व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि क्या है? - vyaapak paramaanu pareekshan nishedh sandhi kya hai?

वियना में न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनसजी) के साथ भारतीय अधिकारियों की बैठक में अब भी असहमतियाँ बरकरार हैं.

ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में लगातार दूसरे दिन चल रही बातचीत में कोई ठोस सहमति नहीं बन सकी है.

एनएसजी के छह सदस्य देश भारत को परमाणु ईंधन उपलब्ध कराए जाने के मामले पर अमरीका के रुख़ से सहमत नहीं हैं और उनका कहना रहा है कि भारत को परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) और व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर किए बगैर परमाणु ईंधन नहीं उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

वियना में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन का कहना है कि भारतीय विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी की घोषणा के बाद माहौल थोड़ा बेहतर हुआ है, मुखर्जी ने कहा है कि परमाणु परीक्षणों पर भारत ने स्वेच्छा से जो रोक लगा रखी है वह जारी रहेगी और किसी अन्य देश को परमाणु जानकारी देने का सवाल ही नहीं है.

उन्होंने कहा, "हम किसी भी हथियारों की होड़ में शामिल नहीं हैं. हम परमाणु हथियारों को पहले इस्तेमाल न करने की अपनी नीति पर भी क़ायम हैं."

इन छह देशों के प्रतिनिधियों का कहना है कि समझौते के मसौदे में यह बात स्पष्ट शब्दों में शामिल होनी चाहिए कि अगर भारत परमाणु परीक्षण न करने के अपने वादे को तोड़ता है तो उसके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

इन छह देशों में आयरलैंड, ऑस्ट्रिया, न्यूज़ीलैंड और स्विट्ज़रलैंड जैसे देश शामिल हैं जो संवेदनशील परमाणु टेक्नॉलॉजी को लेकर अब भी काफ़ी आशंकाओं का इज़हार कर रहे हैं.

पहले की दिन की बैठक में नतीजा न निकलने के बाद अमरीका की ओर से एक संशोधित मसौदा सदस्य देशों के सामने रखा गया है, बैठक के दूसरे और अंतिम दिन इस पर जमकर बहस हो रही है.

सिद्धार्थ वरदराजन कहते हैं, "फ़ासले कम तो हुए हैं लेकिन पूरी तरह ख़त्म नहीं हुए हैं. कूटनयिकों से बातचीत के बाद इस बात के आसार कम ही लग रहे हैं कि मसौदा इस बैठक में पास हो सकेगा."

अगर शुक्रवार की बैठक में समझौता नहीं हो पाता है तो पूरी परमाणु सहयोग संधि ख़तरे में पड़ सकती है. किसी तीसरी बैठक के लिए मसौदा में बड़े संशोधन करने होंगे जो भारत के लिए आसान नहीं होगा.

इस समझौते की वजह से वामपंथी दल पहले ही सरकार से समर्थन वापस ले चुके हैं और अगर इस बैठक में सहमति नहीं बन पाती है तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्थिति काफ़ी जटिल हो जाएगी.

व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) एक बहुपक्षीय संधि है परमाणु विस्फोट परीक्षणों पर वैश्विक प्रतिबंध बाइंडिंग के लिए। इससे अपनाया गया संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 सितंबर 1996 में परन्तु इस संधि को लागु नहीं किया गया क्यूंकि आठ विशिष्ट राज्यों ने अभी तक इस संधि की पुष्टि नहीं की है।

व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि क्या है? - vyaapak paramaanu pareekshan nishedh sandhi kya hai?

व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) एक बहुपक्षीय संधि है जिसकी स्थापना परमाणु विस्फोट परीक्षणों पर वैश्विक प्रतिबंध बाइंडिंग के लिए की गयी थी। इसको संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 सितंबर 1996 अपनाया गया परन्तु इस संधि को लागु नहीं किया गया क्यूंकि आठ विशिष्ट राज्यों ने अभी तक इस संधि की पुष्टि नहीं की है।

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संगठन का उद्देश्य है की वह संधि के वस्तु और उद्देश्य को प्राप्त करे, ताकि सुनिश्चित कर सके इसके प्रावधानों के कार्यान्वयन को, उनके सहित जो संधि के साथ अनुपालन के अंतर्राष्ट्रीय सत्यापन है, और प्रदान कर सके एक मंच परामर्श और सदस्य राज्यों के बीच सहयोग के लिए।

व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन के अंग (सीटीबीटीओ)

