अरस्तु के अनुसार संपत्ति के कौन कौन से प्रकार है? - arastu ke anusaar sampatti ke kaun kaun se prakaar hai?

Aristotle’s views on Family and Property

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीतिक विचार के अंतर्गत अरस्तु के परिवार और संपत्ति संबंधी विचारों के बारे में । (Aristotle’s views on Family and Property in hindi) इस Post में हम जानेंगे अरस्तु के परिवार व संपत्ति विचार के साथ अरस्तु के त्रिकोणआत्मक संबंधों के स्वरूप, व्यक्ति की परिवार व संपत्ति की आवश्यकता के बारे में । तो चलिए शुरू करते हैं ।

अरस्तु प्राचीन यूनान के एक महान विचारक और दार्शनिक थे । अरस्तु को राजनीति का जनक भी माना जाता है । अरस्तु ने यूनान की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, कई विचार दिए । जिसमें न्याय, नागरिकता और राज्य से संबंधित विचार अधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं । अरस्तू ने परिवार व संपत्ति पर भी अपने विचार दिए हैं, जिनके बारे में आज हम जानेंगे ।

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परिवार पर अरस्तू के विचार

अरस्तु ने परिवार व संपत्ति को व्यक्तिगत विशेषता बताया है, क्योंकि इन दोनों के आधार पर ही एक व्यक्ति अपना विकास करता है और यह विकास की आवश्यक शर्तें हैं । किसी व्यक्ति के विकास के लिए संपत्ति तथा परिवार दोनों ही आवश्यक है ।

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अरस्तु का दर्शन पदसोपान पर आधारित है । यह एक कड़ी के रूप में कार्य करता है । अरस्तु के राज्य सिद्धांत के अंतर्गत परिवार को राज्य का प्रमुख आधार बताया है । परिवार सामाजिक जीवन की प्रथम कड़ी मानी जाती है और नागरिक की प्रथम पाठशाला भी मनुष्य को शिक्षित करना व उसके व्यक्तिगत के विकास के अवसर को प्रदान करना ही प्राथमिकता है ।

अगर बात की जाए प्लेटो की तो प्लेटो ने परिवार को व्यक्ति और राज्य की प्रगति व विकास में बाधा माना है, जबकि अरस्तू ने व्यक्ति को उचित, आवश्यक व प्रेरणा स्रोत बताया है ।

त्रिकोणात्मक संबंधों का स्वरूप

अरस्तु के अनुसार परिवार एक त्रिकोणआत्मक संबंधों का स्वरूप और घटक है । अरस्तु के अनुसार कोई परिवार इन तीनों के योग व समूह से बनता है, जिसमें अरस्तु ने पति व पत्नी, पिता और बच्चे तथा स्वामी और दास को बताया है ।

1) पति और पत्नी

2) पिता व बच्चे

3) स्वामी और दास

हालांकि प्लेटो ने स्त्री और पुरुष की समानता पर बल दिया है, जबकि अरस्तु ने स्त्री और पुरुष में समानता पर विश्वास नहीं किया । अरस्तु के अनुसार पुरुष परिवार का संचालक होता है और वह परिवार में श्रेष्ठ व्यक्ति माना जाता है । पुरुष का गुण आदेश देना होता है, जबकि स्त्री का गुण पुरुष की आज्ञा का पालन करना होता है ।

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इन सबके अलावा स्त्री व पुरूष में  अन्तरनिर्भरता भी पाई जाती है । जिसके अंतर्गत इसमें भावनात्मक रिश्ते, उनका विकास, समाज का विकास और साथ ही साथ शारीरिक व मानसिक आत्मनिर्भरता भी पाई जाती है ।

अरस्तु के अनुसार परिवार व विवाह संस्था एक उपयोगी मानी जाती है । विवाह के लिए स्त्री और पुरुष की आयु का निर्धारण होना चाहिए । विवाह एक शारीरिक व मानसिक परिपक्व होने पर ही किया जाए । इसके फलस्वरूप श्रेष्ठ संतान सुदृण पीढ़ी का निर्माण तभी हो सकता है ।

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अरस्तु के अनुसार पिता पुत्र के संबंध से परिवार में अनुशासन व उसमें नियंत्रण की दृष्टि होती है । एक अच्छा पिता संतान की सभी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करता है । वह उनका मार्गदर्शन करता है । वह अपने पुत्र को भटकाव से रोकता है और उचित मार्ग की ओर ले जाता है । इस प्रकार अरस्तु द्वारा पिता को अनुशासन व प्रेम दोनों का प्रयोग करना चाहिए ।

