बहलाती सहलाती आत्मीयता सहन ना होने का क्या कारण है सहर्ष स्वीकारा है कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए - bahalaatee sahalaatee aatmeeyata sahan na hone ka kya kaaran hai saharsh sveekaara hai kavita ke aadhaar par spasht keejie

जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक 'आरोह' में संकलित 'सहर्ष स्वीकारा है' कविता से उद्धृत है। इसके कवि ‘गजानन माधव मुक्तिबोध' जी है। इस कविता में उन्होंने जीवन जीने का सही संदेश प्रदान किया है। जीवन के सभी पक्षों को शान्त स्वभाव के साथ स्वीकार कर लेना ही जीवन की सच्ची कला है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या - 'मुक्तिबोध' जी इस कविता के माध्यम से मानव जाति को यह संदेश देना चाहते हैं कि ज़िन्दगी के समय में जो कुछ भी अच्छी-बुरीघटनाएँ, यादें, बातें आती हैं, उन्हें हमें खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि कवि का विश्वास है कि जो कुछ भी मेरे भाग्य में ईश्वर ने लिखा हुआ है वह सब उसने सोच-विचार कर ही लिखा है। कवि को सभी सुख-दुखों को देने वाला भगवान ही है और भगवान को उसके सभी भावों के साथ लगाव है। भावार्थ यह है कि जिन्दगी में भगवान के द्वारा दिए सभी कार्यों को प्रसन्नतापूर्वक करना चाहिए।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का काव्य विशेष

(क) भाव पक्ष

के ज़िन्दगी के सभी सुख - दुख हमें साहस व खुशी के साथ अपनाने चाहिए। एक सिक्के के दो पहलुओं के समान सुख-दुख भी जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए है।

(ख) कला पक्ष

1- सरल, सरस प्रवाहपूर्ण भाषा का सुन्दर प्रयोग हैं।
2- तुकबंदी के कारण काव्य में गेयता का गुण विद्यमान
3- सहर्ष स्वीकारा अनुप्रास अलंकार का सौन्दर्य दिखाई देता है। सहज शब्दावली में भी कवि ने विचारों की गहनता व गम्भीरतापूर्ण बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
4- सहर्ष भाव को विशेषण रूप में सौन्दर्यात्मक रूप प्रदान किया है।

गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है
संवेदन तुम्हारा है!

सहर्ष स्वीकारा है कविता का प्रसंग - पूर्ववत् । इन पंक्तियों में कवि ने अपने विचारों की अटलता व संघर्षमयी जीवन की संवेदनाएँ व्यक्त की है ।

सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या - कवि कहता है कि उसके जीवन की अनेक अनुभूतियों को उसने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया है । उसे अपनी ग़रीबी पर गर्व है अर्थात् जिस प्रकार भूखा ही भोजन के सही स्वाद का आनन्द ले सकता है उसी प्रकार जिसने गरीबी झेली हो वही अमीर होने पर इस पर गर्व अनुभव कर सकता है। जो भी उसको अपने जीवन में कड़वे-मीठे (गंभीर गहरे) अनुभव हुए हैं। उसके अटल विचारों की जो यह सम्पति है, भण्डार भरे हुए हैंऔर उसके अन्तर्मन से उठने वाली भावों रूपी नदी कवि को बिल्कुल नई व मूल रूप में लगती है। अर्थात कवि के अन्दर सुख-दुख के सभी भाव व विचारों रूपी भण्डार सब कुछ इस संसार में होने वाली घटनाओं के अनुरूप ही हैं। कवि उस 'परम सत्ता' की उपस्थिति को स्वीकार करते हुए कहता है कि संसार में जो कुछ भी क्षण-क्षण होता रहता है उस सब को एकटक रूप से देखने वाले एक तुम्ही हो। अर्थात् केवल प्रभु ही इस समस्त संसार पर नज़र रखते हुए उनको सुख-दुख प्रदान करने वाला है। कवि ने उस 'परम सत्ता' के आदेश को पालन करने का संदेश देते हुए उसमें अटल विश्वास व आस्था प्रकट की है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का काव्य सौन्दर्य -

