1 प्रथम विश्व युद्ध के भारत में क्या आर्थिक दुष्प्रभाव पड़े? - 1 pratham vishv yuddh ke bhaarat mein kya aarthik dushprabhaav pade?

Solution : हालांकि भारत प्रत्यक्ष रूप से प्रथम विश्व युद्ध में शामिल नहीं था लेकिन उस युद्ध में इंगलैंड के शामिल होने के कारण भारत पर भी असर पड़ा था। युद्ध के कारण इंगलैंड के रक्षा संबंधी खर्चे में बढ़ोतरी हुई थी। उस खर्चे को पूरा करने के लिये कर्ज लिये गये और टैक्स बढ़ाए गये। अंग्रेजी सरकार ने भारत में कस्टम ड्युटी और इनकम टैक्स को बढ़ाया ताकि अतिरिक्त राजस्व संग्रह किया जा सके। युद्ध के दौरान चीजों की कमतें बढ़ गई। 1913 से 1918 से भारत के अंदर अधिकतर चीजों के दाम दोगुने हो गये। इससे आम आदमी की मुश्किलें बढ़ गई। लोगों को जबरन सेना में भर्ती किया गया। इससे ग्रामीण इलाकों में काफी आक्रोश था। भारत के कई भागों में उपज खराब होने के कारण भोजन की कमी हो गई। इंफ्लूएंजा की. महामारी ने समस्या को और गंभीर कर दिया। 1921 की जनगणना के अनुसार, अकाल और महामारी के कारण 120 लाख से 130 लाख तक लोग मारे गए।

Homeउत्तर लेखनभारत की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव

भारत की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव

प्रश्न: 1914 में अचानक छिड़े प्रथम विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन को उद्वेलित किया। स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भूमिका में भारत की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर प्रथम विश्व युद्ध के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  • विश्लेषण करें की किस प्रकार इस संपूर्ण स्थिति ने बृहद् राजनीतिक चेतना को प्रेरित किया, जिससे भारत में स्वतंत्रता संघर्ष और तीव्र हो गया।
  • उचित निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने भारत की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों को परिवर्तित किया। इस युद्ध में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की सहमति के बिना भारत को युद्ध में अपना सहयोगी घोषित किया। इससे भारतीयों के मध्य ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अत्यधिक असंतोष उत्पन्न हुआ, क्योंकि युद्ध के निम्नलिखित आर्थिक प्रभाव

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के रक्षा व्यय में भारी वृद्धि हुई, जिसके कारण व्यक्तिगत आय और व्यावसायिक लाभ पर आरोपित कर की दरों को बढ़ा दिया गया।
  • सैन्य व्यय में वृद्धि और युद्ध-सामग्री की माँग के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई, जिसने जन-सामान्य के लिए अत्यधिक कठिनाई उत्पन्न की।
  • 1918-19 और 1920-21 के दौरान फसल-उत्पादन में कमी के कारण गम्भीर खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ। इसके साथ-साथ इन्फ्लुएंजा महामारी ने संकट को और बढ़ा दिया।

अन्य कारकों के साथ-साथ इन कारकों ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रोत्साहित किया।

आर्थिक प्रभाव के अतिरिक्त, युद्ध और इसके परिणामों में निम्नलिखित भी सम्मिलित थे:

