यासुकी चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह कौन अवसर था? - yaasukee chaan ke lie ped par chadhane ka yah kaun avasar tha?

अपूर्व अनुभव पाठ की विधा संस्मरण है। एक लड़की तोत्तो-चान जो अपने विकलांग मित्र यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाकर दूर तक की सुंदरता दिखाना चाहती है। तोत्तो-चान ने अपने मित्र यासुकी-चान को बिना किसी को बताए अपने पेड़ पर चढ़ने का निमंत्रण दिया। पेड़ का चुनाव-तोमोए नामक स्थान पर हर बच्चा अपने अधिकार से अपना एक पेड़ चुन लेता था जिसे वह केवल अपने खुद के चढ़ने का पेड़ मानता था। तोत्तो-चान ने भी कुहोन्बुत्सु नामक स्थान तक जाने वाली सड़क के पास एक पेड़ का चुनाव किया। यह द्विशाखा वाला पेड़ था जो धरती से लगभग छ: फुट की ऊँचाई पर था। इस पर चढ़कर ऊपर का आकाश या नीचे सड़क पर चलते लोगों को देखकर बहुत आनंद मिलता था वह अकसर इस झूले-सी आरामदेह जगह पर स्कूल के बाद या स्कूल की आधी छुट्टी के समय आया करती थी। 

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बच्चे अपने चयनित पेड़ को अपनी निजी संपत्ति समझते थे। यदि कोई किसी के वृक्ष पर चढ़ना चाहे तो पहले इजाजत लेनी पड़ती थी। यासुकी-चान को पोलियो था इसलिए वह किसी पेड़ को अपनी निजी संपत्ति मानने में असमर्थ था। तोत्तो-चान किसी भी तरह से यासुकी-चान को पेड़ पर आमंत्रित करना चाहती थी वह जानती थी कि यह मुश्किल कार्य है। इसलिए वह माँ से केवल यही कह कर गई कि वह तो यासुकी चान के घर 'डेनेन चोफ' जा रही है लेकिन रॉकी उसके पीछे तक स्टेशन पर आया तो उसने उसे बता दिया कि उसने यासुकी-चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित किया है।


तोत्तो-चान स्कूल पहुँची तो यासुकी-चान उसे मैदान में क्यारियों के पास मिला। वह उससे एक वर्ष बड़ा था लेकिन तोत्तो-चान को वह बहुत बड़ा लगता था। वह बॉँहे फैलाए अपना संतुलन बनाते हुए व डॉग को घसीटता हुआ तोत्तो-चान के पास पहुंचा। यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ना-तोत्तो-चान यासुकी-चान को पेड़ की ओर ले गई। फिर चौकीदार के छप्पर से एक सीढ़ी उठा लाई उसे तने के सहारे खड़ा कर द्विशाखा तक पहुंचा दिया व स्वयं कुर्सी पर चढ़कर सीढ़ी को पकड़ा। यासुकी-चान को ऊपर चढ़ने को कहा लेकिन यासुकी-चान के हाथ-पैर इतने कमज़ोर थे कि वह पहली सीढ़ी भी न चढ़ पाया। तोत्तो-चान नीचे उतरकर उसे धक्का देने लगी लेकिन मेहनत बेकार गई। यासुकी-चान चढ न पाया। 


तोत्तोचान यासुकी-चान का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी। वह फिर चौकीदार के छप्पर की तरफ गई। वहाँ उसे एक तिपाई सीढ़ी मिली। उसने उस सीढ़ी को द्विशाखा तक सटा दिया व यासुकी को उस पर चढ़ने के लिए कहा। उस समय तेज धूप थी लेकिन दोनों अपने काम में मस्त थे। यासुकी-चान ने सीढ़ी पर पैर रखा व जल्दी ही ऊपर पहुँच गया। इस कार्य में तोत्तो-चान ने उसकी पूरी मदद की, उसे पूरा सहारा दिया और यासुकी-चान ने भी पूरी शक्ति लगाई। द्विशाखा तक पहुँचने पर भी यासुकी-चान द्विशाखा पर छलांग लगाकर पहुंचने में असमर्थ था। जबकि तोत्तो-चान तो द्विशाखा तक पहुंची व छलांग लगाकर उसके ऊपर चढ़ गई। उसे इस बात का बहुत दुख था कि इतनी मेहनत करने पर भी यासुकी-चान द्विशाखा पर नहीं आ सका, उसने हिम्मत न हारी। उसने उसे वहाँ लेटने को कहा व नन्हें-नन्हें हाथों से पूरी ताकत के साथ यासुकी को खींचने लगी। दोनों पेड़ की द्विशाखा पर काफी मेहनत के बाद आमने-सामने बैठे थे तोत्तो-चान ने यासुकी-चान को कहा कि तुम्हारा मेरे पेड़ पर स्वागत है। तब उसने भी पूछा कि क्या मैं ऊपर आ सकता हूँ?


