बच्चों के प्रति माता पिता का कर्तव्य - bachchon ke prati maata pita ka kartavy

बच्चों का माता-पिता के प्रति कर्तव्य पर निबंध - Essay on Children’s Duty towards Parents in Hindi

हमारा जीवन विविध चरणों से होकर गुजरता हैं हम अपने जन्म से लेकर बाल्यावस्था, फिर स्कूली जीवन तथा युवावस्था से जीवन के अंतिम दौर वृद्धावस्था से होते हुए जीवन के सफर को पूर्ण कर जाते हैं. जीवन से म्रत्यु तक के इस सफर में हम विविध अच्छे बुरे अनुभवों से होकर गुजरते हैं.

जीवन को यदि हम कोई अन्य नाम दे तो वह उत्तरदायित्वों एवं कर्तव्यों की अनवरत श्रंखला हैं, व्यक्ति जिसे पूर्ण करने की जिद्दोजहद में सदैव लगा रहता हैं. वह अपने प्रयत्नों से परिवार, समाज तथा देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण कर लेता हैं. मगर अपने माता पिता के प्रति उत्तरदायित्वों को चुकाने के लिए एक जीवन भी कम पड़ जाता हैं.

एक संतान को माँ बाप द्वारा जन्म देने के साथ ही उसे प्रेम, सुरक्षा, पालन पोषण, शिक्षा और संस्कारों के रूप में कई अमूल्य योगदान हमारे जीवन में होते हैं. बच्चें की माँ अपने स्नेह से तथा पिता जीवन में अनुशासन के भाव को जागृत करते हैं. चरित्र एवं व्यक्तित्व निर्माण का सम्पूर्ण श्रेय माता पिता को ही जाता हैं. बालक उनके अनु करण अथवा निर्देश के मुताबिक ही स्वयं को ढालता हैं.

हिन्दू धर्म की मान्यताओं में माता पिता को देवता के समान पूजनीय माना गया हैं. एक सन्तान के लिए इश्वर का स्वरूप होते हैं. बताया जाता है कि ८४ लाख जन्मों के बाद मानव जन्म नसीब होता हैं. इतना अमूल्य जीवन हमें अपने माता पिता के द्वारा ही मिलता हैं. एक बच्चें के जन्म से युवा होने तक माँ बाप को कितनी परेशानि यों का सामना करना पड़ता हैं, इसका सही अनुमान और एहसास तभी होता हैं जब आप स्वयं माँ बाप बनेगे.

मगर आज के समय में वृद्ध माँ बाप की हो रही दुर्द्र्षा देखकर यही कहा जा सकता हैं, कि अधिकतर बच्चें अपने माता पिता के प्रति कर्तव्यों से विमुख होते जा रहे हैं. हमें यह समझना चाहिए संसार में हमारी जो भी स्थिति और हैसियत है वह माँ बाप की बदौलत ही हैं. यह जीवन उनका है हर क्षण उन्ही के शरणों में समर्पित होना चाहिए. हम राम के वंशज है जिन्होंने पिताजी के वचन की पालना हेतु राजपद का त्याग कर अपना सम्पूर्ण जीवन अभावों में बिताया. हमें अपनी संतानों को भी अपने राम, श्रवण जैसे महापुरुषों उदाहरण देने चाहिए.

एक माँ नौ माह तक अपने बेटे बेटी को गर्भ में रखने के बाद अपार दर्द सहकर भी उसे जन्म देती हैं. इसके बाद अपने लाड दुलार के साथ पालन पोषण कर स्वयं के पैरो पर खड़ा होने योग्य बनाती हैं. माता पिता का स्नेह ही बालक को बौद्धिक एवं मानसिक रूप से सशक्त बनाता हैं. वहीँ जिन बच्चों को माता पिता का प्रेम नहीं नसीब होता हैं उनमें बालपन से ही असुरक्षा और डर के भाव उत्पन्न हो जाते हैं.

वे जन्म से बड़े होने तक हमारी सैकड़ो गलतियों और शरारतों को यूँ ही क्षमा कर देते हैं. कई बार गलत राह पर जाने के कारण उनकी डांट फटकार में भी हमारा हित निहित होता हैं. वे हमें बुरी राह से निकालकर सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. बच्चें को जीवन में अनुशासन में रहने, अच्छे लोगों की संगत करने के पीछे पिता का हाथ हाथ होता हैं.

कोई लड़का बड़ा होकर वैज्ञानिक, व्यवसायी या किसी बड़े पद को प्राप्त करता हैं तो उसकी इस मंजिल को पाने में जितनी मेहनत स्वय से लगाई उससे कही अधिक योगदान माता पिता का रहा हैं. माँ बाप का त्याग और उनके जीवन भर की पूंजी केवल अपनी संतान का भला हो उसी में अर्पण कर दी जाती हैं. व्यक्ति बड़ा होकर समाज में सम्मानित स्थान प्राप्त करेगा जब उसे अपने परिवार में अच्छी सीख और प्रेरणा मिली हो.

