अच्छे कर्म करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? - achchhe karm karane ke lie hamen kya karana chaahie?

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जानें कैसे कर्म लाते हैं आपके जीवन में खुशी और दुख

जिन्दगी की राहें आसान नहीं है  इसमें सुख है तो दुख भी, आनंद है तो चिन्ता भी अपनापन है तो परायापन भी। ईश्वरीय रचना यहीं है कि हर चीज के दो पहलू हैं एक के बिना दूसरा अकल्पनीय और अधूरा...

अच्छे कर्म करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? - achchhe karm karane ke lie hamen kya karana chaahie?

लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 26 Mar 2016 09:17 AM

जिन्दगी की राहें आसान नहीं है  इसमें सुख है तो दुख भी, आनंद है तो चिन्ता भी अपनापन है तो परायापन भी। ईश्वरीय रचना यहीं है कि हर चीज के दो पहलू हैं एक के बिना दूसरा अकल्पनीय और अधूरा है। मानस का प्रसंग है -- निषाद राज कहते हैं  " कैकय नंदनि मंदमति कठिन कुटिलपनु कीन्ह । जेहि रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह ।।
मंदमति कैकयी के कुटिल पन की वजह से ही भगवान राम को वनवसी होना पडा। निषादराज के मुख से ऐसा सुनकर लक्ष्मण जी न उत्तर दिया -- " काहु न कोउ सुख दुख कर दाता । निज कृत करम भोग सब भ्राता ।। "
कोई किसी के दुख का कारण नहीं होता ये तो अपने हीं कर्म होते हैं जिसकी वजह से दुख उठाने पडते हैं।
आज कौन सुखी नहीं होना चाहता ? परन्तु वह इसके लिए जो कर्म कर रहा है उसमें सुख है ही नहीं तो मिलेगा कहाँ  से ? 
करम  प्रधान विश्व करि राखा ।  जो जस कर इ सो तस फ़ल चाखा।।
हम आज जो कुछ कर रहें हैं वह निष्फ़ल नही होता देर सबेर उसका फ़ल अवश्य मिलता है। विज्ञान भी कहता है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। फ़ल समय के अधीन होता है। आग में यदि हाथ डाला जाय तो हाथ तुरंत जल जाता है  परन्तु एक वृक्ष का बीज आज बोया गया तो उसमें फ़ल आने में कई वर्ष लग जाएंगे पर फ़ल मिलेगा अवश्य ।  शुभ  कर्म का फ़ल शुभ और अशुभ का अशुभ होना ही है।
आज हम जो कुछ हैं  वह पिछले कर्मो का देन है। इसी को प्रारब्ध कहते हैं। प्रारब्ध के बाद पुरुषार्थ बहुत महत्वपूर्ण है।हम जो कुछ बनना चाहते हैं या जिस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं उसमें अपने पुरुषार्थ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है साथ ही साथ ईश्वरीय कृपा ।  ईश्वर अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियाँ देता है उन परिस्थितियों से अपने विवेक और सामर्थ्य के बल पर निपटना तो आप को ही होगा। दैवीय शक्तियां पुरुषार्थ वालों की ही मददगार होतीं हैं निठल्ले , आलसी और काहिल लोगों की नहीं। कुछ आलसी  लोगों का कहना है--अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम दास मलूक कह गये सबके दाता राम "--- या राम खबरिया लेबय करिहैं दया लगी तो देबय करिहैं -- या फिर जिसने पैदा किया है वह पेट भरेगा ही आदि आदि।
उपरोक्त कथन सत्य है जरा सी भी शंका की गुंजाइश नहीं। जिस गीता में भगवान कृष्ण ने योग क्षेमं वहाम्यहम्  की बात कही है  वहीं कर्म की प्रधानता को दर्शाया है।।भगवान  पर पूर्ण रूप से आश्रित हो कर देखिए  ? श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान से निकटता बढ़ाने पर वे सब जिम्मेदारी स्वयं वहन करते हैं ।

जीवन यापन की सारी वस्तुएं भगवान द्वारा प्रदत्त है पर आलसी , कामचोर उसे नहीं पा सकता । मनुष्य को ईश्वर ने असीमित शक्ति दी है ,  बुद्धि , विवेक और पुरुषार्थ  दिया है जिसके बल पर क्या हासिल नहीं किया जा सकता ? आलस्य और कायरता का ही फ़ल है  कि  भीख माँगना एक व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है। शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्ण सक्षम होने पर भी कुछ  बच्चे जवान लडके- लडकियाँ, स्ञी पुरुष  भीख माँगते दिख जाएंगे ।