यासुकी-चान ने तो आज पहली बार दुनिया की नई झलक देखी थी वे बहुत देर तक गप्पे लड़ाते रहे। यासुकी-चान ने तोतो-चान को बताया कि उसकी बहन अमेरिका में रहती है। वहाँ एक चीज होती है टेलीविजन यह डिब्बे जैसा होता है उसने बताया कि जब यह जापान में आ जाएगा तो हम घर बैठे-बैठे ही सूमो कुश्ती देख सकेंगे। तोत्तो-चान की सोच-तोत्तो-चान सोचने लगी कि यासुकी-चान जो कहीं भी दूर तक चल नहीं सकता। उसके लिए घर बैठे चीजों को देख लेने से क्या होगा? उसे क्या आनंद आएगा? उसे सूमो पहलवान के घर में रखे डिब्बे में समाने की बात पूरी तरह समझ न आई लेकिन लुभावनी लगी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तब टेलीविजन के बारे में कोई नहीं जानता था। पहले पहल यासुकी-चान ने ही इस रहस्य को तोत्तो-चान को बताया था। वातावरण का अहसास-यासुकी-चान व तोत्तो-चान इस समय बहुत खुश थे। लगता था जैसे पेड़ भी खुश होकर गीत गा रहे हों। यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम अवसर था क्योंकि शायद इतना बड़ा जोखिम तोत्तो-चान दोबारा न ले पाएगी।


अपूर्व अनुभव का प्रश्न-अभ्यास 

पाठ से

1. यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए तोत्तो-चान ने अथक प्रयास क्यों किया? लिखिए।


उत्तर - यासुकी-चान विकलांग था। उसके हाथ-पैर इतने कमजोर थे कि वह स्वयं पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था। तोत्तो-चान जानती थी कि यासुकी चान भी आम बालक की तरह पेड़ पर चढ़ने का इच्छुक है। इसीलिए तोत्तो-चान ने यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाने के अथक प्रयास किए। 


2. दृढ-निश्चय और अथक परिश्रम से सफलता पाने के बाद तोत्तो-चान और यासुकी-चान को अपूर्व अनुभव मिला, इन दोनों के अपूर्व अनुभव कुछ अलग-अलग थे। दोनों में क्या अन्तर रहे? लिखिए।


उत्तर- दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम से यासुकी चान और तोत्तो चान सफल हुए। यासुकी चान को खुशी थी कि उसने भी पेड़ पर चढ़ कर दुनिया को देखा । उसके लिए यह अपूर्व अनुभव प्रसन्नतादायक था तोत्तो चान ने एक असमर्थ विकलांग बालक की सहायता कर उसे आम बालक को मिलने वाले सुख से परिचित कराया। तोत्तो चान को खुशी थी कि उसे यासुकी चान की इच्छा पूरी करने में अपूर्व अनुभव मिला है।



3. पाठ में खोजकर देखिए-कब सूरज का ताप यासुकी-चान और तोत्तो-चान पर पड़ रहा था, वे दोनों पसीने से तरबतर हो रहे थे और कब बादल का एक टुकड़ा उन्हें छाया देकर कड़कती धूप से बचाने लगा था। आपके अनुसार इस प्रकार परिस्थिति के बदलने का कारण क्या हो सकता है?


