2009 का कौन सा अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है? - 2009 ka kaun sa adhiniyam 6 se 14 varsh kee aayu ke pratyek bachchon ko mupht aur anivaary shiksha ka adhikaar pradaan karata hai?

शिक्षा का अधिकार - बच्चे किसी भी देश के सर्वोच्च संपत्ति हैं। वे संभावित मानव संसाधन है। शिक्षा एक आदमी के जीवन में ट्रान्सेंडैंटल महत्व का है। आज, शिक्षा, संदेह के एक कण के बिना, एक है कि एक आदमी के आकार है। RTE अधिनियम विभिन्न विशेषताओं के साथ जा रहा है, एक अनिवार्य प्रकृति में है, इसलिएसच के रूप में, लंबे समय लगा और सभी के लिए शिक्षा प्रदान करने कीआवश्यकता सपना लाने के लिए में आ गया है। भारत 66 प्रतिशत के एक गरीब साक्षरता दर, के रूप में अपनी रिपोर्ट 2007 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन द्वारा दी गई और जैसा कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट, 2009 में शामिल के साथ विश्व साक्षरता रैंकिंग में149, स्थान है।

वास्तव में, शिक्षा जो एक संवैधानिक अधिकार था शुरू में अब एक मौलिक अधिकार का दर्जा प्राप्त है। अधिकार की शिक्षा के लिए विकास इस तरह हुआ है: भारत के संविधान की शुरुआत में, शिक्षा का अधिकार अनुच्छेद 41 के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत मान्यता दी गई थी जिसके अनुसार,

"राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के भीतर, शिक्षा और बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और विकलांगता के मामले में सार्वजनिक सहायता करने के लिए काम करते हैं, सही हासिल करने के लिए प्रभावी व्यवस्था करने और नाहक के अन्य मामलों में चाहते हैं ".

मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का आश्वासन राज्य के नीति निर्देशक अनुच्छेद 45, जो इस प्रकार चलाता है के तहत, सिद्धांतों के तहत फिर से किया गया था, "राज्य के लिए प्रदान करने का प्रयास, दस साल की अवधि के भीतर होगा मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के लिए इस संविधान के सभी बच्चों के लिए प्रारंभ से जब तक वे चौदह वर्ष की आयु पूर्ण करें." इसके अलावा, शिक्षा प्रदान करने के साथ 46 लेख भी संबंधित जातियों अनुसूची करने के लिए, जनजातियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों अनुसूची. तथ्य यह है कि शिक्षा का अधिकार 3 लेख में किया गया है साथ ही संविधान के भाग IV के तहत निपटा बताते हैं कि कैसे महत्वपूर्ण यह संविधान के निर्माताओं द्वारा माना गया है। 29 लेख और आलेख शिक्षा के अधिकार के साथ 30 समझौते और अब, हम अनुच्छेद 21A है, जो एक मजबूत तरीके से आश्वासन अब देता है।

2002 में, संविधान (छियासीवें संशोधन) अधिनियम शिक्षा के अधिकार के माध्यम से एक मौलिक अधिकार के रूप में पहचाना जाने लगा। लेख 21A इसलिए सम्मिलित होना जिसमें कहा गया है आया, "राज्य राज्य के रूप में इस तरीके से, विधि द्वारा, निर्धारित कर सकते में छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा.

यह अंततः उन्नी कृष्णन जेपी वी. राज्य आंध्र प्रदेश की कि शिक्षा को एक मौलिक अधिकार में लाया जा रहा में दिया निर्णय किया गया था। इस के बाद भी, यह शामिल संघर्ष की एक बहुत अनुच्छेद 21A के बारे में लाने के लिए और बाद में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम. इसलिए, RTE अधिनियम के लिए एक कच्चा मसौदा विधेयक 2005 में प्रस्ताव किया गया।

बच्चों के अधिकार को नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, लोकप्रिय शिक्षा का अधिकार अधिनियम के रूप में जाना अप्रैल, 2010 के 1 को प्रभाव में आया था। RTE अधिनियम के 4 अगस्त 2009 को भारत की संसद द्वारा 2 जुलाई 2009 और निधन पर कैबिनेट मंत्रालय द्वारा 20 वीं जुलाई, 2009 को राज्य सभा के अनुमोदन के बाद पारित किया गया था। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी है उसके और इस के राजपत्र में नि: शुल्क बच्चे के अधिकार पर और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के रूप में अधिसूचित किया गया सितम्बर, 2009 3. 1 अप्रैल 2010 पर, यह भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर, पूरा करने के लिए लागू के रूप में अस्तित्व में आया।

