भाषा शिक्षण के लिए कौन सी विधि सर्वोत्तम है? - bhaasha shikshan ke lie kaun see vidhi sarvottam hai?

इस पोस्ट में हम आपके लिए हिंदी भाषा और इसकी शिक्षण विधियां (hindi teaching methods)  आपके साथ शेयर कर रहे हैं। इस पोस्ट में हमने हिंदी की शिक्षण विधियों को बहुत ही विस्तार से समझाया है।  जैसे- प्रत्यक्ष विधि,अनुकरण विधि, व्याख्यान विधि, इकाई विधि, आगमन एवं निगमन विधि, प्रोजेक्ट विधि,समस्या समाधान विधि, समवाय विधि, पाठ्यक्रम विधि के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है।

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हिंदी भाषा शिक्षण की विधियां से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में जैसे कि CTET,UPTET,REET,MPTET,HTET,2nd grade hindi teaching method में इससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इन सभी परीक्षाओं की दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण विषय होता है। आशा है, यह पोस्ट आप सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

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हिंदी में उपचारात्मक शिक्षण

हिंदी शिक्षण की महत्वपूर्ण परिभाषाएं(Important definitions of Hindi teaching)

  • हिंदी शिक्षण की महत्वपूर्ण परिभाषाएं(Important definitions of Hindi teaching)
  • हिंदी भाषा की शिक्षण विधियां
    • (1)  अनुकरण विधि (Simulation method)  
      • 1.  लिखित अनुकरण
      • 2.  उच्चारण अनुकरण   
      • 3.रचना अनुकरण  
      • 4.  मारिया मांटेसरी विधि  
      • अनुकरण विधि की कुछ महत्वपूर्ण  बिंदु इस प्रकार है
    • (2) प्रत्यक्ष विधि (Direct method)
      • दोष:
    • (3) व्याकरण विधि (Grammar method)
    • (4) इकाई विधि (Unit method)
      • इकाई शिक्षण विधि की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं
      • इकाई शिक्षण विधि में मुख्य रूप से दो बातों का ध्यान रखा जाता है
      • दोष
    •  (5) आगमन विधि (Arrival method)
      • आगमन विधि के सोपान
      • आगमन विधि के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
    •   (6) निगमन विधि(Deductive Method)
      • महत्वपूर्ण तथ्य
      • निगमन विधि के सोपान :
      • निगमन विधि से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
    • (7)प्रयोजन विधि (Purpose method)
    • (8) प्रोजेक्ट विधि (Project method)
      • प्रोजेक्ट विधि के सोपान/Steps
    • (9)  समस्या समाधान विधि (Problem solving method)
      • समस्या समाधान विधि के चरण
      • दोष
    • (10) समवाय विधि 
      • इस विधि की कुछ प्रमुख सिद्धांत
    • (11) प्रदर्शन विधि (Display method)
      • प्रदर्शन विधि की प्रमुख विशेषताएं
    • (12) डाल्टन विधि (Dalton Law)
    • (13) व्याख्यान विधि (Lecture method)
    • (14) भाषा संसर्ग विधि
    • (15) पाठ्यपुस्तक विधि
    • (16) चित्र रचना विधि
    • (17)शब्दार्थ विधि/ अर्थबोध विधि
    • (18) व्यास विधि
    • All Subject Pedagogy In Hindi

प्लूटो के अनुसार- “ विचार आत्मा की मुखिया  अध्वआत्मक बातचीत है पर वही जब ध्यानात्मक होकर फोटो पर प्रगट होती है तो इसे भाषा की संज्ञा देते हैं।”

” सब पढ़े सब बढ़े” नारा दिया गया –  सर्व शिक्षा अभियान

महात्मा गांधी के अनुसार- ” हस्तलिपि का खराब होना अधूरी पढ़ाई की निशानी है।”
पतंजलि के अनुसार- ” भाषा वह व्यापार है जिसमें हम वर्णनात्मक या   व्यक्त शब्द द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं।”

कामता प्रसाद गुरु के अनुसार – ” भाषा व साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों तक भली-भांति प्रगट कर सकता है।”

सीताराम चतुर्वेदी के अनुसार- ” भाषा केआविर्भावसे सारा संसार गूंगो की विराट बस्ती बनने से बच गया।”

सुमित्रानंदन पंत के अनुसार – “भाषा संसार का नादमय  में चित्रण है।,”

” ध्वनि में स्वरूप है”,” ह्रदय तंत्र की झंकार है”

किटसन के अनुसार-” किसी भाषा को पढ़ने और लिखने की अपेक्षा बोलना सीखना सबसे छोटी पगडंडी  को पार करना है।”

देवेंद्र शर्मा के अनुसार – ” भाषा की न्यूनतम पूर्ण सार्थक इकाई वाक्य ही है।”

महात्मा गांधी के अनुसार – ” सुलेख व्यक्ति की शिक्षा का एक आवश्यक पहलू है।”
चोमस्की के अनुसार – ” बच्चों में भाषा सीखने की जन्मजात योग्यता है।”
वाइगोस्की  के अनुसार – ” बच्चे अपने सामाजिक- सांस्कृतिक परिवेश से अर्थ ग्रहण करते हैं।”
पियाजे के अनुसार – ” अहम केंद्रित भाषा की संकल्पना किसके साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी है।”
बैलर्ड  के अनुसार – ” पहला और अंतिम वाक्य कंठस्थ कर लेना चाहिए।  पहले वाक्य से आत्मविश्वास आता है, और अंतिम से श्रोताओं पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।”
विश्वनाथ के अनुसार – ” रसात्मक वाक्य को कविता कहते हैं।”
स्वीट के अनुसार – 1. “ध्वन्यात्मक शब्द द्वारा विचारों का प्रगति करण भाषा है।”

