5. रैदास के पदों के माध्यम से हमें क्या संदेश मिलता है? - 5. raidaas ke padon ke maadhyam se hamen kya sandesh milata hai?

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. कवि ने अपनी तुलना ईश्वर से किस रूप में की है?

उत्तरः कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे अपनी तुलना करता है। उनका प्रभु हर तरह से श्रेष्ठ है तथा उनके मन में निवास करता है। हे प्रभु आप चंदन तथा हम पानी हैं। आपकी सुगंध मेरे अंग-अंग में बसी है। आप बादल हैं, मैं मोर हूँ। जैसे घटा आने पर मोर नाचता है। मेरा मन भी आपके स्मरण से नाच उठता है। जैसे चकोर प्रेम से चाँद को देखता है वैसे ही मैं आपको देखता हूँ। प्रभु आप दीपक हैं तो मैं उसमें जलने वाली बाती हूँ। जिसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है। प्रभु आप मोती हो तो मैं माला का धागा हूँ। जैसे सोने और सुहागे का मिलन हो गया हो, प्रभु आप स्वामी हैं मैं आपका दास हूँ। मैं सदा आपकी भक्ति करता हूँ।

प्रश्न 2. रैदास के प्रभु में वे कौन-सी विशेषताएँ हैं जो उन्हें अन्य देवताओं से श्रेष्ठ सिद्ध करती हैं?
उत्तरः (i) वे केवल झूठी प्रशंसा या स्तुति नहीं चाहते।
(ii) वे जाति प्रथा या छुआछुत को महत्व नहीं देते। वे समदर्शी हैं।
(iii) उनके लिए भावना प्रधान है। वे भक्त वत्सल हैं।
(iv) दीन दुखियों व शोषितों की विशेष रूप से सहायता करते हैं। वे गरीब नवाज हैं।
(v) वे किसी से डरते नहीं हैं, निडर हैं।

प्रश्न 3. कवि रैदास ने अपने पद के माध्यम से तत्कालीन समाज का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तरः 

  • कवि रैदास ने अपने पद ‘ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै’ में सामाजिक छुआछूत एवं भेदभाव की तत्कालीन स्थिति का अत्यंत मार्मिक एवं यथार्थ चित्र खींचा है। 
  • उन्होंने अपने पद में कहा है कि गरीब एवं दीन-दुखियों पर कृपा बरसाने वाला एकमात्र प्रभु है। उन्होंने ही एक ऐसे व्यक्ति के माथे पर छत्र रख दिया है, राजा जैसा सम्मान दिया है, जिसे जगत के लोग छूना भी पसंद नहीं करते । समाज में निम्न जाति एवं निम्न वर्ग के लोगों को तिरस्कारपूर्ण दृष्टि से देखा जाता था, ऐसे समाज में प्रभु ही उस पर द्रवित हुए।
  • कवि द्वारा नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन आदि संत कवियों का दिया गया उदाहरण दर्शाता है कि लोग निम्न जाति के लोगों के उच्च कर्म पर विश्वास भी मुश्किल से करते थे। इसलिए कवि को उदाहरण देने की आवश्यकता पड़ी। इन कथनों से तत्कालीन समाज की सामाजिक विषमता की स्पष्ट झलक मिलती है।

प्रश्न 4. कवि रैदास अन्य कवियों जैसे नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना एवं सैन की चर्चा क्यों करते हैं?उत्तरः 

  • कवि रैदास का कहना है कि उच्च कोटि के संतऋ जैसे-नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना एवं सैन निम्न वर्ण एवं निम्न वर्ग के सदस्य होते हुए भी ईश्वर की कृपा पाकर तर गए अर्थात् इस संसार रूपी भव सागर से पार हो गए, ठीक उसी प्रकार सभी संतों को, चाहे वे निम्न वर्ण एवं निम्नवर्ग के ही क्यों न हों, इस पर ध्यान देना चाहिए और ईश्वर की भक्ति एवं आराधना के द्वारा मोक्ष प्राप्त करने के उपाय करने चाहिए।
  • वास्तव में ईश्वर अत्यधिक दयालु एवं सर्वशक्तिमान हैं और उनके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। वह सब कुछ करनें में समर्थ हैं, बस उनकी कृपा की आवश्यकता है। संत जनों को यही बताने के लिए कवि ने उपरोक्त संतों का नाम उदाहरण के रूप में दिया है।

प्रश्न 5. रैदास के पदों के माध्यम से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तरः रैदास के पदों से हमें यह संदेश मिलता है कि ईश्वर ही हर असंभव कार्य को संभव करने का सामथ्र्य रखता है। ईश्वर सदैव श्रेष्ठ और सर्वगुण सम्पन्न रहा है। अतः हमें उस भगवान की शरण में जाना चाहिए क्योंकि वही हमें इस संसार रूपी सागर से पार लगा सकता है। ईश्वर ने जात-पात, अमीर-गरीब के भेदभाव को न मान ऐसे-ऐसे अछूतों का उद्धार किया है जिन्हें समाज ने ठुकरा दिया था। अतः हमें ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए।

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रैदास के पद नामक पाठ का मूल संदेश क्या है?

रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।

रैदास के पद के आधार पर बताइए कि हमें भगवान की भक्ति करने से क्या मिलता है?

रैदास अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं, जिन्हें अपने आराध्य को देखने से असीम खुशी मिलती है। कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि जिस प्रकार वन में रहने वाला मोर आसमान में घिरे बादलों को देख प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार कवि भी अपने आराध्य को देखकर प्रसन्न होता है। सोने व सुहागे का आपस में घनिष्ठ संबंध है।

रैदास के पद में कौन सी भाषा का प्रयोग किया गया है?

रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू - फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है।

3 रैदास के प्रभु में वे कौन सी विशेषताएँ हैं जो उन्हें अन्य देवताओं से श्रेष्ठ सिद्ध करती हैं?

रैदास के प्रभु में वे कौन-सी विशेषताएँ हैं जो उन्हें अन्य देवताओं से श्रेष्ठ सिद्ध करती हैं? (i) वे केवल झूठी प्रशंसा या स्तुति नहीं चाहते। (ii) वे जाति प्रथा या छूआछूत को महत्व नहीं देते। वे समदर्शी हैं