Solution : भारतीय प्रेस की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं - (i) यह न सिर्फ विचारों की तेजी से फैलानेवाली अनिवार्य सामाजिक संस्था बन गयी बल्कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, उसकी नीतियों एवं शोषण के विरुद्ध जागृति लाने एवं देशप्रेम की भावना जागृत कर राष्ट्र निर्माण में इसने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया। (ii) इसके द्वारा न्यायिक निर्णयों में पक्षपात, धार्मिक हस्तक्षेप और प्रजातीय भेदभाव की आलोचना करने से धार्मिक एवं सामाजिक सुधार-आन्दोलन को बल मिला तथा भारतीय जनमत जागृत हुआ। (iii) इसने न केवल राष्ट्रवादी आन्दोलन को एक नई दिशा दी अपितु भारत में शिक्षा को प्रोत्साहन, आर्थिक विकास एवं औद्योगिकरण तथा श्रम आन्दोलन को भी प्रोत्साहित करने का कार्य किया। (iv) प्रेस ने राष्ट्रीय आन्दोलन के हर पक्ष चाहे वह राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक हो या सांस्कृतिक-सभी को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया। (v) विदेशी सत्ता से त्रस्त जनता को सन्मार्ग दिखाने एवं साम्राज्यवाद के विरोध में निर्भीक स्वर उठाने का कार्य प्रेस के माध्यम से ही किया गया। (vi) नई शिक्षा नीति के प्रति व्यापक असंतोष को सरकार के समक्ष पहुँचाने का कार्य प्रेस ने ही किया। (vii) सामाजिक सुधार के क्षेत्र मे, प्रेस ने सामाजिक रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, अंधविश्वासों तथा अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव को लेकर लगातार आलोचनात्मक लेख प्रकाशित किए। (viii) प्रेस भारत की विदेशी नीति की भी खूब समीक्षा करती थी। (ix) देश के राष्ट्रीय आन्दोलन को नई दिशा देने एवं राष्ट्रनिर्माण में भी प्रेस की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। Show
1-प्रेस में प्रकाशित लेखों और समाचारपत्रों से भारतीय औपनिवेशिक शासन के वास्तविक स्वरूप से परिचित हुए | समाचारपत्रों ने उपनिवेशवाद और सम्रज्य्वाद का वास्तविक चरित्र उजागर कर इनके विरुद्ध लोकमत को संगठित किया | 2-प्रेस ने जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान किया | इसने भारत में चलनेवाले विभिन्न आन्दोलनों, जैसे-होमरूल आंदोलन एवं राजनीतिक कार्यक्रमों से जनता को परिचित कराया | प्रेस ने स्वदेशी और बहिष्कार की नीति का भी प्रचार किया | 3-महात्मा गाँधी का भारतीय राजनीति में पर्दापर्ण प्रेस के द्वारा ही हुआ | आगे भी उनके सत्याग्रह एवं अहिंसा के विचारों को तथा उनके कार्यक्रमों को प्रभावशाली बनाने में प्रेस की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी | 4-समाचारपत्रों ने राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी एवं राष्ट्र-निर्माण में योगदान किया | इसने एक और नरमपंथी तथा दूसरी ओर उग्रराष्ट्रवादी भावना एवं क्रन्तिकारी आन्दोलनों से जनता को परिचित कराया | 5-प्रेस ने एक ओर तो देशी राज्यों के अधिकारों पर किए गए आघात का विरोध किया तो दूसरी और रजवाड़ों में व्याप्त अत्याचार, विलासिता, आर्थिक अनियमितता की कटु आलोचना की | देशी राज्यों में चल रहे लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना के संघर्ष को भी प्रेस ने समर्थन दिया | 6-प्रेस ने सर्कार की शैक्षिणिक, आर्थिक एवं विदेश नीति एवं इसके दुष्प्रभावों से जनता को परिचित कराकर जनमानस को उद्वेलित कर दिया | प्रेस ने न सिर्फ विचारों को तेजी से फैलानेवाला अनिवार्य सामाजिक संस्था बन गया ‘बल्कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, उसकी नीतियों एवं शोषण के विरुद्ध जागृति लाने एवं देशप्रेम की भावना जागृत कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया।
