नए राज्य का निर्माण कैसे होता है? - nae raajy ka nirmaan kaise hota hai?

भारत में नए राज्यों और क्षेत्रों के निर्माण का अधिकार पूरी तरह से भारत की संसद के लिए आरक्षित है। संसद नए राज्यों की घोषणा करके, किसी मौजूदा राज्य से एक क्षेत्र को अलग करके, या दो या दो से अधिक राज्यों या उसके हिस्सों में विलय करके ऐसा कर सकती है।[1] मौजूदा अठाईस राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के अलावा समय के साथ भारत में कई नए राज्यों और क्षेत्रों को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा जाता रहा है।

1. मत्स्य प्रदेश

जिसमें पूर्वी राजस्थान [अलवर]- [भरतपुर]समाहित होगा। राजधानी [भरतपुर] व उच्च न्यायालय [अलवर] बनाया जाएगा।

2. मरुधरा/ मारवाड़ राज्य

मरू प्रदेश उत्तर-पश्चिम भारत का प्रस्तावित राज्य है जो राजस्थान के कुछ भूभागों को मिलाकर बनाने का प्रयास है।[2] प्रस्तावित राज्य में बाडमेर, जैसलमेर, बीकानेर, चुरु, गंगानगर, हनुमानगढ़, जोधपुर, जालोर, पाली, सिरोही झुंझुनू, नागौर और सीकर को शामिल हैं।[2]

राजधानी - आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती की तरह ही देशनोक को विकसित करने की योजना हैं।

  • आसाम
    1. बोडोलैंड
      बोडोलैंड राज्य के लिए आसाम में एक लंबा संघर्ष चला था, जिसके बाद भारत सरकार, आसाम सरकार, तथा बोडो लिबरेशन टाइगर फ़ोर्स के मध्य एक समझौता किया गया। १० फरवरी २००३ को हुए इस समझौते के अनुसार आसाम सरकार के समकक्ष ही बोडोलैंड टेरिटोरियल कॉउंसिल का गठन आसाम के उन ४ जिलों को जोड़कर किया गया, जिनमें ३०८२ बोडो-बाहुल्य वाले ग्राम स्थित थे।[3][4] १३ मई २००३ को इस कॉउंसिल में मतदान हुआ, और ४ जून को हंगलम मोलिहारी को इस ४६ सदस्यीय कॉउंसिल का अध्यक्ष चुना गया।[5]
    2. कार्बी आंगलोंग
      कार्बी आंगलोंग आसाम के ३५ जिलों में से एक है। तब मिकिर हिल्स के नाम से विख्यात यह क्षेत्र ब्रिटिश काल में लगभग स्वायत्त था। कार्बी राज्य की पहली मांग सेमसोंगसिंग इंगति तथा खोरसिंग तरङ्ग ने मोहोंगडिजा में उठाई थी, जिन्होंने २८ अक्टूबर १९४० को तत्कालीन राज्यपाल को इस विषय मे ज्ञापन भी सौंपा था।[6] कार्बी समर्थक सभी नेता ६ जुलाई १९६० को गठित आल पार्टी हिल लीडर्स कांफ्रेंस के सदस्य बन गए थे।[7]

      १९८१ में कार्बी आंगलोंग जिला परिषद ने अलग राज्य की मांग के प्रस्ताव को पारित कर इस आंदोलन ने फिर से गति दे दी। इसके बाद १९८६ में स्वायत्त राज्य मांग समिति (एएसडीसी) के नेतृत्व में संविधान के अनुच्छेद २४४(ए) के तहत कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ क्षेत्रों के लिए स्वायत्त राज्य की मांग की गई। २००२ में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद ने राज्य की मांग के लिए एक और प्रस्ताव पारित किया। ३१ जुलाई २०१३ को बोडोलैंड तथा कार्बी आंगलोंग के लिए अलग राज्य की मांग अचानक हिंसक हो गई, और कई छात्र प्रदर्शनकारियों ने सरकारी भवनों को आग लगा दी।[8] इस घटना के बाद कार्बी आंगलोंग के निर्वाचित नेताओं ने संयुक्त रूप से भारत के प्रधानमंत्री को एक अलग राज्य मांगने के लिए एक ज्ञापन प्रस्तुत किया था।

