5 महाजनपद का नाम क्या है? - 5 mahaajanapad ka naam kya hai?

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भारत का इतिहास

5 महाजनपद का नाम क्या है? - 5 mahaajanapad ka naam kya hai?

प्राचीन

  • निओलिथिक, c. 7600 – c. 3300 BCE
  • सिन्धु घाटी सभ्यता, c. 3300 – c. 1700 BCE
  • उत्तर-सिन्धु घाटी काल, c. 1700 – c. 1500 BCE
  • वैदिक सभ्यता, c. 1500 – c. 500 BCE
    • प्रारम्भिक वैदिक काल
      • श्रमण आन्दोलन का उदय
    • पश्चात वैदिक काल
      • जैन धर्म का प्रसार - पार्श्वनाथ
      • जैन धर्म का प्रसार - महावीर
      • बौद्ध धर्म का उदय
  • महाजनपद, c. 500 – c. 345 BCE
  • नंद वंश, c. 345 – c. 322 BCE
  • मौर्या वंश, c. 322 – c. 185 BCE
  • शुंग वंश, c. 185 – c. 75 BCE
  • कण्व वंश, c. 75 – c. 30 BCE
  • कुषाण वंश, c. 30 - c. 230 CE
  • सातवाहन वंश, c. 30 BCE - c. 220 CE

शास्त्रीय

  • गुप्त वंश, c. 200 - c. 550 CE
  • चालुक्य वंश, c. 543 - c. 753 CE
  • हर्षवर्धन वंश, c. 606 CE - c. 647 CE
  • कार्कोट वंश, c. 724 - c. 760 CE
  • अरब अतिक्रमण, c. 738 CE
  • त्रिपक्षीय संघर्ष, c. 760 - c. 973 CE
    • गुर्जर-प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट साम्राज्य
  • चोल वंश, c. 848 - c. 1251 CE
  • द्वितीय चालुक्य वंश(पश्चिमी चालुक्य), c. 973 - c. 1187 CE

मध्ययुगीन

  • दिल्ली सल्तनत, c. 1206 - c. 1526 CE
    • ग़ुलाम वंश
    • ख़िलजी वंश
    • तुग़लक़ वंश
    • सैयद वंश
    • लोदी वंश
  • पाण्ड्य वंश, c. 1251 - c. 1323 CE
  • विजयनगर साम्राज्य, c. 1336 - c. 1646 CE
  • बंगाल सल्तनत, c. 1342 - c. 1576 CE
  • मुग़ल वंश, c. 1526 - c. 1540 CE
  • सूरी वंश, c. 1540 - c. 1556 CE
  • मुग़ल वंश, c. 1556 - c. 1707 CE
  • मराठा साम्राज्य, c. 1674 - c. 1818 CE

आधुनिक

  • मैसूर की राजशाही, c. 1760 - c. 1799 CE
  • कम्पनी राज, c. 1757 - c. 1858 CE
  • सिख साम्राज्य, c. 1799 - c. 1849 CE
  • प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, c. 1857 - c. 1858 CE
  • ब्रिटिश राज, c. 1858 - c. 1947 CE
    • स्वतन्त्रता आन्दोलन
  • स्वतन्त्र भारत, c. 1947 CE - वर्तमान

सम्बन्धित लेख

  • भारतीय इतिहास की समयरेखा
  • भारतीय इतिहास में वंश
  • आर्थिक इतिहास
  • भाषाई इतिहास
  • वास्तुशास्त्रीय इतिहास
  • कला का इतिहास
  • साहित्यिक इतिहास
  • दार्शनिक इतिहास
  • धर्म का इतिहास
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  • शिक्षा का इतिहास
  • मुद्रांकन इतिहास
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इतिहास
  • आविष्कारों और खोजों की सूची
  • सैन्य इतिहास
  • नौसैन्य इतिहास

  • दे
  • वा
  • सं

महाजनपद प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक इकाईयों को कहते थे। वे गणतंत्र या राजतन्त्र के रूप में शासित थे। उत्तर वैदिक काल में कुछ जनपदों का उल्लेख मिलता है।[1]

इतिहास[संपादित करें]

महाजनपदों का उदय[संपादित करें]

कई महाजनपद उत्तर वैदिक काल (ल. 1100 ई.पू) से विकसित होने लगे थे, जिसमें कुरु राजवंश, कोसल राजवंश, पाञ्चाल राजवंश, विदेह राजवंश, मत्स्य राजवंश, चेदि राजवंश, प्राचीन मगध और गांधार राजवंश शामिल थे। 700 से 600 ई.पू के बीच यह जनपद और प्राचीन राजवंश महाजनपदों मे विकसित होने लगे थे।

5 महाजनपद का नाम क्या है? - 5 mahaajanapad ka naam kya hai?

