आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं ऐसा क्यों कहता है - aatmakatha sunaane ke sandarbh mein abhee samay bhee nahin aisa kyon kahata hai

इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जे झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।


श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी काव्य के प्रवर्त्तक हैं। उन्होंने अपनी इस कविता में अपने व्यक्तित्व की हल्की-सी झलक दी है। वे अभावग्रस्त थे। वे धन संपन्न नहीं थे। वे सामान्य जीवन जीते हुए यथार्थ को स्वीकार करते थे। वे अति विनम्र थे। उन्हें लगता था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं था जो दूसरों को सुख दे पाता इसीलिए वे अपनी जीवन-कहानी भी औरों को नहीं सुनाना चाहते थे-

तब भी कहते हो-कह जा, दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुन कर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीति।

वे प्रेमी-हृदय थे। उन्हें किसी से प्रेम था पर वे उसके प्रेम को पा नहीं सके थे। वे स्वभाव से ऐसे थे कि न तो अपनी पीड़ा दूसरों के सामने प्रकट करना चाहते थे और न ही किसी की हँसी उड़ाना चाहते थे। वे अपने छोटे-से जीवन की कहानियाँ दूसरों को नहीं सुनाना चाहते थे। वे अपनी पीड़ा को अपने हृदय में समेट कर ही रखना चाहते थे।

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कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गांव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।


मैं अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती हूँ जिससे समाज में मेरा नाम हो, प्रतिष्ठा हो, और लोग मेरे कारण मेरे परिवार को पहचानें। जीवन तो सभी प्राणी भगवान से प्राप्त करते हैं। पशु भी जीवित रहते हैं पर उनका जीवन भी क्या जीवन है? अनजाने-से इस दुनिया में आते हैं और वैसे ही मर जाते हैं। मैं अपना जीवन ऐसे व्यतीत नहीं करना चाहती। मैं तो चाहती हूँ कि मेरी मृत्यु भी ऐसी हो जिस पर सभी गर्व करें और युगों तक मेरा नाम प्रशंसापूर्वक लेते रहें। मेरे कारण मेरे नगर और मेरे देश का नाम ख्याति प्राप्त करे। कल्पना चावला इस संसार में आई और चली गई। उसका धरती पर आना तो सामान्य था पर उसका यहाँ से जाना सामान्य नहीं था। आज उसे सारा देश ही नहीं सारा संसार जानता है। उसके कारण उसके नगर करनाल का नाम अब सभी की जुबान पर है। मैं भी चाहती हूँ कि मैं अपने जीवन में इतना परिश्रम करूँ कि मुझे विशेष पहचान मिले। मैं अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश की कीर्ति का कारण बनूँ।

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‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।


श्री जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ पर छायावादी काव्य-शिल्प की सीधी छाप दिखाई देती है जिसे निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है-
1. भाषा की कोमलता-प्रसाद जी ने अपनी कविता में भाषा की कोमलता पर विशेष ध्यान दिया है। खड़ी बोली में रचित ‘आत्मकथ्य’ में कोमल शब्दों के प्रयोग की अधिकता है। ये मधुर और कर्णप्रिय हैं-
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
कवि ने तत्सम शब्दों का अधिकता से प्रयोग किया है जिससे उनकी शब्दों पर पकड़ का पता चलता है।

2. भाषा की लाक्षणिकता-लाक्षणिकता प्रसाद जी के काव्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके द्वारा कवि ने अपने सूक्ष्म भावों को सहजता से प्रकट किया है-
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

3. भाषा की प्रतीकात्मकता - कवि ने अपनी कविता में प्रतीकात्मकता का अधिकता से प्रयोग किया है। उन्होंने प्रकृति-जगत् से अपने अधिकांश प्रतीकों का प्रयोग किया है-
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

‘मधुप’ मनरूपी भंवरा है जो ‘गुनगुना’ कर भावों को प्रकट करता है। मुरझाकर गिरती ‘पत्तियाँ’ नश्वरता की प्रतीक हैं। कवि ने अपनी इस कविता में ‘अनंत-नीलिमा’, ‘गागर रीति’, ‘उज्ज्वल गाथा’, ‘चांदनी रातों की’, ‘अनुरागिनी उषा’, ‘स्मृति पाथेय’, ‘थके पथिक’, ‘सीवन को उधेड़’, ‘कंथा’ आदि प्रतीकात्मक शब्दो, का सहज-सुंदर प्रयोग किया है।

4. भाषा की चित्रमयता-प्रसाद जी की इस कविता की एक अनुपम विशेषता है-चित्रमयता। कवि ने इसके द्वारा पाठक के सामने एक चित्र-सा उभार कर प्रस्तुत किया है। इससे कविता में बिंब उपस्थित करने में सफलता मिली है।

5. भाषा की संगीतात्मकता-कवि की कविता में संगीतात्मकता का तत्त्व निश्चित रूप से विद्यमान है। इसका कारण यह है कि कवि को नाद, लय और छंद तीनों का अच्छा ज्ञान था। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान की है-
छोटे-से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

6. भाषा की आलंकारिकता- भाषा को सजाने और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए प्रसाद जी ने अपनी कविता में जगह-जगह अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है-
(i) मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी-अनुप्रास
(ii) आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया-पुनरुक्ति प्रकाश
(iii) सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?-प्रशन
(iv) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में-मानवीकरण

7. मधुर शब्द योजना - कवि को शब्दों की अंतरात्मा की सूक्ष्म पहचान है। जो शब्द जहाँ ठीक लगता है उसी का कवि ने प्रयोग किया है-
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की?

इन पंक्तियों में ‘पाथेय’, पथिक, पंथा, सीवन, कंथा आदि अत्यंत सटीक और सार्थक शब्द हैं जो विशेष भावों को व्यक्त करते हैं।

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आत्मकथा सुनने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं कभी ऐसा क्यों करता है?

Answer: कवि को लगता है कि आत्मकथा लिखने का अभी उचित समय नहीं हुआ है। क्योंकि आत्मकथा लिखकर कवि अपने मन में दबे हुए कष्टों को याद करके दु:खी नहीं होना चाहता है, अपनी छोटी से कथा को बड़ा आकार देने में वे असमर्थ हैं, वे अपने अंतर्मन को लोगों के समक्ष प्रस्तुत करना नहीं चाहते हैं।

27 आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं कवि ऐसा क्यों कहता है ?`?

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अभी आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहते हैं?

Solution : कवि आत्मकथ्य लिखने से इसलिए बचना चाहते है क्योंकि उन्हें ऐसा नहीं लगता कि <br> उनके जीवन में कोई आनदित घटना हुई है जिसे वे लोगों को बता सकें। उन्हें लगता है कि <br> उनका जीवन केवल कष्टों से भरा हुआ है अतः वे अपने कष्टों को लोगों में बाटना नहीं चाहते <br> तथा उन्हें अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं

कवि मन रूपी भौरे से क्या कह रहा है?

एक फूल खिला मेरे आँगन में,मन हृदय कमल सा खिल उठा । दिल के इस प्यारे उपवन में,तन मन मेरा झूम उठा।। मन रूपी भौरे झूम उठे,जब फूल खिला मेरे आँगन में।।