). भारत के नगरों की कहानी. राजपाल एंड सन्स. पपृ॰ ७२. डीओआइ:६५७ . ISBN 81-7028-593-3. मूल (अजिल्द) से 2 अक्तूबर 2011 को पुरालेखित. पतितपावनी गंगा के तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। आज से हजारों बरस पहले नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। वे नाटे कद के साँवले लोग शान्ति और प्रेम के पुजारी थे। ....
  23. "ए रिव्यु ऑफ वाराणसी". मूल से 24 सितंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अप्रैल 2010.
  24. हिन्दुस्तान टाइम्स, १० मई, २००७
  25. "वन पर्व". महाभारत. पपृ॰ ८४/१८.
  26. "वन पर्व". महाभारत. पपृ॰ ८२/७७.
  27. "कृ.क.त.". महाभारत. पपृ॰ ७-८.
  28. "खण्ड १". जाबाल उपनिषद.
  29. "३-१६ अध्याय". लिंग पुराण.
  30. अय्यंगर, के.वी. रंगस्वामी (१९४२). कृत्यकल्पतरु के तीर्थ विवेचन काण्ड संपादित. बड़ौदा. पपृ॰ ३९-४०.
  31. ↑ अ आ इ ई उ ऊ वाराणसी वैभव या काशी वैभव काशीविश्वनाथ। दीनदयाल मणि। २७ अगस्त २००९
  32. म्त्स्य पुराण, की मुद्रित प्रति (१८४/५१)
  33. अग्नि पुराण (३५२०)
  34. अय्यंगर, के.वी. रंगस्वामी (१९४२). कृत्यकल्पतरु. बड़ौदा. पपृ॰ ३९, पंक्ति ४ से ९ तक.
  35. जातक कथाएं ३/१८१, ५/४१, ३/३०४, ३६१
  36. "भाग-६". केंब्रिज हिस्ट्री ऑॅफ इंडिया. पपृ॰ १४.
  37. अल्टेकर, ए॰एस. (१९३९). हिस्ट्री ऑॅफ बनारस. पपृ॰ १२.
  38. वाराणसी वैभव वाराणसी वैभव Archived 2010-05-15 at the Wayback Machine पृ. २६८
  39. महाभारतस कृ.क.त. पृ. २४१
  40. वाराणसी की नदियाँ। काशीविश्वनाथ। गुरुवार, २७ अगस्त २००९
  41. "वाराणसी पर्यटन". DelhiTourism.com. मूल से 18 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ अगस्त २००६.
  42. वाराणसी के घटते जल स्तर पर चिंता। समय लाईव। २९ अप्रैल २०१०
  43. "वाराणसी". मूल से 9 जुलाई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २५ मार्च २०१०.
  44. माइक डैविस: प्लैनेट देर स्लम्स, अस्सोज़िएशन ए, बर्लिन, २००७, पृ.१९६
  45. "वाराणसी". टूरिज़्म ऑफ इंडिया. हिन्दुनेट इन्का. २००३. पपृ॰ २. मूल से 30 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ७ मार्च २००७. all along the shore lay great fleets of vessels laden with rich merchandise. From the looms of Benaras went forth the most delicate silks, that adorned the halls of St. James and of Versailles, and in the bazaars, the muslins of Bengal and sabres of Oude were mingled with the jewels of Golconda and the shawls of Cashmere
  46. भार्गव, गोपाल. "स्कीम फ़ॉर वाराणसी". द ट्रिब्यून.
  47. "वेस्ट जनरेशन एण्ड कंपोज़ीशन". मैनेजमेंट ऑफ म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट्स. योजना विभाग, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड. मूल से 17 जुलाई 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ अगस्त २००६.
  48. "स्टेटस ऑफ लैंडफ़िल साइट्स इन ५९ सिटीज़". मैंनेजमेंट ऑफ म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट्स. योजना विभाग, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड. मूल से 17 जुलाई 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ अगस्त २००६.
  49. "यूपी पुलिस इज़ डिवाइडेड इनटू फ़ौलोइंग ज़ोन्स एण्ड रेन्जेज़ & डिस्ट्रिक्ट्स". उत्तर प्रदेश पुलिस. एन.आई.सी. मूल से 24 मई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ अगस्त २००६.
  50. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 24 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 दिसंबर 2014.
  51. "उ.प्र.असेम्बली सीटें". मूल से 5 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मई 2010.
  52. "Banaras Hindu University". SurfIndia. मूल से 25 मई 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अगस्त 2006.
  53. आचार्य बलदेव उपाध्याय, काशी की पांडित्य परंपरा। विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी। १९८३
  54. "[[सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज]]". वाराणसी सिटी. अभिगमन तिथि १८ अगस्त २००६.
  55. "एजुकेश्नल इंस्टीट्यूट्स इन वाराणसी". वाराणसी सिटी. अभिगमन तिथि १८ अगस्त २००६.
  56. "दारुल-उलूम जामिया रशीदिया". टीपू सुल्तान एडवांस्ड स्टडी एंड रिसर्च सेंटर (TSASRC). मूल से 18 मार्च 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ७ मार्च २००७.
