बिहार में असहयोग आंदोलन के नेता कौन थे? - bihaar mein asahayog aandolan ke neta kaun the?

चंपारण आंदोलन की समाप्ति के उपरांत गांधी जी ने किसे अपने मोतिहारी के कार्यालय का कार्यभार सौंप कर वापस लौट गए

Ans – जनकधारी प्रसाद

भारत में महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम किस आंदोलन में भाग लिया

Ans – चंपारण

चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी पर मुकदमा कहां पर चलाया गया था

Ans – मोतिहारी

किस बिहारी नेता की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक अधिवेशन अगस्त 1918 में मुंबई में हुआ था

Ans – सैयद हसन इमाम

रौलट एक्ट के विरोध में पटना में जबरदस्त हड़ताल कब हुई थी

Ans – 6 अप्रैल 1919

प्रांतीय कांग्रेस एवं बिहार प्रांतीय संघ की संयुक्त बैठक 13 जुलाई 1919 को कहां पर हुई थी

Ans – पटना

बिहार में रोलेट एक्ट के विरुद्ध आंदोलन कब हुआ था

Ans – फरवरी 1919

बिहार में खिलाफत आंदोलन कब प्रारंभ हुआ था

Ans – 1919

बिहार प्रांतीय सम्मेलन का 12वां अधिवेशन 28 एवं 29 अगस्त 1920 को कहां पर हुआ था जहां पर असहयोग को समर्थन तथा प्रस्ताव स्वीकृत किया गया था

Ans – भागलपुर

हिंदी साप्ताहिक देश का प्रकाशन किसने प्रारंभ किया था

Ans – राजेंद्र प्रसाद

स्वामी विद्यानंद संबंधित हैं

Ans – किसान आंदोलन से

बिहार का प्रथम राष्ट्रीय महाविद्यालय कहाँ पर स्थापित किया गया था

Ans – पटना

बिहार विद्यापीठ का उद्घाटन कब किया गया था

Ans – 6 फरवरी 1921

असहयोग आंदोलन में भागलपुर जिला में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई किसने

Ans – दीप नारायण सिंह

मोहम्मद जुबेर ने असहयोग आंदोलन में किस जिले का नेतृत्व किया था

Ans – मुंगेर

एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार और सहयोग आंदोलन के दौरान कहां की स्थिति सबसे ज्यादा गंभीर थी

Ans – तिरहुत

श्री राजेंद्र प्रसाद के भाई का नाम क्या था

Ans – श्री राय साहब महेंद्र प्रसाद

बिहार प्रांत को तिलक स्वराज फंड के लिए कितनी धनराशि एकत्र करना था

Ans – 9 लाख 42 हजार

मदरलैंड नामक अखबार का प्रारंभ किसने किया था

Ans – मजहर उल हक

बिहार में 1921 में स्वराज्य सभा की स्थापना कहां पर हुई थी

Ans – गया

अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के किस वर्ष के अधिवेशन में बिहार राज्य को अखिल भारतीय कार्यकारिणी समिति में स्थान दिया गया

Ans – जुलाई 1921

अगस्त 1921 की बिहार यात्रा के दौरान गांधी जी को किस जगह के नागरिकों ने अभिनंदन पत्र प्रदान किया था

Ans – बिहार शरीफ

असहयोग आंदोलन के दौरान प्रिंस ऑफ वेल्स की पटना यात्रा कब हुई थी

Ans – 22 से 23 दिसंबर 1921

बिहार कौमी सेवक दल की स्थापना कब हुई थी

Ans – 27 नवंबर 1921

किसान समाचार के संस्थापक कौन थे

Ans – स्वामी विद्यानंद

बिहार में असहयोग आंदोलन के दौरान बापू तारा पद बनर्जी पर किस नाम का इश्तहार छापने का अभियोग के संबंध में मुकदमा चलाया था