8वीं से 6वीं शताब्दी ई.पू को प्रारम्भिक भारतीय इतिहास में एक प्रमुख मोड़ के रूप में माना जाता है। इस काल मे उत्तरी भारत में लोहे का व्यापक उपयोग किया जाने लगा था, जिसके कृषि का व्यवस्थित विकास हुआ, जिसके परिणामस्वरूप सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के बाद प्राचीन भारत में दूसरी बार बड़े शहरों का उदय हुआ, जिसे द्वितीय शहरीकरण कहते हैं। द्वितीय शहरीकरण से ही महाजनपदों का उदय हुआ।

श्रमण परम्पराओं का उदय[संपादित करें]

6वीं शताब्दी ई.पू से उत्तर भारत में श्रमण परम्परा का उदय हुआ, जिनमें जैन पन्थ, आजीविक पन्थ और अंत में बौद्ध पन्थ शामिल थे। उनके साहित्यिक स्रोत उस समय के इतिहास को जानने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। शुंग साम्राज्य के उदय के समय 185 ई.पू, तक यह नास्तिक परंपराएं तत्कालीन राज्यों की राजनीति और समाज में हावी बनी रही।

गणना और स्थिति[संपादित करें]

ये सभी महाजनपद आज के उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान से बिहार तक और हिन्दुकुश से गोदावरी नदी तक में फैल हुए थे। दीर्घनिकाय के महागोविन्द सुत्त में भारत की आकृति का वर्णन करते हुए उसे उत्तर में आयताकार तथा दक्षिण में त्रिभुजाकार यानि एक बैलगाड़ी की तरह बताया गया है।

बौद्ध निकायों में भारत को पाँच भागों में वर्णित किया गया है - उत्तरापथ (पश्चिमोत्तर भाग), मध्यदेश, प्राची (पूर्वी भाग) दक्षिणापथ तथा अपरान्त (पश्चिमी भाग) का उल्लेख मिलता है। इससे इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि भारत की भौगोलिक एकता ईसापूर्व छठी सदी से ही परिकल्पित है। इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनि की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पश्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था

कौटिल्य ने एक चक्रवर्ती साम्राट के अन्तर्गत सम्पूर्ण भारतवर्ष की राजनीतिक एकता के माध्यम से एक वृहत्तर संगठित भारत की परिकल्पना की थी। ईसापूर्व छठी सदी से ईसापूर्व दूसरी सदी तक प्रचलन में रहे आहत सिक्कों के वितरण से अनुमान होता है कि ईसापूर्व चौथी सदी तक सम्पूर्ण भारत में एक ही मुद्रा प्रचलित थी। इससे उस युग में भारत के एकता की साफ झलक दिखती है।

ईसा पूर्व छठी सदी में वैयाकरण पाणिनि ने 22 महाजनपदों का उल्लेख किया है। इनमें से तीन - मगध, कोसल तथा वत्स को महत्वपूर्ण बताया गया है।

आरम्भिक बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में इनके बारे में अधिक जानकारी मिलती है। यद्यपि कुल सोलह महाजनपदों का नाम मिलता है पर ये नामाकरण अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न हैं। इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि ये अन्तर भिन्न-भिन्न समय पर राजनीतिक परिस्थितियों के बदलने के कारण हुआ है। इसके अतिरिक्त इन सूचियों के निर्माताओं की जानकारी भी उनके भौगोलिक स्थिति से अलग हो सकती है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु में 16 महाजनपदों का उल्लेख है। जो इस तरह है–

  1. काशी
  2. कोशल
  3. अंग (अङ्ग)
  4. मगध
  5. वज्जि
  6. मल्ल
  7. चेदि
  8. वत्स
  9. कुरु
  10. पांचाल (पञ्चाल)
  11. मत्स्य (या मछ)
  12. शूरसेन
  13. अश्मक
  14. अवन्ति
  15. गांधार
  16. कंबोज (या कम्बोज)

सत्ता संघर्ष[संपादित करें]

5 महाजनपद का नाम क्या है? - 5 mahaajanapad ka naam kya hai?