(क) भाव पक्ष

कवि ने जीवन के सभी भावों को सम्यक रूप में स्वीकार करने की प्रेरणा देते हुए गरीबी को भी गर्वित रूप में स्वीकार किया है।

(ख) कला पक्ष

1- भाषा सरल, सहज होते हुए भी भावात्मकता लाने में पूर्ण सफल सिद्ध हुई है। तत्सम् प्रधान शब्दावली का सुन्दर प्रयोग है।
2- गरबीली, अपलक आदि शब्दों में नए प्रयोग करने में कवि को सफलता मिली है।
3- तुकबंदी के कारण काव्य में गेयता आई है। छन्द मुक्त काव्य की छटा विद्यमान है।

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

सहर्ष स्वीकारा है कविता का प्रसंग - पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि प्रेरणा के उस मूल तत्त्व के साथ अपने सम्बन्ध को जोड़ता है। कवि उस परम सत्ता की ‘सहजता' को स्वीकार करते हुए, उसके पास न होते हुए भी उसके होने का एहसास करता है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या - ‘मुक्ति बोध' जी उस प्रेरणा स्रोत की 'सहजता' को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि उसके साथ न जाने कैसा अटूट रिश्ता व बन्धन है।कवि को उससे कभी न भूल पाने वाला एहसास हो रहा है। कवि जितना भी उसे भूलने की कोशिश करता है वह उतनी ही और अधिक आने लगतीहै ।अर्थात् उसकी यादों से उसका मन भर जाता है । यह दिवंगता "परम सत्ता' उसकी माँ, बहन, पत्नी, सहचरी कोई भी हो सकती है जो लगातार उसको प्ररेणा दे रही है। और जिसकी मीठी यादों का झरना या कोई बड़ा स्रोत उसके हृदय में विद्यमान है। जो बार-बार उसे उसकी यादों से भर देता है। कवि अपने प्रियजन के साथ जीवन के बिते हुए मीठे अनुभव का स्मरण कर रहा है।

कवि के हृदय के अन्दर उस प्रेरणा स्रोत की प्यारी मीठी यादें हैं और ऊपर (आकाश) से भी वह उसके होने का एहसास कर रहा हो। जैसे अन्दर व बाहर सब जगह वह उसके साथ हो। कवि कहता है कि जिस प्रकार पूर्णिमा का चाँद सारी रात धरती पर अपनी रोशनी व मुस्कराहट प्रदान करताहै उसी प्रकार मुझे तो तुम्हारा वह प्यारा खिला हुआ चेहरा हर समय नज़र आता है। अर्थात् कवि अपने उस प्रेरणा स्रोत के संसार से चले जाने के बाद भी उसको भुला नहीं पा रहा है। उसकी मीठी यादों व उसके चेहरे को हमेशा अपने पास ही होने का अनुभव करता है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- कवि अपनी प्रेरणादायक शक्ति की यादों को भूल नहीं पा रहा है। उसके हृदय में उसकी मीठी यादों का व चेहरे का सुन्दर एहसास बार-बार उसकी याद दिलाता है।
2- अपने उस विशिष्ट व्यक्ति को चाँद के समान मानकर कवि लाक्षणिकता के माध्यम से भावात्मकता में वृद्धि कर रहा है।

(ख) कला पक्ष

1- सरल, सरस व प्रवाहमयी भाषा का सुन्दर प्रयोग है। भाषा में सहजता के चलते भावात्मक व विचारात्मक गंभीरता का सुन्दर दृश्य प्रस्तुत किया गया है।
2- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
3- 'भर-भर' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की छटा छाई है। अन्तिम पंक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।
4- कवि ने रहस्यात्मक व प्रश्नात्मक शैली का प्रयोग कर काव्य सौन्दर्य में वृद्धि की है। अद्भुत रस प्रधान काव्य को प्रस्तुत किया गया है।
5- तुकबंदी के कारण कविता में गेयता का गुण उत्पन्न हुआ है। मुक्त छन्द युक्त काव्य शैली है।

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार - अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