प्यारे बच्चों हम सभी का यह प्रथम कर्तव्य हैं कि जीवन में चाहे हम कितने भी बड़े व्यक्ति बन जाए मगर अपने माँ बाप को कभी भूलना नहीं. उनकी तपस्या, लग्न और बलिदान को कभी निचा मत दिखाना. आज यदि हम ख़ुशी से जीवन बिता रहे है तो इसके पीछे हमारे पेरेंट्स के सालों की खुशियों का अर्पण हैं. जिन्होंने अपने सुख की परवाह किये बगैर आपके लिए कुछ करने की चाहत में अपने वर्तमान के सुख की बलि सहर्ष दे दी. हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने माता पिता का सदैव सम्मान करें.

कोई भी माँ बाप अधिक धन दौलत बड़े बंगले गाड़ी आदि की ख्वाइश नहीं रखते हैं. वे हम हमसे सम्मान की अपेक्षा रखते हैं. उनकी इच्छा होती है कि हम कोई अच्छा काम करे जिससे वे गर्व से जी सके. सन्तान के रूप में प्रत्येक बच्चे का यह कर्तव्य है कि अपने माता पिता के सपनों को पूरा करने में स्वयं को अर्पित कर दे. साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमारे किसी कर्म से माँ बाप को कभी शर्मिंदगी महसूस न करनी पड़े.

यदि आज हम अपने चारों ओर के परिदृश्य को देखे तो भारतीय संस्कारों का नामोनिशान कही नहीं दीखता हैं हमारी युवा पीढ़ी अधिक से अधिक भौतिक सुख और निजी लिप्साओं में लगे हैं. अपने माता पिता से अलगाव के जीवन में वे जिस अपसंस्कृति का बीज बो रहे हैं उन्हें भी एक दिन पेरेंट्स बनना है फिर किस मुहं से वे अपने बेटों से कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की बात करेंगे.

मित्रों हमें अपने जीवन की प्रत्येक सांस तक अपने माता पिता के प्रति जो कर्तव्य हैं उन्हें पूर्ण करना चाहिए, जब उनका शरीर बुढ़ापे की अग्रसर हो तो हमें उनकी लाठी बनकर सेवा और सम्मान के साथ उन्हें खुशहाल जिन्दगी बिताने के अवसर देने चाहिए. हमारें धर्मग्रंथों में भी मातृ पितृ सेवा से बढकर कोई पुण्य नहीं हैं.

जो सन्तान माता पिता की सेवा कर उनके आशीर्वाद से संतुष्टि पाते हैं उनके लिए यह स्वर्ग के कल्पित सुखो से भी बढकर हैं. मातृदेवो भव, पितृदेवो भव की हमारी पुरातन संस्कृति और उसके संस्कारों पर फिर से अमल करने की आवश्यकता हैं.

माता पिता के प्रति हमारा कर्तव्य पर निबंध | Essay On Duty Of Children To Parents In Hindi: बाल अधिकारों के साथ कर्तव्य भी जुड़े हुए है. बच्चों को अपने अधिकारों के लिए जागृति के साथ साथ अपने समाज, परिवार, माता पिता, देश एवं धर्म के प्रति कर्तव्यों का पालन भी करने की अपेक्षा की जाती है. बच्चों के दायित्व के इस निबंध में हम बच्चों के माता पिता के प्रति कर्तव्य एवं माता पिता के साथ ही बच्चों को भी अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं उठाने के लिए क्या किया जाना चाहिए.

माता पिता के प्रति हमारा कर्तव्य निबंध Duty Of Children To Parents Hindi

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1 माता पिता के प्रति हमारा कर्तव्य निबंध Duty Of Children To Parents Hindi

1.1 बच्चों के कर्तव्य और जिम्मेदारियां (Children’s Duties and Responsibilities)

1.2 Read More

बच्चों के प्रति माता पिता का कर्तव्य - bachchon ke prati maata pita ka kartavy
बच्चों के प्रति माता पिता का कर्तव्य - bachchon ke prati maata pita ka kartavy

Mata Pita Ke Prati Kartavya Par Nibandh

हर इंसान का जन्म किसी न किसी स्त्री के पेट से ही होता है क्योंकि भगवान ने ऐसा नियम ही बनाया है कि व्यक्ति को पैदा होने के लिए किसी स्त्री के कोख की आवश्यकता पड़ेगी। एक स्त्री जब यह जान पाती है कि उसके पेट में एक नन्ही सी जान पल रही है तो वह अपने से ज्यादा अपने उस आने वाले मेहमान के बारे में चिंतित होती है जो उसके पेट में है। 