  • अत्यधिक संख्या में भारतीय सैनिक विदेशों में सेवारत थे। इससे ये सैनिक साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा एशिया और अफ्रीका के लोगों के शोषण करने के तरीके को समझ सके। इनमें से अनेक सैनिक भारत में औपनिवेशिक शासन के विरोध की तीव्र इच्छा के साथ लौट कर आए।
  • ब्रिटिश, युद्ध में खलीफा द्वारा शासित तुर्की साम्राज्य के विरुद्ध लड़ रहे थे। मुस्लिम जगत में खलीफा के प्रति अत्यधिक सम्मान था और वे तुर्की की रक्षा हेतु ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन में शामिल हो गए।
  • पहले से ही अत्यधिक लगान, खाद्यान्न और अन्य आवश्यक सामग्रियों की उच्च कीमतों का सामना कर रहे कृषक समाज को युद्ध के कारण और अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। राष्ट्रवादियों द्वारा काश्तकारों के मध्य उत्पन्न असंतोष का लाभ उठाया गया, उन्होंने आधुनिक पद्धतियों पर उन्हें संगठित करने की प्रक्रिया प्रारंभ की और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति से सम्बद्ध किया। जैसे उत्तर प्रदेश में किसान सभाएं और मालाबार में मोपला विद्रोह।
  • बढ़ते राष्ट्रवाद ने 1916 के लखनऊ अधिवेशन में नरमपंथियों और गरमपंथियों को पुनः एकजुट कर दिया। इसके अतिरिक्त, कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अपने मतभेदों की उपेक्षा कर ब्रिटिश सरकार के समक्ष अपनी साझी राजनीतिक माँगों को प्रस्तुत किया।
  • गदर आन्दोलन के नेताओं ने ब्रिटिश शासन को हिंसात्मक रूप से समाप्त करने का प्रयास किया, जबकि होमरूल के सदस्यों ने होमरूल या स्वराज प्राप्ति के उद्देश्य से एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का शुभारंभ किया।
  • महात्मा गांधी का एक जनसामान्य के नेता के रूप में उदय हुआ और उन्होंने हिंदू एवं मुस्लिमों को एकजुट करने के लिए खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सत्याग्रह के विचार को भी प्रसारित किया। गांधीजी के नेतृत्व में चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा सत्याग्रह और अहमदाबाद सत्याग्रह स्थानीय लोगों के मुद्दों पर केंद्रित थे।
  • भारतीय व्यावसायिक समूहों ने युद्ध से अत्यधिक लाभ अर्जित किया; युद्ध ने औद्योगिक वस्तुओं (जूट बैग, वस्त्र, रेल) की माँग उत्पन्न की और अन्य देशों से भारत को किये जाने वाले आयात में गिरावट आई। भारतीय उद्योगों का विस्तार होने से, भारतीय व्यावसायिक समूहों द्वारा विकास हेतु अधिक अवसरों की माँग की जाने लगी।

इस प्रकार, 1914 में अचानक छिड़े प्रथम विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन को उद्वेलित किया जो स्वदेशी आंदोलन के बाद निष्क्रिय हो गया था।

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प्रथम विश्व युद्ध के भारत में क्या आर्थिक दुष्प्रभाव पड़े?

प्रथम विश्वयुद्ध ने एक नयी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी थी। इसके कारण रक्षा व्यय में भारी इजाफ़ा हुआ। इस खर्चे की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर कर्जे लिए गए और करों में वृद्धि की गई। सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया।

प्रथम विश्व युद्ध का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

आर्थिक परिणाम : प्रथम विश्वयुद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अव्यवस्थित कर दिया। युद्ध के नाम पर सरकार ने भारी कर्ज लिया।

प्रथम विश्व युद्ध के भारत पर कौन से आर्थिक प्रभाव पड़े कोई तीन प्रभाव लिखो?

रूसी क्रांति के प्रभाव और भारतीय व्यवस्था से क्षुब्ध होकर 1917 ई० मेँ भारत में श्रमिकों ने बड़े पैमाने पर हड़तालें आरंभ कर दीं. 1917 ई० में बंबई के कपड़ा-मजदूरों की हड़ताल हुई. वे महँगाई से होनेवाले नुकसान को पूरा करने के लिए वेतन-वृद्धि की माँग कर रहे थे. 1917 ई० में 30 से अधिक हड़तालें हुईं.

प्रथम विश्व युद्ध का भारतीय समाज का अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?

कारखानों व मजदूरों की संख्या में बहुत अधिक बढ़ोतरी हुई। कारखानों में जहां 1914 ने मजदूरों की संख्या 9,50,973 थी , वह बढ़कर 11,22,922 हो गई। कपड़ा मिलों की संख्या 1913 में 272 थी व उनमें काम करने वाले मजदूरों की संख्या 2,53,786 थी , 1923 में मिलों की संख्या बढ़कर 333 हो गई व मजदूरों की संख्या 3,47,380 हो गई।