आजादी के बाद भारतीय विज्ञान के लेखक कौन है - aajaadee ke baad bhaarateey vigyaan ke lekhak kaun hai

इसे सुनेंरोकें7वीं सदी में ब्रह्मगुप्त ने गुरुत्वाकर्षण को आकर्षण की शक्ति के रूप में पहचानकर दुनिया को इससे अवगत कराया। इसके साथ ही डेसिमल अंक ‘ज़ीरो’ के उपयोग के बारे में भी ब्रह्मगुप्त ने इसी सदी में बता दिया था। फिर 12वीं सदी ने भी भारत में विज्ञान के विकास में योगदान दिया।

शिक्षा में उभरती प्रौद्योगिकियों की क्या भूमिका है?

इसे सुनेंरोकेंयह छात्रों को पढ़ने, सोचने, विश्लेषण करने और फिर प्रदर्शन करने में मदद करेगा और यह निश्चित रूप से शिक्षा के मानकों को बढ़ाएगा। प्रौद्योगिकी की मदद से दूरी कभी ज्ञान प्राप्त करने में बाधा नहीं बनेगी। उन्नत अनुसंधान कार्यक्रम करने और नई-नई चीजें सीखने में यह हमारी मदद करता है।

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नई सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसूचना प्रौद्योगिकी (अंग्रेज़ी: information technology) आँकड़ों की प्राप्ति, सूचना संग्रह, सुरक्षा, परिवर्तन, आदान-प्रदान, अध्ययन, डिज़ाइन आदि कार्यों तथा इन कार्यों के निष्पादन के लिये आवश्यक कंप्यूटर हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर अनुप्रयोगों से संबंधित (सम्बन्धित) है।

विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही भारत की कितनी संस्था है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization) (ISRO) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organization) (DRDO) भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (Bhabha Atomic Research Centre) (BARC)

शैक्षिक प्रक्रिया के 3 घटक क्या है?

इसे सुनेंरोकेंशिक्षा प्रक्रिया के मुख्यत: दो अंग होते हैं- एक सीखने वाला और दूसरा सिखाने वाला। नियोजित शिक्षा में सीखने वाले शिक्षार्थी कहे जाते हैं और सिखाने वाले शिक्षक। नियोजित शिक्षा के तीन अंग और होते हैं- पाठ्यचर्या, पर्यावरण और शिक्षण कला एंव तकनीकी।

समावेशन में तकनीकी का क्या योगदान है?

इसे सुनेंरोकेंआधुनिक कम्प्यूटर आधारित तकनीकी ने न केवल शैक्षिक प्रसार के स्वरूप को परिमार्जित किया है, बल्कि तकनीकी के समावेशन (Mclurian of Technology) की प्रक्रिया को जन्म देकर शिक्षा के क्षेत्रा को एक प्रमाणिक व सर्वसुलभ आयाम प्रदान किया है। तकनीकी के विकास से शिक्षा के क्षेत्रा में हम जिस क्रान्ति की कल्पना करते थे।

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सूचना प्रौद्योगिकी से आप क्या समझते हैं वर्तमान में इसका क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंसूचना प्रौद्योगिकी, वर्तमान समय में वाणिज्य और व्यापार का अभिन्न अंग बन गयी है। संचार क्रान्ति के फलस्वरूप अब इलेक्ट्रानिक संचार को भी सूचना प्रौद्योगिकी का एक प्रमुख घटक माना जाने लगा है और इसे सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology, ICT) भी कहा जाता है।

सूचना प्रौद्योगिकी के कौन कौन से घटक होते हैं स्पष्ट कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंइसके अन्तर्गत दूरसंचार के माध्यम, प्रक्रमक (Processor) तथा इंटरनेट से जुडने के लिये तार या बेतार पर आधारित साफ्टवेयर, नेटवर्क-सुरक्षा, सूचना का कूटन (क्रिप्टोग्राफी) आदि हैं।

मेघनाद साहा

मेघनाद साहा एक खगोलशास्त्री थे और उन्होंने साहा समीकरण का सिद्धांत दिया था जो तारों की गति, उम्र, उनमें रासायनिक प्रक्रियाओं और दूसरी गणनाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ. मेघनाथ साहा काफी गरीब पृष्ठभूमि से आते थे. अपनी प्राइमरी की पढ़ाई के लिए उन्हें घर से दूर जाना पड़ा. उनके पास उस जमाने में भी रहने, खाने और पढ़ाई के पैसे नहीं थे. लेकिन उनके मन में पढ़ाई की ऐसी लगन थी कि वह किसी के घर पर रहकर जानवरों को चारा देते, नहलाते और दूध निकालते. बचे हुए समय में पढ़ाई करते. मेधावी होने की वजह से उन्हें स्कूल में छात्रवृत्ति मिल जाती थी, जिससे उनका पढ़ाई पर खर्च नहीं होता. तब ढाका भारत में हुआ करता था. वह पांचवीं कक्षा में पूरे ढाका जिले में प्रथम आए और उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिल गई. एक दिन उनके स्कूल में गवर्नर वैमफील्ड फुलर का दौरा तय हुआ. सभी विद्यार्थियों को सख्त ताकीद की गई कि कपड़े धोकर, साफ होकर यूनिफॉर्म में आएं. फुलर आया तो उसने देखा कि मेघनाद के पैरों में जूते नहीं हैं. गरीब मेघनाद के जूते न पहनने को गवर्नर का अपमान समझा गया. हकीकत यह थी कि मेघनाद के पास जूते ही नहीं थे. उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया और छात्रवृत्ति भी रोक दी गई. लेकिन हुनर अपना रास्ता तलाश ही लेता है. मेघनाद का तब तक इतना नाम हो चुका था कि उन्हें दूसरे स्कूल ने अपने यहां पढ़ने का न्योता दे दिया और साथ में छात्रवृत्ति भी दी. साहा बाद में सुभाष चंद्र बोस के भी करीब आए.