काफी कष्टों को सहने के बाद एक स्त्री अपने बच्चे को जन्म देती है और उसे बड़े ही लाड प्यार से पालने का काम करती है। स्त्री के अलावा उसके पति का भी अपने बच्चे के लालन-पालन में पूर्ण योगदान होता है।

इसीलिए हर बच्चे का यह कर्तव्य बनता है कि जब वह बड़ा हो जाए और अपने पैरों पर खड़ा हो जाए तब वह अपने माता-पिता की भी बिल्कुल उसी प्रकार से देखभाल करें जिस प्रकार उसके माता पिता उसकी करते हैं।

क्योंकि एक आदर्श संतान का यह दायित्व बनता है कि वह अपने माता-पिता को किसी भी प्रकार का दुख ना होने दें, क्योंकि यही वह व्यक्ति हैं जिन्हें भगवान के बाद दूसरा सबसे बड़ा दर्जा इस सृष्टि पर दिया गया है।

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हर माता-पिता यही सोचते हैं कि उनकी संतान बड़ा होने के बाद उनकी देखभाल करेगी, साथ ही जब उनका बुढ़ापा आएगा तब उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगी। ऐसे में संतानों का भी यह परम कर्तव्य बनता है कि वह अपने माता-पिता की आस पर खरे उतरे और उनके बुढ़ापे का सहारा बने।

किसी भी माता-पिता की संतान का अपने माता पिता के प्रति यह फर्ज बनता है कि वह उन्हें कभी भी किसी भी प्रकार से दुख ना पहुंचाएं और उनकी हर तकलीफ में उनके साथ रहे तथा उनकी समस्या को सुलझाने का प्रयास करें। 

कई संतान ऐसी होती है जो जब बड़े आदमी बन जाते हैं तब वह अपने माता-पिता को भूल जाते हैं। हालांकि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि उन्हें बड़ा आदमी बनाने में उनके माता-पिता का ही योगदान होता है, जो अपनी पाई पाई जोड़ करके उन्हें पढ़ाने का काम करते हैं।

इस प्रकार संतानों को यह समझना चाहिए कि वह आज जिस भी मुकाम पर है उसके पीछे सारा क्रेडिट उनके माता-पिता का ही है। इसीलिए उन्हें कभी भी अपने माता-पिता के एहसानों को नहीं भूलना चाहिए।

कोई भी माता-पिता हमेशा अपने बच्चे की भलाई चाहते हैं ऐसे में अगर कभी आपके माता-पिता आपको कोई राय सलाह देते हैं या फिर आपको किसी बात पर डांटते हैं तो आपको उनकी बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि उनकी डांट के पीछे कहीं ना कहीं आपकी भलाई ही छुपी हुई होती है।

माता-पिता कभी भी अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते हैं। इस प्रकार एक आदर्श संतान होने के नाते हमें यह समझना चाहिए कि माता पिता ही वह पहले और आखिरी इंसान इस धरती पर है जो हमेशा हमारा भला किसी भी परिस्थिति में चाहेंगे। इसलिए हमें उनकी हर बात सिर आंखों पर रखनी चाहिए।

सिर्फ हमारा ही नहीं बल्कि इस दुनिया में जितनी भी संताने हैं उनका सबसे पहला कर्तव्य यही बनता है कि वह चाहे अपनी जिंदगी में कितना भी बड़ा मुकाम हासिल क्यों ना कर ले या फिर कहीं पर भी क्यों ना चले जाए, उन्हें अपने माता-पिता को बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि कभी ना कभी वह भी शादी होने के बाद 1 दिन माता पिता बनेंगे और तब उन्हें यह समझ में आएगा कि माता-पिता होने का वास्तव में अर्थ क्या होता है।

माता पिता एक ऐसी अनमोल धरोहर है जो हमें भगवान के द्वारा प्राप्त होती हैं जिसका एहसान हम इस जन्म में तो क्या सातों जन्म में भी नहीं उतार सकते।

माता-पिता ही वह व्यक्ति होते हैं जो अपनी तकलीफों को छुपा लेते हैं और हमारे सुख के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। इसलिए हमेशा अपने माता-पिता से प्यार करें, उनकी इज्जत करें और बुढ़ापे में उनकी लाठी का सहारा बने और उन्हें एक सम्मान पूर्वक जिंदगी जीने दे।

  1. बच्चों को अभिभावकों, शिक्षकों, कर्मचारियों और बाहरी लोगों का सम्मान करना चाहिए.
  2. बच्चों को अपने से सम्बन्धित आवश्यक जानकारियाँ अभिभावकों एवं शिक्षकों को देनी चाहिए.
  3. दूसरे साथियो के साथ अपने ज्ञान को बाटना चाहिए.
  4. कभी भी दूसरे बच्चे के साथ दुर्व्यवहार या शारीरिक चोट पहुचाने का काम न करे, तनाव न दे., धमकाएं नही और छोटे नामों से न पुकारे, अपमानित करने वाली भाषा का प्रयोग न करे.
  5. अपनी निजी वस्तुएं हमे देने के लिए दूसरे बच्चों को बाध्य न करे.