सहर्ष स्वीकारा है कविता का प्रसंग - पूर्ववत् । प्रस्तुत पंक्तियों में कवि चाहता है कि उसे अपनी प्रेरणा देने वाली की मधुर स्मृति को 'भूल जाने का दंड' मिलना चाहिए क्योंकि अब वो मधुर यादें कवि द्वारा सहन नहीं हो रही हैं। इसलिए वह भूलने को दण्ड-पुरस्कार रूप में माँगता है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या - कवि को अपने उस विशिष्ट जन के सहज-प्रेम की उष्मा जब विरह में अग्नि के समान लगने लगती है तो वह उससे अलगाव चाहता है, उसके मोह से मुक्ति पाना चाहता है। इसलिए कवि प्रभु से दंड के रूप में उसकी अस्मृति को माँगता है। वह चाहता है कि भूलने की प्रक्रिया उसके अन्दर हृदय में इस प्रकार घटित है जैसे दक्षिणी ध्रुव पर चाँद के थोड़ा छिप जाने पर अमावस्या की रात का घना अंधकार छा जाता है। कवि चाहता है कि उसकी स्मृतियों से बाहर निकल कर जब अंधेरे से सामना हो तो उसके हृदय की शक्ति में वृद्धि हो । भूलने की शक्ति कवि अपने शरीर में, चेहरे पर व अपने अन्तर्मन में इस प्रकार ग्रहण करना चाहता है जिससे उसको उसकी दिवंगता को भूलने में सहायता मिले। वह स्मृतिरूपी अन्धकार में खो जाना चाहता है उस अन्धकार में कवि डूब जाना, उसको सहन करना और उसमें अपने आप को पूर्ण रूप से लीन करके वास्तविकता को पाना चाहता है। अर्थात् जिस प्रकार भूलना एक अवगुण है। लेकिन दुःखों को भूलना एक गुण या शक्ति के रूप माना जाता है उसी प्रकार कवि भूलने को दण्ड रूप में लेना चाहता है और अपने लिए उसे वरदान साबित करता है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

दुख को भूलना कवि एक शक्ति मानता है। जो व्यक्ति को वास्तविकता से परिचित करवाती है। ((मुसीबतों) विपत्तियों के अन्धकार में ही व्यक्ति को अपने साहस व ताकत का पता चलता है।

(ख) कला पक्ष

1- साधारण शब्दों के द्वारा कवि ने विचारात्मक व भावात्मक गंभीरता का वर्णन दिया है।
2- सहज, सरस, सरल भाषा से काव्य सौन्दर्य में वृद्धि हुई है।
3- छन्द मुक्त शैली का सुन्दर प्रयोग है।
4- दंड-दो, अन्धकार-अमावस्या आदि में अनुप्रास अलंकार है।

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !!

सहर्ष स्वीकारा है कविता का प्रसंग - पूर्ववत् । यहाँ कवि ने अपने दिवंगत की स्मृतियों को असहनीय मानते हुए इन्हें भूल जाने का भाव प्रकट किया है ।वह अपने भविष्य के लिए इसे भूलाना चाहता है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या - कवि उस विशिष्ट जन से, उसकी स्मृतियों से अपने-आपको अंगीकार कर लेना चाहता हैं क्योंकि वह उन्हें वास्तविक रूप में प्राप्त नहीं कर सकता। क्योंकि कवि जानता है कि उससे (परम सत्य से) जुड़ी हुई मोहक, उज्ज्वल व प्रकाशमयी स्मृतियाँ उसके चारों ओर छाई हुई है जिन्हें वह कुछ ही क्षणों में खो देने वाला है। इसलिए कवि का मत है कि खो जाने का भय, खो देने से भी बड़ा है, इसलिए वह इसे अच्छा मानता है कि खो जाने की तकलीफ भीतर ही भीतर विलीन हो जाए। अपनी भूलने की शक्ति को बढ़ाते हुए वह भूलने का दण्ड माँगता है।