स्वामी और दास के संबंध में अरस्तु ने बहुत ही व्यापक रूप में इसका विश्लेषण किया है।  अरस्तु के अनुसार दासता एक स्वाभाविक और नैतिक क्रिया हैं । जिसके अंतर्गत स्वामी बुद्धिमान व्यक्ति होता है तथा दास विवेकशून्य होता है । यह स्वामी और दास दोनों के हित में उचित है । अरस्तु के अनुसार दासों के विकास के लिए उन पर स्वामी का शासन होना आवश्यक है । दास एक जीवित संपत्ति है । जो उसके स्वामी की सेवा के लिए हैं । स्वामी के सानिध्य में दास व परिवार के अन्य सदस्यों का विकास व कल्याण संभव होता है ।

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संपत्ति पर अरस्तू के विचार

परिवार की तरह अरस्तू ने संपत्ति पर भी अपने विचार प्रकट किए हैं । संपत्ति परिवार की आवश्यकताओं तथा समाज की जरूरतों के लिए बहुत आवश्यक बताई जाती है । जिसके द्वारा आवश्यक वस्तुओं का संग्रह किया जाता है । पारिवारिक जीवन तथा सुख, शांति के लिए संपत्ति आवश्यक है ।

अरस्तू द्वारा संपत्ति की विशेषताएं

अरस्तु के अनुसार संपत्ति व्यक्ति के जीवन में विकास के लिए परम आवश्यक है । साथ ही साथ निजी संपत्ति से व्यक्ति में श्रम और कर्मण्यता विकसित होती है । संपत्ति के द्वारा व्यक्ति की जीवन की सुरक्षा संभव है । संपत्ति के अभाव में उदारता तथा अतिथि सत्कार संभव नहीं हो पाता । पारिवारिक सुख, समृद्धि के लिए संपत्ति को आवश्यक माना गया है ।

अरस्तु के अनुसार संपत्ति ना तो बहुत अधिक हो और ना ही बहुत कम, अरस्तु ने संपत्ति को व्यक्ति की आवश्यकता अनुसार तथा एक साधन मात्र के रूप में बताया है । प्लेटो की तरह वह व्यक्तिगत संपत्ति को समाप्त करने या संपत्ति के साम्यवाद की बात नहीं करता । परंतु संतुलित वितरण का समर्थन करता है ।

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अरस्तु के अनुसार यदि संपत्ति को लोग या उसके शासक निजी हित तथा अपने निजी लाभ के लिए प्रयोग करेंगे, तो इससे राज्य का विनाश ही होगा ।

निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो अरस्तु अपने गुरु प्लेटों के विचारों से सहमत नहीं है कि वह व्यक्ति राज्य व समाज के विकास के लिए संपत्ति व परिवार को सार्वजनिक उपयोग की वस्तु बना दिया जाए ।

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तो दोस्तों यह था अरस्तु के परिवार और संपत्ति पर विचार । इस Post में हमने जाना कि व्यक्ति के लिए परिवार और संपत्ति की आवश्यकता और उसकी विशेषता । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

अरस्तु ने संपत्ति के कितने प्रकार बताए?

अरस्तु के अनुसार संपत्ति ना तो बहुत अधिक हो और ना ही बहुत कम, अरस्तु ने संपत्ति को व्यक्ति की आवश्यकता अनुसार तथा एक साधन मात्र के रूप में बताया है । प्लेटो की तरह वह व्यक्तिगत संपत्ति को समाप्त करने या संपत्ति के साम्यवाद की बात नहीं करता । परंतु संतुलित वितरण का समर्थन करता है ।

अरस्तू के अनुसार दासता के प्रकार के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा सही है?

1) दासता स्वाभाविक है – अरस्तु के अनुसार दास प्रकृति की देन है। अरस्तु का कहना है कि कुछ व्यक्ति शासन करने के लिए पैदा होते हैं, जबकि कुछ शासित होने के लिए। प्रकृति जिन व्यक्तियों को विवेक देती है, वह शासक होते हैं और जिनको केवल शारीरिक शक्ति देती है और जिनमें दूसरों के विवेक को समझने का गुण होता है वह शासित होते हैं।

अरस्तु के अनुसार गुण कितने प्रकार के होते हैं?

अरस्तु के अनुसार कला के कितने प्रकार हैं? चार प्रकार के चारित्रिक गुणों की अनिवार्यता: अच्छा, उपयुक्त, वास्तविक, तथा सतत। कथानक के भीतर खोज जरूर होना चाहिए।