बच्चों के कर्तव्य और जिम्मेदारियां (Children’s Duties and Responsibilities)

अपनी सुरक्षा अपने हाथ में है, बच्चों को चाहिए कि वे अपने आस-पास की स्थतियों के प्रति सजग रहे, ताकि कोई परेशानी हो तो पहले ही पता लग जाए, इसके लिए बच्चों को इन बातो का ध्यान रखना चाहिए.

  1. ऐसी जगह मत जाओ जहाँ आपकों असुरक्षा महसूस होती है, जैसे ही कोई खतरा महसूस हो, वहां से निकल जाओं.
  2. किसी अजनबी के घर अकेले न जाए, जब भी कही जाओं, तो वहां से सम्पर्क का माध्यम क्या है और किसके साथ जा रहे हो, ये जानकारियां अपने अभिभावक या अपने संरक्षक को देकर जरुर जाए.
  3. अजनबियों से बात करते समय कुछ लेते समय सतर्क रहो. कोई तुम्हे उपहार, खिलौने, पैसे, गाड़ी में लिफ्ट देने या घुमाने का लालच दे तो इसके बारे में अपने अभिभावकों, संरक्षकों या प्रशासन व कर्मचारियों को जरुर बताओं.
  4. ज्यादा लोगों के बिच रहना अधिक सुरक्षित होता है, अतः समूह में खेलों और घूमों.
  5. अचानक कोई चेतावनी या धमकी मिलती है तो जोर से आवाज लगाओं और अपने साथियो को बुलाओं.
  6. यदि किसी के व्यवहार से आपकों परेशानी महसूस हो रही हो तो इसके बारे में अपने अभिभावकों या विश्वसनीय लोगों को बताओं . यदि आप अकेले है और खतरा महसूस कर रहे है तो 1098 या 100 (toll free number for children’s place) पर फोन करों.
  7. सूने स्थानों पर अकेले में शौचालयों के लिए नही जाए.
  8. इंटरनेट पर या अजनबी व्यक्तियों को अपना नाम, पता,उम्र,फोटो आदि उजागर न करे.
  9. कोई आपके परिवार के बारे में आपात स्थति बताए तो स्कूल द्वारा इसकी पुष्टि किये बिना स्कूल न छोड़े.

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माता पिता के कर्तव्य क्या है?

* बच्चे अपने माता पिता के व्यवहार को ही अनुसरण करते हैं इसलिए जरूरी है कि आप अच्छे व्यवहार करें। सबका सम्मान करें, ताकि वो भी लोगों का सम्मान कर सके। *जिस घर में माता पिता एक दूसरे से प्यार और सम्मान करते हैं उनके बच्चों को बहुत अच्छी परिवरिश मिलती हैं। *जरूरत पड़े तो बच्चों से प्यार के साथ सख्ती से भी पेश आयें।

बच्चों के लिए माता पिता का क्या महत्व है?

माता पिता दुनिया की सबसे अनमोल रत्न होते हैं। उनके प्यार और आशीर्वाद के बिना संसार में कुछ संभव नहीं है। बच्चों के लिए सबसे प्रथम और सबसे बड़े आदर्श उनके माता-पिता ही होते हैं। जिनसे जीवन में उन्हें काफी सीख मिलती बच्चों की दृष्टि में माता-पिता ही देवी देवता समान होते हैं।

बच्चे के लिए माता पिता की क्या जिम्मेदारी है?

बच्चों के प्रति माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उनकी परवरिश, शिक्षा, और संस्कार देना चाहिए। बालमनोविज्ञानियों का परामर्श है कि बच्चों को बड़े होकर जो कुछ बनना है प्रारंभिक पांच बर्ष की आयु में ही उसकी नींव पड़ जाती है, अतः इसी आयु उनके स्वास्थ्य और खान-पान के संबंध में सजगता से ध्यान रखना चाहिए।

माता पिता का बच्चों के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए?

उन्हें आप स्वयं स्नान कराएं, उन्हें खिलाकर खाएं, उन्हें नींद आने पर आप सोएं, उनसे पहले आप जग जाएं, जब वे सोएं तब उनकी चरण-सेवा करें, उठते समय भी उनकी चरण-सेवा करें, मधुर स्वर में उन्हें जगाएं और तुरन्त चरणों में नमस्कार करें।