भीतर के अंधेरे की टॉर्च बेचने और सुरक्षा टॉर्च बेचने के धंधे में क्या फर्क है? - bheetar ke andhere kee torch bechane aur suraksha torch bechane ke dhandhe mein kya phark hai?

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Question

भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने और 'सूरज छाप' टार्च बेचने के धंधे में क्या फ़र्क है? पाठ के आधार पर बताइए।

Solution

यह धंधे पाठ में देखने में एक लगते हैं परन्तु दोनों में बहुत अंतर है। एक में सामान्य अंधकार को दूर करने के लिए टार्च बेचनी थी। यह एक उपकरण है, जो कृत्रिम प्रकाश पैदा करता है। इससे लोगों की सहायता की जाती है कि वे अँधेरे में स्वयं को कष्ट पहुँचने से बचा सके। भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने का धंधा बहुत ही अलग है। इसके अंदर मनुष्य को भीतर के अँधेरे का डर दिखाया जाता है। यह धंधा लोगों में डर फैलाता है और उनका धर्म के नाम पर शोषण किया जाता है। इनसे आम लोगों को कुछ फायदा नहीं अपितु उनका भावनात्मक शोषण होता है।

भीतर के अंधेरे की टार्च बेचने और सुरक्षा टार्च बेचने के धंधे में क्या फर्क है पाठ के आधार पर बताइए?

भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने का धंधा बहुत ही अलग है। इसके अंदर मनुष्य को भीतर के अँधेरे का डर दिखाया जाता है। यह धंधा लोगों में डर फैलाता है और उनका धर्म के नाम पर शोषण किया जाता है। इनसे आम लोगों को कुछ फायदा नहीं अपितु उनका भावनात्मक शोषण होता है।

लेखक ने टार्च बेचने वाली कंपनी का नाम सुरक्षा पर क्यों रखा?

जब सूर्य आता है, तो अंधकार भाग जाता है। अतः सूरज छाप नाम रखकर लेखक पाठकों को कंपनी के प्रति आश्वस्त करना चाहता है। टार्च भी प्रकाश करने के काम आती है। अतः यह नाम लेखक की बनाई कंपनी तथा कहानी को सार्थकता प्रदान करता है।

टॉर्च बेचने वाले की अपने मित्र से किस रूप में और कहाँ भेट हुई?

3. पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और किस अंधेरे को दूर करने के लिए टॉर्च बेच रहा था? उत्तर: पहला दोस्त मंच पर संत की तरह था। उसकी वेशभूषा भी संतों की तरह थी, बहुत सुंदर रेशमी कपड़ों से सजा धजा था।

टॉर्च बेचने वाले ने अपना रूप क्यों बदला?

इसका भेष बदला क्यों है ? पूछने पर उसने कहा, "मैंने टार्च बेचने का धंधा बन्द कर दिया है। आत्मा के भीतर की टार्च जल चुकी है। पुराना धंधा व्यर्थ लगता है।" लेखक ने उसकी बात सुनकर कहा-'जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है, वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है।