सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्यप्रिय पाठकों! माय नियर एग्जाम डॉट इन में आपका स्वागत है। हमारे पिछले आर्टिकल में आपको उच्च न्यायालय के कार्य एवं शक्ति के बारे में जानकारी दी थी, आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य, सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना, सर्वोच्च न्यायालय के गठन का वर्णन, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, शपथ ग्रहण, योग्यताएं, आयु सीमा, महाभियोग, वेतन व भत्ते एवं अन्य कार्य के बारे में वर्णन हम इस लेख में करेंगे । साथ ही साथ इस आर्टिकल सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां PDF हिंदी में डाउनलोड भी कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के गठन का वर्णन :-
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना :-
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या :-सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या का वर्णन अनुच्छेद 124 (1) में किया गया है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल न्यायाधीशों की संख्या 31 है, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश सहित 30 अन्य न्यायाधीश को मिलाकर सर्वोच्च न्यायालय का गठन किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को निश्चित करने का अधिकार भारतीय संसद को प्राप्त है। नोट: सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 8 न्यायाधीशों की व्यवस्था का गठन में की गई थी। बाद में काम के बढ़ते दबाव को देखते हुए भारतीय संसद ने 1956 ई. में सर्वोच्च न्यायालय अधिनियम में संशोधन करने वाले न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 11 की गई। तत्पश्चात 1960 ई. यह संख्या पुणे 14 कर दी गई। 1978 ई. इसकी संख्या 18 और 1986 ई. में 26 हो गया। केंद्र सरकार ने 1 फरवरी, 2008 को सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीशों के अतिरिक्त न्यायाधीशों की संख्या 25 से बढ़ाकर 30 करने का फैसला किया। जो अभी तक कार्य कर रहे है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ :-सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (3) में किया गया है। जिसके के लिए निम्नलिखित योग्यताएं आवश्यक हैं:
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की शपथ ग्रहण :-
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति :
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु सीमा और महाभियोग :-आयु सीमा:सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की कार्य अवधि उनके आयु के 65 वर्ष तक की होती है किंतु, इससे पूर्व व राष्ट्रपति को संबोधित कर अपना इस्तीफा दे दिया जाता है। महाभियोग: महाभियोग के लिए संसद के दोनों सदन अलग-अलग प्रस्ताव पारित कर एक ही सत्र में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों की कुल संख्या का 2/3 बहुमत होना आवश्यक है। (i) कदाचार (ii) शारीरिक व मानसिक असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अनुच्छेद 124 (4) के तहत विशेष बहुमत प्रक्रिया द्वारा पारित 'महाभियोग प्रस्ताव ’के माध्यम से हटाया जा सकता है। नोट: महाभियोग प्रक्रिया पहली बार 1991-93 ई. में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामास्वामी के खिलाफ और 2011 ई. में कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग लाया गया, राज्यसभा में पारित होने के बाद लोकसभा में पारित होने के पहले ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और सिक्किम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पीडी दिनाकरण ने महाभियोग की कार्रवाई शुरू होने से पहले त्यागपत्र दिया। सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते :-
सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्यअथवा सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार :-सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मुकदमे को सुनने और फैसला करने की शक्ति एवं अधिकार को न्यायिक अधिकार क्षेत्र कहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के तीन प्रकार के क्षेत्र है:
प्रारंभिक अथवा मूल क्षेत्राधिकार :-कुछ मुकदमे ऐसे हैं जो केवल सर्वोच्च न्यायालय के नया क्षेत्र में आते हैं इसका अभी पर आया है कि ऐसे मुकदमे केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही प्रारंभ होते हैं अर्थात जिन्हें पहली बार केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही दायर किया जाता है तथा वे किसी अन्य न्यायालय में दायर नहीं किए जा सकते हैं। मूल अधिकार में आने वाले मुकदमे इस प्रकार है: (i) a.ऐसे मुकदमे जिनमें एक और केंद्रीय सरकार तथा दूसरी ओर एक या एक से अधिक राज्य सरकारें हो। b.ऐसे मुकदमे जिनमें एक ओर केंद्रीय सरकार के अतिरिक्त एक क्या एक से अधिक अन्य राज्य सरकारें हो और दूसरी ओर एक या एक से अधिक राज्य सरकारें हो। c.