आंत की टीबी और घातक क्रोंस बीमारी के लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं। कई बार डॉक्टर बीमारी का ठीक से पता नहीं कर पाते। आंत की टीबी मानकर इलाज शुरू कर देते हैं। यही वजह है कि विदेशों में पाई जाने वाली बीमारी क्रोंस भारत में बढ़ रही है। 20 साल के दौरान क्रोंस की बीमारी में पांच से 35 फीसद तक का इजाफा हुआ है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआइ ग्रेस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के प्रो. यूसी घोषाल ने दी। Show रविवार को पीजीआइ में आयोजित पेडगेस्ट्रोकॉन 2012 के 22 वें का समापन हुआ। डॉ. यूसी घोषाल ने कहा कि क्रोंस ऑटो इम्यून से जुड़ी बीमारी है। इसमें मरीज का शारीरिक विकास रूक जाता है। शौच से खून आता है। डायरिया की समस्या बनी रहती है। लक्षण दोनों एक जैसे होने से विशेषज्ञ क्रोंस को आंत की टीबी मानकर इलाज शुरू कर देते हैं। जबकि ऐसे मरीजों को शुरुआत में तीन महीने तक ही टीबी की दवा देनी चाहिए। फायदा होने पर पूरा कोर्स करना चाहिए। वरना आंत की बायप्सी कराई जानी चाहिए। तब इलाज शुरू करना चाहिए। कार्यक्रम में पीजीआई के डॉ. उज्जवल पोद्दार, डॉ. एलके भारती, डॉ. रिचा लाल समेत अन्य चिकित्सक मौजूद थे। ------------------ पीलिया में सामान्य भोजन करें आमतौर पर पीलिया होने पर पीड़ित के खानेपीने पर पाबंदी लगा दी जाती है। तला भुना तो पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है। गन्ने और फलों का जूस खूब पीने की सलाह दी जाती है। अमेरिका के डॉ. दिनेश ने बताया कि पीलिया में सामान्य भोजन करना चाहिए। एंटीबायोटिक सोंच समझकर दें पेट के रोगियों को एंटीबायोटिक दवाएं सोच समझकर देनी चाहिए। खासतौर पर बच्चों को। लगातार एंटीबायोटिक की गोली से बच्चा रजिस्टेंट हो जाता है। पीजीआइ पीडियाट्रिक गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी के प्रमुख प्रो. एसके याचा ने बताया कि शौच के साथ आंव आता है। इसमें डॉक्टर अक्सर नॉरफ्लॉस्क टीजेड की सलाह देते हैं। जबकि इसका अत्याधिक इस्तेमाल नुकसानदेह है। टीबी का नाम सुनते ही हमारे दिमाग मे खांसी का ख्याल आता है। लेकिन आंतो का ट्यूबरक्लोसिस, पल्मोनरी टीबी से ज्यादा खतरनाक होता है। भारत में आंतो के टीबी का मृत्यु दर 20% है। इस बीमारी की सबसे खतरनाक बात यह है कि यह आसानी से डायग्नोज़ नहीं होती। इसलिए हम आपको बता रहे हैं आंतो के टीबी के ऐसे लक्षण जिनके होने पर आप तुरन्त डॉक्टर के पास जाएं। इंटेस्टाइनल ट्यूबरक्लोसिसआंतो का टीबी इंटेस्टाइन के किसी भी हिस्से में हो सकता है। छोटी आंत, बड़ी आंत, अपेंडिक्स, कोलन या रेक्टम में। कोलन और रेक्टम में होने वाली टीबी सबसे ज्यादा जानलेवा होता है। ट्यूबरक्लोसिस एक खास तरीके के बैक्टीरिया ‘मयकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्यूलोसिस’ के कारण होता है। जानिए आंतो के टीबी के लक्षण और बचाव के उपाय। चित्र- शटर स्टॉक। आंतो में टीबी होने के दो ही कारण होते हैं-पहला, टीबी वाले बैक्टीरिया के दूषित दूध पीने से। क्या हैं आंतो के टीबी के लक्षण-इंटरनेशनल एनसाइक्लोपीडिया ऑफ पब्लिक हेल्थ, 2017 के अनुसार टीबी के लक्षण फ़ूड पॉइज़निंग और अपेंडिक्टिस जैसे ही होते हैं। 