मगध महाजनपद का साम्राज्य विस्तार

ईसापूर्व छठी सदी में जिन चार महत्वपूर्ण राज्यों ने प्रसिद्धि प्राप्त की उनके नाम हैं– मगध के हर्यंक, कोसल के इक्ष्वाकु, वत्स के पौरव और अवन्ति के प्रद्योत। हर्यंक एक ऐसा वंश था जिसकी स्थापना बिंबिसार द्वारा 544 ई.पू मगध में की गई थी। प्रद्योतों का नाम ऐसा उस वंश के संस्थापक के कारण ही था। संयोग से महाभारत में वर्णित प्रसिद्ध राज्य– कुरु,पांचाल, काशी और मत्स्य इस काल में भी थे पर उनकी गिनती अब छोटी शक्तियों में होती थी।

ईसापूर्व छठी सदी में अवंति के राजा प्रद्योत ने कौशाम्बी के राजा तथा प्रद्योत के दामाद उदयन के साथ लड़ाई हुई थी। उससे पहले उदयन ने मगध की राजधानी राजगृह पर हमला किया था। कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी को अपने अधीन कर लिया और बाद में उसके पुत्र ने कपिलवस्तु के शाक्य राज्य को जीत लिया। मगध के राजा बिंबिसार ने अंग को अपने में मिला लिया तथा उसके पुत्र अजातशत्रु ने वैशाली के लिच्छवियों को जीत लिया।

ईसापूर्व पाँचवी सदी में पौरव और प्रद्योत सत्तालोलुप नहीं रहे और हर्यंको तथा इक्ष्वांकुओं ने राजनीतिक मंच पर मोर्चा सम्हाल लिया। प्रसेनजित तथा अजातशत्रु के बीच संघर्ष चलता रहा। इसका हंलांकि कोई परिणाम नहीं निकला और अंततोगत्वा मगध के हर्यंकों को जात मिली। इसके बाद मगध उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया। 461 ई.पू में अजातशत्रु की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उदयिन ने सत्ता संभाली और उसी ने मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र (आधुनिक, पटना) स्थानांतरित की। हँलांकि लिच्छवियों से लड़ते समय अजातशत्रु ने ही पाटलिपुत्र में एक दुर्ग बनवाया था, पर इसका उपयोग राजधानी के रूप में उदयिन ने ही किया।

उदयिन तथा उसके उत्तराधिकारी प्रशासन तथा राजकाज में निकम्मे रहे तथा इसके बाद 413 ई.पू में शिशुनाग वंश का उदय हुआ। राजा शिशुनाग के पुत्र कालाशोक ने मगध साम्राज्य का विस्तार किया। महाजनपद काल का सबसे बड़ा साम्राज्य मगध का था।

महाजनपद काल का अंत और साम्राज्यों का उदय[संपादित करें]

शिशुनाग वंश के बाद महापद्मनन्द नामक व्यक्ति ने मगध की सत्ता संभाली और 345 ई.पू में नंद साम्राज्य की नीवं रखी। उसने मगध की श्रेष्ठता को और उँचा बना दिया। महापद्मनन्द ने लगभग सभी महाजनपदों को जीत लिया और साम्राज्य का विस्तार किया। नंद साम्राज्य के उदय से ही महाजनपद काल का अंत माना जाता है। नंद साम्राज्य के बाद मौर्य साम्राज्य (ल. 322–185 ई.पू) मे मगध की सत्ता संभाली।

कृषि व्यवस्था[संपादित करें]

महाजनपद काल में कृषि क्षेत्र में दो बड़े परिवर्तन हुए। हल के फाल लोहे से बनने लगे। जिसके कारण कठोर जमीन को आसानी से जोता जा सकता था। इस कारण फसलों की उपज में वृद्धि हो गई । धान की रोपाई अब सामान्य और व्यवस्था पूर्ण हो गई, जिससे पैदावार अधिक होने लगी। कृषि क्षेत्र मे समृद्धि से राज्यों के कर और आय मे वृद्धि होने लगी और महजनपदों की सैन्यशक्ति मे भी वृद्धि हुई।

महाजनपदों का संक्षिप्त परिचय[संपादित करें]