नई दिल्ली: कई बार प्रश्न उठते हैं कि भारत में विज्ञान ने आम लोगों के लिये क्या किया है और देश के विकास में इसकी कैसी भूमिका रही है। आजादी के बाद भारत ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं, जो जीवन को प्रतिदिन प्रभावित करती हैं, पर इनके बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। ज्यादातर चर्चायें अन्तरिक्ष और परमाणु ऊर्जा तक ही सीमित रही हैं।

सूरत को हीरा कटाई के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र के रूप में स्थापित करने वाली लेजर मशीन से लेकर पीवीसी (पॉलिविनाइल क्लोराइड) के उपयोग से रक्त के रख-रखाव को आसान बनाने, लोकतंत्र की शुचिता बनाए रखने वाली अमिट स्याही के निर्माण, प्लांट टिश्यू कल्चर तकनीक, जेनेरिक दवाओं के निर्माण और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्थापित होने तक भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों की लम्बी फेहरिस्त है।

‘इंडियन साइंस ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ नामक एक नई पुस्तक में भारत की इन वैज्ञानिक उपलब्धियों को छोटी-छोटी कहानियों के रूप में पेश किया गया है। देश के वैज्ञानिकों के सबसे बड़े संगठन भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इन्सा) द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का बुधवार को नई दिल्ली में लोकार्पण किया गया। पुस्तक का सम्पादन भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसन्धान संस्थान, पुणे से जुड़े प्रो. एल.एस. शशिधर ने किया है। पुस्तक में जिन विज्ञान लेखकों ने अपना योगदान दिया है, वे हैं अदिता जोशी, दिनेश सी. शर्मा, कविता तिवारी और निसी नेविल।

पुस्तक में विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित उपलब्धियों पर 11 कहानियाँ हैं, जो बताती हैं कि स्वतंत्रता के बाद भारत एक तरफ गरीबी, खाद्यान्न सुरक्षा और बाहरी आक्रमण की चुनौतियों से जूझते हुए शासन करना सीख रहा था तो दूसरी ओर वैज्ञानिक प्रगति के पथ पर भी लगातार बढ़ रहा था। हर वैज्ञानिक उपलब्धि के पीछे वैज्ञानिक नवाचार और उद्यम की कई छोटी-बड़ी कहानियाँ हैं, जो पिछले 70 वर्षों में भारतीय विज्ञान की प्रगति को व्यक्त करती हैं।

इन्सा के अध्यक्ष प्रो. अजय कुमार सूद के अनुसार “इस पुस्तक में पेश की गई कहानियाँ बदलाव की यात्रा से जुड़े मील के पत्थरों में शामिल रही हैं। पुस्तक में उन कहानियों को शामिल किया गया है, जो बहुत लोगों तक नहीं पहुँच सकी हैं। किस्सागोई के अन्दाज में इन कहानियों को लिखा गया है, जिससे पुस्तक की रोचकता बढ़ जाती है। इन कहानियों में कोई बड़े नायक नहीं हैं। विपरीत हालातों में मूलभूत तथा प्रयुक्त विज्ञान में शोध और विज्ञान एवं गणितीय शिक्षा का अनुसरण करने की हमारी सामाजिक जिजीविषा के कारण ऐसा सम्भव हो सका है।”

पुस्तक में शामिल कहानियाँ भारत की बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारे में नहीं हैं और न ही वे किसी भी शानदार वैज्ञानिक सफलता का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें से ज्यादातर कहानियाँ उन्नतशील नवाचार, स्वदेशीकरण, प्रौद्योगिकी विकास और उनके अनुप्रयोगों से जुड़ी हैं। देश की प्रगति, समाज, अर्थव्यवस्था और जीवन की गुणवत्ता में सुधार में विज्ञान के योगदान से जुड़े कई महत्वपूर्ण विवरण इस पुस्तक में देखने को मिल सकते हैं।