Ans – विदेशिया

बिहार में कौन सा जिला और सहयोग आंदोलन का सबसे बड़ा केंद्र था

Ans – मुजफ्फरपुर

बिहार स्वराज पार्टी की स्थापना कब हुई थी

Ans – फरवरी 1923

श्री राजेंद्र प्रसाद कहां के नगर पालिका के चेयरमैन 1923 में निर्वाचित हुए थे

Ans – पटना

1927 में हुए विधान मंडल के आम चुनाव में स्वराज पार्टी में बिहार में विधानसभा के कितने सीटों पर विजय प्राप्त की थी

Explanation : असहयोग आंदोलन के दौरान बिहार में कृषकों का नेतृत्व स्वामी विद्यानंद ने किया था। स्वामी विद्यानंद, गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह से अत्यधिक प्रभावित थे तथा उन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान वर्ष 1920-22 में किसानों के समर्थन में दरभंगा में 'महाराजा दरभंगा' के विरुद्ध आंदोलन चलाया। 'दरभंगा राज' द्वारा किसानों को कई प्रकार की सहायता प्रदान करने पर स्वामी विद्यानन्द का आंदोलन कमजोर पड़ गया। ....अगला सवाल पढ़े

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Web Title : Asahayog Andolan Ke Dauran Bihar Me Krshakon Ka Netrtv Kisne Kiya Tha

असहयोग आंदोलन महात्मा गांधी के देखरेख में चलाया जाने वाला प्रथम जन आंदोलन था। इस आंदोलन का व्यापक जन आधार था। शहरी क्षेत्र में मध्यम वर्ग तथा ग्रामीण क्षेत्र में किसानो और आदीवासियों का इसे व्यापक समर्थन मिला। इसमें श्रमिक वर्ग की भी भागीदारी थी। इस प्रकार यह प्रथम जन आंदोलन बन गया। 1914-1918 के प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाॅच के कारावास की अनुमति दे दी थी। अब सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली एक समिति की संस्तुतियों के आधार पर इन कठोर उपायों को जारी रखा गया। इसके जवाब में गांधी जी ने देशभर में इस अधिनियम (*रॉलेट एक्ट*) के खिलाफ़ एक अभियान चलाया। उत्तरी और पश्चिमी भारत के कस्बों में चारों तरफ़ आंदोलन के समर्थन में दुकानों और स्कूलों के बंद होने के कारण जीवन लगभग ठहर सा गया था। पंजाब में, विशेष रूप से कड़ा विरोध हुआ, जहाँ के बहुत से लोगों ने युद्ध में अंग्रेजों के पक्ष में सेवा की थी और अब अपनी सेवा के बदले वे ईनाम की अपेक्षा कर रहे थे। लेकिन इसकी जगह उन्हें रॉलेट एक्ट दिया गया। पंजाब जाते समय गाँधी जी को कैद कर लिया गया। स्थानीय कांग्रेसजनों को गिरफ़तार कर लिया गया था। प्रांत की यह स्थिति धीरे-धीरे और तनावपूर्ण हो गई तथा 13, अप्रैल 1919 में अमृतसर में यह खूनखराबे के चरमोत्कर्ष पर ही पहुँच गई जब एक अंग्रेज ब्रिगेडियर(रेजिनाल्ड डायर) ने एक राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने का हुक्म दिया। जालियाँवाला बाग हत्याकांड‎ के नाम से जाने गए इस हत्याकांड में लगभग 1,200 लोग मारे गए और 1600-1700 घायल हुए थे।

असहयोग (नॉन कॉपरेशन)आंदोलन का आरंभ[संपादित करें]

असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 में औपचारिक रूप से शुरू हुआ था और बाद में आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को प्रस्ताव पारित हुआ जिसके बाद कांग्रेस ने इसे अपना औपचारिक आंदोलन स्वीकृत कर लिया।[1] जो लोग भारत से उपनिवेशवाद को समाप्त करना चाहते थे उनसे आग्रह किया गया कि वे स्कूलो, कॉलेजो और न्यायालय न जाएँ तथा इसमेें नितिन सिन्हा भी शामिल थे। अंग्रेजों का कर न चुकाएँ। संक्षेप में सभी को अंग्रेजी सरकार के साथ, सभी ऐच्छिक संबंधो के परित्याग करने को कहा गया। गाँधी जी ने कहा कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा। अपने संघर्ष का और विस्तार करते हुए उन्होंने खिलाफत आन्दोलन‎ के साथ हाथ मिला लिए जो हाल ही में तुर्की शासक कमाल अतातुर्क द्वारा समाप्त किए गए सर्व-इस्लामवाद के प्रतीक खलीफ़ा की पुनर्स्थापना की माँग कर रहा था।

गाँधी जी ने यह आशा की थी कि असहयोग को खिलाफ़त के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख समुदाय- हिन्दू और मुसलमान मिलकर औपनिवेशिक शासन का अंत कर देंगे। इन आंदोलनों ने निश्चय ही एक लोकप्रिय कार्यवाही के बहाव को उन्मुक्त कर दिया था और ये चीजें औपनिवेशिक भारत में बिलकुल ही अभूतपूर्व थीं। विद्यार्थियों ने अंग्रेजी सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक-वर्ग हड़ताल पर चला गया। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख का नुकसान हुआ था। ग्रामीण क्षेत्र भी असंतोष से आंदोलित हो रहा था। पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी। अवधि के किसानों ने कर नहीं चुकाए। कुमाउँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया। इन विरोधी आंदोलनों को कभी-कभी स्थानीय राष्ट्रवादी नेतृत्व की अवज्ञा करते हुए कार्यान्वित किया गया। किसानों, श्रमिकों और अन्य ने इसकी अपने ढंग से व्याख्या की तथा औपनिवेशिक शासन के साथ ‘असहयोग’ के लिए उन्होंने ऊपर से प्राप्त निर्देशों पर टिके रहने के बजाय अपने हितों से मेल खाते तरीकों का इस्तेमाल कर कार्यवाही की।

महात्मा गाँधी के अमरीकी जीवनी-लेखक लुई फ़िशर ने लिखा है कि ‘असहयोग भारत और गाँधी जी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया। असहयोग शांति की दृष्टि से नकारात्मक किन्तु प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक था। इसके लिए प्रतिवाद, परित्याग और स्व-अनुशासन आवश्यक थे। यह स्वशासन के लिए एक प्रशिक्षण था।’ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति के बाद पहली बार असहयोग आन्दोलन से अंग्रेजी राज की नींव हिल गई।

चौरी-चौरा काण्ड

फ़रवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में एक पुलिस थाने पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी। इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई। हिंसा की इस कार्यवाही से गाँधी जी को यह आन्दोलन तत्काल वापस लेना पड़ा। उन्होंने जोर दिया कि, ‘किसी भी तरह की उत्तेजना को निहत्थे और एक तरह से भीड़ की दया पर निर्भर व्यक्तियों की घृणित हत्या के आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है’।

गाँधी जी को मार्च 1922 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर जाँच की कार्यवाही की अध्यक्षता करने वाले जज जस्टिस सी. एन. ब्रूमफ़ील्ड ने उन्हें सजा सुनाते समय एक महत्वपूर्ण भाषण दिया। जज ने टिप्पणी की कि, इस तथ्य को नकारना असंभव होगा कि मैने आज तक जिनकी जाँच की है अथवा करूँगा आप उनसे भिन्न श्रेणी के हैं। इस तथ्य को नकारना असंभव होगा कि आपके लाखों देशवासियों की दृष्टि में आप एक महान देशभक्त और नेता हैं। यहाँ तक कि राजनीति में जो लोग आपसे भिन्न मत रखते हैं वे भी आपको उच्च आदर्शों और पवित्र जीवन वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं। चूँकि गाँधी जी ने कानून की अवहेलना की थी अत: उस न्याय पीठ के लिए गाँधी जी को 6 वर्षों की जेल की सजा सुनाया जाना आवश्यक था। लेकिन जज ब्रूमफ़ील्ड ने कहा कि ‘यदि भारत में घट रही घटनाओं की वजह से सरकार के लिए सजा के इन वर्षों में कमी और आपको मुक्त करना संभव हुआ तो इससे मुझसे ज्यादा कोई प्रसन्न नहीं होगा।