कवि कहता है कि उस प्रेरणादायनी की उसके प्रति ममता, स्नेह की बारिश व नाजुक, स्वच्छ स्मृतियाँ बादलों में मंडराने के समान बार-बार उसके हृदय में उठ कर आती रहती है और उसके हृदय को अंदर ही अंदर विरह की पीड़ा देने वाली है। कवि की आत्मा उस 'परम सत्ता' की स्मृतियों में क्षीण व शक्तिहीन होती जा रही है। उसे भविष्य के बारे में डर लग रहा है कि कहीं अब ये मधुर लगने वाली यादें भविष्य में कहीं उसके हृदय को व्याकुल, बेचैन न कर दें अर्थात् उसे विरह की पीड़ा न झेलनी पड़े। भवितव्यता के इसी डर के कारण उसकी बहलाने, सहलाने व अपनेपन को जताने वाली स्मृतियाँ उससे (कवि) सहन नहीं हो रही है। अर्थात सुखद यादें हमेशा दुःखद पीड़ा का कारण बनती है। कुछ ऐसे ही कवि की ये उसके साथ बिताई मधुर यादें उस परम सत्ता के खो जाने पर विरह का कारण बन जाएंगी जो कि असहनीय होगी।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का काव्य सौन्दर्य 

(क) भाव पक्ष -

कवि कहता है कि भूल जाना भी एक कला है। मधुर स्मृतियों की अति भी कष्टदायी होती है। क्योंकि बिरह के बाद हमेशा दुःख ही मिलते हैं।

(ख) कला पक्ष

1- कवि की शब्द-योजना सार्थक व प्रसंगानुकूल है।
2- साधारण शब्दों के द्वारा कवि ने विचारात्मक एवं भावात्मक गंभीरता का वर्णन किया है।
3- परिवेष्टित, आच्छादित, अक्षम, भवितव्यता में तत्सम् प्रधान शब्दों की सुन्दता है। साथ ही उर्दू व नए शब्दों का प्रयोग भी सुन्दर बन पड़ा है।
4- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है। छन्द मुक्त प्रवाहमयी कविता है।
5- 'बादल की मँडराती कोमलता' में रूपक अलंकार हैं।

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता - सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का प्रसंग - पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि कहता है कि 'अस्मृति' दंड सही, फिर भी पुरस्कार मानकर ही ग्रहण करना चाहिए। इसलिए वह इन स्मृतियों के अन्धेरे में गुम होना चाहता है पर पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाता।

सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या - कवि यहाँ भी अपने आपको अस्मृति की शक्ति के रूप में दण्ड देना चाहता है। वह उस 'परम सत्ता' से विस्मृति का अन्धेरा माँगता है और कहता है हे प्रभु! मुझे ऐसा दंड दो कि मैं धरती के तले गहरे अंधेरे की गुफाओं के गर्तों में या धुएँ से भरे हुए काले घने बादलों में कहीं पर खो जाऊँअर्थात् कवि अपनी पिछली मधुर यादों को भूलना चाहता है। जिस प्रकार अतिशय प्रकाश से आँखें चौंधिया जाती है और तब अंधेरा अच्छा लगता है उसी प्रकार कवि स्मृतियों के अत्यधिक प्रकाश से बचने के लिए विस्मृति के अन्धकार को ग्रहण करना चाहता है।

फिर कवि विचार करता है कि धुएँ के बादल भी पूर्ण विस्मृति कायम नहीं कर सकते है। स्मृतियों का धुँधलापन वहाँ भी है अर्थात् उस परमसत्ता का रूप सभी जगह विद्यमान है। इसलिए कवि विचार करता है मनुष्य की सम्पूर्ण चेतना, अंधेरा- उजाला, सुख-दुख, स्मृति-विस्मृति सब उस प्रभुके द्वारा ही रचा हुआ है। कवि कहता है कि जो कुछ भी मेरे साथ हुआ है। या जो भी स्मृति - विस्मृति, सुख-दुख मुझे अपना लगता है या अपना बनने वाला लगता है वह सब उसी परम सत्ता के कारण ही हुआ है। ये सभी उसी के द्वारा सौपें हुए कार्यों का भार, वैभव है। इसलिए की अपना सबकुछ उस 'परम सत्ता' पर ही छोड़कर इन भावों से मुक्त होना चाहता है।