उत्तर- तोत्तो चान यासुकी चान को तिपाई-सीढ़ी की मदद से पेड़ पर चढ़ाने में व्यस्त थी यासुकी चान ने पेड़ की ओर देखते हुए निश्चय के साथ जब अपना पाँव उठाकर सीढ़ी पर रखा तब सूरज का ताप उन पर पड़ रहा था। दोनों कड़ी मेहनत के कारण पसीने से तरबतर थे कड़ी मेहनत के कारण दोनों द्विशाखा पर पहुँच गए। तोत्तो चान अपनी जान जोखिम में डाल कर यसुकी चान को पेड़ की ओर खींचने लगी। अभी बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था। बादल का टुकड़ा दोनों के प्रयत्नों को देखकर पिघल गया था। इसीलिए सूरज ने उन दोनों को तपते सूरज से आराम देने के लिए अपनी शीतल छाया दी। 


प्रश्न 4. 'यासुकी-चान का पेड़ पर चढ़ने का यह----- अंतिम मौका था ।- इस अधूरे वाक्य को पूरा कीजिए और लिखकर बताइए कि लेखिका ने ऐसा क्यों लिखा होगा?


उत्तर- यासुकी-चान पोलियो से पीड़ित था। वह पेड़ पर स्वयं चढ़ने में असमर्थ या अपनी बालिका मित्र तोत्तो चान की मदद से वह उसके पेड़ पर चढ़ा। इस पेड़ पर चढ़ने से पहले उसे बहुत परेशानी, बाघा और निराशा से जूझना पड़ा। तोतो चान का पेड़ बड़ा चिकना था। इस पर चढ़ने वाला फिसलता या। ऐसे में तोत्तो चान ने चौकीदार के यहाँ से सीढ़ी और तिपाई वाली सीढ़ी लाकर उसे पेड़ की जुड़वाँ टहनी तक पहुंचने में मदद की। यासुकी चान जब सीढ़ी पर चढ़ता था तो सीढ़ी डगमगा जाती थी। वह अपनी असफलता पर निराश हो गया। परन्तु, तोत्तो-चान की सूझबूझ और मेहनत से वह पेड़ पर चढ़ने में सफल हो गया। लेखिका ने उसकी इस चढ़ाई को अंतिम बार माना है। इसका कारण, वह चोरी-छिपे तोत्तो-चान की मदद से चढ़ा था। यदि इस घटना का अन्य किसी को पता चल जाता तो उस पर डांट पड़ती। 


अपूर्व अनुभव पाठ से आगे

1- तोतो-चान ने अपनी योजना को बड़ों से इसलिए छिपा लिया कि उसमें जोखिम था, यासुकी-चान के गिर जाने की संभावना थी। फिर भी उसके मन में यासुकी चान को पेड़ पर चढ़ाने की दृढ़ इच्छा थी। ऐसी दूढ़ इच्छाएँ बुद्धि और कठोर परिश्रम से अवश्य पूरी हो जाती है। आप किस तरह की सफलता के लिए तीव्र इच्छा और बुद्धि का उपयोग कर कठोर परिश्रम करना चाहते है ?

उत्तर- जीवन में मनचाही सफलता पाने के लिए परिश्रम और साहस के साथ-साथ धैर्य की भी अत्यंत आवश्यकता होती है। प्रायः चोरी-छिपे किए गए कार्यों को करने पर हमें आंतरिक-द्वंद्व से गुजरना पड़ता चोरी-छिपे कार्य करने पर जोखिम से निपटने में हमारी मदद के लिए कोई नहीं होता है। ऐसी स्थिति में मेरा विचार है कि सर्वप्रथम कोई भी कार्य करने से पहले उसके विषय में भली-प्रकार सोच-विचार लिया जाए उसके बाद अपने द्वारा किए जाने वाले कार्य की सभी सम्बन्धित लोगों को सूचना दे देनी चाहिए। सूचित करने पर जोखिम कम हो जाता है। आवश्यकता पड़ने पर आपात स्थिति से आसानी से निपटा जा सकता है। जानबूझ कर लिए गए जोखिम में हमें समय पर सुरक्षा मिल जाती है। 


2. हम अकसर बहादुरी के बड़े-बड़े कारनामों के बारे में सुनते रहते हैं लेकिन अपूर्व अनुभव कहानी एक मामूली बहादुरी और जोखिम की ओर हमारा ध्यान खींचती है। यदि आपको अपने आस-पास के संसार से कोई रोमांचकारी अनुभव प्राप्त करना हो तो कैसे प्राप्त करेंगे।