  57. "ऑस्टिन पिक: अबोर्ड द महाबोधि एक्स्प्रेस". मूल से 9 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २८दिसम्बर, २००८.
  58. कुमार, राज (२००३). एसेज़ ऑन इण्डियन म्यूज़िक (हिस्ट्री एण्ड कल्चर सीरीज़). डिस्कवरी पब्लिशिंग हाउस. पृ॰ २००. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8171417191.
  59. शोभना नारायण (६ मई २००८). "पं.किशन महाराज: एण्ड ऑफ एन एरा". द ट्रिब्यून.
  60. "समता प्रसाद". kippen.org. मूल से 7 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ मई २००९.
  61. ↑ अ आ शिव की नगरी Archived 2009-09-12 at the Wayback Machine- वाराणसी। अभिगमन तिथि:२९ अप्रैल २०१०
  62. द्वादश ज्योतिर्लिंगानि । संस्कृत अभिलेख। सुब्रह्मण्यम गणेश, आशीष चंद्रा
  63. शिव के बारह ज्योतिर्लिंग
  64. समणसुतं[मृत कड़ियाँ]
  65. घाटों के सौंदर्य के संबंध में प्रख्यात कला समीक्षक श्री ई. बी. हैवेल ने कहा है -- ये घाट छः मील की परिधि में फैले प्रेक्षागृह की तरह शोभायमान होते हैं। प्रातःकाल, सुनहरी धूप में चमकते गंगा तट के मंदिर, मंत्रोच्चार और गायत्री जाप करते ब्राह्मणों और पूजा- पाठ में लीन महिलाओं के स्नान- ध्यान के क्रम के साथ ही दिन चढ़ता जाता है। पुष्प और पूजन सामग्रियों से सजे गंगा तट तथा पानी में तैरते फूलों की शोभा मनमोहक होती है।: काशी के घाट Archived 2010-01-25 at the Wayback Machine
  66. काशी के घाट।इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र।सुनील झा।अभिगमन तिथि:२९ अप्रैल, २०१०
  67. बनारस : हर घाट का निराला है ठाठ।जागयणयात्रा
  68. बनारस : हर घाट का निराला है ठाठ। जागयणयात्रा
  69. काशी : शिव की नगरी। शब्दनगरी। १७ जुलाई २०१८। अभिगमन तिथि:८ अगस्त २०१८
  70. शहर मंदिरों का। जागरण यात्रा। अभिगमन तिथि:२९ अप्रैल, २०१०
  71. ↑ अ आ "द रिलीजियस रूट". द टाइम्स ऑफ इंडिया. ३ अप्रैल २००३. अभिगमन तिथि ४ दिसम्बर २००८.
  72. "श्री काशिविश्वनाथ मंदिर, वाराणसी". राष्ट्रीय सूचना केन्द्र, भारत सरकार. अभिगमन तिथि ४ फ़रवरी २००७.
  73. सेनगुप्ता, सौमिनी (९ मार्च २००६). "इंडियन सिटी शेकन बाय टेम्पल बॉम्बिंग्स". द न्यू यॉर्क टाइम्स. अभिगमन तिथि ४ दिसम्बर २००८.
  74. "बिड़ला मंदिर (नया विश्वनाथ मंदिर)". मूल से 30 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ४ फ़रवरी २००७.
  75. द इण्डियन एम्पायर, द इम्पीरियल गैज़ेटियर ऑफ इण्डिया, १९०९, संस्क.द्वितीय, पृ.२६२
  76. "ओंकारनाथ ठाकुर". कल्चरोपीडिया. मूल से 9 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ मई २००९.
  77. [www.parrikar.org/vpl/profiles/anokhelal_profile.pdf "अनोखेलाल मिश्र"] (PDF). राजन पार्रिकर म्यूज़िक आर्काइव. अभिगमन तिथि १ मई २००९.
  78. "समता प्रसाद". kippen.org. मूल से 7 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ मई २००९.
  79. सुश्रुत द इम्पीरियल गैज़ेटियर ऑफ इण्डिया, १९०९, संस्क.द्वितीय, पृ.५७०
  80. "अर्बन एग्लोमरेशंस/२००१ में १० लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर". भारत की जनगणना-२००१ (प्रावधानिक). महालेखाधिकारी कार्यालय, भारत. २५ जुलाई २००१. अभिगमन तिथि १८ अगस्त २००६.
  81. ↑ अ आ इ "जनसंख्या, आयु समूह ०–६ एवं लिंगानुसार साक्षर – शहरी एग्लोमरेशंस /टाउन: २००१" (पीडीएफ़). भारत की जनगणना- २००१ (प्रावैधानिक). महालेखाधिकारी कार्यालय, भारत. पपृ॰ ५३-५४. अभिगमन तिथि १७ अगस्त २००६.
  82. "दस लाख प्लस नगरों में झुग्गी-झोंपड़ी जनसंख्या (नगर पालिकाएं): भाग-ए". =भारत की जनगणना- २००१ (प्रावैधानिक). महालेखाधिकारी कार्यालय, भारत. २२ जनवरी २००२. अभिगमन तिथि ८ अगस्त २००६.
  83. राष्ट्रीय अपराध आंकड़े ब्यूरो (२००४). "क्राइम इन मेगा सिटीज़" (PDF). क्राइम इन इण्डिया - २००४. गृह मंत्रालय, भारत सरकार. पपृ॰ १५८. मूल (PDF) से 14 जून 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ अगस्त २००६.
  84. डायरीज़ ऑफ जॉर्ज टर्नबुल (मुख्य अभियंता, ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी), दक्षिण एशियाई अध्ययन केन्द्र, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड
  85. "टैक्स्ट एण्ड इन्फ़ॉर्मेशन". मूल से 30 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २४ जून २००७.

