1. मूलरूप से वेरियेबल पे या कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाने के मकसद से दिए जाने वाले इंसेंटिव्स नहीं
हों। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने पीएफ में आपकी सैलरी से योगदान की गणना के लिए वेतन का मतलब बता दिया है, तो सवाल उठता है कि इसका आपकी टेक होम सैलरी पर क्या असर होगा? ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सिर्फ उन्हीं देसी कर्मचारियों पर होगा जिनका मूल वेतन (बेसिक सैलरी) 15,000 रुपये से कम है। इसका असर समझने के
लिए प्रति माह 20 हजार रुपये वेतन का उदाहरण लिया जाए, जिसमें बेसिक सैलरी का हिस्सा 8,000 रुपये है। 20,000 रुपये प्रति माह की कॉस्ट टु कंपनी (CTC) वाले भारतीय कर्मचारियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर
ध्यान रखें 1. वेतन की परिभाषा बदलने के कारण हर महीने हाथ में आने वाला वेतन 1,332 रुपये घट जाएगा। हालांकि, यह रकम पीएफ में हर महीने जुट जाएगी। पीएफ में अतिरिक्त जुड़ने वाली इस रकम में कंपनी की तरफ से पीएफ में किए जाने वाले योगदान का पैसा भी शामिल है। 2. कर्मचारी भविष्य निधि कानून, 1952 में हाउस रेंट अलाउंस यानी एचआरए को विशेष रूप से हटाया गया है। 3. सुप्रीम कोर्ट का फैसला लगभग सभी क्षेत्र की कंपनियों के सैलरी स्ट्रक्चर के मद्देनजर आया है। किसी कंपनी को एक कर्मचारी के पीछे किया कुल खर्च कॉस्ट टु द कंपनी यानी सीटीसी कहलाता है। 4. सीटीसी को बेसिक पे, एचआरए, रिटायरमेंट बेनिफिट्स (पीएफ, ग्रैच्युइटी और टैक्स बचाने के लिहाज से तय किए गए अलाउंस जिन्हें फ्लेक्सिबल बेनिफिट्स (FBs) भी कहा जाता है) में बांटा जाता है। 5. फ्लेक्सिबल बेनिफिट्स में बच्चों की पढ़ाई से संबंधित अलाउंसेज या रीइंबर्समेंट्स, कॉन्वेयंस (यात्रा भत्ता या वाहन भत्ता), मेडिकल, लीव ट्रैवल कन्सेसन (LTA), भोजन, फोन बिल आदि शामिल हो सकते हैं। 6. आम तौर पर लोग अपने वेतन में टैक्स बचाने वाले भत्तों का चयन करते हैं। शेष रकम को कंपनी स्पेशल अलाउंस (जिसे पर्सनल पे, रेसिडुअल पे, ईयर एंड पे आदि भी कहा जाता है) के रूप में वेतन का हिस्सा बना दिया जाता है। कुछ कंपनियां वेरिएबल पे या बोनस को भी सीटीसी का हिस्सा ही बना देती हैं। जिन कंपनियों के वेतन की परिभाषा अच्छे से पता होता है, वे एचआरए, बोनस या इसी तरह के अन्य भत्तों को वेतन में शामिल नहीं करती हैं। यही वजह है कि ये कंपनियां सैलरी के सिर्फ एक हिस्सा, बेसिक पे पर ही पीएफ काटती हैं। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है एचआरए पर पीएफ नहीं कटता है। साथ ही, विशेष मकसद से दिए जाने वाले भत्तों (कन्वेयंस, मेडिकल, एलटीए आदि) को भी पीएफ कन्ट्रिब्यूशन के दायरे से बाहर रखा जाता है। क्या कहता है ईपीएफ का कानून? निष्कर्ष (सरस्वती कस्तूरीरंगन डेलॉयट हैसकिन्स ऐंड सेल्स, एलएलपी में पार्टनर जबकि सुमित जैन इसके मैनेजर हैं) Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें सैलरी से कितना पीएफ काटा जाता है?EPFO सब्सक्राइबर होने का मतलब है कि आपका EPF अकाउंट भी होगा। आपका एम्प्लॉयर यानी कंपनी बेसिक सैलरी के आधार पर सैलरी से 12 फीसदी का कंट्रीब्यूशन प्रोविडेंट फंड (Provident Fund) में करता होगा। बता दें कि EPFO करोड़ों खाताधारकों के खातों को मैनेज करता है।
PF कितना कटता है 2022?12% आपका वेतन कटता है और 12% कंपनी जमा करती है
हर महीने आपकी सैलरी से 12% कटकर आपके PF Account में जमा होता है। इतना ही पैसा (आपकी सैलरी के 12% के बराबर), आपकी कंपनी की ओर से भी आपके PF Account में जमा किया जाता है। यहां पीएफ कटौती के लिए सैलरी के रूप में, आपकी पूरी सैलरी को शामिल नहीं किया जाता।
क्या 25000 से ज्यादा सैलरी से पीएफ काटना अनिवार्य है?मौजूदा नियमों के तहत, 20 से अधिक कर्मचारियों वाली किसी भी कंपनी को ईपीएफओ के साथ पंजीकृत होना चाहिए और 15,000 रुपये आय वाले सभी कर्मचारियों के लिए ईपीएफ योजना अनिवार्य है। सीमा को बढ़ाकर ₹21,000 करने से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्ति योजना के अंतर्गत आएंगे।
पीएफ योगदान का प्रतिशत क्या है?ईपीएफओ के मौजूदा नियमों के मुताबिक, एक कर्मचारी मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 12 प्रतिशत का प्रति माह योगदान देता है। यह रकम उनके वेतन से हर महीने काट ली जाती है। Provident Fund: कर्मचारियों के लिए प्रोविडेंट फंड बेहद जरूरी है। इन योजनाओं के तहत नियमित निवेश किया जाता है।
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