  • बिहार
    1. भोजपुर
      बिहार के पश्चिमी, उत्तर प्रदेश के पूर्वी, छत्तीसगढ़ के उत्तरी, और झारखंड के भोजपुरी भाषी जिलों को मिलाकर समय समय पर भोजपुर राज्य की मांग की जाती रही है।[9][10][11]
    2. मिथिला
      मिथिला राज्य बिहार और झारखंड के मैथिली भाषी क्षेत्रों को मिलाकर बनाया जाना प्रस्तावित है। बिहार में २४, और झारखंड में ऐसे कुल ६ जिले हैं, जहां मैथिली मुख्य भाषा है। हालांकि राज्य की राजधानी पर अभी आमसहमति नहीं है, और यह दरभंगा, भागलपुर, पूर्णिया या बेगूसराय में हो सकती है।[12]
  • गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, और महाराष्ट्र
    1. भीलप्रदेश
      भीलप्रदेश राज्य के निर्माण की मांग लगभग ३० साल से भी अधिक पुरानी है।[13][14] एस एम माइकल की १९९९ की पुस्तक अनटचेबल दलित्स इन मॉडर्न इंडिया में इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी।[15] इसके बाद २०१२ में द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर में लिखा गया था कि भीलिस्तान राज्य की मांग धीरे धीरे भरुच के आस-पास के जनजातीय क्षेत्रों में पकड़ बनाती जा रही थी।[16] २०१३ की डीएनए की एक खबर के अनुसार तेलंगाना राज्य के गठन ने गुजरात के साथ साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र के समीवर्ती क्षेत्रों के लोगों के मन में भी राज्य गठन की उम्मीद को पुनर्जीवित कर दिया है।[14]
    2. कच्छ
      कच्छ १९४७ से १९६० तक भारत का एक राज्य था, जिसका विस्तार वर्तमान गुजरात के कच्छ जिले तक था।[13][17] १९४७ में भारत के साथ कच्छ रियासत का एकीकरण ही इस शर्त पर हुआ था कि कच्छ अलग राज्य का दर्जा बनाए रखेगा। लेकिन बाद में इस क्षेत्र का राज्य पुनर्गठन अधिनियम के माध्यम से बॉम्बे राज्य में विलय कर दिया गया।[18] १ मई १९६० को महागुजरात आंदोलन के निष्कर्ष के तौर पर बॉम्बे राज्य के विभाजन के बाद यह क्षेत्र गुजरात का हिस्सा बन गया।

      १९६० में कच्छ को संविधान के अनुच्छेद ३७१ (२) के तहत एक स्वायत्त विकास बोर्ड बनाने का वादा किया गया था, जो राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण कभी अस्तित्व में नहीं आ सका। तब से कई लोग क्षेत्र के धीमे विकास का हवाला देते हुए कच्छ राज्य की वापसी की मांग करते रहे हैं।[19] अलग राज्य की मांग के पीछे मुख्य कारण गांधीनगर से सांस्कृतिक और भौगोलिक दूरी मानी जाती है। नर्मदा नदी के पानी का इस क्षेत्र के खेतों तक नहीं पहुंच पाना भी इसकी वजहों में एक है।