सम्बन्धित ग्रन्थ

  • बृहदारण्यक उपनिषद, अध्याय २, खण्ड १, श्लोक-१
  • कौषीतकी उपनिषद, अध्याय ४, खण्ड-१
  • * "अध्याय २, ब्राह्मण १, वर्ग १". वृहदारण्यक उपनिषद. गोरखपुर: गीताप्रेस. पपृ॰ २/१/१. स: होवाचाजातशत्रु: सहस्रमेतस्यां वाचि दद्योजनको जनक इति वै जना: धावन्ति:।
  • "१३". शतपथ ब्राह्मण (संस्कृत में). पपृ॰ ५/४/१. सत्राजित ईजे काश्यस्याश्वमादाय ततो हैतदवीक् काश्योऽग्नीनदधत। आत्तसोमपाया: इति वदन्त:॥
  • पाणिनि के अष्टाध्यायी ४/२/११*
  • ऋग्वेद १/१३०/*
  • रघुवंश ७/६-१० एवं कुमारसंभवम् ७/५/य
  • नाट्य शास्त्र: पृ. ३६-३०-४*
  • "काशी खण्ड". शिव पुराण,. गोरखपुर: गीताप्रेस. पपृ॰ श्लोक: १००/२००, १००/७३, १००/७६-९३.
  • "काशी दर्पण". सनत्कुमार संहिता (संस्कृत में). पपृ॰ ४४.
  • "कृ.कल्प-तरु". लिंग पुराण (संस्कृत में). पपृ॰ १६६, १०९, १२३, १३५, १५६-५७.
  • त्रिस्थली सेतु (संस्कृत में). पपृ॰ २६१-६२.
  • "काशी खण्ड". शिव पुराण (संस्कृत में). पपृ॰ १००/६३-६५ १५, ८४/१०८-११०.
  • "काशी दंपण". ब्रह्मवैवर्त पुराण (संस्कृत में). पपृ॰ १५७.
  • "काशी दपंण". अ.शिव रहस्य. पपृ॰ १५७.
  • "काशी रहस्य". ब्रह्मवैवर्त पुराण (संस्कृत में). पपृ॰ १३/२६-३९, ११/१७-१९, १०/७४-७८, १०/५-७, १०/२८, १०/३२, १०/४०, १०/५१, १०/५६.
  • "कृत कल्पतरु". वामन पुराण (संस्कृत में). पपृ॰ २३७.
  • शुक्ल, वैकुण्ठनाथ. वाराणसी वैभव (संस्कृत में). पपृ॰ १७५-२२७.