इस प्रकार, अंत में एक बहुत महत्वपूर्ण अधिकार महत्वपूर्ण एक सही है कि यह कैसे की स्थिति से वसूली के बाद आकार ले लिया।

शिक्षा का अधिकार

संविधान के 86 में संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) जोड़ा गया जो यह प्रावधान करता है कि राज्य विधि बनाकर 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य के लिए अपबंद करेगा। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया। जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ । इस अधिनियम में 7 अध्याय तथा 38 खण्ड हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत 6-14 वर्ष के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख (4.6%) बच्चे विद्यालय नहीं जा पाते हैं, जिनकी शिक्षा के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की 5 वर्षों में आवश्यकता होगी। जिसमें से 25 हज़ार करोड़ रुपये वित्त आयोग राज्यों को देगा।

इतिहास[संपादित करें]

स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में ही भारत में "मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा" के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद् के समक्ष प्रस्ताव रखा था, जो निहित स्वार्थों के विरोध के चलते अंततः ख़ारिज

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा विधेयक
  • समान शिक्षा
  • विद्या

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • शिक्षा का अधिकार (सेन्टर फॉर सिविल सोसायटी द्वारा प्रस्तुत जालघर)

देश में बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए राइट टू एजुकेशन एक्‍ट 2009 (RTE) लाया गया था। यह 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त शिक्षा की गारंटी देता है। भारत की संसद ने 4 अगस्त 2009 को इस एक्‍ट को अधिनियमित किया और यह 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ। इस एक्‍ट के इस प्रवर्तन ने भारत को दुनिया के उन 135 देशों में से एक बना दिया, जिनके पास शिक्षा का मौलिक अधिकार है। हालांकि इसके बाद भी कई ऐसी खामियां व चुनौतियां हैं, जिसके कारण देश के हजारों बच्‍चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानेंगे कि राइट टू एजुकेशन एक्‍ट 2009 का महत्व व उद्देश्‍य क्‍या है, इससे छात्रों को फायदा किस तरह से मिल रहा है और किन खामियों में सुधार की जरूरत है।राइट टू एजुकेशन एक्‍ट 2009 का उद्देश्‍य

- इस एक्‍ट का उद्देश्‍य 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करना।

- 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चों का अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा कराना।

- धारा 6 के तहत बच्‍चों को पड़ोस के किसी भी स्कूल में दाखिला लेने का अधिकार है।

- यह एक्‍ट सुनिश्चित करता है कि कमजोर वर्ग के बच्चे और वंचित समूह के बच्चे के साथ भेदभाव नहीं किया जा सके।

- यदि कोई बच्चा ऐसा है, जो 6 वर्ष की आयु पर किसी विद्यालय में प्रवेश नहीं ले सका है तो वह बाद में अपनी उम्र के अनुसार कक्षा में प्रवेश ले सकता है।

- यदि किसी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरा करने का प्रावधान नहीं है, तो छात्र को किसी दूसरे स्कूल में स्थानांतरण का अधिकार प्रदान होगा।

- निजी और विशेष श्रेणी वाले विद्यालय को भी आर्थिक रूप से निर्बल समुदाय के बच्चों के लिए पहली कक्षा में 25% स्थान आरक्षित करने होंगे।

- स्कूल में प्रवेश तिथि के निकल जाने के बाद भी किसी बालक को प्रवेश देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

- किसी भी बच्चे को किसी भी कक्षा में दाखिले से रोका नहीं जाएगा और ना ही स्कूल से निष्कासित किया जाएगा।

- बच्‍चों को किसी भी प्रकार की शारीरिक और मानसिक यातनाएं विद्यालय में नहीं दी जाएगी।

राइट टू एजुकेशन एक्‍ट 2009 का महत्व

अगर हम राइट टू एजुकेशन एक्‍ट 2009 के महत्‍व पर बात करें, तो " राइट टू एजुकेशन एक्‍ट का देश की शिक्षा प्रणाली के लिए गहरा महत्व है, क्योंकि भारत की शिक्षा प्रणाली में इसने एक आदर्श बदलाव किया है।" भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिस कारण यह अनिवार्य हो जाता है कि इसके नागरिक शिक्षित हों और ऐसा होने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि शिक्षा सार्वभौमिक हो। राइट टू एजुकेशन एक्‍ट 2009 ने इसे कानूनी रूप से अनिवार्य बना दिया है और सभी के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार पर डाल दी है।