सीटीबीटीओ के दो अंग हैं, प्रीपरेटरी आयोग और अनंतिम तकनीकी सचिवालय (पीटीएस)

  • प्रीपरेटरी आयोग : प्रीपरेटरी आयोग का मुख्ये कार्ये है की वह स्थापित करे एक वैश्विक सत्यापन शासन जैसा संधि में सोचा गया है ताकि यह उस समय तक चालू हो जाएगा जब तक संधि प्रभाव में आएगी।

  • अनंतिम तकनीकी सचिवालय (पीटीएस) : पीटीएस ने अपना काम शुरू किया 17 मार्च 1997 में और 70 देशों में से लगभग 270 सदस्यों का अंतरराष्ट्रीय स्टाफ है। यह मेजबान देशों के साथ सहयोग करते हैं 321 निगरानी करने वाले स्टेशनों और 16 रेडियो नुक्लीड प्रयोगशालाओं के विकास और संचालन में।

सीटीबीटी पर भारत के रुख

भारत का  संधि के साथ अतीत ये थी की भारत ने  किसी भी समय के लिए और  सभी स्थानों पर  सभी तरह के  परमाणु परीक्षण पर  प्रतिबंध लगा लिए थे । भारत ने  संधि का समर्थन कभी नहीं किया लेकिन भारत बातचीत के दौरान संधि का समर्थन कर रहा था। प्रचुरता के  उत्साह की जड़ों का पता 1954 में  प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की  प्रसिद्ध पहल  "ठहराव समझौता " जो परमाणु परीक्षण पर था से  लगाया जा सकता है।

प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का  हस्तक्षेप उस  समय हुआ था जब अमेरिका और सोवियत संघ बढ़ती आवृत्ति के साथ शक्तिशाली परमाणु हथियारों को डेटोनेटिंग केर रहे थे।  प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने  एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एक अंतरराष्ट्रीय गति का निर्माण करने में  जब  सन् 1963 में सीमित परीक्षण प्रतिबंध संधि  हुई थी और उसमें  भारत  शामिल  भी हुआ था।   इस संधि का ये नतीजा हुआ की  वैश्विक स्तर पर विवाद कम हुआ था  लेकिन परमाणु हथियारों की दौड़ को विवश करने के लिए ये संधि भी असफल रही। 

हाल के वर्षों में भारत में सीटीबीटी पर एक सार्वजनिक बहस विचार करना मुश्किल हो गया है। यह बहुत दुखद है कि देश में "ठहराव समझौते" के लिए पथ दरकार किया गया  है परन्तु सन्  1998 के बाद से  परमाणु निरस्त्रीकरण के चैंपियन के लिए  एकतरफा प्रतिबंध  का  अवलोकन  किया जा रहा  है,और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में, "वैश्विक परमाणु अप्रसार प्रयासों को मजबूत बनाने  के लिए  भारत का योगदान  जारी रहेगा।" एक प्रभावी अंतरराष्ट्रीय सत्यापन प्रणाली के निर्माण को प्रेरित करने के अपने प्रयासों के लिए भारत वर्तमान में राजनीतिक या  तकनीकी लाभ प्राप्त करने में असमर्थ है लेकिन  अन्य 183 देशों को ये समर्थन प्राप्त  हुआ हैं।

परमाणु परीक्षण निषेध से क्या तात्पर्य है?

परमाणु अप्रसार संधि (अंग्रेज़ी:नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी) को एनपीटी के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। १ जुलाई १९६८ से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ। अभी इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या १९0 है।

व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि में वर्तमान में कितने देश शामिल हैं?

वर्तमान में 183 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, जिनमें से 164 देशों ने इस संधि का अनुसमर्थन भी कर दिया है।

सीसीटीवी निषेध संधि कब हुई?

व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि (Comprehensive Test Ban Treaty–CTBT), जो परमाणु परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करती है, संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के द्वारा 10 सितंबर, 1996 को पारित हुई

समिति परमाणु परीक्षण संधि क्या है?

सीमित परमाणु परीक्षण संधि ( एल.टी. बी.टी. ) [ Limited Test Ban Treaty ( LTBT ) ] : इस संधि पर 5 अगस्त 1963 को अमेरिका , सोवियत संघ तथा ब्रिटेन द्वारा मास्को में हस्ताक्षर किये गए इसके द्वारा वायुमंडल , बाहरी अंतरिक्ष तथा जल के अंदर परमाणु परीक्षणों को प्रतिबंधित कर दिया गया ।