भारत में वेतन से कितना प्रतिशत पीएफ काटा जाता है? - bhaarat mein vetan se kitana pratishat peeeph kaata jaata hai?

सरस्वती कस्तूरीरंगन/सुमित जैन
भविष्य निधि (प्रविडेंट फंड यानी पीएफ) काटने के लिए सैलरी के किस-किस हिस्से को जोड़ा जाए? इस सवाल पर आए सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का बड़ी संख्या में कर्मचारियों की टेक होम सैलरी पर असर होगा। 28 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्तों के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि पीएफ काटने के लिए कर्मचारियों को दिए जाने वाले विभिन्न प्रकार के भत्तों (स्पेशल अलाउंस, कन्वेयंस अलाउंस, एजुकेशन अलाउंस, कैंटीन अलाउंस, मेडिकल अलाउंस आदि) को बेसिक वेतन में जोड़ना चाहिए, बशर्ते ये भत्ते...

1. मूलरूप से वेरियेबल पे या कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाने के मकसद से दिए जाने वाले इंसेंटिव्स नहीं हों।
2. अगर ये भत्ते एक तरह के सभी कर्मचारियों को नहीं दिए जाएं।
3. विशेष रूप से उन्हें ही दिए जाएं जो अपनी सैलरी में ऐसे भत्तों का चयन करते हैं।

अब जब सुप्रीम कोर्ट ने पीएफ में आपकी सैलरी से योगदान की गणना के लिए वेतन का मतलब बता दिया है, तो सवाल उठता है कि इसका आपकी टेक होम सैलरी पर क्या असर होगा? ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सिर्फ उन्हीं देसी कर्मचारियों पर होगा जिनका मूल वेतन (बेसिक सैलरी) 15,000 रुपये से कम है। इसका असर समझने के लिए प्रति माह 20 हजार रुपये वेतन का उदाहरण लिया जाए, जिसमें बेसिक सैलरी का हिस्सा 8,000 रुपये है।

20,000 रुपये प्रति माह की कॉस्ट टु कंपनी (CTC) वाले भारतीय कर्मचारियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर

CTC में हिस्सेदारी मूल वेतन पर कटी PF की रकम वेतन के सभी हिस्सों पर कटी PF की रकम (प्रति माह 15,000 रुपये तक सीमित)
CTC का 40% बेसिक पे 8,000 8,000
बेसिक का 40% HRA 3,200 3,200
चिल्ड्रेन एजुकेशन अलाउंस 200 200
कन्वेयंस 1,600 1,600
मेडिकल अलाउंस 1,250 1,250
स्पेशल अलाउंस 3,830 2,498
कर्मचारी और कंपनी 1,920 3,252
कुल मासिक CTC 20,000 20,000
टेक होम पे (PF में योगदान को हटाकर बची CTC) 18,080 16,748
टेक होम पे में आई कमी 1,332
*


ध्यान रखें
1. वेतन की परिभाषा बदलने के कारण हर महीने हाथ में आने वाला वेतन 1,332 रुपये घट जाएगा। हालांकि, यह रकम पीएफ में हर महीने जुट जाएगी। पीएफ में अतिरिक्त जुड़ने वाली इस रकम में कंपनी की तरफ से पीएफ में किए जाने वाले योगदान का पैसा भी शामिल है।

2. कर्मचारी भविष्य निधि कानून, 1952 में हाउस रेंट अलाउंस यानी एचआरए को विशेष रूप से हटाया गया है।

3. सुप्रीम कोर्ट का फैसला लगभग सभी क्षेत्र की कंपनियों के सैलरी स्ट्रक्चर के मद्देनजर आया है। किसी कंपनी को एक कर्मचारी के पीछे किया कुल खर्च कॉस्ट टु द कंपनी यानी सीटीसी कहलाता है।

4. सीटीसी को बेसिक पे, एचआरए, रिटायरमेंट बेनिफिट्स (पीएफ, ग्रैच्युइटी और टैक्स बचाने के लिहाज से तय किए गए अलाउंस जिन्हें फ्लेक्सिबल बेनिफिट्स (FBs) भी कहा जाता है) में बांटा जाता है।

5. फ्लेक्सिबल बेनिफिट्स में बच्चों की पढ़ाई से संबंधित अलाउंसेज या रीइंबर्समेंट्स, कॉन्वेयंस (यात्रा भत्ता या वाहन भत्ता), मेडिकल, लीव ट्रैवल कन्सेसन (LTA), भोजन, फोन बिल आदि शामिल हो सकते हैं।

6. आम तौर पर लोग अपने वेतन में टैक्स बचाने वाले भत्तों का चयन करते हैं। शेष रकम को कंपनी स्पेशल अलाउंस (जिसे पर्सनल पे, रेसिडुअल पे, ईयर एंड पे आदि भी कहा जाता है) के रूप में वेतन का हिस्सा बना दिया जाता है। कुछ कंपनियां वेरिएबल पे या बोनस को भी सीटीसी का हिस्सा ही बना देती हैं।