2.  ” व्याकरण भाषा  का व्यवहारिक विश्लेषण है”

कलराज के अनुसार –” मातृभाषा मनुष्य के हृदय की धड़कन की भाषा है।”

हिंदी भाषा की शिक्षण विधियां

“एक अध्यापक,  विद्यार्थियों को पढ़ाने, ज्ञान प्रदान करने हेतु जो भी तरीके काम में लेता है वे सभी शिक्षण की विधियां कहलाती है।”

(1)  अनुकरण विधि (Simulation method)  

  • अनुकरण विधि का प्रयोग सामान्यतः भाषण एवं वाचन हेतु किया जाता है।
  • इसी के साथ साथ लेखन विकास हेतु भी यह विधि प्रयोग में ली जाती है कक्षा में जो भी शिक्षक पर आता है।
  • विद्यार्थि अपने शिक्षक का अनुकरण कर अपने भाषण के कौशल का विकास करती है इस प्रक्रिया द्वारा विद्यार्थी के व्याख्यान में स्पष्टता आती है।
  • इस विधि द्वारा एक बालक पढ़ना, लिखना,  अच्छे से उच्चारण करना एवं नवीन रचनाएं करना सीखता है।

1.  लिखित अनुकरण

(a)  रूपरेखा लेखन:  रूपरेखा लेखन में विद्यार्थी अक्षरों की आकृति बनाना सीखते हैं।

(b)  स्वतंत्र लेखन:  इसमें अध्यापक श्यामपट्ट पर पूरा शब्द लिखता है  और विद्यार्थी अपने अध्यापक का अनुकरण करते हैं और स्वयं उसी प्रकार के अक्षर लिखते हैं  यह मुख्य रूप से प्राथमिक स्तर हेतु उपयोग में लाई जाती है।

2.  उच्चारण अनुकरण   

अध्यापक बोल बोल कर शब्दों का उच्चारण विद्यार्थियों को सिखाता है और बालक उच्चारण का अनुकरण कर उस शब्द को बोलना सीखते हैं।

3.रचना अनुकरण  

रचना अनुकरण द्वारा एक बालक भाषा शैली पर आधारित रचनाओं के बारे में लिखना सीखना है इसमें विद्यार्थियों को अभ्यास करने हेतु कोई कविता लेख लिखने हेतु दिया जाता है यह विधि केवल उच्च कक्षाओं हेतु उपयोगी है।

4.  मारिया मांटेसरी विधि  

  • मारिया मांटेसरी इटली की एक चिकित्साक  तथा शिक्षा शास्त्री थे। जिनके नाम से शिक्षा की मांटेसरी पद्धति प्रसिद्ध है।
  • यह पद्धति आज भी कई विद्यालयों में प्रचलित है यह ढाई वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चों हेतु प्रयोग में ली जाने वाली पद्धति है।
  • इसका विकास डॉक्टर मारिया द्वारा रूस  विश्वविद्यालय में मंदबुद्धि बालको की चिकित्सा हेतु उनकी शिक्षा हेतु किया गया जो कुछ समय पश्चात सामान्य बुद्धि के बालकों हेतु शिक्षा में उपयोग में लाई गई।
  • डॉक्टर मारिया का मानना था, कि शिक्षा का मूल उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास होना चाहिए इसमें पाठ्यक्रम को चार भागों में बांटा गया था।

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1.  कर्मेंद्रीय शिक्षण

2.  ज्ञानेंद्रिय शिक्षण

3.  भाषा

4.  गणित

अनुकरण विधि की कुछ महत्वपूर्ण  बिंदु इस प्रकार है

  • यह बाल केंद्रित शिक्षण विधि है, यह विधि करके सीखने पर बल देती है।
  • यह विधि मुख्य रूप से प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों हेतु उपयोगी है।
  • इस विधि का मुख्य उद्देश्य बालक को आत्मनिर्भर बना कर सही अर्थ में स्वतंत्र बनाना है।
  • इसमें बालक को की आवश्यकताओं के अनुसार इसका पाठ्यक्रम अधूरा है बालक के शारीरिक और मानसिक विकास हेतु भी उचित साधन नहीं है।
  • बुनियादी शिक्षा में अनुकरण विधि का उपयोग किया जाता है।
  • बालक को के उच्चारण हेतु यह बिधि उपयोगी है।
  • जैकटॉट विधि:  अध्यापक द्वारा लिखे गए शब्दों का अनुकरण कर बालक शब्द लिखना एवं अभ्यास करना सीखता है यह विधि प्राथमिक स्तर पर उपयोगी है।
  • पेस्ट्रोलॉजी विधि :  इस विधि में विद्यार्थी “अ”  का निर्माण खंड खंड करके सीखते हैं ।

(2) प्रत्यक्ष विधि (Direct method)