अवन्ति[संपादित करें]

आधुनिक मालवा ही प्राचीन काल की अवन्ति है। इसके दो भाग थे― उत्तरी अवन्ति और दक्षिणी अवन्ति। उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी और दक्षिणी अवन्ति की राजधानी माहिष्मति थी। प्राचीन काल में यहाँ हैहयवंश का शासन था।

अश्मक या अस्सक[संपादित करें]

दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद था। नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच स्थित इस प्रदेश की राजधानी पोटन थी। इस राज्य के राजा इक्ष्वाकुवंश के थे। इसका अवन्ति के साथ निरंतर संघर्ष चलता रहता था। धीरे-धीरे यह राज्य अवन्ति के अधीन हो गया।

अंग[संपादित करें]

यह मगध के पूरब मे स्थित था। वर्तमान के बिहार के मुंगेर और भागलपुर जिले। इनकी राजधानी चंपा थी। चंपा उस समय भारतवर्ष के सबसे प्रशिद्ध नगरियों में से थी। मगध और अंग के बीच हमेशा संघर्ष होता रहता था और अंत में मगध के बिंबिसार इस राज्य को पराजित कर अपने में मिला लिया।

कम्बोज[संपादित करें]

गांधार-कश्मीर के उत्तर आधुनिक पामीर का पठार था, उसके पश्चिम बदख्शाँ-प्रदेश कंबोज महाजनपद कहलाता था। हाटक या राजापुर इस राज्य की राजधानी थी।

काशी[संपादित करें]

इसकी राजधानी वाराणसी थी। जो वरुणा और असी नदियों की संगम पर बसी थी। वर्तमान की वाराणसी व आसपास का क्षेत्र इसमें सम्मिलित रहा था। 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के राजा थे। इसका कोशल राज्य के साथ संघर्ष रहता था। गुत्तिल जातक के अनुसार काशी नगरी 12 योजन विस्तृत थी और भारत वर्ष की सर्वप्रधान नगरी थी।

कुरु[संपादित करें]

आधुनिक हरियाणा तथा दिल्ली का यमुना नदी के पश्चिम वाला अंश शामिल था। इसकी राजधानी आधुनिक इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) थी। जैनों के उत्तराध्ययनसूत्र में यहाँ के इक्ष्वाकु नामक राजा का उल्लेख मिलता है। जातक कथाओं में सुतसोम, कौरव और धनंजय यहाँ के राजा माने गए हैं। कुरुधम्मजातक के अनुसार, यहाँ के लोग अपने सीधे-सच्चे मनुष्योचित बर्ताव के लिए अग्रणी माने जाते थे और दूसरे राष्ट्रों के लोग उनसे धर्म सीखने आते थे।

कोशल[संपादित करें]

उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिला, गोंडा और बहराइच के क्षेत्र शामिल थे। इसकी प्रथम राजधानी अयोध्या थी और द्वितीय राजधानी श्रावस्ती थी। कोशल के एक राजा कंश को पालिग्रंथों में 'बारानसिग्गहो' कहा गया है। उसी ने काशी को जीत कर कोशल में मिला लिया था। कोशल देश के प्रसिद्ध राजा प्रसेनजित थे।

गांधार[संपादित करें]

पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र और कश्मीर का कुछ भाग। इसकी राजधानी तक्षशिला थी, इसे आधुनिक कंदहार से जोड़ने की गलती कई बार लोग कर देते हैं, जो कि वास्तव में इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था।

चेदि[संपादित करें]

वर्तमान में बुंदेलखंड का भाग। इसकी राजधानी शक्तिमती थी। इस राज्य का उल्लेख महाभारत में भी है। शिशुपाल यहाँ का प्रसिद्ध राजा था।

वज्जि या वृजि[संपादित करें]

यह आठ गणतांत्रिक कुलों का संघ था, जो उत्तर बिहार में गंगा के उत्तर में अवस्थित था तथा जिसकी राजधानी वैशाली थी। इसमें आज के बिहार राज्य के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर व मुजफ्फरपुर जिले सम्मिलित थे।

वत्स या वंश[संपादित करें]

उत्तर प्रदेश के प्रयाग (आधुनिक प्रयागराज) के आस-पास केन्द्रित था। पुराणों के अनुसार, राजा निचक्षु ने यमुना नदी के तट पर अपने राज्यवंश की स्थापना तब की थी, जब हस्तिनापुर राज्य का पतन हो गया था। इसकी राजधानी कौशाम्बी थी।