कवि अपनी बीती ज़िन्दगी के बारे में पूर्ण विचार करते हुए कहते हैं कि अब तक जो भी सुख-दुख, अच्छी-बुरी घटनाएँ आई हैं उन्हें खुशी-खुशी मैंने स्वीकार कर लिया है। इसलिए कवि को विश्वास है कि जो कुछ भी सुख-दुख भगवान उसे देना चाहता है वह सब उसी के कारण है और सभी उसी के प्यार के कारण व्यतीत होता है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

कवि का संदेश है कि जीवन में जो कुछ भी अच्छी-बुरी घटनाएँ, विपत्तियाँ सामने आती है हमें उनका सामना खुशी-खुशी, साहस के साथ करना चाहिए। इसके पक्ष में कबीर की पंक्तियाँ बड़ी प्रसिद्ध हैं

'ना किछु किया न करि सक्या, ना करण जोग सरीर ।
तेरा तुझको सौंपता का लागें है मोर ।। '

कवि भूलने को 'दंड' न मानकर पुरस्कार रूप में ग्रहण करता है और सब कुछ प्रभु के विश्वास पर छोड़ देता है।

(ख) कला पक्ष -

1- कवि की सार्थक शब्द योजना ने गंभीर विचार की प्रवाहमयता व प्रसंगानुकूलता को दर्शाया है।
2- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
3- तुकबंदी व नाद सौन्दर्य द्वारा काव्य में गेयता का गुण आया है।
4- छन्द मुक्त शैली में काव्य की सौन्दर्यात्मक रचना हुई है।
5- तत्सम् प्रधान शब्दों की भी प्रचुरता है ।

सहर्ष स्वीकारा है कविता का प्रश्न उत्तर 


1- टिप्पणी कीजिए

क- गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल

उत्तर


(क) गरबीली गरीबी
- गरीबी का अर्थ प्रायः अभिशाप समझा जाता है परन्तु कवि गरीबी को गरबीली मानता है क्योंकि उसका विचार है कि जिसप्रकार भूखा रहकर ही भोजन के सही स्वाद का पता चलता है उसी प्रकार ऐश्वर्य एवं अमीर बनने का सच्चा सुख किसी गरीब को ही हो सकता है।इसलिए कवि गरीब होने पर भी गर्व महसूस करता है और दुख में भी विपत्तियों को खुशी-खुशी स्वीकार करता है।

(ख) भीतर की सरिता- कवि का विचार है कि विभिन्न प्रकार के विचारों व भावों का स्रोत मन ही है। जब अन्तर्मन से यह मौलिक विचार उठकर संसार में प्रवाहित होते हैं तो कवि ने इन विचारों के प्रवाह को ही एक नदी के समान कहा है।

(ग) बहलाती-सहलाती आत्मीयता- अपनेपन की अति मोह का कारण बनती है और इस मोह के कारण ही व्यक्ति अपने आपको बन्धन में बन्धा हुआ महसूस करता है और यही अपनापन उसे बहला-फुसलाकर अपने जाल में फंसाए रखता है।

(घ) ममता के बादल- दृढ़ता व कठोरता हमारे समाज बड़े मानव मूल्य माने जाते हैं और ममता को इन मूल्यों के विपरीत मानव विकास के लिए बाधक माना जाता है। जैसे बादल सूर्य के तेज को कम कर देते हैं उसी प्रकार ममता रूपी बादल व्यक्ति के तेज को नष्ट कर देते हैं ।

2. इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।

उत्तर- इस कविता का शीर्षक 'सहर्ष स्वीकारा है' ही एक टिप्पणी करने योग्य महत्त्वपूर्ण पद है। इसमें दो शब्द हैं सहर्ष व स्वीकारा। सहर्ष का अर्थहै- खुशी-खुशी और स्वीकारा का अर्थ है स्वीकार करना। इस कविता से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें जीवन के सुख-दुख, संघर्ष - अवसाद, हार-जीत तथा कोमल-कठोर सभी प्रकार की स्थितियों में एक समान भाव बनाए रखना चाहिए और सभी परिस्थितियों का सामना करने के लिए खुशी-खुशी तैयार रहना चाहिए ।

3. व्याख्या कीजिए

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए बताइए कि यहाँ कवि चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार - अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है?