  • प्रत्यक्ष विधि को सुगम पद्धति, सम्रात विधि, प्राकृतिक विधि, निर्बाध विधि के नाम से   भी जाना जाता है।
  • इस विधि में बालक को बिना व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराएं भाषा सिखाई जाती है अर्थात भाषा के माध्यम से ही भाषा सिखाई जाती है।
  • इस विधि में जो बालक की मातृभाषा होती है उसे बिना मध्यस्थ बनाएं उसे अन्य भाषा सिखाई जाती है अर्थात मातृभाषा की सहायता नहीं लेकर बल्कि विद्यार्थी को सीधे बार-बार मौखिक एवं लिखित अभ्यास द्वारा सीधे नई भाषा सिखाई जाती है इसमें क्षेत्रीय भाषा का भी प्रयोग  नहीं किया जाता है।
  • इस विधि का निर्माण व्याकरण अनुवाद विधि के दोषों को दूर करने हेतु किया जाता है इस विधि को वार्तालाप के माध्यम से अधिक से अधिक सीखने पर बल दिया जाता है जिससे वह प्राकृतिक रूप से सीख सकें।
  • प्रत्यक्ष विधि में श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है प्राथमिक कक्षाओं हेतु यह विधि अत्यधिक उपयोगी है।
  • इस विधि में में प्रत्यक्ष से अर्थ कार्य करके दिखाना से है इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग अंग्रेजी भाषा में 1901 में फ्रांस में किया गया था।
  • इस विधि में व्याकरण का ज्ञान अप्रत्यक्ष रूप से दिया जाता है या फिर विद्यार्थियों को स्वयं पूर्व ज्ञान से नियमों का अनुमान लगाना होता है।
  • यह विधि मौखिक अभ्यास पर अधिक जोर देती है इसका मुख्य उद्देश्य  यह होता है कि बालक दूसरी भाषा का ज्ञान अनुकरण द्वारा एवं पृथक भाषा की तरह सीखे।
  • इस विधि में वाक्य को इकाई माना जाता है जिसमें विद्यार्थी व शिक्षक दोनों सक्रिय रहते हैं यह नवीन भाषा को सिखाने का माध्यम होती है।
  • प्रत्यक्ष विधि में व्यवहारिक पक्ष पहले और सैद्धांतिक पक्ष बाद में आयोजित होता है इसके अलावा इस विधि में “आगमन व निगमन” विधि काम में ली जाती है।

दोष:

  • इस विधि में अधिक से अधिक सुनने व बोलने पर बल दिया जाता है किंतु लेखन और वाचन की अवहेलना की जाती है।
  • छात्रों को शब्दावली का बहुत ही सीमित ज्ञान हो पाता है।
  • इसे मौखिक वार्तालाप विधि के नाम से भी जाना जाता है।

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(3) व्याकरण विधि (Grammar method)

  • इस विधि में मुख्य रूप से व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराया जाता है।
  • इस विधि में व्याकरण के नियमों को अत्यधिक  महत्व दिया जाता है जिसके कारण भाषा का प्राकृतिक रूप से विकास नहीं हो पाता है।
  • इसमें नियमों का अत्यधिक अभ्यास होता है जिससे कक्षा में नीरसता आती है।
  • यह विधि ज्यादा काम में नहीं ली जाती है।
  • भाषा तो अनुकरण से सीख ली जाती है परंतु व्याकरण को हमेशा नियम द्वारा ही सीखा जा सकता है।
  • व्याकरण पद्धति में भी” आगमन निगमन” प्रणाली काम में ली जाती है निगमन प्रणाली के अंतर्गत अध्यापक द्वारा बताए गए व्याकरण के नियमों को छात्रों द्वारा रख लिया जाता है यह निगमन प्रणाली कहलाती है आगमन प्रणाली के अंतर्गत नियमों द्वारा विद्यार्थी अनुसरण  अपने स्वयं के उदाहरण व सिद्धांत बनाते हैं।
  • यह पद्धति छात्र स्वयं सीखते हैं।
  • निगमन प्रणाली अरुचिकर होती है क्योंकि यह रटने पर जोर देती है।
  • व्याकरण विधि द्वारा छात्रों को  ध्वनियो का ज्ञान , शुद्ध वर्तनीयो का ज्ञान हो जाता है। इसके अलावा विराम व  कारक चिन्ह का भी ज्ञान होता है।
  • व्याकरण के ज्ञान से भाषा में कम अशुद्धियां होती हैं।

(4) इकाई विधि (Unit method)

  • इकाई विधि का जन्म ”GESTALT”( समग्र, संपूर्ण) की धारणा के आधार पर हुआ।
  • इस विधि का प्रवर्तक अमेरिकन शिक्षा शास्त्री ”मॉरीसन”(1920) को माना जाता है।
  • यह अध्ययन में महत्वपूर्ण होती है इस विधि द्वारा ही अध्यापक दैनिक पाठ योजना का निर्माण करता है।
  • यह विधि ”पूर्ण से अंश” की ओर कार्य करती है।
  • यह विधि ”समानता के सिद्धांत”  पर कार्य करती है।
  • इकाई विधि में ”संपूर्ण विषय वस्तु” को ध्यान में रखा जाता है।
  • यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है इसमें जो अधिगम प्रक्रिया होती है वह व्यवस्थित होती है।
  • यह विधि छात्रों को स्वयं अध्ययन करने के लिए प्रेरित करती है।
  • इस विधि में छात्रों में व्यवहारिक ज्ञान का विकास होता है एवं चिंतन शक्ति का भी विकास इस विधि के माध्यम से विद्यार्थियों में होता है।

इकाई शिक्षण विधि की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं

मॉरीसन के अनुसार:” इकाई शिक्षण विधि की प्रक्रिया वातावरण संगठित कला एवं विज्ञान है।”