पांचाल[संपादित करें]

पश्चिमी उत्तर प्रदेश पास केन्द्रित था। पांचाल की दो शाखाये थी– उत्तरी और दक्षणि। उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र और दक्षणि पांचाल की काम्पिल्य थी। मध्य दोआब क्षेत्र (बदायु और फरूखाबाद) "चुलानी ब्रह्मदत्त" पांचाल देश का एक महान शासक था।

मगध[संपादित करें]

मगध दक्षिण बिहार के पटना व गया जिले पर स्थित था। इसकी प्रारम्भिक राजधानी राजगीर थी, जो चारो तरफ से पर्वतो से घिरी होने के कारण गिरिब्रज के नाम से जानी जाती थी। मगध की स्थापना बृहद्रथ ने की थी और बृहद्रथ के बाद जरासंध यहाँ का शाषक था। शतपथ ब्राह्मण में इसे कीकट कहा गया है। मगध सभी महाजनपदों में सबसे‌ शक्तिशाली महाजनपद के रूप में जाना जाता है इस पपर– बृहद्रथ, हर्यक, नंद, मौर्य आदि ने शासन किया। भविष्य में जाकर चंद्रगुप्त मौर्य ने धनानंद को हराया और वह मगध व संपूर्ण भारतवर्ष का प्रतापी शासक बना।

मत्स्य या मच्छ[संपादित करें]

इसमें राजस्थान के अलवर, भरतपुर तथा जयपुर जिला के क्षेत्र शामिल थे। इसकी राजधानी विराटनगर थी। यहां के लोग बहुत ईमानदार हुआ करते थे।

मल्ल[संपादित करें]

यह भी एक गणसंघ था और जो गोरखपुर के आसपास था। मल्लों की दो शाखाएँ थीं। एक की राजधानी कुशीनारा थी, जो वर्तमान कुशीनगर है तथा दूसरे की राजधानी पावा या पव थी जो वर्तमान फाजिलनगर है।

सुरसेन या शूरसेन[संपादित करें]

इसकी राजधानी मथुरा थी। यह कुरु महाजनपद के दक्षिण में स्थित था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अवंतिपुत्र यहाँ का राजा था। पुराणों में मथुरा के राजवंश को यदुवंश कहा गया है। अपने ज्ञान, बुद्धि और "वैभव" के कारण यह नगर अत्यन्त प्रसिद्ध था।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • जनपद
  • महाभारत
  • गणसंघ
  • संगम काल
  • वैदिक सभ्यता
  • वैदिक साहित्य
  • मगध महाजनपद
  • हिन्दू धर्म का इतिहास
  • भारत का इतिहास
  • भारत के राजवंशों और सम्राटों की सूची
  • हिन्दू साम्राज्यों और राजवंशों की सूची

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "महाजनपदों का उदय". मूल से 11 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 अगस्त 2019.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • गण और गणराज्य की अवधारणा (दैनिक जागरण)
  • सोलह महाजनपदों का उदय

5 महाजनपद कौन कौन से हैं?

16 महाजनपद – उनकी राजधानी एवं भौगोलोक स्थिति.
अंग चंपा भागलपुर /मुंगेर के आस-पास का क्षेत्र -पूर्वी बिहार.
मगध राजगृह,वैशाली,पाटलिपुत्र ... .
काशी वाराणसी ... .
वत्स कौशाम्बी ... .
वज्जी वैशाली ,विदेह,मिथिला ... .
कोसल श्रावस्ती ... .
अवन्ती उज्जैन ,महिष्मति ... .
मल्ल कुशावती.

16 महाजनपद का क्या नाम था?

अंग, मगध, कौशल, काशी, वज्जी, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पांचाल, मत्स्य, अवंती, सुरसेन, अस्माका, गांधार और कंभोज 16 महाजनपद थे।

भारत में कितने महाजनपद है?

गांधार महाजनपद के प्रमुख नगर थे- आज के पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र उस काल में भारत का गंधार प्रदेश था। आधुनिक कंदहार इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। अंगुत्तरनिकाय के अनुसार बुद्ध तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था।

16 महाजनपदों में प्रथम जनपद कौन था?

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