उत्तर- कवि के अनुसार दुखों को अनुभव करना भी जीवन के लिए आवश्यक है। यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा कोमल भावनाओं वस्मृतियों का प्रतीक है। कवि इनके मोह में न फंसकर जीवन की वास्तविकताओं और कठोर भावों (विचारों) का सामना करना चाहता है। यहाँ कवि स्मृतियों के मोह रूपी प्रकाश से निकलकर विस्मृतियों के अन्धकार में खो जाना चाहता है अपने आपको अन्धकार में विलीन कर लेनाचाहता है। इस कारण कवि चाँद की तरह आत्मा पर झुका करे बिना जीवन के सुखों चेहरा भूलकर अंधकार अमावस्या में नहाना चाहता है । कवि के अनुसार दुखों व कष्टों का सामना करे का प्रकाश प्राप्त नहीं किया जा सकता।

4. तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार - अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय उजेला अब
सहा नहीं जाता है

(क) यहाँ अंधकार- अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है?
(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?
(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।

(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसे कविता संबोधित है। कविता का 'तुम') को पूरी तरह भूल जाना चाहता है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।

उत्तर

(क) अंधकार अमावस्या के लिए 'दक्षिण ध्रुवी' विशेषण का प्रयोग किया गया है। यह अन्धकार की सघनता को और अधिक गहन कर देता है।

(ख) कवि ने मधुर व कोमल स्मृतियों को भूलने की क्रिया को अंधकार अमावस्या कहा है जब वह प्रकाश रूपी स्मृतियों को छोड़ अमावस्यारूपी विस्मृतियों में खो जाना चाहता है।

(ग) इस भूलने की स्थिति के विपरीत कवि अपनी दिवंगता प्रेरणा स्रोत की यादों में खोया हुआ है । अन्धकार अमावस्या के विपरीत मुस्कुराता चाँद शब्द का प्रयोग कवि ने किया है। मुस्कुराते चाँद में कवि उस प्रेरणा स्रोत की मधुर, कोमल, सुखमय, शीतल भावनाओं को मन में संजोए हुएहै।

(घ) कवि यहाँ अपने संबोध्य को भूलने के लिए विस्मृतियों के अन्धकार में अपने आपको खो देना चाहता है। वह विस्मृतियों की गहनता को अपनेशरीर, चेहरे, मन-मस्तिष्क पर काली अमावस्या के समान ग्रहण कर लेना चाहता है। उसको सहन कर उसे डूबकर नहाना चाहता है । कवि अपनीसंबोध्य के मधुर व कोमल स्मृतियों को छोड़कर जीवन के दृढ़ व कठोर अनुभवों में खो जाने के लिए तैयार हैं।

5. बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है- और कविता के शीर्षक सहर्ष स्वीकारा है में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं। चर्चा कीजिए ।


उत्तर- कवि इन पंक्तियों में एक ओर तो अपनेपन की मधुर व कोमल भावनाओं को सहन नहीं कर पा रहा है उन्हें स्वीकार नहीं करना चाहता और दूसरी ओर कविता के शीर्षक में सब कुछ खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया है इस बात को स्पष्ट करना चाहता है। जो कि अपने आप एक-दूसरे काअंतर्विरोध करते हैं यदि कवि सब कुछ स्वीकार करता है तो बहलाती सहलाती आत्मीयता क्यों नहीं स्वीकार कर पा रहा? इस प्रकार यह एक विरोधाभास भाव को स्पष्ट करती है।

कविता के आस-पास

1- अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक जरूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाएँ।

उत्तर- हाँ। अतिशय मोह भी त्रास (दुख) का कारक होता है। माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक जरूरी कष्ट है, वैसे ही बच्चे का स्कूल जाने काकष्ट एक जरूरी कष्ट है, और कविता में प्रयुक्त दिवंगत प्रियजन को भुलाने का कष्ट भी एक जरूरी कष्ट है।

2- 'प्रेरणा' शब्द पर सोचिए। उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी - भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष/महानारी आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए ।