अन्य के अनुसार:” इकाई विधि में शिक्षण का स्वरूप”संपूर्णता” ज्ञान खंडों में नहीं।”

इकाई शिक्षण विधि में मुख्य रूप से दो बातों का ध्यान रखा जाता है

(1)  शिक्षण का उद्देश्य

(2)  विषय वस्तु की प्रकृति

विषय वस्तु का विभाजन:  सत्र के अनुसार संपूर्ण पाठ्यक्रम को सत्र अनुसार विभाजन किया जाता है।

# विषय वस्तु : प्रस्तावना:  प्रस्तावना में सबसे पहले विद्यार्थी का पूर्व ज्ञान देखा जाता है पूर्व ज्ञान के अनुसार ही शिक्षण के उद्देश्य बनाए जाते हैं।

# प्रस्तुतीकरण:प्रस्तुतीकरण में यह देखा जाता है कि कौन कौन सी शिक्षण सामग्री के तहत नवीन ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।

मूल्यांकन:नवीन ज्ञान प्रदान करने के पश्चात मूल्यांकन में यह देखा जाता है कि विद्यार्थी ने कितना नवीन ज्ञान प्राप्त किया है।

अन्य शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार :अन्य शिक्षा शास्त्रियों ने भी इकाई विधि के तीन चरण बताए है।

1.  प्रस्तावना

2. विकास

3.  पूर्ति

मॉरीसन के अनुसार इकाई शिक्षण विधि के पद

1.  अन्वेषण

2. प्रस्तुतीकर

3. आत्मीय करण

4.  संगठन/  सुव्यवस्थित करण

5. आत्मभिव्यक्ति/ वाचन/ मूल्यांकन

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दोष

  • इस विधि का मुख्य दोष यह है कि इसमें समय बहुत अधिक लगता है। जिससे कक्षा में नीरसता आती है।
  • इस विधि में केवल उद्देश्य पर आधारित कार्य किया जाता है।
  • पाठ्यक्रम को पूरा करने में कठिनाई आती है।
  • बार-बार ज्ञान की पुनरावृत्ति होती है।

 (5) आगमन विधि (Arrival method)

  •   इसे” विश्लेषण प्रणाली” के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस शिक्षण विधि में सर्वप्रथम विषय वस्तु से संबंधित उदाहरण दिए जाते हैं इसके पश्चात उदाहरणों के के आधार पर नियम स्थापित किए जाते हैं।
  • सर्वप्रथम विद्यार्थी उदाहरण देखते हैं इसके पश्चात उदाहरणों के माध्यम से सिद्धांत/ नियम बनाते हैं।
  • यह शिक्षण विधि” छात्र केंद्रित” विधि है, जो विद्यार्थियों को” करके सीखने” पर बल देती है परंतु यह छोटे बच्चों हेतु उपयुक्त नहीं है।
  • यह एक मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधि है, क्योंकि इस विधि द्वारा ही विद्यार्थी स्वयं ज्ञान को खोजने का प्रयत्न करते हैं।
  • यह शिक्षण विधि” विशिष्ट से सामान्य” की ओर,” स्थूल से सूक्ष्म की ओर”” मूर्त से अमूर्त की ओर”,” ज्ञात से अज्ञात की ओर”,” सरल से कठिन की ओर” के सिद्धांत पर कार्य करती है।
  • यह विधि व्याकरण को पढ़ाने की सरल विधि है ।अतः इसे व्याकरण शिक्षण की” वैज्ञानिक विधि” भी कहा जाता है।
  • शिक्षण विधि में विद्यार्थियों को जो भी ज्ञान की प्राप्ति होती है वह हमेशा” स्थाई” होता है। जिससे बाल अकों में चिंतन शक्ति का विकास होता है इस विधि के द्वारा शिक्षण प्रभावशाली होता है।

आगमन विधि की प्रणाली

प्रयोग  प्रणाली सहयोग  प्रणाली
प्रथम उदाहरण को समझाया जाता है इसके पश्चात नियमों के बारे में बताया जाता है अतः“प्रयोग विधि” कहलाती है इसमें रचना शिक्षण की जानकारी, इसके साथ साथ गद्य शिक्षण एवं व्याकरण के नियमों की जानकारी दी जाती है

आगमन विधि के सोपान

1  उदाहरण

2  विश्लेषण/ निरीक्षण

3  निष्कर्ष/  नियमीकरण

4 Pratice/अभ्यास/ परीक्षण

आगमन विधि के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • इस विधि में तत्वों का परीक्षण/ विश्लेषण कर सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है ना की रटा जाता है अतः विधि प्रत्यक्ष से प्रमाण  की और कार्य करती है।
  • इस विधि में तथ्यों को आधार बनाया जाता है या उदाहरणों का परीक्षण कर नियम बनाए जाते हैं।
  • इस विधि के द्वारा हर विषयों को उदाहरणों द्वारा समझा कर नियम नहीं निकाले जा सकते छोटी कक्षाओं के बालक इस विधि को नहीं कर सकते हैं।
  • यह विधि बहुत अधिक समय लेती है और इसके अलावा इस विधि को बनाते समय हर बालक के मानसिक स्तर को ध्यान में रखना पड़ता है।
  • आगमन विधि को व्याकरण शिक्षण  की वैज्ञानिक विधि के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह विधि प्रत्यक्षीकरण के द्वारा विशिष्ट वस्तुओं का निरीक्षण करती है एवं उदाहरणों के माध्यम से नियमों का ज्ञान करवाती है।
  • यह  विधि स्वयं सीखने पर बल देती है एवं नए ज्ञान को खोजने का प्रशिक्षण भी देती है।
  • व्याकरण शिक्षण हेतु उपयोगी होती है और स्थाई ज्ञान प्रदान करती है।