वैज्ञानिक विकास के क्रम में कुछ नवाचारों ने भी बड़ी व्यावसायिक सफलताओं को जन्म दिया है। गुजरात के दो नवाचारी उद्यमियों अरविंद पटेल और धीरजलाल कोटाड़िया द्वारा बनायी गई लेजर-आधारित हीरा कटाई मशीन का देसी संस्करण इसका उदाहरण है। भारत में यह मशीन उस समय बनी, जब इसे आयात करने का खर्च करीब 60-70 लाख रुपये था और कारोबारियों के लिये इतना पैसा खर्च करना आसान नहीं था।

लेजर मशीन के आने के बाद अब सूरत के परम्परागत हीरा कटाई और पॉलिशिंग कारोबार का नक्शा बदल गया है। हीरे की कटाई और पॉलिशिंग के कारोबार में आज भारत की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से अधिक है। वर्ष 2016 में पॉलिश और कटाई किए गए हीरे के निर्यात से भारत ने 16.91 अरब अमेरिकी डॉलर अर्जित किए थे, जो देश से होने वाले रत्नों और आभूषण निर्यात का 52 प्रतिशत से अधिक था।

इसी तरह शांता बायोटेक्नीक की कहानी भी है, जिसने हैदराबाद स्थित कोशकीय एवं आण्विक जीव विज्ञान केन्द्र जैसे सार्वजनिक शोध संस्थानों के सक्रिय सहयोग एवं समर्थन से भारत में पुनर्संयोजक डीएनए प्रौद्योगिकी का नेतृत्व किया। वर्ष 1997 में इस कम्पनी द्वारा 50 रुपये की किफायती लागत में हेपेटाइटिस-बी वैक्सीन बेचना परिवर्तनकारी साबित हुआ, जब अन्य बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ इसके लिये 750-850 रुपये तक वसूल रही थीं।

पुस्तक के सम्पादक प्रो. शशिधर के मुताबिक “यह पुस्तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित इस तरह की अन्य उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करती है। शिक्षण से जुड़े लोगों में मूलभूत विज्ञान और उसके अनुप्रयोगों के बारे में समझ विकसित करने, विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों में शोध वातावरण बनाने और विज्ञान को शैक्षिक विषय के रूप में लेने से झिझकने वाले लोगों को इस पुस्तक से जरूर प्रेरण मिलेगी।”

दूध उत्पादन और वितरण में क्रांतिकारी बदलाव करने वाले अमूल, आईटी क्रान्ति, जेनेरिक दवा उद्योग और बासमती पर वैश्विक पेटेंट के संघर्ष में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग तकनीक के जरिये भारत की विजयगाथा के बारे में तो बहुत से लोगों को पता हैं। पर, इनके पीछे छिपे वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के योगदान के बारे में कम ही लोग जानते हैं।

वर्ष 1980 में केरल के श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा रक्त के रख-रखाव के लिये विकसित किए गए बैग जैसी कई अपेक्षाकृत अज्ञात उपलब्धियों की जानकारी भी इस पुस्तक में दी गई है। रक्त के बैग के आगमन से पहले, रक्त को बोतलों में रखा जाता था। इससे बोतल टूटने के कारण रक्त के असुरक्षित होने और संक्रमण की आशंका रहती थी। इस रक्त बैग का उत्पादन और विपणन करने वाली पेनपोल नामक कम्पनी की वैश्विक उत्पादन में आज 38 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

इसी तरह, तटीय इलाकों में झींगा पालन करने वाले किसानों के लिये चेन्नई स्थित केन्द्रीय खारा जलजीव पालन अनुसन्धान संस्थान द्वारा विकसित की गई एक डायग्नोस्टिक किट वरदान साबित हुई है। इस किट की मदद से रोगजनक वायरसों की पहचान आसान हो गई, जिसने तमिलनाडु और आस-पास के राज्यों में झींगा उत्पादन उद्योग को एक नया जीवन दिया है।

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आज़ादी के बाद भारतीय विज्ञानं के लेखक कौन है?

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1948 - बीरबल साहनी पुरावनस्पतिविज्ञान संस्थान, लखनऊ की स्थापना ; विज्ञान और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की स्थापना।

भारतीय विज्ञान के लेखक कौन है?

इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है।

भारत में विज्ञान की शुरुआत कब हुई?

ईसा से २००० वर्ष पूर्व के ऐसे प्रमाण है जिसमें आर्यों की अनेक मनोवृत्तियाँ वैज्ञानिक थी. ऐसा समझा जाता था कि ब्रह्मांड का नियंत्रण एक प्राकृतिक नियम द्वारा होता था. प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान ग्रहों की स्थति के अनुसार शुभ लग्न में विशेष रूप से निर्मित मन्दिरों में किया जाता था.

भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान के जनक कौन है?

इस खोज की घोषणा भारतीय वैज्ञानिक सर चंद्रशेखर वेंकट रमन (सर चन्द्रशेखर वेंकटरमन ने 28 फरवरी सन् 1928 को की थी। इसी खोज के लिये उन्हे 1930 में नोबल पुरस्कार दिया गया था।