प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बहिष्कार[संपादित करें]

अप्रैल, 1921 में प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन पर उनका सर्वत्र काला झण्डा दिखाकर स्वागत किया गया। गांधी जी ने अली बन्धुओं की रिहाई न किये जाने के कारण प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन का बहिष्कार किया। 17 नवम्बर 1921 को जब प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बम्बई, वर्तमान मुम्बई आगमन हुआ, तो उनका स्वागत राष्ट्रव्यापी हड़ताल से हुआ। इसी बीच दिसम्बर, 1921 में अहमदाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। यहाँ पर असहयोग आन्दोलन को तेज़ करने एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने की योजना बनी।

आन्दोलन समाप्ति का निर्णय[संपादित करें]

इसी बीच 5 फ़रवरी 1922 को गोरखपुर ज़िले के चौरी- चौरा नामक स्थान पर पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, इसके फलस्वरूप जनता ने क्रोध में आकर थाने में आग लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। 12 फ़रवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, "आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।" अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर ज़ोर दिया।

असहयोग आन्दोलन के स्थगन पर मोतीलाल नेहरू ने कहा कि, "यदि कन्याकुमारी के एक गाँव ने अहिंसा का पालन नहीं किया, तो इसकी सज़ा हिमालय के एक गाँव को क्यों मिलनी चाहिए।" अपनी प्रतिक्रिया में सुभाषचन्द्र बोस ने कहा, "ठीक इस समय, जबकि जनता का उत्साह चरमोत्कर्ष पर था, वापस लौटने का आदेश देना राष्ट्रीय दुर्भाग्य से कम नहीं"। आन्दोलन के स्थगित करने का प्रभाव गांधी जी की लोकप्रियता पर पड़ा। 10 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ़्तार किया गया तथा न्यायाधीश ब्रूम फ़ील्ड ने गांधी जी को असंतोष भड़काने के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सज़ा सुनाई। स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से उन्हें 5 फ़रवरी 1924 को रिहा कर दिया गया।

बिहार में असहयोग आंदोलन के प्रमुख नेता कौन थे?

सही उत्तर ​राजेन्द्र प्रसाद है। बिहार के एक नेता जिन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान अपनी आकर्षक वक़ालत पेशे को छोड़ दिया, वे थे राजेंद्र प्रसाद।

असहयोग आंदोलन के नेता कौन थे?

गांधी के नेतृत्व में हुआ असहयोग आंदोलन एक जन आंदोलन था। गांधी जी के सत्याग्रह ने जन संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश शासन के अजेय होने के मिथक को बड़े पैमाने पर चुनौती दी थी। सितंबर 1920 से फरवरी 1922 तक गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन का संचालन किया गया था।

बिहार में असहयोग आंदोलन कब शुरू हुआ?

अगस्त 1920 में, बिहार कांग्रेस ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में बैठक की और असहयोग प्रस्ताव पारित किया, जिसे धरणीधर प्रसाद और शाह मोहम्मद जुबैर ने पेश किया था।

बिहार में खिलाफत आंदोलन के नेता कौन थे?

अली भाइयों, शौकत अली और मोहम्मद अली ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खिलाफत आंदोलन को शुरू कर दिया। वर्ष 1919 से 1924 के मध्य यह आंदोलन हुआ।