  (6) निगमन विधि(Deductive Method)

  • इस विधि को” सूत्र प्रणाली” एवं” संश्लेषण प्रणाली” के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस विधि में सर्वप्रथम विद्यार्थियों को नियमों का ज्ञान दे दिया जाता है  इसके पश्चात” उदाहरण” देकर उन नियमों को समझाया जाता है अर्थात सर्वप्रथम नियम उसके पश्चात उन नियमों को सत्यापित करने हेतु विभिन्न उदाहरण दिए जाते हैं इस विधि को सिद्धांत प्रणाली  भी कहा जाता है।
  • यह विधि” उच्च स्तर” हेतु उपयोगी होती है।
  • यह विधि एक” शिक्षक केंद्रित” विधि कहलाती है इसमें शिक्षक ही सारे नियम सिखाते हैं।
  • ” निगमन विधि” आगमन विधि के ठीक विपरीत कार्य करती है।
  • यह विधि छात्रों को अध्ययन” प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर”,”सूक्ष्म से स्थूल की ओर”,” सामान्य से विशिष्ट की ओर” एवं” अज्ञात से ज्ञात की ओर”, ” नियम से उदाहरण की ओर” के सिद्धांत पर  कार्य करती है ।

महत्वपूर्ण तथ्य

1. सूत्र प्रणाली
  • इसमें व्याकरण के नियमों को सीधे बता कर लेटा दिया जाता है।
  • इसमें अभ्यास की कमी होती है।
  • व्याकरण के ज्ञान में कमी।
2. पाठ्य पुस्तक
  • इसमें व्याकरण का ज्ञान देकर नियमों की परिभाषाएं/ नियम पुस्तक से हटा दिए जाते हैं

उदाहरण: अव्यय , सर्वनाम

निगमन विधि के सोपान :

1. नियम
2.  विश्लेषण
3.  उदाहरण
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निगमन विधि से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • इस विधि में  नियमों एवं सिद्धांतों को रटना पड़ता है या नियमों को स्वीकार करना पड़ता है जिसके परिणाम स्वरुप विद्यार्थी कक्षा में रुचि नहीं ले पाते हैं।
  • यह विधि समय की बचत करती है एवं शिक्षण हेतु बहुत उपयोगी होती है।
  • इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान हमेशा  अस्थाई होता है क्योंकि नियम रटने पड़ते हैं।
  •   निगमन विधि द्वारा बालकों की रचनात्मक ज्ञान का विकास नहीं हो पाता है वे अपने स्वयं द्वारा नहीं सीख पाते हैं सिद्धांत से कक्षाओं में नीरसता आ जाती है।
  • इस विधि द्वारा प्रत्येक नियम को पढ़ाया जा सकता है एवं शिक्षण कार्य में भी अध्यापक को ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • आगमन एवं निगमन विधि या दोनों एक दूसरे की पूरक होती है।

(7)प्रयोजन विधि (Purpose method)

  • यह विधि जॉन ड़ूयूवी के शिष्य विलियम किलपैट्रिक द्वारा विकसित की गई थी।
  • इस विधि द्वारा एक विद्यार्थी स्वयं अपनी रुचि से अपने पाठ्यक्रम या विषय वस्तु तथा अपनी क्रियाओं में रामजस स्थापित करते हुए सीखता है या अधिगम  करता है।
  • यह विधि जॉन डी.वी की अवधारणा पर आधारित है  किंतु इस विधि की विचारधारा को विकसित करने का श्रेय उनके शिष्य” किलपैट्रिक” को जाता है।
प्रयोजन विधि की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं

किलपैट्रिक के अनुसार- “ प्रोजेक्ट एक वह उद्देश्य कार्य है जिससे लगन के साथ सामाजिक वातावरण में किया जाता है।”

स्टीवेंसन के अनुसार- “योजना एक समस्या मूलक कार्य है जिसे प्राकृतिक स्थिति में पूरा किया जाता है।”

बैलार्ड के अनुसार- “ प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक छोटा सा अंश है  जिसे विद्यालय में संपादित किया जाता है।”

(8) प्रोजेक्ट विधि (Project method)

1. इस विधि के अनुसार विद्यार्थी अपनी समस्या का हल स्वाभाविक रूप से खोजने की कोशिश करता है और उस समस्या का हल भी करता है।

2. इस विधि में विद्यार्थी स्वतंत्र रूप से कार्य करता है एवं अपनी समस्याओं का हल अपने स्वयं के विचारों के आधार पर करता है।

3. इस विधि में सर्वप्रथम विद्यार्थियों को उद्देश्य  को स्पष्ट किया जाता है तत्पश्चात उस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करते हैं।

4.  इस विधि के द्वारा विद्यार्थी अपने अनुभवों के आधार पर कार्य करता है क्योंकि अनुभव द्वारा सीखे गए ज्ञान को विद्यार्थी कभी भी भूलता नहीं है।

5.  यह विधि वास्तविकता के सिद्धांत पर कार्य करती है क्योंकि यह विद्यार्थियों को इस प्रकार की शिक्षा प्रदान करती है जिससे फल स्वरुप वे अपने जीवन की समस्याओं का भी समाधान कर सकें।

6. इस विधि द्वारा सभी विषयों का ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।