टीका टिप्पणी

  • क.    ^ अविमुक्तं समासाद्य तीर्थसेवी कुरुद्वह। दर्शनादेवदेस्य मुच्यते ब्रह्महत्यया ॥
  • ख.    ^ ततो वाराणसीं गत्वा देवमच्र्य वृषध्वजम्। कपिलाऊदमुपस्पृश्य राजसूयफलं लभेत् ॥
  • ग.    ^ भौमानामपि तीर्थनां पुणयत्वे कारणं ॠणु। यथा शरीरस्योधेशा: केचित् पुण्यतमा: समृता:॥
पृथिव्यामुधेशा: केचित् पुण्यतमा: समृता:। प्रभावाध्दभुताहभूमे सलिलस्य च तेजसा।परिग्रहान्युनीमां च तीर्थानां पुण्यता स्मृता॥
  • घ.    ^ अविमुक्तं वै देवानां देवयजनं सर्वेषां भूतानां ब्रह्मसदनमत्र हि जन्तो:
प्राणोषूत्क्रममाणेषु रुद्रस्ताखं ब्रह्म व्याचष्टे येना सावमृततीभूत्वामोक्षीभवती तस्मादविमुक्तमेव निषेविताविमुक्तं न विमुंचेदेवमेवैतद्याज्ञवल्क्यः।
  • च.    ^ अविमुक्तं समासाद्य तीर्थसेवी कुरुद्वह। :दर्शनादेवदेस्य मुच्यते ब्रह्महत्यया॥
  • छ.    ^ ततो वाराणसीं गत्वा देवमच्र्य वृषध्वजम्। कपिलाऊदमुपस्पृश्य राजसूयफलं लभेत् ॥
  • झ.    ^ द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम्॥परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति। कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥ अर्थात:सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्री सोमनाथ, श्रीशैल पर श्री मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में श्री महाकाल, ओंकारेश्वर, अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्री घृष्णेश्वर, को स्मरण करें। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण-मात्र से मिट जाता है।

वाराणसी कितने किलोमीटर में फैला है?

वाराणसी शहर उत्तरी भारत की मध्य गंगा घाटी में, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर गंगा नदी के बायीं ओर के वक्राकार तट पर स्थित है। यहां वाराणसी जिले का मुख्यालय भी स्थित हैवाराणसी शहरी क्षेत्र — सात शहरी उप-इकाइयों का समूह है और ये ११२.२६ वर्ग कि॰मी॰ (लगभग ४३ वर्ग मील) के क्षेत्र फैला हुआ है

वाराणसी का पुराना नाम कौन है?

वाराणसी का मूल नगर काशी था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

वाराणसी जिले में कुल कितने गांव हैं?

यह तहसील वाराणसी जिला, उत्तर प्रदेश में स्थित है। 2011 में हुई भारत की जनगणना के अनुसार इस तहसील में 901 गांव हैं

बनारस की मशहूर चीज़ क्या है?

चटपटी चाट के लिए जहां काशी चाट भंडार, अस्सी के भौकाल चाट, दीना चाट भंडार और मोंगा आदि काफी लोकप्रिय है, वहीं, ठठेरी बाजार की ताजी और रसभरी मिठाइयों को दुनियाभर में पसंद किया जाता है. अगर आपको दूध, दही और मलाई रास आती है तो बनारस जाकर 'पहलवान की लस्सी' जरूर पिएं क्योंकि ऐसी लस्सी कहीं और नहीं मिलने वाली.