1857 की क्रांति में सिरसा जिले के कितने गांव अंग्रेजों ने जला दिए थे? - 1857 kee kraanti mein sirasa jile ke kitane gaanv angrejon ne jala die the?

जासं, सिरसा : 11 मई 1857 को मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह का असर सिरसा में तीसरे दिन ही देखने को मिला। लोगों ने अंग्रेज अधिकारियों को खदेड़ दिया। कई अधिकारियों का कत्ल कर दिया गया। बचे अधिकारी अपनी जान बचा कर भाग निकले। 14 मई से 22 जून 1857 तक, यानी 39 दिन सिरसा अंग्रेजों के शासन से आजाद रहा। लेकिन, गद्दारों के सहयोग से अंग्रेज पुन: काबिज हो गए।

इतिहासकारों व अनेक पत्राचारों के आधार पर लिखी गई पुस्तक 'सिरसा का इतिहास' के मुताबिक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के तीसरी दिन ही मेरठ से भड़की ज्वाला सिरसा में 14 मई 1857 को जोर पकड़ने लगी। 11 मई 1857 को मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह तथा दिल्ली की गद्दी चली जाने की खबर सुनते ही लाइट पलटन तथा 14 नंबर टुकड़ियों ने अंग्रेजों का कत्लेआम शुरू कर दिया था।

सिरसा के कस्टम के 20 चपड़ासियों ने भी इस जन क्राति अग्रदूतों का काम किया। उन्होंने अपनी मजबूत टुकड़ी बनाकर सिरसा नगर और यूरोपियों अधिकारियों की संपत्तियों को लूटा। खजाना तथा लेफ्टिनेंट के जवान जला दिए गए। यहा तक अंग्रेज अधिकारियों की स्त्रियों व बच्चों को भी मार दिया गया। उस समय सिरसा स्थित यूरोपियों की ताकत क्षीण हो गई तथा वो यहा से भाग खड़े हुए। कप्तान राबर्टसन अपने परिवार सहित यहा से फिरोजपुर भाग गया। सहायक अधीक्षक डोनाल्ड तथा कस्टम अधिकारी बाउल्ज जिला के गाव थिराजवासियों से सामना करते हुए रोड़ी के किला घुस गए।

कुछ दिनों के पटियाला की सेना ने अधिकारियों को सुरक्षित स्थान पर पहुचा दिया। अब यूरोपियन सैनिक टुकड़ी के कमाडर लेफ्टिनेंट हि‌र्ल्ड तथा उसका साला जेडब्ल्यू फील यहा रह गए थे। इन दोनों अधिकारियों को भागते हुए गाव छतरिया के मुसलमानों ने कत्ल कर दिया। दोनों अधिकारियों को सिरसा के एक गिरजाघर में एक ही कब्र में दफना दिया गया। विद्रोहियों ने सिरसा के खजाना से आठ हजार रुपये लूटे थे जो भट्टू के सूबेदार मोहम्मद अजीम के हाथों बादशाह मोहम्मद शाह जफर को पहुंचा दिए गए। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सरकारी कर्मचारी हीरा सिंह, खोटे सिंह, माम सिंह, मन्ना, रहीम अली, बुध्दु, गन्नी खान, माम खान, कमूनदीन आदि ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।

8 जून 1857 को फिरोजपुर के डिप्टी कमीशन जनरल बॉन फोर्टलैंड ने साढ़े पाच सौ सैनिकों तथा दो तोपों के साथ सिरसा क्षेत्र पर पुन: कब्जा करने के लिए कूच किया तो ओढ़ा के पास 17 जून 1857 को रानिया के नवाब नूरसमंद खान ने अपने चाचा गोहर अली के साथ मिलकर 4000 सैनिकों के साथ अंग्रेजी फौज का डटकर सामना किया। इस लड़ाई में नवाब के 530 सैनिक मारे गए परंतु वे स्वयं भाग गए। ओढा के पास 18 जून 1857 को अंग्रेजी सेना के लेफ्टिनेंट हि‌र्ल्ड बदला लेने हेतु छतरिया पर हमला करके वहा के सारे ग्रामीणों का कत्ल कर दिया और मकान जला दिए। 19 जून 1857 को गाव खैरेका में कई हजार भट्ठी सैनिकों ने अंग्रेजी सेना का डटकर सामना किया, परतु अंग्रेजी सेना जीत गई। इस लड़ाई में 300 भटठी सैनिकों ने अपने प्राण गंवाए। अगले दिन 20 जून को अंग्रेजों ने क्षेत्र व सिरसा नगर पर पुन: अधिकार कर लिया। उसके बाद अंग्रेजों ने दड़बी, नेजाडेला, नागौकी आदि गाव के किसानों को अंग्रेज अधिकारियों की हत्याएं करने के जुल्म में सिरसा लाकर गोलियों से उड़ा दिया। विद्रोहियों की जमीन जब्त कर ली गई, 24 कर्मचारियों को 7-7 साल की कैद, 36 को उम्रकैद, 6 को दस वर्ष की कैद, एक को 14 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई।

इसके बाद जब विद्रोह पूरी तरह से दब गया तो अंग्रेजों ने अपने वफादारों को जायदाद का मालिकाना हक देकर पुरस्कृत किया और विद्रोहियों के परिजनों से जायदाद का मालिकाना हक छीन लिया। इस प्रकार क्षेत्र में भी भारत के अन्य भागों की तरह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अपनों की गद्दारी के कारण विफल होकर रह गया।

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1857 की क्रांति में सिरसा जिले के कितने गांव अंग्रेजों ने जला दिए?

सिरसा में 203 लोगों की मौत हुई थी। 8 गांव जला दिए गए थे। पानीपत में 179 लोगों की जान गई थी।

1857 की क्रांति में हरियाणा के कितने गांवों को जला दिया था?

गर्व का विषय है कि आज देश की सेना में हर दसवां सैनिक हरियाणा से है। यहां के सैनिकों ने 1962, 1965, 1971 के विदेशी आक्रमणों व आप्रेशन कारगिल युद्ध के दौरान वीरता की नई मिसाल पेश की थी। प्रदेश के वीर कभी भी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए अपने अमूल्य प्राणों की आहूति देने से पीछे नहीं हटे।

1857 की क्रांति में हरियाणा के कितने लोग शहीद हुए?

आंदोलन में 3467 लोग हुए थे शहीद मसलन इस क्रांति में हरियाणा के 3467 लोग शहीद हुए थे। एक साल तक चले संग्राम में तब कुरुक्षेत्र के भी 42 लोग शहीद हुए थे। उस दौरान प्रदेश के 92 गांव नष्ट हुए थे।

घ 1857 की क्रांति को दबाने के लिए अंग्रेजों ने क्या किया था?

अवध की रियासत अंग्रेज़ों के कब्ज़े में जाने वाली आखिरी रियासतों में से थी। 1801 में अवध पर एक सहायक संधि थोपी गयी और 1856 में अंग्रेज़ों ने उसे अपने कब्ज़े में ले लिया। गवर्नर-जनरल डलहौज़ी ने ऐलान कर दिया कि रियासत का शासन ठीक से नहीं चलाया जा रहा है इसलिए शासन को दुरुस्त करने के लिए ब्रिटिश प्रभुत्व जरूरी है।