7. यह एक ”बाल केंद्रित शिक्षा” है ।

8. इस विधि में विद्यार्थी सक्रिय/ क्रियाशील रहते हैं समूह में रहकर कार्य करना सीखते हैं इससे उनमें आत्मविश्वास भी पैदा होता है।

दोष
  • यह विधि बहुत अधिक समय लेती है।
  • इस विधि द्वारा समय पर पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाता है।
  • संसाधनों की कमी रहती है जिसके परिणाम स्वरुप यह विधि कार्य नहीं कर पाती है।

प्रोजेक्ट विधि के सोपान/Steps

1.कार्यक्रम योजना बनाना

 2. क्रियान्वयन करना

 3. मार्गदर्शन करना

  4. मूल्यांकन करना

  इस प्रकार इस विधि द्वारा बालक व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करते हैं, निरंतर क्रियाशील रहते हैं उनमें चिंतन शक्ति का विकास होता है एवं आप से सहयोग करना सीखते हैं साथ ही रुचि के अनुसार कार्य करना भी सीखते हैं।

प्रक्रिया

1.  समस्या का पता लगाना

2.  समस्याओं में से एक का चुनाव करना

3.  रूपरेखा बनाना हल करने हेतु

4. विधि का प्रयोग करना

5. विश्लेषण करना

6.  मूल्यांकन/  निष्कर्ष

(9)  समस्या समाधान विधि (Problem solving method)

वुड के अनुसार : ” समस्या विधि निर्देशन की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है जिसका समाधान करना आवश्यक है।”   

  • यह विधि “करके सीखने” किस सिद्धांत पर कार्य करती है।
  • इस विधि द्वारा छात्रों में समस्या को हल करने की क्षमता का विकास होता है जिसके द्वारा उनमें चिंतन एवं तर्कशक्ति का भी विकास होता है।
  • समस्या समाधान विधि विद्यार्थियों को समस्या को स्वयं हल करना सिखाती है एवं उन्हें प्रशिक्षण भी प्रदान करती है।
  • इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है एवं उनमें ऐसे कौशलों का भी विकास हो जाता है जिनके द्वारा उन्हें जीवन की सभी समस्याओं का समाधान करना आ जाता है।
  • समस्या समाधान विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान हमेशा स्थाई होता है।
  • यह एक मनोवैज्ञानिक एवं सक्रिय विधि है क्योंकि इस विधि में विद्यार्थी क्रियाशील रहकर कार्य करते हैं।

समस्या समाधान विधि के चरण

1.  समस्या विधि का चयन

2.  समस्या का प्रस्तुतीकरण

3.   उसे हल करने हेतु तथ्यों का एकत्रीकरण

4.   विश्लेषण/ सामान्यीकरण   

5. मूल्यांकन/ निष्कर्षण

दोष

  • समस्या समाधान विधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं/ प्राथमिक कक्षाओं हेतु नहीं किया जा सकता है।
  • यह विधि बहुत अधिक समय लेती है।
  • यह आवश्यक नहीं है कि इस विधि द्वारा निकले हुए परिणाम संतोषजनक हो।
  • इस विधि में कुशल अध्यापकों की आवश्यकता होती है।
  • इस विधि द्वारा संपूर्ण पाठ्यक्रम को पूरा नहीं कराया जा सकता है क्योंकि विद्यार्थियों को जिन जिन प्रकरणों में समस्या होती है वे उन प्रकरणों से ही  संबंधित समस्याओं का समाधान करते हैं।
  • यह विधि जीवन को बेहतर/ अच्छे ढंग से जीने का एक नजरिया देती है।

(10) समवाय विधि 

  • यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है इस विधि के द्वारा व्याकरण की शिक्षा को स्वतंत्र रूप से प्रदान नहीं किया जाता है।
  • इस विधि में व्याकरण शिक्षण को गद्य पद्य शिक्षण के माध्यम से सिखाया जाता है ।

इस विधि की कुछ प्रमुख सिद्धांत

1.  फ्रोबेल की जीवन केंद्रित शिक्षा

2.  गांधी जी का समवाय का सिद्धांत

3.  जिल्लर  का केंद्रीकरण का सिद्धांत

  • समवाय विधि को “सहयोग विधि” के नाम से भी जाना जाता है इसका प्रमुख गुण विषय वस्तु के साथ साथ ही व्याकरण का ज्ञान कराना है।
  • इस विधि द्वारा उच्च प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों को व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।

दोष:

  • विद्यार्थियों को व्याकरण का सीमित ज्ञान प्राप्त होता है।
  • भाषा की शुद्धता एवं शुद्धता का ज्ञान भी नहीं हो पाता है ।

(11) प्रदर्शन विधि (Display method)

  • व्याख्यान विधि द्वारा गणित एवं विज्ञान जैसे विषयों को अध्ययन कराना संभव नहीं हो पाता है इसीलिए प्रदर्शन विधि इन विषयों को पढ़ाने हेतु प्रयोग में ली जाती है।
  • इस विधि में शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों ही सक्रिया रहते हैं।
  • इस शिक्षण विधि में ज्ञान मूर्त से अमूर्त रूप में दिया जाता है उदाहरण के लिए प्रदर्शन विधि में यदि भूगोल विषय में राजस्थान के 33 जिलों को यदि विद्यार्थियों को दिखाकर समझाते हैं। तो अध्यापक प्रदर्शन के रूप में मानचित्र का उपयोग करते हैं।
प्रदर्शन विधि के सिद्धांत