भय और अतृप्त वासना ही समस्त दुखों की जड़ हैं। जीवन भर मनुष्य जीविका के प्रपंच में उलझा रहता है। मैं और मेरा , तू और तेरा का जाल बुनकर स्वयं उसी में उलझा हुआ अनेकों प्रकार के अनैतिक कर्मो में लगा रहता है । भविष्य के भय को सोचकर हम अपना वर्तमान भी बिगाड़ लेता हैं  और  श्रेय मार्ग को छोड कर  प्रेय मार्ग का अनुगामी हो जाता है जिसमें दुख  के सिवा कुछ है ही नहीं। इस मार्ग पर चलने वाले लोग जीवन की सत्यता मृत्यु को भी नकारने लगते हैं और भविष्य के लिए नैतिक अनैतिक तरीका अपना कर संग्रह में लगे रहते हैं।
लोभ ,मोह और स्वार्थ से ऊपर उठे बिना सच्चे सुख की कल्पना नहीं की जा सकती सच्चा सुख तो त्याग की राह पर चलकर पाया जा सकता है। हमारा सनातन धर्म भौतिक सुख के उपभोग को बुरा नहीं मानता पर  इसका आधार धर्म होना चाहिए। धर्म का आचरण करने से छल कपट ईर्ष्या जेसे अनैतिक कर्म में मनुष्य लिप्त नहीं होगा और मेहनत से जो कमाया है उसी को हरि इच्छा समझ कर संतोष करेगा संतोष से परम सुख की प्राप्ति होगी। क्रोध , लोभ , मोह ,डाह सभी दुख देने वाले हैं इनसे हमेशा बचना चाहिए अन्यथा सुख शाँति दूर भागेगी। त्याग और परहित से बढ़ कर कोई सुख नहीं हैं इसे यथा सम्भव अपने आचरण में लाना चाहिए । कभी किसी अंधे को सड़क पार कराकर , किसी प्यासे को पानी पिला कर देखिए ,लोगों से मधुर व्यवहार करके देखिए इसमें आपका कोई पैसा खर्च नहीं होगा पर  अतुलनीय सुख  की प्राप्ति होगी। विश्वास करना सीखिए । विश्वास कीजिए कि सारी सृष्टि को रचने वाला परमेश्वर है और हम सभी उसकी संतान है। विश्वास किसी तर्क की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता अतः सभी में  चाहे वह इंसान हो, पशु पक्षी हो या पेड़-पौधे हों, सबमें ईश्वर का वास मानकर घृणा को त्याग कर प्रेम करना सीखिए यही  सतत सुख शांति की राह है।
घर में छोटे मोटे  मनमुटाव तो चलते रहते हैं पर ये कलह के कारण बन कर  दुखदाई भी हो जाते हैं। इसका  मुख्य कारण है कि हम अधिकार की गांठ तो मजबूती से बाँध लेते हैं पर कर्तव्य की पूरी तरह उपेक्षा करते हैं। अपना कर्तव्य भलीभाँति निभाते हुए यदि दूसरों की बातों पर गौरपूर्वक विचार किया जाय तो निश्चित लगेगा कि मन मुटाव के अनेक कारण बे-सिर पैर के बेतुके ही थे। उदाहरणस्वरूप अगर आप परिवार के बडे  हैं और आप ने चाय माँगी पर मिलने में काफी विलम्ब हो गया तो आपके मन में यह धारणा पनप सकती है कि जानबूझ कर मेरी उपेक्षा की जा रही है जब कि  दूसरे कारण अनेक हो सकते हैं  ? अहम पालने के बजाय यदि कारणों की तरफ सोचा जाय तो मनमुटाव का प्रश्न हीं नही होगा। सेवा लेने की बजाय सेवा देने का भाव आप की खुशी कई गुना बढ़ा देगा। प्रेम और मधुर व्यवहार से मनुष्य क्या पशु पक्षी भी अपने बन जाते हैं ?

निज प्रभुमय देखहि जगत, केहि सन करहिं विरोध।

(वाराणसी से )

अच्छे कर्म करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? - achchhe karm karane ke lie hamen kya karana chaahie?

मनुष्य को कौन सा कर्म करना चाहिए?

अच्छे व बुरे दोनों प्रकार के कर्मों का फल मिलता है। यदि मानव अच्छे कर्म करता है तो वह इस जन्म के साथ अगले जन्म में भी सुख भोगेगा लेकिन बुरे कर्म करेगा और जीवों की हिंसा, दूसरों को परेशान करेगा तो उसे अगले भव में नरक या तिरमन्स गति मिलेगी।

अच्छे कर्म कैसे बनाएं?

त्याग और परहित से बढ़ कर कोई सुख नहीं हैं इसे यथा सम्भव अपने आचरण में लाना चाहिए । कभी किसी अंधे को सड़क पार कराकर , किसी प्यासे को पानी पिला कर देखिए ,लोगों से मधुर व्यवहार करके देखिए इसमें आपका कोई पैसा खर्च नहीं होगा पर अतुलनीय सुख की प्राप्ति होगी। विश्वास करना सीखिए ।

अच्छे कर्मों का फल कब मिलता है?

जो कर्म ज्यादा होते हैं उसे बाद में तथा जो कम होते है उसे पहले भोगने को मिलता है। वैसे इसका कोई एक ही पैमाना ना होकर परिस्थिति तथा दैवी कृपा से निर्धारण होते देखा या सुना गया है। यदि अच्छे कर्म ज्यादा हैं तो बुरे कर्मों का फल इसी जन्म में तथा अच्छे का फल अगले जन्म में या इसी जन्म के बाद के दिनों में भोगने को मिलता है।

गीता सार कर्मों का फल कैसे मिलता है?

इसी आजादी के कारण व्यक्ति पाप, पुण्य या मुक्ति में गति कर सकता है। कर्मों की इस आजादी के कारण सबको अपना-अपना फल मिलता रहता है और व्यक्ति उसको भोगता रहता है। इसी कारण जगत में इतनी विविधता दिखाई पड़ती है। इसलिए भगवान गीता में कहते हैं सभी प्राणी कर्म करने में स्वतंत्र है।