    3. सौराष्ट्र
      अलग सौराष्ट्र राज्य के लिए आंदोलन १९७२ में वकील रतिलाल तन्ना ने शुरू किया था, जो पूर्व प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई के करीबी सहयोगी थे। सौराष्ट्र संकलन समिति के अनुसार सौराष्ट्र क्षेत्र में ३०० से अधिक ऐसे संगठन हैं, जो इस अलग राज्य की मांग का समर्थन करते हैं। समिति का यह भी दावा है कि गुजरात के अन्य हिस्सों की तुलना में सौराष्ट्र अविकसित है। क्षेत्र में बेहतर जल आपूर्ति की कमी, नौकरी के अवसरों की कमी और क्षेत्र से युवाओं के निरंतर प्रवासन को ही अलग राज्य की मांग के प्रमुख कारणों के रूप में उद्धृत किया जाता रहा है।[13][14][20] सौराष्ट्र गुजरात के बाकी हिस्सों से सौहार्दपूर्ण रूप से अलग है, क्योंकि यहां सौराष्ट्र बोली का प्रयोग किया जाता रहा है।[21]
  • कर्नाटक
    1. तुलुनाडु तथा कोडुगु का संयुक्त केंद्र शासित प्रदेश
      तुलुनाडु दक्षिणी भारत में कर्नाटक और केरल राज्यों की सीमा के बीच स्थित एक क्षेत्र है। इस क्षेत्र में अलग राज्य की मांग एक अलग संस्कृति, अलग भाषा (तुलु, जिसे आधिकारिक स्थिति प्राप्त नहीं है), और दोनों राज्य सरकारों द्वारा इस क्षेत्र की उपेक्षा पर आधारित है।[22][23] इन मांगों और आरोपों का मुकाबला करने के लिए कर्नाटक और केरल राज्य सरकारों ने तुलु संस्कृति को संरक्षित कर बढ़ावा देने के लिए तुलु साहित्य अकादमी का गठन किया है।[24] प्रस्तावित राज्य में तीन जिले होंगे; कर्नाटक से दक्षिणी कन्नड़ और उडुपी, और केरल का कासरगोड जिला। कर्नाटक के कोडुगु जिले को भी साथ मिलकर इस पूरे राज्य / संघ शासित प्रदेश को "तुलुनाडु और कोडुगु भूमि" के रूप में नामित किया जा सकता है।
  • जम्मू एवं काश्मीर
    1. जम्मू
      जम्मू भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। यह भौगोलिक दृष्टि से कश्मीर घाटी और लद्दाख क्षेत्र से अलग है। जम्मू मण्डल मुख्यतः डोगरा लोगों का निवास क्षेत्र है, जो डोगरी भाषा बोलते हैं।
    2. काश्मीर
      प्रस्तावित काश्मीर राज्य में जम्मू-काश्मीर का काश्मीर घाटी क्षेत्र शामिल होगा। कई क्षेत्रीय कश्मीरी नेताओं ने जम्मू-काश्मीर राज्य के विभाजन को भारत में कश्मीर संघर्ष के एकमात्र समाधान के रूप में चिन्हित किया है। कश्मीरी लेखक और नेता गुलाम नबी खयाल ने लद्दाख को स्वतंत्र संघ शासित प्रदेश, और जम्मू क्षेत्र का पंजाब राज्य में विलय करने या अलग राज्य का दर्जा देने की बात कही है।[25] ्[26] भाजपा ने २४ सीटों में से १८ सीटों पर विजय प्राप्त की।[27]
  • मध्य प्रदेश
    1. बाघेलखण्ड, बुन्देलखण्ड तथा विन्ध्य प्रदेश
      विन्ध्य प्रदेश भारत का एक पूर्व राज्य है। राज्य की राजधानी रीवा थी। २३,६०३ वर्ग मील के क्षेत्रफल में फैले इस राज्य को १९४८ में भारत की स्वतन्त्रता के कुछ समय बाद ही केंद्रीय भारत एजेंसी के पूर्वी हिस्से की रियासतों को जोड़कर बनाया गया था।[28] इसका नाम विंध्य पर्वतमाला के नाम पर रखा गया था, जो प्रांत के केंद्र से गुजरता है। यह उत्तर प्रदेश के बीच उत्तर और मध्य प्रदेश के बीच दक्षिण में स्थित है, और दतिया के घेरे, जो पश्चिम की दूरी से थोड़ी दूरी पर स्थित है, मध्य भारत राज्य से घिरा हुआ था।

      राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के अंतर्गत इसका विलय मध्य प्रदेश में कर दिया गया था।[18] २००० में मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व स्पीकर श्रीनिवास तिवारी ने मध्य प्रदेश के नौ जिलों से विन्ध्य प्रदेश का नया राज्य बनाने की मांग की थी, हालांकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इसे खारिज कर दिया था।[29] एकलौते विन्ध्य प्रदेश के बजाय पृथक बुन्देलखण्ड और बाघेलखण्ड राज्यों को भी पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को समायोजित कर बनाने की वकालत की जाती रही है।[30][31]

      नया राज्य बनाने के लिए क्या करना पड़ता है?

      Solution : अनुच्छेद 3 संसद को एक साधारण बहुमत से पारित कानून द्वारा नए राज्यों का निर्माण और पुराने क्षेत्रों, सीमाओं या वर्तमान राज्यों के नाम परिवर्तन के लिए सक्षम बनाता है।

      भारत में नए राज्य कौन बनाता है?

      भारत में नए राज्यों और क्षेत्रों के निर्माण का अधिकार पूरी तरह से भारत की संसद के लिए आरक्षित है। संसद नए राज्यों की घोषणा करके, किसी मौजूदा राज्य से एक क्षेत्र को अलग करके, या दो या दो से अधिक राज्यों या उसके हिस्सों में विलय करके ऐसा कर सकती है।

      नए राज्यों का निर्माण कब हुआ?

      1955 में इस आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही 1956 में नए राज्यों का निर्माण हुआ और 14 राज्य व 6 केन्द्र शासित राज्य बने। फिर 1960 में पुनर्गठन का दूसरा दौर चला। लिहाजा 1960 में बंबई राज्य को तोड़कर महाराष्ट्र और गुजरात बनाए गए। 1966 में पंजाब का बंटवारा हुआ और हरियाणा और हिमाचल प्रदेश दो नए राज्यों का गठन हुआ

      राज्यों का पुनर्गठन कैसे हुआ?

      भारत के स्वतंत्र होने के बाद भारत सरकार ने अंग्रेजी राज के दिनों के 'राज्यों' को भाषायी आधार पर पुनर्गठित करने के लिये राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission) की स्थापना 1953 में की। 1950 के दशक में बने पहले राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश में राज्यों के बंटवारे का आधार भाषाई था।