उत्तर- एक बार छुट्टियों के दिनों में हम सुबह-सवेरे ही चूमने-फिरने के लिए खेतों की ओर चले गए। मौसम सुहावना था सभी बच्चे मौज-मस्ती करते हुए, गीत-गाते हुए मौसम का आनंद लेते हुए उस जगह पहुँचे जहाँ एक नहर बह रही थी। जब हम नहर के किनारे पहुँचे तो हल्की-फुल्की बौछारों से नहर के किनारे की मिट्टी में फिसलन हो गई थी। एक बच्चा नहर की दूसरी ओर मोरों के झुंड को देखकर खुशी से नहर की ओर तेजी से भागा। दुर्भाग्यवश उसका पैर फिसला और नहर के तेज बहाव में जा गिरा। इस अकस्मात् घटी घटना से हम सभी हतप्रभ हो गए। आस-पास उसे बचाने वाला दूसरा कोई और न था। मेरा दोस्त रोहित अभी तैरना सीख ही रहा था। उसने ईश्वर का नाम लेकर शीघ्र ही अपने कपड़े उतारे और नहर में छलांग लगा दी। उसे हाथ-पैर मारकर अपनी ओर तैरते हुए आता देख बच्चे की हिम्मत बँधी। उसकी घबराहट कम हो चुकी थी। वह जैसे-तैसे उसके निकट पहुँचा । बच्चे ने उसे पकड़ लिया। रोहित ने स्वयं को उसकी पकड़ से छुड़ाकर दूर करते हुए उसे किनारे की ओर धकेला। तभी सौभाग्यवश एक तेज लहर उसे किनारे की ओर धकेलने लगी। इस तरह रोहित के अदम्य साहस और लहर की मेहरबानी से बच्चा किनारे पर सकुशल वापस लौट आया। तब हमारी जान में जान आई। रोहित जैसे नौसिखिए तैराक के लिए यह सब आसान न था। उसने अपनी जान का जोखिम उठाते हुए भी उस बच्चे की जान बचाई। हमने भगवान का शुक्रिया अदा किया। 


अपूर्अव अनुभव नुमान और कल्पना

1. अपनी माँ से झूठ बोलते समय तोत्तो-चान की नजरें नीचे क्यों थीं?


उत्तर- यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि आत्मा के विरुद्ध कार्य करने वाला अथवा जानबूझकर बुराई करने वाला व्यक्ति अपराध-बोध से ग्रस्त होता है। वह संदेह और भय के कारण स्वयं पर भी विश्वास नहीं कर पाता है। उसे सदैव यही लगता है कि उसकी चोरी या गलती कहीं पकड़ी न जाए। इसी कारण तोत्तो-चान की नजरें अपनी माँ से झूठ बोलते समय नीचे थी।

यासुकी चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए तोत्तो चान ने क्या किया?

तोत्तो-चान जानती थी कि यासुकी-चान आम बालक की तरह पेड़ पर चढ़ने के लिए इच्छुक है। अत: उसकी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए तोत्तो-चान ने यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया

यासुकी चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह कौन सा अवसर था?

यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम मौका था। लेखिका ने ऐसा इसलिए लिखा होगा क्योंकि यासुकी-चान के लिए स्वयं अपने बल पर पेड़ पर चढ़ना संभव नहीं था और तोत्तो-चान इस तरह झूठ बोलकर इतनी मेहनत से हमेशा उसकी मदद नहीं कर सकती।

तोत्तो चान के पेड़ पर चढ़ना क्यों मुश्किल था?

उत्तर: तोत्तौ - चान का पेड़ बहुत बड़ा और फिसलन भरा था, इसलिए उस पर चढ़ना मुश्किल था

यासुकी चान पेड़ पर क्यों नहीं चढ़ सकता था?

यासुकी-चान को पोलियो था, इसलिए वह किसी पेड़ पर नहीं चढ़ पाता थायासुकी-चान के हाथ-पैर इतने कमज़ोर थे कि वह पहली सीढ़ी पर भी बिना सहारे के नहीं चढ़ पाता था