समाचारपत्रों ने न केवल राष्ट्रवादी आन्दोलन को एक नई दिशा दी अपितु भारत में शिक्षा के प्रोत्साहन आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण तथा श्रम आन्दोलन को भी प्रोत्साहित करने का कार्य किया। 1. वर्तमान समय (स्वतंत्र भारत) में प्रेस की भूमिका का वर्णन करें। उत्तर ⇒ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद और वर्तमान समय में भी प्रेस भारतीय राजनीति समाज, आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विकास में महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली भूमिका का निर्वहन कर रहा है। इसका प्रभाव प्रत्येक क्षेत्र में देखा जा सकता है। वह सूचना, मनोरंजन, शिक्षा, खेलकट सिनेमा, रंगमंच, अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं, सरकारी नीतियों, प्रादेशिक क्षेत्रीय और स्थानीय घटनाओं की जानकारी देनेवाला मुख्य माध्यम बन गया है। समाचारपत्रों ने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अभिरुचि जगाने में भी योगदान किया है। इसने सामाजिक सुधार कार्यक्रमों को भी प्रोत्साहित किया है। वर्तमान संदर्भ में प्रेस रचनात्मक भूमिका का भी निर्वहन कर रहा है। समाज के समक्ष आधुनिक वैज्ञानिक और दार्शनिक उपलब्धियों को रखकर यह नई चेतना और विश्वबंधुत्व की भावना जागृत कर रही है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने में मानवाधिकारों की सुरक्षा करने में तथा प्रशासनिक भ्रष्टाचारों को उजागर करने में प्रेस की प्रभावशाली भूमिका है। आज प्रेस स्वतंत्र है। यह सरकार पर नियंत्रण रखने का प्रभावशाली अस्त्र बन गया है। 2. आज के परिवर्तनकारी यग स्वातंत्र्योत्तर भारत में प्रेस की भूमिका की व्याख्या करें। उत्तर ⇒ वैश्विक स्तर पर मुद्रण अपने आदिकाल से भारत में स्वाधीनता आंदोलन तक भिन्न-भिन्न परिस्थितियों से गुजरते हुए आज अपनी उपादेयता के कारण ऐसी स्थिति में पहुँच गया है जिससे ज्ञान जगत
की हर गतिविधियाँ प्रभावित हो रही हैं। आज पत्रकारिता साहित्य, मनोरंजन, ज्ञान-विज्ञान, प्रशासन, राजनीति आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है। 3. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रेस की भूमिका एवं प्रभाव की विवेचना कीजिए। अथवा, राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ? उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उद्भव एवं विकास में प्रेस की प्रभावशाली
भूमिका रही। इसने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य मुद्दों को उठाकर, उन्हें जनता के समक्ष लाकर उनमें राष्ट्रवादी भावना का विकास किया तथा लोगों में जागृति ला दी। 4. मद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया। उत्तर ⇒ मुद्रण क्रांति ने आम लोगों को जिन्दगी ही बदल दी मुद्रण क्रांति के करण छापाखानों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। जिसके परिणामस्वरूप पर निर्माण में अप्रत्याशित वृद्धि
हुई। 5. 19वीं शताब्दी में भारत में प्रेस के विकास को रेखांकित करें। उत्तर ⇒ 19वीं शताब्दी में प्रेस ज्वलंत राजनीतिक एवं सामाजिक प्रश्नों को उठानेवाला एक सशक्त माध्यम बन गया । 6. मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें। यह आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुँचा? उत्तर ⇒ मुद्रण कला के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है। 1041 ई० में एक चीनी व्यक्ति पि-शेंग ने मिट्टी के मुद्रा बनाए। इन अक्षर मुद्रों को साजन कर छाप लिया जा सकता था। इस पद्धति ने ब्लॉक प्रिंटिंग का स्थान ले लिया। धातु के मुवेबल टाइप द्वारा प्रथम पुस्तक 13वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मध्य 7. राष्ट्रवादी आंदोलन में उर्दू प्रेस या उर्दू पत्रकारिता की भूमिका की चर्चा करें। उत्तर ⇒ भारत में 1910-1920 के बीच उर्दू पत्रकारिता का विकास हुआ। मौलाना आजाद के संपादन में 1912 में अल हिलाल तथा 1913 में अल बिलाग का कलकत्ता से प्रकाशन प्रारंभ हुआ। मो० अली ने अंग्रेजी में कामरेड तथा उर्दू में हमदर्द का प्रकाशन किया। 8. फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार करने में मुद्रण की भूमिका की विवेचना करें। उत्तर ⇒ फ्रांस की क्रांति में बौद्धिक कारणों का भी काफी महत्त्वपूर्ण योगदान था। फ्रांस के लेखकों और दार्शनिकों ने अपने लेखों और पुस्तकों द्वारा लोगों में नई चेतना जगाकर क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। मुद्रण ने निम्नलिखित प्रकारों से फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार करने में अपनी भूमिका निभाई। (i) ज्ञानोदय के दार्शनिकों के विचारों का प्रसार—फ्रांसीसी दार्शनिकों ने रूढ़िगत सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था की कटु आलोचना की। इन लोगों ने इस बात पर बल दिया कि अंधविश्वास और निरंकुशवाद के स्थान पर तर्क और विवेक पर आधारित व्यवस्था की स्थापना हो। चर्च और राज्य की निरंकुश सत्ता पर प्रहार किया गया। वाल्टेयर और रूसो ऐसे महान दार्शनिक थे जिनके लेखन का जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ा। (ii) वाद-विवाद की संस्कृति—पुस्तकों और लेखों ने वाद-विवाद की संस्कृति को जन्म दिया। अब लोग पुरानी मान्यताओं की समीक्षा कर उन पर अपने विचार प्रकट करने लगे। इससे नई सोच उभरी। राजशाही, चर्च और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। फलतः क्रांतिकारी विचारधारा का उदय हुआ। (iii) राजशाही के विरुद्ध असंतोष-1789 की क्रांति के पूर्व फ्रांस में बड़ी संख्या में ऐसा साहित्य प्रकाशित हो चुका था जिसमें तानाशाही, राजव्यवस्था और इसके नैतिक पतन की कट आलोचना की गयी थी। अनेक व्यंग्यात्मक चित्रा वारा यह दिखाया गया कि किस प्रकार आम जनता का जीवन कष्टों और अभावों से ग्रस्त था, जबकि राजा और उसके दरबारी विलासिता में लीन हैं। इससे जनता में राजतंत्र के विरुद्ध असंतोष बढ़ गया। 9. औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने के लिए क्या किया ? उत्तर ⇒ औपनिवेशिक काल में प्रकाशन के विकास के साथ-साथ इसे नियंत्रित करने का भी प्रयास किया। ऐसा करने के पीछे दो कारण थे—पहला, सरकार वैसी कोई पत्र-पत्रिका अथवा समाचार पत्र मुक्त रूप से प्रकाशित नहीं होने देना चाहती थी जिसमें सरकारी व्यवस्था और नीतियों की आलोचना हो तथा दूसरा, जब अंगरेजी राज की स्थापना हुई उसी समय से भारतीय राष्ट्रवाद का विकास भी होने लगा। राष्ट्रवादी संदेश के प्रसार को रोकने के लिए प्रकाशन पर नियंत्रण लगाना सरकार के लिए आवश्यक था। भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने के लिए औपनिवेशिक सरकार के द्वारा पारित विभिन्न अधिनियम उल्लेखनीय हैं – (i) 1799 का अधिनियम- गवर्नर जनरल वेलेस्ली ने 1799 में एक अधिनियम पारित किया। इसके अनुसार समाचार-पत्रों पर सेंशरशिप लगा दिया गया। (ii) 1823 का लाइसेंस अधिनियम- इस अधिनियम द्वारा प्रेस स्थापित करने से पहले सरकारी अनुमति लेना आवश्यक बना दिया गया। (iii) 1867 का पंजीकरण अधिनियम– इस अधिनियम द्वारा यह आवश्यक बना दिया गया कि प्रत्येक पुस्तक, समाचार पत्र एवं पत्र-पत्रिका पर मुद्रक, प्रकाशक तथा मुद्रण के स्थान का नाम अनिवार्य रूप से दिया जाए। साथ ही प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति सरकार के पास जमा करना आवश्यक बना दिया गया। (iv) वाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878) – लार्ड लिटन के शासनकाल में पारित प्रेस को प्रतिबंधित करने वाला सबसे विवादास्पद अधिनियम यही था। इसका उद्देश्य देशी भाषा के समाचार पत्रों पर कठोर अंकुश लगाना था। अधिनियम के अनुसार भारतीय समाचार पत्र ऐसा कोई समाचार प्रकाशित नहीं कर सकती थी जो अंगरेजी सरकार के प्रति दुर्भावना प्रकट करता हो। भारतीय राष्ट्रवादियों ने इस अधिनियम का बड़ा विरोध किया। 