शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन को बतायें? - shikshan adhigam prakriya ko prabhaavit karane vaale kaarak kaun ko bataayen?

सीखने को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Effecting to Learning): सीखने के विभिन्न प्रयोगों में यह पाया गया कि सीखने को प्रभावित करने वाले
विभिन्न तत्त्व कारक, दशाएँ या परिस्थितियाँ होती हैं। इनको नियन्त्रित करके ही सीखने में
उन्नति की जाती है।

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जैसा कि एम. एल. बिगी (M. L. Biggie) ने लिखा है- “अधिगम क्षमता
में वृद्धि से तात्पर्य ऐसी स्थितियों के निर्माण से है, जिनमें निश्चित समय में बालक की
क्रियाओं में अधिगम परिवर्तन उत्पन्न हो।

Improving the efficiency of learning means establishing situations in
which maximum change of insight or behaviour may occure in a given time.

अत: हम सीखने को प्रभावित करने वाली दशाओं एवं कारकों को निम्न रूपों में स्पष्ट करते हैं-

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन को बतायें? - shikshan adhigam prakriya ko prabhaavit karane vaale kaarak kaun ko bataayen?

1. बालक की योग्यता एवं क्षमता (Ability and capacity of child)

यहाँ पर
बालक की योग्यता एवं क्षमता से तात्पर्य बुद्धि एवं परिपक्वता से है। बुद्धि जन्म-जात होती
है। बालक के विकास के साथ-साथ उसमें तेजी बढ़ती जाती है। परिपक्वता का सम्बन्ध
बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास से होता है।

अत: बालक में सीखने की योग्यता (रुचि,
बुद्धि-लब्धि का स्तर, मनोदशा, लगन और उत्साह) एवं शारीरिक परिपक्वता का प्रभाव
सीखने की अवस्था को निश्चित करता है। इसीलिये मनोवैज्ञानिकों ने सीखने वाले के अध्ययन
के आधार पर सीखने की क्रिया एवं विधि को निश्चित करने का प्रयास किया है।

परिणामतः
शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यचर्या का निर्माण बालक के आधार पर किया जाता है।

2. निश्चित उद्देश्य (Definite aim)

बालकों को जब कोई ज्ञान दिया जाय तो
उसका उद्देश्य स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिये। बालकों को उद्देश्यों से परिचित करा दिया
जाय ताकि वे स्वयं को सीखने के लिये तैयार कर सकें।

इस प्रकार से उनमें नवीन कार्य को
सीखने के प्रति ‘ललक’ होगी। यह ‘ललक’ जिसे आन्तरिक उत्साह कहते हैं, बालकों के
सीखने में सहायक होगी। वे अपना ध्यान केन्द्रित करके पूर्ण मनोयोग से सीखने के फल को
प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।

अध्यापक को ज्ञान का पक्ष एवं विपक्ष बालकों के समक्ष
स्पष्ट कर देना चाहिये ताकि वे उसका दुरुपयोग न कर सकें।

3. प्रेरकों का प्रयोग (Use of motives)

‘प्रेरक’ शब्द से तात्पर्य बालक में
आन्तरिक एवं बाह्य रूप से उत्साह या प्रेरणा देने वाली शक्ति से होता है। बालक के सीखने
में ही नहीं वरन् सभी प्राणियों के सीखने में प्रेरक तत्त्वों को आवश्यक माना गया है।

शिक्षा
के क्षेत्र में छोटे बालकों को पुरस्कार एवं दण्ड और बड़े बालकों को प्रशंसा एवं निन्दा के
द्वारा प्रेरणा देकर उन्हें नवीन ज्ञान को शीघ्रातिशीघ्र सिखाया जा सकता है।

इसीलिये एम.

एल. बिगी (M. L. Biggie) ने लिखा है- “एक अध्यापक, जो अपने छात्रों को अच्छी
प्रकार से शिक्षा के प्रति प्रेरित कर सकता है, वह शिक्षा सम्बन्धी युद्ध को आधा प्रारम्भ से ही
जीत लेता है।

A teacher who can keep his students well motivated has won
more than half the battle.