1.  सरल से कठिन की ओर

2.  मूर्त से अमूर्त की ओर

3.   प्रदर्शन विधि का सतत मूल्यांकन

4. अधिगम में विद्यार्थियों की सहभागिता

5.  संसाधनों को आयोजित करने का तरीका ज्ञात करना

प्रदर्शन विधि की प्रमुख विशेषताएं

1. प्रदर्शन विधि द्वारा प्रदर्शन को धीमी धीमी गति से धीरे-धीरे दिया जाता है जिससे विद्यार्थियों में स्थाई ज्ञान का विकास होता है।

2. यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है।

3.  इस विधि के माध्यम से जो भी विषय वस्तु से संबंधित  ज्ञान प्राप्त किया जाता है उसका अच्छे से स्पष्टीकरण हो जाता है।

4.  प्रदर्शन विधि के माध्यम से कक्षा में रुचि बनी रहती है।

5.  प्रदर्शन विधि के माध्यम से व्याख्यान करने में शिक्षक को कम समय लगता है। इसके साथ ही साथ परिश्रम भी कम लगता है एवं विद्यार्थी स्वयं देख कर सकते हैं।

6.  छात्रों में प्रदर्शन विधि द्वारा समझे गए ज्ञान से चिंतन एवं निरीक्षण शक्ति का विकास होता है।

7.  यह विधि “Learing By Doing” के सिद्धांत पर कार्य नहीं करती है, क्योंकि अध्यापक विद्यार्थियों के समक्ष केबल प्रयोग/ प्रदर्शन करते हैं। विद्यार्थी सुनकर ही विषय वस्तु को समझते हैं।

8. प्रदर्शन विधि के अंतर्गत प्रदर्शन हमेशा विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्तर के अनुसार बनाया जाता है।

9.  यह विद्यार्थियों को वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण प्रदान करती है इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।

10.   अधिक संख्या वाले विद्यार्थियों हेतु यह विधि प्रभावशाली नहीं होती है।

(12) डाल्टन विधि (Dalton Law)

  • डाल्टन पद्धति के जनक/ जन्मदाता” कुमारी हेलेन पार्खस्ट” को माना जाता है।
  • सन 1912 में अमेरिका  ई शिक्षा शास्त्री कुमारी हेलेन ने 8 से 12 वर्ष तक की आयु वाले बालक को हेतु  इस पद्धति को बनाया था।
  • इस विधि का जन्म डेल्टन नामक स्थान पर होने के कारण ही  इससे “डाल्टन विधि” के नाम से जाना जाता है।
  • इस विधि का निर्माण कक्षा में होने वाले शिक्षण के दोषों को दूर करने हेतु किया गया था।
  • इसमें हर विषय का अध्ययन करने हेतु कक्षा की जगह एक प्रयोगशाला होती है जिसमें उस विषय के अध्ययन से संबंधित पाठ्य सामग्री होती है।
  • विद्यार्थी प्रयोगशाला में बैठकर अध्ययन करते हैं ।एवं विषय से संबंधित अध्यापक कक्षा/ प्रयोग करते है। और उनके कार्यों की जांच करते हैं।
  • इस विधि में अध्यापक द्वारा छात्रों को कुछ  निर्धारित कार्य असाइनमेंट के रूप में दिए जाते हैं। जिन्हें विद्यार्थी को दिए हुए समय के भीतर करके देना होता है।
  • इस  इस प्रकार इस विधि द्वारा कार्य करने में बालकों को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती है ।अध्यापक केबल “पथ प्रदर्शक” का कार्य करता है।
डाल्टन विधि की प्रमुख विशेषताएं

1.  इस विधि द्वारा विद्यार्थी स्वयं की क्रियाओं एवं अनुभवों के माध्यम से सीखता है।

2.  कार्य/असाइनमेंट हेतु हर विद्यार्थियों को निश्चित समय दिया जाता है।

3.  इस विधि द्वारा बालकों में स्वाध्याय/स्वयं कार्य करने की क्षमता का विकास होता है।

4.  बालकों को सूची अनुसार कार्य करने दिया जाता है।

5.  बालकों को पुणे स्वतंत्रता दी जाती है।

(13) व्याख्यान विधि (Lecture method)

  • व्याख्यान विधि सबसे प्राचीन शिक्षण विधियों में से एक है प्राचीन समय में गुरुकुल ओं में इस विधि  पर आधारित शिक्षण कार्य किया जाता था।
  • उस समय लेखन सामग्री का अधिक विकास नहीं हुआ था यह एक अमनोवैज्ञानिक शिक्षक केंद्रित विधि कहलाती है।
  • इस विधि में केवल अध्यापक सक्रिय रहते हैं क्योंकि वह पाठ्य वस्तु से संबंधित व्याख्यान प्रस्तुत करता है 
  • इस विधि में विद्यार्थी मात्र एक श्रोता होता है क्योंकि अध्यापक स्वयं पाठ का वाचन करते हैं।
  •  व्याख्यान विधि भारत में वर्तमान में सर्वाधिक प्रयोग में ली जाने वाली विधि है।
  • यह विधि समय की दृष्टि से बहुत ही अधिक उपयोगी है ।
  • इस विधि में सूचनाओं का आदान-प्रदान ज्यादातर मौखिक रूप से किया जाता है अर्थात  विचारों का प्रभाव एक तरफा होता है।
  • पाठ योजना की दृष्टि से सबसे प्राचीन लिपि है।
  • यह सबसे सरल एवं कम खर्चीली विधि है।
  • इस विधि द्वारा पाठ्यक्रम को जल्दी से पूरा कराया जा सकता है। शिक्षण हेतु कोई विशेष यंत्र अथवा उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती है।
  • छात्रों के बड़े बड़े समूहों को इस विधि द्वारा पर आना संभव होता है।