ऐसे मुकदमे जिनमें दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद हो। (ii) मौलिक अधिकार के संरक्षण तथा लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अधिकार दिए गए हैं जिनके लिए उसे निर्देश अथवा आदेश देने का अधिकार है। (iii) जनहित याचिका (PIL) भी सीधे सर्वोच्च न्यायालय में सुनी जा सकती है। यह कैसा अधिकार है जो संविधान में वर्णित नहीं है। अपील संबंधित क्षेत्र अधिकार :-किसी भी निचली अदालत द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध की गई अपील को किसी उच्च न्यायालय द्वारा सुनने की शक्ति को को अपील संबंधित ने अधिकार कहा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध अपील सुन सकता है अतः सर्वोच्च न्यायालय में की गई अपील अंतिम अपील होती है। यह अपील दीवानी, फौजदारी तथा संवैधानिक मामलों से बन तो सकती हैं। (i) दीवानी मामले : अनुच्छेद 133 दीवानी मामले के अंतर्गत संपत्ति विवाद, धन समझौते या किसी सेवा संबंधी झगड़ों के मामले आते हैं। ऐसे मामले में उच्च न्यायालय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। पहले ऐसे दीवानी मामलों की वित्तीय सीमा केवल 20,000 रुपए तक थी परंतु 1972 ई. में किए गए संविधान के तीसरे संशोधन के अनुसार आप सर्वोच्च न्यायालय में की जाने वाली दीवानी अपील के लिए कोई न्यूनतम राशि निर्धारित नहीं है। (ii) फौजदारी मामले : अनुच्छेद 134 कई परिस्थितियों में फौजदारी मामले में उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है: यदि को उच्च न्यायालय निचली अदालत द्वारा दोष मुक्त घोषित किए गए व्यक्ति को मृत्युदंड सुना दे तो ऐसे व्यक्ति को इस निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार है । यदि उच्च न्यायालय किसी ने इसलिए अदालत में किसी मुकदमे को अपने यहां मंगा ले और उस व्यक्ति को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड सुना दे तो ऐसे मामले में भी सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है। (iii) संवैधानिक मामले : अनुच्छेद 132 संवैधानिक मामले ना तो दीवाने झगड़े होते और ना ही फौजदारी अपराध। ऐसा मुकदमा है जिनके कारण संविधान की भिन्न भिन्न प्रकार से व्याख्या करना होता है। विशेष तौर पर मौलिक अधिकारों से संबंधित व्याख्या अथवा अर्थ निकालना। ऐसे मामलों की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में केवल तभी हो सकती है यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करें कि मामला संवैधानिक सवालों से संबंधित है। परामर्शदात्री अधिकारक्षेत्र :-परामर्शदात्री अधिकार का अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय को प्रमाण देने का अधिकार है यदि उस से परामर्श मांगा जाए । परामर्श संबंधी अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रपति किसी भी कानून संबंधित अथवा लोक महत्व के परामर्श पर सर्वोच्च न्यायालय से प्रमाण मांग सकता है परंतु सर्वोच्च न्यायालय परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है। आज तक जब भी सर्वोच्च न्यायालय ने कोई प्रमाण दिया है राष्ट्रपति ने उसे सादर स्वीकार किया है। अयोध्या में जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी, उस स्थान पर पहले मंदिर था या नहीं,जब इस पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांगी गई तो उसने अपनी राय देने से इनकार कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय की अन्य कार्य :-
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___________________________________ अन्य लेख [Important**] General Knowledge भारतीय संविधान संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नभारत के महत्वपूर्ण जांच समितियों एवं आयोग की सूची । List of samiti aur aayog in Hindiसंयुक्त राष्ट्र संघ क्या है? इसके कार्य संस्थाएं और मुख्यालय के नाम। United Nation Organisation in Hindi_______________________________________ इसे दोस्तों में शेयर करें सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां क्या क्या है?अनुच्छेद-32 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध अधिकार पृच्छा-लेख और उत्प्रेषण के लेख जारी कर सकता ।
सर्वोच्च न्यायालय का क्या महत्व है?ये दोनों प्रावधान एक ओर सर्वोच्च न्यायालय को नागरिकों के मौलिक अधिकार के संरक्षक तथा दूसरी ओर संविधान के व्याख्याकार के रूप में स्थापित करते हैं। उपर्युक्त प्रावधानों में दूसरा प्रावधान न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था करता है। सर्वोच्च न्यायालय की सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति संभवतया न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की सलाहकार शक्ति क्या है?(i) संघीय सरकार एवं एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद। (ii) ऐसा विवाद जिसमें एक ओर संघीय शासन व एक या अधिक राज्य हों तथा दूसरी ओर एक या अधिक राज्य हो। (ख) मौलिक अधिकारों से संबंधित विवाद- नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय को समुचित कार्यवाही करने की शक्ति प्राप्त है।
भारत में कुल कितने सर्वोच्च न्यायालय है?
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