4. विषय का स्वरूप एवं विधि (Nature and method of subject)

सीखने पर
सीखी जाने वाली विषय-वस्तु एवं सीखने की विधि का सीधा प्रभाव पड़ता है। विषय
सार्थक, उपयोगी और यथार्थ होना चाहिये, जिससे सीखने वाले तात्कालिक लाभ उठा सकें।

साथ ही सीखने की विधि, खेल विधि, क्रिया विधि आदि का प्रयोग शिक्षक को प्रारम्भिक
कक्षाओं में करना चाहिये और उच्च कक्षाओं में सम्पूर्ण विधि’, सामूहिक विधि’, ‘सहयोगी
विधि’ एवं ‘सह-सम्बन्ध विधि’ आदि का पालन करना आवश्यक है।

यही कारण है कि
कक्षा शिक्षण के लिये ‘शिक्षण सूत्र’ शिक्षण पद्धतियाँ एवं विधियों के प्रशिक्षण के दौरान
शिक्षकों को अलग-अलग ज्ञान दिया जाता है।

अत: शिक्षक को छात्र के आधार पर विषय
का चयन एवं उपयुक्त विधि का प्रयोग करना चाहिये।

5. शिक्षक का व्यक्तित्व (Personality of teacher)

इंग्लैण्ड की उच्च शिक्षा
के विज्ञान छात्र-छात्राओं ने हड़ताल की। उनकी प्रमुख माँग थी कि ‘नोबल पुरस्कार’
विजेता हमको पढ़ायें। इससे स्पष्ट होता है कि बालकों में उच्च बनने की आकांक्षा जन्म से
ही होती है।

वे शिक्षक को अपना आदर्श बनाते हैं और उसका अनुसरण करते हैं ताकि ज्ञान
के क्षेत्र में उन्नति कर सकें। अत: सिखाने वाले का व्यक्तित्व प्रभावशाली हो, जिससे छात्र
सीखने के क्षेत्र में तीव्र उन्नति कर सकें।

6. सहायक साधनों का प्रयोग (Use of materials aids)

प्रत्यक्षात्मक एवं
विचारात्मक सीखने में सहायक साधनों का प्रयोग अति आवश्यक होता है। सीखने में ज्ञानेन्द्रियों
एवं मानसिक शक्तियों का सही प्रयोग तभी सफल हो सकता है, जब उसके संसाधन पर्याप्त हों।

इसलिये प्रत्येक विषय के शिक्षण के लिये सही सहायक सामग्री का प्रयोग अध्यापक को
करना चाहिये। वैज्ञानिक विषयों में सहायक यन्त्रों का प्रयोग एवं साहित्यिक विषयों में
विद्वानों द्वारा रचित पाण्डुलिपियों का प्रयोग अवश्य होना चाहिये।

बालकों को जब हम बोर्ड
पर कोई चित्र बनाकर समझाते हैं तो वह इतना अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं होता, जितना कि
उसका प्रत्यक्षात्मक निरीक्षण लाभप्रद होता है।

7. अभ्यास (Exercise)

किसी भी प्रकार का सीखना हो, अभ्यास के द्वारा उसे
स्थायी एवं सरल बनाया जा सकता है। अभ्यास के द्वारा कठिन कार्य को भी सरलता से
सीखा जा सकता है।

अभ्यास करवाते समय शिक्षक को सही विधि एवं उचित समय वितरण
का ध्यान रखना चाहिये अन्यथा अभ्यास का प्रभाव सीखने में प्रगति न करके रुकावट उत्पन्न
करेगा।

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  5. सीखने को प्रभावित करने वाले कारक

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

अधिगम को प्रभावित करने वाले वातावरण से संबंधित कुछ मुख्य कारक वातावरण का प्रभाव , शारीरिक तथा मानसिक वातावरण , व्यक्तित्व का विकास , परिवार का वातावरण , कक्षा का भौतिक वातावरण इत्यादि हैं।

शिक्षण क्या है शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?

हालाँकि, शिक्षण विधियाँ, शिक्षक के संचार कौशल और शिक्षक प्रशिक्षण सबसे महत्वपूर्ण और प्राथमिक कारक हैं जो शिक्षण की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं

निम्नलिखित में से कौन सा कारक अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करता है?

Solution : सार्थक संगति का सीखने पर केवल सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। छात्रों को शिक्षकों के साथ अपने संबंध बढ़ाने चाहिए, इससे सीखने पर असर पड़ता है। एजेंट के रूप में शिक्षक जो अपने छात्रों और काम पर उनके अर्थ की भावना को प्रभावित कर सकते हैं। ... कभी-कभी साथियों के साथ प्रतिस्पर्धा भी सीखने पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।

अधिगम से आप क्या समझते हैं अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए?

वातावरण(Environment) भौतिक एवं सामाजिक वातावरण दोनों ही शिक्षण अधिगम को प्रभावित करते हैं। शुद्ध वायु, उचित प्रकाश, शान्त वातावरण एवं मौसम की अनुकूलता के बीच बच्चे शीघ्र सीखते है। इसके अभाव में वे शीघ्र थक जाते हैं तथा अधिगम प्रक्रिया बाधित होती है।