आरटीई कार्यान्वयन के लिए प्रमुख चुनौतियां

राइट टू एजुकेशन एक्‍ट 2009 लागू होने के बाद जहां देश के प्रारंभिक शिक्षा में कई बदलाव हुए हैं, वहीं इस एक्‍ट को पूरी तरह से लागू करने के रास्ते में अभी भी कई चुनौतियां हैं।

वित्तीय आवंटन का अभाव- करीब दो दशक से प्रमुख शिक्षाविदों द्वारा शिक्षा के लिए देश के आम बजट में कम से कम 6% आवंटित करने की मांग की जा रही है, लेकिन यह अभी तक संभव नहीं हो पाया है।

सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के प्रति उदासीनता- आज के समय में सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के प्रति उदासीनता की शिकार हो गई है। देश के अंदर मध्यमवर्गीय परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना स्टेटस सिंबल समझते हैं। इनके बीच सरकारी स्कूल में अपने बच्‍चों को भेजना उनके गरिमा खिलाफ है। पब्लिक स्कूल प्रणाली को जब सामान्य सामुदायिक संसाधनों के रूप में देखा जाने लगेगा, तो इसमें काफी सुधार होगा।

सामूहिक प्रयास का अभाव- इस एक्‍ट की मांग है कि कोई बच्चा स्कूल जाने से वंचित न रहे। लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है। आज भी हम अपने आसपास अनेक मासूम बच्चों को चाय की दुकान पर खाली कप उठाते और ढाबे पर बर्तन साफ करते देख सकते हैं। सरकार का प्रयास इस कानून के माध्यम से इन मासूमों को स्कूल की राह दिखाना है। लेकिन न तो अकेली सरकार और न ही अभिभावक इस प्रयास को परवान चढ़ा सकते हैं, बल्कि सामूहिक प्रयास से ही शिक्षा के अधिकार के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बाकी कई नियमों की तरह यह कानून भी कागजों में सिमट कर रह जाए तो कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी।

आरटीई में इन सुधारों की जरूरत

आरटीई का विस्तार किया जाए

सरकार को इस अधिनियम के प्रावधानों के समुचित क्रियान्वयन के लिये अग्रसक्रिय नीति अपनानी चाहिये। इसके लिये स्कूलों को विश्वास में लेना एवं समय पर क्षतिपूर्ति राशि प्रदान करना भी आवश्यक है। इस प्रकार, सरकार वंचितों एवं गरीबों के बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था कर शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित कर सकती है। इसके अलावा कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि इसका विस्तार करके परिणामों की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है। एक्‍ट में 3-6 आयु समूहों और 14-18 आयु समूहों को शामिल करने की आवश्यकता है।

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और क्या किया जाना चाहिए-

- स्कूलों की समुचित निगरानी करनी चाहिये एवं समय-समय पर इस अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन की रिपोर्ट लेनी चाहिये।

- स्कूलों की रियल टाइम आधार पर निगरानी के लिये ऑनलाइन प्रबंधन प्रणाली का प्रयोग करना चाहिये।

- अध्ययन गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये सतत और व्यापक मूल्यांकन को महत्व देना चाहिये।

- अध्यापन गुणवत्ता में सुधार के लिये शिक्षण-प्रशिक्षण व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिये।

- 25% कोटा का पालन न करने के मामले में कड़े दंड का प्रावधान किया जाना चाहिये।

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6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए कौन सा संवैधानिक संशोधन अधिनियम पारित किया गया?

संविधान के 86 में संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) जोड़ा गया जो यह प्रावधान करता है कि राज्य विधि बनाकर 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य के लिए अपबंद करेगा। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया

6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का अभियान कब लागू किया गया?

संविधान के अनुच्छेद 21में 6 से 14 बर्ष तक के बच्चों के लिये अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी है तथा 86 वें संशोधन द्वारा 21 (क) में प्राथमिक शिक्षा को सब नागरिको का मूलाधिकार बना दिया गया है। यह 1 अप्रैल 2010 को जम्मू -कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में लागु हुआ।

राजस्थान में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 कब लागू हुआ?

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, राज्य में 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ

शिक्षा का मूल अधिकार कब लागू हुआ?

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2 दिसंबर, 2002 को संविधान में 86वाँ संशोधन किया गया था और इसके अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया। इस मूल अधिकार के क्रियान्वयन हेतु वर्ष 2009 में नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right of Children to Free and Compulsory Education-RTE Act) बनाया गया।