10. भारत में सामाजिक-धार्मिक सुधारों को पुस्तकों एवं पत्रिकाओं ने – किस प्रकार बढ़ावा दिया? उत्तर ⇒ 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में प्रेस ज्वलंत राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक प्रश्नों को उठानेवाला एक सशक्त माध्यम बन गया। 19वीं सदी में बंगाल में “भारतीय पुनर्जागरण” हुआ। इससे सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ। परंपरावादी और नई विचारधारा रखनेवालों ने अपने-अपने विचारों का प्रचार करने के लिए पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का सहारा लिया। राजा राममोहन राय ने अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए बंगाली भाषा में संवाद कौमुदी पत्रिका का प्रकाशन 1821 में किया। उनके विचारों का खंडन करने के लिए रूढ़िवादियों ने समाचार चंद्रिका नामक पत्रिका प्रकाशित की। राममोहन राय ने 1822 में फारसी भाषा में मिरातुल अखबार तथा अंग्रेजी भाषा में ब्राह्मनिकल मैगजीन भी प्रकाशित किया। उनके ये अखबार सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन के प्रभावशाली अस्त्र बन गए। भारतीय समाचार-पत्रों ने सामाजिक-धार्मिक समस्याओं से जुड़े ज्वलंत प्रश्नों को उठाया। समाचार-पत्रों ने न्यायिक निर्णयों में किए गए पक्षपातों, धार्मिक मामले में सरकारी हस्तक्षेप और औपनिवेशिक प्रजातीय विभेद की नीति की आलोचना कर राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया। Geography ( भूगोल ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
History ( इतिहास ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Political Science दीर्घ उत्तरीय प्रश्नEconomics ( अर्थशास्त्र ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित?अथवा, राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ? उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उद्भव एवं विकास में प्रेस की प्रभावशाली भूमिका रही। इसने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य मुद्दों को उठाकर, उन्हें जनता के समक्ष लाकर उनमें राष्ट्रवादी भावना का विकास किया तथा लोगों में जागृति ला दी।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रेस की क्या भूमिका है?प्रेस तथा समाचार पत्रों की भूमिका: प्रेस तथा समाचार-पत्रों ने ब्रिटिश उपनिवेशवादी तंत्र की मानसिकता से लोगों को परिचित कराया तथा देशवासियों के मन में एकता की भावना को जागृति किया, समाचार-पत्रों के माध्यम से विभिन्न विषयों पर लिखे गए लेखों ने देशवासियों को अधिकार बोध की चेतना से भर दिया, जिसके फलस्वरूप एक संगठित आंदोलन ...
Carries 4 marks राष्ट्रीय आन्दोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया?प्रेस ने न सिर्फ विचारों को तेजी से फैलानेवाला अनिवार्य सामाजिक संस्था बन गया 'बल्कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, उसकी नीतियों एवं शोषण के विरुद्ध जागृति लाने एवं देशप्रेम की भावना जागृत कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन 1857 में उदारवादी कारक क्या है?उदारवादी एकदम क्रांति रूप में नहीं, वरन् क्रमिक सुधारों में विश्वास रखते थे. इनका मानना था कि भारत में राष्ट्रीय चेतना के उदय का प्रधान श्रेय ब्रिटिश शासन को है और ब्रिटिश शासन ने भारत के सामाजिक जीवन को पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का स्पर्श देकर उसमें स्वतंत्रता की भावना जागृत की है.
|