3. पेट के निचले हिस्से में भयंकर दर्द। आंतो के टीबी के लक्षण। चित्र: शटरस्टॉक 4. बहुत ज्यादा वेट लॉस। क्यों खतरनाक है इंटेस्टाइनल टीबी?आंतो का टीबी आम टीबी की तरह ही है, जिसका इलाज आसानी से हो सकता है। लेकिन आंतो के टीबी के साथ सबसे बड़ी चुनौती यही है कि यह जल्दी पकड़ में नहीं आता। पहले तीन महीने में डायग्नोज़ होने पर इसका इलाज आसानी से हो सकता है। लेकिन उसके बाद समस्या आती है। क्योंकि धीरे धीरे आंतो में घाव हो जाते हैं। छह महीने तक डायग्नोज़ ना होने पर बचने की संभावना बहुत कम होती है। खासकर कॉलोनोरेक्टल ट्यूबरक्लोसिस में। इसलिए सही समय पर डायग्नोज़ होना ही इस बीमारी में सबसे महत्वपूर्ण स्टेप है। आमतौर पर टीबी को हम मुंह से खून आना, रात को बुखार आना, बार-बार खांसी होना जैसे लक्षणों से पहचानते हैं. हमारी धारणा रही है कि टीबी फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन पिछले कुछ समय से टीबी अपना रूप बदल रहा है. यह शरीर के अन्य हिस्सों जैसे- पेट, स्पाइनल कॉर्ड, हड्डी, ब्रेन, यूटरस, ओवरी तक में भी हो सकता है. इसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है. अपने देश में एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस के मामले हाल के वर्षों में काफी तेजी से बढ़े हैं. खास बात है कि यह किसी भी उम्र में हो सकता है और बाहर से सामान्य दिखने वाले व्यक्ति को भी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी हो सकता है. आंकड़ों के मुताबिक, भारत में टीबी से होनेवाली मौत में से 20 प्रतिशत मौत पेट की टीबी से हो जाती है. क्यों खतरनाक है पेट का टीबी: ट्यूबरक्लोसिस एक खास तरीके की बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के संक्रमण के कारण होता है. पेट का टीबी इंटेस्टाइन के किसी भी हिस्से में हो सकता है. यह छोटी आंत, बड़ी आंत, अपेंडिक्स, कोलन, रेक्टम आदि में हो सकता है. इसकी वजह से इंटेस्टाइन जकड़ जाता है. पेट का टीबी यदि पहले तीन महीने में डायग्नोज हो जाये तो इसका उपचार आम टीबी की तरह आसानी से हो सकता है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि यह जल्दी पकड़ में नहीं आता. जब तक यह पकड़ में आता है, तब तक टीबी आंतों को गंभीर नुकसान पहुंचा चुका होता है. इसकी वजह से आंतों में घाव हो जाते हैं और टीबी जानलेवा हो जाता है. कैसे लगता है इस रोग का पता : इसके शुरुआती लक्षणों, जैसे पेट में लगातार दर्द रहना, कुछ भी खाने पर उल्टी हो जाना आदि को बिना इग्नोर किये, डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. पेट के टीबी का पता लगाने के लिए दर्द वाले हिस्से में कोलोनोस्कोपी, एंडोस्कोपी या लिंफ नोड की बायोप्सी की जाती है. अल्ट्रासाउंड में यह बीमारी पकड़ में नहीं आती. अगर छोटी आंत (स्मॉल इंटेस्टाइन) में टीबी है, तो एंडोस्कोपी में पता लगता है, वहीं बड़ी आंत, कोलन और रेक्टम का टीबी कोलोनोस्कोपी में पता लगता है. डायग्नोज होने के बाद स्टैंडर्ड टीबी का इलाज चलता है, जो 6 महीने से लेकर 12 महीने तक का हो सकता है. इसके अलावा डॉक्टर रोगी का मोंटेक्स टेस्ट (स्किन टेस्ट) व इएसआर द्वारा भी टीबी का पता लगाने की कोशिश की जाती है. बचाव के लिए क्या करें
इन लक्षणों को नहीं करें इग्नोर
|