उत्तर- प्रेरणा एक शक्ति है जो व्यक्ति को सद्मार्ग की ओर अग्रसर करती है। प्रत्येक व्यक्ति की प्रेरक शक्ति उसे साहस, उत्साह और हिम्मत देती है। हर महान् व्यक्ति के पीछे कोई न कोई प्रेरणा अवश्य थी। जैसे महात्मा गांधी जी की प्रेरणा उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी जी थीं जिन्होंने उन्हेंसदा देश-सेवा के लिए प्रेरित किया। जीवन में प्रेरणा का अत्यन्त महत्त्व है। बिना सद्प्रेरणा के व्यक्ति कभी भी महान् नहीं बन सकता। किसी भी बच्चे की पहली गुरु उसकी माँ होती है, जो ममत्वपूर्ण ढंग से बच्चे में संस्कारों को भरती है। बाद में अध्यापक और अच्छे साथी उसकी प्रेरणा बनतेहैं। हर व्यक्ति प्रेरणा से ही किसी भी कार्य में दक्ष बनता है। बिना प्रेरणा के व्यक्ति का विकास असम्भव है। अतः व्यक्ति के जीवन में प्रेरक काम हत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रश्न के उत्तर का अगला भाग विद्यार्थी अपने अनुभव के आधार पर स्वयं लिखें।

3- 'भय' शब्द पर सोचिए । सोचिए कि मन में किन-किन चीज़ों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।


उत्तर- 'भय' शब्द का व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति भय पैदा करने वाली स्थितियों से दूर भागना चाहता है। किसी भी व्यक्ति के मन मेंअपनों से दूर होने का भय, दुख आने का भय, आकस्मिक स्थिति, सम्बन्धी की बीमारी या मृत्यु का भय, धन के समाप्त होने का भय, फेल होने काभय, भूत-प्रेत आदि का भय बैठा रहता है। उनसे निपटने के लिए हम साहस एवम् धैर्य से सभी परिस्थितियों का मुकाबला करते हैं। कवि कीमनःस्थिति में प्रेरक शक्ति को न भुला पाने का भय है। कवि चाहकर भी अपनी प्रेरणा ( माँ, बहन या पत्नी) को भुला नहीं पाता। कवि की भय की स्थिति उससे दूरी की न होकर उसके हृदय में आत्मसात् होने की है जिसे कभी भी दूर नहीं किया जा सकता। सामान्य व्यक्ति किसी भी भयभीत करने वाली स्थिति पर विजय पा सकता है। कवि चाहकर भी अपनी प्रेरणा से दूर नहीं हो सकता।

saharsh swikara hai kavita ka bhavarth 

बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त न होने का क्या कारण है?

कवि प्रिय की बहलाती सहलाती आत्मीयता को बरदाश्त भी नहीं कर पाता फिर भी उसे सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि भाव प्रवणता की मन:स्थिति में है। वह अति से उकताता है पर सहज रूप को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। अत: हम इनमें अंतर्विरोध की स्थिति त नहीं पाते।

बहलाती सहलाती आत्मीयता से क्या तात्पर्य है?

(ग) बहलाती सहलाती आत्मीयता- कवि की प्रेमिका के साथ आत्मीय संबंध है। वह उसके साथ आत्मीय भरा व्यवहार करती है। उसे विभिन्न प्रकार से वह बहलाती है तथा सहलाती है। प्रेमिका के आत्मीयता से भरे व्यवहार को कवि ने ऐसा कहा है।

सहर्ष स्वीकारा है इस कविता की मूल संवेदना क्या है?

इसमें कवि ने अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों तथा सुख-दु:ख की स्थितियों को इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया है क्योंकि वह इन सबके साथ अपने प्रिय को जुड़ा पाता है। यहाँ तक कि वह अपने जीवन के प्रत्येक पक्ष पर प्रिय का प्रभाव और उसकी देन मानता है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता में कवि क्या कहना चाहता है?

'सहर्ष स्वीकारा है'-कविता में कवि क्या कहना चाहता है? उत्तर: कवि ने इस कविता में अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुख की स्थितियों को इसलिए स्वीकारा है क्योंकि वह अपने किसी भी क्षण को अपने प्रिय से न केवल जुड़ा हुआ अनुभव करता है, अपितु हर स्थिति को उसी की देन मानता है।