दोष

  • लगातार व्याख्यान से कक्षा में नीरसता आ जाती है।
  • इस विधि में छात्र पूरी तरह निष्क्रिय रहते हैं गणित एवं विज्ञान जैसे विषय हेतु यह विधि उपयोगी नहीं है।
  • मंदबुद्धि बालक ओं को इस विधि द्वारा पर आना संभव नहीं होता है।
  • व्याख्यान विधि द्वारा विद्यार्थियों में तार्किक चिंतन का विकास नहीं हो पाता है।
  • इस विधि द्वारा किसी भी परिस्थिति में शिक्षण संभव है।
  • व्यवहारिक विषयों एवं प्रयोग प्रदर्शनों को व्याख्यान पद्धति द्वारा कहना संभव नहीं है।

(14) भाषा संसर्ग विधि

  • यह एक व्याकरण शिक्षण की विधि है इस विधि को“अव्याकृति विधि” के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस विधि में रचनाओं के माध्यम से व्याकरण का ज्ञान दिया जाता है।
  • इस प्रकार की विधि में बालक को जो भी ज्ञान ले उसे कुशल अध्यापक के माध्यम से ले तभी वह शुद्ध रूप से व्याकरण के नियमों को जान  पाएगा।
  • प्राथमिक कक्षाओं हेतु यह विधि काम में ली जाती है क्योंकि यह भाषा की शुद्धता के प्रयोग पर बल देती है।
  • इस विधि के द्वारा छात्रों को अच्छे लेखन की पुस्तकों के माध्यम से व्याकरण का ज्ञान दिया जाता है जिससे विद्यार्थियों में मातृभाषा की सभ्यता का विकास होता है।
  • यह विधि उच्च स्तर हेतु अनुपयोगी।
  • है यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है इस विधि द्वारा बालक को में तार्किक ज्ञान की कमी रहती है।
  • इस विधि के द्वारा विद्यार्थियों को व्याकरण का व्यवस्थित रूप से ज्ञान नहीं हो पाता है।

(15) पाठ्यपुस्तक विधि

पाठ्यपुस्तक विधि में बच्चों को विषय से संबंधित/ व्याकरण की पुस्तक के दी जाती है इस पुस्तक में व्याकरण से संबंधित टॉपिक्स के नियम एवं उदाहरण दोनों दिए हुए होते हैं। शिक्षक उन नियमों को उदाहरण के माध्यम से समझाता है और अभ्यास करवाता है।

(16) चित्र रचना विधि

चित्र रचना विधि में विद्यार्थियों को कुछ चित्र दिए जाते हैं ।उन क्षेत्रों से संबंधित बाला को को कहानी लिखने को कहा जाता है सभी मित्रों को बालक बारी-बारी से देखता है एवं पूरी कहानी लिखता है यह विधि प्राथमिक स्तर हेतु उचित नहीं मानी जाती है छोटी कक्षाओं में मोक्ष विधि द्वारा कहानी संभव है इस विधि द्वारा विद्यार्थी में लेखन शक्ति का विकास हो।

(17)शब्दार्थ विधि/ अर्थबोध विधि

इस विधि में शिक्षक, विद्यार्थियों को कठिन शब्दों का अर्थ कराते हुए शिक्षण करवाता है यह प्राथमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं हेतु उपयोगी है।

(18) व्यास विधि

यह विधि कक्षाओं को भाग प्रधान कविताओं को पढ़ाने हेतु काम में ली जाती है इसमें भाव एवं कला दोनों पक्षों को कथा के माध्यम से समझाया जाता है।शिक्षक की भूमिका प्रमुख होती है । 

इस पोस्ट में हमने हिन्दी भाषा और इसकी शिक्षण विधियाँ pdf (hindi teaching methodsआप सभी के साथ शेयर किए हैं आशा है यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी!!!

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भाषा शिक्षण के लिए कौन सी विधि सर्वोत्तम है? - bhaasha shikshan ke lie kaun see vidhi sarvottam hai?

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भाषा शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि कौन सी है?

भाषा सीखने की सर्वाधिक प्रचलित और प्राचीनतम विधि है.
भाषा कौशल की दक्षता प्रदान करना है इसका प्रमुख उद्देश्य है.
बोलने की अपेक्षा लिखने और पढ़ने पर तथा भाषा के तत्वों पर अधिक ध्यान दिया जाता है.
दोष लक्ष्य भाषा को कम महत्व दिया जाता है.
यह भाषा शिक्षण की वैज्ञानिक विधि नहीं है.

भाषा शिक्षण की कौन सी विधि उपयुक्त है?

भाषा - संसर्ग विधि इस प्रणाली में व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराए बिना , भाषा के शुद्ध रूप का अनुकरण करने का अवसर प्रदान कर छात्रों को भाषा के शुद्ध रूप का प्रयोग करना सिखाया जाता है । प्राथमिक कक्षाओं में व्याकरण पढ़ने की यही प्रणाली लाभदायक है ।

भाषा सीखने की सबसे अच्छी विधि कौन सी है?

परस्पर वार्तालाप किसी भाषा को सीखने की सर्वाधिक सरल विधि है।