जिन कंपनियों के वेतन की परिभाषा अच्छे से पता होता है, वे एचआरए, बोनस या इसी तरह के अन्य भत्तों को वेतन में शामिल नहीं करती हैं। यही वजह है कि ये कंपनियां सैलरी के सिर्फ एक हिस्सा, बेसिक पे पर ही पीएफ काटती हैं। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है एचआरए पर पीएफ नहीं कटता है। साथ ही, विशेष मकसद से दिए जाने वाले भत्तों (कन्वेयंस, मेडिकल, एलटीए आदि) को भी पीएफ कन्ट्रिब्यूशन के दायरे से बाहर रखा जाता है।

क्या कहता है ईपीएफ का कानून?
20 या इससे ज्यादा कर्मचारियों वाली कोई भी संस्था ईपीएफ कानून के दायरे में आती है और उसके लिए कर्मचारियों की सैलरी से पीएफ काटने की कानूनी अनिवार्यता होती है। ऐसी संस्थाओं को कर्मचारियों के (सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक) मूल वेतन से 12 प्रतिशत रकम काटकर पीएफ में डालना होता है। फिर, अपनी तरफ से भी 12 प्रतिशत रकम का योगदान करना होता है। इसका 3.66% हिस्सा पीएफ में जबकि शेष 8.33% ग्रैच्युइटी में जाता है। हालांकि, जॉइनिंग के वक्त जिन कर्मचारियों की बेसिक सैलरी 15,000 रुपये से ज्यादा हो, उसका पीएफ काटने की कानूनी बाध्यता नहीं होती। हां, ऐसे कर्मचारी की सहमति से कंपनी पीएफ काट सकती है।

निष्कर्ष
चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए सारी दलील खारिज कर दी कि कर्मचारियों को दिए जाने वाले भत्ते (जिन पर सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाए गए थे) पीएफ के दायरे में आते हैं, इसलिए अब कंपनियों को पीएफ कन्ट्रिब्यूशन की समीक्षा करनी पड़ेगी। इससे कम सैलरी वाले कर्मचारियों का हर महीने हाथ में मिलने वाला वेतन घटेगा। हालांकि, उनका पीएफ का पैसा बढ़ जाएगा जो रिटायरमेंट के बाद काम आएगा। बड़ी बात यह है कि कंपनियों को पिछली तारीख से कर्मचारियों के पीएफ अकाउंट में नए फैसले के मुताबिक पीएफ के पैसे डालने होंगे जिनका उनके खजाने पर बड़ा असर पड़ेगा।

(सरस्वती कस्तूरीरंगन डेलॉयट हैसकिन्स ऐंड सेल्स, एलएलपी में पार्टनर जबकि सुमित जैन इसके मैनेजर हैं)

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सैलरी से कितना पीएफ काटा जाता है?

EPFO सब्सक्राइबर होने का मतलब है कि आपका EPF अकाउंट भी होगा। आपका एम्प्लॉयर यानी कंपनी बेसिक सैलरी के आधार पर सैलरी से 12 फीसदी का कंट्रीब्यूशन प्रोविडेंट फंड (Provident Fund) में करता होगा। बता दें कि EPFO करोड़ों खाताधारकों के खातों को मैनेज करता है।

PF कितना कटता है 2022?

12% आपका वेतन कटता है और 12% कंपनी जमा करती है हर महीने आपकी सैलरी से 12% कटकर आपके PF Account में जमा होता है। इतना ही पैसा (आपकी सैलरी के 12% के बराबर), आपकी कंपनी की ओर से भी आपके PF Account में जमा किया जाता है। यहां पीएफ कटौती के लिए सैलरी के रूप में, आपकी पूरी सैलरी को शामिल नहीं किया जाता।

क्या 25000 से ज्यादा सैलरी से पीएफ काटना अनिवार्य है?

मौजूदा नियमों के तहत, 20 से अधिक कर्मचारियों वाली किसी भी कंपनी को ईपीएफओ के साथ पंजीकृत होना चाहिए और 15,000 रुपये आय वाले सभी कर्मचारियों के लिए ईपीएफ योजना अनिवार्य है। सीमा को बढ़ाकर ₹21,000 करने से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्ति योजना के अंतर्गत आएंगे।

पीएफ योगदान का प्रतिशत क्या है?

ईपीएफओ के मौजूदा नियमों के मुताबिक, एक कर्मचारी मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 12 प्रतिशत का प्रति माह योगदान देता है। यह रकम उनके वेतन से हर महीने काट ली जाती है। Provident Fund: कर्मचारियों के लिए प्रोविडेंट फंड बेहद जरूरी है। इन योजनाओं के तहत नियमित निवेश किया जाता है।